पुस्तक समीक्षा : हिन्दी में ज्ञानात्मक साहित्य : तीन किताबें, तीन दृष्टियाँ, तीन आयाम

SHARE:

हिन्दी में ज्ञानात्मक साहित्य : तीन किताबें, तीन दृष्टियाँ, तीन आयाम (डॉ विपिन चतुर्वेदी की दो किताबें “ऊतकी परिचय” तथा “मानव शरीर की अस्थिय...

हिन्दी में ज्ञानात्मक साहित्य : तीन किताबें, तीन दृष्टियाँ, तीन आयाम

(डॉ विपिन चतुर्वेदी की दो किताबें “ऊतकी परिचय” तथा “मानव शरीर की अस्थियाँ”

और बालेंदु शर्मा दाधीच की किताब “तकनीकी सुलझनें” पर केन्द्रित)

 

clip_image002

clip_image004

clip_image006

किसी सम्पूर्ण प्रभुतासंपन्न देश की अस्मिता के चार पहलू होते हैं : उस देश का राष्ट्रध्वज, उस देश का राष्ट्र गीत, उस देश का राष्ट्रीय प्रतीक (राजमुद्रा, राष्ट्रीय पशु, राष्ट्रीय पक्षी, आदि) और उस देश की राजभाषा । प्रथम तीन पहलू स्थूल रूप में होते हैं, देश के भीतर उनका बहुत महत्व के साथ प्रयोग होता है और विदेशों में विशेष अवसरों पर देश की उपस्थिति दर्ज़ कराने के लिए उनका सीमित उपयोग होता है । किन्तु चौथा पहलू, किसी देश की राजभाषा; सूक्ष्म रूप में उस पूरे देश में किसी चिरंतन स्रोतस्विनी सी प्रवाहित रह कर सारे देश को जहां एकता के सूत्र में पिरोती है वहीं सारे देश की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम भी होती है । विदेशों में भी विभिन्न माध्यमों से किसी देश की राजभाषा ही अपने देश का सबसे अधिक प्रतिनिधित्व करती है । राजभाषा में रचित साहित्य सारी दुनिया में उस देश का गौरव गान मुखर स्वर में प्रसारित करता है ।

भारतवर्ष की स्वाधीनता के बाद संविधान निर्माण के दौरान बहुत लंबे वैचारिक विमर्श और कड़े संघर्ष के पश्चात 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया और संविधान के अनुच्छेद 343 में तदाशय के स्पष्ट निर्देश दिये गए । हिन्दी भारतवर्ष के सर्वाधिक भूभाग में और सर्वाधिक जनसंख्या के द्वारा बोली जाने वाली भाषा है, देश के हिंदीतर क्षेत्रों में भी हिन्दी कार्यसाधक भाषा है, इसके साथ ही स्वाधीनता आंदोलन में हिन्दी की अहम भूमिका होने और इस अकेली भाषा की लिपि और व्याकरण भाषाविज्ञान के सिद्धांतों की कसौटी पर खरे उतरने के कारण हिन्दी को संस्कृत, उर्दू और अँग्रेजी की अपेक्षा अधिक तरजीह दी गई । राजभाषा के महत्व को समझते हुए संविधान में अनुच्छेद 120, अनुच्छेद 210 और अनुच्छेद 343 से अनुच्छेद 351 तक कुल 11 अनुच्छेदों में राजभाषा के सर्वांगीण उन्नयन और विकास के लिए स्पष्ट प्रावधान किए गए हैं ।

किसी भाषा की सामर्थ्य उसमें रचे गए साहित्य से की जाती है । साहित्य दो प्रकार का होता है- पहला भावात्मक साहित्य, जिसके अंतर्गत कविता कहानी, उपन्यास आदि भावात्मक विधाओं में रचित साहित्य आता है । हिन्दी के पास प्रचुर मात्रा में भावात्मक साहित्य है और इसके विकास की स्पष्ट धारा भी है । वैश्विक वाङमय में हिन्दी के इस भावात्मक साहित्य का सम्मानित स्थान है जो विश्व पटल पर भारतीय मनीषा को पूरे सामर्थ्य के साथ प्रतिष्ठापित करता है । साहित्य का दूसरा प्रकार होता है- ज्ञानात्मक साहित्य । इसके अंतर्गत ज्ञान के विविध क्षेत्रों में रचा गया ऐसा साहित्य आता है जो ज्ञानार्जन के लिए उपयोग में आता है । यह ज्ञानात्मक साहित्य प्रमुख रूप से शिक्षण कार्यों में प्रयुक्त होता है । यह निर्विवाद सत्य है कि शिक्षा का स्तर तभी ऊंचा उठ सकता है जब शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो ।

