प्राची अप्रैल 2016 : काव्य जगत

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गजल अरविन्द अवस्थी मत पढ़ो अखबार, पढ़ पाओगे क्या शत्रु पर एतबार कर पाओगे क्या   बाप ने बेटी से मुंह काला किया वह मुई लाचार, पढ़ पाओगे क्या   ...

गजल

अरविन्द अवस्थी

मत पढ़ो अखबार, पढ़ पाओगे क्या

शत्रु पर एतबार कर पाओगे क्या

 

बाप ने बेटी से मुंह काला किया

वह मुई लाचार, पढ़ पाओगे क्या

 

लोभियों ने फूल-सी बेटी जला दी

रो रहा परिवार, पढ़ पाओगे क्या

 

बाप को मारा कि विधवा मां हुई

पुत्र ही गुनहगार पढ़ पाओगे क्या

 

चार बच्चे छोड़ निज प्रेमी के साथ,

महिला हुई फरार पढ़ पाओगे क्या

 

देखती हैं आंख जो वह सच नहीं

शक में है किरदार पढ़ पाओगे क्या

 

आदमी के ख्वाब मिट्टी में मिले

छद्म की सरकार पढ़ पाओगे क्या

 

सम्पर्कः श्रीधर पाण्डेय सदन,

बेलखरिया का पुरा,

मीरजापुर (उ.प्र.)

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दोहे

जगदीश तिवारी

फागुन आया द्वार पर, ले सतरंगी रंग
काहे पीछे हट रहा, बजा जोर से चंग


अपनों की तू बात कर, अपनों से कर प्यार
अपने गर हैं साथ में, तो जीवन गुलजार


उसके नयनों में पढ़ा, जब जीवन का सार
तब जाकर मुझको मिला, जीने का आधार


एकाकीपन डस रहा, किसे कहूं ये बात
सुबहा भी लागे मुझे, काली काली रात


मां बिन घर सूना लगे, हंसे न घर में भोर
मां है तो घर में हंसी, हंसती है चहुं ओर


धन-दौलत के चाह की, बुझती कभी न प्यास
ये तो ऐसा रोग है, दवा न जिसकी पास

सपर्कः 3-क-63 सेक्टर-5, 
हिरण-नगरी, उदयपुर-313002 (राज.)
मोः 09351124552


दो गजलें
इब्ने इंशा

देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियां
हम से तेरा दर्द का नाता, देख हमें मत भूल मियां


यूं ही तो नहीं दश्त में पहुंचे, यूं ही तो नहीं जोग लिया
बस्ती-बस्ती कांटे देखे, जंगल-जंगल फूल मियां


ये तो कहो कभी इश्क किया है, जग में हुए हो रुसवा भी
इसके सिवा हम कुछ भी न पूछें, बाकी बात फिजूल मियां


सुन तो लिया किस नार की खातिर काटा कोह, निकाली नह्र
एक जरा से किस्से को अब देते हो क्यों तूल मियां


खेलने दें उन्हें इश्क की बाजी, खेलेंगे तो सीखेंगे
कैस की या फरहाद की खातिर खोलें क्या स्कूल मियां

 

शहजाद अहमद

चुप के आलम में वो तस्वीर-सी सूरत उसकी
बोलती है तो बदल जाती है रंगत उसकी


सीढ़ियां चढ़ते अचानक वो मिली थी मुझको
उसकी आवाज में मौजूद थी हैरत उसकी


आंख रखते हो उस आंख की तहरीर पढ़ो
मुंह से इकरार न करना तो है आदत उसकी


रोशनी रूह की आती है मगर छन-छन कर
सुस्त-रौ अब्र का टुकड़ा है तबीयत उसकी

वो कभी आंख भी झपके तो लरज जाता हूं
मुझको उससे भी जियादा है जरूरत उसकी

 

देवेन्द्र कुमार मिश्रा की चार कविताएं

होनी
सौ-सौ गम
पहाड़ बनके टूटे
    दबे-कुचले
    पड़े रहे दर्द से तड़पते 
आते-जाते लोगों
का तमाशा बनते
    चीखते-कराहते रहे
    लोग चर्चा
करते रहे
और जब हम
    मर गये
    तब कहा
तमाशबीनों ने
बचाया जा सकता था
    लेकिन होनी को
    कौन टाल सकता है.

