विनीता शुक्ला की कहानी - सभ्य मुखौटे

SHARE:

सभ्य मुखौटे - विनीता शुक्ला कलिका हतप्रभ सी उस हॉलनुमा कमरे में बैठी थी; दिलोदिमाग में अजब सी हलचल लिए. अपने नये जॉब को ‘लपकने’, कलिका वर्...

image

सभ्य मुखौटे
- विनीता शुक्ला

कलिका हतप्रभ सी उस हॉलनुमा कमरे में बैठी थी; दिलोदिमाग में अजब सी हलचल लिए. अपने नये जॉब को ‘लपकने’, कलिका वर्मा, घंटे भर पहले यहाँ आई थी- प्रसिद्द ड्रेस- ब्रांड, ‘गोल्डन प्लेनेट’ के भव्य शो- रूम में, फाइनेंस मैनेजर की नौकरी! पुराने मैनेजर, बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य समस्याओं के चलते, रिटायर हो चुके थे. उनके कमरे को रेनोवेट कर, कैंटीन में तब्दील कर दिया गया. अब नई मैनेजर यानी कलिका को, पुराने कांफ्रेंस हॉल में ‘डेरा जमाना’ था. हॉल से लगा एक स्टोर था- जहाँ हिसाब- किताब के, सारे रेकॉर्ड मौजूद थे. दोनों कमरे सफाई मांग रहे थे. चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर प्रतिभा सिंह ने, आते ही, फाइलों को रिअरेंज करने को कहा. प्रतिभा मैडम के अलावा, वह रिसेप्शनिस्ट नेहा से भी मिली थी. नेहा की ‘भेदक निगाहें’ मानों अब भी उसके पीछे थीं!

प्रतिभा के जाने के बाद, कलिका ने कमरों का मुआयना किया. बड़े बड़े बहीखाते और फाइलों के ढेर- उसे चुनौती दे रहे थे...यहाँ- वहां धूल और मकड़ी के जाले... दीवारों पर रेंगती छिपकलियाँ! मैम ने कहा था कि मदद के लिए, लोअर स्टाफ को भेज देंगी; लेकिन अब तक, कोई आया न था. वह उनको ढूँढने ही जाती; किन्तु एक अट्टाहास ने, बढ़ते पग थाम लिए. समवेत खिलखिलाहटों के स्वर, स्टोर की दीवार से रिसकर, प्रतिध्वनित होने लगे, “उस नई लड़की को देखा...नेहा बता रही थी, किसी दूसरे शहर से आई है”

“अच्छा... कौन है, क्या नाम है उसका?”

“नाम तो पता नहीं...कोई मिस वर्मा है. सुना- कुछ लेखिका टाइप है; अखबार वगैरा में छपते हैं उसके आर्टिकल”

“फाइनेंस की फील्ड से... और लेखिका! व्हाट ए रेयर कॉम्बिनेशन!!’

“तब तो देखना पड़ेगा देवीजी को...आई एम वैरी कीन टु नो अबाउट हर”

“छड्ड यार! रूखी- सूखी स्टिक जैसी लगती है. अपनी रोमा की तरह नहीं- रसभरी...चॉकलेटी...फुल ऑफ़ लाइफ! यू नो- 36- 24- 36” हंसी का फव्वारा, फिर फूट पड़ा था. इधर कलिका अवाक!! वह असहाय- निरुपाय, सुनती रही प्रलाप- अपनी और किसी रोमा की देहयष्टि पर, बेहूदी चर्चा!!! सहसा चायवाले की आवाज़ से, उन बातों का क्रम भंग हुआ, “चाय साहेब”

“रख दो” इस बार संवाद में, गम्भीरता का पुट आ गया था. अब चाय सुड़कने के अलावा, अन्य कोई स्वर नहीं उभरा. मिनट भर में, उसके सामने भी, चाय का प्याला रख दिया गया. ‘तो ऑफिस में, चाय सर्व करने का, अपना रूटीन है. उसी इंतज़ार में लोग, गपशप कर रहे होंगे’ कलिका ने सोचा. एक अजानी आकुलता, उसे जकड़ने लगी. इस बीच हेल्पर भी आ गये थे. वह यंत्रवत, उनसे काम करवाती रही. सोचा था- ऑफिस ऑवर्स के बाद, लेडीज हॉस्टल की तन्हाई में, आराम फर्मायेगी. व्यस्त दिनचर्या के बाद, निद्रा देवी की गोद बहुत भाती है...किन्तु नींद तो थी- आँखों से कोसों दूर!

