श्याम गुप्त का आलेख - अगीत कविता विधा का भाव-पक्ष

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अगीत कविता विधा का भाव-पक्ष       ( डा श्याम गुप्त ) अगीत-विधा भाव-पक्ष-प्रधान एक सशक्त काव्य-विधा है। अगीत रचनाओं व कृतियों में सशक्त, सम...

अगीत कविता विधा का भाव-पक्ष

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      ( डा श्याम गुप्त )


अगीत-विधा भाव-पक्ष-प्रधान एक सशक्त काव्य-विधा है। अगीत रचनाओं व कृतियों में सशक्त, समर्थ व संपन्न भाव-संपदा के सम्यक दर्शन होते हैं   तत्कालीन कविता में संक्षिप्तता के साथ सहज भाव-सम्प्रेषण, सम-सामयिक समस्याओं से जूझने के साथ ही समस्या-समाधान का अभाव, कथ्य, प्रदर्शन की दिशा-ज्ञान का न होना, विधा की अस्वस्थता व सर्व-साधारण के लिए दुर्बोधता के कारण सर्वग्राही कविता के हित 'अगीत' का प्रादुर्भाव हुआ। भाव-संपदा अगीत का प्राण है। अगीत रचनाकार नए-नए भाव, विषय, समाजोपेक्षी संस्कार, नवीनता, युगबोध, विचार-क्रान्ति व आस्थामूलक भावों पर रचना करता है। भाषा की नई सम्वेदना व संवेग, कथ्य की विविधता व अनूठा प्रयोग, परिमाप की पोषकता, विश्वधर्मी प्रयोगों के साथ सहज एवं सर्वग्राही भाव-सम्प्रेषणीयता अगीत का गुण धर्म है। कम से कम शब्दों व पंक्तियों में पूरी बात कहने का श्रेय अगीत रचनाओं को ही है। युग की हर संभावना का समावेश, विषय व कथ्य वैविध्यता अगीत की अपनी अभिज्ञानता का प्रतीक है। अतः अगीत प्रमुखतः अर्थ व भाव प्रधान काव्य संपदा विधा है। अगीत " शब्दमिति " अर्थात तुलसी की भाषा में... " अमित अरथ आखर अति थोरे" की भाव-भूमि पर आविर्भूत हुआ है


कथ्य व भाषा की संवेदना, अनूठा प्रयोग व बिम्बधर्मी- संक्षिप्तता में एक प्रयोग प्रस्तुत है--
" बूँद बूँद बीज ये कपास के,
खिल-खिल कर पड रही दरार;
सडी-गली मछली के संग,
ढूँढ रहा विस्मय विस्तार,
डूब गए कपटी विश्वास के। "                      ---- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'


अगीत के एक प्रमुख कवि व अगीत पर विभिन्न साहित्यिक लेखों के लेखक श्री सोहन लाल सुबुद्ध के अनुसार ..." अगीत जमीन से जुडी वह कविता है जिसमें लय व गति हो, समाजोपयोगी स्वस्थ विचार व सम्यक दृष्टिबोध समाहित हो।" ( प्रतियोगिता दर्पण --उद्बोधन से )। अगीतकार पाश्चात्य प्रभाव के अन्धानुकरण में वर्ग संघर्ष की बजाय कर्तव्य के प्रति आष्टा, यथार्थ कर्तव्य-बोध , अपने भारतीय समाज , भारतीय भाव-भूमि पर आधारित शास्त्रीयता, राष्ट्रीयता,भाषाई एकता, दृष्टिबोध को अधिक महत्त्व देता है। शास्त्रीयता के साथ साथ नवोन्मेष, पुरा-नव समन्वयता, वर्ग भेद समाप्ति के लिए विचार मंथन अगीत की एक महत्वपूर्ण भाव-भूमि व विषय है।
एक साक्षात्कार में ड़ा सत्य ने कहा था --" अगीत विधा में भाव को प्रधानता दी जाती है। यदि गीत नियमों की बंदिश से मुक्त कोई तुकांत या अतुकांत रचना, चार से दश पंक्तियों में अपने भाव, लय,गति व्यक्त करने में सक्षम है तो वह अगीत है। " अगीत कविता के विभिन्न भावों, विषयों पर संक्षिप्त व सोदाहरण वर्णन से अगीत विधा की भाव-संपदा व उसके भाव-पक्ष को स्पष्ट किया जा सकता है।


