रचना और रचनाकार (९) / नागार्जुन के काव्य में तंज और तेवर / डॉ. सुरेन्द्र वर्मा

SHARE:

नागार्जुन के काव्य में कई धाराएं समाहित हैं. लेकिन दो धाराएँ स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती हैं. एक में वे कविताएँ हैँ जिनके भाव लोक में कोमल...

नागार्जुन के काव्य में कई धाराएं समाहित हैं. लेकिन दो धाराएँ स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती हैं. एक में वे कविताएँ हैँ जिनके भाव लोक में कोमलता और मधुरता है. ये या तो मानवीय संबंद्धों की अनुभूतियों की कविताएँ हैं या फिर प्रकृति के विभिन्न रूपों के सौंदर्य की अनुभूतियों का चित्रण करने वाली कविताएँ हैं. नागार्जुन की कविताओं का यह वर्ग बहुत संमृद्ध है. लेकिन उनकी कविताओं की एक अन्य धारा राजनैतिक और सामाजिक कविताओं की है जिनके भाव-लोक में आक्रोश, आलोचना, व्यंग्य, कटाक्ष, तंज और तेवर है. वस्तुतः इस वर्ग की कविताओं में ही उन्हें जनकवि और एक लोकप्रिय कवि के रूप में प्रतिष्ठित किया है.

नागार्जुन के लिए कविता मात्र एक साहित्यिक कर्म ही नहीं है, यह एक व्यापक सामाजिक कार्य है. उनके जीवन और रचना कर्म में कहीं कोई फाँक नहीं दिखाई देती. जैसे अन्य सभी सामाजिक कार्यों में व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारी निभाता है उसी तरह नागार्जुन अपने कविता-कर्म में अपने उत्तरदायित्व को न केवल समझते हैं बल्कि उसे उठाते भी हैं. इसीलिए उनकी कविता भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति में विद्यमान विकृतियों और विरोधाभासों की न केवल पहचान कर उन्हें वाणी प्रदान करती है बल्कि उनकी तीखी आलोचना भी करती है. इतना ही नहीं, वह अमानवीय होती जा रही सामाजिक-राजनैतिक स्थितियों के विरुद्ध संघर्ष के लिए एक हथियार के रूप में काम करती हैं. नागार्जुन ने अपने कविता-कर्म को अमानुषिक समाज को बदलने के लिए एक प्रभावशाली शस्त्र के रूप में इस्तेमाल किया है. उनकी कविताएँ वर्तमान असहनीय स्थितियों पर टिप्पणी करती हैं, विसंगतियों पर सवाल उठातीं हैं, व्यंग्य करती हैं, कचोटती हैं. विद्रूपताओं पर हँसती हैं. ग़ैरज़िम्मेदार लोगों को चिढाती हैं. रूढियों को हास्यास्पद बनाती हैं और इन सब बातों के बावजूद वे संवेदनाओं की अभिव्यक्ति और मानवी आकांक्षाओं का प्रतिवेदन भी हैं.

यदि हम यह कहें कि हिंदी में भारतेंदु युग से आज तक का साहित्य व्यंग्य की गिरफ्त में आ गया है तो कदाचित यह अतिशयोक्ति नहीं होगी. हिंदी साहित्य का आज प्रधान स्वर तंज और तेवर, व्यंग्य, विक्षोभ और व्याक्रोश का है. गत शताब्दी का संपूर्ण भारतीय परिदृश्य व्यंग्य के विकास के लिए काफी उर्वरक रहा. भारतेंदु युग में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यदि व्यंग्य का निशाना भारत में विदेशी साम्राज्यवाद था जो कि “भारत दुर्दशा” का कारण बना तो स्वातंत्र्योत्तर काल में हमारी आर्थिक, सामाजिक और राज- नैतिक व्यवस्था कुछ ऐसी रही कि जिसने जनता के दुःख को दूर करने की बजाय उसे और भी संकट में डाल दिया. हमदर्दी और इंसानियत के पुतले बने नेताओं का आज सारा पाखंड आमआदमी को भौचक कर देता है. किसी भी संवेदनशील साहित्यकार को ये सारी स्थितियाँ परेशान किए बिना नहीं रहतीं. उसके भीतर बैठा इंसान आज के परिदृश्य से चकित है और विक्षोभ से भर उठता है. उसके साहित्य-कर्म में कचोट और कटाक्ष का स्वर तीखा और गहरा हो जाता है.