न जाने कब, हाथों ने कलम थाम ली और यादों के कोलाज बनते गये, “आज सभ्य लोगों की असभ्य बातों ने, बहुत आहत किया. कड़वे अनुभव एक- एक करके, मन पर दस्तक दे रहे हैं...” लिखते लिखते वह इतना तन्मय हो गयी कि समय का ध्यान ही न रहा. थकान ने देह को जकड़ लिया. कलिका ने हाथ के पंजों को फंसाया और उस पर सर टिकाते हुए, आँख मूँद ली. अब साधारण कुर्सी ही, आरामकुर्सी का मजा दे रही थी. स्मृतिपटल पर पी. टी सर, वरुण देव का चेहरा उभर आया. उन्होंने किस बेशर्मी से, डांस- रिहर्सल के बाद, मणि से कहा था- “यू नीड स्पोर्ट ब्रा फॉर प्रैक्टिस”

कितनी घटनाएँ! जींस टॉप उसके दुबले पतले शरीर पर फबता था, फिर भी कॉलेज के सीनियर लडकों को आपत्ति थी...उसकी टीचर दोस्त को, स्कूल के पुरुष -क्लर्क द्वारा ब्रा का स्ट्रैप ठीक करने की सलाह- कैसी सामन्तवादी प्रवृत्ति?! मर्यादा की सीख देना, अपनी ही मर्यादा तोड़कर??!! ये पुरुष अपनी बात शराफत से, किसी महिला शिक्षिका या सहकर्मी से कहलवा सकते थे. पर उसमें दादागिरी का मजा कहाँ... ऑफिस में भी तो, एक तरह की, दादागिरी ही चलती है. दिन यूँ ही निकल गया. सुबह वाली घटना की बदौलत, जोरदार आर्टिकल की भूमिका बन चुकी थी; लेकिन दिमाग थकने सा लगा. हॉस्टल की मेस में, कुछ हल्का- फुल्का खाकर, बिस्तर पर पड़ रही.

दूसरे दिन ‘टी- ब्रेक’ के दौरान, उसके कान दीवार पर ही लगे थे. नियत समय पर महफिल जमी. इस बार उन्होंने, किसी महिला- सेल्स रेप्रेंसेंटेटिव का, ‘चरित्र- हनन’ किया- बड़ी उमर के बाद भी शादी नहीं हुई, जरूर से कोई चक्कर होगा. उसके साथ, ‘गोटी फिट करने’ का स्कोप, किसके लिए, कितना हो सकता था; इस पर गहन चिंतन हुआ. उस सड़ी हुई सोच से, कलिका को, उबकाई आने लगी. जिन बातों की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी, वे उन्हें खुल्लमखुल्ला उछाल रहे थे. इस प्रकरण के सब पात्रों को, वह अब देखना चाहती थी. प्रतिभा मैम ने कहा था, फुर्सत में सारे स्टाफ से परिचय कराएंगी पर वे जरूरी असाइनमेंट में व्यस्त हो गयीं. कलिका को खुद रिक्वेस्ट करनी पड़ी; तब जाकर उन्होंने उसे, ‘गोल्डन प्लेनेट’ का राउंड लगवाया.

