विनीता शुक्ला की कहानी - अंधी खोहों के परे

SHARE:

अंधी खोहों के परे - विनीता शुक्ला सांझ की धुंध में, रात की स्याही घुलने लगी थी. सर्द हवाओं के खंजर, सन्नाटे में सांय- सांय करते...उनकी बर...

image

अंधी खोहों के परे

- विनीता शुक्ला

सांझ की धुंध में, रात की स्याही घुलने लगी थी. सर्द हवाओं के खंजर, सन्नाटे में सांय- सांय करते...उनकी बर्फीली चुभन, बदन में उतरती हुई. बाहर ही क्यों, भीतर का मौसम भी सर्द था. मल्लिका को झुरझुरी सी हुई. गोपी की किताबें सहेजते हुए, दृष्टि खिड़की पर जा टिकी. जागेश अंकल की अर्थी सजने लगी थी. ‘स्यापा’ करने वाली स्त्रियों के साथ, रीति आंटी भी आयीं और अंकल की देह पर, पछाड़ खा- खाकर गिरने लगीं. उनका विलाप तमाम ‘आरोह- अवरोह’ के साथ, मातम की बेसुरी धुन जैसा था. वह ‘नौटंकी’ देख- सुनकर, उसे जुगुप्सा होने लगी.

रीति ने दोहाजू जागेश से ब्याह, इस आश्वासन पर किया था कि उनके बच्चों को, अपने बच्चों सा लाड़ देगी. लेकिन ब्याह के चंद दिनों में ही उसने, अपना असल रंग दिखा दिया. घर अस्त – व्यस्त हो गया. बच्चों की देखभाल तो दूर; वह खुद को भी संभाल न सकी.... जब देखो, पति की जेब पर, हाथ साफ़ कर देना... पुराने आशिक से मिलते रहना- चोरी- छुपे! जागेश के दिल को गहरी ठेस पहुंची. दिल का मरीज़ आखिर कब तक चल पाता! अंकल की तेरह वर्षीय बेटी मंगला, अब तक बुत बनी खड़ी थी. गोद में उसका, नन्हा सा भाई था. अर्थी उठते ही, वह आंसुओं में डूब गयी. मंगला का आकुल रुदन, हवाओं को पिघला रहा था. वही ऊष्मा मानों वाष्पित हो, खिड़की पर ठहर गयी...कांच का पारदर्शी पट, भोथरा हो चला!!

दृष्टिपथ धूमिल... क्या जाने कोहरा था या फिर...आँखों की नमी! अम्मा अभी तक, उधर से नहीं लौटीं. शोक मनाना सहज नहीं होता. रिवाज़ कोई हो; निभाने के लिए, वक्त चाहिए. रीति का रोना- गाना, हद से बढ़ने लगा; उसके साथ, मल्लिका की हैरानी- परेशानी भी. अन्धेरा अब, दूसरा ही राग अलाप रहा था . अवचेतन पर छा गयी- धड़- धड़ करती हुई ट्रेन. भैया, भाभी के ऊपर झुके हुए...उनके छलकते हुए आंसू और बदहवास चीखें. सहसा परिदृश्य बदल जाता है. ट्रेन एक बार फिर, अँधेरी सुरंग में घुस जाती है. और तब...भैया की आंखें, कुछ और ही कहती हैं! कुछ वैसा ही रहस्यमय- जैसा कि इस समय, रीति के नयन बांच रहे हैं!!

“अरी मल्ली, अभी तक बिस्तर नहीं लगाया”...”सोने का टैम हो गया”...”चल जल्दी कर; सुबह मुन्ने को इस्कूल भेजना है”. अम्मा के शब्दवाण, विचार- समाधि तोड़ गये थे. मन- पखेरू के कोमल पंख, चोटिल हो सिमट आये... वह तंद्रा से जागी; मानों उड़ान भरते- भरते, जमीन पर आ गिरी! मुन्ना उर्फ़ गोपी, उस दबंग आवाज़ से डरकर, पलंग में दुबक गया. मल्लिका यंत्रवत सी उठी और सब काम निपटाए. काम की थकान, देह पर हावी थी किन्तु अंतस में, हिलोर सी उमगती ... नींद कोसों दूर... समग्र चेतना पुनः, अंधी सुरंग की तरफ, खिंचती हुई...!!

