प्रेमचन्द और तकष़ी के उपन्यासों में समानताएँ / लंबोधरन पिल्लै. बी

SHARE:

लंबोधरन पिल्लै. बी कोयमबत्तूर कर्पगम विश्वविद्यालय में डॉ.के.पी.पद्मावती अम्मा ...

लंबोधरन पिल्लै. बी
कोयमबत्तूर कर्पगम विश्वविद्यालय में
डॉ.के.पी.पद्मावती अम्मा के मार्गदर्शन में
पी.एच.डी केलिए शोधरत

प्रेमचन्द हिन्दी भाषा में लिखकर विश्व प्रसिद्धि पाया उपन्यासकार है । तकष़ी शिवशंकर पिल्लै मलयालम माध्यम में लिखकर ख्याति प्राप्त उपन्यासकार है । विभिन्न काल में, उत्तर और दक्षिण में जन्मे दोनों उपन्यासकारों में अनेक समानताएँ प्रत्यक्ष रूप में देखने को मिलते है ।

व्यक्तित्व को परिभाषित किया जायें तो कहा जा सकता है कि - तीनों गुणों (सत्व, रज, तम) में से जो गुण सबसे अधिक सक्रिय होता है, वह व्यक्तित्व का निर्माण करता है । समाज में व्यक्ति की गति - विधियाँ चलती रहती है । वह मित्रों से मिलता है, सगे - संबंधियों के पास जाता है, अपने अधीनस्थ कर्मचारियों और अपने अधिकारियों से जुड़ा होता है । कहने का तात्पर्य यह है कि समाज में उसकी सक्रियता बनी रहती है । उसके द्वारा किया गया व्यवहार उसके व्यक्तित्व के संबंध में बताता है कि अमुख व्यक्ति कैसा है ? महान व्यक्ति समाज के आदर्श होते है । वे अपने व्यवहार से समाज को कुछ देते रहते हैं । ये महान व्यक्ति डाक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, अध्यापक, मूर्तिकार, साहित्यकार कोई भी हो सकते हैं । संक्षेप में कहें तो व्यक्तित्व व्यक्ति विशेष का अपना दृष्टिकोण ही होता है ।

‘प्रेमचन्द’ शब्द भारतीय जन मानस में चिर प्रतिष्ठित है । उसमें एक मजबूत सैनिक की ताकत है, साहसी की आवाज़ भी । उन्होंने समाज में प्रचलित अन्यायों और अत्याचारों के विरुद्ध अपनी कलम से संघर्ष चलाया । उनकी तूलिका तलवार से भी ज्यादा पैनी और तेज़ थी । इसलिए उन्हें ‘कलम के सिपाही’ कहते है । अंग्रेज़ों ने उनकी पहली रचना ‘सोजेवतन’ को जलाकर उनके जीवन को हिलाना चाहा । किन्तु वे न हिले न डुले, कलम को बंदूक बनाकर उनकी छाती की ओर अक्षर की गोली चलाकर लाखों - करोड़ों निस्सहायों-अस्सहायों की रक्षा की ।

प्रेमचन्द भारतीय समाज के तरह - तरह के सवालों का जवाब है । जो भी बुराई हो, वे समरसता के बिना अनवरत लड़ते रहे । महत्वपूर्ण कार्य करने वाले को महान कहते है । प्रेमचन्द महत्वपूर्ण कार्य कर महान बन गये है । उस महान का जीवन एक इतिहास है । विद्यालय से ले कर विश्वविद्यालय तक उनकी एक न एक कृति आज भी पढ़ने को मिलती है। वे अपनी अनुपम कृतियों के द्वारा देशवासियों के दिल जीतकर सम्राट बन गये है । उन पर दृष्टि डालना हमारे इतिहास पर दृष्टि डालने के बराबर है ।

