आत्माराम यादव पीव की कविताएँ

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           सम्पादक जी नमस्कार। मैंने जीवन में अनेक अवसरों मनोकाश पर उभरे.. . . शब्दों की लड़ियों में दर्जनों अभिव्यक्तियां अपने डायरी के प...

          

सम्पादक जी नमस्कार।

मैंने जीवन में अनेक अवसरों मनोकाश पर उभरे.. . . शब्दों की लड़ियों में दर्जनों अभिव्यक्तियां अपने डायरी के पन्नों में बिखेर रखी थी जिन्हें पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराये जाने हेतु धनाभाव के कारण वे मेरी डायरियों  के पन्नों से बाहर नहीं आ सकी थीं, किन्तु अचानक एक दिन आपके स्तम्भ रचनाकार का अवलोकन कर, आपको रचनायें प्रेषण किये जाने की जिज्ञासा होने पर मैंने, उन्हें प्रेषित किया, आपने  रचनाकार में मेरी रचनाओं को प्रकाशित कर  मुझ गुमनाम को स्थान देकर अनुग्रहित किया है।

अब तक मैं रचनाओं के प्रकाशन उपरांत मिलने वाले आनंद से वंचित रहा हूँ, जिसका रसास्वादन आपने कराया है, इसलिये आपको धन्यवाद। कुछ और रचनाएँ प्रेषित हैं।


                    आत्माराम यादव पीव
प्रेमपर्ण,कमलकुटी,विश्वकर्मा मंदिर के सामने, शनिचरा मोहल्ला, होशंगाबाद मध्यप्रदेश
    मोबाईल-०९९९३३७६६१६] ०७८७९९२२६१६

सुख की चाह में-
      एक

मेरे जीवन में,
सुख का
भीषण अकाल पड़ा है,
दूर तक
नजर नहीं आती
राहत की
कोई बदली
दुख की भीषण
महातप्त आंधियों ने
बिबाईयों की तरह
अनगिनत दरारें
पाड़ दी है
मेरे जीवन में।
आकाश के अन्तिम छोर पर बैठा
जगतपिता ईश्वर
फिर भी
अनवरत पीड़ायें
बरसा रहा है
मेरे जीवन में
और
मैं उसकी
तथाकथित संतान
जाने क्यों?
उसकी वसीयत
सुख से
अब तक बेदखल हूँ।
 

    दो
असीम समृद्घिशाली जागीरें
मेरे जीवन की
बियावान धरती से सॅटकर
जगतपिता परमेश्वर ने
अपनी अन्य संतानों में
असमान वितरित की है?
जीवन की
इन सब जागीरों में
चन्द लागों ने
सुन्दरतम महल बनाकर
सुख के फाटक लगाये हैं
मेरे
ये तथाकथित पड़ौसी
अपने महल की
खिड़कियों से
रात गये बेईमान सुन्दरी को
काले लिवास का जामा पहनाकर
तिजौरियो में भरते हैं
और दिन के साफ उजाले में
वैभवता की शक्ल में
अपने कुचरित्र पर
ईमान का पानी चढ़ाते हैं।
उनके जीवन में झॅूठ
हरपल सत्य बनकर
प्रखरित होता है
उनके महल में पिछा
ये रंगीन कालीन
गरीब बेवशो की
मजबूरियॉ है।
जो उनका पेट काटकर
बिछायी गई है।
गुम्बज में चमकता
ये विदेशी झूमर
युवाओं के सपनों को चुराकर
जारजार होते दिलों को मिलाकर
आने वाली उनकी
हर रोशन जिल्दगी की
खूबसूरत रंगीन चमक से
चमकाया है।
महल में जगह-जगह 
लहराते ये रेशमी परदे
तुच्छ भेंटे है
मजबूर लाचारों की।
लम्बी कतारों को
नजरअंदाज कर
मामूली तोहफों के रूप में
कुछ चिर-परिचित
लक्ष्मी भक्तों ने इन्हें दी है।
जो फाईलों के ढ़ेर में
अपना कीमती वक्त बर्बाद नहीं करते
और पलक झपकते ही
कतारों में खडे
तथाकथित लोगों के
कीमती वक्त और भावी अरमानों को
धराशाही करके तुच्छ भेंटों से
अपना काम करवातें  है।
महल की शान बनी
ये  चमचमाती रंगीन गाडियॉ
करीनें से सजी
कई अमूल्य वस्तुएं
सिफारिश के
मजबूत थाल में
रिश्वत के साथ सजाकर
व्यवहार कुशलतारूपी
कपडे से ढँककर
उन्हें ईमानदारी के साथ दी गई है।
महलों में रहने वाले 
इन पडोसियों ने
कई उपहारों को स्वीकार करके
अपने व बच्चों के
भावी जीवन के लिये
हर तरह के साधन जुटाये है।
लेकिन उन्हें ज्ञात नहीं
उनकी इस आदत ने
कई अन्जान लोगों का
जीवन चौपट कर रखा है,
और कईयों को जीते जी ,
आत्महत्या/मरने को विवश किया है।