अतीत की अँधेरी खोहों से, निकल भी आये तो क्या! ऐसी कितनी अदृश्य अंधी खोहें, उसके चारों तरफ बिछी हैं. कुछ वैसा ही अन्धेरा, कॉलेज के महिला कक्ष में- खस के पर्दों से रचा गया अन्धेरा, “ सब चचेरी- ममेरी बहनों की ‘सादी’ हो गयी... न जाने हमारी कब होगी!”

“चल आज, ज्योतिष महराज से पूछते हैं.”

“कितना लेते हैं?!”

“पचास रूपये में सब बता देते हैं. कब तक ब्याह होगा, कहाँ होगा, पति कैसा होगा, उसकी नौकरी...ब्याह फलेगा कि नहीं...कितने बच्चे होंगे”

“बस, बस इत्ता बहुत है...चल आज चलते हैं. बल्कि अभी ही”

“फिर हिस्ट्री का पीरियड”

“उसे मार गोली...तू बस चल, फौरन!” उन दो लड़कियों का प्रलाप सुनकर, वह वितृष्णा से मुस्करा उठी थी. इस कॉलेज का स्तर ही ऐसा था. चलताऊ पुस्तकालय, शिक्षक भी चलताऊ और विद्यार्थी तो और भी गये- गुजरे! बिल्डिंग ऐसी कि जगह जगह प्लास्टर उधड़ा हुआ. इतना जरूर था कि यहाँ फीस में कुछ रियायत मिल जाती थी; इसी से निम्न – मध्यम वर्ग के छात्रों की बहुतायत थी. उनकी जीवन शैली, उनके अभाव, उनकी कुंठाएं, माहौल में झलक उठतीं. बगल में, सरकारी आवास योजना वाले फ्लैट थे. ज्यादातर स्टूडेंट, उधर ही रहते थे.

वहीं मल्लिका का घर भी था; आर्थिक- स्थिति, उन आवासों के ही अनुरूप. जीवन की औसत आवश्कताएं कठिनाई से पूरी होतीं; फिर भी, कुछ कर दिखाने का जज्बा; जोर मारता रहता. उसका भाई महज एक टी. सी. और पिता रिटायर्ड सुरक्षा- गार्ड; भाई की नियुक्ति किसी दूसरी जगह थी. घर में मां- पिताजी व भतीजा गोपी, इतने ही लोग रहते. कॉलोनी के दूसरे लोग भी, बहुत समर्थ न थे. उसकी सहपाठी मीना के पिता, माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक. दूसरी सहपाठी शिखा के पिता क्लर्क और शिखा के मामाजी, जो बाजूवाले फ्लैट में रहते थे- लाइब्रेरियन. रीमा उनके ग्रुप की, एक ही ऐसी लड़की थी, जिसके पापा ने ठेकेदारी से, ‘दो नम्बर’ का पैसा बनाया था; इसी से उसके ‘जलवे’ कुछ दूसरे थे.

मीना और शिखा मन ही मन उससे जलतीं. यहाँ तक कि उसके चाल- चलन को लेकर, परपंच करतीं, “मल्ली तू रीमा के यहाँ मत जाया कर. उसके भाई का जो दोस्त है ना- अरे वही रविन्द्रन...मद्रासी छोरा! उसके साथ ही चक्कर चला रही है...” मल्लिका के होंठ कुछ कहने को खुले, किन्तु सप्रयास, उसने उन्हें भींच लिया. मूढ़मगज के साथ, भेजा कौन खपाए?? उसने अपनी आँखों से रविन्द्रन को, रीमा से अपनी कलाई पर राखी बंधवाते और स्नेह से उसके सर पर हाथ फेरते हुए देखा था. नहीं...ऐसा पवित्र प्रेम, छल कैसे हो सकता है?! मीना और शिखा के बचकाने आरोप- यह भी, अंधियारे का रूप थे और तम से घिरी, कंदराओं में रेंगना, जीवन की नियति!! भाभी मां के बाद वह भी, ऐसी ही कंदराओं में भटक रही है... जहाँ धड़ धड़ करती ट्रेन डोलती है; दम तोड़ती भाभी की फ़ैली हुई आँखें...उनका खुला मुख!!