प्रेमचन्द की तरह 'तकष़ी' ने भी मलयालम भाषा में लिखकर विश्व साहित्य में प्रतिष्ठा पायी है । प्रेमचन्द की तरह तकष़ी भी गाँव में जन्मे थे । प्रेमचन्द की तरह तकष़ी भी लोगों के बीच अति साधारण मनुष्य के रूप में जीवन बिताकर, साहित्य में अमर स्थान पा कर, शाश्वत स्मृति छोड़कर चले गये विश्व विख्यात उपन्यासकार है ।

मलयालम साहित्य में अपना स्थान निर्धारित करते हुए 1970 में उन्होंने कहा :- “ऐसा एक ज़माना था, जब कि केरल जनता और उनका साहित्य पूर्ण रूप से अवरुद्ध होकर खड़ा था । ऐसे समाज में साहित्य को रास्ता दिखाकर आगे ले जाने के लिए कुछ लोग आये ।” उन लोगों में तकष़ी का स्थान सर्वोपरि है । उन्नीसवीं शती में हिन्दी साहित्य की श्री वृद्धि के लिए प्रेमचन्द ने जो काम किया, वही काम मलयालम साहित्य में तकष़ी ने किया।

तकष़ी मलयालम के संक्रांति काल के साहित्यकार है । उस समय समाज साहूकारी, सामंतवादी अव्यवस्था के चक्कर से धीरे - धीरे मुक्ति पाकर जमींदारी व्यवस्था के नीचे दबा हुआ था । कुत्ते - बिल्ली को पालना तथा छूना पुण्य और दलित के पास खड़ा होना भी पाप समझने वाले लोगों के बीच से उठ कर तकष़ी पद दलित लोगों के पक्षपाती बन कर रहे । वह सैकड़ों वर्षों से जानवर से भी तुच्छ जीवन बिताने वाले लोगों के इतिहासकार थे । प्रेमचन्द को दीन - दुखियों के वकील कहते है । तकष़ी ने भी प्रेमचन्द के समान दुखियों और पीड़ितों को अपनी कृतियों का विषय बनाया । उनके समान पद - दलितों को साहित्य में स्थान देने वाला कोई भी साहित्यकार उस समय केरल में नहीं थे ।

हिन्दी भाषी उपन्यास सम्राट स्वर्गीय प्रेमचन्द का जितना आदर - सम्मान करते हैं, मलयालम भाषा - भाषी तकष़ी को उतना आदर - सम्मान देते हैं । वे उन्हें अपने पथ प्रदर्शक समझते है । तकष़ी मलयालम के मौलिक प्रतिभा संपन्न लेखक है । प्रेमचन्द ने उत्तर भारत के, विशेषकर अवध के किसानों - पद दलितों का चित्रण किया है तो तकष़ी ने ‘आलप्पुष़ा’ को पृष्ठभूमि बनाया है । कुट्टनाडु के किसान, मज़दूर एवं साधारण लोगों के चित्रण ने उन्हें विश्व साहित्यकार के अनुपम पद पर बिठाया था । तकष़ी ‘कुट्टनाडु’ के इतिहासकार है ।

तकष़ी का वास्तविक नाम शिवशंकर पिल्लै है । ‘तकष़ी’ उनके जन्म स्थान का नाम है। इस नाम से वे आगे जाने जाते हैं । उनका जन्म 17 अप्रैल 1912 में केरल के ‘आलप्पुष़ा’ जिले के तकष़ी ‘पटहारम् मुरी’ गाँव में हुआ था । उनके पिता ‘कथकली’ (केरल की एक प्रसिद्ध नृत्य कला) अभिनेता, धर्मपरायण व्यक्ति पोय्प्पल्लिक्कलत्तिल शंकर कुरुप और माता ‘पटहारम् मुरियिल पार्वती अम्मा’ थी ।

प्रेमचन्द के समान बचपन में तकष़ी ने भी आर्थिक संकट झेले थे । परिवार में ‘कथकली’ का ऊँचा स्थान था । पिता शंकर कुरुप का कथकली प्रेम पैतृक रूप में तकष़ी को भी मिला । वे बालक शिवशंकर को पौराणिक कथाएँ सुनाया करते थे । बच्चे के मन में राष्ट्र भक्ति, ब्राह्मण भक्ति, गुरु भक्ति, ईश्वर भक्ति, आचार - व्यवहार की मर्यादाएँ आदि सद्गुण बढ़ाने में पिताजी सदा ध्यान रखते थे । वे प्रेमचन्द के समान बचपन से ही साहित्य - प्रेमी थे ।

