1- मेरा चेहरा... इन अश्कोँ से कितनी ही बार जला चेहरा मेरा, बार हा बार जल के खुश्क होता गया ये चेहरा मेरा । इस खुश्क चेहरे पर नमी कोई अब...
1- मेरा चेहरा...
इन अश्कोँ से कितनी ही बार जला चेहरा मेरा,
बार हा बार जल के खुश्क होता गया ये चेहरा मेरा ।
इस खुश्क चेहरे पर नमी कोई अब छाती नही ,
अक्स मेरे चेहरे की किसी आईने में आती नहीं ॥
बड़ी तफसील की जमाने ने मेरे चेहरे की ,
कोई सूरत नजर न आयी कहीं मेरे चेहरे की ।
वो कहते है कि नहीं होता भीड़ का कोई चेहरा,
क्यूँ उभर आता है फिर हर भीड़ में मेरा चेहरा ॥
हर फूल हर कली में खिलता है ये मेरा चेहरा,
हर गुल के हर गुलशन में दमकता है मेरा चेहरा ।
सुबह की धूप के शबनम पे है पिघलता मेरा चेहरा,
कायनात के हर चेहरे में छुपा क्यूँ ये मेरा चेहरा ॥
2- आई.सी.यू.
I.C.U. की महिमा अनन्त.
अनन्त किया उपकार,
विधाता का इस सृष्टि को है ये अनुपम उपहार....
पावन इस माटी को जो न कर सके नमन.
प्रभु उनको तुम ज्ञान दो रखो अपनी शरण.....
अफसर, नेता, मंत्री, संतरी को जब लग जावे सरदी,
देवभूमि के मंदिर मेँ तुरत हो जावे भरती.....
लम्बे चौड़े पुरजोँ मेँ सरकार सहेजती इनका दिल,
इस बढ़ती मँहगाई मेँ जनता भरती इनका बिल...,..
इस महिमा व्याखान की भी इक अलग कहानी है ,
नश्वर इस संसार में घर घर की जुबानी है ......
बूढ़े पिता भर्ती हुये जब कलियुग के इस मंदिर में ,
बूढ़ी माँ लगी निहारने चेहरा अपना अपने इस सिन्दूर में.
...,...
लाखों की इन्कम वाला पुत्र घबराहट में लगा टटोलने दिल ,
अभी मैं इतना काबिल नहीं जो भर सकूँ ये भारीभरकम बिल. ,
करुण द्रवित परिवार में बहू का दिल चिल्लाता है-
बुढ़्ढ़ा क्या लेकर आया था औ क्या क्या लेकर जाता है .
....
अब एक अलग कहानी है वो मेरी जुबानी है -
मित्रोँ की अनुकम्पा से हम भी गये इस मन्दिर में,
आन बान सब देखा जो देखा कभी न अपने घर में.
प्रदूषणका मारा ये जग जो शुद्ध हवा को तरसता है ,
पवन देव की महिमा से इस मन्दिर में दमकता है .
बीवी बच्चोँ की चिल्लपोँ से जो दिल लगा था मिटने,
रूप यौवन की आँधी में लगा यहाँ भटकने.
...
चैनल नेशनल देख कर हो गये थे बोर,
डिजिटल की उमंग में जाने कब से हुयी थी भोर.
....
जाड़ा हो या हो गरमी हम बड़े परेशान टहलते हैं,
एक बटन के चक्कर मेँ यहाँ कितने मौसम बदलते हैं.
....
बड़ी ह्रदय विदारक बेला थी जब वापस घर हम आये,
सोते जागते रातों दिन आई सी यू की याद सतावे.
...
हाल ए बयाँ सुन मित्र हुए बेचैन ,
गिरते पड़ते जा के ICU में ही लिया चैन.
... .
अब मैं क्या कहुँ ....
I See You
इति...
3-गुजर गयी...!
कोई शीशा मेरे दिल का कहीं टूटा,
तो मुझे अच्छा लगा..!
चलो इक बहाना तो मिला कुछ वक्त बिताने का,
नहीं ढूँढा कोई मरहम रिसते जख्मों पर लगाने का,
जख्में जिगर का कुछ लहू बहा,
तो मुझे अच्छा लगा..!!
वो बैठे हैं महलोँ में चैन से सोते हैं,
इन सर्द अँधेरी रातों में
जख्मों को हम पीते हैं,
भटकते आदमखोरोँ का लहू हमने पिया,
तो मुझे अच्छा लग..!!!
सफर ए उल्फत में कुछ लोग बिछड़ गये
तो क्या हुआ,
कुछ किरचेँ यादों के आँखों में चुभ गये तो क्या हुआ,
उनकी यादों के कुछ बूँद तेरी आँखों से छलक आये,
तो मुझे अच्छा लगा...!!!!