इस क्रम में, एक- एक कर्मचारी से परिचय हुआ. टेलरिंग रूम की ड्रेस- डिज़ाइनर, रोमा से भी मिली. झूठ नहीं कहते थे लोग... गजब की सुन्दरी थी रोमा! साड़ियों वाली फ्लोर पर, ‘तथाकथित’ सेल्स- रेप्रेंजेंटेटिव श्यामला को देखा. उसके चेहरे पर उम्र के निशान थे- जिम्मेदारियों से बंधी, सीधीसाधी लड़की...विकलांग पिता, लाचार मां, छोटे भाई- बहन... घर बसाने की, सोचती भी कैसे बेचारी!! उसे कहाँ मालूम होगा कि उसकी मजबूरी का, किस भद्दे ढंग से, मजाक बनाया जा रहा था!!! मजाक बनाने वाले वालों के पास, दिल नहीं था...संवेदना तो नाम की नहीं थी...होती तो- छींटाकशी करने के पहले, सौ बार सोच लेते. ‘चाय- सभा’ के सदस्यों में सर्वप्रथम, जुगल किशोर थे. स्टोर से सटे केबिन में, इसी नाम की तख्ती, लटक रही थी. असिस्टेन्ट सी. ई. ओ. का पदभार और मनचलों की फ़ौज- दोनों उनके ही मत्थे!! बात बात पर ‘हीं हीं’ करने वाले सेल्स मैनेजर गुप्ते...छिछोरे संवादों से, ‘पब्लिक’ को गुदगुदाने वाले, मार्केटिंग मैनेजर रामास्वामी... कुछ पुरुष सेल्स एक्सीक्यूटिव भी. अनुमानतः इन सबकी आवाजें ही, उसे सुनाई देतीं थीं. इसके अलावा काईयाँ नजरों वाला टेलर मास्टर मनमीत, प्रौढ़ा एनाउन्सर सरला जी और ‘ओवर स्मार्ट’ नेहा.

अगले दिन सैलरी और वर्क- लोड को लेकर गंभीर बातें हुईं... कोई ‘ज्ञानी’, मंहगाई को लेकर, ज्ञान बघार रहा था. रसिक लोग, दुश्वारियों में, ‘नॉन- वेज चुटकियों’ को भूल गये होंगे. लेकिन बीच में नेहा का जिक्र जरूर आया. कुछ और ‘गप्प- गोष्ठियों’ के बाद, कलिका को लगा- यह नेहा ही थी, जो इन सबको, स्त्री कर्मचारियों के बारे में, ‘अंदर की बात’ बताती थी. संभवतः इसलिए – क्योंकि ये लोग अक्सर, कैंटीन में उसे फ्री- ट्रीट दे देते थे...और इसलिए क्योंकि वह खुद पंचायती थी. ये लोग खूब बतियाते. उस बतकही में, समाज और राजनीति का घालमेल भी होता परन्तु सुई बार- बार औरतों पर अटक जाती.

‘गोल्डन प्लेनेट’ में कुछ ही दिन हुए थे और कलिका ने फाइल- सिस्टम और कंप्यूटर- ट्रांजेक्शनों को दुरुस्त कर दिया. मैम बहुत खुश थीं उससे. मैडम का अपनी तरफ झुकाव, कलिका को उत्साह से भर देता. उसके होम- टाउन में ‘गोल्डन प्लेनेट’ की नई ब्रांच खुल रही थी. उसने प्रतिभा जी से, वहां ट्रान्सफर लेने की इच्छा जताई. वे मान भी जातीं पर जुगल किशोर जी ने, बीच में टांग अड़ा दी. कलिका मन मसोसकर रह गयी. समय बीत रहा था. अब तो चाय के साथ वह, प्रपंच भी गटक जाती. एक कान से सुनकर, दूसरे से निकालने की कोशिश करती. काम में ध्यान लगाना, जरूरी भी था. किन्तु उस दिन तो हद हो गयी... मनमीत टेलर, किसी लेडी- कस्टमर के, नख- शिख का बखान कर रहा था और सब चटखारे ले रहे थे!!

