प्राची - सितम्बर 2015 - ओ हेनरी की कहानी - कठपुतलियाँ

SHARE:

अमेरिकी कहानी कठपुतलियां ओ हेनरी प लिसवाला चौबीसवीं स्ट्रीट (गली) एक बेहद अंधेरी तंग गली के नुक्कड़ पर खड़ा था, जहां एक उन्नत रेलमार्ग गल...

अमेरिकी कहानी

कठपुतलियां

ओ हेनरी

लिसवाला चौबीसवीं स्ट्रीट (गली) एक बेहद अंधेरी तंग गली के नुक्कड़ पर खड़ा था, जहां एक उन्नत रेलमार्ग गली को काटता है. समय था सुबह के दो बजे, ठंड और बूंदाबांदी के बीच बैरी अंधकार सूर्योदय तक पसरा रहनेवाला था.

एक आदमी आराम से, लेकिन तेज कदम रखता उस अंधेरी तंग गली से निकला. उसने एक लंबा ओवरकोट पहन रखा था, उसका हैट थोड़ा सा आगे झुका हुआ था, और एक हाथ में उसने कुछ ले रखा था. पुलिसवाले ने उसे सभ्यता से रोका, लेकिन उसमें निश्ंिचतता का वह भाव भी था, जो सचेत हुक्मरानी से जुड़ा होता है. वह समय, तंग गली से जुड़ी बदनामी, राहगीर की हड़बड़ी, उसके हाथ का वह बोझ-ये सब मिलकर ‘संदिग्ध परिस्थितियां’ पैदा कर रहे थे, जिसका स्पष्टीकरण पुलिस अधिकारी के लिए जरूरी था.

‘संदिग्ध’ बेझिझक रुक गया और उसने अपना हैट पीछे को सरकाया. बिजली की झपकती रोशनी में उसका भावशून्य, चिकना चेहरा उजागर हो गया. उसकी नाक थोड़ी लंबी थी और आंखें चौकस काली थीं. दस्ताने में बंद अपने हाथ को उसने अपने ओवरकाट की जेब में डाला और उसमें से एक कार्ड निकालकर पुलिसवाले को पकड़ा दिया. उस मंद प्रकाश में पुलिस अधिकारी ने नाम पढ़ा ‘चार्ल्स स्पेंसर जेम्स, एम.डी.’ पते में जो गली और नंबर दिया हुआ था, वह एक इतने ठोस और सम्मानजनक इलाके का था कि उसने उत्सुकता को भी दबा दिया. पुलिस वाले ने डॉक्टर के हाथ में लगी चीज को देखा तो कार्ड की सत्यता और भी पक्की हो गई-यह एक काले चमड़े का खूबसूरत दवाइयों वाला बैग था.

‘‘ठीक है, डॉक्टर!’’ पुलिस अधिकारी ने कहा और बहुत विनम्रता के साथ एक तरफ हट गया. ‘‘हमें अतिरिक्त सतर्कता बरतने के आदेश मिले हैं. इधर हाल ही में चोरी और राहजनी की कई वारदातें हो गई हैं. बाहर निकलने के लिहाज से काफी खराब रात है. इतनी ठंड तो नहीं है, लेकिन भीगापन है.’’

अपने सिर को औपचारिकतावश झुकाते हुए और मौसम के बारे में पुलिस अधिकारी के आकलन के समर्थन में एक-दो शब्द कहते हुए डॉक्टर जेम्स एक बार फिर तेज चाल से आगे बढ़ गया. उस रात तीन बार एक गश्त लगाने वाले ने उसके कार्ड और दवाइयों वाले बैग को उसके व्यक्तित्च और उद्देश्य की ईमानदारी के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया था. उनमे से कोई भी अधिकारी अगर अगले दिन उस कार्ड के साक्ष्य की जांच करने को उचित समझता तो, उसे एक दरवाजे पर लगी एक खूबसूरत नेम प्लेट पर लिखे डॉक्टर के नाम से और अपने सुसज्जित क्लीनिक में उसकी उपस्थिति से उसका प्रमाण मिल जाता, जहां वह ढंग के कपड़ों में शांत बैठा मिलता. शर्त बस यह थी कि वह वहां सुबह बहुत जल्दी न जाए, क्योंकि डॉक्टर जेम्स देर से सोकर उठता था. इसके अलावा, उसके पड़ोसी भी उसकी नेक नागरिकता के, परिवार के प्रति उसके समर्पण भाव के और एक डॉक्टर के तौर पर उसकी कामयाबी के गवाह थे. वह दो साल से उनके बीच रह रहा था.

इसलिये अमन के उन उत्साही पहरेदारों में से कोई भी बहुत चकित होता, अगर वह दवाइयों के उस बेदाग बैग में झांककर देखता. इसे खोलने पर सबसे पहले तो उसे सेंधमारों द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले शानदार आधुनिकतम औजारों का सेट दिखाई देता. ये शातिर तिजोरी तोड़ चोर जो अपने आपको आजकल ‘बाक्स मैन’ कहते हैं, ये खास तौर पर डिजाइन किए और बनाए गए औजारों का इस्तेमाल करते हैं. इनमें छोटा, लेकिन जबरदस्त ‘जेमी’ था, अजीब तरह से बनी चाबियों का गुच्छा था, नीले बरमे और बेहतरीन पंच थे, जो ठंडे इस्पात को इतनी आसानी से काट सकते थे, जैसे चूहा पनीर को कुतरता है, और ऐसे शिकंजे, जो तिजोरी के पॉलिशदार दरवाजे किसी जोंक की तरह चिपका जाते हैं और कंबिनेशन मूठ को इस तरह उखाड़ देते हैं जैसे दांतों का डॉक्टर किसी दांत को निकालता है. दवाइयों वाले बैग के अंदर की तरफ एक पाउच में नाइट्रोग्लिसरीन की चार औंस की एक शीशी थी, जो अब आधी खाली थी. औजारों के नीचे तुड़े-मुड़े नोटों का एक ढेर था और कुछ मुट्ठी सोने के सिक्के थे, यह रकम कुल मिलाकर आठ सौ तीस डॉलर बनती थी.

