प्राची - सितम्बर 2015 - भैरव प्रसाद गुप्त की कहानी - खलनायक

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धरोहर कहानी खलनायक भैरव प्रसाद गुप्त आ दाब अर्ज करता हूं!’’ कमरे में घुसते हुए, देव बोला. अपनी कुर्सी से उठ कर, उसकी ओर हाथ बढ़ाते हुए, क...

धरोहर कहानी

खलनायक

भैरव प्रसाद गुप्त

दाब अर्ज करता हूं!’’ कमरे में घुसते हुए, देव बोला. अपनी कुर्सी से उठ कर, उसकी ओर हाथ बढ़ाते हुए, कमल ने कहा-‘‘आदाब अर्ज! आओ बैठो.’’

उसकी मेज पर अपना बड़ा-सा बैग रखकर, उससे हाथ मिलाते हुए, खड़े-खड़े ही देव ने कहा-‘‘भाई, बैठूंगा नहीं. तुम अभी मेरे साथ काफी हाउस चलो. बाहर टैक्सी रोककर आया हूं.’’

‘‘दो मिनट बैठो तो,’’ कमल ने उसका हाथ छोड़कर, उसकी ओर देखते हुए कहा-‘‘अभी तो साढ़े-चार बजे हैं. ऑफिस उठने में आधे घंटे की देर है.’’

‘‘मैं तुम्हारे बॉस से कह देता हूं,’’ देव ने फोन की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा-‘‘यार, क्या मेरी खातिर तुम आधे-घंटे पहले ऑफिस नहीं छोड़ सकते?’’

उसका हाथ थामते हुए, कमल ने कहा-‘‘फोन करने की जरूरत नहीं. जरूरत हो, तो मैं यों भी ऑफिस छोड़ सकता हूं. लेकिन काफी हाउस के लिए-’’

‘‘भाई,’’ बीच में ही उसकी बात काटकर, पांवों के पंजों पर खड़े होते हुए, देव जल्दी में बोला-‘‘रश्मी ने चार बजे काफी हाउस में बुलाया है. मैंने उससे वादा किया है, कि तुम्हें लेकर आऊंगा. वह तुमसे मिलना चाहती है.’’

‘‘मुझसे?’’ उसकी ओर भौंहें उठाकर देखते हुए, कमल बोला-‘‘मुझसे वह क्यों मिलना चाहती है?’’

‘‘यार, यह सब मैं अभी बता दूंगा. तुम उठो तो.’’-कह कर, देव ने उसके हाथ की ओर अपना हाथ बढ़ाया.

अपना हाथ खींचते हुए? कमल ने कहा-‘‘तुम जाओ. अपने साथ मुझे भी क्यों घसीटना चाहते हो? रश्मी को मुझसे कोई काम हो ही नहीं सकता.’’

एड़ियां झुकाकर, जूतों के पंजे फर्श पर बचाते हुए, देव ने कहा-‘‘काम न होता, तो मैं इस तरह क्यों जिद करता? तुम चलो, मेरे वादे का ख्याल करके ही चलो. तुम्हें कोई अफसोस न होगा, मेरा विश्वास करो. तुमने रश्मी को कब देखा था?’’

याद करते हुए, कमल बोला-‘‘कई महीने पहले उसे एक बार बस में देखा था. अपनी बच्ची को वह गोद में लिए हुए थी. स्टैंड पर मुझे खड़े देखकर, उसने ही नमस्ते कहलवाया था. दोनों की हालत इतनी खस्ता थी, और उनके कपड़े इतने साधारण और मैले-से थे, कि देखकर अपनी आंखों पर ही विश्वास न हुआ. बड़ा दुख लगा. यों ही मैंने पूछ लिया, ‘अच्छी तरह तो हो?’ उसने आंखें झुकाकर कहा, ‘देख नहीं रहे हो?’ मैंने देखा था. मेरी भी आंखें झुक गयीं. और बस चली गयी...वह बेचारी किसी को काफी हाउस क्या बुलाएगी? तुम्हीं ने बुलाया होगा.’’

‘‘इससे क्या फर्क पड़ता है?’’ देव मुस्कराकर बोला- ‘‘लेकिन अब वह वैसी नहीं है. कल स्टैण्डर्ड में वह अचानक ही मुझे मिल गयी थी. देख कर मैं तो हैरत में आ गया. तुम्हें उसे उस रूप में देखकर अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ था, और मुझे उसे इस रूप में देख कर अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ. तुम्हें बड़ा दुःख था. और, सच पूछो तो, मुझे भी दुख ही लगा. मेरा ख्याल है, कि उसका दिमाग कुछ खराब हो गया है. कहीं वह जल्दी ही पागल न हो जाए. इधर उसके विषय में तुमने कुछ सुना भी नहीं क्या?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘चलो, मैं तुम्हें सब बताता हूं,’’ देव कुर्सी के कोने पर बैठते हुए बोला-‘‘सचमुच वह तुमसे मिलना चाहती है. झूठ मैं क्यों बोलूंगा? ...सीढ़ियां उतर कर हम नीचे आये, तो वह बोली- ‘इस वक्त तो मैं अपने एक दोस्त के साथ हूं. कल शाम को छः बजे आप जहां कहें, मैं आ जाऊंगी. यहां भी ठीक रहेगा, या वैंगर्स में, या ला बोहेम में, या...’ मैंने कहा-‘रश्मी, मैं गरीब आदमी हूं. यहां तो मेरे एक दोस्त ले आये थे. तुम मेरे साथ बैठना ही चाहती हो, तो काफी हाउस...’ सुनते ही उसने नाक-भौं सिकोड़ ली. बोली-‘काफी हाउस भी कोई जगह है? मैं वहां कभी नहीं जाती. आप कहां ठहरे हैं?’ मैंने मन-ही-मन सहम कर कहा-‘वहां ठीक नहीं रहेगा. मुझ गरीब के साथ अगर एकाध घंटा तुम काफी हाउस में ही बैठ जाओगी, तो क्या बिगड़ जाएगा?’ ‘अच्छा, तो फिर चार बजे आइए,’ वह बोली-‘मैं छः बजे का कोई और अपांइटमेंट ले लूंगी. अब मैं जाऊंगी. देखिए, वह मेरा दोस्त खड़े-खड़़े बोर हो रहा है.’ कहते हुए वह हिरनी की तरह भागी, लेकिन फिर तुरन्त ही रुक कर मुड़ी, और फिर मेरे पास आकर हांफती हुई बोली-‘कमल भैया को भी साथ लाइएगा. मैंने डायरी के फार्म में अपनी पिछली जिन्दगी पर कुछ लिखा है. उन्हें सुनाना चाहती हूं. वादा कीजिए, कि आप उन्हें अपने साथ लाएंगे.’ मैंने सिर हिला दिया, तो वह फिर भाग खड़ी हुई. मैंने देखा, कितनों से वह टकरायी, इसका हिसाब नहीं. खैर, अब तो तुम उठ ही जाओ. पांच बजे के पहले अब क्या पहुंचेंगे. छै बजे वह उठ ही जाएगी.’’ कहकर, देव उठा, और बगल से आकर उसकी बांह पकड़ ली.