कलिका का मन, फिर उद्वेलित हो चला. विचार- मंथन थम न सका. तन्हाई में, अंतस के उदगार फूट पड़े- ‘ये पुरुष न तो बिगड़े हुए रईस हैं और न नाली के कीड़े...संभ्रांत घरों से ताल्लुक रखने वाले- इस कदर घिनौनी बात, कैसे कर लेते हैं?! हमारे समाज की संरचना ही ऐसी है. आजकल तो गुंडे सरेआम, डंके की चोट पर कुकृत्य करते हैं और जनता मुंह सिये रहती है. एक को दूसरे का लिहाज नहीं- पुरुषत्व की नई परिभाषा! तभी तो चुपके से होने वाले कुकर्म, अब सामूहिक रूप में होते हैं!! ऑफिस के इन पुरुषों की मानसिकता भी तो ऐसी ही है. क्या गारंटी कि किसी महिला को अकेले पाकर, ये अभद्र व्यवहार न करें. यह कोई क़ानून नहीं मानते. बंद कमरे में, जो कहते- सुनते हैं- उसके सार्वजनिक होने का भी, तनिक भय नहीं!

जो भी हो- इनके सौजन्य से ही, कलिका के विचार, पन्नों पर उतर आये थे. लेख सटीक और गठे हुए रूप में आकार ले रहा था. कम से कम वह अपनी खुंदक, कहीं तो उतार पा रही थी! इतना कुछ लिखने के बाद, दिल बहुत हल्का हो गया था और वह इत्मीनान से, अगले दिन के लिए तैयार थी. ऑफिस में सुबह शान्ति से गुजरी. कलिका ने कंप्यूटर पर, बहुत से काम निपटाए. स्टोर में घुसी तो पाया कि वाल पेपर का टुकड़ा, दीवार से कुछ दूर पड़ा था. “ओह!!” नज़र ऊपर उठते ही, वह बुदबुदाई. ‘तो दीवार पर, वेंटिलेटर जैसी कोई ओपनिंग है- जो संलग्न कक्ष में, घटने वाली घटनाओं की, चुगली कर रही थी.’

अभी भी यह, वाल पेपर से ढंकी थी, सिर्फ एक छोटा टुकड़ा अलग हुआ था; शायद सड़कर गिरा हो. अलबत्ता ‘साहब लोगों’ की बकवास जारी रहेगी- उन्हें इस राज़ की, हवा तक नहीं! वह मुस्करायी पर उसकी मुस्कान अगले ही क्षण विलुप्त हो गयी. आवाज़े फिर से आने लगीं थीं.

“हम सुना- देट कलिका- वो नई लड़की... सिस्टम में कुछ चेंज किया है” रामास्वामी ने शब्दों को, चबाकर बोलते हुए कहा.

“हीं हीं..एकदम बेकार दिखती है”, इस बार गुप्ते थे, “बड़ी शाणी बनती...मैडम जी पर इम्प्रैशन मारती- लो बोलो! किस वास्ते....हमारे सबके ऊपर बैठ जाएगी?!”

“ना जी ना” जुगल जी कब चूकने वाले थे, “वो भूरी आँखों वाली बिल्ली बड़ी शातिर है- वो तो इधर से ट्रान्सफर चाहती है, अपनी नई ब्रांच में. मैडम से सिफारिश कर रही थी पर हम ही अड़ गये. बताओ- ये भी कोई बात है?!! हर काम थ्रू प्रॉपर- चैनेल होना चाहिए. उसके इमीडियेट बॉस हम हैं या मैडम...हमसे पूछ नहीं सकती थी?? देट होपलेस ड्राई स्टिक!!!”

“तो ये आपका ईगो प्रॉब्लम है”

“और क्या! सर आप अड़े रहिये...मैडम अकेले उसे कितना सपोर्ट करेंगी”

“आजकल वो सरला एनाउंसर भी, इसके साथ लगी रहती है. दोनों कैंटीन में ही, लंच आर्डर करती हैं”

“उसकी गाँववाली है ना- इसीलिये!”

“इसीलिये क्या?! ऐज में इत्ता डिफरेंस है. वो सरला बुढ़िया है और ये...”