    तीन
्रगॉव के गरीब फजलू ने
जवान बेटियों की शादी
और अपने बुढापे के लिये
अपनी पुस्तैनी जमीन
और घर के जेवर बेंचकर
अपने इकलौते बेटे की
नौकरी के लिये
परिवार के लिये खुशियॉ 
खरीदनी चाही
पर अफसोस।
हाय री उसकी किस्मत
जीवन को बदरंग करके
उसने अपना सर्वस्य लुटाया
किन्तु नौकरी सुन्दरी ने
उसके बेटे को न अपनाया।
एक से एक खूबसूरत
नौकरी सुन्दरी
अय्यासी के लिये
साहब की सहचरी बनी है,
जिनके गले में बॉहे डाले
साहब मौज कर रहे है,
और गरीब फजलू
पैसा देकर आज भी
भटक रहा है
एक आशा लिये
आसमान ताकता
साहब कभी न कभी
दया करके
अपनी एक नौकरीसहचरी को
मेरे बेटे के साथ कर देगा
और उसका घर
खुशियों से भर देगा।
वर्षों से नौकरी सहचरी के पीछे भागते
मृगमरीचिका की तरह
फजलू की ऑखें धॅस गई है।
असमय ही झुर्रियों ने
उसके शरीर में
अपना जाल बिछा दिया है
हाथ में वैशाखी थामें
धीरे धीरे मौत की ओर सरकता
वह जिन्दगी को
तलाश रहा है
इसके परिवार में
भुखमरी संगनी बन गई है
जो घर में
बेहाल दमक रही है
और फजलू के
परिवार की लक्ष्मी
नौकरी सहचरी के रूप में
साहब के महल में चमक रही है।
   
चार
मेरे पडौसी के
खूबसूरत महल की नीव
अराजकता की
डॉटों/ पत्थरों से भरी गई है
इस महल की
सारी ईटें
भ्रष्टाचार की
मिट्टी से बनी हुई है
जिसमें अनीति की
रेत डालकर
कुटनीति की
सीमेंट का
मसाला मिलाया गया है।
पानी की जगह
मसाला /गारा बनाने
का काम लिया है
भूख से तडफते
छिथडों में लिपटे
बेबश
मजदूरिन की
पीठ से बॅधे
मासूम बिलखते
बच्चें के ऑसू से।
जिसे लिये
वह हरदम जुट जाती है
पूरी लगन से
पत्थर तोड़ने
ईटें  ढ़ोंने
और गारा बनाने ।
वह भूल जाती है
गर्मी के थपेडों को
शीत के प्रकोप को
और मूसलाधार वारिस को
अपना गॉव छोडकर
चल पडती है
बच्चे को
निबाला देने के लिये।
मेरे
तथा कथित पडौसी ठेकेदार
खुश है उसकी
कमाई खा-खा कर
और वह
अबला अनभिज्ञ है,
पूरी मंजूरी मिलने से ।
मेरा
पडौसी ठेकेदार
उसके लिये
माई-बाप और भगवान है।
क्योंकि वह
पेट भरने को काम जो देता है ?
जाने कब
वह समय आयेगा
जब
उसके व बच्चों के
तन पर
उजले कपडे होंगे।
और ये ठेकेदार
उसके पसीने की
कमाई खाना
बन्द करेगा?
शायद तब
जब वह
अज्ञानरूपी अंधकार को
शिक्षा के प्रकाश से दूर करेगी।
   

पॉच

महलों में रहने वाले
मेरे चन्द रईस पडौसी
रोज सॉझ ढले शराब की गिलासों में
सभ्यता क ी बरफ डालकर
शराफत के साथ
मजबूर कमसिन युवती के
गले में अपनी बॉहे डॉल
अपने मृत झुर्रीदार जिस्म को
उसके गरम खून से
जिन्दा रखने की कोशिश करते है
उस बेवश युवती के मन में
इस रोगग्रस्त समाज के प्रति
भीभत्स घृणा होती है
और चन्द रूपयों के
खनकने की खुशियों से
वह अपनी क्षुदाग्रस्त संतान को
दूध खरीदकर पिला सकती है।
और वृद्घ मॉ-बाप को खिला सकती है निवाला
डिग्रियों की धज्जियॉ उड़ाकर
मिटा सकती है बेरोजगारी
ढॅक सकती है तन
और जुटा सकती है
बेरहम मौसम से
लडने की ताकत।


