पिछली किश्तें – 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 दिनांक 28 मई 2014 मारीशस यात्रा पर आए हुए 120 घंटॆ,= 7200 मिनट,= 432000 सेकंड कैसे बीत गए प...
पिछली किश्तें – 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6
दिनांक 28 मई 2014
मारीशस यात्रा पर आए हुए 120 घंटॆ,= 7200 मिनट,= 432000 सेकंड कैसे बीत गए पता ही नहीं चल पाया. हर दिन एक नया दिन और एक नयी रात होती. आँखों में मीठे हसीन सपने पल रहे होते. रोज प्रकृति के नित-नूतन श्रॄंगार को खुली आँखों से देख प्रफ़ुल्लित हो उठता. मन में कई विचार अंगडाइयाँ लेने लगते. साथ यात्रा कर रहे लोग,पहले तो अजनवी से मिले, फ़िर इतने घुलमिल गए, मानो बरसों की पहचान रही हो. यह बात अलग है कि यात्रा की समाप्ति के बाद लोग एक दूसरे को कितना याद रख पाते हैं, कितना नहीं. लेकिन कुल मिलाकर एक पूरा परिवार सा बन चुका था. लोग अपनी सुनाते, दूसरों की सुनते और इस तरह दिन पर दिन कैसे पंख लगाकर उडते चले गए, पता ही नहीं चल पाया.
आज यात्रा का यह छटवां दिन है. यह खास दिन था हम सबके लिए. आज का दिन भाषणॊं का दिन था, कविता पाठ करने का दिन था. सब अपनी-अपनी तैयारी के साथ आए थे. सभी ने कुछ न कुछ लिख रखा था सुनाने के लिए. इसके साथ ही एक खास बात यह भी जुड गई थी कि मारीशस के नामी/गिरामी साहित्यकरों से मुलाकात जो होने जा रही थी. यात्रा संयोजक श्री नरेन्द्र दंढारेजी ने काफ़ी समय पूर्व उन्हें ईमेल/पत्र/फ़ोन द्वारा इस कार्यक्रम में शरीक होने के लिए आमंत्रण दे रखा था. श्रीमती अलका धनपतजी ( वरिष्ठ प्राध्यापिका ),श्री रामदेव धुरंधरजी (ख्यातिलब्ध सहित्यकार), श्री राज हीरामनजी ( वसंत -तथा रिमझिम पत्रिका के वरिष्ठ सहा. संपादक तथा पत्रकार),तथा श्री राजनारायणजी गुट्टी (कला एवं संस्कृति मंत्रालय में सलाहकार) से जब-तब मुलाकातें हो जाया करती थी. वे अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की रुपरेखा बनाते और उसमें अथक सहयोग प्रदान करते.
दिन का ग्यारह बज रहा है. अब हमें इन्तजार था अतिथियों के आगमन का. एक के बाद एक आते रहे. नरेन्द्र भाई उनका भाव-भीना स्वागत करते. फ़िर अन्य लोगों से मिलते-
बतियाते और अपने निर्धारित स्थान पर जा बैठते. ठीक ग्यारह बजे कार्यक्रम. श्री वैधनाथ अय्यर की अध्यक्षता में एवं श्री राज हीरामनजी के मुख्य आतिथ्य में शुरु हुआ. डा.श्रीमती वंदना दीक्षित ने मंच का कुशलतापूर्वक संचालन किया. वे बारी-बारी से वक्ताओं को बुलाती, वे अपना वक्तव्य देते हैं. चुंकि वक्ताओं की सूची काफ़ी लंबी थी और दोपहर के दो बजने वाले थे, भोजन का भी समय हो चला था. अतः श्री हीरामनजी के उद्भोधन के पश्चात इस सत्र का समापन करना पडा.
श्री हीरामनजी ने अपने वक्तव्य में हिन्दी की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा;-“ वे हिन्दी में बोलते हैं,हिन्दी में अपना साहित्य रचते है,हिन्दी का सम्मान करते हैं और हिन्दी से ही सम्मानीत होते हैं. हिन्दी उनकी शान है, संस्कृति का आधार है, हमारी पहचान है. महात्मा गांधी पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि बापू हमारे देश में केवल एक बार सन 1901 में कुछ दिन के लिए आए थे. उनके आगमन के साथ ही हमारी सोच में व्यापक परिवर्तन आया. हमने अपना स्वरुप पहचाना. हमने गांधी को अपने हृदय में स्थान दिया, जबकि वे भारत से थे, उन्हें वहाँ केवल सरकारी नोट में स्थान दिया गया.” अपनी घनीभूत होती पीडाओं को शब्दों का जामा पहनाते हुए उन्होंने एक लंबा वक्तव्य दिया.