‘‘अब तक वह क्या तुम्हारा इन्तजार कर रही होगी?’’ कमल ने पूछा-‘‘उसने मुझे सचमुच भैया कहा था, कि तुम मजाक कर रहे हो?’’

‘‘वह किसको क्या कहती है, और उसका क्या मतलब होता है, तुम उससे मिलकर ही समझ सकते हो,’’ देव बोला-‘‘तुम उठो. मैंने केसर को भेज दिया था. वह चार बजे पहुंच गयी होगी. मुझे एक जगह काम था. फिर इतना सारा समय तो तुमने ही ले लिया. अजीब आदमी हो. एक-जरा-सी बात के लिए...चलो, उठोगे भी?’’

फिर भी रश्मी से मिलने की कोई उत्सुकता कमल को न हुई. वह जरा भावुक हो उठा था. उसे याद आ रहा था, कि एक बार रश्मी ने उसका हाथ पकड़कर, अपनी आंखों में असीम कृतज्ञता का भाव लाकर, उसकी ओर देखते हुए, विह्वल होकर भैया कहा था. लेकिन फिर तो...

देव इतनी जबरदस्ती न करता, तो वह न उठता. टैक्सी में बैठ गये, तो देव ड्राइवर से बोला-‘‘जल्दी. काफी हाउस.’’

टैक्सी चल पड़ी, तो देव सीट पर तिरछे होकर, कमल की ओर मुंह करके बोला-‘‘तो हुआ यह है, कि’’

‘‘जाने दो,’’ कमल बोला-‘‘मैं क्या करूंगा और कुछ जान कर? जो जाना है, वही बहुत है. बल्कि मैंने तो वह सब भी भुला-सा दिया है.’’

‘‘लेकिन, यार’’ देव बोला-‘‘रश्मी मुझे आज तक न भूल सकी. कल स्टैण्डर्ड में उतने लोगों के बीच मुझसे अचानक ऐसे आ लिपटी, कि...’’

‘‘काश, उसे तुम अपने को भूल जाने देते!’’

‘‘तुम भी यही कहोगे?’’ देव नाराज-सा होकर बोला-‘‘तुम तो जानते हो, जहां तक मेरा संबंध है, रश्मी के लिए मेरे दिल में कुछ भी नहीं है. रश्मी के लिए क्यों, किसी के लिए भी मेरे दिल में कुछ भी नहीं होता. शायद दिल नाम की कोई चीज ही मेरे अन्दर नहीं है. मैं मुहब्बत किसी से भी कर ही नहीं सकता. अब रश्मी यह सब जान कर भी मुझसे मुहब्बत करने से बाज नहीं आती, तो मैं क्या कर सकता हूं?’’

‘‘यह झूठ है.’’ कमल को गुस्सा आ गया था.

जाने और भी क्या-क्या उसके मुंह से निकलने जा रहा था. लेकिन थोड़ी देर में ही उसने अपने-आप को संभाल लिया. क्या फायदा अब यह सब कहने से? जो होना था, हो चुका. एक हंसती हुई जिन्दगी बरबाद हो गयी. हंसती-खिलखिलाती रश्मी की वह तस्वीर उसकी स्मृति में चमक गयी. वह बोला-‘‘ब्याह के बाद रश्मी कितनी खुश थी, तुम्हें याद नहीं? प्रकाश से प्रेम करके ही उसने उसे प्राप्त किया था. उनके प्रेम, संघर्ष और यातना का मैं गवाह हूं, देव. तुम मुझे बहलाने की कोशिश क्यों करते हो?’’

देव फिर हंस पड़ा. बोला-‘‘तुम्हीं इस बात के भी तो गवाह हो, कि उनके बीच प्रेम कराने वाला और फिर उनका ब्याह कराने वाला भी मैं ही हूं?’’

‘‘हूं, जरूर हूं,’’ कमल बोला-‘‘लेकिन क्या इसी लिए तुम्हें यह अधिकार मिल गया, कि तुम रश्मी की जिन्दगी बरबाद कर दो?’’

‘‘मैंने कहां की, यार?’’ देव बोला-‘‘मुझे तुम खामखाह के लिए दोष देते हो. दर-असल वह प्रेम-व्रेम, और वह खुशी-उशी उनके यौवन की भावुकता थी. जब वह जिन्दगी की चट्टान से टकरायी, तो चूर-चूर हो गयी. इसमें न मैं ही कुछ कर सकता था, न तुम्हीं कुछ कर सकते थे.’’

‘‘अगर ऐसा ही हुआ होता, तो फिर बात ही क्या थी?’’ कमल बोला-‘‘लेकिन तुम जानते हो, मैं भी जानता हूं और शायद कितने ही लोग जानते हैं, कि ऐसा नहीं हुआ. उन्हें लेकर ऐसा होने की कोई सम्भावना भी न थी. वे एक-दूसरे को पाकर हर्ष-विभोर थे, एक-दूसरे के प्रति चिर-कृतज्ञ थे. प्रकाश के जीवन में स्थायित्व तो था ही साथ ही-’’

‘‘वे दोनों मूर्ख थे,’’ देव बीच में ही बोल उठा-‘‘रश्मी उससे भी बढ़-चढ़कर. अपनी मूर्खता का परिणाम ही वह भुगत रही है.’’

‘‘इससे मुझे इन्कार नहीं,’’ कमल बोला-‘‘लेकिन इसी कारण तुम्हारी बुद्धि की तो मैं दाद नहीं दे सकता. मुझे पूरा विश्वास है, कि उनके बीच तुम मूसलचन्द की तरह न आ कूद पड़ते, तो-’’

‘‘यार, वह मुझसे प्रेम करती थी.’’

‘‘फिर वही बात?’’ कमल ने बिगड़कर उसकी ओर देखा. लेकिन तत्क्षण अपने को संभाल कर कहा-‘‘मान लूं, तो भी क्या तुम्हारा यही फर्ज था? एक मूर्ख लड़की अपने विवाह के बाद भी तुम्हारे जैसे बाल-बच्चेदार, प्रौढ़ आयु वाले के साथ प्रेम करती रही हो, तो भी क्या तुम-’’

‘‘वह युवती थी, सुन्दर थी,’’ मुस्कराकर देव बोल उठा-‘‘यार, आखिर मैं भी तो एक आदमी ही हूं.’’

‘‘तो यही बोलो न,’’ कमल अनमना-सा होकर बोला.

‘‘बोल तो दिया. अब तुम क्या चाहते हो?’’ खिसियाया-सा देव बोला-‘‘प्रकाश की तो तुम कुछ भी न कहोगे.’’

