प्रमोद भार्गव दुनिया के नामचीन विशेषज्ञों व पर्यावरणविदों की मानें तो सभी भूकंप प्राकृतिक नहीं होते,बल्कि इन्हें विकराल बनाने में हमारा भी ह...
प्रमोद भार्गव
दुनिया के नामचीन विशेषज्ञों व पर्यावरणविदों की मानें तो सभी भूकंप प्राकृतिक नहीं होते,बल्कि इन्हें विकराल बनाने में हमारा भी हाथ होता है। प्राकृतिक संसाधनों के अकूत दोहन से छोटे स्तर के भूकंपों की पृष्ठभूमि तैयार हाती है। भविष्य में इन्हीं भूकंपों की व्यापकता और विकरालता बढ़ जाती है। यही कारण है कि भूकंपों की आवृत्ति बढ़ रही है। पहले 13 साल में एक बार भूकंप आने की आशंका बनी रहती थी,लेकिन यह अब घटकर 4 साल हो गई है। अमेरिका में 1973 से 2008 के बीच प्रति वर्ष औसतन 21 भूकंप आए,वहीं 2009 से 2013 के बीच यह संख्या बढ़ कर 99 प्रति वर्ष हो गई। यही नहीं भूकंपीय विस्फोट के साथ निकलने वाली ऊर्जा भी अपेक्षाकृत ज्यादा शक्तिशाली हुई है। नेपाल में 25 अप्रैल 2015 को आए भूकंप से 20 थर्मोन्यूक्लियर हाइड्रोजन बमों के बराबर ऊर्जा निकली है। इनमें से प्रत्येक विस्फोट हिरोशिमा-नागाशाकी में गिराए गए परमाणु बम से भी कई गुना शक्तिशाली था। जाहिर है,धरती के गर्भ में अंगड़ाई ले रही भूकंपीय हलचलें महानगरीय आधुनिक विकास और आबादी के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती हैं ? वैसे हमारे यहां भूकंपीय दृष्टि से जो भयावह संवेदनशील क्षेत्र हैं,उनमें अनियंत्रित शहरीकरण और आबादी का घनत्व सबसे ज्यादा है। भारत की यही वह धरती है,जिसका 57 प्रतिशत हिस्सा उच्च भूकंपीय क्षेत्र में आता है। इसी पूरे क्षेत्र में 25 अप्रैल शनिवार को धरा डोल चुकी है। बावजूद सौ स्मार्ट सिटी बसाने के बहाने शहरी विकास को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
एशिया के हिमालयी प्रायद्वीपीय इलाकों में बीते सौ वर्षों से धरती के खोल की विभिन्न दरारों में हलचल मची है। अमेरिका की प्रसिद्ध 'साइंस' पत्रिका ने कुछ वर्ष पहले भविष्यवाणी की थी कि हिमालयी क्षेत्र में एक भयानक भूकंप आना शेष है। यह भूकंप आया तो 5 करोड़ से भी ज्यादा लोग प्रभावित होंगे। इस त्रासदी में करीब 2 लाख लोग मारे भी जाएंगे ? हालांकि पत्रिका ने इस पुर्वानुमानित भूकंप के क्षेत्र,समय और तीव्रता सुनिश्चित नहीं किए हैं। लेकिन नेपाल के साथ भारत,चीन,बांग्लादेश,तिब्बत,भूटान,पाकिस्तान और अफगानिस्तान में एक साथ भूकंप के प्रकोप से डोली धरती ने एहसास करा दिया है कि वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी महज अटकल नहीं है। अमेरिका की भूगर्भीय संस्था यूएसजीएस ने माना है कि यह ताजा भूकंप भारतीय और अरेबियन परतों में हुए तीव्र घर्षण की वजह है। 81 साल के भीतर नेपाल में आया यह सबसे भयंकर भूकंप था। भूकंप का केंद्र काठमांडू से 40 मील दूर पश्चिम इलाके में लामजुंग था,जो कि ज्यादा जनसंख्या वाले क्षेत्र में आता है। नतीजतन मरने वालों की तादात 10 हजार तक पहुंच सकती है।
दुनियाभर के भूकंप व भूगर्भीय बदलावों की विश्वसनीय जानकारी देने वाले यूएसजीएस का कहना है कि भारतीय व अरेबियन परतों के बीच होने वाली टक्कर का सबसे ज्यादा असर हिमालय पर्वतमाला में बसे क्षेत्रों में पड़ेगा। इसे दुनिया के सबसे सक्रिय भूगर्भीय गतिविधियों के तौर पर भी देखा जाता है। इन परतों के बीच लगातार घर्षण बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप केदारनाथ में भूस्खलन,जम्मू-कश्मीर में बाढ़,नेपाल एवं भारत में भूकंप और तिब्बत में भूकंप,हिमपात व भूस्खलन की घटनाएं एक साथ देखने में आई हैं। तिब्बत के टिंगरी काउंटी के रॉग्जर कस्बों में 95 फीसदी से ज्यादा घर जमींदोज हो गए हैं। भारतीय और अरेबियन परतों की यह खतरनाक श्रृखंला जम्मू-कश्मीर से शुरू होकर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, तिब्बत, नेपाल, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम व भूटान होती हुई अंडमान निकोबार द्वीप समूह तक फैली है। सक्रिय भूगर्भीय गतिविधियों के निरंतर चलते रहने के कारण ही हिमालय पर्वत श्रृखंला में कच्चे पहाड़ अस्तित्व में आए हैं।
