ऐल्डर ऐब्यूज़ : बूढ़े माँ- बाप की दर्द भरी दास्ताँ तू आधार है माँ इस जीवन का, तुम अम्बर की छाया बने पिता । दोस्तों, हम सबके लिए जीवन की पहल...
ऐल्डर ऐब्यूज़ : बूढ़े माँ- बाप की दर्द भरी दास्ताँ
तू आधार है माँ इस जीवन का,
तुम अम्बर की छाया बने पिता।
दोस्तों, हम सबके लिए जीवन की पहली पाठशाला माँ होती है और पिता वो जीवनदाता सूर्य, जिसकी धूप में जीवन का एक नन्हा सा पौधा पोषित होकर एक दिन सुदृढ़ और सुन्दर वृक्ष में परिणित हो जाता है। फिर ऐसा क्या हो जाता है कि एक दिन वही ज़ुबान उस माँ के लिए ज़हर उगलने लगती है, जिसने कभी उसे पहला लफ्ज़ बोलना सिखाया था ? हम क्यों नहीं आगे बढ़ा पाते अपने हाथ, पिता के उन काँपते हाथों को थामने के लिए, जिन्होंने हमें कभी उँगली पकड़कर चलना सिखाया था ? जी हाँ, ज़िन्दगी के इन्हीं पलों का नाम है, *ऐल्डर ऐब्यूज़* ।
आज के दौर में इंसान को शायद सिर्फ खुद से ही मतलब रह गया है । रिश्तों-नातों की तो बात ही क्या करॆं, अपने माँ- बाप तक से उसका रिश्ता बहुत कमज़ोर हो गया है, और कमज़ोर होते- होते ये कब टूट जाता है, पता ही नहीं चलता । अपने बच्चों को स्वार्थरहित प्रेम देने वाले माता-पिता उनसे उनके बेहतर भविष्य के अलावा और ज़्यादा कुछ नहीं माँगते । उनकी खुशी के लिये वो हर सम्भव प्रयास करते हैं, ख़ुद को भूखा रखकर वो अपने बच्चों का पेट भरते हैं, लेकिन बदले में उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय और तिरस्कार से पूर्ण नज़र आता है । माँ-बाप के लिए उनका बच्चा आँखों का तारा होता है। उनके लिए उनके बच्चे से बढ़कर दुनिया की कोई दौलत नहीं होती। माँ अगर बच्चे के रोने से बेचैन हो जाती है तो पिता भी उसके लिए दिन और रात को एक कर, दुनिया की सारी खुशियों को उसके लिए खरीदने की कोशिश करता है। ऐसा करते वक्त उनके मन में तनिक भर भी ये बात नहीं आती कि आज जिसे वो पलकों पर बिठा कर रखते हैं, कल उसी की आँखों में वो तिनके की तरह खटकने लगेंगे। घर में बूढ़े माँ-बाप जब अपने ही बच्चों की बेरुखी का शिकार होने लगें, तब इसे ऐल्डर ऐब्यूज़ का नाम दिया जाता है। जब बूढ़े माँ- बाप अपने ही घर के सदस्यों द्वारा शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किये जाने लगें, तब वे ऐल्डर ऐब्यूज़ के बेहद ख़ौफनाक मोड़ पर खड़े होते हैं।
एक समय ऐसा होता है, जब बच्चे माता-पिता की बातों को मानते हैं और उन्हें मान- सम्मान देते हैं, लेकिन समय के आगे बढ़ने के साथ-साथ इन्हें माता-पिता की बातें नागवार गुज़रने लगती हैं, और फिर जन्म लेती है ऐल्डर ऐब्यूज़। जब एक बार ऐल्डर ऐब्यूज का सिलसिला शुरू हो जाये तो ये थमने का नाम नहीं लेता, बल्कि ये अमानवियता की हदें तक पार करने लगता है। तभी तो दुनिया- भर में बुज़ुर्गों को अपनों के होते हुए भी जीवन के आखिरी दिनों में वृद्धाश्रमों का सहारा लेना पड़ता है।
अब से कुछ समय पहले चलें, तो घर के बड़े- बुज़ुर्गों को बहुत मान- सम्मान दिया जाता था। अपने हर खास और आम फैसले में उन्हें शामिल किया जाता था, लेकिन अग़र नज़र डालें आज के परिदृश्य पर, तो हालात बेहद बदहाल दिखायी पड़ते हैं। आज बूढ़े माँ-बाप को युवा पीढ़ी पुराने कपड़ों की तरह अपनी जिंदगी से बेदखल कर देती है, उन्हें उनके हाल पर बेसहारा भटकने के लिये छोड़ दिया जाता है। ऐल्डर ऐब्यूज़ के इस बढ़ते प्लेग की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए वर्ष 2006 में *इन्टरनेश्नल नेटवर्क फॉर प्रीवेन्शन ऑफ ऐल्डर ऐब्यूज़* ने 15 जून को *वर्ल्ड ऐल्डर ऐब्य़ूज़ अवेयरनैस डे* के रूप में डिज़ाइन किया। सर्वेक्षण कहते हैं कि पूरॆ यूरोप में लगभग तीन लाख लोग ऐल्डर ऐब्यूज़ से प्रभावित हैं।
