अल्हड़ बीकानेरी मेले में चुनावों के क्या खेल तमाशे हैं नेताओं की कुर्सी है जनता को दिलासे हैं बस जिनका चले, इनको वे फोड़ के खा जाएँ एम०...
अल्हड़ बीकानेरी
मेले में चुनावों के
क्या खेल तमाशे हैं
नेताओं की कुर्सी है
जनता को दिलासे हैं
बस जिनका चले, इनको
वे फोड़ के खा जाएँ
एम०एल०ए० नहीं हैं ये
पानी के बतासे हैं ।
नेताओं के नख-शिख की
सजधज तो जरा देखो
पाजामाओं में फरसे हैं
टोपी में गंडासे हैं ।
000000000
ओमप्रकाश शर्मा आदित्य
रूठी हुई बहू (प्रसंग - मेनका)
ससुर से रूठकर बहू चली पीहर को,
बंबई से दिल्ली तक बाजे बजवाइए ।
पीहर संदेशा भेजा, आई मैं तो आई,
पर भाई ने जवाब दिया अभी मत आइए ।
दलबलवंती, यशवंती थी बहुत बहू
इनके गुणों को अब रोइए कि गाइए ।
पहुँची न पीहर, न ससुर के घर लौटी
कहाँ चली गई बहू कोई तो बताइए ।
दीवाने क्रिकेट के
क्रिकेट का जोर देखो ठौर-ठौर शोर मचा,
आपस में स्कोर पूछते हैं लड़े-लड़े लोग ।
मन में उमंग-कल्पनाओं की तरंग लिए,
छक्के मारते हैं खाट पर पड़े-पड़े लोग ।
ट्रांजिस्टर कान पर, पान की दुकान पर,
ऑफिस की ड्यूटी दे रहे हैं खड़े-खड़े लोग ।
00000000
काका हाथरसी
न्यायालय
सिविल कोर्ट के फोर्ट में बाबू करते लूट,
ढाई सौ का सूट है, साठ रुपये का बूट ।
साठ रुपये का बूट, फूट औ' मक्खन खाएं,
मित्रों के संग पिएँ, पिलाएँ मौज उड़ाएं ।
इनके घर में दूध दही की बहती गंगा,
छाछ पी रहा दीन मुवक्किल होकर नंगा ।
000000000000
किशोरी रमण टंडन
घर की दीवारों से जो सिर फोड़ न पाए
अब वे उच्च हिमालय से सिर फोड़ रहे हैं ।
फटी हुई पुस्तकों के पन्ने जो जोड़ न पाए
वही कुलाबे भू-अंबर के जोड़ रहे हैं ।
मोड़ न पाए जो छोटे-से तिनके को भी
समय-चक्र के डंडों को वे मोड़ रहे हैं ।
तोड़ न पाए चुँदरी पर जो टँके सितारे
आसमान के तारों को वे तोड़ रहे हैं ।
00000000
कुंज बिहारी पांडे
पत्नी एक होती है
भरे संसार में पत्नी किसी की एक होती है
किसी के हाथ से तुम चाय पी लो, बोल लो, हँस लो,
साथ में घूमने निकलो, सिनेमा देखने निकलो
आम मुँह में लगाकर उसके, प्यार से छीन लो, खा लो
प्लेटफार्म की बातें हैं, करा लो वायदे कर लो
कठिन होता पकड़ना जब छूटती ट्रेन होती है
समझ में उस समय आता कि पत्नी एक होती है
किसी के बाप की लड़की नहीं उसकी कभी होती
किसी की भी जवानी हो, नहीं उसकी कभी होती
भले दूकान अपनी हो, माल अपना नहीं होता
बहुत बातें हुआ करतीं, एक ही टेक होती है
भरे रिश्ते बहुत दुनिया में पत्नी एक होती है ।
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कुल्हड़
इस रामराज्य की लीला का परिणाम न जाने क्या होगा
अंजाम न जाने क्या होगा
कुछ नेता हैं कुछ लीडर हैं कुछ मुर्गे हैं, कुछ तीतर हें
इस राजनीति के जंगल में सब रँगे लगाये गीदड़ हैं ।
यदि सुबह दिमाग ठीक इनका तो शाम न जाने क्या होगा
कुछ लंबे हैं, कुछ छोटे हैं, कुछ पतले हैं, कुछ मोटे हैं
इन नेताओं में साठ फीसदी बेपेंदी के लोटे हैं
फिर इन सबसे 'बापू, का पूरा काम न जाने क्या होगा ।
है ब्लैक मार्केट गर्म यहाँ, रिश्वतखोरी है धम यहाँ
चरखा कातो गाढ़ा पहनो, फिर कर लो कोई कर्म यहाँ
इस देशभक्ति से हाय मेरे देश का नाम न जाने क्या होगा ।.