‘वड़यार’ (स्थान विशेष) के स्कूल में पढ़ते समय तकष़ी ने अपनी प्रथम कहानी रचकर भी उसे प्रकाशित नहीं किया । प्रेमचन्द ने अपने विद्यार्थी काल में ही गोर्की, चेखव, मोपसांग आदि साहित्यकारों की कृतियाँ पढ़ी थी । तकष़ी भी स्कूल शिक्षा काल में ही इन साहित्यकारों की कृतियों से परिचित थे ।

तकष़ी की प्राथमिक शिक्षा गाँव के सरकारी विद्यालय में हुई । उन दिनों में गाँव में अस्पृश्यता जोरों पर थी । इसलिए उन्हें ‘करुवाट्टा हाईस्कूल’ में भरती करवा दिया, जहाँ सवर्ण बच्चे पढ़ते थे । प्रेमचन्द के समान तकष़ी भी पाँच मील दूर पैदल चलकर ही स्कूल जाते थे । प्रेमचन्द और तकष़ी में एक और समानता थी कि दोनों गणित में पीछे थे । तकष़ी अपनी आत्म कथा में लिखते है :- “उस ज़माने में लड़कों को कुर्ता पहनने का रिवाज न था । जब अंपलप्पुष़ा स्कूल में पढ़ने के लिए जाने लगा, तब मैंने पहले पहल कुर्ता पहन लिया था। साबुन, गाँव की एक अपूर्व एवं विशिष्ट वस्तु थी, जिसका उपयोग धनवान ही करते थे ।”

कहते है कि प्रेमचन्द दिखावा नहीं करते थे । तकष़ी भी आडंबर प्रिय नहीं थे । उन्होंने प्रेमचन्द की तरह सीधा - सादा जीवन बिताया । वे साधारण धोती मात्र पहन कर अपने गाँव भर घूमते थे । दूर कहीं जाते तो कुर्ता पहनते थे , प्रेमचन्द भी ऐसे थे । निर्धन हो या धनी, प्रेमचन्द और तकष़ी को समान लगते थे । कहा जाता है कि प्रेमचन्द और तकष़ी सबेरे और सायंकाल खूब पान खाकर गाँव भर घूमते थे । दोनों की हँसी में भी समानताएँ थी । पान मुंह में भरकर प्रेमचन्द की तरह तकष़ी भी ठहाका मारकर हँसते थे । दोनों प्रसिद्धि और संपत्ति के पीछे दौड़ने वाले नहीं थे । कहते है कि गाँव में प्रेमचन्द के कम मित्र थे, किन्तु तकष़ी के लिए गाँव के करीब सभी लोग सगे संबंधी जैसे थे । तकष़ी ने अपनी आत्म कथा में लिखा है :-“सच्ची आत्म कथा समय की निष्ठा करने वाले ही लिख सकते हैं । लिखने वाले को सत्यवादी भी होना चाहिए । मैं यह नहीं मानता हूँ कि आत्म कथा केवल उच्च श्रेणी के व्यक्तियों में ही सीमित हो । एक साधारण किसान की आत्म कथा भी लाभदायक बन जायेगी ।” यहाँ उनकी आडम्बर हीनता और निष्कलंकत्व व्यक्त होते है ।

