परीदेश की सैर - 5 / रोमांचक बाल उपन्यास / श्रीनाथ सिंह

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  (पिछली कड़ी 4 यहाँ पढ़ें) परीदेश में हलचल परीदेश की रानी के महल में सब परियाँ इकट्ठा हुईँ। आज देश में पहला मौका था जब परियाँ इतनी घबराई...

 

(पिछली कड़ी 4 यहाँ पढ़ें)

परीदेश में हलचल

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परीदेश की रानी के महल में सब परियाँ इकट्ठा हुईँ। आज देश में पहला मौका था जब परियाँ इतनी घबराई हुई थीं. सब परियों के झोंपड़े उजड़ चुके थे। केवल रानी का महल बाकी था । वह इसलिए बिना रानी की इच्छा के वह सूख नहीं सकता था ।

महल के बाहर अजीब तमाशा हो रहा था । जान पड़ता था मानो बरसात और रेगिस्तान में लड़ाई हो रही है । बांहर ऊंट और मोर दोनों खुश थे । ऊँट दूर तक फैले रेगिस्तान को दखकर खुश था और मोर ऊपर की बादलों की गरज को सुन कर खुश था । बैल के रूप में किसान कभी-कभी हरी घास की इच्छा कर बैठता था इससे कुछ हरियाली दिख जाती थी । अजीब गड़बड़ मची हुई थी । एक चिडिया और एक जानवर की इच्छा ने यह हालत कर रखी थी । मनुष्य देश से और भी जानवर पहुँच जाते तो जाने क्या हो जाता ।

इस लिहाज से तो मनुष्यों के देश में यह अच्छा है कि यहाँ किसी की इच्छा पलक झपकते पूरी नहीं होती । क्योंकि यदि ऐसा होता और जानवरों की चलती तो ये इस दुनिया को न जाने क्या बना देते और तो और केवल उल्लू की इच्छा पूरी हो जाती तो सूरज के कभी दर्शन ही न होते । उल्लू महराज चौबीसों घन्टे अंधेरा बनाए रहते । खैर गनीमत हुई कि यह पक्षी परीदेश में नहीं पहुंच पाया । मगर बादलों के घिरने से जो अंधेरा हो गया था उससे लाल बौना को यही शक हुआ कि परी-देश में कोई उल्लू भी आया है इसलिए डर के मारे जब वह काँपता, घबराता भागता गिरता पड़ता रानी के महल में पहुँचा तब यही चिल्लाने लगा-परीदेश में क्या काई उल्लू भी आ पहुंचा? मैंने उसे नहीं देखा ।

एक तरफ परियां अपने बचने का उपाय सोच रही थीं दूसरी तरफ लाल बौना अपना यही बेसुरा राग अलाप रहा था । किसी को समझ में न आया वह क्या बक रहा है ।

रानी के महल में भीतर हर पत्ती पर एक जुगनू बैठा हुआ था । इससे खूब उजाला हो रहा था । उसी उजाले में एक परी ने देखा कि लाल बौना भीगा हुआ है । उसने पूछा-क्या बाहर पानी बरस रहा है?

लाल बौना बोला-नहीं गर्द बरस रही है ।

'तब तुम भीगे कैसे हो ?'

'में अभी बादलों को छूकर चला आ रहा हूं वहाँ इस कदर जोर से बिजली चमक रही है कि मैंने सोचा कि भागूंगा नहीं तो उसकी सारी चमक मेरी आँखों में घुस जायगी ।'

: इधर लाल बौने में और एक परी में ये बातें हो रही थीं इधर रानी से एक परी जोर देकर कह रही थीं-रानी इच्छा करो 'कि परीदेश फिर पहले जैसा हो जाय । तुम दिल से यह .बात चाहोगी तो जरूर हो जायगा । इसके जवाब में रानी ने कहा-मैं हमेशा बहुत सोच समझ कर इच्छा करती हूँ । अपने पास जो ताकत हो उसको सोच समझ कर काम में लगाने को मेरी हमेशा से आदत है । शायद भगवान को यही मंजूर हो कि परीदेश नाश हो जाय । इसलिए मैं बिना सोचे समझे कोई इच्छा नहीं करूँगी । लाल बौना कहां है उसे बाहर भेजो । पता लगाकर आवे कि क्या बात है । अगर मनुष्यों के देश से कोई आया होगा तो उसे पता होगा । लाल बौना रानी के सामने लाया गया । उसने अपनी दाढ़ी तान कर और मुँछें झटकर कर रानी को प्रणाम किया । मूंछे झटकने से मूछों में भरी पानी की बूंदे रानी पर जा पड़ी । रानी ने पूछा क्या बाहर से आ रहा है? कितना पानी बरस गया? ''बिल्कुल नहीं । मैं बादलों से आ रहा हूँ । आज की मुसीबत का सारा भेद मुझे मालूम हो गया है । सिर्फ एक बात नहीं मालूम हुई कि उल्लू कहाँ से और कैसे आ गया ।''

