प्रलय कब आएगी कुछ दिन पहले मीडिया में काफी हो-हल्ला हुआ कि अब बदलेगी दुनिया, मिल गए भगवान, विज्ञान ने भगवान को खोजा आदि। मीडिया वाले तो अपन...
प्रलय कब आएगी
कुछ दिन पहले मीडिया में काफी हो-हल्ला हुआ कि अब बदलेगी दुनिया, मिल गए भगवान, विज्ञान ने भगवान को खोजा आदि। मीडिया वाले तो अपनी आदत से मजबूर होते हैं। कोई अफवाह उड़े तो उसे फैलाने में इन्हें ज्यादा मजा आता है। थोड़ा सुनो ज्यादा सुनाओ यही इनका काम है तो कोई इसमें क्या करे। लेकिन कभी-कभी इससे कई मुश्किलें बढ़ जाती हैं। मुश्किलें अपने लिए न बढ़ें तो मुश्किलें मुश्किल नहीं होती। यह आज का सत्य है। और इसी सत्य के बल पर लोग शुख-शान्ति का तब तक अनुभव करते रहते हैं जब तक खुद पर गाज नहीं गिरती।
उपरोक्त खबर से कई नास्तिकों की साथ ही कई आस्तिकों की मुश्किलें बढ़ गईं। कैसे ? आगे पढ़िए समझ में आ जायेगा।
नास्तिक सदैव से भगवान को तथा उनके अस्तित्व को नकारते आ रहे थे। ये प्रायः कहते थे कि विज्ञान भी तो ईश्वर को नहीं मानता। विज्ञान भी कहता है कि ईश्वर नहीं है। जब इन लोगों ने सुना कि भगवान मिल गए, विज्ञान ने भगवान को खोज लिया तो इन्हें आशमान घूमता नजर आया। इन्हें जोर का झटका लगा। कई तो हार्ट पकड़ कर बैठ गए। कई के घर चूल्हे तक भी नहीं जले।
वहीं दूसरी ओर कई आस्तिक इस कारण से परेशान हो गए कि हम तो मंत्र के चक्कर में पड़े रहे और भगवान इस कलियुग में मंत्र के बजाय यंत्र के वश में हो गए हैं। भगवान अब मंत्र से नहीं यंत्र से मिलेंगे। शायद कई साधु-महात्माओं को इसका पहले से ही आभास हो गया था। तभी तो ये मंत्र को छोड़ यंत्र के चक्कर में पड़े थे और लोग इन्हें गलत समझने की भूल कर रहे थे।
इधर कई लोग दुनिया के बदल जाने वाली खबर से भी काफी परेशान थे। ये लोग इसे २०१२ की कपोल कल्पित सम्भावित प्रलय से जोड़कर देख रहे थे। इनका कहना था कि भाई यह प्रलय का ही संकेत है। और प्रलय अब तो बिना आये रह ही नहीं सकती क्योंकि विज्ञान से इसका संकेत मिल गया है। इसमें कोई दो राय नहीं है। प्रलय आएगी तो दुनिया अपने आप बदल जायेगी। कई लोग आँख फाड़े पहले से ही प्रलय का इंतजार कर रहे थे और यह खबर सुनकर अपनी-अपनी आँखे और फाड़ लिए हैं।
वैसे दुनिया तो हमेशा बदलती ही रहती है। कहा गया है कि-‘प्रतिपल बदले सरकता सो जानो संसार’ अर्थात जो हर क्षण बदल रहा हो, सरकता जा रहा हो वही संसार है। फिर भी यदि लोगों को इससे संतुष्टि नहीं है तो भारी और अचानक बदलाव के लिए प्रलय की कामना लाजिमी ही है।
लेकिन हैरानी और परेशानी वाली बात तो यह है कि दो हजार बारह का एक-एक दिन बीतता जा रहा है। और प्रलय का अभी तक ठीक वैसे ही कोई अता-पता नहीं है, जैसे आज के पढ़े-लिखे बेरोजगार युवकों के लिए नौकरी का कोई अता-पता नहीं होता। इससे कई लोग मायूस होते जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कई लोग धीरे-धीरे खुश हो रहे हैं। खुलकर खुशी इसलिए व्यक्त नहीं कर पाते क्योंकि जो लोग मायूस हो रहे हैं। वे अब तक पूर्णतयः निराश नहीं हुए हैं।
ये अपने दिल को दिलासा देते हुए कहते हैं कि प्रलय के लिए एक क्षण मात्र ही पर्याप्त होता है। और अभी तो पूरा एक महीना पड़ा है। वास्तव में प्रलय अभी थोड़े आनी थी। यह दिसम्बर २०१२ के अंत तक आएगी।
निराश होकर लौटन ने एक महात्मा जी से पूछा कि प्रलय कब आएगी ? दो हजार बारह तो बीतने वाला है। महात्मा जी ने कहा कि सबको एक न एक दिन मरना होता है। लेकिन लोग मरना नहीं चाहते। यह एक महान आश्चर्य माना जाता है। फिर भी तुम मरना चाहते हो क्या ? यदि मरना ही है तो तकनीकी के इस युग में परम्परागत से अपरंपरागत तक अनेकों नुस्खें हैं। कोई भी अपना लो। इससे कम से कम बाकी के लोग तो बच जायेंगे।
