परपोते का जन्मदिन (लघुकथा)-प्रदीप कुमार साह ______________________________________ शाम का समय था, किन्तु अभी घोंसले में लौटने का वक्त नहीं ...
परपोते का जन्मदिन (लघुकथा)-प्रदीप कुमार साह
______________________________________
शाम का समय था, किन्तु अभी घोंसले में लौटने का वक्त नहीं हुआ था. कौआ अपने पत्नी और बच्चों के साथ चुहलबाजी करने में व्यस्त था. तभी कौआ की नजर आसमान की तरफ गया. आसमान से एक धवल प्रकाश-पुँज तेजी से नीचे आ रहा था. सभी सतर्क हो गए और एकटक उस पुँज को देखने लगे. वह प्रकाश-पुँज गाँव के उस घर के आँगन में उतरा जहाँ उत्सव मनाये जा रहे थे. पत्नी की सहमति से कौआ कौतूहलवश वहाँ गया. वहाँ पहुँचकर उसने देखा की उस घर में धूम-धाम से बर्थ-डे पार्टी मनाया जा रहा है और वह धवल प्रकाश-पुँज एक आत्मा थी. आत्मा वहाँ मौजूद लोगों से पूछ रहा था,"अरे मेरा परपोता कहाँ है, आज तो उसके जन्म-दिवस हैं?"
पर कोई उसके जवाब न दीये. वह आत्मा दुबारा पूछा,"यहाँ, अरे यह भीड़ कैसी है?" इस बार भी किसी ने कोई जवाब न दिये. फिर आत्मा ने तीसरे व्यक्ति को रोककर पूछने की कोशिश किये. किन्तु वह रुका ही नहीं. अब आत्मा झल्लाकर बोला,"मेरी बात अरे, कोई सुनते क्यों नहीं?"
कौआ से रहा नहीं गया. वह आत्मा से कहा,"यहाँ आपकी आवाज सुनने में कोई समर्थ नहीं हैं. उन्हें तो आपकी मौजूदगी के अहसास भी नहीं हैं. इसलिए आपका किसी से कुछ कहना व्यर्थ है."
"काक,अरे तुम तो मुझे देख और सुन सकते हो. तुम्हीं मेरी मदद करो. मुझे मेरे परपोते दिखला दो, आज उसके आठारहवीं जन्म-दिवस हैं." आत्मा बोला.
"वह जो केक काट रहा है, वही आपका परपोता है." कौआ बताया.
"क्या बकते हो,अरे वह तो सर्कस का कोई जोकर मालूम होता है. फिर अपने जन्म-दिन के अवसर में मेरा प्रपौत्र पूजा-अर्चना और स्वयं के दीर्घायु होने की कामना करने के बजाय स्वयं जोकर जैसा तमाशा क्यों करेगा?" आत्मा नाराज होकर कहा.
"मालूम होता है, आप मृत्यु-प्राप्ति पश्चात् अपने स्वजन को देखने इससे पूर्व कभी नहीं आये?" कौआ उस आत्मा से पूछा.
"क्यों?...ऐसी क्या बात हो गई? अरे मैं यहाँ आता तो था. किन्तु अपने पुत्र-पौत्रों के वेवक़ूफ़ियों से यहाँ आकर मुझे हमेशा दुखी होना पड़ा. पिछली बार अपने इस परपोते के जन्म के समय आया, तब मैं बहुत खुश हुआ. तभी मैंने निश्चय किया कि मेरा यह प्रपौत्र जब समझदार और स्व-निर्णय लेने योग्य होगा तभी दुबारा आऊँगा." आत्मा बताया.
"आपके पुत्र-पौत्रों में क्या कमी थी?" कौआ पूछा.