000000000000
गोपाल कृष्ण कौल
बाजार में हिंदी के बिगड़े सपूत अब
हाथ की सफाई और तमाशा दिखाते हैं
कैंची है इनकी माँ, गोंद इनके पिताजी
दूसरों की काटकर अपनी चिपकाते हैं
ऑर्डर पर करते हैं माल सप्लाई यह
इनका,
लेबिल किंतु माल दूसरों का
दृष्टिकोण इनका है छपने पर एक बार
जो कुछ निरर्थक है, सार्थक बन जाता है
और छापेखाने से रही की दुकान तक
जो कुछ छपता है जरूर बिक जाता है ।
0000000
जैमिनी हरियाणवी
शिशु के नामकरण से
बोले पंडित बदलूदास
कुंभ राशि में 'स' पे शिशु का
नाम निकले सै सूर्यप्रकाश
पिता शिशु का बोल्या,
''पंडित जी, अक्त दौड़ाओ
सूर्यप्रकाश ने छोड़ो
कोई मॉडर्न ओ'
नाम बता'
पंडित जी कहने लगे
तो ऐसा कर दो
सूर्यप्रकाश के बदले
'सनलाइट' धर दो ।
00000000000
देवराज दिनेश
मठाधीश बैठे हैं निज दूकान लगाए,
कोई जाए, जाकर उनको शीश झुकाए...
''तुम युग के निर्माता, मेरे भाग्य विधाता
दर्शन किए बिना था जीवन मिटता जाता''
यह कह उनकी पदरज माथे से चिपटाए,
और स्वयं को फिर उनका सेवक बतलाए ।
खुश होकर वह देंगे कुछ पंक्तियाँ निराली,
उन पंक्तियों सहित जिसने पुस्तक छपवा लीं.'
उसको आलोचक युग का लेखक कहता है,
और प्रकाशक के अधरों पर स्मित आती है ।
0000000000
धूमिल
रौंपी से उठी
हुई आँखों ने मुझे,
क्षण-भर टटोला,
और फिर
जैसे पतियाये हुए स्वर में,
वह हँसते हुए बोला-
बाबू जी! सच कहूँ-मेरी निगाह में,
न कोई छोटा है,
न कोई बड़ा है,
मेरे लिए हर आदमी एक जोड़ी जूता है ।
जो मेरे सामने
मरम्मत के लिए खड़ा है ।
और असल बात तो यह है
कि वह चाहे जो भी है
जैसा है, जहाँ कहीं है
आजकल
कोई आदमी जूते की नाप से
बाहर नहीं है ।
अथवा
असल बात तो यह है कि जिंदा रहने के पीछे,
अगर सही तर्क नहीं है
तो रामनामी बेचकर या रंडियों की
दलाली करके रोजी कमाने में
कोई फर्क नहीं है ।
0000000000
निर्भय हाथरसी
सिंडीकेट मैदान, दिल्ली के दंगल में
बड़े-बड़े आला जान, दिल्ली के दंगल में
चूक गए चौहान, दिल्ली के दंगल में
मारे गए मलखान, दिल्ली के दंगल में ।
000000000000
निराला
अबे सुन वे गुलाब
भूल मत गर पाई, खुशबू रंगोआब
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट
डाल पर इतरा रहा 'केपीटलिस्ट'
कितनों को तूने बनाया है गुलाम
माली कर रक्खा, सहाया जाड़ा धाम
00000
नीरज
हजार कोशिश की तुमने लेकिन नहीं तुम्हारा ही चांस आया,
कि तुम सभी में थे योग्य इससे तुम्हें कमेटी ने काट खाया ।
वह जो गधों का था एक नायक जो लाद सकता था सिर्फ लादी
कलम के सौदागरों ने उससे तुम्हारे तुलसी का सिर झुकाया ।
