नन्दलाल भारती का आलेख - समताक्रान्ति के महानायकः डॉ.भीमराव अम्बेडकर

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  समताक्रान्ति के महानायकः डॉ.भीमराव अम्बेडकर माना ही नहीं जाता सच भी है कि शोषित पीड़ित समाज एवं जनहित में नेक और पक्के इरादे से निश्छल भ...

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समताक्रान्ति के महानायकः डॉ.भीमराव अम्बेडकर

माना ही नहीं जाता सच भी है कि शोषित पीड़ित समाज एवं जनहित में नेक और पक्के इरादे से निश्छल भाव से किया गया सदकर्म मामूली इंसान को भगवान के समान पूज्य बना देता है। इस सच्चाई के उदाहरण है समताक्रान्ति के महानायक डॉ.भीमराव अम्बेडकर। वैसे तो समाताक्रान्ति के महायनायक को देया का सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न प्राप्त है परन्तु पइ महानायक को शोषित कायनात द्वारा विश्वरत्न कहा जाता है। जैसाकि सर्वविदित है बाबा साहब का जन्म 14 अप्रैल 1891 में महू जिला इंदौर। मध्य प्रदेश। में हुआ था। हिन्दू धार्मिक जातिवाद, रूढ़िवादिता का विषधर बाबा साहब को आंख खुलते ही डंसने लगा था। यही तो वह दंश है जिसके चक्रव्यूह से आज भी भारतीय मूलनिवासी उबर नहीं पाये हैं। यह देश जो कभी सोने का चिड़िया था विदेशी आकक्रमणकारियों के आगमन के बाद से गुलामी के चक्रव्यूह में उलझता चला गया और यहां के मूल निवासियों को धार्मिक रूढ़िवादिता और जातिवाद के पोषकों ने शूद्र बनाकर धन-धरती तो हड़प ही लिया मानसिक गुलाम भी बना लिया। आज भी आजाद भारत में शूद्र जिन्हें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति और पिछड़ा वर्ग के नाम से भी जाना जाता है, जिनके पूर्वजों का ही इस धरती पर साम्राज्य था, तब यह धरती सोने की चिड़िया थी। इसी सोने के चिड़िया के बहुजन सम्राटों-सुदास, बाली, अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य आदि अनेकों के वंशजों को हिन्दू वर्णव्यवस्था ने अछूत बना दिया। इनका जीवन जानवरों से बदतर बना दिया था।

इसी समाज में समताक्रान्ति के महानायक डॉ.अम्बेडकर का जन्म हुआ था । अछूत जाति में जन्म होने के कारण अम्बेडकर को पग-पग पर अपमान का जहर पीना पड़ा। विपरीत परिस्थितियों में बाबा साहब ने पूरे धैर्य और वीरता के साथ स्कूली शिक्षा प्राप्त किया। कालेज की पढ़ाई बड़ौदा नरेश के वजीफे से पूरी हुई। 1907 में मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद बाबा साहब ने 1912 में बड़ौदा महाराज के आर्थिक सहयोग से ग्रजुयेट हो पाये थे। इसके बाद कुछ साल के लिये बाबा साहब ने बड़ौदा राज्य की सेवा किये। तदोपरान्त बाबा साहब को गायकवाड़ स्कालरशिप प्रदान किया गया जिसके आर्थिक सहयोग से बाबा साहब ने सन् 1915 में कोलम्बिया विश्वविद्यालय से एम.एम अर्थशास्त्र किये। इसी दौरान बाबा साहब प्रसिद्ध अमेरिकी अर्थशास्त्री सेलिगमैन के सम्पर्क में आये। सेलिगमैन के मार्गदर्शन में ही बाबा साहब ने 1917 में कोलम्बिया विश्वविद्यालय से नेशनल डेवलपमेण्ट फार इण्डिया ए हिस्टोरिकल एण्ड एनासिटिकल स्टडी शोध विषय पर पी.एच.डी. किये। इसी वर्ष बाबा साहब ने लन्दन स्कूल आफ इकोनोमिक्स में प्रवेश ले लिया परन्तु शिक्षा परूी नहीं कर पाये और बड़ौदा महाराज द्वारा राज्य के मिलिटरी सेक्रेटरी बना दिये गये परन्तु यह नौकरी बाबा साहब को रास नहीं आयी वे बड़ौदा से बम्बई आ गये। बम्बई में के सिडेनहैम कालेज में बाबा साहब ने अघ्यापन कार्य शुरू कर दिया।