सामाजिक सरोकार अगीत कविता का मुख्य भाव है .......
" सामजिक सरोकारों को ,
अपने में समाये ;
नव-प्रभात लाने,
नव-अगीत आये। "                           ------ड़ा श्याम गुप्त


" मां बीमार है,
रकम उसके नाम से
खाते से निकाल कर
स्वघोषित सुपुत्र,
खा रहे बाँट कर। "                         ----- पं. जगत नारायण पांडे


सामाजिक बदलाव की पहल के लिए एक उद्बोधन देखें --
" मेरी एक सलाह है,
अबकी बार चुनाव में,
उनको वोट देकर जीतने का मौक़ा दीजिए ,
जो चरित्रवान हैं ;
ताकि एक बार वे भी,
सत्ता की कुर्सी पर बैठ सकें ,
शासन करने। "                                    -----जबाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई ( राजनीति के रंग से )


वर्ग संघर्ष की अपेक्षा ...वर्ग-न्याय, मानवता आधारित सामाजिक सरोकार प्रमुख भाव होना चाहिए.....
" दलितों के प्रति मत करो अन्याय ,
उन्हें भी दो समानता से-
जीने का अधिकार , अन्यथा-
भावी पीढ़ी धिक्कारेगी, और-
लेगी प्रतिकार ;अतः --
ओ समाज के ठेकेदारो !
उंच-नीच की खाई पाटो ,
दो शोषितों को ही न्याय। "                                         ----- ड़ा सत्य


ठहरी हुई भीड़ में दौडना ,
दौडती हुई भीड़ में रोकना ,
क्या अर्थ रखता है ?
स्वतन्त्रता के लाभ में,
सबका समान हिस्सा है। "                                         -----तेज नारायण राही


समाजवाद के विकृत रूप व तथाकथित विकासमानता पर व्यंग्य भाव भी हैं--
" सुनते सुनते बूढ़ी होगई ,
झिनकू की औलाद ;
परन्तु,
अभी तक नहीं आया,
समाजवाद। "                                                     ------वीरेंद्र निझावन


" विकसित व विकासशील देशों में ,
सबसे बड़ा अंतर ,
एक में मानवता अवशेष ,
दूसरे में छूमंतर। "               ----- धन सिंह मेहता 'अनजान'( प्रवासी भारतीय, अमेरिका )


युग परिवर्तन अगीत का प्रिय भाव व अगीतकार का मुख्य ध्येय है ----
" खोल दो घूंघट के पट,
हटा दो ह्रदय-पट से,
आवरण;
मिटे तमिस्रा,
हो नव-विहान। "                             -----सुषमा गुप्ता


" घर घर में खुशहाली लाएं ,
जीवन साकार करें ;
नवयुग निर्माण करें ,
सबको,
निज गले लगाएं। "                        ----डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'


पश्चिम की भांति रक्ताभ-क्रान्ति नहीं , अमानवीयता नहीं वरन मानवता के साथ युग क्रान्ति , वर्ग न्याय के साथ सहज क्रान्ति हो -----
" आओ चलें ,
मानवता को साथ लें,
किसी का भला करें ;
लोग जलें, जला करें ,
इस कृतघ्न समाज में ,
अपनी जगह बनायें-
क्रान्ति लाएं चारों ओर। "                      ------विजय कुमारी मौर्य ( सिसकता विजय पथ )


" मिटा सके भूखे की हसरत,
दो रोटी भी उपलब्ध नहीं ;
क्या करोगे ढूँढ कर अमृत। "                  ------ त्रिपदा अगीत ( ड़ा श्याम गुप्त )


