भारत में शुद्ध सोने के मंदिर

SHARE:

डॉ. बिपिन चन्द्र जोशी भारत में शुद्ध सोने से मंदिरों का निर्माण किया जा रहा है , अच्छी बात है। भारत समृद्ध देश है। आध्यात्म का प्राण है ई...

image

डॉ. बिपिन चन्द्र जोशी

भारत में शुद्ध सोने से मंदिरों का निर्माण किया जा रहा है, अच्छी बात है। भारत समृद्ध देश है। आध्यात्म का प्राण है ईश्वर में आस्था। मंदिर ईश्वर का आवास है इसलिये हमारी आस्था का केन्द्र भी है। बड़े-बड़े मंदिरों में करोड़ों रुपये गुप्तदान में प्राप्त होते हैं व लाखों रुपये भेंट स्वरुप प्राप्त होते रहते हैं। प्रत्येक भक्त पुण्यफल प्राप्त करने के लिये मंदिर में भेंट चढ़ाता है। धनाढ्य भक्त ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिये गुप्तदान करता है। इससे तो यही प्रतीत होता है कि हम एक समृद्ध देश में निवास कर रहे है, लेकिन यहां लाखों लोग भूख और बीमारी के कारण मर जाते हैं। गरीबों के पास तन ढकने को कपड़ा नहीं होता, भूख को शान्त करने के लिये रोटी नहीं होती। लाखों गरीब बच्चे भूख, कुपोषण और बीमारी के कारण काल का ग्रास बन जाते हैं। कहते हैं, बच्चे में भगवान होता है। भगवान कहते हैं, आत्मरुप से मैं दीन-दुखियों में स्थित हूँ। दीन-दुःखी चलते फिरते भगवान हैं। यदि यह कथन सही है तो इन भूखे प्यासे बच्चों और दीन-दुःखियों में इन दानदाताओं को भगवान क्यों नहीं दिखायी देता है?

ये दानदाता भगवान के रुप में इस दरिद्रनारायण को बचाने के लिये दान देकर पुण्य अर्जित क्यों नहीं करते? गरीब की सेवा करने से जो पुण्यफल प्राप्त हो सकता है वह सोने के मंदिर बनाने से व बड़े-बड़े मंदिरों में भारी भेंट व दान देने से कभी नहीं मिल सकता है। दीन-दुःखी, बीमार, लाचार मनुष्यों और अन्य जीवों की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। दरिद्रनारायण, भगवान का ही रुप ह और हमारा आध्यात्म हमें यही शिक्षा देता है कि दरिद्रनारायण की सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है, सबसे बड़ा धर्म है।

ध्यान रहे, शुद्ध अन्तःकरण सबसे बड़ा तीर्थ है। अन्तःकरण को शुद्ध करने व शुद्ध बनाये रखने के लिये जो भी प्रयास किये जाते हैं उन्हें ही वास्तविक धार्मिक अनुष्ठान समझना चाहिये। ईश्वर की अनन्य भक्ति व ईश्वर का प्रेम पाने के लिये अन्तःकरण शुद्ध होना चाहिये। मनुष्य अपने सभी मनोविकारों को ज्ञानरुपी अग्नि में स्वाहा कर दे तो यह उसके जीवन का सबसे बड़ा यज्ञ होगा। निःस्वार्थ प्रेम की जलधारा में नियमित डुबकी लगाते रहने से गंगा स्नान से भी अधिक पुण्यफल प्राप्त होता है। हमारे रोम-रोम में श्रीराम निवास करते हैं, यह बात यदि सबकी समझ में आ जाए तो इसे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि कहने में संकोच नहीं होना चाहिये। मंदिर महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, महत्त्वपूर्ण है परम-पिता परमेश्वर के प्रति अटूट आस्था।

परहित बस जिन्ह के मन माहीं।

तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं।।

तनु तजि तात जाहु मम धामा।

देउँ काह तुम्ह पूरनकामा।।

रा.च.मा. ३/३१/९-१०

 

