असगर वजाहत की लघुकथा श्रृंखला–श्री टी.पी.देव की कहानियाँ

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श्री टी.पी. देव की कहानियां पहली कहानी श्री टी.पी देव एक शरीफ शहरी थे। अपने काम से काम रखते थे। न किसी का लेना एक, न देना दो। रोज सुबह पौ...

श्री टी.पी. देव की कहानियां

पहली कहानी

श्री टी.पी देव एक शरीफ शहरी थे। अपने काम से काम रखते थे। न किसी का लेना एक, न देना दो। रोज सुबह पौने आठ बजे ऑफिस के लिए निकलते थे और शाम सवा छः बजे घर पहुंचते थे। चाय पीते थे। टी.वी. देखते थे। खाना खाते थे। सो जाते थे।

अचानक पता नहीं कैसे, एक दिन उन्होंने सोचा कि पिछली बार वे कब हंसे थे उन्हें याद नहीं आया। सोचते-सोचते थक गए और पता न चला, तो उन्होंने अपनी डायरियां, कागज-पत्र उलट-पुलट कर देखे, पर कहीं यह दर्ज न था कि पिछली बार कब हंसे थे।

फिर वे डाक्टर के पास गए। उन्होंने बताया कि उन्हें लगता है कि वे शायद कभी हंसे ही नहीं हैं। कहीं यह कोई बीमारी तो नहीं है

डॉक्टर बोला, नहीं, ये बीमार नहीं है, क्योंकि बीमारियों की किताब में इसका जिक्र नहीं है।’’ परंतु श्री टी.पी. देव संतुष्ट नहीं हुए। वे दासियों डॉक्टरों, हकीमों वैद्यों से मिले। सबसे यही सवाल पूछा। सबने वही जवाब दिया श्री टी.पी, देव की परेशानी बढ़ती चली गईं।

एक दिन श्री टी.पी. देव फ्लैट में आने के लिए सीढियां चढ़ रहे थे। तो उन्होंने एक आवारा से लड़के को हंसते हुए देखा। वे आश्चर्य से देखते के देखते रह गए। फिर उससे पूछा, ‘‘बताओ, तुम कैसे हंसते हो’

यह पूछने पर लड़का और जोर से हंसा।

‘‘नहीं, नहीं। मुझे बताओ।’’ वे बोले।

लड़का और जोर से हंसने लगा।

बताओ...बताओ...श्री टी.पी. देव ने उसका हाथ पकड़ लिया।

लड़के ने कहा, ‘‘घर जाकर आईना देखना।’’

श्री टी.पी. देव ने फ्लैट आकर सबसे पहले शीशा देखा।

आईने में दासियों साल से न हंसा एक गुरु-गंभीर चेहरा देखकर उन्हें सहसा हंसी आ गई।

श्री टी.पी. देव की कहानियां

दूसरी कहानी

श्री टी.पी. देव 15 साल से राज टी.वी. देखते आ रहे थे। एक शाम जब वे फ्लैट लौटे, तो उन्होंने सोचा-आज वे टी.वी.नहीं देखेंगे। वे टी.वी. के सामने बैठ गए, मगर उसे ऑन नहीं किया।

अचानक टी.वी. अपने-आप चल पड़ा। वे उछल पड़े और जल्दी से उठ कर टी.वी. बंद करना चाहा, मगर वह बंद नहीं हुआ, बल्कि आवाज तेज हो गई। वे घबरा कर दूसरे कमरे में चले गए। लेकिन उनके पीछे-पीछे टी.वी. भी वहां आ गया।

अब पूरे घर में श्री टी.पी. देव आगे-आगे और टी.वी पीछे-पीछे। यह खेल शुरू हो गया।

श्री टी.पी. देव ने आखिरकार बाथरूम में जल्दी से घुसकर दरवाजा बंद कर लिया, मगर जैसे ही मुड़े, उन्होंने देखा कि टी.वी. वहां पहले से मौजूद था। वे भागे पसीने से तर-बतर सोफे पर निढ़ाल पड़ गए। टी.वी. फिर उनके सामने था।