‘‘प्रकाश को कोई कुछ कैसे कह सकता है?’’ कमल बोला-‘‘प्रकाश ने बहुत सहा, बहुत सहा. जब सहना असंभव हो गया, तभी तो उसने रश्मी से संबंध विच्छेद किया?’’

‘‘तो फिर रश्मी को ही कुछ कहो,’’ देव बोला-‘‘रश्मी ने यह स्थिति क्यों पैदा की?’’

‘‘उसे तो तुम, जैसा कि तुम कई बार बता चुके हो, अपने हाथ में खिला रहे थे,’’ कमल बोला-‘‘सुना गया था, कि तुमने रश्मी को आश्वासन दिया था, कि ‘प्रकाश तुम्हें छोड़ देगा, तो

मैं...’’

देव जोर से हंस पड़ा. बोला-‘‘नहीं, ऐसा बेवकूफ मैं नहीं हूं. दर-असल बात यह थी, कि मैं सोचता ही न था, कि प्रकाश इस सीमा तक जा सकता है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि प्रकाश रश्मी को बहुत प्यार करता था.’’

‘‘लेकिन प्यार करने का मतलब यह तो नहीं होता, कि कोई अपनी प्रेमिका और पत्नी को किसी दूसरे से सम्बन्ध कायम रखने की छूट दे दे?’’

‘‘यहीं रश्मी की गलती है.’’

‘‘लेकिन रश्मी भी तो प्रकाश को बहुत प्यार करती थी,’’ कमल उलझन में पड़ कर बोला-‘‘यह एक बात मेरी समझ में आज तक न आयी, कि रश्मी प्रकाश को इतना प्यार करते हुए भी तुम्हारी ओर फिर कैसे झुक गयी?’’

‘‘तुम्हारा क्या ख्याल है?’’ मजा लेते हुए देव ने पूछा.

‘‘मैं कुछ भी नहीं सोच पाता. तुम बता सको, तो बताओ.’’

‘‘मैं खुद बताकर तुम्हारे सामने और बुरा क्यों बनूं?’’

देव बोला-‘‘चलो, शायद रश्मी की डायरी में यह सुनने को तुम्हें मिल जाए. तुममें कुछ उत्सुकता पैदा हुई. भगवान को धन्यवाद है!’’

‘‘तुम्हारा ख्याल है, कि वैसी जगह बैठकर मैं किसी लड़की की डायरी सुनूंगा?’’

‘‘इसका जवाब मैं तुम्हें नहीं दे सकता,’’ देव बोला-‘‘शायद इसका जवाब खुद रश्मी देगी. यही सवाल तुम उससे करना. मियां, रश्मी से मिलने के पहले तुम जो चाहो, बघार लो. मैं जानता हूं, कि उसके सामने हमारी-तुम्हारी कोई हस्ती ही नहीं है. वह जाने किस आसमान में उड़ती रहती है. हमें-तुम्हें वह बात करने देगी? अब वह, रश्मी नहीं रही!’’

तीसरी खुली केबिन में सामने के बड़े सोफे पर केसर अकेली बैठी, सिर झुकाये हुए बुनायी कर रही थी.

देव ने पूछा-‘‘क्यों, रश्मी नहीं आयी क्या?’’

बेयरा सामने आ खड़ा हुआ, तो उसकी ओर देखती हुई, सोफे पर उछल-उछलकर वह बोली-‘‘क्या-क्या है तुम्हारे यहां? कोई कायदे की चीज तो होगी नहीं. खैर, तुम अण्डे और चीज के पकौड़े लाओ, एक-दो-तीन-चार प्लेटें.’’

‘‘अरे-रे!’’ देव बोला-‘‘इतने क्या होंगे? हमारे लिए-’’

‘‘मैं अपने लिए मंगवा रही हूं. आप चुप रहिए.’’-डांटकर रश्मी बोली. फिर बेयरे को आर्डर दिया-‘‘और चिकेन सैण्डविचेज चार प्लेटें, और हैम्बर्ग तो तुम्हारे यहां होगा नहीं...मटन चाप लाओ चार प्लेटें. और...और...अच्छा, अभी तुम इतना लाओ. फिर बताऊंगी.’’

बेयरा चला गया, तो उसने देव की ओर घूरकर देखा, और एक अट्टहास किया. फिर मुंह बनाकर बोली-‘‘मक्खीचूस! खाना-पीना नहीं था, तो यहां आकर क्यों बैठे?...कमल भैया आप मेरी ओर देखते क्यों नहीं?...इस शहर में कौन है, जो मेरी ओर न देखे, जो मेरे साथ दो मिनट बैठने को न तरसे? मैं यहां हसीना नाम से मशहूर हूं...देखिए, अब मैं पहले से भी ज्यादा हसीन हूं कि नहीं? लोग यों ही थोड़े मेरे लिए आंखें बिछाये रहते हैं!..’’

‘‘यह साधु आदमी हैं, भाई!’’ देव ने व्यंग किया.

‘‘मैंने बड़े-बड़े साधु-सन्तों को देख लिया!’’ रश्मी वैसे ही सोफे पर उछल-उछल कर बोली-‘‘सब मुझे देख कर मुंह बा देते हैं, और हड़प लेना चाहते हैं.’’ वह ठहाका मारकर और अंगूठा दिखाकर बोली-‘‘लेकिन उन्हें ठेंगा मिलता है!...ये हीरे की अंगूठियां देखिए! ये सोने की चूड़ियां देखिए! यह मोतियों का हार देखिए! ये हीरे के टाप्स देखिए!’’ एक-एक चीज को हाथ से छू-छूकर दिखाते हुए, वह बोलती गयी-‘‘ये सब चीजें उन्हीं लोगों को दी हुई हैं, जो समाज में शरीफ बने फिरते हैं. देखिए, इन आभूषणों और वस्त्रों में मैं बिल्कुल नयी दुलहिन की तरह लगती हूं न?...हर शाम मैं दुल्हन बनती हूं, और एक ब्याह रचाती हूं...मुझे क्या गम है, क्या चिन्ता है? मैं एक आजाद लड़की हूं, जवान हूं, नागिन हूं!’’

‘‘तुम नौकरी तो करती हो!’’ केसर अपने चश्में में से घूरती हुई, टुप-से पूछ बैठी.

‘‘नौकरी मैं नहीं करती. वही लोग मुझे रखे हुए हैं.’’ रश्मी वैसे ही मुंह फाड़ कर बोली- ‘‘दो सौ रुपल्ली की नौकरी की मुझे क्या चिन्ता है?...मैं तो परसों सीधे डायरेक्टर के पास गयी थी. साफ-साफ कह दिया, ‘हजार देना हो, तो बोलिए. वर्ना मेरा आज ही इस्तीफा ले लीजिए. ऐसी छोटी नौकरी मेरी शान के खिलाफ है. कितने ही ऑफर मेरे पास पड़े हुए हैं.’’

