हनुमान मुक्त के कुछ हास्य-व्यंग्य

SHARE:

बेबी का आइटम डांस मैं ऑफिस से घर लौटा ही था कि मुझे कमरे से बहुत तेज आवाज में गाना सुनाई दिया। चिकनी चमेली, छुपकर अकेली, पव्वा चढ़ा के आई....

बेबी का आइटम डांस

मैं ऑफिस से घर लौटा ही था कि मुझे कमरे से बहुत तेज आवाज में गाना सुनाई दिया। चिकनी चमेली, छुपकर अकेली, पव्वा चढ़ा के आई...।
मैं असमंजस में पड़ गया। आज बिन बरसात के मेंढक कहाँ से आ गया। घर में कोई छोटा-मोटा कार्यक्रम भी नहीं है। मैंने पत्नी से पूछा, ‘‘इतनी तेज आवाज में गाना क्यों चला रखा है?’’
पत्नी बड़े गर्व से बोली, ‘‘तुम्हें नहीं पता? अपनी बेबी का मेम ने डांस काम्पीटीशन के लिए सलेक्शन किया है। अगले हफ्ते स्कूल के होने वाले एन्युअल फंक्शन में डांस कम्पीटीशन होगा। बेबी उसी की तैयारी कर रही है।’’
यह कहते हुए, वे मेरी ओर देखने लगी। जिस बेबी की माँ होने का गर्व उनके चेहरे पर था। अब वे उसे मेरे चेहरे पर तलाशने लगी। काफी तलाशने के बाद भी उनकी हसरत पूरी नहीं हुई। वे निराश हो गई।
मेरे चेहरे पर गर्व के स्थान पर आक्रोश झलकने लगा, कन्ट्रोल करने के बाद भी वह प्रकट हो ही रहा था। मैं बोला - ‘‘इतनी छोटी बेबी, जिसे चिकनी, चमेली, अकेली और पव्वा का अर्थ तक मालूम नहीं है। उससे ऐसे बे हया गानों पर डांस करवाना कहां तक ठीक है। इसके अलावा भी तो बहुत से गाने है जिन पर डांस किया जा सकता है।’’
क्यों? इसमें क्या खराबी है। टी.वी. पर आता है, जब तो ऐसे आँखें गड़ा-गड़ा कर देखते हो और अब बेबी के डांस करने में खराबी दिख रही है। पत्नी ने तमककर कहा।
उन की आवाज के सामने मेरी आवाज दब गई, वोल्यूम कम हो गया। मैं बोला, ‘‘्ऐसी बात नहीं है। तुम्हे पता है इस गाने में कैसे अश्लील हाव-भाव है। ऐसे हाव-भाव हमारी बेबी करती अच्छी लगेगी क्या? वैसे भी वह अभी इतनी छोटी है कि उसे इन हाव-भावों का अर्थ तक मालूम नहीं।’’
‘‘तो यदि अपनी बेवी बड़ी होती और उसे इन सबका अर्थ मालूम होता तो ऐसा करने में आपको कोई परहेज नहीं होता’’, वे बोली।
मुझे कोई जबाव नहीं सूझ रहा था, मेरी परेशानी को वे समझते हुए बोली। अपनी बेबी की उम्र अभी आठ-दस साल है, इसीलिए मेम ने इस गाने पर इसका सलेक्शन किया है। बड़ी लड़कियों से ऐसे डांस करवाना स्कूल के कांस्टीट््यूशन में नहीं है। उनकी मेम मुझसे फोन पर कह रही थी कि अपनी बेवी ही चिकनी चमेली के किरदार में सबसे अधिक फिट बैठती है। उसके नाक नक्श, चाल-ढाल, हाव-भाव काफी कुछ कैट से मिलते है।
चाल-ढाल, हाव-भाव की बात सुनकर मुझे झटका लगा, अभी से ही यह कैट के पद चिन्हों पर चलने लगी है तो पता नहीं आगे क्या होगा? लेकिन इस झटके को मैं स्वयं सह गया। उसका पता पत्नी को नहीं होने दिया।
पत्नी को लगा, मैं उनकी बातों से प्रभावित हो गया हूँ, बेबी का इतनी सारी लड़कियों में सलेक्शन मेरे लिए भी गर्व का विषय ही होगा।
वे बोली, तुम तो जानते ही हो ऐसे आइटम डांस तभी अच्छे लगते है, जब डांस के साथ ड्रेस लाइटिंग-वाइटिंग सभी कुछ वैसे ही हो। जैसे फिल्म में होते हैं।
ऐसा करो आप बाजार जाओ, साथ में डीवीडी के ऊपर लगा कवर ले जाना और बिल्कुल बेबी के नाप की वैसी की वैसी ड्रेस टेलर के यहां सिलने को डाल आना। इसके सिलने में पांच-सात दिन तो लग ही जाएंगे। लेट हो जाएंगे तो टाइम पर नहीं सिल पाएंगे।
मैंने कहा- तुम्हारा दिमाग खराब हो गया वैसे ही मैं अपनी बेवी के ऐसे आइटम डांस करने के खिलाफ हूँ। एक तुम हो जो जबरदस्ती अपनी बेटी को ऐसे डांस करने को मोटिवेट कर रही हो।
जानती हो, ऐसी ड्रेस कितने में बनेगी? तुम्हारा क्या? तुमने तो मुंह हिला दिया।
