रचना समय अक्तूबर 2015 - सुरजीत मान : सुरजीत पातर होने का महत्त्व

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  सुरजीत मान सुरजीत पातर होने का महत्त्व पंजाब के जालंधर जिले के गाँव पत्तड़ कलाँ में जन्मे सुरजीत पातर के गाँव में तब सिर्फ़ चौथी श्रेणी...

 

सुरजीत मान

सुरजीत पातर होने का महत्त्व

सुरजीत पातर पंजाबी कवि

पंजाब के जालंधर जिले के गाँव पत्तड़ कलाँ में जन्मे सुरजीत पातर के गाँव में तब सिर्फ़ चौथी श्रेणी तक स्कूल था। मैट्रिक उसने साथ के गाँव खैरा मज्झा से किया। रोज तीन किलोमीटर जाना, तीन आना। ग्रैजुएशन रणधीर कॉलेज कपूरथला से, एम.ए. पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला से, पीएच-डी गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर से, यहां से बाद में उसे डी.लिट की सम्मानार्थ डिग्री भी प्रदान की गयी। काफी लम्बा अरसा (32 वर्ष) उसने पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी में अध्यापन किया। ‘पंजाबी साहित्य में कृषि का चित्रण’ विषय पर प्रौजेक्ट मुकम्मल किया। ऋग वेद से लेकर आधुनिक समय तक की पंजाबी कविता के इतिहास पर ‘सूरज दा सरनावां’ प्रोग्राम के अंतर्गत 30 कड़ियों में दूरदर्शन, जालंधर के लिए आलेखन और प्रस्तुति की।

सुरजीत पातर के बचपन की सबसे अहम याद यह है कि जब वह दूसरी में पढ़ता था तो उसके पिता हरभजन सिंह घर की आर्थिक दशा को सुधारने के लिए पहली बार परदेस गए; उत्तरी अफ्रीका जंजीबार, वहां रेलवे ट्रैक्स बिछ रहे थे। अपनी माँ, चार बड़ी बहनों और एक छोटे भाई के साथ खड़े सुरजीत ने अपने पिता को जाते हुए देखा और बहुत वर्षों बाद इसका जिक्र एक गीत में किया था :

मैली सी सर्दियों की धुंधली सवेर थी वह

सूरज के निकलने में अभी काफी देर थी

जब पहली बार मेरे पिता परदेस गए

मेरी माँ की आँखों में

आंसू और अंधेरा था

शायद यही कारण है कि उसकी कविताओं में प्रवास का बहुत मार्मिक जिक्र है;

सिर्फ पंजाबियों के प्रवास का ही नहीं, बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूरों का भी। इस प्रसंग में ‘आया नन्द किशोर’ तथा ‘अरदास’ उसकी बहुचर्चित कविताएँ हैं। बचपन में सुरजीत की इच्छा थी कि वह संगीतकार बने। वह संगीतकार तो नहीं बन सका पर बहुत गहरा रिश्ता है उसकी ज़िन्दगी और कविता का संगीत से। संगीत की वजह से ही वह गीतों और ग़ज़लों से जुड़ गया। उसकी अनेक कविताओं में संगीत के बिंब हैं। ‘वजंत्री’, ‘बँसरी वृत्तांत’, ‘साज़नवाज़’, ‘बाँसुरी से बहस’ तथा ‘उसने और ही साज़ बजाया’ आदि मुकम्मल तौर पर संगीत की बिम्बावली से ओत-पोत रचनाएँ हैं। सुरजीत पातर इस समय पंजाबी के सबसे चर्चित और सबसे सैलिब्रेटिड समकालीन कवियों में से एक हैं। समकालीन कवियों में से सबसे ज़्यादा पढ़े और सुने जाने वाले, सबसे ज़्यादा उद्धरित किये जाने वाले कवि हैं शिव कुमार, पाश और सुरजीत पातर। सुरजीत पातर 24-25 वर्ष का था जब वह अपनी कविताएँ- बूढ़ी जादूगरनी कहती है, घरर घरर, ख़तों की इन्तज़ार तथा अब घरों को लौटना- आदि के लिए चर्चित हो गया, उसकी कविताओं और गीतों-ग़ज़लों की पंक्तियाँ इधर-उधर हवा में तैरती अक्सर मिल जाती थीं :