‘‘फिर क्या कहा उन्होंने?’’ देव मजा लेते हुए बोला.

‘‘कहेंगे क्या? गरज होगी, तो लाख बार देंगे. वर्ना मैं छोड़ दूंगी.’’

‘‘प्रकाश भी तो तुम्हारे पास कुछ भेजता है?’’ केसर वाली.

‘‘उसके पैसे पर मैं थूकती हूं.’’ कहकर, रश्मी ने सचमुच बगल में थूक दिया. कमल कांप उठा. इतनी देर के बाद पहली बार उसने निगाह उठाकर हाल में देखा. सामने बैठे हुए सभी लोग आंखें फाड़कर उनके ही कैबिन की ओर देख रहे थे. उनमें किसी से भी वह अांखें न मिला सका. हद हो गयी थी. अब वहां बैठना उसे असह्य हो उठा. वह बोला-‘‘मैं अब जाऊंगा.’’

‘‘अभी आप नहीं जा सकते.’’ रश्मी उसका हाथ जोर से पकड़कर बोली-‘‘मेरे वक्त से आपका वक्त कोई ज्यादा कीमती नहीं है! चुपचाप बैठिये!’’

तभी बेयरा ट्रे लिये हुए आ पहुंचा. रश्मी रोब से बोली-‘‘लाओ!’’

बेयरा ट्रे लिये हुए झुक गया. रश्मी खुद ही एक-एक प्लेट ले-लेकर उनके सामने रखने लगी.

देव बोला-‘‘तुम मेरी जान लेना चाहती हो क्या? मैं इतना खा कर तो मर ही जाऊंगा. मैं तो सिर्फ काफी पीऊंगा.’’

‘‘चुप रहिए!ं’’ रश्मी बोली-‘‘खाइए, चाहे मत खाइए, पैसा तो आपको देना ही पड़ेगा.’’

कहकर, तत्क्षण वह एक भूखी कुतिया की तरह हबर-हबर कर खाने लगी.

‘‘यही सब खाएगी?’’ केसर बोली.

‘‘खा जाऊंगी! आप क्या समझती हैं.’’ रश्मी मुंह भरे हुए ही बोली-‘‘खाऊंगी नहीं, तो मेरा स्वास्थय कैसे ठीक रहेगा?’’

‘‘तुम्हारा स्वास्थ्य तो बहुत ही खराब मालूम होता है,’’ देव बोेला-‘‘तुम्हारे शरीर में तो हड्डियों के सिवा कुछ है ही नहीं. तुम्हारे चेहरे का रंग-रोगन धो दिया जाय, तो-’’

‘‘भाभी के चेहरे पर रंग-रोगन पोतकर जरा देखिए तो, कि क्या बनता है?’’ भरे हुए मुंह से ही हंसकर रश्मी बोली-‘‘ऐसी बात नहीं है, देव साह. यौवन होगा, रूप होगा, तभी वह संवरेगा...मैं पिछले दिनों बहुत बीमार हो गयी थी, इसीलिए दुबली हो गयी हूं. एक दोस्त के साथ कलकत्ता जा रही थी. रास्ते में अचानक बहुत बीमार हो गयी. स्टेशन पर ही हमें रुकना पड़ा. वहां अस्पताल में बीस दिन तक पड़े रहे. बेचारे मेरे दोस्त ने मेरी ऐसी सेवा की कि क्या बताऊं. पांव तक दबाये, तलवे तक सहलाये. अच्छी हो गयी तो दोस्त बोला-‘रश्मी तुम मेरे साथ ब्याह कर लो.’ मैं हंस पड़ी. बोली-‘ब्याह का अनुभव मैं काफी कर चुकी हूं. तुम फिर इसका नाम न लेना!...’’

‘‘सुना था कि तुम्हारे बच्चा होने वाला था?’’ केसर बोली.

‘‘हुश!’’ रश्मी बड़े भोंडे ढंग से सैंडविच चबाती हुई बोली-‘‘किस साले ने आपको यह खबर दी? वह निश्चय प्रकाश का कोई दोस्त होगा. वह और उसके दोस्त रात-दिन मुझे बदनाम करते फिरते हैं. लेकिन मैं उनकी ठेंगा परवाह करती हूं.’’

‘‘तुम्हारी बच्ची मां के पास है क्या?’’ केसर ने ही पूछा.

‘‘मां के पास क्यों रहेगी?’’ छुरी-कांटा प्लेट पर बजाती हुई, सोफे पर उछल कर, रश्मी बोली-‘‘वह जिसकी थी, उसके ही माथे उसे मैं मार आयी. कह दिया-‘तुम्हारी पैदा की हुई है, तुम्ही सम्हालो. तुम्हारी बच्ची को लेकर मैं अपनी जिन्दगी खराब क्यों करूं? तुम आजाद होकर लड़कियों के साथ रंगरेलियां कर रहे हो तो मैं भी क्यों न आजाद होकर लड़कों के साथ रंगरेलियां करूं?’’

‘‘भाई, हमारे लिए काफी तो मंगा दो,’’ देव ने कहा. रश्मी ने चिल्लाकर बेयरे को पुकारा. वह आ गया, तो बोली-‘‘इस तरह सर्विस करोगे, वह आ गया, टिप न दूंगी! चिल्लाते-चिल्लाते मेरा गला दुखने लगा. मेरे लिए कोल्ड काफी लाओ, और आप लोगों के लिए-’’

‘‘मैं तो नहीं पीऊंगा,’’ कमल ने कहा.

‘‘क्यों नहीं पीएंगे? आपको पीना पड़ेगा!’’ रश्मी छुरी प्लेट पर पटक कर बोली-‘‘वाह, कमल भैया! आप तो कमाल ही कर रहे हैं. यही करना था, तो आप आये ही क्यों?’’

‘‘हमारे लिए पाट में काफी मंगा दो,’’ देव ने कहा.

‘‘जाओ जी, जल्दी लाओ!’’

रश्मी प्लेट-पर प्लेट साफ करती गयी. इतना सब कहां समा रहा था, आश्चर्य है!

‘‘भाई, कमल आ नहीं रहा था,’’ देव बोला-‘‘तुमसे मैंने वादा किया था, इसीलिए जबरदसती इसे ले आया. तुम इसे अपनी डायरी सुनाने वाली थी न?’’

‘‘ओऽऽ! मैं तो बिल्कुल भूल गयी थी,’’-चोंगे की तरह मुंह बनाकर रश्मी जोर से बोली-‘‘सुनाऊं!’’

‘‘काफी तो पी लो,’’ देव ने कहा.