है आज की योग्यता सिफारिश तुम अपनी ये डिगरियाँ जला दो
इन कॉलेजों पर अंगार फेंको, इन सर्टिफिकटों को जा बहा दो' ।
न पढ़ने-लिखने की है जरूरत, न कमीशन के कुछ हैं मानी
तुम्हें मिलेगी हरेक सर्विस किसी मिनिस्टर से खत लिखा दो ।
000000
प्रभाकर माचवे
ऑफिस के वक्त में
ऑफिस की स्टेशनरी पर
ऑफिस के स्टेनो से
प्राइवेट अनुवाद,
लेख और किताबें लिखीं
औरों को उपदेश
रात-दिन देते रहो
भ्रष्टाचार निरोध
अध्यात्म बोध, आत्म-शोध पर
दफ्तर के नौकर लाते घर फल तरकारी
दफ्तर के माली करें घर बाग रखवाली
0000000000
प्रताप नारायण मिश्र
लेसन इनकम चुंगी चंदा, पुलिस अदालत बरसा धाम
सबके हाथन असन-बसन जीवन, संसयमय रहत सुदाम
जो इनहू ते प्रान बचे तो गोली बोलति हाय धड़ाम
मृत्यु देवता नमस्कार तब सब प्रकार बस तृप्यँताम् ।
महँगी और टिकस के मारे हमहि क्षुधा पीड़ित तन छाम
साग-पात ली मिलै न जिय भरि लेवो वृथा दूध को नाम
तुमहिं कहा ध्यावै जब हमरो कटत रहत गोवंश तमाम
केवल सुमुखि अलक उपमा लहि नाग देवता तृप्यंताम् ।
0000000
प्रेमकिशोर 'पटाखा'
चिपका है हाय टमाटर-सा
पत्नी पीड़ित पति बेचारा
साली ऐसी रस की प्याली
बदले उसकी ' जीवन धारा
आखिर है कौन जड़ी-बूटी
बोलो यह किसका है प्रकाश.
मुर्दों की है जो संजीवनी
साली क्या है बस व्यवनप्राश
साली को सर्वेश्वर जानो ।
000000
बटुक चतुर्वेदी
संपादक-
शक्ल से साधक
अक्ल से बाधक
असल में
बाँस के विचारों का
विवश अनुवादक!
सहायक (संपादक) -
सीरियस पिक्टर में
एक ही जगह
अनेक खलनायक!
रीडर
पूफ -
बिना प्रयास
मंत्री को संत्री
मंत्री को कंत्री
बना देने वाला
विशेश्वर!!
00000000
बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
अरे चाटते जूठे पत्ते, जिस दिन मैंने देखा नर को
उस दिन सोचा-क्यों न लगा दूँ
आग आज इस दुनिया-भर को
यह भी सोचा-क्यों न टेंटुआ घोंटा
जाय स्वयं जगपति का
जिसने अपने ही स्वरूप को रूप दिया
इस घूर्णित विकृति का ।
000000000
बालमुकुंद गुप्त
अंग्रेजी की गुलामी
देश हित चाहो तो उनकी भी नहीं है कछु कमी ।
जी में उसकी भी नहीं है, यार कुछ कम हमहमी । ।
साहबों को सब तरह से खूब रखते हैं प्रसन्न ।
उन्हें कामों में न चंदा दें तो कब पचता है अन्न । ।
झाड़ते लैक्वर हैं लिखते लेख अब बतलाइए ।
देश हित के वास्ते क्या क्या करें फरमाइए । ।
000000
बालेंदु शेखर तिवारी
अंग्रेजी के बिना
पास के मुहल्ले में घासीराम का बेटा
सयाना होकर जाएगा इंग्लैंड
और बोलेगा हिंदी में
(अंग्रेजी नहीं जानता है न अभागा!)