    छह
हे जगतपिता परमेश्वर
सुना है तेरे ऑख
नाक कान नहीं होते
पर तू सब देख
सूंघ और सुन सकता है।
फिर भी
तेरी ओर से
चली आती है
बीमारियॉ परेशानियॉ
और मजबूरिया
जिन्हें जीने के लिये तूने
हम जैसों को चुनकर भेजा है।
जो झेल रहे हैं
तेरी ही संतानों के
जुल्म सितम
और तू
मूक दर्शक बना
देख रहा है
हम दबे हुए है
पीड़ाओं से सिर तक
हम मरकर भी
कोशिश करते है जीने की
हमारी जर्जर झोपडी में
छेद है हजारों
जिससे छन-छन कर आती है
एक दो पल की खुशी
हम तेरे
इस सौतेले व्यवहार को
जी रहे है मर-मर कर।
हर दम मन में
ये धुकधुकी लगी हुई है
कहीं हमारी
झोपडी न गिर जाये
अन्यथा ढ़ेर हुये
सपाट मैदान में
मेरे पडोसियों के साथ
स्वर से स्वर मिलाकर
चिटकती धूप
और बहती हवा
खूब जी भर कर
हॅसेंगे गायेंगें,
और मेरा मजाक उडायेगें
तब अपनी बेबशी पर मै
रो भी  नही सकॅूगा?


सात
हे जगतपिता परमेश्वर
जी चाहता है,
ईमानदारी का
गला घोटकर
अपने पडौसियों के
महल से चुरा लॅू
इस क्षणभंगुर जीवन के लिये
थोड़ी सी खुशियॉ।
जो उनकी इजाजत के बिना
किसी गैर के साथ
महल से बाहर,
कदम तक नहीं रखती।
बरसों हो गये इंतजार . . . करते
सिद्घान्तों पर चलते,
आदर्श निभाते
कृशकाय
बूढी नैतिकता को
उसूलों की पावन्दी से अपनाते।
कभी मेरा जीवन भी
हरा भरा था
जिसकी डालों पर हरदम
चहका करता था एक पखेरू
सुख
पर शायद इसे
एहसास हो गया था
कि मेरे जीवन में
भीषण पतझड
आने वाला है
इसलिये मुझे
मॅुह बिराकर
वह मेरे पडोसी के
उपवन में चला गया।
अब तू ही बोल -
जगतपिता परमेश्वर
मैं किन शब्दों में
आराधना करूॅ
जिससे फिर मेरा जीवन
हरा-भरा हो जावे
और मेरा
प्रिय पखेरू
सुख
हरदम  मेरे ऑगन में
चहकने लगे।

 

हॅसी में मेरे ही कफन का, मैंने साया छिपाया है
ओठों ने करके दफन सपने,
तेरे प्यार को भुलाया है।
सताया है रूलाया है
मुझे तेरी यादों ने बुलाया है।
चाहा था दिल में हम,
गम की कब्र खोदेंगे
दिल का क्या कसूर,
जो उसमें गम ही नहीं समाया है।
दिखती है मेरे लवों पर,
तुमको जमाने भर की हॅसी
हॅसी में मेरे ही कफन का,
मैंने साया छिपाया है।
तुम्हारी खुशी के लिये ही
ये शौक पाले थे मैंने
ये मेरी ही खता थी
जो तुमने बदनाम करवाया है।
गल्तियों को अपनी कहॉ,
छिपाओंगे तुम यहॉ पर
झुकाकर नजर गुजर जाना
तूने अच्छा ये सबब अपनाया है।
कसूर ऑखों में छिपाकर जब,
कसूरवालों ने अकडकर चलना सीख लिया
तब से हर शरीफजादा,
गली से चुपचाप निकल आया है।
दिल की बोतल से तेरी,
मैंने पी डाले न जाने कितने कड़वे घूंट
पीव जलजले जहर के मैँने,
खुदा की रहमत से पचाया है।
शमें रोशनी को कहीं और जलाओे तुम लोगों,
अंधेरों से हमें कुछ इस कदर प्यार आया है।