4- अनामोँ के नाम...!
अबके दिवाली में न घर थे न घर की याद थी,
उफ्फ उस हसीँ शाम की क्या कयामत भरी रात थी.!
हम तो जश्न ए बहाराँ मनाने पहुँचे थे शहर में उनके,
चमन में खूब फुलझड़ियोँ की बरसात थी उनके..!!
गुजर के गलियों से उनके आये थे अपने चौबारे मेँ,
बह गयीँ थी आँखें कुछ गमगीन नजारोँ मेँ..!!!
तमाम चिराग मेरी महफिलोँ जलते जलते बुझ गये,
जाने आँशियाँ कितने बसते बसते उजड़ गये..!!!!
तपिश अबकी दिवाली की इतनी गहरी थी,
सूख गयी हर दरिया जो अश्कोँ ने भरी थी..!!!!
न चिराग नाम का उनके कहीं जला होगा,
उनकी गुरबतों का बस यही तो सिला होगा..!!!!
आस मिलने की चेहरों पर उनके छाई तो होगी,
कली खिल के कहीं खुद से शरमाई तो होगी..!!!!!!
आसमाँ टूट के घरों पे जब बिखरे होंगे,
हर ख्वाब उनके धूल में मिले तो होंगे...
5- जाने क्यूँ....!!
किसीदर्द से कहो यूँ न बहता रहे,
निश्छल झरने सा यूँ न झरतारहे.!
तेरे होने से मुझको बहुत आस है,
कुछ तो है जो मेरे बहुत पास है.
जबभी तनहा हुआ मैं रोता रहा,
तेरे आँचल के साये में सोता रहा.!!
जब भी गुजरीहै शाम तेरी यादों भरी,
तेरी बाँहों में आयी नजर ये जन्नत मेरी.
दूर हीसही पर मेरे ख्वाबोँ में तू,
हर लम्हा मेरी साँसोँ के है रागों में तू.!!!
जाने क्यूँ हर घड़ी याद तेरी ही आती रही,
जाने क्यूँ उम्र भर जिन्दगी यूँही सताती रही.
मेरे दर्द से कह दो कोई यूँ न बहता रहे,
निर्झर झरने सा यूँ ही न झरता रहे.!!!!
6- एक भूली सी ग़ज़ल..!!
मैं ख्यालों में जब भी खोया सा रहा था,
बंद दरवाज़ों में इक खिड़की खुली सी थी..
शमा यादों की बार हा बार जल जल के बुझी थी,
.....कभी इक ग़ज़ल हमने भी लिखी थी..!
दो कदम जब भी कभी चले थे तुम साथ मेरे,
हर लम्हा जिंदगी की वो इक सुहानी सी घडी थी..
जब भी मिलते थे हम बहती अश्कों की लड़ी थी,
.....कभी इक ग़ज़ल हमने भी लिखी थी..!!
न जाने कितनी बातों में जाने कितनी अनकही थी,
रेत पर बिखरे निशानों की हजारों फुलझड़ी थी..
लब बोलते न कुछ थे बस तिनकों की लड़ी थी,
.....कभी इक ग़ज़ल हमने भी लिखी थी..!!!
कभी मुहब्बत से उसने मेरा नाम लिया था,
अदा दिलकश थी जब काम तमाम किया था..
सर्द आहों पे कहीं बहते लहू की झड़ी थी,
.....कभी इक ग़ज़ल हमने भी लिखी थी ..!!!!
7- ये India है मेरी जान....!!
कैसे उजली है उसकी कमीज मेरी कमीज से
चल दाग लगा आते हैं..
ये इंडिया है मेरी जान,
यहाँ दाग भी अच्छे लगते हैं.!
होगा जितना बड़ा स्कैँडल मीठा होगा उतना ही फल,
सब है गोलमाल यहाँ खेल गोलमाल का होता है..
ये इंडिया है मेरी जान,
वो इस खेल का सबसे बड़ा विजेता है.!!
बौद्धिक इस देश में बौद्धिकता की है अजब मिसाल
अस्सी प्रतिशत फाँके धूल 20खायेँ माल
भला ऐसा भी कहीं होता है
ये है इंडिया मेरी जान.
ऐसे ही यहाँ सब चलता है.!!!
उर्वर इस माटी में खिलते कृपाओं के फूल
गर मानसून कर जाये दगा
कृपाओं का जल बरसता है
ये इंडिया है मेरी जान
कृपाओँ से यहाँ राजप्रासाद मिलता है.!!!!