आज अकेले इंडिया में अनगिनत एन.जी.ओ. और ओल्ड ऐज होम्स, ऐल्डर ऐब्यूज़ की दिशा में काम कर रहे हैं, जो चीख-चीख कर इस बात का खुलासा करते हैं कि किस तरह अपनों की लापरवाही के कारण बुढ़ापे की कमज़ोर दीवारॆं भरभरा कर गिर जाने को मजबूर हैं।
माँ तेरी चरण- धूल सिर- माथे,
पिता तेरॆ बोल मुझे राह दिखाते।
दोस्तों, जब हम अपने माँ-बाप के आश्रित होते हैं तब तो हम उनसे अपनी हर एक बात शेयर करते हैं, अपनी हर एक प्रॉब्लम का साल्यूशन उनसे पूछते हैं, लेकिन जब हम सेल्फ डिपेन्डेन्ट होने लगते हैं तब हमारॆ और माँ-बाप के बीच में प्राइवेसी जैसा शब्द आ जाता है। जी हाँ, हम क्यों खड़ी कर देते हैं, अपने और अपनों के बीच प्राइवेसी की दीवार, जो माँ- बाप को भरॆ- पूरॆ परिवार में भी अकेलेपन का ऐहसास कराती है ?
ऐल्डर ऐब्यूज की शुरुआत होती है बूढ़े माता-पिता को नाम लेकर पुकारने और तू-तड़ाक बोलने से, क्योंकि उन्हें अपमानित करने का और घर छोड़ने के लिए मजबूर करने का ये तरीका बहुत आसान नज़र आता है, जिसे साइलेन्ट ऐब्यूज़ के नाम से जाना जाता है, लेकिन माता-पिता तो बरदाश्त का वो गहरा सागर होते हैं, जिसमें उनके कलेजे के टुकड़े की ये तीखी पुकारें भी समा जाती हैं। माता-पिता को घर से बाहर निकालने की ये कोशिशें यहीं नहीं थमतीं, एक-एक पैसे की मोहताजगी देकर माता-पिता को नज़राना दिया जाता है, फाइनेनशियल ऐब्यूज़ का, जो उन्हें तड़प- तड़प कर जीने के लिए मजबूर कर देती है। जब बात फाइनेन्शियल ऐब्यूज से बनती दिखायी नहीं देती, तब माता-पिता को शारीरिक प्रताड़ना देना शुरू कर दी जाती है, जैसे माँ के ऊपर ज़रूरत से ज़्यादा घरॆलू काम-काज डालना और पिता को पल-पल बाज़ार के चक्कर कटवाना, लेकिन माता-पिता करॆं तो क्या ? अपने बच्चों की खुशियों की ख़ातिर वो फिजिकल ऐब्यूज को भी हँसकर सहते रहते हैं । लेकिन सीमायें तो वहाँ टूट जाती हैं जब छोटी- छोटी बातों पर कहासुनी के साथ माता-पिता के साथ धक्का- मुक्की और मार-पीट तक की जाती है। अपने जीवन के इस मोड़ पर आकर माता-पिता इमोशनल ऐब्यूज़ के साये में तड़पने के लिए मजबूर हो जाते हैं ।
ऐल्डर ऐब्यूज़ का सबसे बदसूरत चेहरा तो तब सामने आता है, जब इतना सब कुछ सहते-सहते उन्हें खुद से नफरत पैदा होने लगती है, जिसको नाम दिया गया है, सेल्फ नेगलेक्ट ऐब्यूज़ का। सेल्फ नेगलेक्ट ऐब्यूज़ में माता-पिता की हालत पागलों जैसी हो जाती है, वो अपना ख़्याल रखना छोड़ देते हैं और हर एक दिन अपनी मौत का इन्तज़ार करने लगते हैं ।
कितनी शर्मनाक समस्या है ऐल्डर ऐब्यूज, एक माता-पिता अपने चार बेटों को हँसते-रोते, सुख-दुःख सहते पाल लेते हैं, उन्हें ज़िन्दगी जीने के क़ाबिल बना देते हैं, उन्हें उनके पैरों पर खड़ा कर देते हैं, लेकिन वही चार बेटे मिलकर भी अपने बूढ़े माँ-बाप का सहारा नहीं बन पाते, सहारा बनना तो दूर वो उन्हें दो वक्त की रोटी तक नहीं दे पाते । क्यों होता है ऐसा ? आखिर क्यों भोगना पड़ता है बूढ़े माँ-बाप को ऐल्डर ऐब्यूज का दर्द ?