परियों की रानी ने कहा-''उल्लू तेरे दिमाग में कैसे घुस गया । अरे भाई बादल घिरे उनमें सूरज छिप गया । बस अँधेरा है । इसमें उल्लू का क्या कसूर है ।''

लाल बौना दोनों हाथों से अपना मुंह पीट कर बोला- -बेशक मैंने समझने में गलती की है । उल्लू की तलाश में मैं खुद -ही उल्लू बन गया ।

रानी ने कहा-बाकी तुझे क्या मालूम है?

लाल बौना ने गोपाल, चमेली, किसान, ऊंट, मोर, चूहा सब का सारा किस्सा कह सुनाया ।

परियों की रानी ने कहा-ये सब जीव जिस शकल में परी देश में आये थे उसी शकल में हमारे महल में हाजिर हों ।

रानी यह कह भी न पाई थी कि सब लोग उसके महल के सामने आकर खड़े हो गए ।

इसके बाद रानी ने कहा-परी देश जैसा पहले था वैसे-- ही फिर हो जाय ।

बस परीदेश फिर ज्यों का त्यों हो गया । परियां यह देखने के लिए बाहर निकल आई और रानी की तारीफ में एक गीत गाने के बाद ऊँट और मोर को देखने लगीं ।

रानी ने बाहर निकल कर कहा-तुममें से किसी को कुछ कहना है?

किसान बोला-हाँ, तुम्हारा यह लाल बौना बड़ा शैतान है । इसने मुझको बैल बना दिया था ।

लाल बौना-बिलकुल गलत! तुमने खुद बैल बनने की इच्छा की थी ।

किसान-तुमने मुझे गुस्सा दिलाया था ।

लाल बौना-तुमने भी मुझे चिढ़ाया या ।

रानी-बस, मुझे ऐसी बातें पसन्द नहीं है । यह प्रेम का देश है । यहां सब को प्रेम से रहना चाहिए । दोनों एक दूसरे को गले से लगाओ, और किसी को कुछ कहना है

गोपाल और चमेली ने एक साथ कहा - हम अपने देश वापस जाना चाहते हैं ।

रानी बोली-अच्छी बात है । पर तुम यहाँ आए कैसे?

गोपाल ने अपने आने की और चमेली ने अपने आने की कहानी कह सुनाई। चमेली के मुंह से किसान की तारीफ सुन कर रानी उठी और किसान के चरणों पर मस्तक रख कर उसे प्रणाम करने लगी।

लाल बौना बोला-इस तरह तो वह और आसमान पर चढ़ जायगा । उसके कुछ अक्ल शहूर है या यों ही उसे प्रणाम कर रही हो ।

रानी ने कहा-अक्ल शहूर हो या नहीं । मनुष्य देश में- रहने पर भी इसमें परियों के गुण मौजूद हैं । यह मुसीबत में पड़े की मदद करना जानता है । एक छोटी अनजान लड़की के लिए घर बार छोड्‌कर इतनी दूर जो आ सकता है और इतनी- तकलीफ उठा सकता है उसे मैं क्या ईश्वर भी एक बार प्रणाम करेंगे । यदि ऐसे ही आदमी मनुष्य देश में पैदा हो जायँ तो परियों को वहां जाकर प्रेम दया का गीत गाने की जरूरत ही न पड़े ।

इसके बाद रानी ने किसान से पूछा-किसान देवता और- क्या चाहते हो?

किसान बोला-चमेली का काम हो गया अब मैं अपने घर जाना चाहता हूँ ।

“अच्छा ऊँट पर बैठ जाओ”

किसान ऊँट पर बैठ गया। उसके बैठते ही ऊँट उड़ चला। चमेली बोली हम लोग भी इन्हीं के साथ जाएंगे।

रानी ने कहा – तुम बच्चे हो, अभी बहुत थके हो। दो चार दिन परी देश की सैर कर लो फिर जाना। किसान को इसलिए भेज दिया कि उस बेचारे को अपने घर बार की चिन्ता है। तुमने देखा नहीं वह कितना उदास था ।

चमेली चुप हो रही ।

मोर चुपचाप रानी की ओर देख रहा था। रानी को उस पर दया आ गई। रानी बोली मोर! चूहे को अपनी पीठ पर बैठाकर जहां से आये हो वहीं चले जाओ ।