संस्कार क्रान्ति के परिपेक्ष्य में विचार-क्रान्ति का अनुपम व दूरगामी भाव अगीत में खूब उपलब्ध है ----
" जग की इस अशांति-क्रंदन का,
लालच लोभ मोह-बंधन का।
भ्रष्ट पतित सत्ता गठबंधन,
यह सब क्यों, इस यक्ष -प्रश्न का।
एक यही उत्तर सीधा सा ;
भूल गया नर आप स्वयं को।। "            ------सृष्टि महाकाव्य से ( ड़ा श्याम गुप्त )


" अपनी ही विकृतियों की
अंधी सुरंग में ,
भटक रहे हम;
भविष्य को क्या देंगे। "          -----अगीतिका से  ( पं. जगत नारायण पांडे )


विश्व-शान्ति, राष्ट्रवाद, देश-प्रेम, हिन्दी भाषा, स्वभाषा-प्रेम ---अगीतकार के अन्य महत्वपूर्ण भाव हैं। हिन्दी पूर्ण राष्ट्र -भाषा बने भारतीय जन मानस की यह इच्छा अगीतकार की जन-अभिलाषा है। वैज्ञानिक प्रगति भी अगीत कवि को खूब भाती है। इसके साथ ही राजनीति, न्याय व्यवस्था, प्रजातंत्र, सामाजिक विकृतियों पर भी अगीताकार कवि ने खूब कलम चलाई है ----यथा....
" अंग्रेज़ी आया ने,
हिन्दी मां को घर से निकाला;
देकर, फास्ट-फ़ूड ,पिज्जा, बर्गर -
क्रिकेट, केम्पा-कोला, कम्प्यूटरीकरण ,
उदारीकरण, वैश्वीकरण
का हवाला। "                                                  ------ड़ा श्याम गुप्त

" सबने देखा ,
पिटते चिल्लाते,
कोई न बोला, सब खामोश:
प्रत्यक्ष दर्शी के अभाव में,
छूटा मुकदमा ,
वाहरी न्याय व्यवस्था। "                                     -----रवीन्द्र कुमार 'राजेश'


" आया न्योता,
कर आये परमाणु समझौता:
लिए हाथ में,
कठौता। "                                                         ----- नन्द कुमार मनोचा


" आओ हम अंधकार दूर करें ,
रात और दिन खुशी-खुशी बीते;
सारा संसार शान्ति पाए ,
अपना यह राष्ट्र प्रगतिगामी हो ;
वैज्ञानिक उन्नति से ,
इसको भरपूर बनाएँ। "                                      -----डा सत्य


" रात्रि गयी, दिन आया,
जगह दी परस्पर को,
मान दिया समय को,
क्या यही प्रवृत्ति,
प्रजातंत्र है ?"                                                   -----राम दरश मिश्र


" कुछ कितना विलासप्रिय,
जीवन जी रहे हैं;
हम,
ईर्ष्या में भरे हुए,
दांत पीस रहे हैं। "                                         -----नरेश चन्द्र श्रीवास्तव


नवीन परिवर्तन, युग परिवर्तन, अपरिहार्य है। यह युगसंधि का सम सामयिक परिवर्तन है अतः युग-परिवर्तन के अँधेरे पक्ष को समझते हुए भी अगीत कवि, युग नवीनता के लिए उसे गले लगाता है ......
"टूट रहा मन का विश्वास ,
संकोची   हैं सारी
मन की रेखाएं।
रोक रहीं मुझको
गहरी बाधाएं।
अंधकार और बढ़ रहा ,
उलट रहा सारा इतिहास। "                            -------- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'


अनियंत्रित विकास हो या जीवन व्यापार अति सभी की बुरी है। अगीतों में इनकी हानियों व प्रभावों को खूब उजागर किया है। यांत्रिकता व सामयिक यथार्थ, पर्यावरण, प्रदूषण पर भी कलम चली है ----
" रात भर काल सेंटर पर,
जागते हैं ,
भारत के युवक ;
दिन भर सोता है ,
भारत का भाग्य। "                                          -------स्नेह प्रभा