डालर लगाये है आग रुपया यहाँ जलता है
पैंतीस के भँवर में परिवार फँसा रहता है
ये है इंडिया मेरी जान
यहाँ रुपया स्विस बैंक का पेट भरता है.!!!!!
ऐ मेरे वतन सुन भर आते थे आँसू
एडीडास और पैप्सी अब यहाँ रत्न कहलाते हैं
ये इंडिया है मेरी जान
हमीद अब्दुल किसे अब याद आते हैं.!!!!!!
8- एक कहानी...!!!
सोचता हूँ एक कहानी लिखूं
या जिंदगी की जुबानी लिखूं
उल्फतों की निशानी लिखूं
या चंद वादों की नाफ़रमानी लिखूं
..सोचता हूँ कि एक कहानी लिखूं.......!
जिस्म पे जख्मों के निशान लिखूं
या दिल पे लगे हर घाव लिखूं
वर्दी पे तमगों की धमक लिखूं
या फटी कमीज़ की सूरत लिखूं
..सोचता हूँ कि एक कहानी लिखूं .......!!
भूख की छटपटाहट लिखूं
या चंद रिश्तों की गर्माहट लिखूं
टूटते दरख्तों की आँच लिखूं
या फिर दोस्तों की छावों लिखूं
..सोचता हूँ कि एक कहानी लिखूं.......!!!
9- एक ख़त.....!
आरम्भ...
प्रिय लिखूं
या फिर प्रियतमा कहूँ
बेवफा लिख नहीं सकता
वफ़ा तुमसे ही तो सीखी है.....!
संघर्ष....
तपिश जिंदगी की
तो कभी जला न सकी
तेरे वादों से जितना जला हूँ
मैं तो नेमत था कुदरत का
आसमाँ के तले ही पला हूँ .....!
भूख मिटती अगर रोटी से
कोई भूखा न होता
छलाओं भरी इस दुनिया में
काश धोखा न होता .....!
उपसंहार....
वे गलियां
वो शहर आज भी वैसे होंगे
यादों के यादों से
बदन वैसे ही मिलते होंगे.....!
दिए यादों के बुझा आया हूँ
छोड़ ये ख़त तेरे लिए !!!
10- कबूलनामा......!
न जाने कितने मीलों का सफ़र तनहा तय किया हमने,
यादों में लिपटी तेरे घर की पगडण्डी पीछे छोड़ आये हैं..!
ये तन्हाई का हसीं मंज़र हमें इक संगीत देता है,
शुकर है की हम पीछे ग़ज़ल लिखना छोड़ आये हैं..!!
घर के आँगन में ठमक कर जब उतरता चाँद,
सहर होने के पहले ही वो रौशनी छोड़ आये हैं..!!!
तंगहाली का ये सर्द मौसम लहू को गर्म रखता है,
वादों के बुने हर स्वेटर को हम तेरे घर छोड़ आये हैं..!!!!
ये दुनिया वो शहर हर दरख़्त यादों का छोड़ कर पीछे,
हम अपने टूटे ख्वाबों के शहर में मुहाजिर बनके आये हैं..!!!!!
11 - हम-सफ़र.....!
हर जख्म मेरा
मुस्करा के मुझसे कहता है
कि उसे साथ मेरा
अच्छा लगता है
मैं सहेज लेता हूँ उसे
उम्र भर के लिए..
जाने क्यूँ ऐसा वो
कहता है
कि उसे साथ मेरा
अच्छा लगता है..
कभी खुश होता हूँ तो
कहता है
देता हूँ तुझे दर्द इतना
फिर भी हँसता है..
मेरा जख्म मुझसे कहता है
बहते तेरे आंसू
दिल मेरा कांप जाता है
जाने कैसे हँस के तू
इतना सह जाता है
कहता है कि
साथ मेरा अच्छा लगता है..
कभी मिलता है वक़्त
मैं उससे कहता हूँ
12-सरगोशियाँ......!!!
यूँ मेरे ख्वाब नींद से न जगाते तो अच्छा था,
उनींदीं पलकों पे लोरी कोई सजाते तो अच्छा था....!
यूँ तो जाने की बात तुमसे कह न पाए,
बिन बताये चले आते तो कुछ अच्छा था...!!
वो लरजती आँखों की सरगोशियाँ चाहती थी कुछ कहना,
बिन सुने उन नज़रों को चले आये तो अच्छा था.....!!!
हमें मालूम है कि दिल-ऐ-चाक करते हैं उनका,
अपना जख्म छिपा के चले आये तो अच्छा था...!!!!
सोचा था कि तुम्हें छोड़ आये घर की दहलीज़ पर,
सरे राह जो तुम मेरे साथ चले तो बहुत अच्छा था....!!!!
सूर्यप्रकाश मिश्रा
surya.prakash1129@yahoo.com
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