नूतन प्रसाद का व्यंग्य - एक और हरिश्चंद्र

SHARE:

य श और धन पाने की लालसा किसे नहीं रहती,पर मिले तो कैसे!आप ईमानदार हैं. सत्यपथ के राही हैं. बदनाम होंगे ही. कंगाल रहेंगे लेकिन चार सौ बीसी क...

श और धन पाने की लालसा किसे नहीं रहती,पर मिले तो कैसे!आप ईमानदार हैं. सत्यपथ के राही हैं. बदनाम होंगे ही. कंगाल रहेंगे लेकिन चार सौ बीसी करेंगे. दूसरों का गला काटेगें तो यश और धन आपके कदम चूमेंगे.

उस दिन एक मंत्री जिसका नाम हरिश्चंद्र था मेरे पास आये. बोले-भैय्या,मैं जनता में लोकप्रिय होना चाहता हूं. अपनी जय जयकार कराना चाहता हूं. विरोधियों के कारण मेरी इच्छाओं पर तुषाराघात हो जाता है. तुम कोई ऐसा रास्ता निकालो,जिससे लोग मुझ पर श्रद्धा करें. जब तक सूरज चांद रहे तब तक मेरा नाम रहे.

मैंने कहा- आप लोग गरीबों के पैसे से ऐश करते हैं . जनता को धोखा देते हैं तो बदनामी मिलेगी ही. अब तक यह अच्छा हुआ कि बीच चौराहे पर पीटे नहीं गये.

- वह तो ठीक है पर तुम्हारे पास आया हूं तो कुछ तरकीब तो भिड़ाओ.

मैं लेख और जुबान से नेताओं का कच्चा चिठ्ठा खोलता हूं पर वास्तविकता यह है कि कुर्सी से चिपके रहने के उन्हें तरीका बताता हूं. श्रमिकों को क्रांति करने के लिए उकसाता हूं पर आंदोलन के समय कारखाने के मालिक का पक्ष लेता हूं. मैंने कहा- आप लोग कलयुग के राजा हैं. इन्द्र के समान सुरा पान करते हो. कृष्ण की रास रचाते हो. आप हरिश्चंद्र है और राजा हरिश्चंद्र के समान सत्यवादी,ईमानदार कहलाना चाहते हैं तो उनके ही कर्मों का अनुसरण कीजिये न !

उन्होंने पूछा - क्या सच ?

- हां,राम चरित्रवान थे पर रामलीला का राम दुराचारी होकर भी पूजित होता है. यह मूर्खता है लेकिन जब तक दुनिया में मूर्ख है,बुद्धिमानों को अपना स्वार्थ सिद्ध कर ही लेना चाहिये.

मैंने राशि का मिलान कर उसका गुण बता दिया तो वे बड़े प्रसन्न हुए. ज्योतिषी मोहन और महेन्द्र को एक राशि होने के कारण एक ही प्रकार का फल बता देता है पर मोहन को पदोन्नति मिल जाती है और महेन्द्र निलम्बित हो जाता है. कोई जीये या मरे ज्योतिष को क्या मतलब!उसकी तो जेब गर्म होनी चाहिये.

हरिश्चंद्र ने नेक सलाह देने के बदले मुझे पुरस्कार दिलाने का आश्वासन दिया और चले गये. वे एक दिन अन्य मंत्री विश्वामित्र के पास पहुंचे. बोले- मैं अपना विभाग तुम्हें दान करना चाहता हूं.

विश्वामित्र चकराये-बिना मांगे मोती कैसे मिल रहा है. उन्होंने कहा- तुम पगला गये हो क्या!अपना विभाग मुझे सौंप रहे हो. यहां तो मंत्री पद पाने के लिए एक दूसरे की गर्दन काटी जाती है.

- तुम्हें इससे क्या मतलब,लेनी है या नहीं.

- लूंगा क्यों नहीं. दस विभाग मिले फिर भी संभाल लूंगा. छप्पर फाड़ कर आये धन को कोई लतियाता है!एक विभाग ने कार बंगला दिया तो दूसरा एकाध कारखाना खुलवा देगा. तुम्हारी बात स्वीकार है पर तुम छोड़ क्यों रहे हो कारण भी तो ज्ञात हो. क्या साधु बनने जा रहे हो?