प्राकृतिक आपदाएं अब व्यापक विनाशकारी इसलिए साबित हो रही हैं,क्योंकि धरती के बढ़ते तापमान के कारण वायुमंडल भी परिवार्तित हो रहा है। अमेरिका व ब्रिटेन समेत यूरोपीय देशों में दो शताब्दियों के भीतर बढ़ी अमीरी इसकी प्रमुख वजहों में से एक है। औद्योगिक क्रांति और शहरीकरण इसी की उपज हैं। यह कथित क्रांति कुछ और नहीं प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंध दोहन करके पृथ्वी को खोखला करने के ऐसे उपाय हैं,जो ब्रहाण्ड में फैले अवयवों में असंतुलन बढ़ा रहे है। नतीजतन जो कॉर्बन गैसें बेहद न्यूनतम मात्रा में बनती थीं,वे अधिकतम मात्रा में बनने लगीं और वायुमंडल में उनका इकतरफा दबाव बढ़ गया। फलतः धरती पर पड़ने वाली सूरज की गर्मी प्रत्यावर्तित होने की बजाय,धरती में ही समाने लगी,गोया धरती का तापमान बढ़ने लगा,जो जलवायु परिवर्तन का कारण बन रहा है। चूंकि प्रकृति अमीरी-गरीबी में भेद नहीं करती है,इसलिए इसकी कीमत गरीब देश,मसलन विकासशील देशों को भी चुकानी पड़ रही है।
हिमालय के हिमखंड पिघलकर समुद्र का जलस्तर बढ़ा रहे है। आशंका है कि दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले बांग्लादेश के कई भंखड समुद्र में जल-समाधि ले लेंगे। लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि नष्ट हो जाएगी। वर्षा चक्र प्रभावित होगा। नतीजतन जनता को बाढ़ और सूखा दोनों तरह के अभिशाप झेलने होंगे। इस साल भारत के बहुत बड़े भूभाग में यही हश्र देखने में आया है। हालांकि इस बद्तर स्थिति में कुदरत का यह करिश्मा भी देखने में आ सकता है कि कनाडा और रूस की हिमशिलाओं के नीचे दबी लाखों बीघा जमीन बाहर निकल आएगी। बावजूद विनाश की आंशकाएं कहीं ज्यादा हैं,लिहाजा बेहतर यह होगा कि इंद्रिय-सुख पहुंचाने वाली भोग-विलस की संस्कृति पर लगाम लगे ?
भारत का 57 फीसदी भू-क्षेत्र धरती की कोख में अठखेलियां कर रही उच्च भूकंपीय तरंगों से प्रभावित है। इसे भारतीय मानक ब्यूरो ने 5 खतरनाक क्षेत्रों में बांटा है। यह विभाजन अंतरराष्ट्रीय मानक 1893 के मानदंडों के अनुसार किया गया है। क्षेत्र एक में पश्चिमी मध्य-प्रदेश,पूर्वी महाराष्ट्र,आंध्र प्रदेश,कर्नाटक और ओड़ीसा के भू-भाग आते हैं। इस क्षेत्र में सबसे कम भूकंप का खतरा है। दूसरे क्षेत्र में तमिलनाडू,राजस्थान,मध्यप्रदेश,पश्चिम बंगाल और हरियाणा हैं। यहां भूकंप की शंका बनी रहती है। तीसरे क्षेत्र में केरल,बिहार,पंजाब,महाराष्ट्र,पश्चिमी राजस्थान,पूर्वी गुजरात,उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के कुछ हिस्से शामिल हैं। इसमें भूकंप के झटके के आते रहते हैं। चौथे में मुबंई,दिल्ली जैसे महानगर,जम्मू-कश्मीर,हिमाचल प्रदेश,पश्चिमी गुजरात,उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों के साथ बिहार-नेपाल सीमा के इलाके शामिल हैं। यहां भूकंप का खतरा निरंतर है। यहां 8 की तीव्रता वाला भूकंप आ सकता है। इससे भी खतरनाक पांचवा ़क्षेत्र माना गया है। इसमें गुजरात का कच्छ व भुज क्षेत्र,उत्तराखंड का हिमालयी क्षेत्र और पूर्वोत्तर के सातों राज्य आते हैं। यहां भूकंप 9 की तीव्रता का आकर तबाही का आलम रच सकता है। .