मोर और चूहा दोनों रवाना हो गए ।

इसके बाद रानी ने लाल बौने से कहा-गोपाल और चमेली की कल मेरे यहाँ दावत होगी । सबेरा होते ही यहाँ पहुंचा जाना । उसके बाद बताऊँगी कि ये अपने घर कैसे जायेंगे ।

अब सूरज डूब चुका था । सफेद चाँदनी में परियों के गाना के बीच में से लाल बौना गोपाल और चमेली को घर लिये जा रहा था ।

वापसी

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चमेली और गोपाल ने यह समझा था कि रानी के यहाँ दावत में उन्हें अच्छी-अच्छी चीजें खाने को मिलेगी । परन्तु परीदेश में दावत का बिलकुल दूसरा अर्थ है । रानी जिसका दावत देती है उसको वह बजाय अच्छे-अच्छे खाने खिलाने के अच्छी-अच्छी बातें सुनाती है । अपना दिल उसके सामने खोलती है और उसके दिल की बातें सुनती है ।

उस दिन रानी ने चमेली और गोपाल को बहुत सी अच्छी- अच्छी बातें बतलायीं । परोदेश के बारे में और मनुष्यों के देश के बारे में भी दोनों की बातें हुयी । बातें समाप्त होने पर रानी ने पूछा-बोलो, परीदेश को तुम कैसा समझते हो, यहाँ रहना चाहो तो तुम्हारे माता-पिता को भी यहीं बुला दूं?

चमेली ने जवाब दिया- परीदेश क्या है एक सपना है । थोडी देर तक सपना देखना अच्छा होता है । पर हमेशा सपना कौन देखना चाहेगा?

रानी ने कहा-परन्तु मनुष्यों की किताबों में लिखा है कि मनुष्यों का देश भी सपना है ।

गोपाल बोला-होगा, हमको क्या? हम अभी बच्चे हैं ।' हमें सब सपना है और हमारे लिए सब सच्चा है ।

रानी ने कहा-हम लोग यहाँ बुड्‌ढों की सी बातें कर रहे हैं । आज बातचीत शुरू करने में शुरू से ही गलती हो गई है । इस तरह की बातें मुझे बड़े बूढ़े मनुष्यों से करनी चाहिये थीं । तुम अभी बच्चे हो तुम्हें मनुष्यों की दुनिया का क्या पता?

चमेली बोली-मैं चाहती हूँ । मैं हमेशा इसी तरह लड़की बनी रहूँ ।

गोपाल बोला-मैं भी चाहता हूँ कि मैं हमेशा इसी तरह लड़का बना रहूँ ।

रानी बोली-उम्र की कमी से कोई बच्चा नहीं कहलाता और न उम्र की ज्यादती से कोई बुड्‌ढा । जिसका स्वभाव हमेंशा बच्चों का सा बना रहे यही बच्चा है । मनुष्यों के देश में ऐसे भी लोग होते हैं और वे ही अच्छे लोग कहे जाते हैं ।. तुम्हारे साथ जो किसान आया था वह ऐसा ही था ।

चमेली ने कहा-सचमुच बड़ा अच्छा आदमी था । वही मुझे यहाँ तक लाया । मैं अपने घर जाने पर उससे जरूर भेंट करूंगी और उसको बाबा कहूँगी ।

गोपाल बोला--मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा । मैं भी उसे बाबा कहूंगा ।

रानी ने मुस्करा कर कहा-तुम दोनों बड़े अच्छे लड़के हो 'तुमसे मैं बहुत खुश हूँ ।

गोपाल ने कहा-खुश हो तो कुछ इनाम दो ।

चमेली ने कहा--मैं इनाम नहीं चाहती । मैं किसी लालच .से अच्छी लड़की नहीं बनना चाहती ।

गोपाल बोला तब मैं भी कोई इनाम नहीं चाहता ।

रानी बोली-अब तुम दोनों परी-देश की सी बातें कर रहे हो । परियाँ अपने अच्छे कामों का कोई इनाम नहीं -चाहतीं ।

गोपाल कुछ कहने वाला था कि रानी ने कहा-मैं तुम दोनों को तितली बनाए देती हूँ । तुम बड़ी तेजी से उड़ते हुये जाओगे । और अपने घर पहुंच जाने पर अपने माँ की आवाज सुनते ही फिर मनुष्य बन जाओगे । क्यों मंजूर है? दोनों ने -एक साथ कहा-हाँ!

