प्रमोद यादव का व्यंग्य - अपने हिस्से का स्वर्ग

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‘अपने हिस्से का स्वर्ग’/प्रमोद यादव प्रतिदिन अखबारों में दो-तीन ऐसे समाचार पढ़ने को मिलता है कि फलां जगह पर फलां नंबर के खम्बे के पास ट्रे...

‘अपने हिस्से का स्वर्ग’/प्रमोद यादव

प्रतिदिन अखबारों में दो-तीन ऐसे समाचार पढ़ने को मिलता है कि फलां जगह पर फलां नंबर के खम्बे के पास ट्रेन से कटकर एक नवयुवती ने आत्महत्या कर ली... आत्महत्या का कारण अज्ञात है.... फलां स्टेशन के पहले आउटर पर नवतान्वा एक्सप्रेस के सामने कूदकर एक युवक ने अपनी इहलीला समाप्त कर ली.. युवक ने नीले रंग की कमीज काले रंग का जींस पहन रखा था..उसके पास से एक ‘सुसाइड़ल नोट’ भी बरामद हुआ है....फलां रेलवे फाटक को क्रास करती मुंबई-हावड़ा एक्सप्रेस ट्रेन के सामने एक कालेज छात्रा के अचानक कूद जाने से हड़कंप.... मामला आत्महत्या का.. ... पुलिस-विवेचना जारी...आदि...आदि ..आदि..

.ट्रेन से कटकर और भी लोग मरते हैं पर वह मौत सर्वथा ‘एक्सीड़ेंट’ की श्रेणी में आते हैं..जैसे कोई-कोई चढ़ते-उतरते सीधे ‘ऊपर’चढ जाते हैं..तो कोई-कोई पटरी पार करते ‘पार’ हो जाते हैं.. हद तो तब हो जाती है जब एकाध-दो युवतियां ‘शौचादि’ से निवृत्त हो दुनिया से ही निवृत्त हो जाती हैं - पटरी क्रास करते.....ताज्जुब की बात है कि क्या शौच के बाद कोई इतना उन्मत्त, मतवाला या गाफिल हो जाता है कि ड़ायनासोर जैसा शोर करता विराट इंजन भी इन्हें न दिखे ?

खैर, मैं उन लोगों के विषय में ज्यादा सोचता हूँ जो ट्रेन के सामने छलांग लगा मौत को गले लगाते हैं...भगवान जाने .किन स्थितियों-परिस्थितियों में वो ये कदम उठाते हैं..क्या मरने के और विकल्पों ( जहरखुरानी ,जल-समाधि फांसी, आदि ) पर इन्हें विश्वास नहीं या वह सब ये आजमाकर असफल हो चुके होते हैं ? कई-कई लोगों का तो ‘हाबी’ की तरह जूनून होता है – आत्महत्या करने का ...पड़ोस की एक औरत, पति के प्रताड़ना के चलते चार बार खुद पर मिटटी-तेल छिड़क आग लगा चुकी है पर हर बार कोई न कोई कमबख्त आकर बुझा देता है – कभी उसका तथाकथित हरामी पति तो कभी अड़ोस-पड़ोस के अति संवेदनशील लोग.. वह इन असफलताओं से निराश कम और शर्मिंदा ज्यादा है..दूसरे विकल्पों पर सोचने का उसे मन ही नहीं क्योंकि जानती है कि उसमे बचने के कोई ‘चांस’ नहीं.

रोज सुबह-शाम तीन किलोमीटर दूर शहर से बाहर वीराने में रेल की पटरी तक टहलने जाता हूँ..पांच-सात मिनट पटरी को निहारता हूँ और लौट आता हूँ एक दिन ‘एड़वेंचर’ करने का मन किया सोचा कि किसी न किसी वजह से तो लोग अक्सर कटते-मरते हैं....बेवजह कोई क्यों नहीं मरता ? मन किया तो ‘ड़ेमो’ के तौर पर धड़ाम से धड़धड़ाते आते एक सुपरफास्ट के सामने कूद गया...पूरे शहर की जैसे बिजली गुल होती है,वैसा ही कुछ हुआ..एकदम अँधेरा छा गया..जब लाईट आई ( होश ) तो देखा ,एक प्राचीनकालीन सिपाहीनुमा व्यक्ति मेरी कलाई पकड़े चलने को उद्यत...मैंने पूछा-‘ कौन हो भाई और कलाई क्यों पकड़े है..छोड़िये मुझे..’