प्रेमचन्द आधुनिक भारतीय साहित्य के ध्रुव तारा है तो तकष़ी अब तक के मलयालम साहित्य के गुंबज है । दोनों सचमुच बहु आयामी कलाकार है । प्रेमचन्द के पात्र और उनके संदेश जहाँ जहाँ व्याप्त है वहाँ वहाँ रचयिता का यश फैले है । उनके कालातीत उपन्यासों की संख्या ग्यारह है, इसके अलावा 300 से भी अधिक कहानियाँ और अनेक निबंध आदि उन्होंने लिखे हैं । तकष़ी ने अपनी लंबी जीवन - यात्रा के बीच तीस से अधिक छोटे - बड़े उपन्यास लिखे हैं । उनके मुख्य उपन्यासों का, जिनमें साम्य अधिक दिखायी पडता हैं, अध्ययन विषय बनाया है । दोनों लेखक मुख्य रूप से उपन्यासकार के रूप में ही जाने जाते हैं । दोनों के मुख्य उपन्यासों का अध्ययन मैं अपनी लक्ष्य - प्राप्ति का अनिवार्य अंग समझता हूँ ।

जिस प्रकार प्रेमचन्द हिन्दी के शीर्षस्थ उपन्यासकार है उसी प्रकार तकष़ी मलयालम के शीर्षस्थ उपन्यासकार है । उनके मुख्य उपन्यासों के सर्वेक्षण मेरी लक्ष्य - पूर्ति का आवश्यक अंग है । मलयालम के आलोचक डॉ. पी. वेणुगोपालन के मत में :- “तकष़ी के साहित्य में कहने वाले और सुनने वाले को एक रस्सी में बाँधने की शक्ति संपन्नता है । उन्हें कथा अपना जीवन ही था ।” तकष़ी के उपन्यास यह साबित करता है कि वे ललित - कोमल, बोल-चाल की भाषा एवं शैली के धनी हैं । प्रेमचन्द की कृतियों में तत्कालीन समाज का इतिहास दृश्यमान है तो तकष़ी ने अपनी कृतियों में तत्कालीन समाज का जीवंत चित्रण प्रस्तुत किया है ।

निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि प्रेमचन्द की तरह तकष़ी ने भी एक दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे हैं । प्रेमचन्द के उपन्यासों में दो प्रकार की प्रणालियाँ देख सकते हैं । पहली एक मुख्य कथा को लेकर चलने वाली और दूसरी एक से अधिक कथाओं के साथ चलने वाली है । प्रेमचन्द के उपर्युक्त सारे उपन्यासों में ‘प्रेमा’, ‘प्रतिज्ञा’, ‘गबन’, ‘सेवासदन’, ‘निर्मला’, ‘मंगल सूत्र’ आदि एक मुख्य कथा को ले कर रचित है । ‘रंगभूमि’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘कर्मभूमि’, ‘कायाकल्प’ एवं ‘गोदान’ में एक से अधिक कथानक की चर्चा होती है । ये कृतियाँ किसानों के जीवन - विषयों पर आधारित उपन्यास है । ऐसे उपन्यासों में स्वाभाविक रूप से वर्ग संघर्ष का चित्रण आता है । इसलिए दरिद्र - धनिक या किसान - जमींदार का चित्रीकरण अनिवार्य बन पड़ता है । अथवा ऐसे संदर्भों में दुहरी कथा को एक साथ चलाने की नौबत पड़ती है । उन्होंने किसान संबंधी उपन्यासों में संघर्ष का वर्णन कितने ज़ोर से करता है उतना तीष्ण चित्रण पारिवारिक उपन्यासों में नहीं होता है । तकष़ी ने भी किसानों - मज़दूरों का वर्णन बडे ऊर्ज के साथ किया है ।

प्रेमचन्द और तकष़ी के आदर्श एवं दृष्टिकोण में जो समानता पायी जाती है, वही समानता दोनों के कथापात्रों में भी दिखायी पड़ती है । ‘प्रेमाश्रम’ का मुख्य पात्र प्रेमशंकर और तकष़ी के ‘पेरिल्ला कथा’ (नामहीन कथा) उपन्यास के शशी साम्यवादी है । जमींदारों के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाला प्रेमशंकर और शशी में नवचेतना का ऊर्ज भरा हुआ है ।