ज्ञानात्मक साहित्य के सृजन के लिए यह आवश्यक होता है कि संबन्धित विषय की पूरी पारिभाषिक शब्दावली हमारे पास हो । हिन्दी के मानकीकरण के लिए पहली बार उल्लेखनीय कार्य आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (15 मई 1864-21 दिसंबर 1938) ने किया । सन 1903 में वे रेलवे की नौकरी छोडकर हिन्दी की पत्रिका “सरस्वती” के संपादक बने और सन 1920 तक उन्होने ये कार्य किया । इस दौरान उन्होने नए शब्दों, अभिव्यक्तियों और संकल्पनाओं को अपनी पत्रिका के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाया और इस प्रकार हिन्दी के प्रारम्भिक दिनों में उसकी संरचना, व्याकरण, शब्द-भंडार और ज्ञानात्मक कोशों को समृद्ध किया । सन 1933 में अपने विराट लोक अभिनंदन समारोह में आत्मनिवेदन में उन्होने अपने भाषा संबंधी विचारों को इन शब्दों में व्यक्त किया – “.......... मैं संशोधन द्वारा लेखों की भाषा अधिक संख्यक पाठकों की समझ में आने लायक कर देता । यह न देखता कि यह शब्द अरबी का है या फारसी का या तुर्की का । देखता सिर्फ यह कि इस शब्द, वाक्य या लेख का आशय अधिकांश पाठक समझ लेंगे या नहीं ।“ किसी भी भाषा के शब्द भंडार को समृद्ध करने के लिए यही सर्वश्रेष्ठ और सर्वमान्य तरीका है । ऑक्सफोर्ड, केंब्रिज, आदि शब्दकोशों के नए संस्करणों में ऐसे शब्दों को बहुत सम्मान और आत्मीयता के साथ शामिल किया जाता है जो अँग्रेजीदाँ समाज में घुलमिल चुके होते हैं । इनको शामिल करने में उन शब्दों की मूल भाषा आदि कोई रुकावट नहीं बनती । आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की भाषा के विकास संबंधी व्यावहारिक अवधारणाएँ जन सामान्य के मनो-मस्तिष्क में पैठ करती गईं और हिन्दी की सामर्थ्य पर अविश्वास करने वाले महापंडितों ने भी उसके महत्व को स्वीकार किया । वर्तमान हिन्दी की संरचना वही है जो आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने निर्धारित की थी । उनके रचे हुए और ग्रहीत किए हुए बहुत से शब्द आज भी प्रचलन में हैं ।

स्वतन्त्रता के पश्चात पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण का सबसे पहला, सबसे महत्वपूर्ण और सर्वमान्य कार्य महान भाषाविद, कोशकार और भारतीय संकृति के प्रखर अध्येता डॉ रघुवीर (30 दिसंबर 1902-14 मई 1963) ने किया था । लगभग पाँच साल के छोटे से कार्यकाल में उन्होने हिन्दी में छह लाख से अधिक शब्द निर्मित करके हिन्दी के शब्द भंडार को समृद्ध किया । उनके बनाए हुए लगभग 80 प्रतिशत शब्द आज हमारे दैनिक जीवन में, प्रशासनिक विधिक, आर्थिक, सांविधानिक, लेखा, बैंकिंग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहित अनेक क्षेत्रों में घुल मिल चुके हैं और बहुतायत से प्रयोग किए जा रहे हैं । शब्द निर्माण के लिए उन्होने संस्कृत की मूल धातुओं में छुपे अर्थों और शक्तियों को जैसे पुनर्जीवित किया और संस्कृत के ही उपसर्गों और प्रत्ययों का उपयोग कर के नए शब्द गढ़े, उन शब्दों को अर्थ और संस्कार दिये । शब्द निर्माण की यह विशुद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है । हालांकि डॉ रघुवीर के संस्कृत के प्रति प्रबल आग्रह के कारण दैनिक उपयोग के कुछ अहिंदी शब्दों के बनाए हुए हिन्दी शब्द उपहास के पात्र बने लेकिन उन गिने चुने शब्दों के कारण डॉ रघुवीर के योगदान का महत्व कम नहीं हो जाता । आज भी शब्दावली निर्माण के क्षेत्र में डॉ रघुवीर के सिद्धांतों का अनुसरण किया जाता है । उनके अतिरिक्त डॉ भोलानाथ तिवारी, बाबूराम सक्सेना, आचार्य रामचन्द्र वर्मा, आचार्य किशोरी दास वाजपेयी, डॉ हरदेव बाहरी, हरी बाबू कंसल, विमलेश कांति वर्मा, बद्रीनाथ कपूर, प्रोफेसर रामप्रकाश सक्सेना आदि सहित अनेक विद्वानों ने अपने अपने तरीके से हिन्दी की शब्द सामर्थ्य, अभिव्यक्ति और ज्ञानात्मक विकास में अपना योगदान दिया है । यह शृंखला अभी थमी नहीं है और अभी भी नई पीढ़ी के विद्वान प्रकारांतर से अपना रचनात्मक योगदान दे रहे हैं ।