उसने जवाब दिया- ‘ हम यमदूत हैं..आपको ले जाने आये हैं ..यहाँ का कार्यकाल आपका समाप्त हुआ..’

‘ अरे भई..मैंने तो यूँ ही बैठे-ठाले एक ड़ेमो (एड़वेंचर) किया और आप सचमुच आ गए..अभी मेरा वक्त बाकी है महोदय और भी कई ‘एड़वेंचर’ करने हैं आपसे कोई भूल हुई है.....आप वापस जाएँ..’

‘ नहीं वत्स, भूल-चूक केवल मृत्युलोक के प्राणियों से होती है ...हमसे नहीं..आपका यहाँ इतना ही बसेरा था ..अब यमलोक चलें .. ’

‘हम छोड़ चले हैं महफ़िल को’ वाले अंदाज में मैं उदास हो गया..कलाई उसने जोरों से पकड़ रखी थी..छुड़ाना मुश्किल था.. मैंने कहा- ‘ ठीक है ..चलो..पर एक नजर मुझे ‘फ्लेशबेक’ तो निहारने दो कि ‘स्वर्गीय’ होने के बाद नीचे कैसा माहौल है....मेरे जाने से कौन उदास है , कौन खुश ..मेरे टहलकर नहीं लौटने से पड़ोसी कितने चिंतित हैं.. कामवाली बाई की क्या हालत है .... बेचारी बहुत दुखी होगी..दो बर्तन भर मांजने के सात सौ जो मिल जाया करते थे...’

‘वत्स, पहली बात तो यह है कि आप अपनी गलती सुधार लें...आप खुद को ‘स्वर्गीय’ ना कहें..वो तो ऊपर जाने पर तय होगा कि आप स्वर्गीय हैं या नारकीय..’

‘ पर हमारे यहाँ तो सदियों से हरेक परलोकवासी को इसी नाम से पुकारते हैं..इस पर आपको क्यों आपत्ति ?’

‘आपत्तिजनक बात है इसलिए आपत्ति है..सदियों से हम भी देखते आ रहे हैं....नाइंटीनाइन परसेंट आपके ये ‘स्वर्गीय’ नरक की शोभा बढ़ा रहें हैं..एक्के-दुक्के ही स्वर्गलोक के ‘वेटिंगलिस्ट’ में होते हैं..और रही बात फ्लेशबेक देखने की ..तो स्पस्ट बता दूँ. अपनी .तेरहवीं तक आप कुछ भी नहीं देख सकते..’

‘ भला क्यों?’

‘ वो इसलिए कि आपके ‘बेक’ में जाने से हमें ‘आगे’ जाने में काफी कठिनाई होती है..आप पुनः माया-मोह के चक्कर में पड़े कि हमारी समस्याएं बढ़ी ..’

‘ ठीक है..तेरहवीं के बाद ही सही..पर दिखाना जरुर..उस दिन का अखबार भी याद से दिखाना..सबकी खबर ली (पढ़ी) तो अपनी भी लूं ( देखूं).... एक बात बताओ..मैंने तो सुना था कि प्राण हरने यमलोक के अधिपति यमराज आते हैं..मुझे लेने क्यों नहीं आये ?’

‘ वे केवल वी.वी.आई.पी.. केस में जाते हैं ..ऐरे-गैरे नत्थू खरों के केस हम यमदूत ही निपटाते हैं..’

सुनकर मेरा दिमाग खराब हो गया..पर करता क्या ? कलाई उसने पकड़ रखी थी.

‘ अच्छा ये बताओ..कैसे जाना है ?...यमराज के पास तो भैंसा होता है...भगवान जाने वी.वी.आई.पी. को लेकर कैसे जाते हैं...मुझे तो शक है..वे ऊपर तक उन्हें ले भी जाते हैं या नहीं क्योंकि उनकी संख्या(वी.वी.आई.पी की ) हमारे यहाँ आज भी जस का तस है..’

‘ तुम फालतू की बातें अच्छी कर लेते हो....समझ लो ‘न हाथी है न घोड़ा है’ पैदल ही जाना है..’

‘ सजन रे झूठ मत बोलो..’ के अंदाज में मैं चीख पड़ा- ‘ नहीं.....’