इसी दौरान बाबा साहब का जुड़ाव डिप्रेस क्लासेस कांफ्रेस से हो गया और बाबा साहब का झुकाव सक्रीय राजनीति की ओर होने लगा। इसी बीच बाबा साहब के मन में अधूरी शिक्षा पूरी करने के विचार बलवन्त होने लगे। तदोपरान्त बाबा साहब लन्दन स्कूल आफ इकोनोमिक्स से अधूरी पढाई पूरी करने में जुट गये। इस तरह बाबा साहब प्रतिकूल परिस्थितियों में पैदा होने के अपनी मेहनत पक्के इरादे और दूरदृष्टि की वजह से एम.ए., पीएच.डी., एम.एस.सी, बार एट ला तक की उच्च डिग्रियां प्राप्त किये। ऐसी कुटुपरिस्थितियों के बाद भी बाबा साहेब अपने युग के सबसे ज्याद पढ़े लिखे राजनेता और विचारक थे जिन्हें आज दुनिया विश्वरत्न मानती है। बाबा साहब का अत्यधिक लगाव हाशिये के लोगों से थे, बाबा साहब ने अछूत होने के दर्द को भोगा था अतः अछूतों के जीवन से उन्हें गहरी सहानुभूति थी। बाबा साहब ने भारतीय व्यवस्था में कुएं में पड़ी भांग अर्थात छुआछूत भेदभाव को दूर करने के लिये अछूतों को संगठित कर आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया । इस संघर्ष ने बाबा साहब को दलितों, हाशिये के लोगों शोषितों, और पिछड़ों का मसीहा बना दिया।

संघर्षरत् बाबा साहेब नेक इरादे के पक्के थे । बाबा साहब को शोषित समाज के उद्धार की अत्यधिक चिन्ता रहती थी। बाबा साहब का संघर्ष शनै-शनै कुसुमित होने लगा सन् 1926 में उन्हें बम्बई विधान सभा का सदस्य नामित किया गया। उसके बाद वे निर्वाचित भी हुए। सन् 1942-46 के दौरान बाबा साहब गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी के सदस्य बनाये गये थे। स्वाधीन भारत के प्रथम कानून मन्त्री के रूप में बाबा साहब का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जा चुका है। बाबा साहब संविधान विशेषज्ञ थे भारत के संविधान निर्माण में उनकी मुख्य भूमिका रही । बाबा साहब भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता है। शोषित समाज के उद्धार के लिये वे आजीवन संषर्घरत् रहे। बाबा साहब शोषितों के उद्धार के लिये खूब लेखनी चलाया, उनका लेखन सिर्फ भारतीय समाज के हाशिये के आदमी के लिये ही नहीं पूरी कायनात के शोषितों के उत्थान को समर्पित है। बाबा साहब ने इतिहास, राजनीति, आर्थिक-सामाजिक विकास की आदि अनेक समस्याओं पर लेखन किया जिसका सम्बन्ध देश की जनता से है। अंग्रेजी में बाबा साहब द्वारा लिखित रचनाओं को महाराष्ट्र सरकार ने डॉ.बाबा साहब अम्बेडकर राइटिंग एण्ड स्पीचेज नाम से प्रकाशित किया है।