दोस्तों के एक बहुत सीमित दायरे में डॉक्टर जेम्स को ‘स्वेल ग्रीक’ कहा जाता था. इस रहस्यमय नाम का आधा हिस्सा उसके शांत और सज्जनों जैसे शिष्टाचार का द्योतक था, दूसरा हिस्सा बिरादरी की भाषा में, नेता का, योजना बनाने वाले का, उस व्यक्ति का सूचक था, जो अपने पते और हैसियत की ताकत और प्रतिष्ठा से ऐसी जानकारियां जुटा लेता था, जिनके आधार पर वे अपनी योजनाएं बनाते थे और वारदात करते थे.

इस विशिष्ट दायरे के दूसरे सदस्य थे स्किटसी मॉर्गन और गम डेकर जो दव्दा ‘बॉक्स मैन’ थे लियापोल्ड प्रेत्सफेल्डर, जो कस्बे के अंदर रहनेवाला एक जौहरी था जिसका काम था, इन तीनों के जुटाए गहनों को ठिकाने लगाना. ये सभी अच्छे और वफादार लोग थे, जो मेमनॉन की तरह मुंहफट और ध्रुव तारे की तरह अस्थिर थे.

फर्म का विचार था कि उस रात की आमदनी से उनकी मेहनत भी वसूल नहीं हुई थी. एक बहुत पैसे वाली, पुराने ढंग की कपड़ों की फर्म के एक गंदे से दफ्तर की पुराने ढंग की, दो मंजिला, बगली बोल्ट वाली तिजोरी से शनिवार की रात को पच्चीस सौ डॉलर से अधिक निकलने चाहिए थे. लेकिन उन्हें बस इतनी ही रकम मिली, और उन तीनों ने उसे वहीं बराबर-बराबर हिस्सों में बांट लिया था, जैसाकि उनका रिवाज था. उन्हें दस-बारह हजार की उम्मीद थी. लेकिन मालिकों में से एक थोड़ा ज्यादा ही पुराने ढंग का निकला. अंधेरा होते ही वह अधिकांश रकम अपने घर ले गया था.

डॉक्टर जेम्स चौबीसवीं गली में आगे बढ़ा, जो हर तरह से वीरान दिख रही थी. यहां तक कि इस इलाके में रिहाइश रखने वाले थिएटर के लोग भी बहुत पहले अपने बिस्तरों में जा चुके थे. बूंदाबांदी से पानी गली में जमा हो गया था, पत्थरों के बीच इससे बने चहबच्चे आर्क लाइटों से आग लेकर उसे वापस फेंक रहे थे, और इस तरह ये न जाने कितने ही सरल सलमा-सितारों के रूप में छितरा रहे थे. मकानों के बीच चिमनियों के गले से बौछार में भीगी और ठिठुरन भरी हवा खांस रही थी.

डॉक्टर के पांव अपने बाशिंदों से भी अधिक दिखावटी एक ऊंचे, ईटों के आवास के नुक्कड़ पर पड़े ही थे कि उसका अगला दरवाजा भटाक से खुला और एक हब्शी औरत बड़बड़ाती हुई सीढ़ियों से नीचे खड़ंजे पर आई. उसके मुंह से कुछ शब्द निकले, जो उसने अपने आप से ही कहे थे-जब उसकी नस्ल के लोग अकेले और अनिष्ट से घिरे होते हैं तो इसी का सहारा लेते हैं. वह दक्षिणवासी गुलाम तबके की दिखाई दे रही थी-वैसी ही वाचाल, जानी-पहचानी, वफादार, अदम्य, ऐसी ही दिखती थी वह -मोटी, साफ-सुथरी, एप्रिन पहने, स्कार्फ बांधे.

खामोश मकान से उगली गई यह औचक आकृति सबसे निचली सीढ़ी पर पहुंची ही थी कि सामने से डॉक्टर जेम्स का आना हुआ. उस हब्शी औरत के दिमाग ने अपनी ऊर्जा को

ध्वनि से हटाकर दृश्य पर लगाया और बकबक छोड़ अपनी बंटे जैसी आंखों को डॉक्टर के बैग पर जमा दिया.

‘‘भगवान भला करे!’’ उस दृश्य को देखकर उसके मुंह से यही आशीर्वचन निकले-‘‘आप डॉक्टर हैं क्या, साहब?’’

‘‘हां, मैं फिजीशियन हूं.’’ डॉक्टर जेम्स ने ठहरते हुए कहा.

‘‘फिर तो भगवान के वास्ते चलकर मिस्टर चांडलर को देख लीजिए, साहब. पता नहीं उन्हें दौरा पड़ा है या कुछ और. वह ऐसे लेटे हुए हैं जैसे मर गए हों. मिस एमी ने मुझे किसी डॉक्टर को लाने के लिए भेजा था. भगवान् जाने, मैं कहां से डॉक्टर को ढूंढ़कर लाती, अगर आप नहीं आए होते...’’ उसने ‘शूटिंग’ ‘पिस्टल शूटिंग’ के बारे में कुछ कहा और बेचारी मिस एमी के लिए अफसोस जताया.

‘‘रास्ता बताओ,’’ डॉक्टर जेम्स ने सीढ़ियों पर कदम रखते हुए कहा, ‘‘अगर तुम डॉक्टर के रूप में मेरी सेवा चाहती हो. ऑडिटर के रूप में मैं उपलब्ध नहीं हूं.’’

हब्शी औरत उसके आगे-आगे मकान में घुसी और वहां सीढ़ियों से ऊपर चली गई, जिन पर मोटी कालीन बिछी थी. दो बार वे धुंधली रोशनी वाले गलियारों से निकले. दूसरे गलियारे से वह रास्ता दिखाने वाली हब्शी औरत एक हॉल में मुड़ी-अब तक वह हांफ गई थी-और एक दरवाजे पर आकर रुक गई. उसने दरवाजा खोला.

