विश्व रक्तदान दिवस (14 जून) पर विशेष रक्तदा...
विश्व रक्तदान दिवस (14 जून) पर विशेष
रक्तदान से दें जिंदगी का उपहार
भारतीय संस्कृति में कई तरह के दान प्रचलित हैं, चाहे वह धन का हो, वस्तु का हो या सम्पत्ति का हो। हर दान के पीछे कोई न कोई भाव छुपा होता है। अक्सर लोग दान करते हैं, परंतु कुछ पाने के लिए। कोई ग्रह-नक्षत्र के दुष्प्रभावों से बचना चाहता है, कोई आराध्य को प्रसन्न करना चाहता है, जबकि कुछ लोग प्रसिद्धि पाने के लिए दान पुण्य करते हैं। आज के युग में इंसान में समर्पण की भावना विलुप्त होती जा रही है। वह अपने आप में सीमित होकर रह गया है। स्थिति तब अजीबोगरीब हो जाती है, जब किसी परिजन की जान खतरे में हो और लोग रक्तदान से पीछे हट जाते हैं। तमाम मौतें तो रक्त के अभाव में ही हो जाती हैं। ऐसे में यह बेहद चिन्ता का विषय है।
भारत में हर साल 15 लाख लोगों की रक्त की कमी के कारण मौत हो जाती है। एकमात्र रक्त ही है जो किसी प्रयोगशाला में नहीं बनाया जा सकता। हमारे वैज्ञानिक चांँद, तारों पर पहुंँच गये, टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा कर लिया, जानवरों के क्लोन बना लिये परन्तु यदि कोई वस्तु अब तक नहीं बना सके तो वह है, मानव रक्त। अर्थात रक्त का विकल्प केवल और केवल रक्त ही है। कई बार जिंदगी के चिराग सिर्फ इसलिए बुझ जाते हैं क्योंकि उन्हें वक्त रहते रक्त नहीं मिल पाता। ऐसे में रक्तदान समय की माँग है। एक व्यक्ति को दिया गया रक्त न जाने कितने चेहरों पर मुस्कान ला सकता है। इसीलिए रक्त को जिंदगी का सबसे अनमोल रत्न माना जाता है। लेकिन रक्तदान को लेकर समाज में तमाम भ्रांतियाँ व्याप्त हैं, जिसके चलते लोग रक्तदान करने से कतराते हैं।
रक्त केवल शरीर में बहने वाला तरल पदार्थ नहीं है, यह हमारी संस्कृति, परम्परा और हमारे आचार-विचार को प्रकट करने वाला साधन है। रक्त ने न जाने कितने परायों को अपना और अपनों को पराया कर दिया है। सड़क दुर्घटना में मरणासन्न व्यक्ति को जब कोई अपना रक्त देकर जीवन देता है तो वह अपने रक्तदाता का जीवन भर के लिए कृतज्ञ हो जाता है। मनुष्य के शरीर में वजन का 7 प्रतिशत रक्त होता है। एक सामान्य मनुष्य में 5-6 लीटर रक्त होता है, जबकि रक्तदान के दौरान मात्र 300 मिली रक्त लिया जाता है और शरीर इस रक्त की पूर्ति मात्र 24 घंटे में कर लेता है। एक यूनिट रक्त से 04 लोगों की जान बचाई जा सकती है क्योंकि अब रक्त को आवश्यकतानुसार चार रूपों में मरीज को दिया जाता है। रक्त में पाये जाने वाली लाल रक्त कणिकाएं (एरिथ्रोसाइट्स), श्वेत रक्त कणिकाएं (ल्यूकोसाइट्स), रक्त प्लेटलेट्स और रक्त समूह को आवश्यकतानुसार अलग-अलग या एक साथ मरीज को दिया जाता है। दुनिया में 90 प्रतिशत मामलों में रक्त के अवयवों का प्रयोग होता है, जबकि भारत में मात्र 15 प्रतिशत मामलों में ही उनका प्रयोग होता है। यहाँ 85 प्रतिशत मरीजों को पूर्ण रक्त चढ़ा दिया जाता है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो यहाँ 7 प्रतिशत भारतीयों का ब्लड ग्रुप ओ-निगेटिव है। 0.4 प्रतिशत भारतीयों का ब्लड ग्रुप एबी-निगेटिव है। सबसे कम पाया जाने वाल ब्लड ग्रुप एबी-निगेटिव है।
रक्तदान को लेकर लोगों में तमाम भ्रांतियाँ हैं। मसलन रक्तदान से कमजोरी आ जाती हैं, रक्तदान करने से शरीर में खून कई माह बाद बनता है, रक्तदान करने से हेपेटाइटिस-बी व एड्स जैसी बीमारियाँ हो जाती हैं या रक्तदान के बाद शरीर में जो खून बनता है वह अच्छा नहीं होता है। ऐसी तमाम भ्रांतियों से निजात पाने की जरूरत है। इसके लिए तमाम सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं प्रयासरत हैं , ताकि अधिकाधिक लोगों को जागरूक कर रक्तदान से जोड़ा जा सके। वस्तुतः आज सबसे ज्यादा जरूरत युवा पीढ़ी को रक्तदान जैसे संकल्पबद्ध अभियान से जोड़ने की है।