चिता

जीवन है
तो चिंता है
    चिंता है तो चिता है
    और ये थोड़ा-थोड़ा
जलने की सजा
थोड़ा-थोड़ा मरने की सजा
    हर आदमी की किस्मत है
    खासकर जिनकी किस्मत
कमजोर हो
सीने की चुभन
    चित्त की उदासी
    स्थाई है जीवन के साथ
कभी दर्द ज्यादा होता है
कभी कम
    चिता है जीवन
    चिता में जलने तक

प्रेम करो

ओ मेरे प्राण
ओ मेरे मन
    मिला जीवन
    मैं हो गया
    धन्य-धन्य.
स्त्री-पुरूष संबंध
कितने महत्वपूर्ण
    उनसे बनता एक जीव संपूर्ण
    उत्पन्न होकर संसार बढ़ाता
    और चलाता
संबंधों को मत करो
इतना निर्जन
    जीवन हो जाये विसर्जन
    प्रेम अनुपम है
    प्रेम को समझो सौभाग्य
कोई नहीं कारण
छोड़ना पड़े प्रेम
    प्रेम तजना
    स्वयं को छलना
छलो मत
प्रेम करो.


भ्रम बहुत है

भ्रम बहुत है
श्रम बहुत है
    और गति शून्य
    भ्रम से निकलो
फिर श्रम में ढालो
ताकि गति हो गतिमान
    तभी सबकुछ संभव जान
    जब भ्रम हो
तो कुछ भी क्रम में न हो
और अस्त-व्यस्त सी
    व्यस्तता सबकुछ
    करती अस्त
सब व्यवस्थित हो
तभी व्यवस्तता सिद्ध होती
    भ्रम की भटकन तोड़ो
और क्रमशः खुद
को आगे मोड़ो.

संपर्कः पाटनी कालोनी, भरत नगर,
चंदनगांव, छिन्दवाड़ा-480001 (म.प्र.)
मोः 09425405022

 

गीत
सनातन कुमार वाजपेयी ‘सनातन’

बंधन में सूरज

जकड़ गया सूरज बंधन में...
अट्ठहास करता तम चहुंदिशि, किरणें सिसक रहीं कोने में
खेत, खान चीत्कार कर रहे, सत्य, न्याय बिकते सोने में
द्वार-द्वार निरुपाय हो रहे, धूप न आ पाती आंगन में
जकड़ गया सूरज बंधन में...
महल मनाते नित्य दिवाली, द्वीप न कुटियों तक जा पाते
फुटपाथों पर भूख बिलखती, गीत न खुशियों के गा पाते
निर्धनता उमड़ी सड़कों पर, वैभव उड़ता आज गगन में
जकड़ गया सूरज बंधन में...
कैसी यह प्रभाव की बेला, कहीं नहीं दिखता उजियारा
एक ओर अरबों बैंकों में, वहीं न भोजन वस्त्र सहाय
कैसे ये समता के नारे, डूब रहे हैं नित क्रन्दन में
जकड़ गया सूरज बंधन में...
किसने आकर यह विष घोला, सत्य धर्म ईमान मर गये
आर्जव, दया, क्षमा रोती है, कीच कलुष सब पंथ सज गये
कैसी अशुभ विषैली बेला, नाच रही है मधु उपवन में
जकड़ गया सूरज बंधन में...
बदल गये मौसम के तेवर, पिता-पुत्र अब बने बिराने
नैतिकता निरुपाय बनी है, मानवता के मूल्य हिराने
नहीं प्रीतिमय अब सौगातें, समय नाचता नई चलन में
जकड़ गया सूरज बंधन में...

संपर्कः पुराना कछपुरा स्कूल गढ़ा,
जबलपुर-480003 (म.प्र.)
मोः 09993566139


क्षणिकाएं
राजा चौरसिया

स्वार्थ
जब से सर्वप्रिय
और सर्वश्रेष्ठ
कहलाने लगी है
स्वार्थ की बात!
तब से
हाई-फाई हैं
ये हाथी के दांत!

अपने ये रिश्ते
पहले
खूब छलकते हैं
जैसे भरी हुई गागर!
फिर
हाशिए के बाहर!

जुगलबंदी नेताओं वाली
एक दूजे के लिए हैं
अवसर और जुगाड़
इसीलिए
मजे से कट रहे हैं
आड़ में झाड़

आत्मनिर्भरता
अपने हाथों से
स्वयं की आरती उतारना
बहुत ठीक है.
यह आज की
आत्मनिर्भरता का प्रतीक है.

सम्पर्कः उमरियापान,
जिला-कटनी (म.प्र.)-483332

शिवशरण दुबे के दो अनुगीत
पिता पर
एक

था नहीं आकाश भी उस माप का.
जितना ऊंचा कद कभी था बाप का.
व्यस्त बेटा अब पिता के हित कभी,
दे न पाता समय वार्तालाप का.
कौन सुनता बात घर में अब भला,
हो गया बूढ़ा ‘चवन्नी’ छाप का.
बाप कोई रो रहा है सड़क पर,
भर रहा है घट किसी के पाप का.
पुत्र ने घर से निकाला दे दिया,
ढो चला गट्ठर पिता अनुताप का.
बदचलन बेटा हुआ कंगाल अब,
असर दिखता है पिता के शाप का.
आंगने ‘तुलसी’ व ‘गेंदें’ की महक,
पुण्य, बाबा के भजन का, जाप का.
वृद्ध भावों से भरे अनुगीत में,
है समाया जिक्र मेरा-आपका.