बार बार अभिशप्त स्मृतियों से उबरना कठिन है. किसी भाँति उन्हें झटकती है; किन्तु अँधेरे और कलुष की दुरभिसंधि, अब भी नहीं टूटती. उसकी हमजोलियों को ही लो- शिखा के पिता ने, पैतृक सम्पत्ति बेचकर, किसी भाँति पैसा जमा किया. शिखा को ‘निपटाना’ जो था. रीमा का रिश्ता भी, एक बड़े घर में हो गया. मल्लिका तो ब्याह- शादी के झमेलों से उदासीन थी लेकिन मीना पर यह बहुत नागवार गुजरा. उसकी खीज बढ़ती गयी. एक दिन जब मल्लिका, उसके साथ ऑटो में थी; वह उससे सटकर बैठ गयी. एक लिजलिजा एहसास था – उस छुअन में! मीना- जो शादी के लिए उतावली थी; दान – दहेज़ के अभाव में, एकदम पगला ही गयी! शरीर में उफनते हार्मोन, दूसरा ‘विकल्प’ तलाश रहे थे!!

अनब्याही रह जाना- यह मीना की नियति ही नहीं; दूसरी कई लड़कियों की नियति भी थी. बीना आंटी की ननद, ब्याह के इंतजार में, प्रौढ़ होती गयी. वह नौकरीशुदा थी, अच्छा कमा लेती थी. परिवारवाले दुधारू गाय समझ, उसका दोहन कर रहे थे. उसके लिए जो रिश्ते आते; वे उनमें कोई न कोई नुक्स निकाल ही देते. एक उम्र के बाद, रिश्ते आने बंद हो गये. हारकर वह लिव – इन रिलेशन में चली गयी बाद में जब, बॉय- फ्रेंड ने छोड़ दिया; उसकी हालत ‘धोबी के कुत्ते’ सी थी- गिरे- चरित्र की ‘अछूत’ स्त्री!

यहाँ स्त्रियों पर, लोकलाज और गृहस्थी का बोझा था. दिन रात घर- गृहस्थी में खपना. उनकी मानसिक, दैहिक आवश्यकताओं से, किसी का कुछ सरोकार नहीं. यहाँ ऐसी पर्दानशीं औरतें थीं जो आँख बचाकर, मर्दों से बतियातीं. मल्लिका के गाँव में, हाथ भर का घूँघट करने वाली स्त्रियाँ, पोखर में नहाते समय स्वछन्द हो जाती थीं! ज्यों वर्जनाओं को, खुलेआम नकारना चाहती हों. शादी- ब्याह में समधियाने को, अश्लील से अश्लील गलियां देने में भी चूकती नहीं!! नारी मन में, इतनी गाठों को बाँधने वाला, समाज ही तो है. मल्लिका उनके वजूद में भी, स्याह सुरंगों को उतरते हुए देखती है. यादों की रेलगाड़ी, बारम्बार उन सुरंगों से गुजरती है... रह रह याद आता है- भैय्या का भाभी पर झुका, अश्रुसिक्त चेहरा!!!

विगत को उन स्रियों से अलग कर, देख नहीं पाती. कहीं न कहीं वह, उनके भाग्य से मेल खाता है. अपवाद भी हैं- जैसे रीमा की पारिवारिक मित्र सुषमा मौसी. वे ऐसी ही परिस्थितियों में पली बढीं; लेकिन अथक संघर्ष से, जीवन में ऊपर उठ सकीं. आज वह एक बेहतरीन नाट्यकर्मी और समाजसेविका हैं. उन्होंने अपने ही सहकर्मी से, प्रेम विवाह किया. जात- बाहर लगन हुआ, फिर भी ठसक से रहती हैं. मल्लिका के लिए वे आदर्श हैं. उन्होंने ही उसे प्रेरणा दी- स्वयं को पहचानने की. मौसी उसे, भाभी मां की याद दिलाती हैं- जिनकी ममता संजीवनी सी थी. भैय्या की शादी के समय, वह महज सात साल की थी. इधर भाभी का गृहप्रवेश और उधर अम्मा का बिस्तर से लग जाना.