“सरला बुढ़िया है सो व्हाट...क्या मस्त फिगर है उसकी...इन फैक्ट- आई वांट टु ट्राई देट वन!!” वार्तालाप मेल- एक्सीक्यूटिवों तक सीमित हो चला था.

कलिका ने हैरान होकर, माथा ठोंक लिया. भावावेश में, उसकी कनपटी लाल हो गयी थी...कलेजा फटकर सीने से बाहर ही आ जाता- विचारातीत...इतना शर्मनाक कमेंट आज तक नहीं सुना! इन्होंने अपनी मां समान, सरला आंटी को भी नहीं छोड़ा!! मर्दाना सोच पर अपना आर्टिकल, आज पूरा ही करके रहेगी कलिका- चाहे रात भर जागना क्यों न पड़े!!! कुछ ही दिन बाद उसका लेख, स्थानीय समाचार- पत्र की शोभा बढ़ा रहा था. उस दिन सुबह सुबह ‘गुड मॉर्निंग’ के बाद जुगल जी ने पूछा, “आज के न्यूज़ पेपर में आपका ही आर्टिकल है?” कलिका ने सर हिलाकर, मूक सहमति दे दी. “वैरी एफ़ीशिएंट राइटिंग...सुपर्ब आई से. मैं तो कहता हूँ कि आप हमारे प्रोडक्ट्स के लिए, कैप्शन लिखने का काम शुरू कर दीजिये...कीप ऑन द गुड वर्क”

“थैंक यू सर” बेमन ही सही पर शिष्टतावश कहना पड़ा, कलिका को. “और आपके तो आई- ओपनिंग थॉट्स हैं…वैरी इंस्पायरिंग” आगे भी बहुत कुछ, बोले थे जुगल किशोर. इतनी बकबक, उनके दोगलेपन को उघाड़ रही थी. कलिका और नहीं सह पायी- दबे हुए अंगार फट पड़े, स्वर में व्यंग्य उतर आया,“ सर...लोग जिसे भूरी बिल्ली और होपलेस स्टिक कहकर, मखौल करते हैं- उस लड़की में भी, थोड़ी बहुत एबिलिटीज तो हैं ही!” जुगल को दिन में तारे नजर आ गये!! जिन जुमलों को, उन्होंने खुद उछाला था– उन्हीं में लपेटकर, कलिका ने उन्हें पटखनी दे दी थी!!!

अगले दिन पता चला- जुगल सर ने, कलिका के ट्रान्सफर को, एप्रूव कर दिया था.

---

clip_image002

नाम- विनीता शुक्ला

शिक्षा – बी. एस. सी., बी. एड. (कानपुर विश्वविद्यालय)

परास्नातक- फल संरक्षण एवं तकनीक (एफ. पी. सी. आई., लखनऊ)

अतिरिक्त योग्यता- कम्प्यूटर एप्लीकेशंस में ऑनर्स डिप्लोमा (एन. आई. आई. टी., लखनऊ)

कार्य अनुभव-

१- सेंट फ्रांसिस, अनपरा में कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य

२- आकाशवाणी कोच्चि के लिए अनुवाद कार्य

सम्प्रति- सदस्य, अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था, लखनऊ

सम्पर्क- फ़ोन नं. – (०४८४) २४२६०२४

मोबाइल- ०९४४७८७०९२०

प्रकाशित रचनाएँ-

१- प्रथम कथा संग्रह’ अपने अपने मरुस्थल’( सन २००६) के लिए उ. प्र. हिंदी संस्थान के ‘पं. बद्री प्रसाद शिंगलू पुरस्कार’ से सम्मानित

२- ‘अभिव्यक्ति’ के कथा संकलनों ‘पत्तियों से छनती धूप’(सन २००४), ‘परिक्रमा’(सन २००७), ‘आरोह’(सन २००९) तथा प्रवाह(सन २०१०) में कहानियां प्रकाशित

३- लखनऊ से निकलने वाली पत्रिकाओं ‘नामान्तर’(अप्रैल २००५) एवं राष्ट्रधर्म (फरवरी २००७)में कहानियां प्रकाशित