लेकिन इन वैयक्तिक प्रयासों की सीमाएं थीं; इनमें एकरूपता भी नहीं थी और इसलिए इनका मानकीकरण कर पाना संभव नहीं था । इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 344 (6) के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारतवर्ष के माननीय राष्ट्रपति ने 27 अप्रेल 1960 को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया था जिसके अंतर्गत शब्दावली निर्माण, प्रशासनिक, कार्य-विधि और ज्ञानात्मक साहित्य का हिन्दी में प्रामाणिक अनुवाद कराना, हिन्दी का प्रचार, पसार तथा विकास के लिए आवश्यक कदम उठाने और हिन्दी के प्रशिक्षण संबंधी निर्देश दिए गए थे । इस आदेश के अनुपालन में सन 1960 में “केंद्रीय हिन्दी निदेशालय” का, सन 1961 में “वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली के स्थायी आयोग” का और सन 1971 में “केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो” गठन किया गया । इनके साथ ही अनेक संस्थाएं और समितियां भी बनाई गई हैं जो हिन्दी के ज्ञानात्मक साहित्य की श्रीवृद्धि करने में निरंतर सक्रिय हैं ।

भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय (माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा विभाग) के अंतर्गत कार्यरत वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग भारतवर्ष के संविधान के अनुच्छेद 351 में वर्णित हिन्दी भाषा के उन्नयन और विकास के लिए दिशा निर्देशों के अनुसरण में विभिन्न विषयों की अँग्रेजी या अन्य विदेशी भाषाओं की शब्दावलियों के लिए हिन्दी में पारिभाषिक शब्द गढ़ने का महत्वपूर्ण कार्य सन 1961 में अपनी स्थापना से ले कर अब तक निरंतर कर रहा है । आयोग के द्वारा ज्ञान के सभी क्षेत्रों की मानक शब्दावलियाँ तैयार कर ली गई हैं और उनको निरंतर अद्यतित किया जा रहा है । इन शब्दावलियों के शब्दों की सबसे बड़ी विशेषता इनकी सरल वर्तनी और स्पष्ट व सीमित अर्थवत्ता है जिसके कारण भाषा का सामान्य ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भी जब किसी अनजान विषय के शब्द को पढ़ता है तो वह उसकी अवधारणा का अनुमान लगा लेता है । जैसे विज्ञान विषय में अँग्रेजी का एक शब्द है “बैरोमीटर”, इस शब्द से अँग्रेजी जानने वाला भी इसकी अवधारणा का अनुमान लगा पाने में कठिनाई अनुभव करेगा किन्तु इसके लिए हिन्दी में बनाए गए शब्द “वायु दाब मापी” से सामान्य हिन्दी जानने वाला कोई भी व्यक्ति इस उपकरण के बारे में, इसके कार्य और उपयोग के बारे में सटीक अनुमान लगा लेगा । हिन्दी माध्यम से ज्ञान के विस्तार और विकास का यह अनंत क्रम निरंतर जारी है ।