श्री नरेन्द्र दण्ढारेजी ने विषयों का चयन बडी सूझ-बूझ से किया था, वे इस प्रकार थे.....
(१) विदेश में भारत (२) हिन्दी के विकास में विदेशी/प्रवासी लेखकों की भूमिका (३) वैश्वीकरण की हिन्दी प्रसार में भूमिका (४) मोरीशस में हिन्दी शिक्षा में युवाओं का योगदान (५) युवा पीढी में हिन्दी बोध (६) जनभाषा और हिन्दी (सहोदर संबंध)
भोजन के पश्चात दूसरे सत्र का आगाज हुआ. मारीशस के कला एवं संस्कृति मंत्री मान.श्री मुखेश्वर चुनीजी के विशिष्ठ आतिथ्य ,श्री डा.श्रीमती व्ही. डी.कुंजल( निदेशक महात्मा गांधी संस्थान, मारीशस. के मुख्य आतिथ्य एवं श्रीवैध्यनाथ अय्यर की अद्ध्यक्षता में कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ. श्रीमती काले एवं.डा.सुश्री भैरवी काले ने भारतीय परम्परा का निर्वहन करते हुए स्वागत गीत गाया.
मंच पर बांए से दांए (१) श्रीराजनारायण गुट्टी( कला एवं संस्कृति मंत्रालय में सलाहकार (२) डा.श्रीमती व्ही.डी.कुंजल (निदेशक, महा.गांधी संस्थान) (३) श्री गंगाधरसिंह सुकलाल “गुलशन”(डिपटी सेक्रेटरी जनरल,विश्व हिन्दी सचिवालय. (४) मान.श्री मुखेश्वर मुखीजी( कला एवं संस्कृति मंत्री) (५)श्री वैध्यनाथ अय्यर ( अध्यक्ष अभ्युदय संस्था, वर्धा (५) श्री नरेन्द्र दण्ढारे ( महासचिव-संयोजक,वर्धा)
कुछ प्रतिभागी अपना वक्तव्य देने में शेष रह गए थे, उन्होंने अपने आलेखों का वाचन किया. इस क्रम में म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के संयोजक श्री गोवर्धन यादव ने अपना आलेख “हिन्दी-देश से परदेश तक”, संस्था सचिव श्री नर्मदा प्रसाद कोरी, बुरहानपुर के श्री संतोष परिहार, खण्डवा के श्री शरदचन्द्र जैन ने अपने-अपने आलेखों का वाचन किया.
यादव अपने आलेख का वाचन करते हुए(२)श्री कोरी वाचन करते हुए (३) श्री मफ़तलाल पटेल वाचन करते ह
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सभागार के कुछ दृष्य
चित्र क्रमांक (३) तीन में श्री मफ़तलालजी पटेल( एम.ए.पीएचडी, संपादक “अचला”पत्रिका इस यात्रा में सहभागी रहे. यहाँ यह बात विशेष उल्लेखनीय थी कि आपकी पत्नी श्रीमती आनन्दी बेन गुजरात के मुख्य मंत्री पद की शपथ ले रही थी,जब कि वे हमारे साथ थे. वे अहमदाबाद से अपनी भांजियों को लेकर बीस मई को ही रवाना हो चुके थे, तब वे यह नहीं जानते थे कि उनकी पत्नी मुख्य मंत्री बनायी जाने वाली हैं.
मंचासीन सभी विद्वतजनों के संभाषण के पश्चात विशिष्ठ अतिथि मान.श्री मुखेश्वर मुखी (कला एवं संस्कृति मंत्री-मारीशस) के हस्ते सभी विद्वतजनो/पत्रकारो/साहित्यकारों/बुद्धीजीवियों का सम्मानीत किया गया.
