वीरेन्‍द्र ‘सरल‘ का व्यंग्य - बिजली माता की महिमा

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बहुत दिनों के बाद मेरा ननिहाल जाना हुआ। घर के प्रवेश द्वार के पास ही नानी बैठकर चावल में से कंकड़ चुन रही थी। मैंने नानी जी को प्रणाम किया।...

बहुत दिनों के बाद मेरा ननिहाल जाना हुआ। घर के प्रवेश द्वार के पास ही नानी बैठकर चावल में से कंकड़ चुन रही थी। मैंने नानी जी को प्रणाम किया। उन्‍होंने मुझे आशीर्वाद देते हुये कहा-‘‘ सदा खुश रहो बेटा! तुम्‍हारे घर के सभी बल्‍ब जगमग-जगमग जले। कोई भी बल्‍ब फ्‍यूज ना हो। तुम्‍हारे घर की बिजली कभी गुल मत हो और बिजली बिल बहुत कम आय। आशीर्वाद सुनकर मेरा दिमाग घूम गया। मैं सोचने लगा, नानी ये क्‍या अंट-शंट कहे जा रही है। फिर विचार आया कि बुजुर्ग लोग कहते हैं ‘साठ बुद्धि नाश‘। नानी भी अब बुढ़ू हो गई है। शायद उम्र का प्रभाव है तभी ऐसा कह रही है।

मैं सीधे घर के भीतर चला गया मगर वहाँ सन्‍नाटा था। घर के पीछे वाली गली से शोर-गुल सुनाई दे रहा था। मैं वहीं पहुँच गया। पता नहीं मामी अपनी पड़ोसन से किस बात पर झगड़ती हुई कह रही थी कि तेरे घर के सभी बल्‍ब जल्‍दी-जल्‍दी फ्‍यूज हो जाये। बिजली हमेशा के लिये गुल हो जाये । भारी-भरकम बिजली बिल आ जाये। ये सब सुनकर मैं दंग रह गया। बात कुछ समझ में नहीं आयी। तभी मामी जी की नजर मुझ पर पड़ी। वह अपनी पड़ोसन को घूर कर ऐसे देखने लगी जैसे कह रही हो कि मिलते हैं ब्रेक के बाद। फिर मुझसे मुखातिब होकर बोली-‘‘अरे! भांजे, आप कब आये? चलो घर के भीतर बैठो ,बहुत तेज गर्मी है कहीं आपको लू न लग जाये।‘‘

मैं घर के भीतर आ गया। मेरे पीछे-पीछे मामी भी आ गई। मैं सोफे पर आराम से बैठ गया। मामी एक गिलास ठंडा पानी लाकर मेरे सामने रख गई और मामा जी को आवाज देने लगी , कहाँ हो? भांजा आया है। कमरे के भीतर से मामा जी बाहर आये। शायद वे आराम कर रहे थे तभी अनमने लग रहे थे। मैंने मामाजी का अभिवादन किया। मामाजी मेरे पास सोफे पर बैठते हुये कहने लगे- ‘‘और भांजे क्‍या हाल-चाल है? सभी बल्‍ब ठीक से जल रहे है न ? बल्‍ब ज्‍यादा फ्‍यूज तो नहीं होते? बिजली बिल तो कम आ रही होगी? बिजली ज्‍यादा गुल तो नहीं होती?‘‘

अब मुझसे रहा नहीं गया। दिमाग गरम हो गया। मैंने गुस्‍से में कहा-‘‘ कहीं आप लोग पागल तो नहीं हो गये हैं? जिसे देखो वही बिजली और बिजली बिल की बात कर रहें हैं। नानी आशीर्वाद भी देती है तो बिजली की। मामी पड़ोसन को बद्‌दुआ भी देती है तो बिजली की। आप कुशलक्षेम भी पूछते हैं तो बस बिजली की। ये क्‍या चक्‍कर है मामाजी?

मामाजी कुछ कहते उससे पहले ही मामी कहने लगी-‘‘ अब आपको क्‍या बतायें भांजे, इस बिजली के चक्‍कर से आपके मामा जी बहुत मुश्‍किल से बचें हैं। मैंने मामा जी की ओर देखकर कहा-‘‘ मैनें तो मामा जी को पहले ही समझाया था कि आपकी पड़ोसन बिजली की चाल-चलन मुझे ठीक नहीं लगते, उससे बचकर रहियेगा मगर मेरी बातें यहाँ सुनता कौन है? मामी ने मामा की ओर घूर कर देखा तो मामाजी सकपका गये। मैनें बात सम्‍हालते हुये आगे कहा- ‘‘क्‍या हुआ था, कहीं मामा जी बिजली के करंट में चिपक तो नहीं गये थे?‘‘ मामी बोली-‘‘नहीं ऐसी बात नहीं थी। ये बिजली में नहीं चिपके थे बल्‍कि बिजली विभाग वाले इनके दिमाग पर चिपक गये थे। एक माह का पचास हजार बिजली बिल थमा गये थे जिसे देखकर इन्‍हें अटैक आ गया था। ये तो शुक्र है भगवान का जो हम इन्‍हें समय रहते अस्‍पताल पहुँचाने में सफल हो गये और इनकी जान बच गई। ये अभी भी बिजली बिल के नाम सुनकर ऐसे डर जाते हैं जैसे मंहगाई के नाम पर जनता और चुनाव के नाम पर सत्ताधारी नेता।‘‘