जिनके मन में दूसरों का हित बसता है (समाया रहता है) उनके लिये जगत में कुछ भी (कोई भी गति) दुर्लभ नहीं है। हे तात! शरीर छोड़ कर आप मेरे परमधाम में जाइये। मैं आपको क्या दूँ? आप पूर्णकाम हैं (सब कुछ पा चुके हैं)। यह बात प्रभु श्रीराम ने जटायु से कही थी। साधुसंत कहते हैं, द्वार खोलो, प्रभु को मन मंदिर में आने दो। अगर प्रभु आ गये तो तुम्हें किसी और की जरुरत नहीं पड़ेगी। लेकिन मनुष्य बहुत चतुर है। सोचता है यदि प्रभु ने मेरे हृदय में डेरा जमा लिया तो मेरी वासनाओं का क्या होगा? हृदय में मेरा परिवार बसता है, प्रियजन बसते हैं। चतुर मनुष्य बंधन में रह कर जीवन जीने का इच्छुक नहीं है। इसलिये उसने भगवान के लिये जगह-जगह मंदिर बना दिये हैं और उनकी पूरी सेवा पुजारी को सौंप दी है। मनुष्य अपनी मनमर्जी के अनुसार मंदिर जाता है, भगवान को हाथ जोड़ता है, उनका हालचाल पूछता है, उन्हें खुश रखने के लिये भेंट चढ़ाता है, पुजारी को खुश रखता है। भगवान से पूछ लेता है मजे में हो, इस घर में कोई तकलीफ तो नहीं है। माता-पिता को प्रत्यक्ष देवता कहते हैं। आजकल मनुष्य प्रत्यक्ष देवता की सेवा भी नहीं करता।

पितृमातृसमं लोके नास्त्यन्यद् दैवतं परम्।

तस्मात् सर्वप्रयत्नेन पूजयेत् पितरौ सदा।। गरुड़पुराण उत्तर ११/३४

माता पिता के समान इस संसार में कोई श्रेष्ठ देवता नहीं है, इसलिये सभी प्रकार से उनकी

पूजा करनी चाहिये।

पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः। पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्व देवताः।।

पितरो यस्य तृप्यन्ति सेवया च गुणेन च। तस्य भागीरथीस्नानमहन्यहनि वर्तते।। सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता।

मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।। मातरं पितरं चैव यस्तु कुर्यात् प्रदक्षिणम्।

प्रदक्षिणीकृता तेन सप्तद्वीपा वसुन्धरा।।

पद्मपुराण पिता धर्म है, पिता स्वर्ग है, पिता ही परम तप है, पिता के प्रसन्न होने पर सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं। जिसकी सेवा और सद्गुणों से माता-पिता संतुष्ट रहते हैं, उस पुत्र को प्रतिदिन गंगा स्नान का फल मिलता है। माता सर्वतीर्थमयी है और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरुप है। इसलिये सब प्रकार से यत्नपूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिये। जो माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सातों द्वीपों से युक्त समूची पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है।

ऐसे में, जैसे भक्त हैं वैसे ही भगवान भी हो गये हैं। हनुमानजी के भगवान का निवास उनके हृदय में है लेकिन मनुष्य के भगवान की शरणस्थली तो मंदिर ही हैं। जब राम-लक्ष्मण, सीता चौदह वर्ष के वनवास पर जा रहे थे तो मार्ग में उन्हें महर्षि वाल्मीकि मिले। श्रीराम ने उनसे पूछा, हम किस वन में निवास करें? महर्षि ने कहा, आप कहां नहीं हैं, मुझे यह बता दें तो मैं आपको जगह बता दूँगा। महर्षि ने हंस कर मधुरवाणी में विशेष तरह के मनुष्यों के सुन्दर हृदयों को अपना घर बनाने के लिये कहा। इस तरह महर्षि ने सद्गुणों से परिपूर्ण मानव-मानस गिना कर प्रभु को उनके निवास स्थल बताये। क्या आपका हृदय प्रभु का निवास बनने योग्य है? यदि हाँ, तो प्रभु को अपने हृदय में निवास करने के लिये आमंत्रित कीजिये। यदि आपका हृदय प्रभु के निवास योग्य नहीं है तो उसे निवास योग्य बनाइये। जगह-जगह मंदिर बना कर प्रभु को वहाँ निवास करने के लिये बाध्य मत कीजिये। अपने मन को मंदिर बनाइए। यदि आप ऐसा करते हैं तो यही सच्चा पुरुषार्थ होगा। जिस व्यक्ति को अपनी धन-सम्पदा का अभिमान हो, पुरुषार्थ का अभिमान हो, वह कितना भी दान करे भगवान को नहीं पा सकता। भगवान को पाने के लिये अहंकार का त्याग आवश्यक है। यदि इस तरह का अहंकारी व्यक्ति मंदिर में दान देने के बजाय दरिद्रनारायण की सेवा करे तो अपने जीवन में कुछ पुण्यफल अर्जित कर सकता है, भगवान की कृपा पा सकता है।