हरिश्चंद्र ने बताया-वैसे साधु बनना उत्तम है. क्योंकि उसे बिना मिहनत किये भोजन मिल जाता है. साथ ही उसकी पूजा भी होती है. लेकिन अपनी समस्या यह नहीं. दरअसल मैं एक नाटक खेलना चाहता हूं.

- कैसा नाटक. . . ।

- तुम अच्छी तरह जानते हा कि आज हर कोई नेताओं के ऊपर ऊंगली उठा रहा है. इसलिये इनकी छवि को चमकाने के लिए हरिश्चंद्र का नाटक खेलना चाहता हूं. मुझे विश्वास है कि तुम पात्र बनकर मेरी सहायता करोगे. खेल खत्म होने के बाद मेरा विभाग मुझे वापस करने के लिए नाटकबाजी नहीं करोगे.

और हरिश्चंद्र ने अपना विभाग विश्वामित्र को थमा दिया. इसके बाद वे अपनी पत्नी तारा तथा रोहित को लेकर गली-गली चिल्लाने लगे-है कोई हमें खरीदने वाला. हम नीलाम होने को तैयार है.

शहर के चौराहे पर मजदूर रोज बिकते हैं. पर हल्ला नहीं मचता. लेकिन नेता बिक रहे थे तो भीड़ लग गई. लोगों ने पूछा- आपके पास कोई कमी नहीं है फिर क्यों बिक रहे हैं.

हरिश्चन्द्र ने स्पष्ट किया-भाइयों,जैसे ढोल के अंदर पोल रहता है वैसी ही स्थिति मेरी है. मैंने अपनी सारी पूंजी गरीबों में बांट दी तथा जनता की भलाई के लिए मद से अधिक खर्च कर दिया पर यही उदारता मेरे लिए घातक हो गई. सरकार मुझसे रुपये वसूलना चाहती है. मैं कंगाल तो हो ही गया हूं. रुपये कहां से लाऊं इसलिए मुझे परिवार सहित बिकना पड़ रहा है. कोई बात नहीं ,चाहे मैं नीलाम हो जाऊं पर जनता की सेवा करना छोड़ नहीं सकता.

लोग हरिश्चन्द्र की प्रशंसा करने लगे-इनके समान त्यागी पुरुष कौन होगा. धन्य है हरिश्चन्द्र,इनकी जय हो.

हरिश्चन्द्र ने कहा- मुझ जैसे अभागे का गुणगान क्यों करते हो !मुझे खरीदो साथ में पत्नी और बच्चे को भी . . . ।

लोगों को पता चला कि तारा बिकने वाली है तो अनेक ग्राहक मैदान में कूद पड़े. उनमें मारा मारी हो गई. अपने देश में नारी पूज्य है. अतः बिकती है. उसका सम्मान हम करते हैं इसलिए जिन्दा जला देते हैं और कहते हैं-वह सती हो गई. खिड़की दरवाजा बनाने के लिए लकड़ियों का अभाव है पर नारी दहन के लिए नहीं. इस देश को बारम्बार प्रणाम .

तारा बिक गई साथ ही रोहित भी. रोहित को भीख मंगवाने के लिए खरीद लिया गया होगा. बच्चे सबसे अच्छे और आंखों के तारे होते है. इसलिए उनके हाथ पांव तोड़ कर भीख मंगवाये जाते हैं. आंदोलन करना हो तो बच्चों को सामने कर दो. वे गोलियों के शिकार हो जाये तो कह दो कि वे वीर थे. हंसते- हंसते शहीद हो गये.

अब हरिश्चन्द्र को अपने को बेचना था. उन्हें विरोधियों या उद्योगपतियों के पास बिकना होता तो कब के बिक चुके होते. उन्हें आम आदमी के पास बिक कर खास बनना था. वे डोम के पास पहुंचे. बोले- अबे,तुम्हें मुझे खरीदना पड़ेगा.

डोम सकपकाया. बोला-सरकार आप कैसी बातें कर रहे हैं. राजा को प्रजा कैसे खरीदेगी. गंगुवा को भोज ने खरीदा था क्या ?