‘‘मैं डॉक्टर को ले आई, मिस एमी.’’

डॉक्टर जेम्स ने कमरे में दाखिल होकर एक जवान महिला को हल्का सा झुककर अभिवादन किया, जो एक पलंग के पास खड़ी थी. उसने अपना बैग एक कुरसी पर रख दिया, ओवरकोट उतारा, और उसे बैग और कुर्सी की पीठ पर फेंककर खामोशी और इत्मीनान के साथ पलंग की ओर बढ़ा.

पलंग पर एक आदमी लेटा था. वह वैसे ही पसरा हुआ था जैसे गिरा था. यह आदमी नए ढंग के अच्छे कपड़े पहने था, बस उसके जूते उतरे हुए थे, वह आराम से पड़ा था, और ऐसा निश्चेष्ट था मानो मर गया हो.

डॉक्टर जेम्स में से शांत बल और आरक्षित शक्ति का एक प्रकाश चक्र निकला, जो उसके मरीजों के लिए अमृत समान था, जो कमजोर और बेसहारा थे. मरीज को देखने और उसका इलाज करने के उसके अंदाज में कुछ था, जिससे खास तौर पर औरतें हमेशा ही आकर्षित हुई थीं. यह उस फैशनेबल उपचारक की कृपाशील विनम्रता नहीं थी, बल्कि संयत रहने का सुनिश्चितता का नियति पर विजयी होने की योग्यता का, सम्मान और सुरक्षा और समर्पण का अंदाजा था. उसकी दृढ़, चमकदार भूरी आंखों में एक टटोलने वाला चुंबकत्व था, उसके चिकने चेहरे की भावशून्य शांति ही नहीं, बल्कि भोले चेहरे में एक छिपा हुआ अधिकार भाव था, जो बाहरी तौर पर उसे विश्वासपात्र और सांत्वना देने वाले की भूमिका को उपयुक्त बनाता था. कभी-कभी तो उसकी पहली विजिट पर ही औरतें उसे बता देती थीं कि वे रात में अपने हीरे चोरों से बचाकर कहां रखती हैं.

डॉक्टर जेम्स ने अपनी अभ्यासी आंखें बिना घुमाए कतरे में रखे सामान की व्यवस्था और स्तर का अनुमान कर लिया. फर्नीचर बढ़िया और महंगा था. उसी नजर से महिला का भी जायजा ले लिया गया था. वह छोटी थी और बीस से ऊपर नहीं थी. उसका चेहरा सुंदर था और उस पर अब एक औचक दुःख की अपेक्षा (आप कहेंगे) एक स्थायी विकलता का ग्रहण लग गया था. उसके माथे पर, भौंह के ऊपर, पिछले छह घंटे के अंदर लगा था.

डॉक्टर जेम्स की उंगलियां आदमी की कलाई पर गईं. उसने आंखों ही आंखों में महिला से सवाल किया.

‘‘मैं मिसिज चांडलर हूं,’’ महिला ने दक्षिणी लहजे में जवाब दिया, ‘‘मेरे पति आपके आने से कोर्ठ दस मिनट पहले अचानक बीमार हो गए. उन्हें पहले भी दिल के दौरे पड़ चुके हैं- कुछ तो बहुत बुरे थे.’’ उसने शायद आदमी के कपड़ों की स्थिति और इतनी रात बीत जाने को देखते हुए आगे सफाई दी-‘‘वह देर रात तक बाहर रहे-जरूर खाने पर गए थे.’’

अब डॉक्टर जेम्स ने अपने मरीज की ओर ध्यान दिया. अपने जिस भी ‘पेशे’ में वह किसी वक्त लगा होता था, वह उस ‘केस’ या ‘काम’ में पूरी दिलचस्पी लेता था.

बीमार आदमी तीस के आस-पास का लगता था. उसके चेहरे पर निर्भीकता और दुराचारिता का भाव था, लेकिन उस पर सुडौलपन का अभाव नहीं था और सुरुचि व हास-परिहास से बनी रेखाएं भी थीं, जो उसमें राहत का रंग भरती थीं. उसके कपड़ों से शराब की गंध आ रही थी.

डॉक्टर ने उसके ऊपरी कपड़ों को पीछे कर दिया और फिर एक जेबी चाकू से उसकी कमीज के सामने से कॉलर से कमर तक चीर दिया. बाधाएं हट जाने पर उसने आदमी के सीनेपर कान लगाकर ध्यान से उसके दिल की धड़कन सुनी.

‘‘माइट्रल रिगर्जिटेशन?’’ उसने उठते हुए धीरे से कहा. उसके शब्दों का अंत अनिश्चय में हुआ. दोबारा उसने दर तक सुना, और इस बार उसने कहा, ‘‘माइट्रल इन सफिशिएंसी.’’ इस बार उसके लहजे में निश्चित निदान हो जाने का भाव था.

‘‘मैडम!’’ उसने आश्वस्त करने वाले ऐसे स्वर में कहा, जिसने कितनी ही बार लोगों की चिंता दूर की थी, ‘‘एक संभावना है-’’ और उसने जैसे ही अपना सिर महिला की तरफ घुमाया, उसने उसे बेहोशी की हालत में बुजुर्ग हब्शी औरत की बांहों में गिरते देखा, वह सफेद पड़ रही थी.

‘‘बेचारी बच्ची! बेचारी बच्ची! उन्होंने आंटी सिंडी के बच्चे को ही मार डाला? भगवान का कोप हो उन पर, जिन्होंने उसे छीन लिया, जिन्होंने उस फरिश्ते का दिल तोड़ा, बरबाद हो जाएं वे, जिन्होंने-’’

‘‘पैर पकड़कर उठाओ इन्हें,’’ डॉक्टर जेम्स ने गिरती हुई महिला को संभालने में मदद करते हुए कहा, ‘‘इनका कमरा कहां है? इन्हें बिस्तर की जरूरत है.’’