तब टी.वी. बंद हो गया, लेकिन फिर श्री टी.पी. देव ने उठकर टी.वी. ऑन कर दिया।

श्री टी.पी. देव की कहानियां

तीसरी कहानी

एक शाम श्री टी.पी. देव पार्क में कुछ देर आराम करने गए। क्या अच्छा अवसर मिला था कि एक साथ दो खाली बेंचें पड़ी थीं। जल्दी से टी.पी. देव एक पर बैठ गए। फिर उठकर दूसरी पर बैठ गए। दो ही मिनट बाद फिर पहली पर आ गए। फिर एक पर बैठ गए, दूसरी पर पैर रख लिए। फिर दूसरी पर बैठकर पहली पर हाथ रख लिये। कुछ क्षण बाद दोनों बेंचों को मिलाया और उन पर लेट गए। लेटे अभी कुछ सेकेण्ड भी नहीं हुए कि वे दोनों बेंचों पर खड़े हो गए। फिर कूद पड़े दोनों बेंचों को इधर-उधर किया। एक पर चढ़कर दूसरे पर जस्त लगाई।

इतनी देर में सूरज डूब चुका था। श्री टी.पी.देव खुश फ्लैट लौट आए।

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चौथी कहानी

एक दिन श्री टी.पी देव के टेलीफोन की घंटी बजी। उन्होंने फोन उठाया। उधर से आवाज आई-‘‘मैं तुम्हारा पिता बोल रहा हूं।’’

श्री टी.पी. देव बोले, ‘‘क्षमा करें, गलत नंबर मिल गया है।’’ उन्होंने फोन बंद कर दिया।

कुछ देर बाद फिर घंटी बजी। हैलो,’’-श्री टी.पी. देव बोले।

‘‘मैं तुम्हारी पत्नी बोल रही हूं।’’

‘‘रांग नंबर,’’ श्री टी.पी.देव ने फिर फोन बंद कर दिया।

फिर घंटी बजी। उधर से आवाज आई-‘‘मैं आपका बेटा बोल रहा हूं।’’

‘‘सॉरी, रॉग नंबर।’’ कहकर श्री टी.पी. देव ने रिसीवर रख दिया।

घंटी फिर बजी-‘‘हैलो।’’ उन्होंने कहा।

‘‘कैसे हो’ उधर से आवाज आई।

‘‘आप कौन बोल रहे हैं’ उन्होंने पूछा।

‘‘श्री टी.पी देव बोल रहा हूं।’’ उधर से आवाज आई।

‘‘ वेरी सॉरी, रॉग नंबर। अगली बार ये नंबर डॉयल ने करे। समझे आप’

श्री टी.पी. देव की कहानियां

पांचवीं कहानी

श्री टी.पी.देव छुट्टियां मनाने समुद्र-तट गए। ‘बीच’ पर एक शानदार होटल में ठहरे। सुबह उठे, नहाए-धोए, सूट पहना, टाई लगाई, रेस्टोरेंट में जाकर नाश्ता किया। होटल से बाहर आए और सामने खड़ी टैक्सी का दरवाजा खोल कर बैठते हुए कहा, ‘‘इंटरनेशनल फॉयनेन्स एण्ड इन्वेस्मेण्ट कॉरपोरेशन के आफिस।’’

टैक्सी चल दी। श्री टी.पी. देव ने अखबार पढ़ना शुरू कर दिया।

ठीक सत्रह मिनट बाइस सेकेण्ड बाद टैक्सी उनके आफिस के सामने खड़ी थी।

श्री टी.पी. देव की कहानियां

छठी कहानी

श्री टी.पी देव ने एक विज्ञापन देखा, ‘यह कार खरीद कर आप अपने पड़ोसी के मन में ईर्ष्या पैदा कर सकते हैं।’ बात श्री टी.पी. देव को जंच गई वे गए और कार खरीद लाए।

मगर उन्हें मालूम नहीं था कि उनके पड़ोसी के पास कौन-सी कार है। उन्हें तो यह तक पता न था कि उनका पड़ोसी कौन है और कहां रहता है, लेकिन उन्हें यह मालूम था कि ईर्ष्या क्या होती है

श्री टी.पी. देव की कहानियां

सातवीं कहानी

श्री टी.पी. देव भिखारियों को पैसा देने के सख्त खिलाफ थे।

एक दिन एक भिखारी ने उनसे पैसे मांगे। श्री टी.पी.देव ने इनकार कर दिया।

‘‘तुम क्यों इनकार कर रहे हो’ भिखारी ने पूछा।

‘‘तुम भिखारी हो और मैं भिखारियों को पैसा देने के सख्त खिलाफ हूं’’वे बोले और आगे बढ़ने लगे।