बाबा साहब की रचनावाली भारत सरकार ने भी बाबा साहब आम्बेडकर सम्पूर्ण वाग्मय के नाम से प्रकाशित किया है। बाबा साहब की महानता के दर्शन इसी से लगाये जा सकते हैं कि वे शोषित समाज के हितार्थ निरन्तर चिन्तनशील रहते थे। बाबा साहब के बारे में एक किस्सा मशहूर है एक विदेशी पत्रकार बाबा साहब से मिलने के लिये अर्धरात्रि में पहुंचा बाबा साहब चिन्तनशीन जाग रहे थे। बाबा साहब को जागा हुआ पाकर वह अचम्भा से पूछा बाबा साहब आप जाग रहे है, देश के सभी बड़े नेता सो रहे है। बाबा साहब ने कहा था उनका समाज जागा हुआ समाज है और मेरा समाज सोया हुआ। इतना बड़ा शोषित समाज के प्रति समर्पण तो बाबा साहब में ही हो सकता था। आज के हमारे शोषित समाज के मन्त्री जो आरक्षित सीट से जीतकर संसद-विधान सभा पहुंच रहे है, वे भी बाबा साहब को जैसे भूला दिये है। वे संसद विधान सभा में मौन साधे रहते है। इन सांसद विधायकों की मौन साधना जमींदारी प्रथा के बंधुआ मजदूरों की याद दिलाती है। शोषित समाज घोर यातनाओं का शिकार हो जाता है, बहन बेटियां बलात्कार की शिकार हो जाती है, शोषित समाज अत्याचार का शिकार होता रहता है, पर इनकी जबान तालू से ऐसी चिपकी रहती है कि कभी खुलने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। आज आजादी के इतने दशकों के बाद भी शोषित समाज भूमिहीनता का शिकार है, रोटी कपड़ा मकान के लिये तरस रहा है। वही दूसरी ओर दबंग समाज के लोग एकड़ों गांव समाज की जमीन पर घूर, खलिहान, खेल के मैदान अथवा हरियाली के नाम पर कब्जा जमाये हुए है। हमारे सांसदों विधायकों को दीन दुखी शोषितों की तनिक चिन्ता नहीं रहती। कभी भी ये सुनने में नहीं आया कि फला सांसद अथवा विधायक ने भूमिहीनता अथवा किसी तरह के अत्याचार, दुराचार के खिलाफ अभियान छेडा है, उनको तो बस अपनी चिन्ता रहती है।

शोषित समाज के सांसद-विधायक अपने समाज के लोगों के बीच जाने में अपनी बेइज्जती समझते हैं, दबंग समाज क शादी ब्याह अथवा दूसरे अवसरों पर जाकर कीमती गिफट देना अपनी शान समझते है। इन शोषित समाज के सांसदों विधायकों का जमीर कब जागेगा.....? एक बाबा साहब थे जो शोषित समाज के हित के लिये अपना जीवन स्वाहा कर दिया । वर्तमान में आरक्षित वर्ग के जनप्रतिनिधि स्वाभिान का परित्याग कर स्वहित में जमें हुए है। ऐसे आरक्षित वर्ग के जनप्रतिनिधि बाबा साहब के सपनों के भारत और दलितों के अधिकारों के दुश्मन बन बैठे है। काश आरक्षित वर्ग के जनप्रतिनिधियों का स्वाभिमान जाग जाता और समताक्रान्ति के महानायक बाबा साहब के सपनों का भारत आकार पा जाता।

बाबा साहब सामाजिक समानता के लिये सदैव संघर्षशील रहे वे आल इण्डिया क्लासेस एसोशिएशन नामक संगठन बनाया। इसके परिणाम स्वरूप दक्षिण भारत में गैरब्राह्मणों ने दि सेल्फ रिस्पेक्अ मूवमेण्ट की शुरूआत किया जिसका मुख्य उद्देश्य उंच-नीच , भेदभाव को दूर करना था। इन प्रयासों से शोषित समाज जागृत तो हुआ परन्तु अंग्रेजी शासन काल में छुआछूत विरोधी संघर्ष पूरी तरह सफल नहीं हो पाया। सम्भवतः अंग्रेजों को भय था कि ब्राहमणवादी रूढिवादी भारतीय समाज उनका विरोधी हो जायेगा परन्तु बाबा साहब का संघर्ष थमा नहीं। अन्ततः 1950 में भारतीय संविधान द्वारा ही अस्पृश्यता को समाप्त करने में सफलता तो मिल गया परन्तु यह बुराई आज भी भारतीय समाज में घर किये हुए है। खैर संविधान के प्रभाव से छूआछूत को अवैध घोषित कर दिया गया है। कुएं, तालाब से पानी लेने का अधिकार शोषित समाज को मिल तो गया परन्तु अक्षरशः आज भी संविधान का पालन नहीं हो पा रहा है, इसका मुख्य कारण आरक्षित वर्ग के सांसदों-विधायकों का मुंह पर पट्टी बांधे रहना। बाबा साहब ने मंदिरों में शोषित समाज के प्रवेश को लेकर बड़ा संघर्ष किया।