बटुआ खोलकर, कागज निकालते हुए, रश्मी बड़े उत्साह से बोली-‘‘मैं डायरी के फार्म में एक उपन्यास लिख रही हूं. काफी लिख चुकी हूं. इसे पूरा होते ही छपवाऊंगी. कई प्रकाशक अभी से मुंह बाये हुए हैं. लेकिन मैं दूंगी उसी को, जो सबसे ज्यादा रुपया देगा. पहले तो मैं इसे सीरियलाइज कराना चाहती हूं. कमल भैया, आपके यहां सीरियालाइज हो सके, तो मुझे कितना पैसा मिल सकता है?’’

कमल ने और भी सिर झुका लिया.

बोला देव ही-‘‘अच्छा ही मिलेगा.’’

‘‘अच्छा के क्या मानी?’’ रश्मी बोली-‘‘मैं दो सौ रुपये, प्रति किस्त से कम न लूंगी.’’

‘‘इतना तो ये न दे पाएंगे. क्यों, कमल?’’ देव ही बोला.

‘‘मुझे अब तुम लोग जाने दो,’’ कमल जैसे परेशान होकर बोला, और उठने लगा.

रश्मी ने फिर उसका हाथ पकड़ लिया. जोर से बोली-‘‘आप नहीं जा सकते! आये हैं, तो डायरी सुन लीजिए. आपको छापने को कौन कहता है? छापने वाले कितने ही मिल जाएंगे. इसकी चिन्ता किसी को नहीं करनी है, जनाब, यह कोई मामूली उपन्यास न होगा. जिस दिन छपेगा, तहलका मच जायेगा, आप लोग देखिएगा.’’

काफी आ गयी, तो एक ही सांस में पूरा गिलास खाली करके, रश्मी ने केसर के हाथ से रूमाल छीन कर अपना मुंह पोंछा, और कहा-‘‘तो सुनिये आप लोग. मैं शुरू से ही सुनाती हूं.’’

रश्मी जोर-जोर से ऐसे पढ़ने लगी, जैसे कोई अभिनेता अपना पार्ट हाव-भाव के साथ याद करता है.

देव मजा लेने लगा. केसर आंखें, झपका-झपका कर सुनने लगी, जैसे उसे पहले ही से मालूम हो, कि यह क्या खाकर कुछ अच्छा लिखेगी. कमल सिर गड़ाये हुए, सुना-अनसुना करने की कोशिश करने लगा. वह सोच रहा था, देव ने ठीक ही कहा था. कोई लड़की ऐसा आचरण एक होटल में इतने लोगों के बीच कर सकती है, इस पर कौन विश्वास कर सकता है! रश्मी के इस रूप की कल्पना कौन कर सकता है? क्या हो गया है इसको? ओफ!...यह जिन्दगी क्या-क्या रूप बदलती है. कमल को सब याद आ रहा था. उसने रश्मी के चार रूप पहले देखे थे, और पांचवां आज देख रहा था. आगे क्या देखने को मिलेगा, सोच कर ही इसकी रूह कांप उठी. कौन सोचता था, कि यह साधारण सी लड़की रश्मी भविष्य के लिए ऐसे-ऐसे अद्भुत रूप अपने में संजोये हुए है? देव के यहां जब वह टाइपिस्ट होकर अयी

थी...’

‘‘आप सुन रहे हैं न, कमल भैया?’’ रश्मी ने उसकी ओर देखते हुए पूछा.

कमल के जी में तो आया कि वह कह दे ‘मुझे तुम भैया कहकर इतने लोगों के बीच में जलील मत करो. लेकिन वह लड़की क्या कह बैठे. वह झूठ ही बोल दिया-‘‘सुन रहा हूं.’’ और फिर उसने सिर झुका लिया.

रश्मी फिर वैसे ही पढ़ने लगी, तो देव ने टोक दिया-‘‘माफ करना, रश्मी. सचमुच तुमने बड़ा अच्छा लिखा है. अब जरा और आगे का कुछ सुनाओ. मैं विशेष रूप से उस दिन की तुम्हारी डायरी सुनना चाहता हूं, जब पहले-पहल तुम्हारा प्रकाश से झगड़ा हुआ था. वहां तक लिख लिया हो, तो अब उसे ही सुनाओ.’’

‘‘उसके भी आगे तक मैं पहुंच गयी हूं,’’ रश्मी जल्दी में बोली-‘‘लेकिन आप लोगों को सब सुनना पड़ेगा. एक घंटे से ज्यादा वक्त न लगेगा.’’ कहकर वह फिर वैसे ही पढ़ने लगी.

वह बहुत तेज पढ़ रही थी. लगता कि जो कुछ कागज पर लिखा हुआ था, वह सब उसकी जबान पर था. कागज तो वह यों ही अपने सामने फैलाये हुए थी.

केसर ने टोका-‘‘रश्मी, मालूम होता है, कि तुम्हें सब जबानी याद है. तुम तो यों भी सब सुना सकती हो.’’

‘‘बिलकुल सुना सकती हूं,’’ रश्मी ने विश्वासपूर्वक कहा-‘‘पचासों लोगों को मैं सुना चुकी हूं. अब भी याद न होगा, तो कब होगा!’’ कहकर, उसने कागज उलटकर रख दिये, और फर्राटे से जबानी सुनाने लगी.

शायद मिलाने के लिए देव ने कागज लेकर देखना चाहा. उसने हाथ बढ़ाया, तो रश्मी ने डांट दिया-‘‘इन्हें छूइए मत! ये बहुमूल्य कागज हैं. एक दिन मुझे ये अमर बनाएंगे. इन्हें मैं जान के पीछे रखती हूं. जानती हूं, कि इन्हें चुराने की फिक्र में कुछ लोग हैं. प्रकाश नहीं चाहता, कि ये छप सकें, लेकिन ये तो छपेंगे, डंके की चोट पर छपेंगे. तब बेटे को मालूम होगा. मेरा एक दोस्त अंग्रेजी में अनुवाद भी करने जा रहा है. हो सकता है, कि एक ही साथ अंग्रेजी और हिन्दी दोनों में छपे. फिर तो मजा आ जाएगा!...हां, कहां तक मैं सुना चुकी?’’

‘‘भाई, जो मैंने कहा था, अब वह सुनाओ,’’ देव ने कहा.

‘‘आप बोर हो रहे हैं, तो जाइए,’’ रश्मी ने झिड़कते हुए कहा-‘‘कितने ही सुनने वाले आ जाएंगे. यह एक हसीना की कहानी है, जनाब? कोई मजाक नहीं है. और मैं जो सुना रही हूं!’’

‘‘सुनाओ-सुनाओ,’’ सिटपिटाते हुए-सा देव बोला. रश्मी फिर उसी जोश से सुनाने लगी.