- मुझे ज्ञात है कि तेरा बाप भी नहीं खरीद सकता पर सिर्फ हां कह दे.

- जब खरीदना ही नहीं है तो झूठ क्यों बोलूं ?

- बड़ा सत्यवादी है न जो सच ही बोलेगा. सच के सिवा कुछ नहीं बोलेगा. अरे,जब मैं ही दली हूं,प्रपंची हूं. तो तुम्हें झूठ बोलने में क्या हैं. जैसे राजा वैसी प्रजा को भी होनी चाहिए.

डोम ने डरकर हरिश्चन्द्र को खरीद लिया. हरिश्चन्द्र तत्काल मरघट आये और कर वसूलने लगे. वे जलती लाश को देखकर प्रसन्न होते कि जनसंख्या तो कम हो रही है. जीवित मनुष्य नेताओं के कुकर्मों का विरोध करते अतः उनके मरने पर वे विजयगान गाते हैं. लेकिन उनकी कलुषित भावना को कोई पढ़ न पाये इसलिए श्रद्धांजलि अर्पित कर देते हैं. यही नहीं वे कफन और लकड़ियों का भी इंतजाम कर देते हैं ताकि वे पुण्यात्मा कहलायें.

एक आदमी मर गया. उसे जलाने के लिए लकड़ियां नहीं मिल रही थी. तो एक नेता ने प्रबंध कर दिया. यही नहीं वे लाश को भस्म करने के लिए बांस मारने लगे. मैंने उनसे पूछा- आपको पुल का उदघाटन करने जाना था पर आप यहां डंटे हैं,ऐसा क्यों ?

वे मुझ पर चिढ़ गये. बोले-तुम बड़े अधर्मी हो. तुममे मनुष्यता लेशमात्र नहीं है. यदि लाश को छोड़कर चला जाता हूं तो लोग मुझ पर थूकेंगे नहीं.

-अपनों से कभी झूठ बोला जाता है. आप सच सच बताइये.

उन्होंने इधर उधर देखा. जब उन्हें विश्वास हो गया कि हमारी बात सुनने वाला कोई नहीं है तो वे बोले-हकीकत यह है कि मृतक मेरा विरोधी है. मैं उसे छोड़कर इसलिए नहीं जा रहा हूं कि वह पुनः जीवित न हो जाये. यदि वह जिंदा हो गया तो मेरा बखिया उघेड़ देगा. इसलिए उसे राख में बदले बिना यहां से मैं हट नहीं सकता.

इधर हरिश्चन्द्र अपने कर्तव्य का पालन सहजता पूर्वक रहे थे. उधर एक दुर्घटना यह घट गई. रोहित को सांप ने डस लिया. उसे चिकित्सकों के पास दिखाया गया पर वे ठीक न कर सके. चिकित्सकों को अलग से फीस नहीं मिली होगी. चिकित्सक वेतन पाते हैं पर उन्हें फीस न मिले तो रोगी को बिना टिकट स्वर्ग की सैर करा देते हैं. रोहित का प्राण नहीं बचे तो तारा रोती पीटती उसे मरघट लायी. इसके लिए पाठकों से अनुरोध है कि वे तारा के दुख से द्रवित होकर आंसुओं की नदी न बहा डालें क्योंकि यह नाटक है. हकीकत नहीं. नाटक फिल्म और प्रेमपत्र सत्य पर आधारित नहीं होते. फिल्म में गरीब की भूमिका निभाने वाला पात्र वास्तविक जीवन में करोड़पति होता है. मरियल अभिनेता दस-बीस गुण्डों की धुलाई एक साथ कर देता है. साध्वी-पतिव्रता दिखने वाली अभिनेत्री के पांच-पांच प्रेमी होते हैं.

तारा ने जैसे ही रोहित का अग्नि संस्कार करने का विचार किया वैसे ही हरिश्चन्द्र दौड़ कर आये. डपट कर बोले-ऐ स्त्री,तुम कौन हो यह किसका लड़का है.

तारा ने कहा-आप कितने निष्ठुर हैं. अपनी पत्नी और बच्चे को भी भूल गये.

