वीरेन्‍द्र ‘सरल‘ का व्यंग्य - फोटो खिंचवाने की बीमारी

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वीरेन्‍द्र ‘सरल‘ धर्मराज का दरबार लगा था। अपने चैम्‍बर में चि़त्रगुप्‍त टेबल पर पड़ी फाइलों पर नजर झुकाये बारीकी से निरीक्षण कर रहे थे। आस-...

वीरेन्‍द्र ‘सरल‘

धर्मराज का दरबार लगा था। अपने चैम्‍बर में चि़त्रगुप्‍त टेबल पर पड़ी फाइलों पर नजर झुकाये बारीकी से निरीक्षण कर रहे थे। आस-पास रखी अलमारियों में भी फाइलें ठूंस-ठूंस कर भरी हुई थी। चित्रगुप्‍त के सामने मृत्‍यु लोक से आये जीवों की बड़ी लम्‍बी कतार थी। यमदूत कंधे पर गदा उठाए व्‍यवस्‍था बनाने में जुटे हुये थे। कुछ यमदूत फाइलों को इधर-उधर लाने और ले जाने का काम रहे थे। वहाँ का माहौल एकदम गरम था। बिलकुल वैसे ही जैसे चुनाव के समय कार्यालयों का होता है। मृत्‍युलोक से आए जीव बिल्‍कुल वैसे ही धक्‍का-मुक्‍की कर रहे थे जैसे चुनाव टिकट पाने के लिए टिकटार्थी करते हैं, फर्क बस इतना ही था कि वहाँ समर्थकों की भीड़ नहीं थी। वहाँ जो भी थे बस टिकिटार्थिर्यों की तरह ही थे। चित्रगुप्‍त बार-बार अपना चश्‍मा पोंछकर पहनते और फिर फाइलों पर झुक जाते। इधर लाइन में खड़े जीवों की हालत खराब थी। घंटो लाइन में खड़े रहने के कारण पैर दुखने लगे थे। वे फुसफुसाते हुए आपस में बातचीत कर रहे थे कि हद हो गई, अपने गुनाहों का हिसाब कराने के लिए भी घंटो लाइन लगाना पड़ रहा है। यहाँ भी कोई फास्‍ट ट्रैक कोर्ट की व्‍यवस्‍था नहीं हैं। यदि ये बात पहले से मालूम होती तो हम अपने जीवन के सोलह संस्‍कारों में एक ‘लाइन‘ संस्‍कार को भी जोड़ लेते और जीवन के कुल सत्रह संस्‍कार गिनते। यहाँ यदि अपने देश के लोगों से बात करने की सुविधा होती तो हम उन्‍हें बताते कि बच्‍चों को शैशवकाल से ही लाइन पर घंटो खड़े होने की स्‍पेशल ट्रेनिंग दी जाय क्‍योंकि लाइन का मामला ‘जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी‘ वाला है। जन्‍म के साथ ही पंजीयन के लिए लाइन फिर स्‍कूल कॉलेज में प्रवेश के लिए लाइन, डिग्री लेने के बाद रोजगार दफ्‍तर के सामने लाइन, शादी के बाद राशन के दूकान के सामने लाइन। अब कहाँ तक गिनायें भाई, मरने के बाद यहाँ धर्मराज के दरबार में चित्रगुप्‍त के सामने लाइन। ये लाइन का चक्‍कर हर जगह है।

घंटों खड़े रहने के बाद किसी एक जीव के गुनाहों का हिसाब होता तब वह हिसाब पर्ची लेकर धर्मराज के पास जाता। धर्मराज जी उस पर्ची को धरम तुला पर तौलते और वजन के हिसाब से स्‍वर्ग या नरक में प्‍लाट एलाट करते। तब कोई जीव अपने स्‍थान पर शिफ्‍ट हो पाता। इस प्रक्रिया में इतना समय लग रहा था कि लाइन पर खड़े जीव एकदम बोरियत महसूस करने लगे थे।