बाबा साहब ने गोलमेज सम्मेलन में अछूतों के लिये अलग निर्वाचन मण्डल की मांग रखा था जिसका माहात्मा गांधी ने घोर विरोध किया था। बाबा साहब महिला उत्पीड़न से भी बहुत चिन्तित थे। बाबा साहब ने महिलाओं के लिये आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की जोरदार वकालत किये। बाबा साहब की ही देन है कि आज महिला अधिकार, सशक्तिकरण की बात हो रही है वरना रूढिवादी समाज जो शूद्र गंवार ढोल पशु नारी ये ताड़ना के अधिकारी की वकालत करता है, कभी शेाषित समाज और महिलाओं के उत्थान की बात करता क्या ...? अनुसूचित जाति और जन जाति के लोागों के लिये विधान सभा संसद की सीेटो पर आरक्षण, सिविल सेवाओं स्कूलो कालेजो की नौकरियों में आरक्षण बाबा साहब के त्याग का परिणाम है। इतना सब होने के बावजूद भी आज समस्या ज्यों कि त्यों पड़ी हुई है। दलितों का दमन जारी है पर इस वर्ग के राजनेता मौन नहीं तोड़ते जबकि भारतीय संविधान इसकी इजाजत नहीं देता। शोषितों के प्रति अत्याचार कानूनन जुर्म है पर शोषित वर्ग के राजनेता आगे नहीं आते। एक बाबा साहब थे 1951 में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे के रोके जाने के बाद मन्त्रिमण्डल से इस्तीफा दे दिया था। इस मसौदे में उत्तराधिकार विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिंग समानता की मांग की गयी थी। आज के आरक्षित के वर्ग के राजनेता अपनी कुर्सी बचाने के लिये शोषितों पर हो रहे अत्याचार को मौन देखते रहते है, याद भी आती है तो पांच साल के बाद अपने समाज का होने की कसम देकर वोट मांगन की । ऐसे राजनेताओं से शोषित समाज का क्या भला होगा चिन्तन का विषय बना हुआ है .....?

जैसाकि देखने में आ रहा है वर्तमान दौर में कुछ असामाजिक संगठन रहस्यमयी रूढिवादी ब्राहमणवादी संकल्पना को यथार्थ राष्ट्रवाद का नाम देकर भोलेभाले आदिवासियों और हाशिये के लोगों को दिग्भ्रमित करने में जुटे हैं । देश की धर्मनिरपेक्ष एवं समतावादी छवि को कुछ धर्मान्ध संगठन धूमिल करने का अभियान चला रहे हैं। एक भारतीय को दूसरे भारतीय को धर्म, जाति , सम्प्रदाय, भाषा, संस्कृति इत्यादि के नाम पर लड़ाया जा रहा है। समाज और देश को नफरत की आग में झोंका जा रहा है। नफरत का बीज बोकर राजनैतिक पार्टियां रोटी सेंकने में जुटी हुई है। सस्ती शिक्षा, अच्छा भोजन और अच्छी स्वास्थ्य सुविधा हम भारतीयों को नहीं मिल रही है। देश में बेरोजगारी की समस्या है। भारतीय समाज को इस वैज्ञानिक युग में भी जातिवाद विखण्डित किये जा रहा है। नक्सलवाद और आतंकवाद मुंह बाये खडे है। देश और आमआदमी की समस्यों को नजरअंदाज कर राजनेता विवादित बयानबाजी कर रहे है। किसान जो अन्न उगाता है, जिसे भगवान तक कहा जाता है, वही भगवान अपनी मुश्किलों से हारकर आत्महत्या तक कर रहा है, खेतिहर भूमिहीन मजदूर दो जून की रोटी के लिये संघर्षरत् है। वहीं दलालों, पूंजीपतियों और बड़े व्यापारियों को मनचाहा लाभ पहुंचाया जा रहा है, ये कैसी आजादी है, सवाल तो बनता है।