‘‘अंदर यहां, साहब!’’ हब्शी औरत ने अपने स्कार्फ से ढके सिर को एक दरवाजे की दिशा में हिलाते हुए कहा, ‘‘वह मिस एमी का कमरा है.’’

उन्होंने महिला को अंदर ले जाकर उसे पलंग पर लिटा दिया. उसकी नब्ज कमजोर, लेकिन लगातार चल रही थी. वह बेहोशी से होश में नहीं आई, सीधे गहरी नींद में चली गई.

‘‘यह बहुत थकी हुई हैं,’’ डॉक्टर ने कहा, ‘‘नींद इसका अच्छा इलाज है. जब यह जाग जाएं तो, इन्हें गरम पानी में थोड़ी वाइन दे देना-और अगर यह पी सकें तो उसमें एक अंडा फेंट देना. इनके माथे पर यह चोट कैसे लगी?

‘‘हां, इन्हें चोट लग गई थी, साहब. बेचारी बच्ची गिर गई-नहीं साहब.’’ बूढ़ी औरत की नस्ली अस्थिरता ने अचानक उसके आक्रोश को भड़का दिया-‘‘बूढ़ी सिंडी उस शैतान के लिए झूठ नहीं बोलेगी. यह उसी ने किया है साहब. भगवान! उस हाथ को तोड़ दे, जिसने-लेकिन नहीं! सिंडी ने अपनी प्यारी बच्ची से वादा किया था कि वह यह सब बताएगी नहीं. साहब, मिस एमी के सिर पर चोट लगी है.’’

डाक्टर जेम्स एक स्टैंड की तरफ गया, जिस पर एक सुंदर लैंप जल रहा था. उसने उसकी लौ को धीमा कर दिया.

‘‘तुम यहां अपनी मालकिन के पास रुको,’’ उसने आदेश दिया, ‘‘और खामोश रहना, ताकि वह सो सकें. अगर यह जाग जाएं तो इन्हें गरम वाइन दे देना. यहां कुछ अजीब बात है.’’

‘‘यहां इससे और भी अजीब बाते हैं,’’ हब्शी औरत ने बोलना शुरू किया, लेकिन डॉक्टर ने उसे ऐसी आवाज में चुप करा दिया, जिसका इस्तेमाल वह कभी-कभी ही करता था, और जिसका इस्तेमाल करके उसने उन्माद को ही शांत कर दिया था. वह दरवाजे को धीमे से बंद कर उस दूसरे कमरे में लौट आया. पलंग पर पड़े आदमी ने कोई हरकत नहीं की थी, लेकिन उसकी आंखें खुली थीं. वह कुछ कहने की कोशिश कर रहा था. डॉक्टर जेम्स ने सुनने के लिए सिर झुकाया. ‘‘पैसा! पैसा!’’ वह यही बुदबुदा रहा था.

‘‘तुम समझ सकते हो मैं क्या कह रहा हूं?’’ डॉक्टर ने

धीमी, लेकिन साफ आवाज में कहा.

उस आदमी ने धीरे से सिर हिलाया.

‘‘मैं डॉक्टर हूं, मुझे तुम्हारी पत्नी ने बुलाया है. तुम मि. चांडलर हो, मुझे यही बताया गया है. तुम बहुत बीमार हो. तुम्हें बिलकुल भी उत्तेजित या परेशान नहीं होना है.’’

मरीज ने आंखों के इशारे से डॉक्टर को पास बुलाया. डॉक्टर उसके उन्हीं धीमें शब्दों को सुनने के लिए झुका.

‘‘पैसा-बीस हजार डॉलर.’’

‘‘कहां है यह पैसा?-बैंक में?’’

उस आदमी ने आंखों के इशारे से मना किया.

‘‘उसको बता देना’’-उसकी धीमी आवाज और भी धीमी होती जा रही थी-‘‘बीस हजार डॉलर-उसका पैसा.’’ उसकी आंखें कमरे में घूम रही थीं.

‘‘तुमने इस पैसे को कहीं रख दिया है?’’ डॉक्टर जेम्स की आवाज वैसे ही जोर लगाकर आ रही थी जैसे कि साइरन की आवाज निकलती है, वह उस आदमी की साथ छोड़ती याददाश्त से उस राज को उगलवाना चाहता था-‘‘क्या वह इस कमरे में हैं?’’

उसे लगा उसने आदमी की धुंधली पड़ती आंखों में एक सकारात्मक कंपन देखा. उसकी उंगलियों के नीचे उस आदमी की नब्ज इतनी महीन और छोटी थी जैसे रेशमी धागा.

डॉक्टर जेम्स के दिमाग और दिल में उसके दूसरे पेशे का बोध जाग गया. और तमाम कामों में वह जैसी फुरती करता था, वैसी ही फुरती से उसने इस पैसे का अता-पता जानने का निश्चय कर लिया, और वह भी एक इनसान की जिंदगी की जानी-बूझी और निश्चित कीमत पर.

उसने अपनी जेब से एक पैड निकाला और उसके एक खाली खाने में अपने हिसाब से उस मरीज के लिए सबसे उपयुक्त नुस्खा लिख दिया. फिर अंदर वाले कमरे के दरवाजे पर जाकर उसने धीमें से बुजुर्ग औरत को पुकारा, उसे परचा पकड़ाया, और उससे कहा कि किसी केमिस्ट से जाकर वह दवा ले आए.