प्रेमचन्द और तकष़ी ने अपने - अपने उपन्यासों में स्त्रियों को महत्वपूर्ण स्थान दिया है । दोनों की दृष्टि में अधिकांश स्त्रियाँ विविध कारणों से दुःखी एवं पीड़ित हैं । दोनों ने विरल स्त्री पात्रों को छोड़ कर बाकी सभी के वर्णन में सहानुभूति दर्शायी है । वैसे प्रेमचन्द और तकष़ी के अधिकांश स्त्री पात्र परिवर्तनवादी है । तकष़ी ने अपने कुछ स्त्री पात्रों में साम्यवाद की शक्ति दर्शायी है ।

प्रेमचन्द के समान तकष़ी ने भी स्त्री को लड़की, युवती, प्रेमिका, वेश्या, माता, सेविका आदि विभिन्न रूपों में चित्रित किया है । दोनों के स्त्री पात्रों में कर्तव्य निभाने वालों के साथ कर्तव्य भूलने वाले भी होते है । दोनों उपन्यासकारों ने स्त्री का मातृत्व भाव साकार करने का प्रयास किया है । प्रेमचन्द के ‘वरदान’ की सुवामा, ‘रंगभूमि’ की रानी जाह्नवी एवं मिसिस जॉनसेवक, ‘गोदान’ की धनिया तथा गोविंदी, ‘निर्मला’ की कल्याणी, तकष़ी के ‘चेम्मीन’ की चक्की, ‘रंटिटंङष़ी’ की चिरुता, ‘परमार्थङल’ (सच) की जानकी अम्मा आदि स्त्रियाँ मातृत्व भाव की प्रतिमूर्तियाँ है । ‘गोदान’ की धनिया मातृत्व की सच्ची प्रतिमूर्ति ही है । वह सोना एवं रूपा को अमित प्यार करती है । वैसे मातृ स्नेह ‘चेम्मीन’ की चक्की अपनी संतान करुत्तम्मा तथा पंचमी से करती है । तकष़ी ने ‘चेम्मीन’ (झींगा मछली) में करुत्तम्मा, ‘परमार्थंङल’ (सच) में विजयम्मा, ‘एणिप्पटिकल’ (सीढियाँ) में तंक्कम्मा, ‘औसेप्पिन्टे मक्कल’ (औसेप्प् के बेटे) में क्लारा आदियों में सच्ची प्रेमिका का रूप दर्शाया है । प्रेमचन्द ने ‘रंगभूमि’ की सोफिया, ‘गोदान’ की मालती, ‘कायाकल्प’ की मनोरमा, ‘कर्मभूमि’ की सकीना आदि अनेक पात्रों द्वारा प्रेमिका का भव्य चित्र खींचा है ।

प्रेमचन्द उत्तर भारत में जन्म ले कर, वहाँ के वातावरण में पल कर, वहाँ के लोगों के बीच रह कर साहित्य सर्जना करते थे । तकष़ी दक्षिण भारत में जन्म ले कर, इधर की परिस्थिति में रह कर, यहाँ के लोगों के जीवन से मिल - जुल कर रचना करते थे । दोनों के जीवन काल में भी अंतर है । कहने का तात्पर्य है कि दोनों की रचनाओं में समानताएँ ही नहीं, असमानताएँ भी पायी जाती है । सच कहें तो दोनों में विभिन्नता कम और एकता ज्यादा है । इस प्रकार हम देख सकते है कि जिस प्रकार प्रेमचन्द हिन्दी के शीर्षस्थ उपन्यासकार है, उसी प्रकार तकष़ी भी मलयालम के शीर्षस्थ उपन्यासकार है ।

समग्रत: कह सकते हैं कि प्रेमचन्द और तकष़ी दोनों उपन्यासकारों ने अपने - अपने उपन्यासों में तत्कालीन समाज का भरे - पूरे चित्र उतार दिये हैं ।

Written By: LEMBODHARAN PILLAI. B, Research scholar, under the guidance of Dr.K.P Padmavathi Amma, Karpagam University, Coimbatore.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्रेमचन्द और तकष़ी के उपन्यासों में समानताएँ / लंबोधरन पिल्लै. बी
प्रेमचन्द और तकष़ी के उपन्यासों में समानताएँ / लंबोधरन पिल्लै. बी
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/02/blog-post_61.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/02/blog-post_61.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content