तेरा भी नाम रखेंगे

तेरी छाती पर भी खंजर या तमगा धर देंगे

जरा जीवंत तो हो

तेरी भी हत्या कर देंगे

मैं बूढ़ी जादूगरनी बड़े मंत्र जानती हूँ

मैंने जिस छाती पर तमगा सजाया है

वही घड़ी बन गई है

मैंने जिसके गले में हार डाला है

वही बुत बन गया है

मैं जिसे अपना पुत्र कह देती हूँ

उसे अपनी माँ का नाम भूल जाता है

***

मैं छाते जितना आकाश हूँ गूंजता हुआ

हवा की सांय सांय का पंजाबी में अनुवाद करता

अजीबोगरीब दरख्त हूँ

***

कोई शाखाओं में से गुजर गया हवा बन कर

मैं रह गया वहीं वृक्ष की आह बन कर

उसके पदचिन्हों पर दूर दूर तक गिरते रहे मेरे पत्ते

मेरी बहारों का गुनाह बन कर

कभी मिला भी करो इन्सानों की तरह

यूँ ही गुजर जाते हो कभी पानी कभी हवा बन कर

उसका काव्य कोमलता का, ठोसपन का, प्रगीत तथा नाटकीयता का अजब दिलकश संयोग है। इस संयोग का कारण शायद यह है कि पंजाबी लोकधारा, गुरबाणी और सूफी कलाम उसकी रगों में हैं, और साथ ही वह कॉलेज के दिनों में ग़ालिब, मीर, इकबाल तथा मुक्तिबोध का दीवाना था। फिर पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला में आ के वह यूनानी त्रासदी, लोर्का, ब्रेख्त और नेरुदा का उपासक हो गया। बाद में उसने बहुत से विश्व प्रसिद्ध नाटकों के पंजाबी रूपांतरण किये। लोर्का की तीनों त्रासदियों, (यां जिरादू के मैड वोमन ऑफ विलेज शुआं) आदि के रूपांतरण मूल पंजाबी नाटकों की तरह पढ़े जाते हैं। इसके इलावा उसने रेसीन के ‘फीदरा’, ब्रेख्त के ‘ऐक्सैप्शन ऐंड द रूल’ और बहुत सारी कहानियों और नावेलों के नाट्य रूपान्तरण- किचन कथा (चंद कौर दा चौका चूल्हा) सीबो इन सुपरमार्किट, सूट, हेठ वगे दरिया तथा इच्छाधारी आदि नामों के तहत किये जिनका मंचन प्रसिद्ध नाट्य निर्देशिका नीलम मान सिंह चौधरी ने किया। सुरजीत पातर के काव्य संग्रहों- हवा विच लिखे हर्फ, बिर्ख अर्ज करे, हनेरे विच सुलगदी वर्णमाला, लफजां दी दरगाह, सुरजमीन तथा चन्न सूरज दी वहिंगी में विषयों की विविधता के साथ साथ जो दूसरी बात ध्यान खींचती है वह उसके काव्य रूपों का विशाल रेंज है। नाटकीय काव्य से लेकर गीत-ग़ज़ल-दोहे, दोहड़े, टप्पे, माहिया तक। फ्रीवर्स तथा ब्लैंक वर्स से लेकर अनेक देसी तथा मार्गी छंदों बहरों तक। यह रेंज उसके काव्य को बहुत से ताल और मूड्ज देता है। उसके काव्य के एक और पहलू का बयान पंजाबी के प्रबुद्ध मार्क्सवादी चिंतक डॉ तेजवंत सिंघ गिल के शब्दों में करना चाहता हूँ जिसने पाश और सुरजीत पातर के जीवन और रचना पर मुकम्मल पुस्तकें लिखी हैं, तेजवंत लिखते हैं : ‘‘सुरजीत पातर ने बहुत दुर्लभ दृढ़ता से अपनी यथार्थ की भावना को और यथार्थ ग्रहण करने के अपने तरीकों को अपने समय के सृजनात्मक तथा विचारधारिक बंधनों से स्वतंत्र रखा है। यह स्वतंत्रता भी उसकी अनुभूति तथा अभिव्यक्ति की प्रमाणिकता की साक्षी है।’’

सुरजीत पातर पंजाबी यूनिवर्सिटी पटिआला में पीएच-डी कर ही रहा था कि पंजाब में नक्सलबाड़ी लहर ज़ोरों से शुरू हो गई। यूनिवर्सिटी के होस्टलों में खूंखार बहसें होने लगीं। रूपोश बागी भी कभी कभार होस्टलों में आ जाते। सुरजीत पातर भी इस लहर से प्रभावित हुआ। बेशक वह हिंसा को लेकर, संघर्ष के तरीके को लेकर और साम्यवादी निजाम में साहित्यकार की स्वतंत्रता को लेकर अलग तरह से सोचता था पर अपने हमउम्रों के हौसले और कुर्बानी ने उसे बहुत प्रभावित किया। उन दिनों ही यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियों की बहुत बड़ी हड़ताल हुई। बहुत से विद्यार्थियों और अध्यापकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। सुरजीत पातर को भी पीएच-डी छोड़नी पड़ी जो फिर उसने बहुत देर बाद मुकम्मल की। उसने अमृतसर के पास बाबा बुड्ढा कॉलेज बीड़ साहिब में नौकरी कर ली। एक साल बाद पंजाबी के महाकवि प्रो. मोहन सिंह उसे पंजाब ऐग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी लुधियाना में ले आए, यहाँ वह प्रोफेसर मेरिटस थे और पंजाबी साहित्य का इतिहास लिखने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। 1973 में तीन युवा मित्रों (परमिंदरजीत (कवि) जोगिंदर कैरों (कथाकार) और सुरजीत पातर (कवि) ने एक सांझी पुस्तक ‘कोलाज किताब’ प्रकाशित की। इस किताब में सुरजीत पातर की नौ कविताएँ शामिल थीं। बहुत वर्ष सुरजीत पातर इन नौ कविताओं के बलबूते ही चर्चा में रहा। 1976 में उसने लंबी बहर की एक मुसलसल ग़ज़ल लिखी जो अभी तक पंजाब के दिल की धड़कन बनी हुई है :

