पुस्तक समीक्षा - पहली बार

SHARE:

संवेदनाओं की तलाश में आरसी चौहान वैसे आज-कल अपने चहेते कवि, लेखक, मित्रों की पुस्तक समीक्षाएं लिखने का प्रचलन बहुत जोरों पर है। क्या ऐसे मे...

संवेदनाओं की तलाश में

आरसी चौहान

image

वैसे आज-कल अपने चहेते कवि, लेखक, मित्रों की पुस्तक समीक्षाएं लिखने का प्रचलन बहुत जोरों पर है। क्या ऐसे में सही मूल्यांकन सम्भव हो पायेगा?राष्ट्रीय अखबार से जुड़े एक वरिष्ठ लेखक से मैंने ”पहली बार“ नामक कविता संग्रह की समीक्षा लिखकर उक्त अखबार में छापने की बात की तो एक टूक जवाब आया। चौहान साहब! समीक्षाएं हम अपने ही लोगों से लिखवाते हैं। दूसरे पर अब विश्वास नहीं रहा, क्योंकि कुछ लोग अपने दोस्त-मित्रों की पुस्तकों की ही समीक्षाएं लिखते हैं। जिससे वह समीक्षा कम, प्रशंसा ज्यादा हो जाती है। जिससे साहित्य में गिरावट आती है। अंशतः उनकी बात कुछ सच हो सकती है, लेकिन विश्वास भी कोई चीज होती है, उक्त महोदय को मानना पड़ेगा।

अस्तु युवा कवि संतोष कुमार चतुर्वेदी की ”पहली बार“ कविता संग्रह पहली बार में ही ध्यानाकर्षित करती है। अपने शिल्प के गठन और पूर्वीपन मिठास से सोंधेपन के कारण। बलिया जैसे पूर्वांचल के उजड्ड इलाके से आये इस कवि ने जिस यथार्थ पीड़ा को झेला है उसे बड़ी सिद्दत से अपनी कविताओं में उकेरा है। युवा होते भारत में बूढ़ों को हाशिये पर रखना विकास के खोखलेपन को तार-तार करता है। इस सग्रंह की पहली ही कविता है ”चित्र में दुःख“ जो एक संवेदनहीन होते समाज में आशा की किरण, संतोष चतुर्वेदी जैसे विरले रचनाकार ही खोज पाते हैं। जहां एक ओर असहाय बूढ़ा आदमी दीन-हीन अवस्था में जीवन गुजर-बसर करने को अभिषप्त है।वहीं दूसरी ओर समाज के तथा कथित बुद्धिजीवी वर्ग बाजार वादी व्यवस्था में उसे निलाम कर पैसे इकटठा करने में लगा है।

” और न जाने कितने संस्करणों में आया वह बूढा़

अपने दुःख व उदासी के साथ बैठा हुआ

अनुवादहीन

बुढ़े में था बिखरा संसार

और संसार में बैठा हुआ बूढ़ा

उदास का उदास“

कुछ ऐसे शब्द जो कविता में बड़े सलिके से आ गये हैं जिससे कविता का स्तर ऊँचा ही उठा है,जैसे-चुक्का-मुक्का। क्या वाकई कवि ने”चित्र में दुःख“ कविता के इस पंक्ति में ”घर-बार छोड़कर वे बन गये बुद्ध“ में बन लिखा है। भोजपुरी में तो ठीक है”बन“ अर्थात जंगल लेकिन हिन्दी में बन का अर्थ बनना है यहां मिसप्रिंट हो सकता है। फिर भी भाव में कोई कमी नहीं आयी है। संतोष कुमार चतुर्वेदी केवल बाजार वादी ताकतों के कारनामों को ही इंगित नहीं करते बल्कि बाजार के भीड़-भाड़ वाले इलाके में दो क्षण प्यार की बात भी कर लेते हैं।कवि को अपने घर परिवार से दूर रहना, पिता का गुजरना, दोस्तों मित्रों का ऋतुओं की तरह बिछुड़ना कवि को अपने रास्ते से डिगा नहीं पाता।

कुल मिलाकर प्रेम की बात में प्रेम टांके की तरह अपनी जमीन से नत्थी करने में सफल होता है। जो एक सुखद अनुभूति कराता है-