मेरा इतना कहते ही उनके अंदर भरा लावा  एक साथ बाहर आ गया।                    
मैं जानती हूँ, तुम्हारे साथ शादी करके मैंने अपनी जिन्दगी बर्बाद कर ली है। आज मैं जो भी हूँ उसके पूरे जिम्मेदार तुम ही हो। तुम्हारे इन्हीं दकियानूसी विचारों ने मुझे आगे नहीं बढ़ने दिया। मैं भी डांस कॉम्पीटीशन में फर्स्ट आती रही हूँ, तुम ने मुझे हमेशा हरिशमेंट किया है। मेरा दोहन किया।
मैंने भी सोच लिया है कि अपनी बेबी पर तुम्हारी घटिया सोच का असर नहीं होने दूंगी। उसे आगे बढ़ाऊंगी। इस रास्ते में कोई भी रोड़ा आया तो उसे उठाकर फेंक दूंगी।
मैं सबकुछ समझ गया था। अपने विचारों का यहां पर कोई असर होने वाला नहीं, ज्यादा कहूंगा तो बाहर का रास्ता देखना पड़ेगा। फिर भी समझाइश के मूड में मैंने कहा, ठीक है, तुम कहोगी वैसा ही करेंगे। लेकिन एक बार ठण्डे दिमाग से बेबी की उम्र, गाने के बोल और उसके होने वाले प्रभाव पर थोड़ा विचार अवश्य कर लो।
बेवी की क्लास के लड़के इसे चिकनी, चमेली, केट इत्यादि कहना शुरू कर सकते हैं। इसके अलावा उसको देखकर सीटी बजाना, आंहे भरना भी शुरू कर सकते है। क्या ऐसा बेबी को और तुम्हें अच्छा लगेगा।
क्यों? क्या खराबी है इसमें?
लड़कियों के लिए तो यह सब गर्व की बात है। खैर छोड़ो, तुम क्या जानो ये सब। जैसा खानदान वैसे विचार।
आजकल टीवी पर कितने छोटे-छोटे बच्चे कैसा-कैसा डांस करते हैं? उनके मां-बाप उनके साथ कितनी मेहनत करते हैं। कभी सोचा है? हमेशा हर काम में नुक्ताचीनी करते रहते हो। वे पूरी तरह मुझ पर हावी होती हुई बोली।
यह सब टीवी का ही तो प्रभाव है कि आजकल आँखों से हया बिल्कुल गायब हो गई है, एक मां अपनी अबोध लड़की को ऐसे आइटम डांस करवा कर गर्व महसूस कर रही है। जिसे देखने तक में शर्म महसूस होती है। हमेशा टीवी के आगे बैठकर नित नए बदन उघाडू फैशन को अपनाकर स्वयं को मॉडर्न समझती हो।
क्या यही तुम्हारी संस्कृति है? इस टीवी संस्कृति का ही प्रभाव है कि घरों से हमारी वैदिक परम्परा और संस्कृति का पूरी तरह लोप हो चुका है।
मेरे इस प्रकार भाषण देने का प्रभाव यह पड़ा कि अब तक वे जो मुझ जैसे दकियानूसी पति को चुपचाप सहती आ रही थी अब उनकी सहन शक्ति जवाब दे गई। वे आँखों में आँसू लाकर मुझ पर उबल पड़ी।
अब मेरे समझ में आया है कि मेरे कपड़ो को देखकर तुम्हें जलन क्यों होती है? जब भी ब्यूटीपार्लर जाती है, हमेशा नाक-भौं क्यों सिकोड़ने लगते हो। मैं सोचती थी समझ आ जाएगी। लेकिन अब समझ आया।
खुद की तो सोसायटी में इज्जत है नहीं। मैंने थोड़ी बहुत बना रखी  है, उससे तुम्हें जलन होती है। टीवी देखती हूँ तो जलते हो, कुछ पहनती हूँ तो जलते हो। सुंदर दिखती हूँ तो जलते हो। मेरे तो करम ही फूट गए।
खुद ने ऐसे भुक्खड़ खानदान में जन्म लिया है, जिसने कभी टीवी देखा तक नहीं। इसमें मेरा क्या कसूर। मैं साफ-साफ कहे देती हूँ। मेरे मामले में तुम टांग अड़ाना बन्द कर दो, नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।
झूट मूठ रोने का नाटक करते हुए उन्होंने मुझे धमकी देकर सावचेत कर दिया कि भविष्य में मैं अपनी औकात में ही रहूं। रोड़ा बनने की कोशिश की तो उठाकर फेंका भी जा सकता हूँ।
त्रिया चरित्र के आगे मैंने अपने हथियार डाल दिए। कहा, -देवी अपना रौद्र रुप संभालों। तुम्हारी सहेली और उनके हसबैण्ड आने वाले है। क्या उनके सामने अपनी किरकिरी कराओगी?
उन्हें जैसे कुछ याद आया, बोली, ‘‘तुम बाजार से बेवी को चिकनी चमेली वाली ड्रेस सिला आओ। मैं मेहमानों के आतिथ्य की तैयारी करती हूँ। मैं चुपचाप हमेशा की तरह आज्ञा पालन के लिए निकल गया।’’