कुछ कहा तो अँधेरा सहन कैसे करेगा

चुप रहा तो शमादान क्या कहेंगे

यदि इस रात गीत की मौत हो गयी

मेरा जीना मेरे यार कैसे सहेंगे

इस ग़ज़ल के लिखे जाने से पहले भी पंजाबी में बहुत सी ग़ज़लें लिखी गयीं, पर यह ग़ज़ल तो पंजाब में लोकगीतों की तरह प्यारी हो गई। पंजाब कितने वर्ष हिंसा प्रतिहिंसा के संताप से गुज़रा है। सुरजीत की एक कविता है : मातम / हिंसा / ख़ौफ़ / बेबसी / और अन्याय ये हैं आजकल / मेरे पांच दरियाओं के नाम।

1993 में सुरजीत पातर के दो काव्य संकलन प्रकाशित हुए : हनेरे विच सुलगदी वर्णमाला और बिर्ख अर्ज़ करे, 2000 में लफ़्ज़ों की दरगाह, 2004 में सुरज़मीन, 2013 में चन्न सूरज दी वहिंगी। पिछले कुछ सालों में उसने भाषा के हवाले से बहुत अलग तरह की नाटकीय कविताएँ लिखी हैं -जिनमें से आया नन्द किशोर, भाषा बहता नीर, शब्दकोश की दहलीज़ पर, मर रही है मेरी भाषा, हे कवि, ऊड़ा ओर जूड़ा प्रमुख हैं। सुरजीत पातर की कविताएँ अपने समय की कलामय तथा संवेदनशील दस्तावेज़ भी हैं और मानव मन की कामनाएं, सोच, ख़्याल, उदासियां, खुशियां और चिंताएं भी और न्याय, बराबरी, प्रेम, कला और ख़ूबसूरतीवाला समाज सिरजने का सपना भी। उसकी पंजाब के बारे में लिखी एक बहुत उदास कविता का जिक्र मैं पहले कर आया हूँ। सुरजीत पातर के काव्य में उदासी और इख़्लाक़ी तनाव के दो सुर निरंतर सुने जा सकते हैं। 1979 में प्रकाशित हुई उसकी प्रथम पुस्तक की प्रथम पंक्तियां हैं :

उजले दर्पण के सम्मुख

मुझे देर तक न खड़ा रखो

इस मौत मत मारो

मैले मन वाले मुजरिम को

या एक और जगह वह लिखता है :

दूर यदि अभी सबेरा है

इसमें काफ़ी कसूर मेरा है

कैसे मैं काली रात को कोसूं

मेरे दिल में ही गर अँधेरा है

यह शायद हमारे समय की आत्मा है, जो भाषा बन कर तड़प रही है। दो पंक्तियों में दो जहानों की आग समो लेने का सिलसिला जो 13वीं सदी में हुए पंजाबी के प्रथम कवि बाबा फ़रीद से शुरू हुआ था सुरजीत पातर उसके अकेल वारिस हैं। सुरजीत पातर के समकालीन कवि पाश के सुरजीत पातर के नाम लिखे पत्र से कुछ पंक्तियों के उद्धरण के साथ मैं इस लेख का अंत करना चाहता हूँ। ‘‘तेरी कविताएँ पढ़ कर मैं कई बार बहुत हैरान, उत्तेजित और भयभीत हुआ हूँ। ख़ुशी और अपनत्व के अहसास में तुम्हें गालियाँ भी दी हैं। तुम निस्संदेह हमारे वक़्त के बहुत बड़े कवि हो। यह तुम्हारी शक्ति ही है जो मेरे जैसे अलग विचारधारा वाले शख़्स को भी यह कहने पर मजबूर करती है। अहसास की धारा में तुम्हारा क़द बहुत ऊँचा है, शायद सबसे ऊँचा।’’ शिद्दत और प्यार से सुलगती पाश की ये पंक्तियाँ जिस तरह सुरजीत पातर होने के महत्त्व को आंकती हैं, शायद ही कोई और पंक्तियाँ आंक सकें

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रचनाकार: रचना समय अक्तूबर 2015 - सुरजीत मान : सुरजीत पातर होने का महत्त्व
रचना समय अक्तूबर 2015 - सुरजीत मान : सुरजीत पातर होने का महत्त्व
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