किसी भी तरह मैं किसी वी.वी.आई.पी..की तरह रास्ते में नहीं छुटा और यमलोक पहुँच गया.रास्ते में दूत ने बताया कि उनका यम लोक देवलोक के अधीन काम करता है. यमलोक की कार्यप्रणाली से भी अवगत कराया...बताया कि मृत्युलोक में मनुष्य जिस-जिस प्रकार के कर्म किये होते हैं उसके अनुसार उन्हें स्वर्ग या नर्क का आबंटन होता है.. यमपुरी के अधिकारियों के नाम भी बताये- धर्मध्वज,चित्रगुप्त और धर्मराज.. वैसे प्रधान लेखाधिकारी श्री चित्रगुप्त ही माने जाते हैं जो मृत्युलोक के सब प्राणियों के कर्मों का, जन्म-मृत्यु का लेखा-जोखा रखते हैं. स्वर्ग और नरक पर संछिप्त जानकारी दी कि दंड़ या पुरस्कार प्राप्ति के लिए मनुष्य वहाँ जाता है..सत्संग,परोपकार,शुभ कार्य,समाजसेवा,करनेवाले स्वर्ग के हकदार होते है..यहाँ सदा दया, प्रेम,करुणा,सहानुभूति,उदारता की धाराएं बहती हैं..और भोग-विलास,तृष्णा,छोभ,दुःख,भय,चिंता,कष्ट जैसे अशुभ वासनाओं से ग्रसित लोग नरक को प्राप्त होते है..काम, क्रोध,लोभ और मोह को नरक के दरवाजे माने गए हैं.जब दूत इन सब की जानकारी बिना आर.टी.आई. के तहत दे रहा था तो मैंने उसे बीच मे टोका, पूछा- ‘ आपके यहाँ कितने स्वर्ग और कितने नर्क हैं ? ‘

‘स्वर्ग तो एक ही है पर नरक चौरासी लाख है..’ उसने जवाब दिया.

‘ ऐसा क्यूँ ? इतना अंतर तो हमारे यहाँ अमीर-गरीब के बीच भी नहीं..’ मैं चकित था.

‘ क्योंकि मनुष्य पाप अधिक और पुण्य कम करते हैं..’ उसने उत्तर दिया.

‘ तो सीधे-सीधे कहो न कि सबको नरक में धकेलना है..आपने जो मापदंड़ बना रखे हैं कि काम, क्रोध,लोभ और मोह को त्यागने वाले ही ‘स्वर्गवासी’ होंगे तो इससे बेहतर तो हमारा मृत्युलोक है...कुछ भी मत त्यागो.. खाओ, पीयो, मरो और ‘स्वर्गीय’ हो जाओ....’

उसने सफाई दी- ‘ मृत्युलोक में स्वर्गीय होना अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने जैसे होता है... यहाँ की बात ही कुछ और है.. सुन्दर-सुन्दर नाचती-गाती अप्सराएं... शांत-शुद्ध निर्मल वातावरण.. खूबसूरत झरने..पहाड़.. चित्त को प्रसन्न करने वाले सारे सुहावने दृश्य...’

बातें करते-करते कब चित्रगुप्त के पास पहुंचे ,पता ही न चला..दुआ-सलाम के बाद यमदूत ने जब खाता खोलने का आग्रह करते मुझे चित्रगुप्त के सामने पेश किया तो एक ही झटके में मैंने कह दिया- ‘ ये सब नाटक की जरुरत नहीं महोदय .. वैसे भी मुझे ‘स्वर्ग’ जाने का कोई शौक नहीं....मैंने अपने हिस्से का स्वर्ग भोग लिया है...मैंने शादी ही नहीं की.. .सुन्दर-सुन्दर अप्सराओं का धौंस किसी और को दीजियेगा..बालीवुड़ की हिरोइनों को शायद आपने कभी देखा ही नहीं....’मुन्नी’ के एक ही लटके-झटके में आप चटक जायेंगे तड़क जायेंगे ....बताइये..कौन से नरक में जाना है मुझे ? महा रौरव में ,तामिस में, अंध तामिस में या कुम्भीपाक में... नरक तो आपने चौरासी लाख बना डाले हैं..हरेक पाप के लिए एक नरक.. पहले मालूम होता तो सारे पाप करके आता..इतना सब करते-करते एकाध हजार साल तो लग ही जाता...आपसे एक आग्रह है..स्वीकार करें तो बोलूं ?’

‘ अवश्य..’ चित्रगुप्त ने कहा.

‘ मेरी माने तो कहूँ....इतने सारे नरक मेंटेन करने की कोई जरुरत ही नहीं ..आप दो-तीन दिनों की छुट्टी लेकर मृत्युलोक जाएँ और वहाँ के किसी भी एक थाने, कचहरी, या सरकारी अस्पताल का दौरा कर आये..विश्वास दिलाता हूँ...हमारे ये तीनों स्थान आपके चौरासी-चौरासी लाख नरकों पर भारी पड़ेंगे...’