०००००००००००००००००००

 

 

विषय विशेषज्ञ और छात्र


इस सत्र की कक्षा का पहला दिन था। हिन्दी साहित्य का कालांश था। मैंने छात्रों से अपनी-अपनी पुस्तक ‘‘अंतरा’’ निकलाने को कहा। छात्रों ने पुस्तक निकाल ली।
मैं कुछ कहता, उससे पहले ही छात्र पुस्तक के कवर पृष्ठ को निहारने लगे। एक छात्र इससे भी आगे बढ़ गया। वह मुख्य कवर पृष्ठ के स्थान पर सीधे बैक पृष्ठ पर आ गया। उसकी निगाहें बैक पृष्ठ पर अटक गई। उसको ऐसा करते देख मेरे चेहरे पर हल्के से पसीने चूने लगे। बैक कवर पृष्ठ पर ऐसा कुछ लिखा हुआ है, इसको मेरा अवचेतन मस्तिष्क पहले भांप चुका था।
मेरी निगाहें छात्र के चेहरे पर अटक गई। वह उस पृष्ठ को पढ़ने लगा। चेहरे पर अजीब-अजीब रंग आने लगे। मैं समझ गया आज पहले दिन ही अपना भांडा फूटना है। तिल्ली में कितना तेल है, अभी सामने आता है।
मेरी स्थिति बड़ी विचित्र है। शुरू से विज्ञान विषय का छात्र रहा हूँ, गणित में अधिस्नातक हूँ। नौकरी के दौरान वन वीक सीरिज पढ़कर हिन्दी में एम.ए. कर लिया। सरकार को लगा कि मैं हिन्दी विषय का विशेषज्ञ बन गया हूँ। उसने मेरा प्रमोशन कर दिया। प्राध्यापक बना दिया। प्रमोशन लेना जरूरी था, अन्यथा जो वेतन मिल रहा था उसके भी कटने का खतरा था। विज्ञान का विद्यार्थी हिन्दी का प्राध्यापक बन गया। मेरी स्थिति मैं ही जानता था। जैसे-तैसे ‘पास-बुक्स’ से पढ़कर छात्रों के सामने अपनी इज्जत बना रखी थी। काठ की हांडी को बार-बार चढ़ाने की हिमाकत कर रहा था। सोच रहा था दस-पन्द्रह साल निकलने में क्या लगता है, निकल जाएंगे। फिर तो प्रिसिंपल बन ही जाऊंगा, पढ़ाने- लिखाने का खतरा स्वमेव ही टाल जाएगा।
अपने नए प्रमोशन का बाट जोह रहा था। प्राध्यापक बनने के बाद मैं जब भी कक्षा में घुसता, मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना अवश्य करता कि छात्र अपनी पाठ्यपुस्तक का कोई प्रश्न नहीं पूछे, इसके इतर जरूर पूछे जिससे आज का दिन निकल जाए। अधिकतर दो कालांश लेने होते थे। इसलिए प्रार्थना भी दो ही बार करता था। कभी-कभी भुलावा देकर या काम का बहाना बनाकर कक्षा छोड़ देता तो उस दिन प्रार्थना की नागा रह जाती थी।
ईश्वर ने मुझे कभी निराश नहीं किया। मेरी प्रार्थना का प्रतिफल दिया। मैं हमेशा छात्रों को संतुष्ट करने में सफल रहा।
मुझे पढ़ाने का करीब पच्चीस वर्षों का अनुभव है, आज तक कभी किसी छात्र ने पुस्तक के मुख पृष्ठ और बैक पृष्ठ से प्रश्न करना तो दूर, उस पर क्या लिखा है? क्या छपा है? यह तक देखना उचित नहीं समझा। इसी कारण मैंने कभी इस ओर ध्यान भी नहीं दिया।
वैसे भी सत्र के पहले दिन काम के प्रश्न होने की संभावना कम ही रहती है। ऐसे ही प्रश्न आते हैं, जिनका मैं बहुत अच्छी तरह उत्तर दे सकता हूँ। लेकिन आज अनर्थ होने जा रहा था। मैं कक्षा में आने से पहले ईश्वर से प्रार्थना करना भी भूल गया था। पहले ग्रीष्मावकाश था, छुट्टियों में ईश्वर को परेशान करने की आवश्यकता नहीं थी। इसलिए प्रार्थना का अभ्यास खत्म हो गया था।
ईश्वर तो ईश्वर है। सर्वशक्तिमान। उसे शायद यह सब गंवारा नहीं। वह उस छात्र को हिन्दी विषय का ही नहीं, अपितु राजनीति विज्ञान का प्रश्न लेकर खड़ा करने वाला था। छात्र को देख-देख कर मेरे चेहरे पर बारह बज रहे थे।
छात्र अपने स्थान पर खड़ा हो गया। पुस्तक  को मेरे पास लाकर बैक पृष्ठ दिखाता हुआ बोला, ‘‘सर, ये पुस्तक के पीछे जो लिखा हुआ है ‘‘संविधान’’ क्या यही हमारे भारत का संविधान है?’’
मैंने पुस्तक को देखा, पुस्तक के पीछे लिखा हुआ था ‘‘भारत का संविधान’’ उसके नीचे अंकित था उद्देशिका, उसके बाद अन्य कुछ।
मैंने कहा, ‘‘यह हमारे भारत का संविधान नहीं है, सिर्फ उद्देशिका है’’
‘‘इसका मतलब क्या होता है सर?’’