अपने समय की ये स्थितियां नागार्जुन को भी परेशान करती हैं. वे परिवेश की विकृतियों से, अधिसंख्यक नागरिकों की आर्थिक दरिद्रता से, व्यक्तियों से – विशेषकर शासकों और नेताओं के घिनौने और टुच्चे स्वार्थ से – व्यथित और क्रोधित हो उठते हैं और इसे अपनी कविताओं में वाणी देते हैं. उनकी व्यंग्य कविताएँ सुशिक्षित और संवेदनशील मस्तिष्क की सोची-समझी रचनाएँ हैं जो हँसाती नहीं बल्कि ललकारती हैं, यथास्थिति को बदलने के लिए कुरेदती हैं और प्रहार करने की मुद्रा अपनाती हैं. –"लाएँ मीठे वचन कहां से / फींका है मन / चिंतन खारे."

नागार्जुन की काव्यानुभूति जीवन और जगत के प्रत्यक्ष अनुभव से जुड़ी हुई है. वह मनुष्य के जीवन से संपृक्त है. लेकिन वह कौन सा मनुष्य है? ज़ाहिर है, वह और कोई नहीं, आम आदमी ही है जो आज भी व्यवस्था की चक्की में पिसता है, अकाल और दुर्भिक्ष में तो भूखा मरता ही है, सामान्य दिनों में भी भूखा रहने के लिए अभिशप्त है क्योंकि वह अन्याय और उत्पीड़न का शिकार है. नागार्जुन प्रतिबद्ध और आबद्ध हैं –

जी हां, प्रतिबद्ध हूँ –

बहुजन समाज की अनुपम प्रगति के निमित्त -

संकुचित "स्व" की आपाधापी के निषेधार्थ

+ + +

आबद्ध हूँ, जी हां, आबद्ध हूँ –

स्वजन परिजन की धार की डोर में

प्रियजन के पलकों की कोर में

आबद्ध, जी हां, शतधा आबद्ध हूँ

यही कारण है कि नागार्जुन क्रत्रिमता, आडम्बर और प्रदर्शन से कोसों दूर, पीड़ित, वंचित और अंत्यजों के साथ दृढता से खड़े दिखाई देते हैं. वे कहते हैं

जनता मुझसे पूछ रही है / क्या बतलाऊं

जन-कवि हूँ, मैं साफ कहूँगा / क्यों हकलाऊं

हर कवि को तो ऐसा नहीं लगता. लेकिन नागार्जुन को तो अवश्य यह लगता है कि जनता उनसे सवाल कर रही है, पूछ रही है कि आखिर समाज में यह अन्याय, यह विषमता क्यों है? उन्हें लगता है कि जनता उनकी ओर मुक़ातिब है. ऐसे में नागार्जुन

समाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व समझते हैं और उसे निबाहना चाहते हैं. जनता को सिर्फ ख़ुश करने के लिए, उससे लगी-लिपटी बात तो कही नहीं जा सकती. उसे तो साफ बात बतानी होगी, जनकवि होने के नाते जो भी कहना है स्पष्ट शब्दों में ही कहना होगा. नागार्जुन के मन में कोई द्वंव्द या द्विध नहीं है. लाभ-हानि का कोई विचार नहीं है. फिर भला, "क्यों हकलाऊ?" हकलाने से अर्थ यहां अपने किसी स्वार्थ के चलते साफ-साफ न कहने की मानसिकता से है. लेकिन जब इस तरह की कोई ऊहापोह या असमंजस की स्थिति उनके पास है ही नहीं तो स्पष्ट ही उनमें वह साहस सहज आ जाता है कि वे अपनी बात डंके की चोट पर कह सकें. एक जनकवि से जब जनता सवाल करती है तो किंतु-परंतु, अगर-मगर से काम चलने वाला नहीं है. नागार्जुन असमंजस की भाषा नहीं बोलते. उनकी कविताएँ सीधे-सीधे कटाक्ष करती हैं. सफेद कॉलर वालों के दंभ और दिखावे पर वे बड़े इत्मीनान से मारक चोट करते हैं. नागार्जुन को हर प्रकार की विषमता, पाखंड और विद्रूप पर सहज ही क्रोध आता है-

अंदर-अंदर विकट कसाई बाहर खद्दरधारी हैं

ज़मींदार हैं, साहूकार हैं, बनियाँ हैं, व्यापारी हैं

......

झूठी जयजयकार मची है सच कह दूं भय्या मैं तो

तंग आ गया सुनते सुनते वतन-फ़रोशी का कीर्तन

लंदन, वाशिंगटन जा रहे उड़ उड़कर सब नेतागण

जीवन की सच्चाई को पूरी तल्खी के साथ उतारते हुए नागार्जुन लिखते हैं –

बतलाऊँ कैसे लगते हैं / दरिद्र देश के धनिक -

कोढी कूबड़, तन पर मणिमय आभूषण

विषमता पर इतनी तीखी और हिक़ारत भरी टिप्पणी बहुत कम देखने को मिलती है. फटे पुराने क्म्बल पर रेशमी थेगड़े इसके सामने फींके पड़ जाते हैं.