तो हमको शर्म आएगी ।
हम लज्जा से जल मरेंगे
कि घासीराम का बेटा अंग्रेजी नहीं बोलता
शेम! शेम!
हमें यह भी नहीं मालूम कि
घासीराम के बेटे किस स्कूल में पढ़ते हैं
पढ़ते भी हैं कि नहीं पढ़ते हैं
मगर हमें मालूम है कि
अंग्रेजी विश्वभाषा, 'लिंगुआ फ्रांका' ।
हाय रे घासीराम ।
तुम्हारा बेटा विश्वभाषा नहीं जानता ।
नाक से बहने वाली कुदरती आइसक्रीम को
आज वो हाथ से पोंछता है
लेकिन कल क्या होगा?
जब वह 'फारेन' जाएगा
अंग्रेजी नहीं बोलेगा ।
और हम सब बुद्धिजीवी भेजेंगे
लानतों का भीमकाय पार्सल
मिस्टर घासीराम के पास
'यू फूल'
तुम्हारा बेटा अंग्रेजी नहीं जानता।
0000000
बेढब बनारसी
कुछ चाटने की चीज वहाँ पर जरूर है
हैं घुस रहे जो लोग असेंबली के द्वार में ।
बाहर सभा में देखिए, खद्दर का ठाट है
घर में मगर सब विलायती ठाट - बाट है
0000000
बेधड़क बनारसी
फिल्मी
बेधड़क प्यार की जब कोई आवाज आती है
ऐसा लगता है कहीं दिल में लता गाती है ।
कुछु समझ में नहीं माया का आ रहा चक्कर
मोह नारद का लिए खा रहा हूँ मैं टक्कर
स्वप्न में लगती है वह हेमामालिनी जैसी
बेधड़क सामने आती है तो टनटन बनकर ।
गीत लिखता है कोई और लिखवाता कोई
यानी माता है कोई और निर्माता कोई
फिल्म क्या, इल्म की दुनिया का यह दसवीं अचरज
लेके आवाज दूसरे की है गाता कोई
आज पर्दे पर ही बेपर्द हो रहा कोई
दर्द जीवन का है, अभिनय से वो रहा कोई ।
फिल्म की दुनिया में संगीत का साथ चलता है
देखिए, विरह में गा-गा के रो रहा कोई ।
हॉल में इसलिए हो जाता अँधेरा, यारो
लोग सो जाएँ और स्कीन पर सपना देखें ।
0000000
भगवतीचरण वर्मा
राजा साहब हैं दानशील
राजा साहब हैं दयावान ।
राजा साहब के पैसों से
पलते हैं कितने ही नेता
पलते हैं कितने कवि लेखक
पलते हैं कितने ही गुंडे
पलते हैं कितने ही महंत
पलते हैं कितने ही नौकर
पलते हैं कितने ही किसान ।
0000000000
भवानी प्रसाद मिश्र
, मैं गँवार और गधा हूं............