‘‘यार इसका मतलब है कि संविधान लागू करने का उद्देश्य क्या है?’’ ‘‘तो क्या है सर, संविधान लागू करने का उद्देश्य?’’ दिखता नहीं है क्या? साफ-साफ मोटे-मोटे अक्षरों मे ंलिखा है, पढ़ले। ’’
‘‘पढ़ तो लिया, लेकिन समझ में नहीं आ रहा। सर, यह हमारे संविधान का उद्देश्य हो सकता है।’’ ‘‘क्या समझ नहीं आ रहा है?’’ वैसे ही बड़बड़ कर रहा है। चल अपने स्थान पर जाकर खड़ा हो और जोर से पढ़ना शुरू कर दे। छात्र खड़ा हो गया। उसने पढ़ना शुरू किया।
‘’भारत का संविधान। उद्देशिका। हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी,  पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की क्षमता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता, बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर १९४९ ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी)’ को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’’ छात्र चुप हो गया। जो लिखा था, उसने पढ़ दिया।
‘‘अब बताओ सर, यह प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य का मतलब क्या है?’’
‘‘इतना भी नहीं जानता। कैसे बारहवीं में आ गया। बैठ जा, समय खराब मत कर।’’ मैंने छात्र को धमकाकर अपनी बला टालने का प्रयास किया। शायद छात्र का अबसे पहले भी ऐसे सर से वास्ता पड़ चुका था। वह बोला, ‘‘सर टरकाओ मत, मैं सब समझता हूँ। आप शांति से, जो मैं पूछ रहा हूँ उसका उत्तर दो।’’ छात्र के इस प्रकार सीना जोरी करने से मैं घबरा गया, किन्तु फिर संभल कर बोला, ‘‘बेटे, जैसा आज का भारत तुम देख रहे हो, वह प्रभुत्त्व सम्पन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य ही है।’’ इसे ऐसा बनाने के लिए स्वतंत्रता के बाद से प्रयास किए जा रहे हैं।
‘‘तो फिर यह समाजवादी पार्टी क्या है?’’
‘‘यार यह एक राजनैतिक पार्टी है।’’
‘‘तो ये असम में, कश्मीर में जो दंगे हो रहे हैं, वे क्या है?’’ ‘‘ये भारत को पंथ निरपेक्ष बनाने के लिए हो रहे है, तुम्हें पता नहीं है। स्वतंत्रता के बाद विभाजन के समय खूब दंगे हुए थे। ये सब पंथनिरपेक्ष बनाने की सीढ़ी है।’’ मैं जैसे-तैसे छात्र को संतुष्ट करने में लगा हुआ था लेकिन छात्र कुछ अधिक ही असंतुष्ट लग रहा था। बोला, ‘‘अच्छा, ये बताओ इसे लोकतंत्रात्मक गणराज्य कैसे बनाया जा रहा है?’’
‘‘प्रत्येक छोटी से लेकर बड़ी संस्था में हर साल, दो साल, पाँच साल में चुनाव करवाकर जनता को जनता में से ही अपना रक्षक या भक्षक चुनने का अधिकार देना लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाना है।’’ मैंने कहा। छात्र और भी कुछ पूछने की फिराक में था, मैं नहीं चाहता था कि वह कुछ पूछे।
मैं अब तक तो जैसे-तैसे उसके प्रश्नें के उत्तर देकर अपना काम चल रहा था लेकिन आगे न्याय, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, अवसर की समता, गरिमा, राष्ट्र की एकता, अखण्डता, बंधुता आदि का मतलब समझाने की मुझमें हिम्मत नहीं थी।
मैं मन ही मन ईश्वर को याद करने लगा, अपनी भूल के लिए माफी मांगने लगा। आज अपनी इज्जत दांव पर लगी है, इसे बचा ले। तुमने पूर्व में भी द्रोपदी की इज्जत, गज की जान बचाई थी। मैं भी आपका उतना ही बड़ा भक्त हूँ। ईश्वर तो दयालु है, उसे तुरन्त दया आ गई। स्कूल की घड़ी खराब हो गई। चपरासी ने अगले कालांश का घंटा बजा दिया। मेरी जान में जान आ गई। 
मैंने उठते ही छात्रों से यह कहते हुए विदा ली, अगली बात कल करेंगे। लेकिन तुम लोग फालतू बातों के स्थान पर कोर्स की बातों पर ज्यादा ध्यान दो। परीक्षा में कोर्स में से प्रश्न पूछे जाएंगे, मुख पृष्ठ या बैक पृष्ठ से नहीं। यह कहते हुए मैं कक्षा से बाहर निकल गया। मैंने चैन की सांस ली।