नागार्जुन की काव्यानुभूति जीवन और समाज के प्रत्यक्ष अनुभवों से जुड़ी हुई है. वे सीधे उस आम आदनी से जुड़ते हैं जिसके लिए जीना दुष्वार हो गया है. जो दाने-दाने को मोहताज हो गया है. जिसे रोज़ की रोटी नहीं मिलती. उनकी प्रसिद्ध कविता "अकाल और उसके बाद", में जिस व्यक्ति के घर कई दिनों के बाद चूल्हा जला है उसका विवरण देखते ही बनता है –

कई दिनों तक चूल्हा रोया चक्की रही उदास

कई दिनों तक काली कुतिया सोई उसके पास

कई दिनों तक लगा भीत पर छिपकलियों का गश्त

कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद

धुँआ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद

चमक उठी घर भर की आंखें कई दिनों के बाद

कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद

इस कविता में व्यंग्य तो अपनी पूरी बुलंदी के साथ मुखर है ही, इसकी कलात्मक प्रस्तुति भी एक उदाहरण है. इसमें एक भूखे व्यक्ति के दुःख को उभारा ही गया है किंतु इसका प्रत्यक्ष उल्लेख इसमें कहीं नहीं है. छिपकलियाँ हैं, चूहा और कौआ है, लेकिन उस पीड़ित व्यक्ति का उल्लेख प्रत्यक्षतः कहीं नहीं है कि जिससे इसका वास्तविक सरोकार है. केवल उसे व्यंजित भर किया गया है.

नागार्जुन वस्तुतः हर उस प्राणी के प्रति हमदर्द हैं जो सताया हुआ है और असहाय है. इसमें केवल मनुष्य ही नहीं ऐसे सभी प्राणी सम्मिलित हैं. वक्रतापूर्ण व्यंजना के साथ सहज मानवीय हमदर्दी और आत्मीय लगाव को उन्होंने जिस तरह साधा है वह उनकी अपनी विशेष उपलब्धि है. इस संदर्भ में उनकी कविता "नेवला" दृष्टव्य है. नेवला शीर्षक इस कविता में कोई उपेक्षणीय जीव नहीं है. मीसा में बंद, बाबा के अन्य साथियों की तरह, वह भी उनका अपना ही मित्र है. उसके साथ कवि का आत्मिक एकालाप सहृदयों को अनायास नागार्जुन की भावनात्मक दुनिया से जोड़ देता है. कविता के लिए ऐसा कोई विषय नहीं है जिसे नागार्जुन अस्पर्श्य मानते हों. केकड़ा, बगुला, सूअर, मुर्ग़ा, कोयल आदि, तरह-तरह के जीव-जंतुओं को उन्होंने अपने कविता-देश में ससम्मान स्थान दिया.

परंतु उनका काम्य तो जीवित मनुष्य और उसका सम्मान ही है. वे लोग जो समाज में गरिमामय जीवन नहीं जी पाते, नगार्जुन के काव्य की प्रथम चिंता हैं. जीते इंसानों को नंगा-भूखा देखकर उन्हें अत्यंत क्षोभ होता है. "मन करता है" शीर्षक कविता में वे इसी क्षोभ को वाणी देते हैं. –

मन करता है:

नंगा होकर कुछ घंटों तक तट सागर पर मैं खड़ा रहूं

यों भी क्या कपड़ा मिलता है?

धनपतियों की ऐसी लीला! .....

मन करता है:

नंगा होकर मैं खड़ा रहूं सागर तट पर

कुछ घंटो तक क्या, जीवन भर

नंगा होकर –

यों भी क्या कपड़ा मिलता है?

साथ ही साथ नागार्जुन उस बेहूदा समृद्धि को हास्यास्पद बना देते हैं जो एक ऐसे अभि-जात्य वर्ग का निर्माण करती है जिसे दरिद्र और ग़रीब परिश्रमी लोगों के साथ बैठने में हिचक ही नहीं तकलीफ भी होती है. वे इस तथाकथित अभिजात्य वर्ग से पूछते हैं –

कुली मज़दूर हैं / बोझा ढोते हैं, खींचते हैं ठेला

धुँआ धुँआ भाप से पड़ता है साबका / थके माँदे

जहां जहां जाते हैं / सपने में भी सुनते हैं

धरती की धड़कन / आकर ट्राम के अंदर

पिछले डिब्बे में बैठ गए हैं / इधर उधर

तुमसे सटकर / आपस में उनकी बतकही

सच सच बताओ / नागवार तो नहीं लगती है?