जब वह आप-ही-आप बड़बड़ाती हुई चली गई तो डॉक्टर महिला के पलंग के पास गया. वह अभी भी गहरी नींद में सो रही थी; उसकी नब्ज थोड़ी सुधर गई थी; उसका माथा ठंडा था, लेकिन जहां उसे चोट लगी थी और सूजन आ गई थी, वहां हलका सा गीलापन था. अगर उसकी नींद में विघ्न नहीं डाला गया तो वह अभी भी कई घंटे सोने वाली थी. डॉक्टर को दरवाजे में चाबी मिल गई और बाहर आकर उसने उसमें ताला लगा दिया.

डॉक्टर जेम्स ने अपनी घड़ी देखी. उसके पास आधा घंटा था, क्योंकि उससे पहले तो वह बुजुर्ग औरत दवा लेकर लौटने वाली नहीं थी. फिर उसे ढूंढ़ने पर एक बरतन में पानी और एक कांच का गिलास मिल गया. अपना बैग खोलकर उसने वह शीशी निकाली, जिसमें नाइट्रो-ग्लिसरीन थी, जिसे उसके दूसरे पेशे के साथी ‘तेल’ कहते थे.

इस हलके पीले रंग के गाढ़े से तरल की एक बूंद उसने गिलास में गिर जाने दी. उसने सीरिंज निकालकर उसमें सुई लगाई. सीरिंज में पानी की मात्रा को सावधानी से नापकर, उसने उस एक बूंद को लगभग आधा गिलास पानी में मिलाया.

उस रात दो घंटे पहले डॉक्टर जेम्स ने उस सीरिंज से बिना पानी मिला तरल एक तिजोरी में बनाए गए एक छेद में पहुंचाया था और एक हल्के विस्फोट से उस मशीनरी को ध्वस्त कर दिया था, जिससे बोल्टों की हरकत नियंत्रित होती थी. अब वह उसी माध्यम से एक इन्सान की सबसे खास मशीनरी को हिला देना चाहता था-उसके दिल को फाड़ देना चाहता था, और हर कुकृत्य उस पैसे के लिए था जो इसके बाद मिलने वाला था.

वही माध्यम, लेकिन एक अलग रूप में. जहां वह अपनी अशिष्ट विस्फोटक ताकत वाला दैत्य था, वहीं यह शिष्ट मृदुभाषी था, जिसका उतनी ही मारक बांहें मलमल और लेस में छिपी थीं. क्योकि गिलास और सीरिंज का वह तरल, जो डॉक्टर ने

सावधानीपूर्वक भरा था, वह अब ग्लोनॉइन का मिश्रण था, जो चिकित्सा जगत् में ज्ञात सबसे तेज हृदय उत्तेजक था. इसके दो औंस ने लोहे की तिजोरी के ठोस दरवाजे को फाड़ दिया था, अब एक बूंद के पचासवें हिस्से से वह एक इन्सान की जिंदगी की पेचीदा मशीनरी को हमेशा के लिए खामोश कर देने वाला था.

लेकिन तुरंत नहीं. इरादा यह नहीं था. पहले तो दमखम की तेजी से बढ़ोतरी होगी, हर अंग और विभाग को एक जबरदस्त गति मिलेगी. इस घातक तेजी का जवाब दिल बहादुरी से देगा, शिराओं का खून अपने स्र्रोत की तरफ और तेजी से लौटेगा.

लेकिन जैसाकि डॉक्टर जेम्स को अच्छी तरह से पता था, इस प्रकार के हृदय रोग में अतिशय उत्तेजना का मतलब होता है सुनिश्चित मौत, जैसे बंदूक की गोली से. जब सेंधमार के ‘तेल’ की ताकत से अवरुद्ध धमनियों में पहुंचाए गए रक्त के बढ़े हुए प्रवाह से ये धमनियां संकुचित हो जाएंगी तो वह फौरन ही ‘आम रास्ता नहीं’ रह जाएंगी, और जीवन का सोता बहना बंद हो जाएगा.

डॉक्टर ने बेहाश चांडलर का सीना खोला. उसने आसानी और होशियारी से दिल के ऊपर की मांसपेशियों में सीरिंज से भरा तरल सुई के जरिये पहुंचा दिया. अपने दोनों व्यवसायों की साफ आदतों के अनुकूल ही, उसके बाद उसने सावधानी-पूर्वक अपनी सुई को साफ किया और उस महीन तार को उसमें फिर से डाल दिया, जो इस्तेमाल न होने के समय उसमें पड़ा रहता था.

तीन मिनट में चांडलर ने आंखें खोलीं और धीमे, किंतु सुने जा सकने वाले स्वर में पूछा कि उसके पास कौन है. डॉक्टर जेम्स ने एक बार फिर उसे वहां अपनी उपस्थिति के बारे में बताया.

‘‘मेरी पत्नी कहां है?’’ मरीज ने पूछा.

‘‘वह सो रही हैं-थकान और चिंता के कारण,’’ डॉक्टर ने कहा, ‘‘मैं इन्हें नहीं जगाऊंगा, जब तक कि-’’

‘‘इसकी जरूरत नहीं है,’’ चांडलर ने शब्दों को तोड़-तोड़कर कहा, ‘‘क्योंकि किसी दैत्य की वजह से उसकी सांस उखड़ रही थी. वह तुम्हें धन्यवाद नहीं देगी-मेरी वजह से उसे परेशान करने के लिए.’’

डॉक्टर जेम्स ने उसके पलंग के पास एक कुरसी खींच ली. वह चाहता था, बातचीत का एक अंश भी बेकार न जाए.

‘‘अभी कुछ मिनट पहले,’’ उसने अपने दूसरे पेशे के उस गंभीर, स्पष्ट निर्भीक लहजे में कहना शुरू किया, ‘‘तुम मुझे किसी के बारे में कुछ बताना चाह रहे थे. मैं तुम्हारा विश्वास नहीं जीतना चाहता, लेकिन तुम्हें सलाह देने का मेरा फर्ज बनता है कि फिक्र और परेशानी तुम्हें ठीक नहीं होने देगी. अगर तुम्हें इस बारे में कुछ कहना है, अपने मन का बोझ हलका करना है-बीस हजार डॉलर ही कहे थे तुमने मेरे ख्याल में-तो बेहतर होगा तुम यह कर डालो.’’