०००००००००००००००००

 

 

राम सिंह की मौत


सारे नगर में खबर फैल गई कि राष्ट्रपति अवार्ड प्राप्त रामसिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। खबर सुनकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि जिसे राष्ट्रपति अवार्ड प्राप्त हो चुका है, उस पर हाथ डालने की पुलिस ने हिम्मत कैसे दिखा दी? खबर से उन लोगों में भी दहशत फैल गई जिन्हें पूर्व में अवार्ड प्राप्त हो चुका था और वे भी दहशत में आ गए जो स्वयं के प्रोटेक्शन के लिए अवार्ड लेने की जुगत बैठा रहे थे।
नगर के अच्छे व बुरे आदमी सभी घबरा गए। अच्छे इसलिए कि जिनको सरकार ने प्रमाण-पत्र देकर अच्छा व्यक्ति घोषित कर रखा है उसे ही पुलिस ने नहीं बख्शा तो बुरे आदमी जिन पर अभी किसी का वरदहस्त नहीं है, वे कैसे महफूज रह सकते हैं। आम व्यक्ति जो अच्छी व बुरी दोनों ही श्रेणियों में नहीं आता है वह सबसे अधिक भयभीत था। जब पुलिस अपने हमजोलियों के साथ ही ऐसा व्यवहार कर सकती है तो वे किस खेत की मूली हैं?
पुलिस द्वारा गिरफ्तारी कोई सामान्य स्थिति में नहीं की गई। सारी परिस्थिति को नाटकीय बनाया गया। रामसिंह को नौकरी दिलाने से लेकर अवार्ड दिलाने तक में उसका पूरा योगदान रहा। रामसिंह का भी पीठ पीछा है, उसने कभी किसी से वादा-खिलाफी नहीं की। सबका हिस्सा सही समय पर पहुंचाता रहा है। जब ऊपर तक वह टाइम से पहुंचाता है तो नीचे वालों से भी टाइम से मिलने की अपेक्षा तो करनी ही पड़ती है, इसमें उसका क्या दोष?
नीचे वाले समय पर मंथली नहीं पहुंचाएंगे तो सारा सिस्टम ही बिगड़ जाएगा। उसने सिस्टम को बिगड़ने से बचाने के लिए थोड़ी सख्ती क्या बरती कि आ गया झपेटे में। बेचारा रामसिंह।
उसे जब राष्ट्रपति अवार्ड मिला था तब लोग लिफाफों से लेकर अटेचियों में भर-भरकर बधाई देकर गए थे। तब से लोगों को बधाई देने की और उसे लेने की आदत पड़ गई। दोनों हाथों से तालियां बज रही थी। इस हाथ ले उस हाथ दे, वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ हो रही थी। परिणामतः रामसिंह के पास अरबों की संख्या में बधाईयां हो गई। इसी का परिणाम था कि लोग ईर्ष्या से जल उठे और पुलिस को भरमा दिया। एक ईमानदार व्यक्ति सरकार की, गलत नीतियों की भेंट चढ़ गया।
मैं रामसिंह का सबसे बड़ा शुभचिंतक हूं। रामसिंह ने मेरे छोटे से लेकर बड़े तक बहुत से काम करवाए हैं। मैं रामसिंह को इस तरह बदनाम होते नहीं देख सकता था। मैंने अखबार में रामसिंह की तारीफ छपवा दी। तारीफ का मजमून मैंने नगर के जाने-माने विद्वान खण्डेलवाल साहब से तैयार करवाया था। मैं जानता था कि बारह साल बाद घूरे के दिन भी फिरते हैं। रामसिंह के हालात भी हमेशा एक से नहीं रहेंगे।
सुबह अखबार में छपा, मैं रामसिंह से मिलने थाने की ओर चल पड़ा। रास्ते में पुलिस की गाड़ी तेजी से थाने की ओर से आती हुई दिखाई दी। पीछे-पीछे एम्बुलेंस आ रही थी। मैं तेजी से सड़क के एक ओर हटा। पास ही चाय की दुकान पर बैठे हरी काका से मैंने पूछा, ‘काका क्या बात है? पुलिस इतनी तेजी से कहां जा रही है।’ काका साश्चर्य मेरी ओर देखकर बोले, ‘रामसिंह को अचानक दिल का दौरा पड़ा है, उसे अस्पताल ले गए हैं।’
मैंने कहा, ‘लेकिन अचानक ऐसा क्या हो गया?’
काका बोले, ‘तुम्हे नहीं पता, तुमने जो तारीफ आज के अखबार में छपवाई है, उसके कारण रामसिंह को दिल का दौरा पड़ा है।’
‘काका मेरे बात समझ में नहीं आई, कि रामसिंह को तारीफ के कारण दौरा पड़ा है।’
काका बोले, ‘अखबार में उसकी तारीफ को पढ़कर एक पुलिस वाले ने जाकर रामसिंह से कहा, रामसिंह, अखबार में तुम्हारी तारीफ छपी है।’ रामसिंह इसे सुनते ही बेहोश हो गया। हो सकता है उसने तारीफ का मतलब अपने उन कारनामों को समझ लिया, जिनके छपने से वह अब तक डर रहा था। वह छप गई।
मैं अपने-आपको रामसिंह का बड़ा गुनहगार मान रहा था। मेरे ही कारण रामसिंह की ऐसी हालत हुई है। मैं उसकी तारीफ नहीं छपवाता तो उसकी ऐसी हालत नहीं होती। मैं दौड़ा-दौड़ा अस्पताल पहुंचा।
वहां जाकर देखा, कि रामसिंह के बीबी-बच्चे डॉक्टर से बार-बार पूछ रहे थे कि, ‘सर बचने के कोई चांसेज है क्या?’ उनके चेहरे को देखकर बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि वे चाहते हों कि रामसिंह जिंदा रहे। मैंने काका से पूछा, ‘काका यह क्या माजरा है?’ काका बोले, ‘बेवकूफ, इतना भी नहीं समझता, रामसिंह मर जाएगा तो बीबी-बच्चों के शुभ दिन आ जाएंगे। बच्चों को नौकरी मिल जाएगी और सारी जायदाद के वे अकेले मालिक हो जाएंगे। वैसे भी मरे आदमी की ज्यादा जांच नहीं होती।’
इतने में डॉक्टर ने सूचना दी कि रामसिंह मर गया। सभी के चेहरों पर खुशी की लहर छा गई। घर वाले अंत्येष्टि की तैयारी करने लगे और मैं अपने को रामसिंह का हत्यारा मानते हुए वहां से मुंह छिपाकर वहां से खिसक लिया।