जिस भक्त की भगवान में अटूट श्रद्धा होती है उसका कभी अनिष्ट नहीं हो सकता। शूर्पणखा की नाक लक्ष्मण ने काटी। किसके इशारे पर काटी? शूर्पणखा (नीलमणि) अपना कामुक श्रृंगार कर हमेशा दूसरों का चरित्र भ्रष्ट करती रहती थी। उसका दर्प दूर करने के लिए ही उसकी नाक काटी गई। शूर्पणखा वासना का रुप धारण कर प्रभु श्रीराम के पास आयी तो उसकी नाक कटी, अपमानित हुई। वहीं दूसरी ओर शबरी ने सच्चे मन से प्रभु श्रीराम की भक्ति की। उसकी भक्ति से प्रभु इतने प्रसन्न हुए कि वे स्वयं शबरी के पास पहुँच गये। गिद्धराज जटायु को प्रभु ने पिता के समान आदर देकर उनका उद्धार किया। भगवान अमीर-गरीब नहीं देखते। जहां सच्चा प्रेम दिखायी देता है भगवान वहाँ पहुँच जाते हैं। जिसके मन में अहंकार हो, धन-सम्पदा का अभिमान हो, मन में वासना हो, उसे निश्चितरुप से अपमानित होना पड़ता है। मंदिर बनाने से, भारी भेंट चढ़ाने से, काले धन का गुप्तदान करने से कोई सुफल प्राप्त नहीं होता। अपने मन को मंदिर बनाइये। गरीब, दीन-दुःखी की सेवा कीजिये। दरिद्रनारायण की सेवा सबसे बड़ा धर्म है, प्रभु की कृपा प्राप्त करने का सुगम साधन है। राजस्थान पत्रिका  में  गुलाब कोठारी जी का लेख 'मंदिर' पढ़ा। कोठारीजी कहते हैं, किसी भी भवन को मंदिर हम बनाते हैं। न वहाँ का देवता बना सकता न ही वास्तुकार। भक्त में ही शक्ति है सारी। दिल भी मंदिर है। हर व्यक्ति ही चलता फिरता मंदिर है। म+न+द +इ+र म = ध्वनि शब्द, न = शून्य, द = गतिमान करना, इ = इधर, र = देना - ध्वनि को शून्यता देने की ओर गतिमान करना।

यही परिभाषा मन मंदिर पर भी खरी उतरती है। शब्द जहाँ ठहर जाएँ। पष्यन्ति में चित्रात्मक वातावरण बने। मौन रह कर मन के धरातल पर आदान-प्रदान हो सके। शरीर का लोप हो जाए। समर्पण भाव के कारण अहंकार भी कुछ दरे वहां नहीं ठहरे। बस, उसी का साहचर्य हो। ऐसे स्थान को कहते हैं मंदिर। जहाँ शोर हो, मन भटकता रहे, केसर-चंदन में अटका रहे वह मंदिर नहीं हो सकता। हमने तो मंदिर में आज हजारों तरह के शोर -शराबे भर दिये। जुलूस में देवता को शहर भ्रमण पर ले जाते हैं यह धर्म विशेष का अपना स्वरुप हो सकता है, उपासना मार्ग के व्यक्ति का नहीं हो सकता, वह तो वहां जाकर गूंगा हो जाना चाहता है।

भक्त मंदिर जाता है तो वहाँ उस मूर्ति को मूर्तरुप मान कर बातें करता है। अपने मन की, अपने सुख-दुःख की, सपनों की बातें करता है। देवता का साहचर्य चाहता है। दोनों के बीच की दूरी असह्य होने लगती है। वह देवता के साथ एक रिश्ता भी बनाता है। वह पिता हो, माता हो, मित्र हो, प्रेमी हो, कुछ भी हो सकता है। उसी के अनुरुप अधिकारपूर्वक सम्बोधन करता है। यह भी ध्यान रखता है कोई उसके मनोभावों को पढ़ नहीं ले। परोक्षा वैप्रिय देवाः! देवता तो भाव के भूखे होते हैं, उन्हें सामग्री नहीं चाहिये। जो प्रार्थना पूजा-अर्चना पहले करते थे वह धीरे-धीरे छूट जाता है। केवल मन के सूत्र जोड़े रखने का कार्य हो सके। उपासना भक्ति में बदल सके। कितना सुन्दर मंदिर बनाया है परम श्रद्धेय गुलाब कोठारी जी ने। मंदिर चाहे सोने का हो या पत्थर का, यदि हमने उसे मंदिर नहीं बनाया तो उसकी भव्यता एवं वास्तुकला का कोई औचित्य नहीं। मंदिर बनाइये ऐसा, जहां शोर न हो, जहाँ शोर हो रहा है वह समाप्त हो। क्या इस देश में ऐसे मंदिर बनेंगे?

---- ----

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: भारत में शुद्ध सोने के मंदिर
भारत में शुद्ध सोने के मंदिर
http://lh3.googleusercontent.com/-NGfgLZYDEf4/VaouaNRO4uI/AAAAAAAAlHU/I-ud_BD60pE/image%25255B5%25255D.png?imgmax=800
http://lh3.googleusercontent.com/-NGfgLZYDEf4/VaouaNRO4uI/AAAAAAAAlHU/I-ud_BD60pE/s72-c/image%25255B5%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/07/blog-post_27.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/07/blog-post_27.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content