वह बोला, ‘‘तुम मुझे भिखारी समझ रहे हो मैं एक ऐसी कंपनी का मैनिजिंग डायरेक्टर और चैयरमैन हूं, जिसमें लाखों भिखारी काम करते हैं। संसार के सभी धनवान देशों में मेरे ‘दूतावास’ हैं’। हर साल इंटनेशनल मॉनिटरी फाण्ड और विश्व बैंक मुझे करोड़ों डॉलर देते हैं। समझे तुम’ उसने श्री टी.पी.देव को डांटते हुए कहा।

श्री टी.पी.देव घबरा गए और अपना पर्स उसे पकड़ दिया।

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आठवीं कहानी

श्री टी.पी. देव हर जीवित चीज से डरते थे। यही कारण था कि उन्होंने कभी कुत्ता-बिल्ली तक नहीं पाला था। उनका पक्का विश्वास था कि जिंदा चीजों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। उनकी वफादारी पर हमेशा शक किया जाना चाहिए।

एक दिन श्री टी.पी. देव आराम से लेटे थे कि अचानक उनका हाथ अपने सीने पर बाईं तरफ चला गया और उन्हें धड़कते हुए दिल की आवाज सुनाई दी। वे घबरा कर उठ बैठे। मतलब यह था कि वे जीवित चीज हैं।

वे सीधे अस्पताल गए। दुःखद रिपोर्ट यह आई कि वे जिंदा है। श्री.टी.पी देव अपने-आप को कुत्ता और बिल्ली से भी गया-गुजरा मानने लगे।

वे जीवन भर-अपने जीवित अंश से डरते रहे। हां, मरने के बाद उन्हें चैन आया।

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नौवीं कहानी

एक दिन एक अजूबा हुआ। श्री टी.पी. देव को एक किताब मिली। उनकी समझ में नहीं आया कि उसका क्या करें। इससे पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था। अब ऐसा क्यों हुआ। जैसे-जैसे वे सोचते गए। वैसे-वैसे उलझते गए।

खैर मिलने को तो किताब मिल गई है, पर अब उसका क्या किया जाए। सोचा-किताब ले जाकर अपने किसी दुश्मन के घर के सामने रख आएंगे। फिर ध्यान आया कि उनका तो कोई दुश्मन ही नहीं। सोचा कि किसी दोस्त को ही पकड़ देंगे, मगर वही समस्या थी। उनका कोई दोस्त भी नहीं था। सोचा कि ठीक है, जाकर कूड़ेदान में फेंक देंगे, मगर ध्यान आया। अगर किसी ने देख लिया,तो

आखिर तंग आकर उन्होंने पुलिस को फोन किया।

‘‘पुलिस सहायता कक्ष इमरजेंसी सेवा’

‘‘कहिए।’’

‘‘मैं प्लैट नंबर 12, बिल्ंिडग नंबर13, सडक नंगर 14, इलाका नंबर 15, से व्यक्ति नंबर 16, बोल रहा हूं। मुझे एक किताब मिल...’’

‘‘क्या कहा, किताब उधर से घबराई हुई आवाज आई, ‘‘कहां कब कैसे किस तरह क्यों’

कुछ देर बाद पुलिस का अवस्फोटक पदार्थो और बमों आदि को ‘फ्यूज’ करने वाला विशेष दस्ता आ गया। इमारत खाली करा ली गई। सतर्कता से किताब ‘फ्यूज’ कर दी गई।

श्री टी.पी. देव की कहानियां

दसवीं कहानी

एक दिन श्री टी.पी. देव रिटायर हो गए, मगर अगले दिन उठ कर आफिस चले गए। वहां उनकी जगह जो नया आदमी लगा था, वह श्री टी.पी. देव को लेकर साहब के कमरे में गया।

साहब ने कहा, ‘‘श्री टी.पी.देव, आप रिटायर हो गए हैं। अब आप आराम कीजिए।’’

श्री टी.पी. देव बोले ‘‘सर ‘आराम’ ये आप किस फाइल की बात कर रहे हैं’ वे आश्चर्य से साहब की तरफ देखने लगे।

साहब समझ गए कि श्री टी.पी. देव ‘आराम’ का मतलब नहीं समझे। उन्हें समझाने के लिए साहब ने अपना सिर मेज पर रख दिया और आंखें बंद कर लीं।

श्री टी.पी. देव आश्चर्य और अचंभे से साहब को देखने लगे।

साहब ने सिर नहीं उठाया। साहब की आंखें नहीं खुलीं।

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असगर वजाहत की लघुकथा श्रृंखला–श्री टी.पी.देव की कहानियाँ
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