००००००००००००

 

 

जातीय-चरित्र


जातियों की उत्पत्ति के बारे में अलग-अलग तर्क दिए जाते रहे हैं। कोई इसे कर्म से मानता है तो कोई इसे वंश से। इतने सारे ऋषि-मुनि, राजा-महाराजा हुए हैं, सब लोग इन्हीं में से किसी को अपना वंशज मानते हैं। सभी को अपनी जाति व वंश पर गर्व है।
अपनी जाति पर गर्व करना अच्छी बात है। इससे व्यक्ति के मन में आत्मविश्वास का उदय होता है। हालांकि ज्यादातर लोगों का जाति-पांति में विश्वास कम होता है। कहने को उनके लिए सभी जाति के लोग समान होते हैं फिर भी मन के किसी कौने में पड़ा हुआ यह जाति का फेक्टर अपना काम करता ही है।
मेरा भी जाति-पांति में विश्वास कम है। फिर भी अपनी जाति बताना मैं अपना धर्म समझता हूँ। कुछ लोग अपनी दिखावटी प्रतिष्ठा अथवा अन्य किसी हिडन कारण से अपनी जाति छिपा लेते हैं। उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है। अपनी जात को छिपाना एक तरह से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। मैं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की बेवकूफी नहीं करता  और ना ही आपको ऐसी बेवकूफी करने की सलाह दूंगा।
मेरे ऑफिस में एक कर्मचारी है। वह लोगों को मनोविज्ञान को अच्छी तरह पहचानता है। हाथी के दांत दिखाने के अलग और खाने के अलग होते हैं। जब भी कोई नया अफसर वहां आता है या अन्य कोई व्यक्ति किसी काम से ऑफिस में आता है तो वह उन्हें अपनी जात बताना नहीं भूलता। वह कहता है, ‘साब, जात का ‘फलां’ हूँ। अगर आप ‘फलां’ के हाथ का पानी पी सको तो लाऊं। मैं किसी का धर्म भ्रष्ट नहीं करना चाहता। जाने कैसे-कैसे लोग अपना धर्म भ्रष्ट होने से बचाते हैं।’
उसके ऐसा कहने से वह बहुत से झंझटों से बच जाता है और इसमें सबसे महत्वपूर्ण काम होता है लोगों का धर्म भ्रष्ट होने से बच जाना। किसी को धर्म भ्रष्ट होने से बचाए रखना परमात्मा का सबसे बड़ा उपकार होता है।
एक दिन उसकी लड़की किसी अन्य जात वाले के साथ चली गई। उसने ऑफिस में चर्चा की। हमने पुलिस में रपट लिखाने को कहा। उसने दो-चार दिन इंतजार किया। लड़की वापिस आ गई। हमने पूछा, ‘लड़की किसके साथ गई थी, कहां गई थी?’ उसने कहा, ‘मोहल्ले के बाबूजी के लड़के के साथ घूमने गई थी। घूमकर वापिस आ गई। लड़का और लड़की दोनों ही कागजी नाबालिग है।’
मैंने कहा इससे तो बाबूजी का धर्म भ्रष्ट हो गया होगा। वह बोला, ‘साब, ऐसे कोई धर्म भ्रष्ट होता है क्या? धर्म तो उनका गुलाम है। जब भी ऐसे काम पर जाते हैं धर्म की गठरी को घर की खूंटी पर लटका कर जाते हैं। इस गठरी का वे चाहे जैसे इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र है। कभी भी किसी के भी ऊपर वे इसे उठालें या इसे लात मारे, उनकी मर्जी।’
जात बताने का एक फायदा ओर है। कुछ भी अच्छा करो या बुरा, आपकी जात वाले लोग आपके समर्थन में खड़े हो ही जाते हैं। यदि अपनी जाति के कुछ लोग खड़े होने का विरोध करते हैं तो जातीय संगठनों के पुरोधा कहते हैं कि ‘साला अपनी जात दिखा रहा है।’
हालांकि जात कौन दिखा रहा होता है, यह अलग बात है।
मेरी जाति के एक बड़े अफसर रिश्वत के आरोप में पकड़े गए। जाति के लोगों ने हंगामा खड़ा कर दिया। यह आरोप सरासर मिथ्या है। हमारी जाति के लोग इतनी कम रिश्वत ले ही नहीं सकते। या तो आरोप मिथ्या है या अफसर की जाति मिथ्या है। यह हमारी जाति को बदनाम करने की अन्य जाति वालों की घिनौनी चाल है। हम ऐसा नहीं होने देंगे। काफी समझाइश से अफसर का आनुवांशिक परीक्षण कर जाति के बारे में सही-सही जानकारी आने के बाद हंगामा शांत हुआ। अफसर हाईब्रिड था, जिस जाति का वह बन रहा था उसमें उस जाति के जींसोें की संख्या काफी कम थी। जाति वालों का कहना बिल्कुल ठीक था। उन्हें राहत महसूस हुई। साथ ही यह भी डर सताने लगा कि उनकी जाति को बदनाम करने के लिए गलत लोग उनकी जाति का अपने नाम के पीछे उल्लेख कर रहे हैं और जातीय लाभ उठा रहे हैं।
उन्होंने सरकार से मांग की है कि हमारी जाति के लोगों को जाति प्रमाण-पत्र जारी करने से पहले आनुवांशिक परीक्षण किया जाए और सही सिद्ध होने के बाद ही उन्हें जाति प्रमाण-पत्र जारी किया जाए। इससे हमारी जाति की होती बदनामी पर अंकुश लग सकेगा।
सरकार ने उनकी इस मांग पर गौर करने का आश्वासन दिया है। इसके लिए उन्होंने अन्य जातीय संगठनों को भी पत्र लिख दिए हैं। उन्हें कहा गया है कि यदि वे भी अपनी जाति के चरित्र के बारे में किसी प्रकार से शंकित हो तो अपनी जाति के पूर्वजों के आनुवांशिक नमूने जमा करवा दें और जातीय परीक्षण करवाने के लिए अपनी जाति के लोगों को तैयार करें, जिससे जातीय संगठनों को बार-बार होने वाली परेशानियों से निजात मिल सके। अपनी जाति के चरित्र के आधार पर ही व्यक्ति के समर्थन या विरोध का निर्णय कर सके। सरकार ने इसके लिए अलग विभाग बना दिया है। सारी तैयारी पुख्ता है। चुनावों के बाद इस पर अमल शुरू कर दिया जाएगा।