मेरी बातों पर अमल कर वे निकल तो गए पर दो-तीन महीने हो गए अब तक नहीं लौटे न मालूम किस नरक में वे ‘फ्राई ’ हो रहे हैं.. यमलोक का उनका सारा काम इन दिनों मैं ही देख रहा हूँ.. पुराने सारे खाते मैंने फिकवा दिए और सारे आगुन्तकों को(मृतकों को) सीधे स्वर्ग भेज रहा हूँ..(नरक तो बेचारे भोगकर ही आते हैं) .देवलोक में हड़कंप मचा है..सब एकजुट हो मुझे बर्खाश्त करने आमादा हैं..पर मैं भी ‘यू. पी.ए..’सरकार की तरह बेशर्मी से खूंटा गाड़े बैठा हूँ..देखता हूँ कौन माई का लाल मुझे हटाता है...’केग’ की तरह देवलोक की पोल खोल कर रख दूँगा..

.तभी कुछ खुलने की आवाज आई और मेरी नींद खुल गयी.. सामने दरवाजा खुला था ..दूधवाला दूध लिए यूँ मुस्कुराता खड़ा था जैसे विश्व बैंक किसी गरीब देश को मदद देने खड़ा हो.. मेरे स्वर्गीय सपने पर उसने दूध फेर दिया..भगवान जाने सपनों में ‘गतांक से आगे’ का पार्ट होता भी है या नहीं....अभी तक तो स्वर्ग बाँट रहा था..अब मेरे नरक जाने का ( आफिस जाने का ) समय हो रहा है...खुदा हाफिज..फिर मिलेंगे..

xxxxxxxxxxxxxxx

प्रमोद यादव

दुर्ग,छत्तीसगढ़

मोबाईल-09993039475

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COMMENTS

BLOGGER: 12
  1. वाह.....
    मन प्रफुल्लित हुआ
    सच में प्रमोद भैय्या दिन भर की थकान उतर गई
    सादर
    यशोदा

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    उत्तर

    1. यशोदा बहनजी,
      मेरी हलकी-फुलकी रचना से आपका मन हल्का और प्रफुल्लित हुआ..मेरा अहोभाग्य...धन्यवाद...प्रमोद यादव

      हटाएं
  2. akhilesh chandra Srivastava7:25 pm

    Badhiy a likha hai badhaiee

    जवाब देंहटाएं

  3. यशोदाजी, 'नयी-पुरानी-हलचल' में लिंक करने का शुक्रिया..कल जरुर यह लिंक देखूंगा..
    आपका -प्रमोद यादव

    जवाब देंहटाएं
  4. अति सुंदर और यथार्थपरक.............

    जवाब देंहटाएं
  5. अति सुंदर और यथार्थपरक

    जवाब देंहटाएं

  6. श्री सुशील,अखिलेश,आशीष जी...आप सबका आभारी हूँ कि रचना आपने पसंद की ..आगे भी प्रयास रहेगा कि आपकी थकान दूर कर सकूँ..प्रमोद यादव

    जवाब देंहटाएं
  7. vaah pramod yaadav ji aapane to chauke chhakke lagaagaakar kahiyon ki chhutee kar dee ! jindagee ki aadhee peeda to aapake byang ke sheershak dekhkar khatam ho jaatee hai baakee padhane par ! bahut sundar , bahut saaree badhaaee ! harendra singh rawat

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर

    1. धन्यवाद रावतजी, बैठे-ठाले यूँ ही कुछ लिख लेता हूँ..आपका आभारी हूँ ..प्रमोद यादव

      हटाएं

  8. श्री रावतजी, आपकी बधाइयों का बहुत-बहुत शुक्रिया...प्रमोद यादव

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  9. बेनामी3:39 pm

    Pramod ji aap k ye व्यंग्य bhari baate kafi achhe lagti hai mai lagbhag roz 1-2 apne frnds ko aap ki व्यंग्य bhari kahaniya sonata hu.प्याज नमक वार्ता wali pada maja aa gaya... bas aap aise hi likhate rahna..

    vikas srivastava
    vikas.1104@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: प्रमोद यादव का व्यंग्य - अपने हिस्से का स्वर्ग
प्रमोद यादव का व्यंग्य - अपने हिस्से का स्वर्ग
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