चांडलर अपना सिर तो नहीं घुमा पाया, लेकिन उसने बोलने वाले की दिशा में अपनी आंखें घुमाईं.

‘‘क्या मैंने यह बताया-यह पैसा कहां है?’’

‘‘नहीं,’’ डॉक्टर ने जवाब दिया.’’ मैंने तो तुम्हारी बात से अंदाजा लगाया, जो मुश्किल से समझ में आ रही थी कि तुम इसकी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे. अगर यह इसी कमरे में है?’’

डॉक्टर जेम्स ठहर गया. क्या उसे अपने मरीज के व्यंग्यपूर्ण चेहरे पर समझ की एक झपझपाहट, शक की एक चमक दिखाई दी थी? क्या वह बहुत अधिक उत्सुक दिखाई दे रहा था? क्या वह बहुत अधिक बोल गया था? चांडलर ने आगे जो कहा, उससे उसका आत्मविश्वास लौट आया.

‘‘और कहां होगा यह,’’ उसने हांफते हुए कहा, ‘‘सिवाय वहां-उस तिजोरी के?’’

अपनी आंखों से उसने कमरे के एक कोने की तरफ इशारा किया, जहां अब पहली बार डॉक्टर ने लोहे की एक छोटी सी तिजोरी देखी, जो एक खिड़की के परदे के लटकते सिरे से

आधी छिपी हुई थी.

उसने उठते-उठते बीमार आदमी की कलाई को पकड़ा. उसकी नब्ज बहुत जोर-जोर से चल रही थी और बीच-बीच में अशुभ संकेत देते हुए रुक जाती थी.

‘‘अपना हाथ उठाओ!’’ डॉक्टर जेम्स ने कहा.

‘‘तुमको पता है-मैं हिल नहीं सकता, डॉक्टर.’’

डॉक्टर तेजी से हॉल के दरवाजे पर गया और उसने उसे खोलकर आहट ली. सबकुछ शांत था. आगे-पीछे किए बिना वह तिजोरी के पास गया और उसका मुआयना करने लगा. यह बाबा आदम के जमाने की और साधारण सी तिजोरी थी, जो बस नौकरों की अनाड़ी उंगलियों से ही सुरक्षा दे सकती थी. उसके हुनर के आगे तो यह मात्र एक खिलौना थी, एक दफ्ती का डिब्बा था. पैसा तो बस अब उसके हाथों में ही समझो. अपने औजारों से वह मूठ को खींच सकता था, टंबलरों मे छेद कर सकता था और दो मिनट में दरवाजे का खोल सकता था. किसी तरीके से वह इस काम को शायद एक मिनट में ही कर सकता था.

फर्श पर घुटने के बल बैठते हुए उसने अपना कान कंबिनेशन प्लेट पर लगाया और मूठ को धीरे से घुमाया. जैसाकि उसका अंदाजा था, इसका ताला केवल एक नंबर पर लगा था. उसके तेज कान ने चटकने की उस हलकी आवाज को पकड़ लिया, जो टंबलर को छेड़े जाने से पैदा हुई थी; उसने इस संकेत को पकड़कर उसका इस्तेमाल किया तो हत्था घूम गया. उसने दरवाजे को पूरा-का-पूरा खोल दिया.

तिजोरी अंदर से खाली थी-लोहे के इस खोखले डिब्बे में कागज की एक चिंदी भी नहीं रखी थी.

डॉक्टर उठकर खड़ा हो गया और वापस पलंग के पास आया. उस मरते हुए आदमी के माथे पर नमी की एक मोटी परत बन गई थी, लेकिन उसकी आंखों और होंठों पर एक उपहासजनक गंभीर मुसकान थी.

‘‘मैंने पहले ऐसा कभी नहीं देखा,’’ उस आदमी ने पीड़ा में कहा, ‘‘डॉक्टरी और चोरी का काम! क्या इस मेल को तुम कारगर बना लेते हो, डॉक्टर प्यारे?’’

डॉक्टर जेम्स की महानता की जितनी कठिन परीक्षा इन स्थिति में होने जा रही थी, उतनी पहले कभी नहीं हुई थी. उसके शिकार के शैतानी हास्य ने डॉक्टर को जिस हास्यास्पद और असुरक्षित स्थिति में फंसा दिया था, उसमें उसने अपनी गरिमा और सूझबूझ को बनाए रखा. अपनी घड़ी निकालकर वह उस आदमी के मरने का इंतजार करने लगा.

‘‘तुम उस पैसे के बारे में कुछ ज्यादा ही चिंतित थे. लेकिन इसे तुमसे कभी कोई खतरा था ही नहीं, डॉक्टर प्यारे. यह सुरक्षित है. बिलकुल सुरक्षित. यह सारा पैसा दांव लगाने वालों के हाथों में सुरक्षित है. बीस हजार-एमी का पैसा. मैंने उसे घुड़दौड़ में लगा दिया-मैं इसकी एक-एक पाई हार गया. मैं बहुत खराब आदमी रहा हूं. सेंधमार, माफ करना डॉक्टर, लेकिन मैंने

सीधा-सीधा खेल किया है. मैं नहीं सोचता-मैंने कभी तुम्हारे जैसा अठारह कैरेट का पाजी देखा है, डॉक्टर-माफ करना-चोर. क्या यह तुम्हारे-गिरोह की नैतिकता के खिलाफ है, चोर किसी शिकार को माफ करना, मरीज को, पानी पिलाना?’’

डॉक्टर जेम्स उसके लिए पानी लेकर आया. वह इसे मुश्किल से गटक पाया. इस तेज दवा का असर लगातार और तेजी से हो रहा था. लेकिन जाते-जाते भी उसे एक शिगूफा तो छोड़ना ही था.