कमल की हालत क्षण-क्षण खराब होती जा रही थी. उससे न उठते बनता था, और न बैठते बनता था. रश्मी कब क्या कह जाएगी, या क्या कर बैठेगी, कौन जाने? उसे डर लगने लगा कि कहीं कुछ नितांत अशोभन घट जाए. इस लड़की को तो किसी भी बात का कोई ख्याल नहीं है. बेलगाम घोड़े की तरह जैसे यह सड़क पर छूट गयी है, और बेतहाशा दुलत्तियां झाड़ रही है. इसके पास फटकने का साहस कौन कर सकता है? यह दांतों से काट भी सकती है. देव बिलकुल ठीक कहता था. इसी तरह कुछ दिन और इसका यह आचरण बना रहा, तो निश्चय ही यह पागल हो जाएगी. फिर क्या होगा? कमल का कलेजा उस घिनौने दृश्य की कल्पना मात्र से ही कांप उठा. वह अबकी देर तक साहस बटोरने के बाद उठा खड़ा हुआ, और बिना कुछ कहे ही उसने पांव उठा दिया.

रश्मी ने देखा, तो हिरनी की तरह कूदकर तत्क्षण उसके सामने आ गयी, और उसके सीने पर अपने हाथ रख कर बोली-‘‘कमल भैया, मैं आज भी आपकी इज्जत करती हूं, लेकिन इसके यह मानी हर्गिज नहीं, कि आप मेरा अपमान करके चले जाएं. चुपचाप आप बैठ जाइए, वर्ना मैं यहीं आपके पांव पकड़ कर ‘भैया-भैया’ पुकार कर रोने लगूंगी. मैं कुछ भी कर सकती हूं. मुझे किसी भी बात का डर नहीं है.’’

कमल सहम कर बैठ गया. उसे अफसोस हो रहा था, कि सब-कुछ समझ-बूझकर भी उसने उठ खड़े होने की हिमाकत की?

‘‘यार, सुन लो इसकी डायरी,’’ देव ने कमल से कहा-‘‘क्यों फजीहत कराने पर तुले हुए हो?...सुनाओ, रश्मी.’’

‘‘मैं एक काफी और पीऊंगी,’’ रश्मी हांफते हुए बोली-‘‘मैं तो थक गयी. आप बेयरा को बुलाकर मंगा दें. पुकारने का दम मुझमे नहीं.’’

यह कह कर, रश्मी ने निढाल होकर सोफे की पीठ पर अपने को डाल दिया. उसे अपने आंचल का भी होश न था.

केसर ने उसका आंचल ठीक करने के लिए अपना हाथ बढ़ाया तो उसने उसका हाथ झिटक कर डांट दिया-

‘‘इसकी क्या जरूरत है? छातियां ढंकने के लिए हैं, कि दिखाने के लिए?’’

‘‘तो ब्लाउज भी उतार फेंको न! ’’ गुस्सा होकर केसर ने कह दिया.

‘‘मैं तो उतार कर फेंक सकती हूं, इतना साहस है मुझमें! ’’ रश्मी बोली-‘‘लेकिन क्या आप लोगों में इतना साहस है, कि ब्लाउज उतार फेंकूं, तो भी आप लोग बैठे रहें? पूछ देखिए अपने खसम से. कमल भैया को तो मैं जानती हूं.’’

‘‘नहीं-नहीं, भाई,’’ देव झट से बोला-‘‘तुम ठीक हो. केसर तो बेवकूफ है.’’

तभी बेयरा आकर खड़ा हो गया. बोला-‘‘और कुछ, मेम साब?’’

बिलकुल शाहना तरीके से रश्मी ने सोफे के पुश्ते पर अपनी गर्दन उसकी ओर घुमायी. बोली-‘‘चार गिलास पानी, एक कोल्ड और एक तीन का पाट, और एक आइसक्रीम.’’

कहकर, उसने फिर गर्दन सीधी कर ली. बोली-‘‘कमल भैया, मैं जानती हूं, कि मुझे इस रूप में देखकर आपको दुख कम और आश्चर्य अधिक हो रहा होगा. लेकिन आप तो मुझे जानते हैं. बताइए, मैं क्या करूं? और मैं क्या कर सकती हूं?’’

कहकर, उसने थोड़ी देर तक इन्तजार किया. कमल न बोला, तो वही बोली-‘‘आप शायद समझते हैं, कि अब मुझ से कुछ भी कहना-सुनना बेकार है. लेकिन, कमल भैया, पूरे दो बरसों तक मैं परित्यक्ता, साधुनी की तरह जीवन बिता कर भी देख चुकी. उस रूप में आप से एक बार आंखें चार हुई थीं. आपको याद होगा, मैं अपनी बच्ची के साथ बस में जा रही थी. एक स्टैण्ड पर आप खड़े मिले थे. कमल भैया, मुझ साधुनी को सदाचारिणी को तब किसी ने भी न पूछा, किसी ने भी नहीं. लेकिन अब सब पूछते हैं, सब! यह देव जैसा मक्खीचूस आदमी भी, आप देख रहे हैं, मेरे लिए कितना खर्च कर रहा है. शुरू में इनके यहां मैंने पांच बरस नौकरी की थी, और इन्होंने पचास रुपल्ली से एक छदाम भी कभी ज्यादा न दिया. मुझसे काम तो इन्होंने लिया ही, साथ ही इश्क भी फरमाया. इनका ख्याल था, शायद अब भी हो, कि मैं इनसे मुहब्बत करती थी, या अब भी करती हूं. आप तो जानते हैं, जिन्दगी में मैंने एक ही शख्स से मुहब्बत की है. आपको याद होगी वह लू-भरी दोपहरी जब मैं अपने घर की कैद से अपनी बहन की मदद से आध-घंटे का छुटकारा पाकर लुकती-छिपती आपके पास प्रकाश के लिए चिट्ठी देने आयी थी?...’’

‘‘लो, काफी पीओ,’’ देव बोल पड़ा, ‘‘आ गयी.’’

रश्मी में जैसे अचानक जान आ गयी. वह उछलकर

सीधी बैठ गयी, और जल्दी-जल्दी आइसक्रीम खाने लगी. आइसक्रीम खाकर, उसने पानी पिया, और फिर गट-गट काफी पी गयी. ताजादम होकर, वह फिर सोफे पर उछलकर बोली-‘‘जाने दीजिए वे बातें. अब तो मैंने तय कर लिया है, कि जब तक जवानी है, मैं जीऊंगी, और उसके बाद आत्म-हत्या कर लूंगी.’’ कहकर, वह एक भयंकर अट्टहास कर उठी.

कमल का रोम-रोम सिहर उठा.

देव अपने सहज स्वर में बोला-‘‘ठीक है, ठीक है. लेकिन मेहरबानी करके तुम अपनी उस दिन की डायरी तो सुना दो, जिस दिन पहले-पहल तुम्हारा प्रकाश से झगड़ा हुआ था.’’