-कैसी पत्नी,कैसा बच्चा. न तो मैं किसी को पहचानता हूं न पारिवारिक सम्बन्धों पर मेरा विश्वास है. कर पटाये बिना मैं दाह संस्कार करने ही न दूंगा.

-भांग तो नहीं छान लिए हैं. लोग परिवार के लिए दुनिया भर की बेईमानी करते हैं पर आप ईमानदारी दिखा रहे हैं. लानत है ऐसे पति पर. . . ।

पत्नी को नाराज देखकर हरिश्चन्द्र को हकीकत पर उतरना पड़ा. बोले- तुम समझती क्यों नहीं. पल-पल में मुंह फूला लेती हो. मैं अपने परिवार के लिए ही तो दंद फंद कर रहा हूं. बस,कुछ क्षण धैर्य रखो फिर इस संसार में हम लोग ही पूज्य होगे.

रोहित जो मरने का ढोंग करते उकता गया था,बोला-पिता जी ड्रामा जल्दी खत्म कीजिये. परीक्षा देने का समय आ गया है. पढ़ाई बिलकुल नहीं हुई है. उत्तीर्ण कैसे होऊंगा !

हरिश्चंद्र ने कहा - तुम उसकी चिंता बिल्कुल मत करो क्योंकि जनरल प्रमोशन दे दिया गया है.

- क्या, सच ?

- हां, आखिर तूने सच बोलने के लिए मजबूर कर ही दिया.

हमारी सरकार बड़ी उदार है. वह अनुत्तीर्ण होने लायक विद्यार्थियों को भी उत्तीर्ण कर देती है. परीक्षा बोर्ड की उपयोगिता समाप्त हो गयी है. इसलिए उसे भंग कर देना चाहिए.

उनका नाटक पुनः प्रारंभ हुआ. तारा ने आंसू गिराते हुए कहा- स्वामी मैं कर पटाने के लिए रुपए कहां से लाऊं ?

हरिश्चन्द्र ने फटकारा - चोरी करो,डांका डालो पर कर तो पटाना ही पड़ेगा. तुम्हारे लिए नियम बदल देता हूं तो दुनियां क्या कहेगी.

- आप मुझ पर नहीं तो कम से कम अपने बच्चे पर तो रहम खाइये. उसका दाहकर्म तो होने दीजिए.

हरिश्चन्द्र आग के शोले बन गये - तुम मुझे सत्यपथ से डिगाने आयी हो. बेईमानी बनाकर मुझ पर कलंक लगाना चाहती हो. हट जाओ सामने से वरना मार डालूंगा.

हरिश्चन्द्र जैसे ही तारा को मारने दौड़े कि विश्वामित्र धड़ाम से कूदे. बोले - बस करना यार,तुम्हारी इच्छा तो पूर्ण हो गई. तुम्हारे यश का डंका सर्वत्र बज रहा है. लोग तुम्हारी जय- जयकार रहे हैं.

हरिश्चन्द्र प्रसन्नता के मारे उछल पड़े. उन्होंने पूछा- क्या सच ?क्या मैं सत्यवादी और ईमानदार मान लिया गया ?

- और नहीं तो क्या ? दूरदर्शन,आकाशवाणी और समाचार पत्रों के द्वारा तुम्हारे यश का प्रचार हो चुका है. अब अपना विभाग सम्हालो और मौज करो .

हरिश्चन्द्र ने अपना विभाग झटका और पूर्ववत मंत्री बन गये.

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: नूतन प्रसाद का व्यंग्य - एक और हरिश्चंद्र
नूतन प्रसाद का व्यंग्य - एक और हरिश्चंद्र
http://lh3.ggpht.com/-3pgSwyQXMMo/UTx_Y6s7WoI/AAAAAAAAUNU/rruUpfBg7Jk/clip_image002%25255B3%25255D.gif?imgmax=800
http://lh3.ggpht.com/-3pgSwyQXMMo/UTx_Y6s7WoI/AAAAAAAAUNU/rruUpfBg7Jk/s72-c/clip_image002%25255B3%25255D.gif?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/07/blog-post_1464.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/07/blog-post_1464.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content