शब्दावलियों के निर्माण और विकास के साथ साथ वैज्ञानिक तथा शब्दावली आयोग ने विश्वविद्यालय स्तरीय ग्रंथ निर्माण योजना का सूत्रपात किया है जिसके अंतर्गत हिन्दी ग्रंथ अकादमी प्रभाग, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान के द्वारा चिकित्सा साहित्य की अनेक किताबें हिन्दी में तैयार कराई गई हैं । इनमें ख्यातिलब्ध लेखक-चिकित्सक डॉ (कर्नल) विपिन चतुर्वेदी की दो किताबें “ऊतकी परिचय” और “मानव शरीर की अस्थियाँ” शामिल हैं । इन दोनों किताबों के शीर्षक से ही सामान्य हिन्दी जानने वाले पाठक को किताबों की विषयवस्तु की जानकारी हो जाती है । इन किताबों को लेखक ने “उन भाग्यहीन छात्रों को” समर्पित किया है जो “अँग्रेजी के भार के कारण मेडिकल की पढ़ाई के योग्य नहीं समझे गए” और साथ ही यह आशा भी व्यक्त की है कि “उनकी अगली पीढ़ी को यह पीड़ा न झेलनी पड़े ।“ समर्पण के इन शब्दों में लेखक की वेदना और सहानुभूति झलकती है ।

पहली किताब “ऊतकी परिचय” चिकित्सा विज्ञान के छात्रों के लिए सबसे पहले और सबसे अनिवार्य विषय “कोशिका” के बारे में है । इस विषय पर हिन्दी में यह पहली किताब है । यह किताब दो भागों में है पहला भाग “सामान्य ऊतकी” है जिसमें विभिन्न प्रकार के आधारभूत ऊतकों का परिचय दिया गया है और दूसरे भाग “विशिष्ट ऊतकी” में शरीर के विभिन्न अवयवों के ऊतकों का सचित्र विस्तृत वर्णन है । यह पूरी किताब 18 अध्यायों में विभक्त है । पाठकों की सुविधा के लिए इसमें हिन्दी-अँग्रेजी शब्दावली दी गई है जिससे पाठक सुविधानुसार अँग्रेजी के समानार्थी शब्द खोजकर अँग्रेजी के ग्रन्थों को संदर्भित कर सकते हैं । किताब की भाषा सरल और बोधगम्य है । इसमें वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के द्वारा निर्मित मानक शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे आयोग द्वारा निर्मित मानक शब्दावली व्यावहारिक रूप में जन साधारण तक पहुँचती है । कुल मिला कर यह किताब चिकित्सा शास्त्र के छात्रों के लिए तो उपयोगी है ही किन्तु ज्ञान पिपासु सामान्य पाठकों को भी रोचक और ज्ञानवर्धक लगेगी ।

डॉ विपिन चतुर्वेदी की दूसरी किताब “मानव शरीर की अस्थियाँ” है जिसके नाम से ही ज्ञात हो जाता है कि ये किताब मानव शरीर की हड्डियों के अध्ययन का अवसर देती है । मानव शरीर की रचना का आधार अस्थियाँ होती हैं । इनसे ही शरीर की पूरी संरचना बनती है । अस्थियों के जोड़ से विभिन्न प्रकार की संधियाँ बनती हैं जिनसे शरीर को गति मिलती है । अनेक अस्थियों के नाम पर उनसे जुड़ी मांसपेशियों, रक्त वाहिकाओं और तंत्रिकाओं के नाम होते हैं । इस प्रकार चिकित्सा के छात्रों के लिए अस्थियों का अध्ययन करना अनिवार्य होता है । यह किताब इस अनिवार्यता की पूर्ति करती है । इसमें हिन्दी के पारिभाषिक शब्दों के साथ उनके अँग्रेजी पर्याय कोष्ठक में दिये गए हैं जिससे अँग्रेजी के संदर्भ ग्रन्थों को संदर्भित करने में बहुत सहायता मिलती है । डॉ विपिन चतुर्वेदी शरीर रचना विज्ञान के प्राध्यापक हैं और इस विषय पर उनकी अच्छी पकड़ है जिसे उन्होने इस किताब में साबित भी किया है ।