"अरे क्या पूछते हो. वे सब संशय में सारा काम ही बिगाड़ देते थे. उन्हें अपने विवेक का कभी स्वयं उपयोग करना आता ही नहीं था. उनमें इस बात की पूरी समझ न थी कि जो अपने सभ्यता, संस्कृति और देश की रक्षा करने में असमर्थ हैं वे विश्व कल्याण की बातें सोच ही नहीं सकते. जिन्हें उन बातों का ज्ञान नहीं, वे केवल स्वार्थ की बातें ही कर सकते हैं. उनका विश्वकल्याण की बातें करना बेमानी है. उनका जीवन पृथ्वी पर भार है. वास्तव में सभी सभ्यता-संस्कृति अपने भौगोलिक वातावरण एवं परिवेश के अनुरूप अनेक पन्थों में बंटे हैं. यदि उनके पंथाई भावों को हटाकर देखा जाय तो सभी के एकमत से यही स्वीकारोक्ति है कि सभी जीवों में सद्भावना, प्रेम, कृतज्ञता और बुजुर्गों के प्रति सम्मान होना चाहिए." आत्मा बोला.
"मनुष्य में वे सब गुण क्यों होनी चाहिये?" कौआ पूछा.
"ये सत्गुण सृष्टि के संपोषक और संरक्षक हैं. इससे मनुष्य को आत्म-संतुष्टि और जीवन-शक्ति मिलता है.कृतज्ञ होने से देव, पितृ ऋण इत्यादि से मुक्ति और आशीर्वाद मिलता है .इससे मन प्रोत्साहित, प्रफुल्लित और विकासोन्मुख होता है अत्एव जीवन में सफलता प्राप्ति होता है. स्वस्थ और सुखी मनुष्य ही स्वस्थ मन और विचार प्राप्त करने योग्य हो सकता है. स्वस्थ विचार ही से जगत कल्याण होता है." आत्मा बताया. थोड़ा ठहर कर आत्मा पुन: अपने प्रपौत्र को देखने की इच्छा कौआ के समक्ष व्यक्त किये.
"आप जिसे सर्कस का जोकर समझ रहें हैं, वास्तव में वही आपका प्रपौत्र है." कौआ बताया.
"वही मेरा परपोता है? अरे देखो, लोग कितने बदल गये हैं. मनुष्य कृतज्ञता और विवेक खोकर कैसे-कैसे बने पड़े हैं! कहाँ स्वास्थ्यवर्धक स्वर्गभोग क्षिर के स्वाद और कहाँ यह केक. कहाँ कृतज्ञता, प्रेम, दयालूता और परोपकार का उत्सव और कहाँ यह उपहार हेतु उत्सव का व्यापार. कहाँ भाव,श्रद्धा और त्याग-विवेक युक्त जीवन और कहाँ यह कृतघ्न जीवन. कहाँ बुजुर्गों का सम्मान और कहाँ यह स्वाभिमान की रक्षा में असमर्थ लोग."आत्मा सोचा.
वह आत्मा दु:खी होकर बोला,"यहाँ धर्म भी है, कर्म भी है, किंतु श्रद्धा, विश्वास और सत्भाव रहित महज एक क्रूर खेल में.यहाँ अपने इस आगमन को अंतिम सुनिश्चित करते हुए अपने प्रपौत्र को आशीष और मुबारकवाद देता हूं." ऐसा कहते हुए दु:खी आत्मा आत्मग्लानी-युक्त निज स्वधाम पितृलोक हेतु विदा लिया.
(सर्वाधिकार लेखकाधीन)
निम्न कड़ियों (वेव लिंक)पर भी लेखक के प्रकाशित रोचक कहानी संग्रह का लाभ उठा सकते हैं-
Read my book "लघुकथाओं का संसार, भाग-1" on MatruBharti App.
http://matrubharti.com/book/1926/
Read my book "लघु कथाओं का संसार भाग -2" on MatruBharti App.
http://matrubharti.com/book/2238/
Read my book "Pradip Krut Laghukathao ka Sansar - 3" on MatruBharti App.
http://matrubharti.com/book/2568/
Read my book "Adarsh Aur Majburiya" on MatruBharti App.
http://matrubharti.com/book/2581/
http://www.rachanakar.org/2015/11/blog-post_37.html
http://www.rachanakar.org/2015/11/blog-post_26.html
http://www.rachanakar.org/2015/11/blog-post_14.ht
http://www.rachanakar.org/2015/11/blog-post_28.html
http://www.rachanakar.org/2015/11/blog-post_61.html
http://www.rachanakar.org/2015/11/blog-post_98.html
COMMENTS