जब लाइन पर खड़े-खड़े कुछ जीवों की सहनशक्‍ति जवाब देने लगी तो उन्‍होंने फैसला किया कि यहाँ बेमतलब खड़े रहने के बजाय वेटिंग हॉल में जाकर आराम करना चाहिए और जब नम्‍बर आ जाय तभी यहां आना ठीक रहेगा। कुछ जीव लाइन से बाहर निकलकर वेटिंग हॉल की ओर बढ़ गये।

वेटिंग हाल में पहुँचकर उनके होश उड़ गये। यहाँ तो पहले से ही काफी भीड़ थी। पाँव रखने के लिए भी तिल भर जगह नहीं थी। बिल्‍कुल रेल्‍वे के प्रतीक्षालय की तरह दृश्‍य था। सफाई वैसे ही नदारद थी जैसे भ्रष्‍ट्रों के मन से ईमानदारी। गंदगी इतनी जितना कार्यालयों में घूस। रिश्‍वतखोरों के चरित्र से आने वाली बदबू से भी ज्‍यादा दुर्गन्‍ध। उन जीवों की आँखें आपस में ऐसी मिली मानों पूछ रही हो अब क्‍या करें? यहाँ आकर तो बुरे फँसे। उनकी आँखें वहाँ बैठने की जगह तलाशने लगी। चारों तरफ नजर दौड़ाने के बाद उन्‍हें एक कोने में थोड़ी-सी जगह दिखाई दी। वे सब वहीं पहुँच कर आमने-सामने बैठ गये। उनकी बातचीत फिर शुरू हुई।

वे एक दूसरे से अपने-अपने मरने का कारण पूछने लगे। किसी ने अपने मरने का कारण कैंसर बताया तो किसी ने एड्‌स। किसी ने टी वी बताया तो किसी ने किडनी फेल। मगर एक जीव ने कहा मैं तो फाइल के संक्रमण से मरा। अन्‍य जीवों की उसकी बातें समझ में नहीं आई, वे उसे आश्‍चर्य से देखने लगे। फाइल वाले जीव ने कहा-‘‘मैं समझ रहा हूँ। आप लोगों को मेरे मरने का कारण समझ में नहीं आ रहा है। भैया मेरे सीधी-सी बात है, मैं लोकनिर्माण विभाग में था लेकिन लोक निर्माण के बजाय जीवन पर्यन्‍त अपने इहलोक के निर्माण में लगा रहा। मेरे इहलोक का ऐसा भव्‍य निर्माण हो गया कि विरोधियों को जलन होने लगी। बात जाँच दल तक पहुँच गई। डर के मारे मैं फाइल कुतरने लगा। तभी विश्‍वस्‍त सूत्रों से जानकारी मिली कि जाँच दल आक्रामक मुद्रा में तेजी से मेरी ओर बढ़ रहा है। हड़बड़ी में मैं फाइल निगलने लगा। अब आप सब तो जानते ही है, फाइलों की बड़ी बुरी आदत होती है। वह बिना हरी पत्तियों के सरकती ही नहीं हैं। मेरी फितरत तो हमेशा अपने दोनों हाथों से हरी पत्तियों को बटोरने की रही थी। सो अपनी हरी पत्तियों को फाइल के साथ लगाने का तो सवाल ही नहीं उठता। बस यहीं मुझसे चूक हो गई। फाइल अपनी आदत के अनुसार मेरे गले में जाकर अटक गई और मुझे परलोक आना पड़ गया।

दूसरे जीव ने आह भरते हुए कहा-‘‘किस्‍मत वाले हो भाई जो फाइल की कृपा से मरे। हम तो ऐसे बदनसीब है कि रेत और गिट्‌टी की उल्‍टी होने से ही मर गये।‘‘ आसपास बैठे बाकी जीवों को फिर घोर आश्‍चर्य हुआ। किसी जीव ने पूछा- ‘‘वो कैसे?‘‘