०००००००००००००००

   सीजन ट्रांसफर का

आकाश में मेघो के छा जाते ही दादुर, मोर, पपीहा चहकना शुरू कर देते हैं और उनकी मीठी-मीठी आवाज सुनकर इन्द्र देवता भी प्रसन्न होकर उन्हें बरसने का आदेश दे देतें है। सरकार ने भी उपने दादुर, मोर, पपीहा की चहचाहट सुनकर ट्रांसफर (स्थानान्तरण) से वैन (रोक) हटा लिया है और अब ट्रांसफर का सीजन (मौसम) शुरू हो गया है।
देवउठनी एकादशी के बाद से ही जैसे शादी विवाह का सीजन शुरू हो जाता है हलवाई, मैरिज होम आदि की बुकिंग में अचानक तेजी आ जाती है, गर्मी आते ही रेल, बस, हवाईजहाज की रेट्स उछलकर दुगुनी हो जाती है।
सभी होटल और धर्मशालाओं के किराए में वृद्धि हो जाती है। स्कूल, कॉलेज खुलते ही बुकसेलर्स का सीजन शुरू हो जाता है। बरसात आते ही किसानों का सीजन शुरू हो जाता है। चुनाव की घोषणा होते ही छोटे-मोटे नेताओं और अखबारों का सीजन शुरू हो जाता है।
वैसे ही अब नेताजी चौखेलाल जी का सीजन शुरू हो गया है। हर ट्रांसफर कराने वाले अधिकारी कर्मचारी उनके बंगले के चक्कर लगा रहा है। मेला सा रहता है आजकल उनके यहां।
हाईकमान ने भी सरकारी सेवा नियमों को धता बताते हुए, नेताजी की तोंद का ध्यान रखते हुए ट्रांसफर नीति बनाई है जिसमें स्पष्ट उल्लेख है। सरकार की पार्टी से संबंद्ध नेताजी की डिजायर (इच्छा) पर ही ट्रांसफर होंगे।
सीजन में हर आदमी व्यस्त होता है। नेताजी चौखेलाल जी भी अत्यन्त व्यस्त हैं और उनका पी.ए.सक्सेना...।  उसकी तो कहो ही मत, बेचारे को खाने-पीने और सोने की भी फुरसत नहीं है।
सक्सेना साहब में अच्छे सहायक के समस्त गुण विद्यमान है। कमाऊ डिपार्टमेन्टों (विभागों) की मासिक रेट इन्होंने वहां होने वाली कमाई के आधार पर ही तय कर रखी है, प्रत्येक कार्यालय से निश्चित तिथि को तय रकम इन तक आ जाती है। पूरी ईमानदारी से उसका हिसाब किताब रखते हुए ये चौखेलाल जी के सामने रखते हैं। विगत पन्द्रह-बीस वर्षों से ये नेताजी के पी.ए. पद पर आसीन हैं।
अभी कुछ दिन पहले मेरी मोटरसाइकिल चोरी हो गई। चोरी की रिपोर्ट लिखवाने मैं थाने गया था। वहाँ देखा कालू, इन्सपेक्टर रामसिंह के सामने गिड़गिड़ा रहा था। कालू की बीबी कच्चे कुएं से पानी निकालते समय फिसलकर गिर गई थी। पंचनामा करने पुलिस पहुंची। मौका रिपोर्ट तैयार की। कालू को जीप में डालकर थाने ले आई, पंचनामा करने।
क्यों वे अपनी बीबी को बहुत परेशान करता था, मारता पीटता था आत्महत्या करने को उकसाने के जुर्म में अभी अंदर करता हूँ। बेचारा कालू! उसे मालूम तक नहीं कभी वह और उसकी पत्नी लड़े होें। हतप्रभ रहकर गिड़गिड़ा रहा था। पांच हजार रुपए निकाल नहीं तो केस यही बनेगा। आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास, अपनी रिपोर्ट लिखवाना तो मैं भूल गया, लगा करने उसकी पैरवी।
तुम्हें पता नहीं यह थाना 50 हजारी है। हर महीने पचास हजार रुपए पहुंचाने पड़ते हैं फिर हमारे भी बीबी बच्चे हैं। अन्य किसी दूसरे बीट (क्षेत्र) में गिरकर मरती तो कम रुपए में काम हो जाता। बेचारी को गिरने से पहले पता नहीं था। चुपचाप खिसक आया बिना रिपोर्ट दर्ज करवाए।
वैसे भी गाड़ी का बीमा खत्म हो चुका था। बीमा कम्पनी से रुपए मिलने की आस भी नहीं थी।
कालू ने पैसे दिए या नहीं, मुझे नहीं पता लेकिन वह अपनी दो बीघा जमीन बेचकर बच्चों को लेकर शहर चला गया है, रिक्शा चलाता है आजकल वहाँ।
हम सीजन की बात कर रहे थे। चौखेलाल जी के सामने ट्रांसफर आवेदकों की सूची पड़ी थी। किसने कितने दिए? किसको कहां लगाना है? जिसको हटा कर लगाना है उसकी स्थिति क्या है? सबकी जन्मपत्री सक्सेना साब पढ़ रहे थे। नए अफसर जो ज्यादा बोली लगाकर यहाँ आना-चाहते थे, उनका ब्यौरा भी उनके पास था।
परिवहन, आबकारी, सेल्सटैक्स, इनकम टैक्स, थाना, पी.डब्लयू.डी. कितना दे रहा है, अन्य विभागों के अफसरों की क्या स्थिति है सबका चिट्ठा वे सुना रहे थे। अब मंहगाई बहुत बढ़ गई है। माहवारी भी दुगुनी करने का ऐलान नेताजी ने कर दिया। ट्रांसफर सूची में  जिनके नियमानुसार पैसे आ गए है उनकी सी.डी बनाकर अभिशंषा करने का आदेश ऑपरेटर को दे दिया।
बाहर बैठक में नगर के व्यापारियों का शिष्टमंडल पूर्ण शिष्टता से उनका इन्तजार कर रहा था। सेल्सटैक्स, इनकम टैक्स और फुड इन्सपेक्टर उन्हें परेशान करते हैं, हर महीने रकम देने के  बाबजूद भी काम नहीं करने देते। माल पकड़ लेते हैं। इनका तबादला कराओ। आखिर हमारी भी कोई इज्जत है। व्यापारी कह रहे थे।
नेताजी पी.ए.सक्सेना की ओर मुस्कराते हुए व्यापारियों को भरोसा दिला रहे थे कि उनका काम अवश्य हो जाएगा। ट्रांसफर्स का सीजन है।