नई नवेली वाले नाज़- नखरे छोड़, भाभी ने उन्हें संभाला और छुटकी नन्द को भी. तब वे ही, उसके लिए मां हो गयीं. जब तक वे रहीं, उसके लिए भाभी न होकर, भाभी मां बनी रहीं. ममत्व का अजस्र स्रोत बहता था- उनके अन्तस् से. लेकिन जब वही भाभी, गोपी को जन्म देने के बाद; टी. वी. की चपेट में आ गयीं; सबने उनका बहिष्कार कर दिया. उन्हें मायके भेजते समय, अम्मा ने एक पल को, यह न सोचा कि भाभी ने कैसे उनकी सेवा की थी, कैसे उन्हें मौत के मुंह से निकाला था. अम्मा भी क्या करतीं. भैय्या का रवैय्या तो और ज्यादा सख्त था. डॉक्टर ने शिशु गोपी को, उसकी मां से दूर रखने की सलाह दी थी.

उड़ती उड़ती अफवाह थी कि वे किसी महिला सहकर्मी पर मेहरबान थे. पोस्टिंग बाहर थी, लिहाजा घरवालों का भी खटका नहीं था. तय हुआ कि पूरा परिवार मामा के गाँव तक, भैय्या भाभी के साथ चलेगा. माह भर के गोपी को लेकर, उन्हें दो स्टेशन पहले ही उतरना था- रत्नागिरि में. बाद में भैय्या को, पत्नी संग ससुराल पहुंचना था. क्या पता था, वह ट्रेन में ही... ! विवाह के सात वर्ष बाद, भाभी मां ‘बांझ’ के कलंक से मुक्त हुईं; पर यह सुख, उनका नसीब न बदल सका. भाभी के देहांत के बाद तो भैया, एकदम हाथ- बेहाथ हो गये.

उस परित्यक्ता स्त्री से, खुल्लमखुल्ला मिलने लगे. अम्मा बाऊजी, जानकर भी चुप रहते. घरखर्च बेटा जो देता था. बाऊजी की पेंशन से गुजारा कहाँ होता! “अरे बिटिया, तनी घर को फिटफाट कर लो. मुनुआ आंय वाले हैं” यह तो बाऊजी की आवाज़ थी. वह चौंकी. मस्तिष्क की शिराओं में, कुछ जम सा गया. भैय्या यानी मुनुआ, यहाँ छः- आठ महीने बाद ही दरशन देते हैं; किन्तु जब तक वे रहते हैं, एक आतंक सा हावी रहता है. पता नहीं किसको, किस बात पर लताड़ दें. उन आँखों का, कठोर स्थायी भाव- उसे कोंचता...दहलाता हुआ...आशंका भरे प्रश्न सहेजे!!

वह उनके सामने पड़ने से बचती है. भैय्या की नपी तुली बातों से, उनका अपना बेटा, असहज हो जाता है. वह तो बुआ से लिपटा रहता है. बुआ मां जैसी ही तो है... बिन बोले, उसके दिल की बात, उसकी जरूरतों को समझ लेती है. भाभी मां की ममता का कर्ज, चुका रही है मल्लिका. उनका एक और कर्ज है; जिसके तहत वह मुजरिम है पर कह नहीं सकती- एक एहसासे- जुर्म बरसों से उसे खाए जा रहा है... उलझनों में उसे जकड़ रहा है...दीमक की तरह, रूह पर काबिज़ है!!

बेचैनी में सदैव, वह सुषमा मौसी को फोन करती है. उनकी वाणी में, मानों अमृत है और बातों में आश्वासन. मल्लिका ने यंत्रवत, उनका नंबर डायल किया. रिसीवर उठाते ही वे चहक उठीं, “मल्ली! अभी बस तुम्हें फोन मिलाने वाली थी, गुड न्यूज़ फॉर यू...गेस व्हाट?!” “क्या मौसी?” “अरी जर्नलिज्म के कोर्स में, तेरा सिलेक्शन हो गया है!! अम्मा से कह, मुंबई भेजने की तैयारी करें. स्कालरशिप का इंतज़ाम भी कर लिया है...तू बस मुंह मीठा करा!!!” मौसी को भरे कंठ से धन्यवाद देने के बाद, मल्लिका सोच में पड़ गयी. कितना कुछ किया उन्होंने, उसके लिए. इस कोर्स के लिए फॉर्म भरवाया. अपनी संस्था से, उसकी आर्थिक सहायता का प्रबंध किया. अब निविड़ अन्धकार से, जूझना न होगा, जहालत में फंसी औरतों को देख, कुढ़ना न होगा और भैय्या को लेकर, मन में बैठा डर भी...!