सम्मानीत होने वालों के नाम इस प्रकार हैं:- श्री अतुल पाठक(सुरत)/ डा. वन्दना दीक्षित (नागपुर),/ डा. अनन्तकुमार नाथ(तेजपूर-आसाम)/डा. मफ़तलाल पटेल(अहमदाबाद)/डा. उषा श्रीवास्तव( बंगलूरु)/ डा.पी.सी.कोकिला (चैन्नई)/डा. मधुलता व्यास (नागपुर)/डा. वामन गंधारे( अमरावती)/ डा. शंकर बुंदेले(अमरावती)/ गोवर्धन यादव (छिन्दवाडा)/ शरदचन्द्र जैन (खंडवा)/श्रीमती सुजाता सुर्लेकर(गोवा.)/श्रीमती वासंथी अय्यर(नागपुर)/संतोष परिहार(बुरहानपुर)/पाण्डुरंग भालशंकर( वर्धा)/नर्मदाप्रसादकोरी(छिन्दवाडा)/विकास काले (वर्धा)/सुश्री हीना शाह(अहमदाबाद)
(२)अभ्युदय बहुउद्देशीय संस्था, वर्धा द्वारा मारीशस के साहित्यकारों का सम्मान किया गया. उनके नाम इस प्रकार हैं
मान.श्री मुखेश्वर चुनीजी( कला एवं संस्कृति मंत्री मारीशस) (२) श्री राजनारायण गति( अध्यक्ष हिन्दी स्पिकिंग युनियन,) (३) डा.अलका धनपत ( महा.गांधी संस्थान) (४) श्री धनपत राज हीरामन (महा.गांधी संस्थान) (५) श्री प्रल्हाद रामशरण (पोर्ट्लुई) (६) श्री रामदेव धुरंधर(पोर्टलुई) (७) श्री इन्द्रदेव भोला (पोर्टलुई) (८) डा.श्रीमती व्ही.डी.कुंजल( निदेशक महा.गांधी संस्थान) (९) श्री धनराज शंभु (पोर्टलुई) (१०) डा श्रीमती.विनोदबाला अरुण( पोर्टलुई),(११) श्री सूर्यदेव सिबोरत(पोर्टलुई) (१२) डा.श्रीमती रेशमी रामधोनी( पोर्टलुई) (१३) डा.हेमराज सुन्दर (पोर्टलुई) एवं श्रीमती उषा बासगीत(पोर्टलुई)
कार्यक्रम के समापन के बाद गोवर्धन यादव की अध्यक्षता में श्री संतोष परिहार ने काव्य-मंच का संचालन किया,जो देर रात तक चलता रहा. कवि-गोष्ठी के समापन पर श्री नर्मदा प्रसाद कोरी ने सभी उपस्थित विद्वतजनॊं के प्रति आभार व्यक्त किया.
दूसरे सत्र की शुरुआत के समय डा. अलका धनपतजी, आकाशवाणी मारीशस के कार्यक्रम अधिकारी को साथ लेकर आयीं. उन्होंने मुझे सभाग्रह से बुलाकर इस बात की सूचना दी कि आपका साक्षात्कार रिकार्ड किया जाना है. मेरे अलावा रिकार्डिंग श्री दण्ढारेजी, एवं संतोष परिहार कि की जानी थी,लेकिन परिहार का नाम उसी क्षण मंच पर आलेख वाचन के लिए पुकारा गया. शायद इसी वजह से उनका साक्षात्कार रिकार्ड नहीं हो सका. पास ही के एक हाल का चुनाव किया गया,जहाँ शोरगुल बिल्कुल भी न था. मेरे साक्षात्कार के बाद उन्होंने मुझे बधाइयां देते हुए कहा कि आपका साक्षात्कार बहुत ही जानदार रहा है और इसका प्रसारण 7 जून 2014 को होगा. चुंकि हमें 29 मई को मारीशस से रवाना हो जाना था. अतःमैंने उनसे निवेदन किया था कि यदि कार्यक्रम अधिकारी इसकी रिकार्डिंग की एक प्रति मुझे भेज देंगे, तो उत्तम रहेगा.जैसा की उन्होंने बतलाया भी था कि इसे आप अपने कंप्युटर पर भी सुन सकते हैं,लेकिन मेरी इसमें इतनी दक्षता नहीं थी कि उसे सुन सकूं आप सभी जानते ही हैं कि सरकारी नियमों के अधीन ऎसा किया जाना संभव नहीं है. बाद में ईमेल के जरिए डा. धनपत ने मुझे उसके प्रसारित हो जाने बाबद सूचना प्रेषित की. मैंने उन्हें हृदय से धन्यवाद देते हुए आभार माना कि उन्होंने कम समय में मेरे लिए इतना परिश्रम किया. ( ईमेल की प्रति संलन्ग है)
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नमस्कार जी
आपका कार्यक्रम टेलीकास्ट हो चुका है .भेजना मुश्किल है.
अलका
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रविजी नमस्कार
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद रचना प्रकाशन के लिए
माअन.रविजी नमस्कार
जवाब देंहटाएंरचना प्रकाशन के लिए धन्यवाद
शेष शुभ