०००००००००००००००

    हड़ताल यमलोक में

लाखों वर्षों से एक ही काम करते-करते चित्रगुप्त की आँखे भी कमजोर हो गई थी और लगता था कि उनकी बुद्धि भी सठिया गई है। इसलिए मोटा चश्मा आँखों पर लगा, कर्मों का हिसाब धर्मराज को सुनाते-सुनाते वे बार-बार रूक जाते और कहीं खो जाते।
धर्मराज उनको ऐसा करते देख बार-बार झुंझला रहे थे। ऐसा क्या हो गया चित्रगुप्त जो विचारमग्न हो रहे हो, जिसने जैसे भी कर्म किए हो तुरन्त उनका चिट्ठा पढ़ो।
चित्रगुप्त ने अब बिना विचार किए चिट्ठा पढ़ना शुरू किया।
महाराज ये वे डॉक्टर हैं जिनके कारण अपने लोक में आपातकालीन संकट आ खड़ा हुआ है। जिन आत्माओं को माँ के गर्भ से जन्म लेना था वे आत्माएँ जन्म लेने से पहले ही यहाँ आ पहुंची। इन लोगो ने उनका जन्म तक नहीं होने दिया।
हमारे यहाँ के क्रूर यमों तक ने विधाता के विधान को भी धता बताकर सत्यवती के सामने पिघलकर उसके पति के जीव को ेवापिस भेज दिया और उसे जीवनदान दे दिया। लेकिन इन्होंने तो जाने कितनी सत्यवतियों के सुहाग को उजाड़कर यहाँ भेज दिया।
महाराज समझ नहीं आ रहा कि इनके लिए कौनसे नर्क की वकालत मैं आपसे करूं।
धरती पर इनको भगवान का दर्जा दिया जाता है। भगवान के बाद इनको ही पूजा जाता है।
सभी समाजों में इनको पलकों पर बैठा कर रखा जाता है। लेकिन फिर भी महाराज...। कहते-कहते चित्रगुप्त रूक गया। अपनी जेब से रूमाल निकाल कर उन्होंने आंसुओं को पोंछते हुए अपनी बात पूरी की।
इसके अलावा ये लोग डॉक्टरी के धंधे की आड़ में मानव अंगो की तस्करी करते हैं सो अलग। रिश्वत, कमीशन खोरी तो इनके लिए सामान्य सी बात है, कोई गरीब हो या अमीर बिना पैसे के कोई काम नहीं करते, सामान्य होने वाली डिलेवरी को भी ये ऑपरेशन से चीरफाड़ कर करते हैं। इनके इस कृत्य से कभी-कभी बालक की और माँ की भी मृत्यु हो जाती है। इसका खामियाजा भी उनके परिवारजनों को ही भोगना पड़ता है और यहां यमलोक में अनचाही भीड़ इकट्ठी हो जाती है।
धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और भगवान की सिफारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक का आवंटन करते आ रहे थे। अपने जीवनकाल में इन्होंने भगवान को भी चढ़ावा नहीं चढ़ाया लगता है, वहाँ से भी किसी की सिफारिश नहीं आई।
इन्हें नर्क में भिजवा दिया जावे। धर्मराज आदेश देकर अप्सराओं के साथ मूड फ्रेश करने यमलोक से दूर वादियों में बने फार्म हाऊस पर आ गए। फार्म हाउस में कुछ बॉलीवुड अभिनेत्रियाँ भी वहां की अप्सराओं को नृत्य की आधुनिक शैली सिखाने में मस्त थी।
धर्मराज जी को आए अभी कुछेक  घंटे ही गुजरे होंगे कि एक यमदूत जोर-जोर से किवाड़ पीटने लगा। आवाज सुनकर धर्मराज जी के आदेश से एक सेविका ने दरवाजा खोला। बाहर खड़ा यमदूत बदहवास की सी स्थिति में हाथ जोड़कर धर्मराज जी के सामने बोला।
महाराज गजब हो गया। जिन डॉक्टरों को आपने नर्क में भेजा था उन्होंने वहाँ जाने से इनकार कर दिया।
चित्रगुप्त जी भी उनसे कह-कह कर हार गए हैं लेकिन उन पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, बल्कि उन्होनें वहीं दरबार में बैठ कर हड़ताल कर दी है।
कोई बात नहीं। भूख हड़ताल की होगी, कुछ दिनों तक भूखे पड़े रहने दो, अपने आप दिमाग ठिकाने आ जाएगा। इसमें चिन्ता की क्या बात है? जो मुझे यहाँ डिस्टर्ब करने आ पहुंचे। ऐसा पहली बार तो हुआ नहीं। धर्मराज जी ने समस्या को सामान्य सा लेते हुए कहा।
नहीं महाराज ऐसा नहीं है। उन्होंने आपके दरबार को तोड़ना फोड़ना शुरू कर दिया है। गिफ्ट में आया वह जड़ाऊ झूमर भी तोड़ दिया है। चित्रगुप्त जी की आंख में भी चोट आ गई है। चार पांच यमदूत घायल हो गए हैं। वे तो आपके पूरे दरबार में ही आग लगाने को लालायित हो रहे हैं लेकिन बड़ी मुश्किल से चित्रगुप्त जी ने उनके नेता को बातों में लगाकर समझाकर रखा है। एक आँख से इशारा करके चित्रगुप्त जी ने ही मुझे यहां भेजा है।
यमदूत की बात सुनकर धर्मराज जी के होश फाख्ता हो गए। यमलोक में आज तक ऐसा नहीं हुआ। आज इन लोगों की इतनी हिम्मत कैसे हो गई। नाच-गाना बन्द करने का आदेश देकर तुरन्त यमदूत के साथ अपने दरबार में आए।
चित्रगुप्त और यमदूतों की हालत देखकर सारा माजरा समझ में आ गया।
हड़तालियों के शिष्ट मण्डल को उन्होंने अपने अन्दर वाले गुप्तवार्ता कक्ष में बुलाया, साथ में चित्रगुप्त को भी।
आपकी क्या मांग है? आपने यह तोड़फोड़ क्यों कर रखी है? शांतिपूर्ण ढ़ंग से हड़ताल नहीं कर सकते। जो भी बात हो तसल्ली से करो।
हम नर्क में नहीं जाएंगे। जाएंगे तो स्वर्ग में और या धरती पर। हमारे साथ इतनी बेइन्साफी क्यों? जब भगवान को इतनी पावर है तो हम डॉक्टरों को इतनी भी नहीं।  हम भी बहुत कुछ उन के जैसा ही करते हैं। वैसे भी भारत में हमें भगवान के बाद दूसरा भगवान ही माना जाता है।
धर्मराज जी ने उन्हें फुसलाने का पूरा प्रयास किया। लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। शिष्टमंडल में आए डॉक्टरों के समक्ष भी उन्होंने विशेष सुविधाएं देने का प्रस्ताव रखा। लेकिन समस्त हथियार निष्फल हो गए।
वार्ता को लंबी खिंचती देख बाहर खड़े डॉक्टरों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया। चित्रगुप्तजी के रिकॉर्ड के पन्नों को भी उन्होेंने फाड़ दिया। पन्ने फटे देख और अन्य कोई भी रास्ता सूझते ना देख धर्मराज जी ने उन्हें नियमानुसार वापस धरती पर भेज दिया। कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा लेकिन एक दिन फिर गड़बड़ हो गई।
यमलोक में एक साथ बहुत सारी आत्माएं पहुंचने लगी, जिन आत्माओं को जन्म लेने के लिए भेजा था वे भी और कुछ अन्य भी, जिन्हें अभी काफी समय पृथ्वीलोक में गुजारने थे।
चित्रगुप्त ने यमराज से इसकी वस्तु स्थिति सात दिनों में स्पष्ट करने को कहा। यमराज, यमदूतों को साथ लेकर धरती पर आया, चारो ओर घूमा, भारत आया और यहाँ भी राजस्थान प्रान्त में।
उसने देखा कि वे ही डॉक्टर जिन्होंने यमलोक में हड़ताल की थी यहाँ भी हड़ताल पर है। कोई काम नहीं कर रहे, सड़कों पर रैलियाँ निकाल रहे हैं। सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
दूसरी और हॉस्पिटल में मरीज इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। आईसीयू में भर्ती सीरीयस मरीजों को भी देखने वाला कोई नहीं है। महिलाओं की डिलेवरी कराने वाले कम्पाउण्डर, नर्सेज भी इनका साथ दे रहे हैं। रोजाना मरने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
यमराज के साथ वे ही यमदूत थे जिनको डॉक्टरों ने यमलोक में वापस किया था, वे ज्यादा समय यहाँ रूकना नहीं चाहते थे, पलक झपकते ही उन्होंने चित्रगुप्त के सामने पहुंचकर सारी स्थिति स्पष्ट कर दी।
चित्रगुप्त रिपोर्ट लेकर धर्मराज जी के पास पहुंचे, धर्मराज जी ने रिपोर्ट पढ़कर मुस्कराते हुए उसे कचरे के डिब्बे में डाल दी। चित्रगुप्त को आदेश दिया कि समस्या से घबराएं नहीं। यमलोक में एडवांस अतिरिक्त व्यवस्था रखना सुनिश्चित करें।

००००००००

Hanuman Mukt

93, Kanti Nagar

Behind head post office

Gangapur City(Raj.)

Pin-322201

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: हनुमान मुक्त के कुछ हास्य-व्यंग्य
हनुमान मुक्त के कुछ हास्य-व्यंग्य
http://lh6.ggpht.com/-XMSmL4npp6w/U28-4CbuoUI/AAAAAAAAYOU/MfX5RqEyHgQ/image_thumb%25255B3%25255D.png?imgmax=200
http://lh6.ggpht.com/-XMSmL4npp6w/U28-4CbuoUI/AAAAAAAAYOU/MfX5RqEyHgQ/s72-c/image_thumb%25255B3%25255D.png?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/06/blog-post_6923.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/06/blog-post_6923.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content