हैरानी की बात यह है कि खतरनाक भूकंपीय क्षेत्रों की जानकारी हमारे पास है। बावजूद हम इन संवेदनशील क्षेत्रों में नगरों का विकास भूकंप-रोधी मानदण्डों के अनुरूप नहीं कर रहे हैं। भवन निर्माण तो छोड़िए,उत्तराखंड में टिहरी जैसे बड़े बांघ का निर्माण करके हमने खुद भविष्य की तबाही को न्यौता दिया है। हमारी बढ़ी व सधन घनत्व वाली बसाहटें भी उन संवेदनशील क्षेत्रों में हैं,जहां खतरनाक भूकंपों की आशकाएं सबसे ज्यादा हैं। इन बसाहटों में दिल्ली,मुबंई,कोलकत्ता समेत 38 महानगर हैं,जो भूकंप के मुहाने पर खड़े हैं। शहरीकरण से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की जुलाई 2014 में आई रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली 2.5 करोड़ की आबादी के साथ 3.80 करोड़ अबादी वाले टोक्यो के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर बन गया है। 2030 तक दिल्ली की आबादी 3.60 करोड़ हो जाएगी। फिलहाल मुबंई में 2.10 करोड़ और कोलकात्ता में 1.5 करोड़ जनसंख्या है। जाहिर है,आबादी के दबाव से इन नगरों का भूकंप रोधी नियोजित बुनियादी विकास असंभव है। तय है,इन नगरों में यदि कालांतर में भूकंप आया तो उसकी भयावहता का अंदाजा लगाना मुश्किल है ? क्योंकि जापान तो आए दिन आने वाले भूकंपों से अभ्यस्त हो गया है।
इसलिए जब जापान के फृकिशियामा में 2011 में 8.5 तीव्रता वाला भूकंप आया था तो वहां बमुश्किल सौ लोगों की जानें गई थीं,जबकि भारत जैसी मानसिकता वाले नेपाल में 7.9 की तीव्रता का भूकंप आया तो 5000 से भी ज्यादा मौतें हो गईं। इसलिए अनियंत्रित शहरीकरण से भारत को खतरा इसलिए ज्यादा है,क्योंकि यहां किसी भी नगर की नगरीय योजना भूकंप-रोधी बुनियाद पर खड़ी ही नहीं की गई है ? जबकि दिल्ली,मुबंई और कोलकात्ता भूकंपीय ऊर्जा के मुहानों पर बसे हैं। लिहाजा समय रहते सचेत होने की जरूरत है। सरकार को सौ स्मार्ट शहर बसाने की बजाय,विकास की ऐसी नीति को क्रियान्वित करने की जरूरत है,जो गांव और छोटे कस्बों में रहते हुए लोगों को रोजगार,आवास,शिक्षा,स्वास्थ्य,विघुत संचार,और परिवहन सुविधाएं उपलब्ध कराएं। इससे एक साथ दो लक्ष्यों की पूर्ति होगी। ग्रामों से पलायन रूकेगा और शहर बेतरतीन विकास से बचेंगे और बाईदवे भूकंप का संकट आया भी तो जनहानि भी कम से कम होगी।
भूकंप समुद्री,तूफान,चक्रवती हवाएं और जलवायु परिवर्तन का भय दिखाकर अकसर यह कहा जाता है कि कॉर्बन का उत्सर्जन कम करके पृथ्वी को बचालो,अन्यथा पृथ्वी नष्ट हो जाएगी। यहां गौरतलब है कि पृथ्वी करीब 450 करोड़ वर्ष पहले वजूद में आई,जबकि मनुष्य की उत्त्पत्ति दो लाख साल पहले अफ्रीका में हुई मानी जाती हैं। हमें ख्याल रखने की जरूरत है कि जब-जब प्राकृतिक आपदा के रूप में प्रलय आई है,तब-तब पृथ्वी का बाल भी बांका नहीं हुआ है ? महज कुछ क्षेत्रों में उसका स्वरूप परिवर्तन हुआ है। लेकिन बदलाव के इस संक्रमण काल में डाइनोसोर और मैमथ जैसे विशालकाय थलीय प्राणी जरूर हमेशा के लिए नष्ट हो गए ? गोया खंड-खंड आ रही प्रलय की इन चेतावनियों से मनुष्य को सावधान होने की जरूरत है।
प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224
फोन 07492 232007
लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है।
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