‘‘समय समय का फेर है भाई। मतलब निकल जाने पर लोग पहचानते तक नहीं वरना मेरे मरने का कारण तो ये फाइल वाले साहब ही बता देते। जिस लोक निर्माण विभाग में ये साहब थे मैं उसी विभाग का ठेकेदार था। ना जाने कितनी हरी पत्तियों के साथ मैंने अपनी फाइल साहब की ओर सरकाई होगी। इन साहब को केवल हरी पत्तियों की याद है बाकी सब भूल गये। यहाँ तक मुझे भी। मैं इन्‍हें हरी पत्तियां खिलाता था और स्‍वयं रेत गिट्‌टी छड़ और सीमेंट खाता था। मैंने ये सब यहाँ तक खाया कि लोग मेरा पेट देखकर ही जान जाते थे कि इसमें जरूर रेत गिट्‌टी और छड़ ही भरा होगा। मेरी साँसो से लोगों को सीमेंट की बदबू आती थी और पेट से गिट्टियों के बजने की आवाज सुनाई देती थी। इस कारण से लोग मेरे आसपास भी नहीं फटकते थे। पिछली बार मैं बदहजमी का शिकार हो गया, पचाने की काफी कोशिश की पर सफल नहीं हुआ। रेत और गिट्टियों की उल्‍टी हुई और मेरा राम नाम सत्‍य हो गया।‘‘ ये सब सुनकर फाइल वाले जीव ने उसे ध्‍यान से देखा फिर हाथ आगे बढ़ाते हुये कहा-‘‘अरे! हाँ यार, मिलाओ हाथ। मैं तो सचमुच भूल ही गया था। बात यह थी कि तुमसे पार्टनरशीप के बाद मेरा स्‍थानान्‍तरण हो गया था ना। बड़े दिनों के बाद मिले यार। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि कब के बिछड़े हुये हम आज यहाँ आकर मिलेंगे।‘‘ दोनों जीव आपस में गले मिले। बाकी जीव इस कलयुगी भक्‍त और भगवान के मिलन को देखकर तालियां बजाने लगे। गले मिले-मिले ही फाइल वाले जीव ने गिट्टी वाले जीव के कानो पर फुसफुसाते हुए कहा-‘‘देखो अपना फिफ्‍टी-फिफ्‍टी वाला पिछला मामला भूल मत जाना, यहाँ भी जरा ध्‍यान रखना ठीक है।‘‘ गिट्टी वाला जीव ओ के बॉस के अंदाज में गर्मजोशी से हाथ मिलाया फिर दोनों अलग हुए।

वहाँ सभी जीव इसी तरह हँस-हँस कर बातें कर रहे थे पर एक जीव कोने पर एकदम गुमसुम बैठा था। वह कुछ समय के लिए अपनी जगह से उठता, बेचैनी से चहलकदमी करता। चारों तरफ नजर घुमाकर किसी को बेस्रबी से ढूँढता और निराश होकर फिर चुपचाप बैठकर शून्‍य को निहारने लगता। फाइल वाले जीव ने उससे पूछा-‘‘क्‍या बात है भाई, आप बड़े परेशान लग रहे हैं। किसी का इंतजार कर रहे हैं क्‍या?‘‘ उदास जीव बोला- ‘‘क्‍या आपके पास अच्‍छी पिक्‍चर क्‍वालिटी वाला कोई मोबाइल है? यहाँ तो कोई फोटोग्राफर भी नहीं दिख रहा है।‘‘ यह सुनकर फाइल वाले जीव के साथ ही सभी जीवों का ध्‍यान उसकी ओर चला गया। गिट्‌टी वाले जीव ने उससे कहा-‘‘पहले आप आराम से बैठिये। अभी तक आपने अपने मरने का कारण भी नहीं बताया और कैमरा के चक्‍कर में पड गये।‘‘ उदास जीव दहाड़े मार कर रोने लगा और कुछ समय बाद सिसकते हुये कहा-‘‘अब आप लोगों को क्‍या बताऊँ। दरअसल मैं फोटो खिंचवाने की बीमारी से मरा हूँ। उसकी बात सुनकर आसपास बैठे जीव हैरत में पड़ गये। एक जीव ने कहा-‘‘फोटो खिंचवाने की बीमारी, ये कौन-सी नई बीमारी है। हमने आज तक ऐसी बीमारी के बारे में नहीं सुनी है। लगता है कोई भयानक और लाइलाज बीमारी है। कहीं संक्रामक तो नहीं हैं?‘‘