वह निर्भय होकर, उन सुधियों को जी सकती थी; जिनके बारे में सोचने तक से, दहशत होती थी. एक बार वह फिर वह, फ़्लैशबैक में चली गयी. इस बार उसे डरने की जरूरत न थी. वह चौदह वर्ष की किशोरी; उस रेलयात्रा से, बहुत उत्साहित थी. पर्दे लगे हुए, ए. सी. वाले कम्पार्टमेंट...हॉकरों का आना जाना...भैय्या का भाभी के लिए जूस खरीदना और उन्हें पिलाते रहना. खिड़की से झलकते, बाहर के दृश्य...खेत खलिहान, पेड़ –पौधे, नदियाँ, हरे भरे टीले, बांस के झुरमुट, पंछियों के झुण्ड...वह मुग्ध सी देखती रही. जब भाभी को वाशरूम ले जाना होता, तभी भैया उसे पुकारते. बगल वाले कम्पार्टमेंट में अम्मा, बाऊजी और गोपी थे. रत्नागिरि स्टेशन आया तो भैय्या ने, खड़े खड़े, उन सबको विदा कर दिया. बीमार भाभी के कारण, अपनी जगह से हिल भी कहाँ सकते थे!

वह लोग उतरने को थे कि टी. सी. ने बताया- वहां से गाँव के लिए, सवारी नहीं मिलेगी; सो अगले स्टेशन पर उतरना होगा. वे वापस चढ़ गये. तब तक ट्रेन अँधेरी सुरंग में जा चुकी थी. मल्लिका इंतज़ार करती रही कि ट्रेन सुरंग से बाहर निकले और वह अपने कम्पार्टमेंट वापस जाए. अँधेरे में तो आगे बढ़ने का रास्ता तक नहीं मिल रहा था. जैसे ही थोड़ी रौशनी हुई, वह कुछ दूर तक आगे बढ़ी लेकिन सुरंगों का सिलसिला फिर शुरू. किसी तरह गिरते- पड़ते, अपनी जगह पहुंची. उसने पर्दे को हल्का सा खिसकाया. ट्रेन उसी समय, सुरंग से निकली. पल भर के उजाले में, उसकी आँखों ने बहुत कुछ देख लिया!! भैय्या के हाथ भाभी की गर्दन पर और भाभी के गले से आती ‘गों- गों’ की आवाज़!!!

मल्लिका वहीं पर जम गयी...देह एकदम अकड़ सी गयी थी. भैय्या के चीखने चिल्लाने के बाद ही, वह भीतर पंहुची. उसने जताना चाहा कि वह, उनकी ‘हरकत’ से अनजान थी. पर क्या पता, भैय्या जान गये हों कि उसने सब देख लिया था. ए. सी. के बावजूद, उसके माथे पर पसीना था और चेहरे पर घबराहट. आज तक ये एहसास उसे कंपा देता है...लेकिन अब और नहीं!! वह कुछ बन जायेगी तो भैय्या को उनके अपराध के लिए, कटघरे में जरूर खड़ा करेगी... अंधी खोहों के परे, जरूर जा सकेगी!!!

--

clip_image002

नाम- विनीता शुक्ला

शिक्षा – बी. एस. सी., बी. एड. (कानपुर विश्वविद्यालय)

परास्नातक- फल संरक्षण एवं तकनीक (एफ. पी. सी. आई., लखनऊ)

अतिरिक्त योग्यता- कम्प्यूटर एप्लीकेशंस में ऑनर्स डिप्लोमा (एन. आई. आई. टी., लखनऊ)

कार्य अनुभव-

१- सेंट फ्रांसिस, अनपरा में कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य

२- आकाशवाणी कोच्चि के लिए अनुवाद कार्य

सम्प्रति- सदस्य, अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था, लखनऊ

सम्पर्क- फ़ोन नं. – (०४८४) २४२६०२४

मोबाइल- ०९४४७८७०९२०

प्रकाशित रचनाएँ-

१- प्रथम कथा संग्रह’ अपने अपने मरुस्थल’( सन २००६) के लिए उ. प्र. हिंदी संस्थान के ‘पं. बद्री प्रसाद शिंगलू पुरस्कार’ से सम्मानित