”सरसों के फूलों जैसे ताजा प्रेम

और प्रेम की गर्माहट

सर्द हवाओं और पृथ्वी की परिक्रमाओं के साथ

बचाये हुए है दुनियावी बुनियाद

पछुआ की तपिश भी

नहीं खो पायी है

वातावरण की नमी“

”बातें ऐसी जोड़ती हैं“ में कवि की सुक्ष्म दृष्टि की दाद देनी पड़ेगी कि जहां आपाधापी की जिंदगी में एक दूसरे से मिलने की फुर्सत नहीं है। परन्तु मानसिक रूप से एक दूसरे से जुड़े रहना जिसमें अपने पडो़सी के सुख दःुख में शरीक होना भी शामिल है। यह किस समाज की कल्पना है। बहुत बडा़ सवाल दागती दिखती है यह कविता हमारे ज़हन में बंदूक की तरह-

”पडो़सी के दरवाजे पर लगे बल्ब से

रोशन होता है हमारे घर का बाहरी हिस्सा

लाख रोकने के बाद भी

पहुँच ही जाता है हमारे घर

पडो़सी के घर का किस्सा“

समाज में फैले झूठ-फरेब के बीच आषा की नयी धूप लेकर आती है कविता ”सच्चाई“ इसी तरह ”गुजरात2002 की बानगी भी कम धारदार नहीं है

” बडी़ सफाई से खेला जा रहा है नाटक

आयोजक सूत्रधार की भूमिका में

अलाप रहा है प्रसंग

लोग पात्र बनकर घूम रहे हैं खुलेआम

एक दूसरे का खून करते हुए“

प्रेम के बारीक धागों से कवि ने बहुत सतर्क होकर चादर बुनी है। जिसमें कहीं कोई दाग नहीं, कहीं छीर नही,ं कहीं कटा-फटा नही,ं कितनी अव्यवस्थित होते हुए भी व्यवस्थित है पहली बार कविता में-

”ऐसे ही होता है सब

दुनिया में पहली बार

अव्यवस्थित

व्यवस्थित रूप से

अकेला प्रेम

कितना बदल देता है

दुनिया को“

वतर्मान में घट रही घटनाओं पर पैनी नजर रखना। उसे बड़े सलीके से कविता में ढालना। सीधे-साधे शब्दों को हथियार की तरह प्रयोग करना जैसी कला संताष कुमार चतुर्वेदी की कविता ”अपील“ में देखी जा सकती है।

भाषा नदी की धारा सी प्रवाह मान । किसी अनावश्यक शब्दों की घूसपैठ नहीं । ऐसा माना जाता है कि भाषा की सरलता एवं सहजता कविता को कमजोर बनाती है पर यहां तो बिलकुल उल्टा है। आम लोगों की बोली-भाषा के ही शब्दों से लोकतंत्र के सजग प्रहरी माने जाने वाले नेता जी के छल कपट, प्रंपच को बखूबी हमारे सामने बिना लाग लपेट के उठाकर रख दिया है।

अधिकारियों से लेकर चाटुकार तक जनता की सेवा में लगे हैं। कितना बडा़ तमाचा है यह कविता हमारे समाज पर। और हम हैं कि चुप बैठे हैं विरोध का स्वर कहीं सुनाई नहीं देता। ऐसा लगता है कि कुछ चिंतनशील व बुद्धिजीवियों को छोड़कर हर आदमी बहती गंगा में हाथ धोने में लगा हुआ है।

”इस तरह घर परिवार

रिश्तेदार-चाटुकार सहित

नेता जी कर रहें हैं सेवा जनता की

सेवा पर जन्मजात अधिकार

समझते हैं नेता जी।“

संतोष कुमार चतुर्वेदी ही ”छोटी सी जगह“ कविता में बड़ी बात कहने की हिम्मत रखते हैं। यही कविता का क्लाइमेक्स है। जो पाठकों को बार-बार पढ़ने के लिए मजबूर करती है।

”बड़े लोगों के बड़े होने में

कहीं-न-कहीं शामिल है

छोटी सी यह जगह।“

इसी तरह ”रोटी की धरती“कविता भी भाषा, शिल्प व सहजता से अपनी ओर आकर्षित करती है। जहां इसमें पूर्वांचल के बोले जाने वाले दैनिक शब्द-लपसी,चौकी,बेलन हमें बरबस गांव खींच ले जाते हैं वहीं सर्वत्र बढ़ रहे तमाम असंतुलनों की नयी सीख देती है यह कविता। समाज की आँख में धूल झोंककर अपना काठ का उल्लू सीधा करना हर किसी की फितरत बन चुका है। एक ऐसा वर्ग जो अपने जीविकोपार्जन के लिए बड़ी हस्तियों के पीछे अपना जीवन न्यौछावर कर देता है और अंत में मिलता क्या है?