‘‘जुआरी-शराबी-उड़ाऊ-मैं यह सब रहा हूं, लेकिन एक डॉक्टर-सेंधमार!’’

डॉक्टर ने उस आदमी के विषैले व्यंग्य बाणों का बस एक ही जवाब दिया. चांडलर की तेजी से जमती दृष्टि को पकड़ने के लिए, नीचे झुकते हुए उसने उस सोती हुई महिला के कमरे के दरवाजे की तरफ इतने भयंकर और अर्थपूर्ण अंदाज में इशारा किया कि वह दंडवत् आदमी अपनी बची-खुची ताकत बटोरकर अपना सिर आधा उठाकर देखने लगा. उसे कुछ दिखाई नहीं दिया, लेकिन डॉक्टर के निर्दय शब्द उसके कानों में पड़े-ये अंतिम ध्वनियां थीं जो उसने सुनीः

‘‘मैंने अभी तक किसी औरत को नहीं मारा.’’

इस तरह के आदमियों को बूझने की कोशिश व्यर्थ थी. ऐसी कोई विद्या नहीं है, जो अपने ज्ञान में उनकी बराबरी कर सके. वे इस किस्म के लोग होते हैं, जिनके बारे में लोग या तो यह कहते हं कि ‘वह यह करेगा,’ या फिर यह कि ‘वह, वह करेगा’. हम बस इतना जानते हैं कि उनका वजूद है, और यह कि हम उन्हें देख सकते हैं, और उनकी हरकतों के बारे में एक-दूसरे को वैसे ही बता सकते हैं, जैसे बच्चे कठपुतलियों को देखते और उनके बारे में बात करते हैं.

फिर भी इन दोनों के बारे में विचार करना अहंकार का

अध्ययन करने जैसा था, जिनमें एक हत्यारा और लुटेरा था, जो अपने शिकार के ऊपर खड़ा था, और दूसरा नीचे दरजे के अपराध करनेवाला, एक कमतर कानून भंजक था, जो उस पत्नी के घर में घृणा का पात्र बनकर पड़ा था, जिसे उसने यातना दी थी, बरबाद किया था और पीटा था; एक बाघ था तो, दूसरा श्वान भेड़िया, उनका एक-दूसरे की दुष्टता पर विचलित होना, दोनों का अपने-अपने प्रकट अपराध के समान नहीं तो, आचरण के, विमल मानदंड के दलदल में से फूलना-फलना.

डॉक्टर जेम्स के एक पलटवार न दूसरे व्यक्ति की लज्जा और मर्दानगी को जरूर छुआ होगा, क्योंकि यह आखिरी चोट साबित हुई. उसका चेहरा लाल हो गया-यह अपमानजनक मृत्यु की लालिमा थी, उसकी सांस रुक गई और बिना किसी हरकत कि चांडलर चल बसा.

इधर चांडलर ने आखिरी सांस ली और उधर हब्शी औरत दवा लेकर आ पहुंची. डॉक्टर जेम्स ने चांडलर की मुंदी पलकों को धीरे से अपने हाथ से दबाते हुए हब्शी औरत को उसके मरने की जानकारी दी. वह दुःखी तो नहीं हुई, लेकिन निराशा में उसांस भरते हुए विलाप करने लगी.

‘‘देख लीजिए! सब प्रभु के हाथों में है. वही पापियों का न्याय करता है और दुखियों को सहारा देता है. अब वही हमें सहारा देगा. सिंडी ने अपना आखिरी पैसा भी दवा की इस बोतल में लगा दिया और कोई काम भी नहीं आई.’’

‘‘क्या मैं यह समझूं कि मिसिज चांडलर के पास बिलकुल भी पैसा नहीं है?’’ डॉक्टर जेम्स ने पूछा.

‘‘पैसा, साहब? आपको पता है मिस एमी गिरी क्यों थी और वह इतनी कमजोर क्यों है? भूख की वजह से साहब, इस घर में तीन दिन से खाने को कुछ नहीं है, सिवाय कुछ टूटे-फूटे क्रैकर्स (पतले बिस्कुट) के. उस देवी ने महीनों पहले अपनी अंगूठियां और घड़ी भी बेच दी. यह घर साहब, लाल कालीनों और चमकती मेजों वाला यह शानदार घर, यह सब किराये का है, और यह आदमी किराये के लिए बेइज्जती करता है. वह शैतान-प्रभु मुझे माफ करे, वह न्याय के लिए आपके हाथों में आया, अब उसने सबकुछ ठिकाने लगा दिया.’’

डॉक्टर की खामोशी ने उसे आगे बोलने को उत्साहित किया. सिंडी के प्रलाप से डॉक्टर को जो कहानी समझ में आई, वह वही पुरानी कहानी थी, छलावे की, मनमानेपन की, विपत्ति, क्रूरता और घमंड की. हब्शी औरत की बकबक से कुछ स्पष्ट तस्वीरें उभरती थीं-सुदूर दक्षिण में एक आदर्श घर, विवाह पर जल्दी ही पछतावा होना, अत्याचार और दुर्व्यवहार का एक दुखद दौर और हाल में विरासत में कुछ पैसा मिलना, जिससे छुटकारे की उम्मीद बंधना; लेकिन श्वान भेड़िये का सारा पैसा लेकर दो महीने के लिए गायब हो जाना और उस दौरान वह पैसा उड़ा देना, और फिर दारूबाजी के बदनामी भरे दौर के बीच उसका वापस आना. हब्शी औरत के एक-एक वाक्य में, कहानी के उलझे-धुंधले ताने-बाने के बीच एक शुद्ध श्वेत धागा स्पष्ट दिखाई देता था-उस बुजुर्ग हब्शी औरत का सादगी भरा, सबकुछ सहन करनेवाला, उदात्त प्रेम, जिसने अपनी मालकिन का हर स्थिति में अविचल रहते हुए अंत तक साथ दिया.