जी तो नहीं कुढता है / घिन तो नहीं आती है?

ऐसे अभिजात्य गोत्र के लोगों से नागार्जुन एक खास दूरी बनाए रखना चाहते हैं, इसीलिए वे स्व्यं को “औघड़ गोत्र का कवि” मानते हैं.

वह जो अपने शरीर श्रम की रोटी खाता है, नागार्जुन उसी का सम्मान करते हैं – भले ही वह अपने प्रयत्नों में असफल ही क्यों न रहा हो –

जो नहीं हो सके पूर्ण काम / मैं उनको करता हूं प्रणाम

कुछ कुंठित औ” कुछ लक्ष्य-भ्रष्ट ...

जो छोटी सी नैया लेकर / उतरे करने को उदधि-पार

जो उच्च शिखर की ओर बढे / रह रह नव उत्साह भरे ...

असफल ही नीचे उतरे / उनको प्रणाम ...

थी उग्र साधना, पर जिनका / जीवन नाटक दुःखांत हुआ ..

जिनकी सेवाएं अतुलनीय / पर विज्ञापन से दूर रहे

प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके / कर दिए मनोरथ चूर-चूर

--उनको प्रणाम!

इतना ही नहीं, वे समान धर्मा साहित्यकारों से जनसाधारण के प्रति स्पष्ट पक्षधरता की माँग करते हैं –

अजी आओ, / इतर साधारण जनों से अलहदा होकर रहो मत

कलाधर या रचयिता होना ही नहीं पर्याप्त है

पक्षधर की भूमिका धारण करो ...

विजयिनी जनवाहिनी का पक्षधर होना पड़ेगा ..

अगर तुम निर्माण करना चाहते हो

शीर्ष संस्कृति को अगर सप्राण करना चाहते हो

समस्त भारतीय दर्शन और काव्य का आरंभिक बिंदु दुःख रहा है. इस दुःख और उसके निवारण की कोशिश बुद्ध ने भी की है और इसका दिग्दर्शन अपनी कहानियों और उपन्यासों में प्रेमचंद ने भी किया है. दुःख कई प्रकार के होते हैं. कुछ दुःख ऐसे होते हैं कि जिनपर इंसान का वश नहीं होता. प्राकृतिक प्रकोपों से उत्पन्न दुःख बहुत-कुछ इसी प्रकार के हैं. वह जिन्हें हम आध्यात्मिक दुःख कहते हैं, इनका भी साधारण उपायों से निराकरण संभव नहीं है. लेकिन भौतिक दुःख जिन्हें नागार्जुन ने भौतिक ताप कहा है, ऐसे दुःख हैं जिन्हें स्वयं मनुष्य ने ही निर्मित किया है और जो मनुष्य द्वारा ही आसानी से दूर किए जा सकते हैं. भूख, बीमारी, बेकारी, अज्ञान, जहालत आदि, ऐसे ही दुःख हैं. नागार्जुन की कविता इन्हीं दुःखों से ग्रसित भूखों, ग़रीबों, बेसहारा और सताए हुए लोगों की कविता है. नागार्जुन दुःख के और दुःखियों के कवि हैं. अपने कवि-कर्म में उनका वास्तविक और प्राथमिक दुःख यही है कि हम क्योंकर ऐसे समाज की रचना नहीं कर पा रहे हैं जो मनुष्य के कम से कम इन भौतिक दुःखों को दूर कर सके – जब कि यह सर्वथा संभव है. वे एक ऐसे समाज निर्माण की दिशा में हम सभी को उन्मुख करते हैं जिसमें न्याय और समानता हो, सहृदयता और प्रेम हो. वर्तमान समाज पर उनका तंज और तेवर सिर्फ इसीलिए है कि चाहते हुए भी मनुष्य अपने भौतिक दुःखों का निराकरण करने में असमर्थ दिखाई देता है जब कि वह वस्तुतः ऐसा है नहीं .

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रचना और रचनाकार (९) / नागार्जुन के काव्य में तंज और तेवर / डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
रचना और रचनाकार (९) / नागार्जुन के काव्य में तंज और तेवर / डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
https://lh3.googleusercontent.com/-H5e5dZbv5d4/VvKEUeee4HI/AAAAAAAAsiU/S3RfUB5fJrY/image_thumb%25255B8%25255D.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-H5e5dZbv5d4/VvKEUeee4HI/AAAAAAAAsiU/S3RfUB5fJrY/s72-c/image_thumb%25255B8%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/03/blog-post_302.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/03/blog-post_302.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content