परसाई व्यंग्य पखवाड़ा : अगले जनम में..../ व्यंग्य / प्रमोद यादव

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( परसाई व्यंग्य पखवाड़ा - 10 - 21 अगस्त के दौरान विशेष रूप से हास्य-व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन किया जा रहा है. आपकी  सक्रिय भागीदारी अपेक...

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(परसाई व्यंग्य पखवाड़ा - 10 - 21 अगस्त के दौरान विशेष रूप से हास्य-व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन किया जा रहा है. आपकी  सक्रिय भागीदारी अपेक्षित है.  )

  अगले जनम में..../

व्यंग्य

प्रमोद यादव

‘ एक बात से मैं हमेशा कन्फ्यूज्ड रही हूँ जी..’ पत्नी बिस्तर लगाती बोली.

‘ कौन सी बात पगली ? ’

‘ यही कि देश में गरीबी घटी है या बढ़ी है..वैसे तो बचपन से सुनती-पढ़ती आ रही कि हमारा देश कृषि-प्रधान है मतलब कि गरीब देश है..पर इन दिनों कई बार अखबारों में पढ़ने को मिलता है कि देश में अमीरों की संख्या में आश्चर्यजनक रूप से इजाफा हुआ..इसका मतलब तो यही हुआ कि गरीब कम हुए..गरीबी कुछ मिटी..आप क्या कहते हैं इस बारे में ? पत्नी सवाल दागते बोली.

‘ अरी भागवान..गरीबी मिटती-हटती या कम होती तो देश के सारे नेता, मंत्री-संत्री ,प्रशासानिक अधिकारी 24x7 इसका जाप क्यों करते ? कितनी ही सरकारें आई - गई पर गरीबी… न कोई मिटा सकी न हटा सकी ..अलबत्ता इसी गरीबी हटाओ के नारे लगा, जनता-जनार्दन को झूठे सपने दिखा..समय-बेसमय विभिन्न पार्टियां सरकार बनाती रही.....राज करती रही ..गरीबी और महंगाई का चोली-दामन का साथ है..कुछेक पार्टियां गरीबी के साथ महंगाई को भी चुनावी मुद्दा बना चुनाव जीती ..पर आज तलक न गरीबी मिटी न महंगाई कम हुई..’ पति ने ज्ञान बघारते कहा.

‘ लेकिन आस-पड़ोस के लोगों को देखो तो लगता है कि गरीबी कम हुई है जी ..अब देखो न.. सामने वाली गली के खोमचावाले श्यामलाल गुप्ता आज एक बहुत बड़े लाज का मालिक हो गया है..कच्छा-बनियान पहनने वाला गुप्ता अब नेताओं वाले लिबास में भाषण देते घूमता है..और वो देबू सोनी को देखो..एक टपरे में बैठ चांदी के जेवर धोया करता था..टाँके लगाने के काम करता लोगों को चूना लगाता था..वो आज भव्य ज्वेलरी शाप चला रहा है..खुद बप्पी लहरी की तरह इतने सोने के आइटम पहने रहता है कि लगता है ये मुआ अब लुटा..तब लुटा..पर वाह री उसकी किस्मत..रोज चैन स्नेचिंग के कितने ही समाचार पढ़ती हूँ पर देबू सोनी का नाम कभी नहीं पढ़ी ..पीछे रहने वाले कान्सटेबल कमलाकर को देखो..जब आया था तब उसके पास भूंजी-भांग तक न था.. सिवा एक अदद गंवार बेडौल बीबी के..तीन साल में ही देखो क्या से क्या हो गया..पॉश कालोनी में मकान बनवाया है और सुना है पास के किसी गाँव में उसने फार्म हाउस भी ख़रीदा है..उसकी बेडौल बीबी आज “बेबी डौल” हो गई है.. सोने की खान हो गई है मुई .. सर से पाँव तक गहनों से लदी-फदी होती है..’