सिर्फ गुमनामी में जीवन जीने को अभिशप्त। ”विज्ञापन की दुनिया में“ बखूबी देखा जा सकता है

”चित्र में दुःख“ हो या ”अभिनय“ जैसी कविताओं में कवि अपनी पीड़ा को अभिव्यक्त करने से रोक नहीं पाता । जहां कवि आडम्बरपूर्ण जीवन जीने वालों के लिए सीख देता है, वहीं विज्ञापन की दुनिया यर्थाथ जीवन से दूर ”सांइनिग इण्डिया“ में जीता है। जबकि उनके रास्ते में न खत्म होने वाली दुःखों की सुरंग है जिसका आदि अन्त दूर तक दिखाई नहीं देता। ”अपनी तकलीफांे को

सीमित रखना है देहरी तक तुम्हें

अपनी भूख-प्यास और समस्याओं को

तुम्हें चुपके से इस तरह पी लेना है

कि कोई आवाज न हो

झुर्रियों और धावों को

छुपा लेना है

पाउडर-क्रीम तले“

मानव के निरंकुश होते व्यवहार ने एक दूसरे को कितना बेगाना बना दिया है। दिल को दहला देने वाली,हमारे सामने ही एक उजाड़ होती सभ्यता का जीवंत उदाहरण है कविता-”बरगद“।बरगद ने क्या- क्या नहीं देखा अपने जीवन में । एक ठेकेदार के हाथों हजारों असहायों का साथी कैसे विदा हुआ,इस पर किसी तरह की प्रतिक्रिया का न होना, अपनी जड़ता को उजागर कर रहा है। ऐसे तमाम सवालों से जूझते कवि को मलाल है कि अपने आस-पास घटित होने वाली घटनाओं पर हम चुप क्यों हैं? क्या यह चुप्पी भविष्य में फटने वाले किसी ज्चालामुखी का पूर्व संकेत तो नहीं

”फिर कई दिनों तक राज रहा कुल्हाड़ियों का

घुमा कई अंगों पर आरा

भीषण चित्कार के साथ बीत गया एक जमाना

यह उस सभ्यता का अवसान था

जिसे कैद नहीं किया किसी फिल्मकार ने

अपने कैमरे में

दर्ज नहीं हुआ कोई भी मुकदमा

इस खूनी वारदात पर

चुप्पी साध ली दुनिया की सारी अदालतों ने“

आज पूरी दुनिया ही एक रंग मंच बनी हुई है। जिसे हम जिस रूप में देखते हैं क्या वह उसी रूप में है? या कुछ और है? बहुत सारे सवालों से जूझती दीख रही है इस सग्रंह की कविता ”परदा“। इस कविता की सबसे बड़ी खूबी यह है कि परदा आगे से कुछ और व पीछे से कुछ और गुल खिलाता है।यानी दोहरा चरित्र।आज समाज में जिस तरह दोहरे चरित्र वालों की संख्या बेतहासा बढ़ रही है एक सभ्य समाज के लिए कड़ी चेतावनी है।

”धुप मे पथरा जाने की परवाह किये बगैर“ कविता पर कुछ लोगों को एतराज हो सकता है। यह कविता नहीं बल्कि अपने पिता को याद करने का एक तरीका है।उस किसी भी व्यक्ति से पूछा जाए जिसके पिता असमय इस दुनिया से चले गये ।और एक असहाय कंधों पर अचानक पूरे घर -परिवार का बोझ आन पडा़ हो। वह बच्चा ,बच्चा नहीं बल्कि पिता की भूमिका में आ जाता है। वह ठीक से खेल-कूद भी नहीं पाता कि उसके सिर पर पूरी जिम्मेवारियों का एक पहाड़ खडा़ हो जाता है-