इन दोनों किताबों में हिन्दी की मानक शब्दावली का प्रयोग किया गया है और साथ ही अँग्रेजी के शब्द कोष्ठक में दिये गए हैं । इससे हिन्दी और अँग्रेजी की शब्दावलियों के बीच तुलना करने का अवसर बनता है । कोई भी सामान्य पाठक इस नतीजे पर बहुत जल्दी पहुँच सकता है कि अँग्रेजी के शब्द अर्थ, वर्तनी और उच्चारण की दृष्टि से हिन्दी के शब्दों की अपेक्षा बहुत कठिन हैं । कुछ शब्दों के उदाहरण दृष्टव्य हैं : कर्ण गुहा (auditory meatus); अश्रु अस्थि (lacrimal bone); ऊर्ध्व हनु (maxilla); अधोहनु (mandiable); मेरुदंड (vertebral column) आदि । इनको देख कर ही स्पष्ट परिलक्षित होता है कि हिन्दी के शब्द अपना अर्थ स्वयं स्पष्ट कर रहे हैं और अँग्रेजी के शब्दों से न तो अर्थ स्पष्ट होता है और न ही उनकी वर्तनी और उच्चारण सरल हैं । हिन्दी को कठिन मानने वालों को अपने पूर्वाग्रह छोड़कर दोनों भाषाओं के शब्दों की यह तुलना देखना चाहिए ।

दोनों किताबों के अंत में विषय से संबन्धित हिन्दी-अँग्रेजी शब्दावली दी गई है । यह शब्दावली अकारादि क्रम में नहीं है जिससे ये असुविधाजनक है । अगले संस्करण में इस त्रुटि का परिष्कार होना अपेक्षित है । दोनों किताबों का मूल्य उनकी उपयोगिता के हिसाब से कम ही है । यह बात बड़ी पीड़ा दायक है कि इन महत्वपूर्ण किताबों की केवल 500-500 प्रतियाँ ही मुद्रित हुई हैं । हिन्दी में सृजित ज्ञानात्मक साहित्य को अनदेखा करने की व्यवस्थित कुचेष्टाओं के चलते इन प्रतियों की अधिकांश संख्या प्रकाशक उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के गोदाम में ही रखी हों तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए । हमारे देश में 500 से अधिक तो चिकित्सा महाविद्यालय होंगे और हर साल कम से कम 50 हज़ार डॉक्टर बनते होंगे किन्तु हिन्दी में लिखी गई अपने विषय की इन पहली किताबों को अनदेखा किए जाने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता । बहरहाल, ये किताबें उन उद्देश्यों की पूर्ति करती हैं जिनके लिए इनको लिखा गया है । अब यह समाज का दायित्व है कि वह लेखक-प्रकाशक की भावनाओं, प्रयासों और परिश्रम को कितना मान देता है -? और साथ ही उसके भीतर अपनी भाषा और अपनी अभिव्यक्ति के उन्नयन के लिए कितनी ललक, कितना उत्साह है ?

डॉ विपिन चतुर्वेदी की किताबों से हटकर बालेंदु शर्मा दाधीच की किताब “तकनीकी सुलझनें” है । बालेंदु शर्मा दाधीच सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट मीडिया के क्षेत्र में सितारा हैसियत रखते हैं । वे स्वयं को भाषायी पृष्ठभूमि जनित प्रौद्योगिकीय वंचितता और आंकिक विभाजन जैसी अन्यायपूर्ण स्थितियों के विरुद्ध जारी आंदोलन का स्वयंसेवक मानते हैं । यह एक कड़वा सच है कि भारत में तकनीकी शिक्षा का माध्यम अँग्रेजी होने के कारण बहुत से प्रतिभाशाली छात्र पढ़ नहीं सके और समाज उनकी मेधा से वंचित रह गया । डॉ विपिन चतुर्वेदी की भांति बालेंदु शर्मा दाधीच के हृदय में भी ऐसे ही वंचित रह गए लोगों के प्रति सहानुभूति है और वे इस परिस्थिति के विरुद्ध अपना पूर्ण रचनात्मक योगदान दे रहे हैं । वे अत्याधुनिक संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिख रहे हैं । उन्होने अनेक निःशुल्क हिन्दी सोफ्टवेयरों का विकास करके उन्हें जनसाधारण के लिए उपलब्ध कराया है । उनके महत्वपूर्ण लेखों के संकलन की यह किताब कई अर्थों में भिन्न है । पहली बात तो यही कि इस किताब का प्रकाशन उनके निजी प्रयासों का प्रतिफलन है । कम्प्युटर, इंटरनेट, बैंकिंग, स्मार्टफोन, चोरी गए लैपटॉप की तलाश, आदि जैसे रोज़मर्रा के तीस विषयों पर आम पाठक को उसकी ही बोलचाल की साधारण भाषा में जानकारी उपलब्ध कराती है ।