गरीबों और मजदूरों की लड़ाई लड़ने वाला जनतन्त्र का चौथा स्तम्भ अर्थात मीडिया भी पूंजीपतियों के हाथ की कठपुतली बन चुका है। अच्छों को बुरा और बुरों का अच्छा साबित कर दिखाना मीडिया की नियति बन गयी है। हां मीडिया के कुछ लोग और संगठन अपवाद हो सकते हैं। दलितों-आदिवासियों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर लगातार अत्याचार बढ़ता जा रहा है दुखद् बात है कि दलितों-आदिवासियों की पीड़ा और उनके साथ हो रहे अत्याचार मीडिया की सुर्खियां नहीं बन पाते। मीडिया भी दलितों-आदिवासियों के साथ न्याय नहीं कर रहा है, यदि मीडिया दलितों के साथ हो रहे अन्याय को प्रमुखता से उठाता तो यकीनन शोषित समाज को न्याय मिल गया होता। चौथे स्तम्भ के पक्षपातपूर्ण रवैये के कारण ही आजाद भारत में आज भी दलित-आदिवासी शोषण, अत्याचार, जातिवाद, भेदभाव के शिकार है। शिक्षा व्यवस्था माफिया की कैदी बन चुकी है। लोकतन्त्र लहूलुहान हो चुका है। आमआदमी आश्वासन के आक्सीजन पर जिन्दा है। शोषित दलित मुश्किलों से दबा भेदभाव की जहर पीने को बेबस है, कब हाशिये के आदमी को समानता का अधिकार मिलेगा, कब तक वह आजाद देश की आजाद हवा पीकर रिसते जख्मों के साथ जिन्दा रह पायेगा। धार्मिक और राजनैतिक सत्ताधीश कब तक स्वहित में अंधे, गूंगे और बहरे बने सत्ता सुख का उपभोग करते रहेंगे। क्या कभी हाशिये के आदमी का आक्रोश फूटेगा सामाजिक-आर्थिक समानता के लिये, ज्वलन्त सवाल जवां बने हुए है आजाद भारत में आज भी।

आजाद भारत भ्रष्टाचार का शिकार है, हर क्षेत्र में घोटालेबाज, माफिया सक्रिय है, शिक्षा क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा, भ्रष्टाचारियों को राजनैतिक संरक्षण भी भरपूर मिल रहा है, यदि समतावादी और सामाजिक न्याय में विश्वास करने वाले लोग एकजुट होकर देश में व्याप्त बुराईयों के खिलाफ उठ खड़े होते तो भ्रष्टाचारियों, मिलावटखोरों, जातीय नफरत फैलाने वाले लोगों की जड़े समूल नष्ट हो गयी होती। उन्मादी और नरसंहार करने वाले बाहुबली लोग गौरान्वित नहीं होते। देश का दुर्भाग्य ही है कि आज प्रजातान्त्रि गणतन्त्र और संवैधानिक नैतिकता में विश्वास रखने वाले लोग गुटों में बटे हुए है। मानवता, करूणा, मैत्री, सद्भावना, सदाचार और राष्ट्रप्रेम की अलख जगाने वाले लोगों की निद्रा ही नहीं टूट रही है। जनतन्त्र विरोधी फलफूल रहे हैं। देश का संविधान देश का राष्ट्रग्रंथ होता है, देश में उसी राष्ट्रग्रंथ की अनदेखी की जा रही है। बहशीपन के धार्मिक और राजनैतिक नेता संविधान बदलने तक की बात कर रहे है, उनका ऐसा कृतित्व राष्ट्र विरोध है पर समर्थ नहीं दोष गोसाई ।