लौटन बोले यही तो समस्या है। मैं अपना लूँ तो भी बाकी के लोग तो अपनाएंगे नहीं। और प्रलय आई तो सबको एक ओर से बटोर लेगी। किसी के लिए कोई विकल्प नहीं होगा। मेरी इच्छा है कि यदि मैं न रहूँ तो बाकी के लोग भी न रहें। इसलिए ही प्रलय का इंतजार कर रहा था। महात्मा जी बोले इससे तेरा क्या फायदा होगा ? लौटन बोला यही तो समझने वाली बात है। आज के समय में बिना फायदे के कोई कुछ नहीं करता। और फायदा मिले तो मरने को भी तैयार हो जाते हैं। बचपन में मैं एक बार कुएं में गिर गया। फिर भी बच गया। एक बार मेले में छूट गया, फिर भी लौट आया। एक बार घर में आग लग गई सब कुछ जल गया और मैं बच गया। इसी तरह कई घटनाएँ हुईं। और मैं बार-बार बचता रहा। इस पर हमारी आजी ने कहा कि यह लौटन है। यह मौत के मुँह से लौट-लौट कर आया है। और मुझे अब भी विश्वास है कि एक बार मैं मरकर भी लौट आऊँगा। और बाकी के लोग गए तो गए। इससे बड़ा फायदा और क्या होगा ? सारी दुनिया हमारी हो जाएगी।
इसी तरह से लौटन जैसे कई लोग अपने-अपने फायदे के लिए प्रलय का इंतजार कर रहे हैं। डरे-सहमें तो वे लोग हैं जिन्हें इससे कोई अपना फायदा नहीं दिख रहा है। प्रलय से सिर्फ दूसरे का नुकसान होता तो गम की बात ही क्या थी। अपना तो होगा ही लेकिन साथ में दूसरों का भी होगा, कई लोग इसीके बल पर जीवित है। अन्यथा अब तक दूसरे लोक का सैर कर रहे होते।
कई प्रेमी जोड़े भी इस प्रलय का इस बेदर्द दुनिया से दर्द पाकर इंतजार कर रहे थे। इनका मानना था कि दुनिया और दुनिया वाले बहुत संकुचित हो गए हैं। इसलिए हम लैला-मजनू और हीर-राँझा आदि तो बन नहीं सकते। और जब गुमनामी में ही मरना है तो जहर-माहुर खाकर अथवा डूब मरने से बेहतर है कि प्रलय में ही चल बसेंगे। कम से कम कुछ दिन और तो साथ रह ही लेंगे।
जीवन में जिनका मकसद सिर्फ मरना ही रह गया हो उनके लिए प्रलय दुखदायी थोड़े है। समस्या तो उनके लिए है जो सदा-सदा के लिए जीना ही चाहते हैं। और दुनिया का सुख भोगना चाहते हैं। इनमें से कई नास्तिक भी हैं। लेकिन जब प्रलय की बात सोचते हैं तो इन्हें प्रलय से संरक्षण देने वाला ईश्वर के अतिरिक्त कोई नहीं दिखता। जो इनके बिचार से अब तक थे ही नहीं। वहीँ कई लोग जो आरक्षण के बल पर जीवन में योग्यता न होने पर भी मजा कर रहे हैं उन्हें प्रलय में भी आरक्षण देने वाले की जरूरत है। इसमें कोई ताज्जुब नहीं है कि कोई नेता इस मौके का भी फायदा उठा सकता है। भारत जैसे देश में प्रलय में भी आरक्षण का भरोसा देकर अपना उल्लू-सीधा किया जा सकता है।
कुछ भी हो अभी सुनने में आया है कि प्रलय के हिमायती कई लोगों ने गुपचुप तरीके से हाल ही में एक सम्मेलन कर चुके हैं। इसमें विचार-विमर्श का यही मुख्य मुद्दा था कि यदि दो हजार बारह में प्रलय नहीं आई तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा। क्योंकि यदि हम लोग कहने लगेंगे कि प्रलय दो हजार तेरह अथवा चौदह या फिर दो हजार बीस में आएगी तो लोग जल्दी विश्वास ही नहीं करेंगे। कई बार पहले भी विश्वास टूट जो चुका है। लेकिन हम लोगों के हाथ में सिर्फ कहना और उड़ाना था। जो हम कर चुके हैं। प्रलय लाना हमारे हाथ में तो था नहीं। फिर भी हमे एकमत होकर निर्णय लेना ही होगा कि अब प्रलय कब आएगी ?
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डॉ. एस. के. पाण्डेय,
समशापुर (उ.प्र.)।
ब्लॉग: श्रीराम प्रभु कृपा: मानो या न मानो
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वॉलमार्ट के आने से प्रलय आ ही जाए तो अच्छा
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