सामान्य तौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति वर्ष में चार बार रक्तदान कर सकता है। न्यूनतम तीन माह के अन्तराल पर रक्तदान किया जा सकता है। रक्तदान के लिए जरूरी है कि व्यक्ति की आयु 18 से 60 साल के बीच हो, वजन 45 किलोग्राम से कम न हो एवं रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा 12.5 व रक्तचाप 70-110 हो। इसके अलावा किसी संक्रामक बीमारी से ग्रसित व्यक्ति या गुर्दे, लीवर व हृदय की बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को रक्तदान नहीं करना चाहिए। एस्प्रिन, एंटीबायोटिक्स डिप्रेशन की दवा और हार्मोन की दवा लेने वाले व्यक्तियों को रक्तदान न करने की सलाह दी जाती है, वहीं अल्कोहल का लगातार सेवन करने वाले व्यक्तियों को भी रक्तदान से बचना चाहिए। गर्भवती महिलाएं और एच.आई.वी. पाॅजिटिव व्यक्ति रक्तदान नहीं कर सकते। हाइपो या हाइपर थायराइड से पीडि़त व्यक्ति एवं डायबिटीज, अस्थमा, पीलिया व किडनी रोग से पीडि़त मरीज भी रक्तदान नहीं कर सकते। यही कारण है कि रक्तदान से पूर्व चिकित्सक द्वारा सामान्य जाँच करने के बाद ही रक्तदान किया जाता है। रक्तदान करने वाले व्यक्ति का रक्तचाप, रक्त शर्करा, हीमोग्लोबिन के परीक्षण के अलावा मलेरिया, एच.आई.वी., वी.डी.आर.एल, हेपेटाइटिस -बी, हेपेटाइटिस-सी इत्यादि का भी परीक्षण किया जाता है। रक्त दान से पूर्व कुछ सावधानियाँ जरूरी हैं। मसलन, खाली पेट रक्तदान नहीं करना चाहिए, रक्तदान से पूर्व किसी नशीले पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए एवं रक्तदान से पहले पर्याप्त नींद लेना जरूरी है। रक्तदान के बाद भी कुछ सावधानियाँं बरतनी होती हैं। मसलन - तेज धूप से बचें, 2-3 घंटे तक ड्राइविंग न करें, 4 घंटे तक धूम्रपान न करें और 24 घंटे तक अल्कोहल न लें। इसके अलावा 24 घंटों में 10-12 गिलास पानी और जूस जरूर पियें।
वस्तुतः रक्तदान का मकसद न तो प्रसिद्धि पाना है, न ही देवी-देवताओं को प्रसन्न करना बल्कि यह जनकल्याण की भावना से किया जाता है। समाजहित के लिए निःस्वार्थभाव से किया गया यह दान अतुलनीय है। जहाॅँ अन्य दान जीवन जीने का सहारा बनते हैं, वहीं रक्तदान तो नया जीवन ही प्रदान कर देता है। यही कारण है कि इसे महादान कहा जाता है। यह मानवता के प्रति संवेदनशक्ति तथा प्यार की अभिव्यक्ति है। रक्तदान से व्यक्ति एक तरफ तो दूसरे के जीवन को बचाता है, तो दूसरी तरफ स्वयं के शरीर में नयी स्फूर्ति प्राप्त करता है। चिकित्सा विशेषज्ञों की मानें तो रक्तदान से शारीरिक कमजारी नहीं वरन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। रक्तदान के बाद शरीर में 24 घंटे के भीतर नई रक्त कणिकाएं बन जाती हैं जो आॅक्सीजन को एक कोशिका से दूसरी कोशिका में ले जाने में और अधिक मजबूती से काम करती है, जिससे शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। रक्त की आयु नब्बे दिन होती है, रक्तदान करने से हमारे शरीर की पुरानी रक्त कोशिकायें निकल जाती हैं और हमारी अस्थि मज्जा, नयी रक्त कोशिकायें बनाने लगती हैं जिससे हमारे शरीर में एक नयी उर्जा का संचार होता है। परिणामस्वरूप बीमारियांँ होने का खतरा कम हो जाता है। चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक समय-समय पर रक्तदान करने से बढ़ा हुआ कोलेस्ट्राल कम होता है जिससे हृदय संबंधी रोग का भी खतरा कम हो जाता है।
