दीपक आचार्य हममें से अधिकांश लोगों को इस बात पर घोर और महान आश्चर्य होता है कि जो लोग ईमानदारी, स्वाभिमान, निष्ठा और पूरी कर्तव्यपरायणता क...
दीपक आचार्य
हममें से अधिकांश लोगों को इस बात पर घोर और महान आश्चर्य होता है कि जो लोग ईमानदारी, स्वाभिमान, निष्ठा और पूरी कर्तव्यपरायणता के साथ अपनी ड्यूटी या कर्मयोग के प्रति समर्पित होते हैं वे हमेशा दुःखी और परेशान रहते हैं। दूसरे लोग भी इन्हीं का शोषण करते हैं या किसी न किसी तरह हैरान-परेशान करते रहते हैं।
जबकि दूसरी ओर वे लोग मस्त होकर खुले साण्डों की तरह मदांध होकर घूमते रहते हैं जो काम भी नहीं करते, दादागिरी करते हैं, धींगामस्ती और हुड़दंग के सिवा कुछ नहीं करते और माल-मलाई खाने से लेकर हर प्रकार की प्राप्ति और संग्रहण में सबसे आगे रहते हैं।
भ्रष्टाचार, चापलूसी, बेईमानी और नालायकियों के लिए जाने जाते हैं, सज्जनों को तंग करने में जिनका कोई सानी नहीं है, जिन बाड़ों और गलियारों में हैं उनमें वही काम करते हैं जिनमें कुछ न कुछ मिलने की आस हो।
बहुत सारे लोगों के बारे में आम धारणा है कि ये भ्रष्टाचार और बेईमानी के क्षेत्र में इनका कोई सानी नहीं है और इस मामले में ये लोग तमाम प्रकार के हुनरों में दक्ष हैं। ये लोग हर काम में टाँग अड़ाते हैं, फाईलों के मार्ग में तगड़े स्पीड़ ब्रेकर के रूप में अड़े दिख जाते हैं, किसी काम को टालने के लिए बहानों की इनके पास कोई कमी नहीं होती और जो कोई इनके पास आता है दुःखी, संतप्त और पीड़ित ही होकर जी भर कर बददुआएं देता हुआ लौटता है।
इन स्थितियों में सज्जनों को इस बात का मलाल रहता है कि दुनिया में ये ही लोग फल-फूल रहे हैं और मस्ती मार रहे हैं, इन्हें कोई पूछने वाला नहीं है। जबकि उन लोगों के खिलाफ लोग हमेशा भौंकने के लिए तैयार रहते हैं जो लोग ईमानदारी से अपने काम करते हैं और किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखते।
सबको दुःख इसी बात का होता है कि भगवान भी ऎसे नालायकों और चोर-उचक्कों, रिश्वतखोरों और भ्रष्ट लोगों का कोई दण्ड नहीं देता जो समाज और देश के लिए नासूर बने हुए हैं।
इस सार्वजनीन सत्य की ओर सभी का ध्यान जाना स्वाभाविक ही है। इस मामले में कई सारे पहलू हैं जिन्हें व्यवहार मनोविज्ञान, धर्म और अध्यात्म तथा सम सामयिक स्थितियों से जोड़कर देखे जाने की आवश्यकता है।
हम सभी को इस तथ्य को तहे दिल से समझने की जरूरत है कि आज हम जिन बेईमानों और भ्रष्ट लोगों को देख रहे हैं उनके पास जो कुछ समृद्धि है वह लक्ष्मी न होकर अलक्ष्मी ही है और यह जिन रास्तों से आयी होती है उन्हीं रास्तों से निकल भी जाती है।
इसलिए इन भ्रमों से बाहर निकलने की जरूरत है कि यह पैसा या वैभव उनके पास टिका ही रहेगा। ये लोग अपने आपको चाहे कितने महान, लोकप्रिय और वैभवशाली समझें, इनके पास जिस अनुपात में अचल सम्पत्ति होगी उसी अनुपात में इनकी चल सम्पत्ति, जीवंत वैभव तथा मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य की हानि निश्चित है।
चल और अचल तत्वों का समानुपात हमेशा बना रहता है। एक तत्व बढ़ेगा तो दूसरा असंतुलित होगा ही। कुछ लोगों को पूर्वजन्म के कारण सुख और वैभव प्राप्त होता है।