‘‘मेरी डायरी सुनने के काबिल आप नहीं हैं,’’ रश्मी कागज समेटकर बटुए में रखती हुई बोली-‘‘आपको अजीब-अजीब और बड़ी-बड़ी गलतफहमियां हैं. आपको शायद यह ख्याल होगा, कि मैं आपसे मुहब्बत करती थी, इसी कारण हमारा झगड़ा हो गया. क्योें?’’

आंखें झपकते हुए, देव बोला-‘‘तुम सुनाओ, सुनाओ.’’

‘‘दिन में जाने कितनी बार आप आइने में अपना चेहरा देखते होंगे,’’ मुंह बिगाड़कर रश्मी बोली-‘‘आपको यह गलतफहमी कैसे हो गयी, कि कोई लड़की, वह भी मेरी जैसी लड़की, आपसे मुहब्बत कर सकती है?’’

देव का मुंह सूख गया. सूखे गले से वह बोला-‘‘कहती जाओ, कहती जाओ.’’

‘‘आपने मुझे चूम लिया, अंक में लिया, और विवशतावश मैंने कोई आपत्ति न की, तो आप समझ बैठे, कि मैं आपसे मुहब्बत करती हूं?’’ दांत पीसकर रश्मी ने देव पर पत्थर की तरह सवाल फेंका.

‘‘भाई, मुझ पर तुम नाहक बिगड़ रही हो,’’ देव ने गिड़गिड़ाकर कहा-‘‘मुझे तो कुछ भी नहीं जानना है. ये तुम्हारे कमल भैया ही रास्ते में मुझसे पूछ रहे थे, कि आखिर प्रकाश और रश्मी के बीच झगड़ा कैसे हुआ, वे तो एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे?’’

‘‘क्यों, कमल भैया?’’ रश्मी ने पूछा-‘‘सचमुच आप जानना चाहते हैं, कि हमारा झगड़ा क्यों हुआ?’’

पूछकर उसने कमल के बोलने का इन्तजार किया. वह न बोला, तो वही बोली-‘‘बहुत मामूली वजह है, और शायद बहुत बड़ी भी. लेकिन मैं हर्गिज यह न सोचती थी, कि हमारा झगड़ा कभी बिन्दु तक पहुंच जाएगा. ऐसा सोच पाती, तो यह जो सब हुआ है, कुछ भी न होता, कमल भैया, कुछ भी न होता.’’ सांस लेकर, रश्मी धीमे स्वर मे आगे बोली-‘‘कैसी अजीब बात है. आपको शायद विश्वास न हो, भैया. लेकिन यही सच है. मुझे दर-असल प्रकाश के प्रेम ने ही मारा. काश, वह मुझसे इतना अधिक प्रेम न करता! काश, वह प्रेमवश मेरे पांवों को न चूमता, मेरे पांवों पर फूल न चढ़ाता!...मैं बौरा गयी थी, कमल भैया. मैं मूर्ख लड़की उतने भारी प्रेम को वहन न कर सकी...मैं तानाशाह बन गयी. मैं शैतान बन गयी...मैं उसे नचाने लगी. मैं उसे सताने लगी...प्रकाश बहुत नाचा, बहुत नाचा...उसने बहुत सहा, बहुत सहा. लेकन मेरी निरंकुशता अब रुकने वाली न थी. वह बढ़ती ही गयी, बढ़ती ही गयी...वह शैतानी मजा, जो मुझे मिल रहा था, जैसे एक नशा हो. मैं पीती गयी,, पीती गयी...नशे में धुत मैें बिलकुल बहशी हो गयी. फिर क्या क्या किया मैंने? मैंने उसे गालियां दी, उसे लातें मारी, उसके बाल नोचे. मैं पागल हो

गयी...’’ कहते हुए, अचानक अपना बैग संभालकर रश्मी उठ खड़ी हुई, और यह कहते हुए केबिन से भाग खड़ी हुई-‘‘मैं अभी आती हूं. आप लोग रुकिए.’’

कमल ने इतनी देर बाद आंखें उठाकर, उसकी ओर देखा था. उसे लगा था, कि शायद उसका स्वर कुछ नर्म हो चला था, क्योकि इतने बड़े विरोधाभास की कल्पना करना असंभव था.

‘‘कमाल है!’’ ही-ही हंसकर, देव बोला-‘‘इसके पागल होने में अब बिलकुल देर नहीं है. वह ठीक ही कह कर गई है.’’

‘‘कहां गयी है?’’ केसर ने पूछा.

‘‘आत्महत्या करने!’’ कहकर, देव ने ठहाका लगाया. फिर बोला-‘‘देखा, कमल? मैंने जो-जो इसके बारे में कहा था, हु-ब-हू ठीक है न?...चाहो, तो अब तुम जा सकते हो. यह अच्छा मौका है.’’

‘‘नहीं-नहीं,’’ केसर बोली-‘‘आप रुकिए. नाटक का अन्तिम दृश्य भी देख ही लीजिए!’’

कमल को लगा, कि अब जाया नहीं जा सकता. उसे यह भी लगा, कि रश्मी के बारे में नये सिरे से सब-कुछ सोचना पड़ेगा. देव के चक्कर में पड़कर रश्मी की सही तस्वीर नहीं आंकी जा सकती.

‘‘आएगी न?’’ केसर ने पूछा.

‘‘जरूर आएगी. कमल यहां है न.’’ देव ने कमल की ओर तिरछी नजरों से देखकर कहा.

‘‘चलो, फिर हमीं लोग चले चलें,’’ केसर ने कहा.

‘‘नहीं, जी,’’ उसका हाथ थाम कर, देव ने कहा-‘‘मेरे सामने वह झूठ बोली है, मैं उसे यों ही छोड़ दूंगा? लो, वह आ गयी.’’

कमल ने उसकी ओर देखा, तो फिर उसे एक धक्का आ लगा. रश्मी ठीक वैसे ही आकर सोफे पर धम्म से बैठी, जैसे पहले आकर बैठी थी. और वैसे ही उछल-उछल कर मुंह फाड़ के, उसने बोलना शुरू किया-‘‘बाथरूम में अभी एक को थप्पड़ लगाना पड़ गया. साला झांक रहा था!’’ फिर अचानक ही उठते हुए बोली-‘‘अच्छा, अब मैं जाऊंगी. सबको सलाम!’’ और बायें हाथ की हथेली बड़ी लापरवाही से माथे से छुला कर वह चल पड़ी.

बाहर दरवाजे के पास पान की दुकान पर रश्मी उन्हें फिर खड़ी मिल गयी. देखते ही वह एक बेबाक हंसी हंस कर जोर से बोली-‘‘सोचा, कि एक मीठा पान भी आपका खा लूं.’’

‘‘खाओ, खाओ,’’ देव बोला-इतना खाया-पिया, तो पान ही क्यों रह जाए?’’

‘‘खैरियत मनाइए, कि इतने ही से आपको छुट्टी मिल

गयी.’’ अपने अनोखे अन्दाज में ही रश्मी बोली-‘‘यहां से तो एक हरी नोट भी उड़ जाती है!’’ कहते हुए, उसने हवा में चुटकी बजा दी.