भेदभाव जातिवाद, भ्रष्टाचार है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। आम आदमी आजाद देश में गुलाम बना हुआ है। दलित आदिवासी जनप्रतिनिधियों के भी कानों पर जू नहीं रेंग रहा है, नतीजन आजाद भारत में आज भी दलित आदिवासी परतन्त्रता का जीवन जीने को विवश है। काश बिहार के पूर्व मुख्यमन्त्री श्री जीतनराम मांझी जैसे दलित आदिवासी जनप्रतिनिधियों का स्वाभिमान जाग जाता और दलित आदिवासी जनप्रतिनिधि संविधान में प्रदत अधिकारों के परिपालन में एकजुटता का परिचय देते। इससे यकीनन भारतीय मूलनिवासियों का उत्थान होता परन्तु दलित आदिवासी जनप्रतिनिधियों को तो पूरे साल में 14 अप्रैल को संविधान निर्माता समताक्रान्ति के महानायक की याद आती है तो सिर्फ सुर्खियां बटोरने के लिये । काश आरक्षित वर्ग के राजनेता समताक्रान्ति के महानायक बाबा साहब के सिद्धान्तों को आत्मसात् कर लिये होते तो आज दलित आदिवासी उत्पीड़न पर लगाम लग गयी होती। वह भी विकास के पथ पर अग्रसर होता परन्तु आजाद देश में वह आज भी उपेक्षित है, और आरक्षित वर्ग के राजनेता को भी दबे-कुचले दलित आदिवासी समाज की फिक्र नहीं है। ये आरक्षित वर्ग के राजनेता भी खुद को उपेक्षित दलित आदिवासी समाज से खुद को उपर मानते है बस इनके वोट पर अधिकार जमाते है दलित आदिवासी होने की कसम दोहराते है चुनाव जीतते ही फिर पांच साल के लिये भूलकर स्वहित में लग जाते है। क्या समाताक्रान्ति के महानायक बाबा साहब ने इसीलिये आजीवन संघर्ष किया था ? समताका्रन्ति के महानायक बाबा साहब आजीवन सिर्फ इसलिये संघर्षरत् रहे ताकि-सभी भारतीयो को समान न्याय, सभी भारतीयों को समान हक, मानवतावादी समतावादी भारतीय समाज, सभी भारतीयों को विकास के समान अवसर, सभी भारतीयों को सस्ती और समान शिक्षा, अच्छा भोजन और अच्छी स्वास्थ्य सुविधायें, सभी भारतीयों को धार्मिक, आर्थिक और राजनैतिक स्वतन्त्रता, समता, सद्भावना और बन्धुत्वभाव की अभिवृद्धि हो । राष्ट्रहित सर्वोपरि की भावना सभी भारतीयों में घर कर जाये पर आजादी के इतने बरसों बाद भी बाबा साहब का धार्मिक-सामाजिक शैक्षणिक और आर्थिक सपना अधूरा है।

बाबा साहब शोषितों के उद्धार के इतने फिक्रमन्द थे कि 1941 और 1945 के मध्य कई पुस्तकों और पर्चो का प्रकाशन किया जिसमें थाट आन पाकिस्तान में तो बाबा साहब ने मुसलमानों के लिये अलग पाकिस्तान देश बनाने के मांग की आलोचना किया। ह्वाट कांग्रेस एण्ड गांधी हैव इन टू द अनटचेबल्सकांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया। बाबा साहब ने अपनी पुस्तक हू वर द शुद्राज के द्वारा हिन्दू जाति व्यवस्था के पदानुक्रम में सबसे नीची जाति शुद्रों के अस्तित्व में आने की व्याख्या किया । बाबा साहब ने बाल विवाह की प्रथा और महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की निन्दा किये। बाबा साहब आद्योगिक विकास में भारत और दलित आदिवासियों का भविष्य देखते थे। बाबा साहब मार्क्सवादी समाजवाद की तुलना में बौद्ध मानवतावाद-समतावाद के समर्थक थे क्योकि बौद्ध के केन्द्र में व्यक्तिगत् स्वतन्त्रता, मानवीय समानता एवं बन्धुत्व सदभावना निहित है। समता क्रान्ति के महानायक बाबा साहब ने तो शोषित वर्ग को गांव के नारकीय जीवन को त्याग कर शहर जाकर बसने और शिक्षा प्राप्त करने का आहवाहन किया था शिक्षित बनो, संगठित रहो, संषर्ष करो का नारा देकर शोषित वर्ग को उत्प्रेरित किया था।