कई सारे लोगों की मौत और पराभव के रास्ते ईश्वर खुले रखता है, वह इनके अधःपतन को अपने पर नहीं लेता बल्कि आदमी को वह इतना अधिक स्वतंत्र कर देता है कि वह अपने विवेक और ज्ञान का इस्तेमाल कर अपने हित में जो चाहे करे।
यह अलग बात है कि आदमी स्वार्थ और कुटिलताओं को अपना लेता है, षड़यंत्रों और गोरखधंधों में रहने लगता है तथा जड़ वस्तुओं और द्रव्य को ही जीवन का आधार मान लेता है और इस मानसिकता के कारण ही संस्कारों, मूल्यों, आदर्शों तथा सात्ति्वकताओं को गौण मानने लगते हैं।
और इसी चक्कर में हम इतने अधिक आसुरी भावों को अपना लिया करते हैं कि हमारे भीतर से दैवीय भाव पलायन कर जाते हैं। यह निश्चित मानकर चलना चाहिए कि जो लोग भ्रष्ट, बेईमान और नालायक हैं उनके ऊपर जाने से पहले ही उनका सारा माल यहीं किसी न किसी मार्ग से निकलने ही वाला है। प्रतिष्ठा का कबाड़ा भी होना ही है क्योंकि अलक्ष्मी दुनिया के सारे व्यसनों से जोड़ती ही है।
इस अलक्ष्मी की निकासी हमेशा दुःखदायी होती है और जीवन का उत्तराद्र्ध बिगाड़ने वाली होती है। अलक्ष्मी सम्पन्न कोई भी इंसान मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और मस्त हो, यह कभी संभव नहीं है।
ये लोग दिखने में कितने ही मोटे-तगड़े, आनंद भरे दिखें, इनकी शक्ल और शरीर में गैण्डों, दरियाई घोड़ों, भैंसों, भालुओं या जंगली हिंसक जानवरों की प्रतिच्छाया दिखाई दे, इनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति सामान्य नहीं हो सकती। कुछ न कुछ अभाव या पीड़ा हमेशा ही बनी रहती है लेकिन इसका प्रभाव इसलिए नहीं दिखता क्योंकि ये लोग अहंकार में भरे होते हैं और यह अहंकार ही है जो आदमी को अपने आप से भी दूर कर देता है और तमाम अच्छाइयों से भी।
अलक्ष्मी अहंकार लाती है और अहंकार आने का सीर्धा सा अर्थ है कि ईश्वर ने हमारे पतन का बैक डोर खोल दिया है और अब यह तभी बंद होगा जब हमारा ऊपर जाने का समय आएगा।
यह दंभ हमें अपनी कमजोरियों, पतन के रास्तों और दुर्गुणों के बारे में स्व ज्ञान से विमुख रखकर व्यक्तित्व को खोखला करता रहता है।
आज जो लोग हमारे सामने फूल कर कुप्पा हुए जा रहे हैं, अपने आपको भगवान के बराबर मान रहे हैं, खुद के धनकुबेर होने का भ्रम पाले हुए अहंकार के आसमान छूते झण्डों के साथ हर गली, चौराहों और राजमार्गों पर छाने लगे हैं, और जिन्हें लोग महानतम समझ रहे हैं, उनकी असलियत या तो उनकी आत्मा जानती है अथवा भगवान।
समय की प्रतीक्षा करें, भगवान पर भरोसा रखें। उनका अनुकरण न करें जो संस्कारहीन, शोषक और सिद्धान्तहीन हैं, इन लोगों का सब कुछ केवल भ्रम ही है, सत्य कुछ दूसरा ही है।
देखते जाइयें, बुराइयों के हर पहाड़ को भस्म होना ही है। अहंकारों के पर्वत पिघलने ही हैं, मोटी खाल भी राख होनी ही है और काले-घने बादलों की असलियत एक न एक दिन खुलनी ही है।
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- डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
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