मैंने शिकायती लहजे में कहा-‘‘इतनी बड़ी घटना घट गई और आप लोगों ने हमें खबर तक नहीं की। चलो कोई बात नहीं। मामा जी की जान तो बच गई। वैसे भारी बिजली बिल देखकर इतना घबराने की बात नहीं थी। शायद धोखे में यह बिल आ गया रहा होगा। इसे बिजली ऑफिस में ले जाकर संबंधित अधिकारी को दिखा देते तो बिल कम हो जाता और मामा जी को अटैक भी नहीं आता।‘‘

बिजली ऑफिस के नाम सुनते ही मामाजी की तबियत फिर बिगड़ने लगी। उनका ब्‍लड प्रेशर बढ़ गया। वे डर के मारे काँपने लगे। मामी कुछ और कहती उससे पहले ही वे हाँफते हुये कहने लगे-‘‘ मेरे सामने बिजली ऑफिस का नाम भी मत लो भांजे! बिजली से ज्‍यादा करंट तो विभाग वाले ही मारते है। सच कहूं तो बिजली बिल देखकर मुझे अटैक नहीं आया था बल्‍कि बिजली विभाग वालों की बातें सुनकर आया था। मैं उस बिल को लेकर संबंधित अधिकारी के पास गया और उनसे पूछा था कि साहब! मेरे घर में चार-पाँच बल्‍ब ही जलते हैं। उसका यह भारी-भरकम बिल कैसे आ गया?‘‘ उन्‍होनें अपनी आँखें बंद करके ध्‍यानमग्‍न होकर कुछ सोचा फिर बोला- ‘‘आपके पूर्वज अपने समय का बिल भी पटाकर नहीं मरे हैं। उन सभी बिलों को आपके बिल में जोड़ा गया है इसलिये यह इतना भारी आया है।‘‘ उनकी बातें सुनकर मैंने कहा-‘‘मगर हमारे पूर्वजों के जमाने में तो बिजली होती ही नहीं थी तो फिर बिल का तो सवाल ही नहीं उठता। वे तो दीया-कंडिल और मोमबत्ती में सारी जिन्‍दगी गुजर-बसर करके स्‍वर्ग सिधार गये है। तो फिर?‘‘ मेरी बातें सुनकर साहब फिर ध्‍यानमग्‍न हो गये और कुछ देर बाद कहने लगे- ‘‘मैं यहाँ से स्‍पष्‍ट देख रहा हूँ कि आपके पूर्वज अभी भी स्‍वर्ग में मनमाने ढंग से बिजली का उपयोग कर रहे हैं। दिन-रात बल्‍ब जला रहे हैं। कूलर-पंखा और एयरकंडीशनर का उपयोग कर रहे है। वे स्‍वर्ग में जो बिजली खपत कर रहे हैं उनका बिल आपके खाते में जोड़ा गया है, समझ गये? अब आप मेरा ज्‍यादा दिमाग मत खाइये, सीधे बिजली बिल पटाइये और नहीं तो अपने घर का बिजली कनेक्‍शन कटाइये। यदि आपको मेरी बातों पर विश्‍वास नहीं है तो मैं अपने कर्मचारियों को आपके साथ भेज रहा हूँ। वे जाकर आपके घर की खुदाई करके देखेंगे। यदि खुदाई के दौरान बल्‍ब के काँच के टुकड़े, सड़े-गले वायर और टूटे-फूटे बटन होल्‍डर य प्‍लग निकल जाये तो समझ लेना मेरी बातें सही है।‘‘