" मैले कुचले, फटे बसनों में,
लौह की एक शलाका,
लिए हाथों में --
यहाँ वहाँ कूडे के ढेर में,
नंगे पग, दौड़-दौड़
ढूँढ रहे जिंदगी। "                                             ----- राम कृपाल 'ज्योति'


"  सभ्यता की अटारी पर ,
जब आधुनिक नारी चढी ;
तो उसे पसीना छूटने लगा,
वह अपना लिबास ,
फैंकने लगी। "                                               ------ विनय शंकर दीक्षित

" सावन सूखा बीत गया तो,
दोष बहारों को मत देना ;
तुमने सागर किया प्रदूषित। "                        ---- डा श्याम गुप्त


नारी-पुरुष व समाज का त्रिआयामी विमर्श अगीतकारों की एक अन्य विशेष भूमि है। सिर्फ फैशन, स्मार्टनेस , कपडे-गहने , सजाने-सजाने, पुरुषों की बराबरी या उन्हें अपमानित करने में नारी स्वाधीनता निहित नहीं है। नियम-निषेध तीनों के लिए आवश्यक हैं तभी समन्वय होता है एवं समन्वयात्मक समाज की स्थापना -----
"  पुरुष ने नारीको,
देकर केवल अपना नाम ;
छीन ली बदले में
उसकी हर सुबह ,
हर शाम। "                                        -------मंजू सक्सेना 'विनोद'


" अज्ञान तमिस्रा मिटाकर,
आर्थिक रूप से,
समृद्ध होगी, सुबुद्ध होगी ;
नारी ! तू तभी-
स्वतंत्र होगी,
प्रबुद्ध होगी। "                                         ----- सुषमा गुप्ता


" नारी केन्द्र - बिंदु है भ्राता !
व्यष्टि,समष्टि,राष्ट्र की,जग की।
इसीलिये तो वह अबध्य है,
और सदा सम्माननीय भी।
लेकिन वह भी तो मानव है,
नियम-निषेध मानने होंगे। "              ----- शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )


" कर रहे हो ह्त्या तुम,
कन्या के भ्रूण की।
कर रहे पाप छीन के जीवन ,
भविष्य की मां का तुम।
जन्म कौन देगा फिर ,
पैगम्बरों को,
अवतारों को। "                                 ------ अगीतिका में ( पं.जगत नारायण पाण्डेय )


प्रकृति वर्णन, हास्य-व्यंग्य, लास्य व सौंदर्य, प्रेम आदि भावों से भी अगीत कविता अछूती नहीं रही है -----
" ओ बसंत ! फिर आना
सिहरन के साथ।
तेरे आने की
आहट मिल जाती है;
पाहुन से मिलने की,
इच्छा तडपाती है ;
ओ बसंत ! फिर आना ,
मनसिज के साथ। "                                     ---- डा सत्य


" चंचला ,
तेरी मधुर मुस्कान से
मेरा ह्रदय पिघल जाता है।
तुझे पाने के लिए
मैं अपना ,
सर्वस्व लुटा देता हूँ। "                                 ------ सुरेन्द्र कुमार वर्मा


" नई वैज्ञानिक खोज
आधुनिक स्टोव;
तेल खर्च सीमित
समय बचाता है ;
सास नन्द सुरक्षित,
बहू जलाता है। "                                           ----- सुभाष हुडदंगी


" तेरे संग हर ऋतु मस्तानी ,
हर बात लगे नई कहानी ;
रात दिवानी सुबह सुहानी। "                          ---डा श्याम गुप्त


संस्कृति, आस्था, मनोविज्ञान, धर्म, दर्शन एवं दर्शन के उच्चतम रूप वेदान्त में अवस्थित भारतीय आस्तिकता,....   मानवता,  शोषण , साम्प्रदायिकता के भाव प्रस्तुत हैं------
" गरीब के पसीने से,
अपना घर सजाया है;
किसी ने तख़्त,
किसी ने -
ताज बनाया है। "                                      ----- धन सिंह मेहता