दो

देख लो बदला जमाना किस कदर.
बाप बूढ़ा हो रहा है दर-बदर.
की जमाने ने बड़ी उन्नति मगर,
बाप-बेटों के रहे रिश्ते बिखर.
घर बनाया खूं-पसीना एक कर,
अब उसी घर में पिता पीता जहर.
बाप वृद्धाश्रम पड़ा करता बसर,
पुत्र ‘स्वीमिंग-पूल’ में लेता लहर.
नमक-रोटी बाप खाता है इधर,
और बेटा, ‘मीट’ होटल में उधर.
बाप सोकर उठ गया चौथे पहर,
पुत्र सोया दस बजे तक बेखबर.
है विदेशी संस्कृति का क्या असर,
चरण छूने को नहीं झुकती कमर.
पुत्र ‘लंदन’ में गया कितना निखर,
बाप से बोला-‘‘हैलो फादर डियर’’.

सपर्कः संदीप कालोनी,
कटनी-मार्ग बरही-483770 (म.प्र.)


ग़ज़लः राकेश भ्रमर

मंदिरों में आदमी बसता रहा.  
देवता बनकर हमें ठगता रहा.   


भाग्य पर उसको बहुत विश्वास था.  
मूर्तियों के सामने झुकता रहा.   

धर्म की उसने पकाई रोटियां,   
बस हवन करते सदा जलता रहा. 


दाल-रोटी की उसे चिंता न थी,   
बैठकर प्रवचन सदा करता रहा. 

 
लोभ-माया से सभी को दूर कर,    
स्वर्ण के भंडार खुद भरता रहा.  


भावनाओं से हमारी खेलकर,    
आंसुओं के गीत वह लिखता रहा.   

 

सुनील कुमार गुहा की कविता
ढ़ूंढ ले ठौर-ठिकाना

पत्नी के कहने पर,
बेटे ने कहा-मां से-
‘‘ढूंढ़ ले ठौर ठिकाना
अब मुश्किल यहां,
संग-साथ-
जीवन में निभाना
पिता के मरने पर,
क्या-दिया था वचन-
न याद मुझको दिलाना
जब तक न मिली थी,
दौलत मुझको-
किसी ने न तुझको सताया
भूल जा मां अब तू,
न बनूंगा मैं-
श्रवण कुमार तेरा.
जीवन का इतिहास ही तो,
यहां दोहरा रहा-
दादी के आंसू की याद दिला रहा.
पत्नी के कहने पर
बेटे ने कहा- मां से-
ढूंढ़ ले ठोर ठिकाना.’’

सपर्कः 3/1355-सी, न्यू भगत सिंह कॉलोनी, बाबोरिया मार्ग, सहारनपुर-247001 (उ.प्र.)


शिव डोयले की तीन कविताएं
फर्क
गिलहरी का
बच्चा हो
या चिड़िया आदि का
इन्हें किसी ने
नहीं सिखाया
बिल्ली, सांप, नेवला
देखकर
जोर-जोर से चिल्लाना
ये खूब पहचानते हैं
दुश्मन कौन है
जबकि हम
आज तक
नहीं परख पा रहे हैं
दोस्त और
दुश्मन में फर्क

आयु 
बहुत जीना
चाहता है वृद्ध
लेकिन अचानक
खांसती उम्र
पूछने लगी
मुझे कितना
और रोकोगे

बंटवारा
पढ़ता हूं
जब भाई शब्द
मुझे बंटवारा
याद आता है

सपर्कः झूलेलाल कॉलोनी,
हरीपुरा, विदिशा-464001 (म.प्र.)
मोः 09685444352


कौवा पुराण

सूर्य प्रकाश मिश्र
1.
कौवा गूंगा हो गया, बंद कर लिए कान
लोग उसे कहने लगे, प्राणी चतुर सुजान
प्राणी चतुर सुजान बन गया मुफ्त सिकंदर
फितरत ऐसी शरमा जायें तीनों बंदर
रोज सुनाई देता है चोरों का हौवा
जब से है पहरे पर गूंगा बहरा कौवा

2.
पानी पीते डूबकर, मगर छिद गये कान
खबर पढ़ी अखबार, में कौवे हैं हैरान
कौवे हैं हैरान हुआ स्टिंग ऑपरेशन
जान गया सारी सेक्रेसी पूरा नेशन
कौवा दल हाई कमान का नहीं है सानी
तैर रहा है वहां जहां चुल्लू भर पानी