पान खाकर, वे नीचे उतरे, तो रश्मी बोली-‘‘अब तो बहुत देर हो गयी! मेरा दोस्त अब भी बोल्गा में मेरा इन्तजार कर रहा होगा. लेकिन मैं तो थक गयी हूं. अब होस्टल ही जाऊंगी.’’

‘‘आओ, फिर हमारे ही साथ चलो,’’ देव बोला-‘‘तुम्हें छोड़ देंगे.’’

सामने स्टैण्ड पर आकर, वे एक टैक्सी में बैठ गये. कमल ड्राइवर के पास बैठा, और वे तीनों पीछे की सीट पर. रश्मी बीच में बैठी. बोली थी-‘‘बीच में ही बैठना मुझे पसन्द है. किनारे रहना मैंने नहीं सीखा.’’

स्टार्ट लेकर, ड्राइवर ने पीछे की ओर देखा.

रश्मी ने उछलकर कहा-‘‘वर्किंग गर्ल्स होस्टल.’’ कार चल पड़ी.

रश्मी ने फिर कान फाड़ना शुरू किया-‘‘हमारा होस्टल एक लाजवाब जगह है. हम सब लड़कियां उससे मुहब्बत करती हैं..

‘‘अभी कल ही इस होस्टल के विषय में अखबार में एक खबर छपी है,’’ देव बोल पड़ा.

‘‘बकवास है!’’ रश्मी अपने उसी स्वर में बोली-‘‘आप उसे सतयुग का आश्रम बनाना चाहते हैं क्या? हुंः !’’

‘‘कोई जांच बैठने वाली है.’’

‘‘अरे, जो जांच करने आएगा, उसकी नाक पकड़ कर, हम लोग चौखट पर रगड़ देंगी! क्या समझते हैं आप हमें?’’

‘‘तुम कहो, जी,’’ केसर बोली-‘‘इन्हें क्या मालूम?’’

‘‘मेरी सहेलियां मेरा इन्तजार कर रही होंगी. जाते ही चारों ओर से दौड़ कर लिपट जाएंगी. चिल्लाएंगी, ‘हसीना आ गयी! हसीना आ गयी!...’ फिर हम लोग लॉन में जा बैठेंगी. हमारी महफिल जमेगी. मैं सदर बनूंगी. सब एक-एक कर शाम के अपने-अपने अनुभव सुनाएंगी. हम खूब हंसेंगी, खूब शोर मचाएंगी! ऐसा मजा आता है, कि क्या बताऊं! एक-से-एक बढ़कर काठ के उल्लुओं की वे कहानियां होती हैं. बाप रे बाप! हंसते-हंसते पेट में बल पड़ जाता हैं, सांस फूल जाती है...फिर हमारा मुशायरा जमता है...’’

‘‘सब शायराएं हैं क्या?’’ देव बिना बोले न रह सका.

‘‘कोई मामूली नहीं, जनाब!’’ दबंगई के साथ रश्मी बोली-‘‘सुन लें, तो बड़े-बड़े शायरों के छक्के छूट जाएं. इश्किया से लेकर मजाहिया तक, एक-से-एक बढ़कर शायराएं हैं हमारे यहां. और शायकीन भी कोई मामूली नहीं हैं. एक-एक शेर पर वो वाहवाही होती है, कि आसमान गूंज उठता है...’’

‘‘वार्डन की नींद खराब नहीं होती?’’ देव फिर पूछ बैठा.

‘‘हमारी वार्डन कोई कन्वेन्ट की नन हैं क्या?’’ पूछते हुए रश्मी खिलखिलाकर हंस पड़ी. बोली-‘‘जनाब, यह आजाद लड़कियों की दुनिया है...’’

ड्राइवर ने अन्दर को मुंह घुमाकर पूछा-‘‘गाड़ी अन्दर ले चलूं?’’

‘‘नहीं-नहीं,’’ उठते हुए, व्यस्त-सी होकर रश्मी बोली-‘‘यही रोको, बिजली के खम्भे के पास...चलिए, उतरिए, भाभी.’’

गाड़ी रुकी. केसर उतर गयी, तो देव रश्मी का हाथ पकड़ कर बोला-‘‘चलूं, तुम्हें फाटक तक छोड़ आऊं.’’

‘‘बशौक!’’ रश्मी बोली.

नीचे उतर कर, रश्मी बोली-‘‘आज की शाम बेकार चली गयी. मेरे पास एक भी पैसा नहीं है. कल दिन भर के खर्चे के लिए कम-से-कम दस रुपये चाहिए. आप ही दे दीजिए.’’

केसर का आंचल अनायास कन्धे से ढलक कर नीचे उसके हाथ के बटुए समेत पीछे चले गये.

देव ने केसर की ओर देखा, फिर फुसफुसाकर कहा-‘‘आज हमारा बहुत पैसा तुमने खर्च करा दिया. खैर, केसर, तुम ऐसा करो...तुम कमल के साथ इस टैक्सी पर चलो. मैं थोड़ी देर में आता हूं.’’

केसर खिसियानी-सी, गर्दन टेढी किये हुए मुड़ी, और कार में घुसकर फटाक-से दरवाजा बन्द कर लिया. ड्राइवर से बोलो-‘‘चलो, कश्मीरी गेट, बस स्टैण्ड!’’

गाड़ी की घरघराहट के ऊपर रश्मी की पाटदार आवाज सुनायी पड़ी-‘‘नमस्ते, कमल भैया! फिर मिलेंगे! चियर यू!’’

मीलों का रास्ता तय हो गया. न एक शब्द केसर बोली, न एक शब्द कमल बोला. जैसे वे किसी गमी में शरीक होने जा रहे हों.

गाड़ी रुकी, तो केसर खांस कर बोली-‘‘कमल जी, यहां आपको बस मिल जाएगी न?’’

कमल ने कोई जवाब देने के पहले दरवाजा खोला, और नीचे उतर आया.

‘‘कमल जी, जरा पास आइए,’’ केसर ने हाथ दरवाजे के बाहर निकाल कर, अंगुलियां हिलाते हुए कहा.

वह पास आ गया, तो केसर बोली-‘‘मुझे देव जी के लिए बड़ा डर लग रहा है. जाने वह लड़की क्या कर बैठे?’’

‘‘आप कोई चिन्ता मत कीजिए. लड़कियां सिर्फ मुहब्बत कर सकती हैं!’’ कहते हुए, कमल पलटा और फुटपाथ पर क्यू में खो गया.

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आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र 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रचनाकार: प्राची - सितम्बर 2015 - भैरव प्रसाद गुप्त की कहानी - खलनायक
प्राची - सितम्बर 2015 - भैरव प्रसाद गुप्त की कहानी - खलनायक
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