" मृत्यु देखकर
हम अमरत्व चाहते हैं;
और मृत्यु के बिना
अमरत्व अर्थ हीन होता है।
फिर अनेक यत्न करते हैं,
लेकिन अमरत्व अप्राप्य है,
मृत्यु एक सत्य है,
अमरत्व एक आशा। "                               ----- नरेश चन्द्र श्रीवास्तव


" समस्त सौर प्रणालियाँ ,
समस्त कार्बनिक सिद्धांत,
समस्त प्राकृतिक संपदा
समस्त बुद्धिजीवी
समस्त दिव्य अग्नि,
आपसे पाकर
हम धन्य हुए,
अपनी कृपाओं से हमें कृतार्थ करें। "                ---- धुरेन्द्र स्वरुप बिसारिया ( दिव्य अगीत से )


" क्यों पश्चिम अपनाया जाए,
सूरज उगता है पूरब में;
पश्चिम में तो ढलना निश्चित। "                     --- डा श्याम गुप्त


" काश कोई ऐसा धर्म होता,
जो प्रबचन के साथ-
रोटी भी देता;
ताकि मनुष्य धर्म से-
अधर्म की ओर न जाता। "                               ----- पार्थो सेन


" आस्था के द्वार से,
आस्था के द्वार तक;
यात्रा ही यात्रा है,
जीवन के पार तक। "                                        -----डा मिथिलेश दीक्षित,शिकोहा बाद


" जिस दिन,
धर्म से मुक्त राजनीति होगी:
उसी दि साम्प्रदायवाद की
अवनति होगी। "                                             --- जवाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई


एतिहासिक सन्दर्भ, दृष्टांत, व्यंजनात्मक अन्योक्ति व अन्य दूरस्थ भाव भी अगीत कवियों ने खूब प्रयोग किये हैं -----


" दुर्योधन !
ठगे रह गए थे तुम, देखकर--
'सारी बीच नारी है
या नारी बीच सारी है '
आज भी सफल नहीं होपाओगे;
साडी-हीन नारी देख,
ठगे रह जाओगे। "                                 ----डा श्याम गुप्त ( श्याम स्मृति से )


" अकेला मन,
कुछ तलाशता है ;
आस-पास कुछ समेटता है,
शायद इसी में मिल जाय-
खोई हुई खुशी;
पता नहीं क्यों नहीं की
उसने खुद्कुशी। "                                 ---- विजय कुमारी मौर्या


अंत में शब्दमिति अर्थात संक्षिप्तता के साथ विभिन्न भावों पर नए नए विचार-भाव, नवीन सन्दर्भ व युवा-मन के भाव भी खूब प्रदर्शित हुए हैं ------
" असत्य ने
सत्य के वक्ष पर,
तांडव किया;
औ चीख चीख कर कहा ,
देखो,
मैं विजित हुआ। "                                 ----डा योगेश गुप्त


" चित्र खिंचा,
मैं हुई निस्तब्ध ;
कलपना यथार्थ का मिश्रण ,
खड़ी खड़ी मैं हुई निरुत्तर;
मैं तटस्थ होकर भी -
निरुत्तर। "                                         ----गीता आकांक्षा


" पकड़ ली जब खाट
तब देखा कभी नहीं ,
मरने के बाद-
कह रहे,
अच्छा इंसान था। "                           ----- देवेश द्विवेदी ' देवेश"


" यह अ.जा. का
यह अ.ज.जा. का
यह अन्य पिछडों का
यह सवर्णों का,
कहाँ है --
मेरा राष्ट्र, मेरा देश ? "                       ---- डा श्याम गुप्त

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नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: श्याम गुप्त का आलेख - अगीत कविता विधा का भाव-पक्ष
श्याम गुप्त का आलेख - अगीत कविता विधा का भाव-पक्ष
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