क्योंकि मैं अपने वचनों से बँधा हूँ ।
तुम हो होशियार और हंस हो ।
क्योंकि अपनी प्रतिज्ञाओं के ध्वंस हो ।
हमने जो कह दिया सो करते रहे
अपने कहे पर मरते रहे
तुमने जो कहा सो कभी नहीं किया
और फिर भी जीवन सुख से जिया
इस पर भी मैं खुश हूँ
कि मैं गँवार और गधा हूँ
क्योंकि मैं अपने वचनों में बँधा '
0000000
भवानी शंकर व्यास
जिस तरह दुकानों पर ग्राहक चीजों को ले दे जाते हैं
एम०एल०ए० कई आजकल बेचे और खरीदे जाते हैं
कुछ कहीं छिपाए जाते हैं, कुछ कभी मँगाए जाते हैं
लैला मजनूँ के खेल रोज ही रोज दिखाए जाते हैं
तुम सौ रुपये प्रतिमाह यदि सौ वर्षों तक कमा सको
तो सवा लाख के आसपास ही पूँजी अपनी बना सको
पर एम०एल०ए० की थोक या खुदरा बिक्री जब होती है
तो पहली बोली एक रात में सवा लाख की होती है
यों प्रजातंत्र को नोच-नोच रखते हैं अस्थि-पंजर में
सब रिश्ते-नाते बदल जाएँ भाई चुनाव के चक्कर में ।
000000000
भारत भूषण अग्रवाल
एक लंबे उद्घाटन भाषण में
बैठा है मेरा देश
पूरे बीस साल से
और यह धरती
टेप रिकॉर्डर के स्थूल की तरह घूमती
उसे रिकॉर्ड कर रही है ।
संसद-भवन में शहद का एक छत्ता लगा है
जिसकी मक्खियाँ फूलों से नहीं
00000000000
मक्खन मुरादाबादी
चोरी-डकैती, पूस हो, पुलिस चाहिए
धार्मिक, राजनीतिक या
का जुलूस
लड़कों हो-पुलिस चाहिए
किसी का जन्म या मरण
त्योहार हो-पुलिस चाहिए,
बच्चों का मुंडन त्योहार हो,
पुलिस चाहिए
दिन हो चाहे रात हो,
पुलिस चाहिए.
किसी ,की चढ़ती बारात हो,
पुलिस चाहिए
कहीं ऐसा न हो कभी कि,
सुहागरात हो और पुलिस चाहिए ।
00000000
मिश्रीलाल जायसवाल
बदबू
वे बदबू पर
पूरा-पूरा ध्यान देते हैं
हरिजनों से
बात करते समय
साँस रोक लेते हैं
00000000
रवींद्रनाथ त्यागी
कहीं राजभवनों में प्रीतिभोज हो रहे हैं
और कहीं किसी का बच्चा उसी के सामने
भूख से दम तोड़ रहा है ।
और कहीं अदालतों में बड़े-बड़े ज्ञाता
कानून के दाँव-पेच पकड़
गुनाहों को छोडू रहे हैं
और कहीं जनता के अधिकारों पर
धुआँधार भाषण दिया जा रहा है ।
0000000
रामकिशोर द्विवेदी
कल तक जो थे
प्रगतिशील, क्रांतिद्रष्टा
विद्रोही कवि, सष्टा
आज वे
सरकारी-गैरसरकारी
कुर्सियों पर
डटे हैं तुँदियाए
(रसज्ञ पूँजीपतियों
अथवा राजनीतिज्ञों की
चरणरज का प्रताप)
खाते हैं तंदूरी चिकन
लिखते हैं प्रशस्तियाँ
लिबलिबे संस्करण ।
हा, हा हिंदी हिंदी ।
0000000
राजकमल चौधरी
सुबह होने पर सूरज और
दैनिक पत्रों में इंदिरा गांधी की
खूबसूरत तस्वीर
रुपये की कीमतों से
अपने आदमी की तुलना करके
कितने आदमियों ने कल रात
आत्महत्या की है?
सोये हुए आदमी को कुछ पता नहीं होता ।
पता होने का अर्थ है
जला दीजिए
अपना राशनकार्ड ।
0000000
रामावतार त्यागी
चाँदी के संकेतों पर ही रोज सभ्यता नावी
जड़ से पुरस्कार पाने को पंडित ने रामायण बाँची ।
रोता है संन्यास अकेला
सारी दुनिया मुस्काती है
प्रतिभा पद को प्रणाम करने
उठकर सुबह-सुबह जाती है ।
आने वाले युग को बोलो
कलाकार क्या उत्तर दोगे.