४- झांसी से निकलने वाले दैनिक पत्र ‘राष्ट्रबोध’ के ‘०७-०१-०५’ तथा ‘०४-०४-०५’ के अंकों में रचनाएँ प्रकाशित

५- द्वितीय कथा संकलन ‘नागफनी’ का, मार्च २०१० में, लोकार्पण सम्पन्न

६- ‘वनिता’ के अप्रैल २०१० के अंक में कहानी प्रकाशित

७- ‘मेरी सहेली’ के एक्स्ट्रा इशू, २०१० में कहानी ‘पराभव’ प्रकाशित

८- कहानी ‘पराभव’ के लिए सांत्वना पुरस्कार

९- २६-१-‘१२ को हिंदी साहित्य सम्मेलन ‘तेजपुर’ में लोकार्पित पत्रिका ‘उषा ज्योति’ में कविता प्रकाशित

१०- ‘ओपन बुक्स ऑनलाइन’ में सितम्बर माह(२०१२) की, सर्वश्रेष्ठ रचना का पुरस्कार

११- ‘मेरी सहेली’ पत्रिका के अक्टूबर(२०१२) एवं जनवरी (२०१३) अंकों में कहानियाँ प्रकाशित

१२- ‘दैनिक जागरण’ में, नियमित (जागरण जंक्शन वाले) ब्लॉगों का प्रकाशन

१३- ‘गृहशोभा’ के जून प्रथम(२०१३) अंक में कहानी प्रकाशित

१४- ‘वनिता’ के जून(२०१३) और दिसम्बर (२०१३) अंकों में कहानियाँ प्रकाशित

१५- बोधि- प्रकाशन की ‘उत्पल’ पत्रिका के नवम्बर(२०१३) अंक में कविता प्रकाशित

१६- -जागरण सखी’ के मार्च(२०१४) के अंक में कहानी प्रकाशित

१८-तेजपुर की वार्षिक पत्रिका ‘उषा ज्योति’(२०१४) में हास्य रचना प्रकाशित

१९- ‘गृहशोभा’ के दिसम्बर ‘प्रथम’ अंक (२०१४)में कहानी प्रकाशित

२०- ‘वनिता’, ‘वुमेन ऑन द टॉप’ तथा ‘सुजाता’ पत्रिकाओं के जनवरी (२०१५) अंकों में कहानियाँ प्रकाशित

२१- ‘जागरण सखी’ के फरवरी (२०१५) अंक में कहानी प्रकाशित

२२- ‘अटूट बंधन’ मासिक पत्रिका ( लखनऊ) के मई (२०१५) अंक में कहानी प्रकाशित

२३- ‘वनिता’ के अक्टूबर(२०१५) अंक में कहानी प्रकाशित

पत्राचार का पता-

टाइप ५, फ्लैट नं. -९, एन. पी. ओ. एल. क्वार्टस, ‘सागर रेजिडेंशियल काम्प्लेक्स, पोस्ट- त्रिक्काकरा, कोच्चि, केरल- ६८२०२१

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: विनीता शुक्ला की कहानी - सभ्य मुखौटे
विनीता शुक्ला की कहानी - सभ्य मुखौटे
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVQhEz33X9fEY2OV0k_KwMnGQbLN7zV8zDGg9NjKxd7wUwgDQEAiP1wjuF4T8QCCBuJxhgVVDwOmbdKPyMGHw2h4DeowVOhyphenhyphen5l90k-nMIsXhWsTl8FaPFyYxNI_gt_RzNCxJEh/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVQhEz33X9fEY2OV0k_KwMnGQbLN7zV8zDGg9NjKxd7wUwgDQEAiP1wjuF4T8QCCBuJxhgVVDwOmbdKPyMGHw2h4DeowVOhyphenhyphen5l90k-nMIsXhWsTl8FaPFyYxNI_gt_RzNCxJEh/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/12/blog-post_73.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/12/blog-post_73.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content