मैनें सोचा , मैं तो अभी प्‍लाट खरीद कर मकान बनवाया हूँ, वहाँ से इस तरह की साम्रगी कैसे निकल सकती है। मैं जोश में आकर कह गया कि अभी भेज दीजिये, हो जाय दूध का दूध और पानी का पानी। मेरी बातों से साहब को भी ताव आ गया। उन्‍होंने तुरंत कुछ कर्मचारियों को मेरे साथ भेज दिया। कर्मचारी यहाँ आकर पुरातत्‍व विभाग की तरह खुदाई करने लगे। बस थोड़ी-सी खुदाई हुई थी और सचमुच कुछ काँच के टुकड़े और सड़े-गले वायर निकल आये। मैं अवाक रह गया। पहले तो मुझे विश्‍वास ही नहीं हुआ पर बाद में मैं सोचने लगा, सचमुच ये बिजली वाले साहब तो त्रिकालदर्शी हैं। इनके पास जरूर महाभारत के संजय के समान दिब्‍यदृष्‍टि है या हो सकता है संजय के ही आधुनिक संस्‍करण हों। विभागीय कर्मचारी उन सामानों को जप्‍त करके पंचनामा करा कर ले गये। बाद में मुझे ध्‍यान आया कि मकान बनने से पहले यहाँ पर कूड़ा-करकट फेंकने का गड्ढा था। लोग यहाँ पर कचड़ा फेंकते थे । जिसे पटवा कर मैंनें मकान बनवाया है। शायद ये सामान उसे कचड़े में से हो। मैं तुरंत दौड़ते हुये ऑफिस गया और इन बातों को बताकर साहब को समझाने की कोशिश की पर साहब मानने को तैयार नहीं हुये और मुझे पचास हजार का बिल पटाना ही पड़ा। बिजली विभाग का यह सदमा मैं बर्दाश्‍त नहीं कर सका और मुझे अटैक आ गया। जिन्‍दगी के दिन अभी शेष है इसलिये बच गया।‘‘ इतना बताकर मामाजी फूट-फूटकर रोने लगे। थोड़ी देर बाद उन्‍हें चक्‍कर आ गया और वे बेहोश हो गये।

मामी ने कहा -‘‘भांजे अपने मामाजी को उठाकर तुरंत पूजा कमरे में ले चलो। देवी की पूजा करने के बाद ही इन्‍हें होश आ पायेगा।‘‘ मामी और मैं दोनों ने मिलकर मामा जी को उठाकर पूजा कमरे में ले आये। पूजा कमरे का नजारा देखकर मेरा दिमाग चकरा गया। मैं मुश्‍किल से बेहोश-बेहोश होते बचा।

पूजा कमरे के दीवारों पर जगह-जगह ‘श्री बिजली माता सदा सहाय‘ और ‘श्री बिजली माता का भण्‍डार सदा भरपूर रहे‘ लिखा हुआ था। लकड़ी के एक पीढ़े पर कलश स्‍थापित किया गया था। कलश के ऊपर होल्‍डर फिट करके उसमें जीरो वाट का बल्‍ब लगाया गया था। जो जल रहा था। उसी की पूजा की गई थी। पास में खुशबूदार अगरबत्ती जलायी गई थी। अक्षत-गुलाल और फूल चढ़ाये गये थे और नारियल भी तोड़ा गया था। पुराने बिजली बिलों के बंडल को लाल कपड़े से लपेट कर रखा गया था।

मैं कई बार कमरे के चारों तरफ घूम-घूमकर स्थिति का जायजा लिया , विचार किया पर कुछ समझ न पाया। अन्‍ततः मैंने मामी से पूछा-‘‘मामी जी! आप लोग ये कौन सी देवी की पूजा करते हैं, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ।‘‘

मामी ने मुझे समझाते हुये कहा-ये बिजली देवी है भांजे। भारी-भरकम बिजली बिल के प्रकोप से बचने के लिये हमें बिजली देवी की पूजा करनी पड़ती है। पुराने बिजली बिलों का हम पाठ करते हैं इसे हम बिजली चालीसा कहते हैं। बिजली विभाग के एक कर्मचारी ने ही बिजली माता के प्रकोप से बचने का यह उपाय बतलाया है। महीने भर हम बिजली माता पर जो चढ़ोत्तरी चढ़ाते हैं उसे वही कर्मचारी आकर ग्रहण करता है। उन्‍होंने हमें बिजली माता की आरती भी लिखकर दी है। इसे पढ़कर देखोगे तो आप खुद भी बिजली माता के भक्‍त बन जाओगे।

मामी की बातें सुनकर मुझे बड़ा आश्‍चर्य हुआ। बिजली को भी देवी के रूप में पूजा जाता है यह मैं पहली बार ही देख-सुन रहा था। मैंने आरती पढ़कर देखा, जिसकी अंतिम पंक्‍ति पर लिखा हुआ था-

‘‘श्री बिजली जी की आरती जो कोई नर-नारी गावै।

दिनभर बिजली पावै, बिल बिल्‍कुल कम आवै।‘‘

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वीरेन्‍द्र ‘सरल‘

बोड़रा( मगरलोड़)

पोष्‍ट-भोथीडीह

व्‍हाया-मगरलोड़

जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)

पिन-493662

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव8:56 am

    श्री वीरेन्द्र सरल जी का व्यंग अच्छा लगा मनुष्य की आदत होती है जिसकी कृपा चाहिये
    और जो परेशां करती है या जिससे डर लगता है
    उन सभी की पूजा करने लगता है सो बोलो
    बिजली मैय्या की जय वोह तो आवें पर भारी भरकम बिल न लावें

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रचनाकार: वीरेन्‍द्र ‘सरल‘ का व्यंग्य - बिजली माता की महिमा
वीरेन्‍द्र ‘सरल‘ का व्यंग्य - बिजली माता की महिमा
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