समताक्रान्ति के महानायक बाबा साहब अम्बेडकर विधि विशेषज्ञ, अर्थशास्त्री, इतिहासविद्, धर्म और दर्शन के महान विद्वान थे। बाबा साहब ने अपने लेखन में अनेक ऐसे सूत्र दिये है जिनके माध्यम से भारतीय भारतीय इतिहास को पूंजीवादी विवेचकों के दुष्प्रभाव से बचाया जा सकता है पर इस और सताधीशों का ध्यान नहीं जा रहा है। बाबा साहब तो कहते थे हमारी दुश्मनी ना किसी जातीय समुदाय से है, ना किस वर्ण से है। ना किसी धर्म से और ना किसी इंसान से है। हमारी दुश्मनी है तो जातीय असमानता से, वर्ण व्यवस्था से, अंधविश्वास और पाखण्ड से और जो इन अंधविश्वासों और पाखण्डों को बढ़ावा देता है। बाबा साहब निरन्तर अपने अनुभव और ज्ञान से सीखते रहे। बाबा साहब की बड़ा विशेषता थी कि वे अपने अनुभवजन्य ज्ञान के आधार से अपने निष्कर्षों को परिष्कृत करते रहते थे। बाबा साहब शोषित दलित समाज के अधिकारों एवं उनके विकास के लिये आजीवन संघर्षरत् रहे। उनका जीवन शोषित दलित समाज के विकास के लिये पूर्णतः समर्पित था। बाबा साहब का दृष्टिकोण विराट था। दलित समाज को विकास की राह पर ले जाने से तात्पर्य था भारत का विकास के रास्ते पर ले जाना। उनका मानना था कि भारत का एक बड़ा हिस्सा जो शोषितों दलितों का है यदि यह हिस्सा तरक्की से वंचित रहेगा तो देश का विकास कैसे सम्भव है, सशक्त और विकसित भारत ही बाबा साहब का सपना था जो उनको देश की बहुसंख्यक आबादी शोषित दलित समाज में दिखाई पड़ती थी। बाबा साहब की एक दार्शनिक थे उनकी दार्शनिकता के परिणाम उनके अमृत वचन कहे जा सकते है जैसे-हिन्दू धर्म में विवेक, तर्क और स्वतन्त सोच के विकास के लिये कोई गुंजाइश नहीं है। जीवन दीर्घ होने की बजाय महान होना चाहिये। राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुला में कुछ भी नहीं हैं और एक सुधारक जो समाज की अवज्ञा करता है वह सरकार की अवज्ञा करने वाले राजनीतिज्ञ से ज्यादा साहसी है। जब तक आप सामाजिक स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं कर लेते , कानून आपको जो भी स्वतन्त्रता देता है वह आपके किसी की नहीं। अगर हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते है तो सभी धर्मों के शास्त्रों का संप्रभुता का अन्त होना चाहिये। हमारे पास यह आजादी किस लिये है, हमारे पास ये आजादी इसलिये है ताकि हम अपने सामाजिक व्यवस्था जो असमानता, भेदभाव और अन्य चीजों से भरी है जो हमारे मौलिक अधिकारों के परस्पर विरोधी है को सुधार सके। मैं ऐसे धर्म को पसन्द करता हूं जो स्वतन्त्रता समानता और भाईचारा सिखाता हो। बाबा साहब अपने उसूलों पर खरे रहे। समताक्रान्ति के महानायक बाबा साहब अम्बेडकर शोषित समाज के उत्थान के विकास के बारे में इतना चिन्तनशील, कर्मशील रहते थे कि उनका स्वास्थ्य जवाब देने लगा था। देश के पहले कानून मन्त्री पद से इस्तीफा पहले ही दे चुके थे।