3.
छींका टूटा भाग्य से, काग बजाते ढोल
जो थे घुसे हमाम में, पहन के निकले खोल
पहन के निकले खोल लगे हैं गाल बजाने
छींके को अपनी खोयी जागीर बताने
शुरू हो गया सरकस फिर चूहा बिल्ली का
रोता अपनी किस्मत पर बेचारा छींका

4.
फलते पेड़ बबूल के, उगते खर-पतवार
कौवा दल सरकार में, हुआ राष्ट्र निर्माण
हुआ राष्ट्र निर्माण छूटते रोज शगूफे
राजा बन बैठे हैं कितने नंगे-भूखे
सारा सिस्टम चोक हुआ कौवों के चलते
आंखें दुखने लगीं देख कांटों को फलते
 
5.
ना जाने किस जन्म का, उदय हो गया पाप
लोग बाग कहने लगे, उन्हें दो मुंहा सांप
उन्हें दो मुंहा सांप आज हैं कौवा दल में
जाने किस करवट बैठेंगे कल दलदल में
मौसम लगा है धीरे-धीरे अब गरमाने
मिलेंगे किस झंडे के नीचे रब ना जाने

6.
कोई कीचड़ धो रहा, कोई झोकें भाड़
इन्हीं के दम से चल रही, कौवा दल सरकार
कौवा दल सरकार काग हैं बड़े निराले
जितनी इनकी सूरत उतने दिल हैं काले
इनकी काली करतूतों ने आंख भिगोयी
परिवर्तन की आस लगाये कैसे कोई

7.
कर्म सभी के एक हैं, मगर भाग्य का खेल
कोई छुट्टा सांड है, कोई कसे नकेल
कोई कसे नकेल हो रही लीपा पोती
बांध लिया है खोल के फिर से काली धोती
कागराज की आंख से दफा हो गयी शर्म
दर्ज हुए इतिहास में कौवा दल के कर्म

8.
यूथ काग ले आएंगे, मौसम में बदलाव
पर बूढ़ों के भार से, डूब रही है नाव
डूब रही है नाव लगे हैं खेने वाले
वेश हंस का धरे हुए हैं कौवे काले
खाज हो गई कोढ़ में बूढ़ों की करतूत
दर्शक बनकर रह गया कौवा दल में यूथ

सम्पर्कः बी 23/42, ए. के. बसंत कटरा, गांधी चौक, खोजवां (दुर्गाकुण्ड) वाराणसी-221001
09839888743


ग़ज़ल
एहसान एम.ए.

हमें फरेब के रुझान को बदलना है.
वफा में ढालना सबको, खुद भी ढलना है.


शिकस्त देनी हवा को है रोशनी के लिये,
चराग बनके हमें आंधियों में जलना है.


मरोड़ डालो सभी तीलियों को पंजों से,
परिन्दों! तुमको कफस से अगर निकलना है.


वो क्या करेगा हिफाजत फिजा-ए-उल्फत की,
जबां से तंज का शोला जिसे उगलना है.


सियाह रात के जाने का इंतजार करो,
सहर भी आयेगी, सूरज को भी निकलना है.


हयातो-मौत का है सिलसिला निगाहों में,
ये कैसे कह दूं मुझे घर नहीं बदलना है.


करम से अपने अता की है जिन्दगी जिसने,
उसी की राह पे ‘एहसान’ हमको चला है.

सम्पर्कः मोहल्ला-बरईपुर, पोस्ट-मोहम्मदाबाद गोहना, जिला-मऊ (उ.प्र.)-276403


कविता
ताना-बाना

राजेन्द्र परदेसी

तेरी यादों के सिरहाने
मेरे हाथों की उंगलियां
    दबी हैं
तुम्हारी नीदों के पैताने
संतरियों के पांव
    खड़े हैं.
क्या
प्यार का दरवाजा
    किसी को
बाहर आने ही नहीं देता
या
फिर किसी का
प्रवेश निषेध करने को
    हमेशा
खुला ही रहता है.
सांझ का उल्लू
सुबह
बोलता तो नहीं
किन्तु वह
जैसे
देखता ही रहता है.
क्यों न तुम
भोर की मांद से
बाहर झांककर
एक जोड़े बुलबुल का
चहकना सुनो
यदि किसी ने
तुम्हें
प्यार ही दिया है,
तो
उसी गर्माहट की ऊन से
तुम अपनी शॉल में
इन्द्रधनुषी रंग का
ताना-बाना बुनो!

सम्पर्कः 44, शिव विहार,
फरीदी नगर, लखनऊ-226015
मोः 9415045584

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श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक 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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: प्राची अप्रैल 2016 : काव्य जगत
प्राची अप्रैल 2016 : काव्य जगत
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