आज के समय में इंटरनेट हर घर की आम ज़रूरत बन चुका है । इंटरनेट के द्वारा जहां एक ओर सारी दुनिया का ज्ञान और सुविधाएं सिमट कर हमारे पास आ गईं है वहीं कई तरह की नई नई समस्याओं ने भी जकड़ लिया है । घर पर अभिभावकों की अनुपस्थिति में कच्ची उम्र के बच्चे इंटरनेट पर सहज उपलब्ध अश्लील वेबसाईटें देख कर बिगड़ रहे हैं । यह भी संभव है कि किसी के ईमेल अकाउंट को कोई चोरी छिपे खोलकर उसे परेशानी में डाल दे या खुफिया एजेंसियां किसी के अकाउंट को हैक करके उसमें से व्यक्तिगत जानकारियाँ चुरा कर उनका दुरुपयोग कर सकती हैं । गुमनाम या अज्ञात नाम से आया धोखे या धमकी आदि का ईमेल किसी भी व्यक्ति की नींद उड़ा देने के लिए पर्याप्त है । क्रेडिट कार्ड का क्लोन बना कर उसका दुरुपयोग होना आम बात हो गई है । किसी भी तरह के साइबर क्राइम का शिकार होने के बाद कोई भी व्यक्ति सिर पीटने के अलावा कुछ नहीं कर पाता । “तकनीकी सुलझनें” में ऐसी ही समस्याओं पर चिंता प्रकट करते हुए उन के सरल व सटीक समाधान सुझाए गए हैं । इनके अतिरिक्त पेन ड्राइव के स्थान पर गूगल ड्राइव का इस्तेमाल, गूगल में खोज करने का सही तरीका, इंटरनेट पर जायज़ तरीकों से धन कमाने के तरीके, अपने इनबॉक्स में कोई बहुत पुराना मेल तलाश करने का तरीका, इंटरनेट का उपयोग करके निःशुल्क विडियो कॉल करने का तरीका, टेबलेट और स्मार्टफोन के एप्स को विंडोज़ कम्प्युटर पर चलाने के तरीके, कम्प्युटर से फ़ैक्स भेजने और प्राप्त करने का तरीका, कम्प्युटर को रिमाइंडर की तरह उपयोग करने का तरीका, डाऊनलोड करते समय होने वाली समस्याओं का समाधान, पुराने सोफ्टवेयरों को नए ओपेरेटिंग सिस्टम में चलाने का तरीका, कहीं से भी अपने कम्प्युटर को एक्सेस करने का तरीका, चोरी गए या खोए लेपटाप का पता लगाने का तरीका, धीमे पड़ गए कम्प्युटर को खोई हुई या डिलीट हुई फाइल को फिर से रिकवर करने का तरीका, कम्प्युटर को वाइरस से मुक्त रखने के लिए निःशुल्क एंटी-वाइरस इंस्टाल करने का तरीका और अपने टेलीविज़न सेट को कम्प्युटर का मॉनिटर बनाने का तरीका बहुत रोचक और सामान्य भाषा में बताया गया है । घर में एक से अधिक कम्प्युटर होने पर उनका छोटा सा नेटवर्क बनाने की उपयोगिता और उसको बनाने की विधि को बहुत विस्तार से समझाया गया है । आजकल सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक बहुत प्रचलन में है । फेसबुक के अकाउंट में भी असामाजिक तत्व घुसपैठ करके व्यक्तिगत और गोपनीय आंकड़े चुरा लेते हैं और उनका दुरुपयोग करते हैं । ऐसी स्थितियों से बचने के उपाय भी इस किताब में दिये गए हैं । कम्प्युटर खराब होने पर मेकेनिक को बुलाने से पहले की जाने वाली जांच, सस्ते दामों में मिलने वाले जेनुइन सोफ्टवेयरों की प्रामाणिक जानकारी से इस किताब की उपादेयता बढ़ गई है । अपनी सहजता और उपयोगिता के कारण यह किताब अपने ध्येय वाक्य ”रहस्यावरन से मुक्त : सरल, सार्थक, सुरक्षितऔर लाभप्रद कम्प्यूटिंग” को चरितार्थ करती है । कुल मिला कर कम्प्युटर, इंटरनेट, लेपटाप, टेबलेट, एटीएम, क्रेडिट कार्ड, स्मार्ट फोन आदि जैसी आधुनिक सुविधाओं और तकनीकों का उपयोग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को यह किताब अनिवार्य रूप से पढ़ना चाहिए और इसे अपने संग्रह में रखना चाहिए । इस पुस्तक का ई-बुक संस्करण भी उपलब्ध है जिसे वैबसाइट http://www.eprakashak.com से प्राप्त किया जा सकता है ।