मिट्टी नीचे राम के तन से
तम रावण की मूर्ति गढ़ रहे ।
0000000000
' रामरिख मनहर
एक दिन में हो गई मशहूर हीरोइन नई
और हीरोइन पुरानी एक दिन में खो गई
छिन में हाथी की सवारी, छिन में गदहे का जुलूस
क्या निराला ढंग है ये, वाह रे वाह बंबई ।
000000
-
लीलाधर जगूड़ी
वह जानता है
वास्तविकता और व्यवस्था में
जो फर्क है
उनके बीच
कहीं-न-कहीं एक क्लर्क है
वह जानता है
फाइल-दर-फाइल
'नंबर-दर-नंबर
देश ऊँचा उठ रहा है
रेडियो रोज खबर दे रहा है
देश आत्मनिर्भर हो रहा है
बाकी क्या नहीं हो रहा है?
खाक हो रहा है, कूड़ा हो रहा है
देश धक्के खाता है,
टॉमी पीता है
0000000000
विष्णुचंद्र शर्मा
असंतुष्ट न्यू एंग्रीमैन लेखकों ने
स्वाधीनता छाप बीड़ी बनाने का फैसला किया है
और कैंसर से मरे हुए इंजीनियर का पुत्र
बीटनिक कवियों के साथ नंगी सड़क पर
सिगरेट के टुकड़े बीन रहा है ।
पहाड़ी घाटी में योनि का भूगोल खोजते हैं
पांडवों की गुफाओं में
द्रौपदी की गंध तलाशते हैं
और सिने तारिकाओं पर
यौवन की कुंजी आजमाते हैं
लोग कितने सभ्य हैं!
000000000000
वंशीधर शुक्ल
वोटर वंदना
जय वोटर भगवान
- आपकी टूटी-फूटी मूक अविकसित वाणी पर,
नाचा करते हैं नूतन-युग-निर्मान ।
आपकी नांगित-नीलित-शुइल धूसरित चरणों पर
नतमस्तक, त्याग-तपस्या-सेवा,
साहस-बुद्धि, योग्यता-विद्या-डिगरी-न्याय नीति
छल-रीति, जाल-फुल-तिकड़म,
कूटनीति, कुल रीति, धर्म जातीय बंधुता
जेल चेतना, गड्डों नोट, तिजोरी-खाता,
तन-मन-धन सर्वस्व समर्पण-
जब तक वोट नहीं देते हो,
तब तक ब्रह्म-समान,
जय वोटर भगवान्!
0000000
सत्यपाल नीगिया
अब मैं अध्यापक बन गया हूँ
इसीलिए
मुझे मरने का भय नहीं रहा
क्योंकि
मेरे पीछे
मेरी आत्मा को शांति मिले ।
इस विचार से
के बारह सौ विद्यार्थी
स्कूल
दो मिनट तक के लिए
चुपचाप खड़े रहेंगे ।
000000000
सरोजनी प्रीतम
बोली
प्यार में मैं तो हार गई
भाषा न समझे तो
बोली मार गई
खटका
उनका देश-विदेश से
सम्मान पाना
पत्नी की आँखों में गड़ता है
भन्नाकर कहती हैं,
घर में न मिले तो
(सम्मान के लिए)
ही पड़ता है ।
भटकना
000000000000000
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
भीतर कौन देखता है
बाहर रहो चिकने
यह मत भूलो
यह बाजार है
सभी आए हैं बिकने
राम-राम कहो
और माखन मिली बोलो
व्यंग्य मत बोलो
0000000000
सुरेंद्र मोहन मिश्र
श्रृंगार रस
' एक लेखक
लंबे समय तक
पत्रिकाओं में अपने लेख भिजवाते रहे
सभी लेख सधन्यवाद
वापस भी आते रहे
वे ही लेख लेखक ने
अपनी पत्नी के नाम से भेजे
तत्काल ही पिघल गए
संपादक के कलेजे ।
अब उनके लेख
सभी पत्रों में