उदास जीव बोला-‘‘बड़ी खतरनाक बीमारी है भैया और यह बड़ी तेजी से फैलने वाली बीमारी है। देख नहीं रहे हैं। मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ रही है। अभी भी मुझे मोबाइल या कैमरे की तलाश है। जब तक जिन्‍दा था। सब काम छोड़कर रात दिन अपना फोटो खिंचवाया करता था या अपने आप भी खींच लिया करता था। बस फोटो खिंचवाना और उसे फेसबुक पर लगाना यही मेरा सबसे बड़ा कर्तव्‍य था। फोटो लगाने के बाद दिन भर लाइक और कमेंन्‍ट्‌स का इंतजार, ये तो मेरा परम कर्तव्‍य था। अपने सभी अन्‍तरंग, बहिरंग तस्‍वीरों के साथ-साथ मैंने अपने पालतू कुत्‍ते और बिल्‍ली की तस्‍वीरें भी फेस बुक पर लगाया करता था। महिलाओं की तस्‍वीरों पर अधिक लाइक और कमेन्‍ट्‌स देखकर ही मैंने अपना जेन्‍डर परिवर्तन कराने के लिए विशेषज्ञ डॉक्‍टर से भी मिल चुका था। बात पक्‍की भी हो गई थी पर किस्‍मत धोखा दे गई। जेंडर चेंज होने से पहले मैंने अपनी एक तस्‍वीर फेसबुक पर लगाई। उस पर कमेन्‍ट्‌स तो दूर एक लाइक के लिए भी मैं महीनों तरस गया। यह सदमा मैं बर्दाश्‍त नहीं कर सका, मुझे अटैक आया और मैं मर गया।‘‘ यह बताकर वह फिर रोने लगा।

पास ही बैठे एक जीव ने उसे सांत्‍वना देते हुये कहा-‘‘मत रोओ भाई जो होना था सो हो गया अब अफसोस करने से क्‍या फायदा किस्‍मत में लिखा होगा तो आपको अगले जन्‍म में लाइक और कमेन्‍ट्‌स जरूर मिल जाएंगे? आपकी आपबीती सुनकर लग रहा हैं कि सचमुच ये फोटो खिंचवाने की बीमारी बड़ी भयंकर और लाइलाज है। भगवान बचाये ऐसी बीमारी से, सचमुच हमारी किस्‍मत अच्‍छी रही कि हम छोटी-छोटी बीमारियों से मरे और हमें आपके जितना दारूण दुख नहीं सहना पड़ा। अब बात समझ में आ रही है कि आप बहुत समय से इतना बेचैन क्‍यों थे और बार-बार फोटोग्राफर की तलाश क्‍यों कर रहे थे।‘‘ फिर वह जीव हाथ जोड़कर आसमान की ओर देखते हुए कहा-‘‘हे भगवान! मेरे अपनों को इस बीमारी की पीड़ा से बचाना। मेरे प्रभु आपसे बस इतनी ही प्रार्थना है कि मेरे किसी दुश्‍मन को भी इस बीमारी के चंगुल में मत फँसाना।‘‘

वीरेन्‍द्र ‘सरल‘

बोड़रा (मगरलोड़)

जिला-धमतरी(छत्‍तीसगढ़)

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रचनाकार: वीरेन्‍द्र ‘सरल‘ का व्यंग्य - फोटो खिंचवाने की बीमारी
वीरेन्‍द्र ‘सरल‘ का व्यंग्य - फोटो खिंचवाने की बीमारी
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