डॉ विपिन चतुर्वेदी की दोनों किताबें और बालेंदु शर्मा दाधीच की किताब हिन्दी के ज्ञानात्मक साहित्य को तीन नई दृष्टियाँ और तीन नए आयाम देती हैं । दोनों लेखकों की भाषा की तुलना करने पर हम पाते हैं कि डॉ चतुर्वेदी की किताबों की भाषा शास्त्रीय, व्याकरण सम्मत, मानक और इसी कारण कुछ क्लिष्ट सी लगती है जबकि बालेंदु शर्मा दाधीच की किताब में आम बोलचाल की ऐसी भाषा प्रयोग की गई है जिसमें अँग्रेजी के उन शब्दों की बहुतायत है जो विषयवस्तु के संदर्भ में जनमानस में गहरी पैठ बना चुके हैं । उन्होने पारिभाषिक शब्दावली पर अधिक ज़ोर नहीं दिया है । इससे उनकी भाषा बोझिल नहीं हुई और उसमें सहज प्रवाह बना रहा । वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग भी यदि ज्ञान के नए क्षेत्रों में विकसित हो रही अवधारणाओं के लिए नए शब्दों के गढ़ने की अनिवार्यता को समाप्त कर, प्रचलित शब्दों की वर्तनी, रूप आदि का मानकीकरण करके उन्हें हिन्दी के संस्कार देने का काम करे तो हिन्दी का शब्द भंडार तेज़ी से बढ़ेगा और ज्ञानात्मक साहित्य का सृजन भी तेज़ी से होगा ।

**********

कृति : “ऊतकी परिचय”

लेखक : डॉ विपिन चतुर्वेदी

प्रकाशक : उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

आईएसबीएन : 978-81-89989-29-3

मूल्य : 230 रु.

कृति : “मानव शरीर की अस्थियाँ”

लेखक : डॉ विपिन चतुर्वेदी

प्रकाशक : उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

आईएसबीएन : 978-93-82175-00-1

मूल्य : 310 रु.

कृति : “तकनीकी सुलझनें”

लेखक : बालेंदु शर्मा दाधीच

प्रकाशक : ईप्रकाशक.कॉम,

504 पार्क रॉयल, जीएच-80,

सैक्टर-56, गुड़गाँव पिन-122011

मूल्य : 235 रु.

समीक्षक : आनंदकृष्ण

IV/2, अरेरा टेलीफ़ोन एक्सचेंज परिसर

अरेरा हिल्स, भोपाल (म. प्र.)

पिन : 462001

मोबाइल : 9425800818

ई-मेल : aanandkrishan@gmail.com

**************

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: पुस्तक समीक्षा : हिन्दी में ज्ञानात्मक साहित्य : तीन किताबें, तीन दृष्टियाँ, तीन आयाम
पुस्तक समीक्षा : हिन्दी में ज्ञानात्मक साहित्य : तीन किताबें, तीन दृष्टियाँ, तीन आयाम
http://lh6.ggpht.com/-uEDGHzX4BNY/U6p8phNFBgI/AAAAAAAAZA4/oC13joQmYsc/clip_image002_thumb%25255B1%25255D.jpg?imgmax=800
http://lh6.ggpht.com/-uEDGHzX4BNY/U6p8phNFBgI/AAAAAAAAZA4/oC13joQmYsc/s72-c/clip_image002_thumb%25255B1%25255D.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/06/blog-post_2082.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/06/blog-post_2082.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content