”पिछले छब्बीस सालों की सुबह शाम

जैस आंगन-ओसारे और घर

उलझे हुए सब एक साथ

आंखों के सामने

छूटी जा रही है

मेरी गाड़ी

आखिरी बार

और आंगन हो गया है

कुकुरलंघित“

संतोष कुमार चतुर्वेदी की बहुत सारी कविताओं से गुजरने के बाद इस संग्रह के लगभग अन्तिम भाग की कविता ”अभिनय“ इस रचनाकार से परिचय कराने का मेरा माध्यम रही है। जब ”इण्डिया टुडे “के साहित्य वार्षिकी 2002 में अभिनय कविता को पढ़ा तो लगा कि इसका रचनाकार पूर्वांचल के ही किसी हिस्से से आता होगा।ऐसा मैंने अनुमान लगाया। फिर यह बात आयी गयी हो गयी ।अपनी बैचेनी को शेयर करने के लिए अपने कई दोस्तों मित्रों को यह कविता पढ़ने को दी । आखिर पांच-छः सालों के अन्दर इस रचनाकार को ढंूढ ही निकाला।और आज बहुत कम प्रचार- प्रसार के बावजूद ”पहली बार“ कविता संग्रह मेरे हाथ लगी। जिसकी अनदेखी हिन्दी साहित्य में बहुत दिनों तक नहीं की जा सकती।संग्रह पढ़ने के बाद लगता है कि कवि की नजर में कोई बच नहीं पाया है। वे मजदूर, किसान, नेता, ठेकेदार, कूड़ा वाला बच्चा, मदारी, नट, चित्रकार, फिल्मकार, कलाकार, कवि, लेखक और विष्व रंगमंच पर आने वाले विभिन्न पात्र । ऐसा लगता है कि शायद ही कोई हो जो कवि के सामने से गुजरा हो और उसकी कविता में ढल न गया हो।परन्तु यहां कवि से थोड़ी सी षिकायत है।कवि ऐसे क्षेत्र से आता है जहां बिरहा जैसी लोकविधा के अवसान पर कहीं कोई जिक्र नहीं है। हां बरगद नामक कविता में जरूर आल्हा, बिरहा, चैती, कजरी, भजन, सोहर का उल्लेख हुआ है ।

विभिन्न मुददों से लड़ता हुआ कवि सत्य की तरह हांफता जरूर है। परन्तु पराजित नहीं होता।यह एक सकारात्मक पक्ष है। परन्तु कवि जिस क्षेत्र से आया है वहां की लोक परम्पराओं, लोक गीतों व बिरहा जैसी विधा से अनभिज्ञता क्यों ? जो आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। खास कर बिरहा, जिस पर कुछ जातियों का ही वर्चस्व रहा है।लेकिन उनका हिन्दी साहित्य से दूर का रिष्ता नहीं हैं। जिससे यह हिन्दी साहित्य के इतिहास में कहीं कोने अंतरे में पड़ कर रह गया है।क्या ऐसा लोक गायकों जो जनमानस की धमनियों में खून की तरह दौड़ रहे हैं। ऐसे लोक गायकों को कवि भूल क्यों गया? पूरी तरह से हम कवि को इनकार तो नहीं कर सकते। इस संग्रह की अनेक कविताओं में कलाकारों के दुःख दर्द को कवि ने बडे़ सिद्दत से उकेरा है।और आगे आने वाली कविताएं भी आश्वस्त करती दिख रही हैं। जो भविष्य में एक सुखद अनुभूति कराएंगी।

इस संग्रह की कोई भी कविता हिन्दी साहित्य के सागर में हलचल मचाने के लिए पर्याप्त हैं।कुछ कविताएं जैसे - ”चित्र में दुःख,“ ”रोटी की धरती“, ”माचिस,“ ”बरगद,“ ”धूप में पथरा जाने की परवाह किये बगैर,“ ”अभिनय,“ ”मा“ं के अलावा संग्रह की सारी कविताएं बार-बार पढ़ने के लिए बेचैन करती हैं।

अंत में हम यही कहेंगे कि इस संग्रह की समस्त कविताएं एक से बढ़कर एक हैं। जो बहुत दिनों तक तरोताजा बनाए रखेंगी। कवर की रूप-सज्जा थोड़ा मन को खिन्न कर देती है। बावजूद बकौल केदारनाथ सिंह-”मुझे विश्वास है,नये मानचित्र के अकांक्षी इस कवि की आवाज दूर तक और देर तक सुनी जाएगी।“

चर्चित पुस्तक-पहलीबार (काव्य संग्रह)

प्रकाशक-भारती ज्ञानपीठ नयी दिल्ली

कवि- संतोष कुमार चतुर्वेदी

संपर्क-

आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)

राजकीय इण्टर कालेज गौमुख टिहरी

गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: पुस्तक समीक्षा - पहली बार
पुस्तक समीक्षा - पहली बार
http://lh6.ggpht.com/-04Iz0AK-wAA/U2TDLmuDu7I/AAAAAAAAYLk/ydcTkzF2kng/image_thumb.png?imgmax=800
http://lh6.ggpht.com/-04Iz0AK-wAA/U2TDLmuDu7I/AAAAAAAAYLk/ydcTkzF2kng/s72-c/image_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/05/blog-post_604.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/05/blog-post_604.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content