पत्नी के नाम से ही निकल रहे हैं
पारिश्रमिक के मनीऑर्डर भी
हर महीने मिल रहे हैं
इसे शृंगार रस कहते हैं ।
000000000
सुरेंद्र शर्मा
ईश्वर
पत्नी ने कहा -
' 'मैं तो मरने के बाद
स्वर्ग चली जाऊँगी
पर आपका क्या होएगा? ''
हमने कहा
'' हमें अपना तो मालूम नहीं है
पर ईश्वर बहुत रोएगा । ''
00000000
श्रीनारायण चतुर्वेदी
केरला लोचिनी
कैसे आज बताऊँ लोचन
कमलनयन यदि कहता हूँ
तो कहलाऊंगा दकियानूसी
मृगलोचिनी बताता हूँ तो
बन जाऊँगा भक्षक भूसी
सदृश करेला आँख तुम्हारी
वैसी करुई,
वैसी तीखी
वैसी नोकें प्रिये तुम्हारी
और जब कभी क्रोधित होती
जब तुम नयन फाड़ हो देती
00000000
शैल चतुर्वेदी
अखाड़ा
कहने को विधानसभा
यथार्थ में अखाड़ा
जहां हर रोज
एक पहलवान
होता है आड़ा
और जनता
तमाशबीन
चुकाती है भाड़ा?
000000
हजारी प्रसाद द्विवेदी
सारी उमर लेखक ने की ज्योतिष की पढ़ाई
पर बंबई वाले ने फतह कर ली लड़ाई
शुभ लाभ मेष-वृष-मिधुन-फल सबका हाँकता
साहित्य का सेवक मगर है धूल फाँकता ।
गोपियाँ नवेली बरसाने की हवेली से-
पिपीलिका की रैली जैसी बढ़ती चली गईं
रूप खलियान जैसी, ब्रज गलियान तैसी
नोटिसी नीलाम पै-सी चढ़ती चली गई ।
000000000
हरिशंकर शर्मा
मगर मैं चलता था वह चाल
न होता बांका जिससे बाल
दिया उपदेश किया आराम
यही था बस मेरा प्रोग्राम
मिली है जनतारूपी गाय
बड़ी भोली-भाली है हाय
दुहा करता हूँ दिन औ' रात
न कपिला कभी उठाती लात ।
0000000000000
हुल्लड़ मुरादाबादी
दहेज न लेने वाला गधा
एक कवि-सम्मेलन में
जब हमने गंभीर गीत गुनगुनाया
तो मंच से
एक खूबसूरत कवयित्री का स्वर आया-
''कृपया हास्य रस की रचना सुनाइए
बहुत हो चुका
अब अपनी औकात पर आ जाइए''
मैंने कहा, ''कैसे सुनाएं?
हास्य जब अपने जीवन में नहीं है
तो उसे कविता में कैसे लाएं? प्र
वे बोलीं, आप तो मौत पर भी
रचना सुनाते हैं
क्या कभी मरकर भी दिखाते हैं? ''
मैंने कहा, यूँ तो हम रोज मर-मरकर जी रहे हैं
भावों के घावों को कविता के धागों से सी रहे हैं
लेकिन आप कहें, तो प्रयोग करके दिखाएँ
एतराज न हो, तो आप पर ही मर जाएं । ''
वे बोलीं, -हट मरे! और उठकर चली गईं
लेकिन अपनी किस्मत छली गई
श्रोताओं में हमारे होने वाले ससुरजी बैठे थे
वे क्रोध में बोले,
-तो आप यहाँ मर रहे हैं ।
मिस्टर मुरादाबादी
अच्छा हुआ, जो
आपने अपनी असलियत बता दी
किसी गधे से कर दूँगा
अपनी लड़की की शादी । ''
मैंने कहा- ''सोच लीजिए, बाद में पछताएँगे
लौटकर मेरे ही पास आएँगे
इस अर्धपिशाच समाज में
गधा कहां से लाएँगे? ''
ravi bhai,
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