आखिर में जब बुजुर्ग हब्शी औरत रुकी तो डॉक्टर ने अपनी बात कही. उसने पूछा कि क्या घर में ह्विस्की या और कोई शराब है. बुजुर्ग औरत ने उसे बताया कि हां, श्वान-भेड़िये के साइबोर्ड की आधी बोतल ब्रांडी बची है.

‘‘जैसा मैंने तुमसे कहा था, गरम पानी डालकर एक ड्रिंक तैयार करो,’’ डॉक्टर जेम्स ने कहा, ‘‘अपनी मालकिन को जगाओ, उसे यह पिला दो और जो हुआ है, बता दो.’’

कोई दस मिनट बाद मिसिज चांडलर बुजुर्ग सिंडी की बांह का सहारा लिए दाखिल हुई. थोड़ा सो लेने और वह पेय पी लेने से उसमें अब थोड़ी हिम्मत दिखाई दे रही थी. डॉक्टर जेम्स ने पलंग पर पड़े उस मृत आदमी पर एक चादर डाल दी थी.

उसने अपनी मातमी आंखें थोड़ा डरते-डरते उसकी ओर घुमाईं और अपनी वफादार संरक्षिका से थोड़ा और सट गई. उसकी आंखें शुष्क और चमकदार थीं. लगता था दुःख ने उसके साथ अधिकतम अत्याचार किया था. आंसुओं का सोता सूख चुका था, वह लकवाग्रस्त था.

डॉक्टर जेम्स मेज के पास खड़ा था, उसने अपना ओवरकोट पहन लिया था, उसके हैट और बैग उसके हाथ में थे. उसका चेहरा शांत और भावशून्य था-इन्सान का कष्ट देखने का वह अभ्यस्त हो चुका था. बस उसकी चमकदार भूरी आंखों में एक सधी हुई पेशेवर हमदर्दी झलक रही थी.

उसने सदयता से और बहुत थोड़े शब्दों में यह कहा कि समय क्योंकि ज्यादा हो गया है और ऐसे में कहीं से मदद मिलनी मुश्किल है, इसलिए वह खुद किसी सही आदमी को भेज देगा जो सबकुछ संभाल लेगा.

‘‘आखिर में एक बात,’’ डॉक्टर ने उस तिजोरी की ओर इशारा करते हुए कहा, जिसका दरवाजा अभी भी पूरा का पूरा खुला था. ‘‘आपके पति मि. चांडलर को आखिरी वक्त में यह एहसास हो गया था कि वह अब बचेंगे नहीं, और उन्होंने मुझसे वह तिजोरी खोलने को कहा, उन्होंने मुझे वह नंबर भी दिया, जिससे तिजोरी खुलती है. अगर कभी आपको इसका इस्तेमाल करना पड़े तो याद रखिएगा. इसका नंबर इकतालीस है. कुछेक बार इसे दाहिनी तरफ घुमाएं, फिर एक बार उलटी ओर, इकतालीस पर रोक दें. उन्होंने मुझे आपको जगाने नहीं दिया, जबकि उन्हें पता था कि उनका अंत निकट था.

‘‘उन्होंने कहा था कि उस तिजोरी में कुछ रकम रखी हुई थी-जो ज्यादा तो नहीं थी, लेकिन इतनी थी कि उससे आप उनकी आखिरी गुजारिश पूरी कर सकती हैं. जो यह थी कि आप अपने पुराने घर में लौट जाएं और बाद में जब समय हालात को आसान बना दे तो आप उन तमाम पापों को भूल जाएं, जो उन्होंने आपके खिलाफ किए थे.’’

डॉक्टर ने मेज की तरफ इशारा किया, जहां नोटों की गड्डी सजी हुई थी और उसके ऊपर दो चट्टे सोने के सिक्कों के थे.

‘‘वह रही रकम-जैसाकि उन्होंने कहा था-आठ सौ तीस डॉलर. मैं अपना कार्ड छोड़े जा रहा हूं, शायद बाद में आपको मेरी सेवा की जरूरत पड़े.’’

तो उसके पति ने उसके बारे में सोचा और वह भी सदयता से, आखिर में ही सही! इतनी देरी से! लेकिन फिर भी उस झूठ ने जिंदगी में कोमलता की एक अंतिम चिंगारी को भड़का दिया था, जबकि वह सोच रही थी कि वहां सबकुछ राख और धूल हो चुका था. वह जोर से विलाप कर उठी-‘‘रॉब! रॉब!’’ वह मुड़ी और अपनी सच्ची सेविका के सीने पर सिर रखकर, उसने राहत देने वाले आंसुओं में अपने दुःख को हलका कर लिया. यह सोचना भी अच्छा है कि आने वाले वर्षों में हत्यारे का झूठ एक छोटे से तारे की तरह प्रेम की समाधि के ऊपर चमकता रहा, और उस हिला को तसल्ली देता रहा, उस क्षमा को प्राप्त करता रहा, जो अपने आप में अच्छी होती है, चाहे कोई उसे मांगे या न मांगे.

उस हब्शी औरत के सीने से लगकर उसके सहानुभूतिपूर्ण शब्दों की लोरी से शांत और आश्वस्त होकर आखिर में उसने अपना सिर उठाया-लेकिन डॉक्टर जा चुका था.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - सितम्बर 2015 - ओ हेनरी की कहानी - कठपुतलियाँ
प्राची - सितम्बर 2015 - ओ हेनरी की कहानी - कठपुतलियाँ
http://lh3.googleusercontent.com/-MLmUCJq7qBk/VjC56Kye9wI/AAAAAAAAoGo/BP-D4t-QulQ/w350/image%25255B9%25255D.png?imgmax=800
http://lh3.googleusercontent.com/-MLmUCJq7qBk/VjC56Kye9wI/AAAAAAAAoGo/BP-D4t-QulQ/s72-w350-c/image%25255B9%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/10/2015_69.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/10/2015_69.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content