मुँह से 'हाँ' निकलते ही दोनों तितली बन गए । सबेरे की -सुनहली धूप में उनके रंग-बिरंगे पर चमक उठे । अब वे उड़ते- उड़ते रानी के महल से दूर लाल बौने की झाड़ी के पास पहुँच .गए थे । वहाँ से उन्हें रानी के घर में परियों का यह गाना होता हुआ सुनाई पड़ा ।

तुम्हारी जय हो जय रानी ।

फूलों सी है हंसी तुम्हारी महक सरीखे बोल ।

प्यार भरा है दिल में इतना दुनिया लेलो मोल ।।

खोल दो जग के बन्धन खोल ।

बोल दो महक सरीखे बोल ।।

बजा कर बढ़ो प्रेम का ढोल मिटा दो जग की हैरानी

तुम्हारी जय हो जय रानी

चमेली और गोपाल दोनों को यह गाना याद था. दोनों इसी को गाते उड़ते चले गए । शाम हुई, रात हुई, पर वे उड़ते ही चले गए।

दूसरे दिन जब पूरब में सूरज की लाली फूटी तब चमेली ने गोपाल से चौंक कर कहा-अरे गोपाल वह देख वह पेड् दिखाई पड रहा है । जिस पर से तू गुब्बारे के साथ उड़ा था।

गोपाल बोला-ओहो अब हम अपने गांव के पास आ गये। इसके थोड़ी ही देर बाद दोनों अपने घर के पास पहुँचे ।

पल भर के भीतर आंगन में लगे तुलसी के पेड़ पर बैठ गये। उनकी माता उदास मन चुपचाप बैठी थी । बड़ी देर तक दोनों चुपचाप दोनों इस आशा में बैठे रहे कि माँ बोलेगी तब वे' मनुष्य बन जायेंगे ।

परन्तु जब देखा कि माँ को बुलाना सहज नहीं है तब' चमेली चुपके से जाकर उसके सामने ऐसे पड़ रही जैसे कोई मरी तितली हो।

उसे देखते ही चमेली की मां ने धीरे से कहा – हाय रे बेचारी तितली।

“अरे चमेली! मैं सपना तो नहीं देख रही हूँ”

चमेली ने कहा-नहीं माँ सपना नहीं है । माता ने चमेली को पकड कर छाती से लिपटा लिया और कहा गोपाल । कहां है?

“वह सामने तुलसी के पेड़ पर तितली बना बैठा है ।'

तुम्हारी आवाज सुनते ही वह भी आदमी बन जायगा ।

मां ने तुलसी के पेड़ के पास जाकर देखा । वहाँ कोई तितली नहीं थी । बेचारी माँ बहुत घबड़ाई । चमेली भी बहुत घबड़ाई.

दोनों इधर-उधर दौड़ने लगीं ।

गोपाल की माँ ने जोर-जोर से पुकारा-गोपाल!

गोपाल!!

गोपाल बाहर उड़कर आ गया था और एक नीम के पेड़ पर बैठा हुआ था । माँ की आवाज सुनते ही वह तितली से आदमी बन गया । नीम की कमजोर पत्ती उसे सम्भाल न सकी। वह धड़ाम से नीचे जमीन पर गिर पड़ा और उसके मुँह से-

निकला-''हाय माँ तुमने मुझे मार डाला ।''

चमेली और उसकी माँ दोनों दौड़कर गौपाल के पास गए ।'

वह बच गया था । उसके बहुत चोट नहीं आई थी । माँ ने उसे जमीन से उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया ।

उसके सिर पर हाथ फेरा और बार-बार उसका मुँह चूमा ।

सारे गाँव में शोर मच गया कि गोपाल और चमेली घर वापस आ गए हैं । गाँव भर के लड़के-लड़कियां स्त्री-पुरुष सब उन्हें देखने आये । गोपाल के घर में कड़ी भीड् और चहल-पहल हो गई । गोपाल की माँ की खुशी का ठिकाना नहीं रहा । उसकी सारी उदासी न जाने कहाँ चली गई । उसने कहा-बच्चों!

मेरे प्यारे बच्चों! तुम्हीं को देखने की आशा से मैं जीती रही नहीं तो अब तक मर गई होती।

इसके बाद गोपाल और चमेली ने अपने-अपने परीदेश में पहुँचने का हाल कह सुनाया । सुनकर जितने लोग इकट्ठे हुए थे सब दंग रह गये और सिर हिला-हिलाकर गोपाल चमेली के साहस की तारीफ करने लगे । अपने बच्चों की इतनी तारीफ सुनकर और उन्हें वापस पाकर गोपाल चमेली के माँ बाप मारे खुशी के फूले न समाते थे ।

(समाप्त)

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रचनाकार: परीदेश की सैर - 5 / रोमांचक बाल उपन्यास / श्रीनाथ सिंह
परीदेश की सैर - 5 / रोमांचक बाल उपन्यास / श्रीनाथ सिंह
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