ये लड़के और लड़कियॉ
यौवन की दहलीज पर
कदम रखते
ये नडके और लडकियॉ
जब प्यार करते है
तो बस प्यार करते हैं।
अपने प्यार की अमराई में
ये जाति धर्म के तम्बू को
रिश्ते नातों की खॅूटी से बॉधते है।
थम जाता है समय भी
इनकी ऑखों में भॅवर बनकर
जीवन के भावी क्षितिज पर
ये कस्में वादों का
इन्द्रधनुष बनाते है।
ये लडके और लडकिया
जिन्दगी को सॅवारने के लिये
डूब जाते है एक दूसरे में
दो जिस्म एक जान बनकर
ये प्रेम के भॅवर में
प्यार करते है।
प्यार की बीथिका में
चलतें है ये स्वच्छंद होकर
प्रलय के दावानल से
अज्ञात दिवा स्वप्न की टूटन में
ये भूल जाते है इच्छायें,
बस प्यार करते है।
प्रेम कोष को अन्तस में छिपाये
बरसते है एक दूजे पर
प्यार की झडी लगाये
दुनिया से अंजान
उन्हें क्षमा करते
ये उनकी ईष्या को भुलाकर
पीव प्यार करते है
भक्त भगवान बनकर।


मूल्यांकन
प्यार के गीत गाता हूँ मैं,
तब मस्ती की महफिल सजाते हो तुम।
प्राणों की वीणा बजाता हूँ मै,
तब सच्चाई से दामन बचाते हो तुम॥
जिन्दगी से इश्क फरमाता हूँ मैं,
तब सभ्यता को मदिरा पिलाते हो तुम।
फूलों कीे सेज साता हूँ मैं,
तब नम्रता को नंगा नचाते हो तुम।।
दिल की बेचैनी को दुल्हन बनाता हूँ मैं,
तब कल्पनाओं को बैठे फुसलाते हो तुम।
अंगारों पर सहज सो जाता हूँ मैं,
तब शीतलता का बिस्तर लगाते हो तुम।।
सूली पर भी बैखौफचढ जाता हूँ मैं,
तब फलों को भी कॉटा बताते हो तुम।
ईश्वर से ऑखे मिलाता हूँ मैं,
तक ललनाओं पर जान लुटाते हो तुम॥
बहारों की गोद खिलाता हूँ मैं,
तब शरारतों से अपनी रिझाते हो तुम।
चाद-सूरज से रोशनी लुटाता हूँ मैं,
तब दिल की अंधेरी रातों में छिप जाते हो तुम॥
सूरज से नजरें मिलता हूँ मै,
तब चान्दनी की हॅसी ऑखों में डूब जाते हो तुम।
अपने गमों से पत्थर पिघलाता हूँ मैं,
तब अपनी खुशियों के लिये पत्थर को रूलाते हो तुम॥
बर्फ पर चिन्गारी जलाता हूँ मैं,
तब नाव में दीवाली मनाते हो तुम।
दुखों को गले लगाता हूँ मैं,
तब खुशियों को बैठे सहलाते हो तुम।
मौत को घर अपने बुलाता हूँ मैं,
तब जीवन का जश्न मनाते हो तुम।
अरमानों की लाश उठाता हूँ मैं,
तब मेहमानों को खाना खिलाते हो तुम।
परम्पराओं को कॉन्धा लगाता हूँ मैं
पीव बगावतों की गोली चलाते हो तुम।।


दहशत जमाने में छा रही है आज
दहशत जमाने में छा रही है आज,
जिन्दगी खौफ से मरे जा रही है आज।
कह दो मौत से अब डर रहा नहीं तेरा,
अब मौत को भी मौत, आ रही है आज।
आदमियत की अब कोई खैर नहीं इस जहॉ में,
घर-घर बन्दूकें बनाई जा रही है आज।
जो निकले थे घर से सेहरा खरीद लाने को
लिपटी कफन में उनकी लाश, आ रही है आज।
क्या खाक मनाओगे जश्न आजादी का तुम लोगों,
घर में ही अपने बेटियों की, इज्जत उतारी जा रही है आज।
उजड़ रही है बस्तियॉ, न जाने किसकी नजर लगी,
मौत काला टीका,घर घर लगा रही है आज।
अंधे,गूंगू और बहरे इन सत्ताधीशों से कोई कह दो
जागो, मदमस्तों नहीं तो अर्थी भी तुम्हारी सॅजायी जा रही है आज।

COMMENTS

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नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: आत्माराम यादव पीव की कविताएँ
आत्माराम यादव पीव की कविताएँ
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