अब से कुछ समय पहले के परिवारों की तस्वीरें देखें तो हमें पता चलता है कि कई सारॆ परिवार एक साथ मिलकर रहते थे। घर में माँ-बाप को एक खास दर्जा दिया जाता था। घर के सारॆ लोग अपने हर तरह के मामले में उनसे सलाह-मशवरा किया करते थे, लेकिन आज के समय में परिवारों की तस्वीरों में सदस्यों की संख्या बहुत सीमित दिखाई पड़ती है। ये तस्वीरें इस ओर स्पष्ट संकेत करती है कि बदलते समय के साथ-साथ इन्सान ने खुद को माडर्न बनाने के साथ ही अपने संस्कारों और विचारों को भी माडर्निटी के रंग में रंग दिया है। टुकड़ों में रहते परिवारों में माँ-बाप के अंतिम दिन टुकड़ों में ही कटते रहते हैं। आज के समय में अपनी पर्सनल बातों को माता-पिता से शेयर करना ज़रूरी नहीं समझा जाता। घरों में माता-पिता अपने बच्चों से अलग-थलग पड़े रहते हैं, क्योंकि उनके बच्चों की थिंकिंग में माता-पिता पुराने ख़्यालात के होते हैं। कुल मिलाकर ऐल्डर ऐब्यूज़ के अनगिनत कारण हैं, लेकिन जो सबसे अहम कारण हैं, वो अपना निशाना समाज के अति-आधुनिकीकरण पर ही साधते हैं। ऐल्डर ऐब्यूज़ इस आधुनिक विकृत समाज की ही एक विकृत देन है।
दोस्तों, कैसा है हमारा ये माडर्न समाज जो बूढ़े माँ-बाप को एक ठुकरायी हुई चीज़ समझता है ? कैसा होता है वो बेटा जो अपनी माँ को दुःख देकर चैन से सोते वक्त ये भूल जाता है कि उसे चैन की नींद देने के लिए उसकी माँ ने न जाने कितनी रातें जागते गुज़ारी होंगी ? आपने शायद एक कहावत ज़रूर सुनी होगी कि *ग़र बोया बीज बबूल का तो फूल कहाँ से पावे * , ठीक इसी तरह अगर हम आज अपने माता-पिता को ऐल्डर ऐब्यूज़ के कगार पर लाकर खड़ा कर देते हैं तो कल इसके बहुत सारॆ भयंकर दुष्परिणाम हमारॆ सामने आने वाले हैं।
घर में साथ रह रहे माता-पिता घर की नींव होते हैं, अगर किसी भी वजह से ये नींव कमज़ोर हो जाये और इससे अपनी ज़मीन छूटने लगे तो इसके आधार पर बने घर को ढहने में ज़्यादा वक्त नहीं लगता। अपने बच्चों द्वारा प्रताड़ित किये जाने पर या बच्चों के खुद ही घर से निकाले जाने पर, जब माता-पिता घर से दूर हो जाते हैं तो घर दुर्दशा का शिकार होने लगता है। जहाँ घर के छोटे- मोटे झगड़ों को माता-पिता पल-भर में सुलझा दिया करते थे, वहीं उनकी नामौजूदगी में ये समस्याएँ विकराल रूप धारण करने लगती हैं। इसके अलावा बात क रॆं बच्चों की तो वो घर में घटित हो रही हर एक घटना पर नज़र रखते हैं। वो घर में जो होता देखते हैं, वैसा ही सीखते भी हैं। इस कारण अग़र आगे चलकर हम भी ऐल्डर ऐब्यूज़ के शिकार हो जाते हैं तो इसमें चौकने वाली कोई बात नहीं होगी, जैसा व्यवहार हम आज अपने माता- पिता के साथ कर रहे हैं, कल हमारॆ बच्चे भी हमारॆ साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे..... भई, आज हम जैसा बीज बोयेंगे, कल फसल भी तो वैसी ही काटेंगे.....
-निशान्त शर्मा
आगरा