२- ‘अभिव्यक्ति’ के कथा संकलनों ‘पत्तियों से छनती धूप’(सन २००४), ‘परिक्रमा’(सन २००७), ‘आरोह’(सन २००९) तथा प्रवाह(सन २०१०) में कहानियां प्रकाशित

३- लखनऊ से निकलने वाली पत्रिकाओं ‘नामान्तर’(अप्रैल २००५) एवं राष्ट्रधर्म (फरवरी २००७)में कहानियां प्रकाशित

४- झांसी से निकलने वाले दैनिक पत्र ‘राष्ट्रबोध’ के ‘०७-०१-०५’ तथा ‘०४-०४-०५’ के अंकों में रचनाएँ प्रकाशित

५- द्वितीय कथा संकलन ‘नागफनी’ का, मार्च २०१० में, लोकार्पण सम्पन्न

६- ‘वनिता’ के अप्रैल २०१० के अंक में कहानी प्रकाशित

७- ‘मेरी सहेली’ के एक्स्ट्रा इशू, २०१० में कहानी ‘पराभव’ प्रकाशित

८- कहानी ‘पराभव’ के लिए सांत्वना पुरस्कार

९- २६-१-‘१२ को हिंदी साहित्य सम्मेलन ‘तेजपुर’ में लोकार्पित पत्रिका ‘उषा ज्योति’ में कविता प्रकाशित

१०- ‘ओपन बुक्स ऑनलाइन’ में सितम्बर माह(२०१२) की, सर्वश्रेष्ठ रचना का पुरस्कार

११- ‘मेरी सहेली’ पत्रिका के अक्टूबर(२०१२) एवं जनवरी (२०१३) अंकों में कहानियाँ प्रकाशित

१२- ‘दैनिक जागरण’ में, नियमित (जागरण जंक्शन वाले) ब्लॉगों का प्रकाशन

१३- ‘गृहशोभा’ के जून प्रथम(२०१३) अंक में कहानी प्रकाशित

१४- ‘वनिता’ के जून(२०१३) और दिसम्बर (२०१३) अंकों में कहानियाँ प्रकाशित

१५- बोधि- प्रकाशन की ‘उत्पल’ पत्रिका के नवम्बर(२०१३) अंक में कविता प्रकाशित

१६- -जागरण सखी’ के मार्च(२०१४) के अंक में कहानी प्रकाशित

१८-तेजपुर की वार्षिक पत्रिका ‘उषा ज्योति’(२०१४) में हास्य रचना प्रकाशित

१९- ‘गृहशोभा’ के दिसम्बर ‘प्रथम’ अंक (२०१४)में कहानी प्रकाशित

२०- ‘वनिता’, ‘वुमेन ऑन द टॉप’ तथा ‘सुजाता’ पत्रिकाओं के जनवरी (२०१५) अंकों में कहानियाँ प्रकाशित

२१- ‘जागरण सखी’ के फरवरी (२०१५) अंक में कहानी प्रकाशित

२२- ‘अटूट बंधन’ मासिक पत्रिका ( लखनऊ) के मई (२०१५) अंक में कहानी प्रकाशित

२३- ‘वनिता’ के अक्टूबर(२०१५) अंक में कहानी प्रकाशित

पत्राचार का पता-

टाइप ५, फ्लैट नं. -९, एन. पी. ओ. एल. क्वार्टस, ‘सागर रेजिडेंशियल काम्प्लेक्स, पोस्ट- त्रिक्काकरा, कोच्चि, केरल- ६८२०२१

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: विनीता शुक्ला की कहानी - अंधी खोहों के परे
विनीता शुक्ला की कहानी - अंधी खोहों के परे
http://lh3.googleusercontent.com/-T70BnvNmBK4/Vmf65e-AvsI/AAAAAAAApFw/C-uW98icIu4/image%25255B3%25255D.png?imgmax=800
http://lh3.googleusercontent.com/-T70BnvNmBK4/Vmf65e-AvsI/AAAAAAAApFw/C-uW98icIu4/s72-c/image%25255B3%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/12/blog-post_19.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/12/blog-post_19.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content