रक्तदान की शुरूआत कैसे हुई यह भी जानना दिलचस्प है। रक्तदान का आरंभ 17वीं शताब्दी से माना जाता है, लेकिन उस समय रक्त देते समय प्रायः रोगियों की मृत्यु हो जाती थी। इस मृत्यु को देखते हुए इंग्लैण्ड, फ्रांस और इटली जैसे देशों ने इसे पूर्णतः प्रतिबन्धित कर दिया, परंतु दक्षिण अमेरिका में बसे इंका सभ्यता के लोग, जो इससे पहले से एक आदमी का खून दूसरे में चढ़ाना सीख चुके थे, उनमें खून चढ़ाते समय बहुत कम लोगों की मृत्यु होती थी। उस समय इसका कारण ज्ञात नहीं था, लेकिन अनुमान लगाया गया कि इंका सभ्यतावासी एक ही खून समूह वाले हैं, जबकि यूरोप में भिन्न-भिन्न रक्त समूह के लोग निवास करते हैं ऐसे में इस दिशा में शोध आरंभ हुए और कार्ल लेण्डस्टाइनर (14 जून 1868-26 जून 1943) नामक विख्यात आॅस्ट्रियाई जीवविज्ञानी और भौतिकविद् को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने रक्त में अग्गुल्युटिनिन की मौजूदगी के आधार पर रक्त का अलग अलग रक्त समूहों - ए, बी, एबी, ओ में वर्गीकरण कर चिकित्साविज्ञान में अहम योगदान दिया। इस महान खोज के चलते ही रक्त आधान (ब्लड ट्रांसफ्यूजन) संभव हो सका और वर्ष 1930 में इस महान वैज्ञानिक को शरीर विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कार्ल लेण्डस्टाइनर के जन्मदिन 14 जून को ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कालान्तर में रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए विश्व रक्तदान दिवस के तौर पर चुना।
वैश्विक स्तर पर बात करें तो प्रतिवर्ष 8 करोड़ यूनिट से ज्यादा रक्त, रक्तदान से जमा होता है। इसमें विकासशील देशों का योगदान 38 प्रतिशत होता है, जबकि यहाँ दुनिया की 82 प्रतिशत आबादी रहती है। वर्ष 1997 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 100 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान नीति की नींव डालते हुए यह लक्ष्य रखा था कि विश्व के प्रमुख 124 देश अपने यहाँ स्वैच्छिक रक्तदान को ही बढ़ावा दें। मकसद यह था कि रक्त की जरूरत पड़ने पर उसके लिए पैसे देने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए, पर अब तक लगभग 49 देशों ने ही इस पर अमल किया है। तंजानिया जैसे देश में 80 प्रतिशत रक्तदाता पैसे नहीं लेते। ब्राजील में तो यह कानून है कि आप रक्तदान के पश्चात किसी भी प्रकार की सहायता नहीं ले सकते। ऑस्ट्रेलिया के साथ साथ कुछ अन्य देश भी हैं जहाँ पर रक्तदाता पैसे बिलकुल भी नहीं लेते। पर दुर्भाग्यवश अपना भारत इसमें काफी पिछड़ा हुआ है या यूँ कहें कि लोग जागरूक नहीं हैं।
आँकड़ों पर गौर करें तो भारत में प्रतिवर्ष 1 करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत होती है, जिसमें से 75 लाख यूनिट रक्त ही उपलब्ध हो पाता है। यानी करीब 25 लाख यूनिट रक्त के अभाव में हर साल सैकड़ों मरीज दम तोड़ देते हैं। प्रत्येक दो सेकेंड में एक व्यक्ति को रक्त की जरूरत होती है। दरअसल भारत में रक्त की जरूरत को पूरा करने के लिए प्रतिदिन 38 हजार रक्तदाताओं की आवश्यकता है। फिलहाल मांँग का केवल 59 प्रतिशत रक्त ही स्वैच्छिक रक्तदान से हासिल होता है। शेष 41 फीसदी रक्त की जरूरत को पेशेवर रक्तदाताओं से खरीद कर पूरा किया जाता है। हालात यह हैं कि आज ब्लड बैंकों में कई पेशेवर डोनर्स जब-तब रक्त बेचते हैं। तमाम शराबी, ड्रगिस्ट अपनी लत की भूख मिटाने के लिए थोड़े से पैसे की खातिर कई-कई बार रक्त बेचते हैं। इनमें से अधिकांश गंभीर रोगों से भी ग्रस्त होते हैं। जरूरत पड़ने पर व्यक्ति इनसे रक्त तो ले लेता है, परंतु बाद में उसे इसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
वस्तुतः भारत की कुल आबादी की एक प्रतिशत जनसंख्या भी रक्तदान नहीं करती है जबकि नेपाल जैसे देश में कुल रक्त की जरूरत का 90 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान से पूरा होता है तो श्रीलंका में 60 फीसदी, थाईलैण्ड में 95 फीसदी, इण्डोनेशिया में 77 फीसदी और बर्मा में 60 फीसदी हिस्सा रक्तदान से पूरा होता है। भारत में मात्र 46 लाख लोग स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं। इनमें महिलाएं मात्र 06 से 10 प्रतिशत हैं। राज्यवार गौर करें तो सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला राज्य उ0प्र0 स्वैच्छिक रक्तदान के मामले में पिछड़े राज्यों में शामिल है, जहाँ मात्र 16 प्रतिशत लोग स्वैच्छिक रक्तदान में रुचि दिखाते हैं। मेघालय में 10, मणिपुर में 10.08, उ0प्र0 में 16 व पंजाब 19.04 प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान के साथ निचले पायदान पर तो पश्चिम बंगाल (87.6), त्रिपुरा (84), तमिलनाडु (83), महाराष्ट्र (78), चण्डीगढ़ (75) की गिनती बेहतर राज्यों में की जाती है। ढाई हजार से ज्यादा ब्लड बैंक भी हमारी जरूरत को नहीं पूरा कर पाते। आज तक देश में एक भी केंद्रीयकृत रक्त बैंक की स्थापना नहीं हो सकी है जिसके माध्यम से पूरे देश में कहीं पर भी रक्त की जरूरत को पूरा किया जा सके। टेक्नोलॉजी में हुए विकास के बाद निजी तौर पर वेबसाइट्स के माध्यम से ब्लड बैंक व स्वैच्छिक रक्तदाताओं की सूची को बनाने का कार्य आरंभ हुआ। इसमें थोड़ी-बहुत सफलता भी मिली, लेकिन संतोषजनक हालात अभी नहीं बने। नतीजन, कहीं नकली खून का कारोबार बढ़ रहा है तो कहीं रक्तदान के नाम पर गोरखधंधा चल रहा है। ऐसे में जरूरत है इस संबंध में लोगों को जागरूक करने की और स्वयं पहल करने की ताकि स्वैच्छिक रक्तदान की प्रक्रिया को बढ़ाया जा सके और रक्त के अभाव में किसी को जीवन का दामन न छोड़ना पड़े। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है कि यदि देश में 5 प्रतिशत लोग स्वयं ही रक्तदान करें तो आवश्यक रक्त की पूर्ति हो जायेगी। तो फिर देर किस बार की। आइए संकल्प लें और रक्तदान कर दूसरों को जीवनदान देने का पवित्र धर्म निभाएँ। याद आती हैं एक कवि की कुछ पंक्तियाँ-
मैं हूँ इंसान और इंसानियत का मान करता हूँ,
किसी की टूटती सांँसों में हो फिर से नया जीवन
मैं बस यह जानकर अक्सर ’लहू’ का दान करता हूँ!!
लेखिका परिचय :
आकांक्षा यादव : कालेज में प्रवक्ता के बाद साहित्य,लेखन और ब्लागिंग के क्षेत्र में प्रवृत्त। अब तक दो कृतियाँ प्रकाशित- चाँद पर पानी (बाल-गीत संग्रह,2012), क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा (युगल संपादन,2007)। देश-विदेश की शताधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, वेब पत्रिकाओं व ब्लॉग पर रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। दर्जनाधिक प्रतिष्ठित पुस्तकों /संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी से वार्ता, रचनाओं इत्यादि का प्रसारण। व्यक्तित्व-कृतित्व पर डा. राष्ट्रबंधु द्वारा सम्पादित ‘बाल साहित्य समीक्षा’(कानपुर) का विशेषांक जारी। हिंदी-ब्लागिंग में 'शब्द-शिखर' के माध्यम से सक्रिय। व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’ और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’, ‘सप्तरंगी प्रेम’ व ‘उत्सव के रंग’ ब्लॉग का संचालन। विकीपीडिया पर भी तमाम रचनाओं के लिंक्स उपलब्ध।
विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु दर्जनाधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त- उ.प्र. के मुख्यमंत्री द्वारा ’’अवध सम्मान’’, परिकल्पना समूह द्वारा ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लागर दम्पति’’ सम्मान, विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘ व ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, ‘‘एस.एम.एस.‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार इत्यादि।एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास। बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही मेरी लेखनी की शक्ति है !!
-आकांक्षा यादव,
टाइप 5 निदेशक बंगला,
जी0पी0ओ0 कैम्पस, सिविल लाइन्स, इलाहाबाद (उ.प्र.) - 211001
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Bahut badhiya Nice post
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