विदेशी धार्मिक संस्थायें दलित समाज को भ्रमित कर धर्मान्तरण करवाने पर जोर दे रही थी इससे बाबा साहब बेचैन रहने लगे थे। बाबा साहब एक भविष्यदृष्टा और दार्शनिक भी थे । वे दुख से मुक्ति के लिये 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म ग्रहण कर हिन्दूधर्म का त्याग कर दिया। देश के विभाजन के बाद जब भारत और पाकिस्तान से बहुत ही दर्दनाक हालात में लोगों की अदला बदली हो रही थी तो बाबा साहब बहुत दुखी थे । उस वक्त बाबा साहब ने शोषित समाज को हिदायत दिया था कि पाकिस्तान या हैदराबाद में हमारे लोग इस्लाम स्वीकार करने के बारे में नहीं सोचे। बाबा साहब ने संविधान सभा में कहा था- आज हम राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से टुकड़े-टुकड़े हो गये है। हम आपस में लड़ने वाले गुट है। ईमानदारी से कहूं तो मैं भी इस प्रकार लड़ने वाले गुट का नेता हूं। फिर भी मुझे विश्वास है कि कालानुक्रम में अच्छा समय आने पर हमारे देश को एक होने से रोकना संसार के किसी भी शक्ति के लिये संभव नहीं। हममें इतने जाति पंथ हैं, तो भी इसमें कोर्इ्र संन्देह नहीं कि हम एक समुदाय है। भारत के विभाजन के लिये यदि मुसलमानों ने लड़ाई की तो भी आगे कभी एक दिन उन्हें अपनी गलती महसूस होगी और उनको लगेगा एक अखण्ड भारत ही हमारे लिये अच्छा है। बाबा साहब का कहा गया एक-एक वाक्य सही साबित हो रहा है।

समताक्रान्ति के महानायक बाबा साहब के बारे में दुनिया कहती है-अमेरिका-अगर बाबा साहब हमारे देश में जन्मे होते तो हम उन्हें सूर्य कहते-बराक ओबामा, साउथ अफ्रीका- भारत से लेने लायक एक ही चीज है और वह बाबा साहब अम्बेडकर का भारतीय संविधान-नेल्सन मंडेला, हंगरी- हमारे देश कि लड़ाई हम बाबा साहब के द्वारा किये क्रान्ति के आधार पर लड़ रहे है-हंगरी से भारत घुने आये लोग। इंग्लैण्ड-अगर स्वतन्त्रता चाहिये तो डॉ.बाबा साहब अम्बेडकर जैसे विद्वान कायदे के पण्डित को संविधान सभा में लेना पड़ेगा नहीं तो स्वतन्त्रता नहीं मिलेगी। जापान में बाबा साहेब का सम्मान किया जा रहा है, जापान में बाबा साहब की मूर्ति स्थापना की जा रही है।

देखना है कि सरकार समताक्रान्ति के महानायक बाबा साहब अम्बेडकर की जयन्ती 14 अप्रैल के सुअवसर पर जाति तोड़ो देश जोड़ो की सार्थक पहल करती है, यदि ऐसा हुआ तो शोषित दलित समाज के लिये सामाजिक समानता की दृष्टि से क्रान्तिकारी पहल होगी, समताक्रान्ति के महानायक डॉ.बाबा साहब अम्बेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि, जिसमें देश और सदियों से उपेक्षित हाशिये के आदमी, शोषित, पीड़ित दलित समाज का भविष्य निहित है।

डॉ.नन्दलाल भारती

कवि, लघुकथाकार, कहानीकार, उपन्यासकार चलितवार्ता-09753081066/09589611467

एम.ए. । समाजशास्त्र । एल.एल.बी. । आनर्स ।

पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट ;

विद्यावाचस्पति, विद्यासगर सम्मानोपाधि

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: नन्दलाल भारती का आलेख - समताक्रान्ति के महानायकः डॉ.भीमराव अम्बेडकर
नन्दलाल भारती का आलेख - समताक्रान्ति के महानायकः डॉ.भीमराव अम्बेडकर
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