पति ने बीच में टोकते कहा- ‘ अब छोड़ो भी यार ..सब मालूम है मुझे..और ये भी मालूम है कि आगे तुम क्या कहने वाली हो..यही कि मुझे छोड़ अधिकाँश लोग गरीबी रेखा से ऊपर चले गए और मैं नीचे का नीचे बी.पी.एल. के कुंए में ही रह गया..अब रह गया तो रह गया यार..गरीबी और महंगाई पीछा नहीं छोड़ती तो कोई क्या करे ? तुम्ही बताओ..सरकारी स्कूल का ये टीचर करे भी तो क्या करे ? सरकारी स्कूल वैसे भी गरीबी के जीवंत पर्याय होते हैं..बिलकुल ही जर्जर और टूटे-फूटे..जैसे मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में निकले हों..तो भला भीतर किस खजाने की कोई आशा करें ? अधिकतर लोग बेईमानी करके बड़े आदमी और अमीर बन जाते हैं..अब टीचर बेचारा क्या बेईमानी करे बताओ ? कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं..कुछ लोग मेहनत करके अमीर बनते हैं..मैं भी पूरी मेहनत से पढाता हूँ पर सरकार सिवा मासिक वेतन के कुछ नहीं देती..धन्यवाद भी नहीं..तो बताओ.. अमीर कैसे बनूँ ? ‘

‘इसका मतलब कि गरीबी से निजात पाने का कोई उपाय ही नहीं ?’ पत्नी उदास हो बोली.

‘ हाँ..कम से कम इस जनम में तो नहीं..प्रार्थना करो कि अगले जनम में मनुष्य योनि न मिले..ताकि न गरीबी का जंजाल हो न मंहगाई का रोना..इंसानी दुनिया में बहुत लोचा है..’ पति ने निराशा भरे स्वर में कहा.

‘ अगले जन्म में आप कुछ भी बनिए..मुझे कोई उज्र नहीं..पर बताये देती हूँ..हर योनि में मैं ही आपकी पत्नी बनूंगी ?

‘ ऐसा क्यों भई ? दूसरों को भी चांस दो..’ पति ने छेड़ते हुए बोला.

‘ अच्छा जी ..एक जनम में ही ऊब गए ? भई..सात फेरे लिए हैं.. सात जन्मों का वादा है..उसके बाद जिसे चाहे आप कास्ट कर लें,हमें कोई हर्ज नहीं.. तो बताइये भला..अगले जन्म में क्या बनना चाहेंगे ? ‘

‘ मैं गज बनना चाहूँगा..गज..यानी कि हाथी..’ पति बोला.

‘ गज ?..तो मैं आपकी गजगामिनी बनूंगी..आपकी प्यारी हथिनी..तो हाथी मेरे साथी.. बताईये भला..शेर–शेरनी.मोर-मोरनी को छोड़ ये गजोधर..मतलब कि गज का रूप धरने का ख्याल कैसे आया ? ‘ पत्नी पूछी.

‘ दरअसल मैं एकदम टिपिकल योनि में जन्म लेना चाहता हूँ..सबसे अलग..सबसे जुदा.. अनोखा डील-डौल..भावुक और बलिष्ठ..और ये सारे गुण केवल एलिफेंट में होते हैं..इसलिए..’ पति ने जवाब दिया.

‘ लेकिन आपने कभी सोचा भी है कि इन दिनों जंगल तेजी से साफ हो रहे..नाममात्र को बचे हैं.. जनाब..दो पेड़ ( दो जून की रोटी) खाने को तरस जायेंगे..पैदा होते ही शरणार्थी हो जायेंगे..घूम-फिरकर इसी इंसानी दुनिया में फिर लौट आयेंगे ..जहां हमारी कोई क़द्र नहीं होगी..यहाँ इन्सान की कोई क़द्र नहीं तो जानवर को कौन पूछेगा ? वो भी जम्बो साईज का जानवर.. गरीब भिखारी हमारे सिर पर बैठ घूम-घूमकर हमसे ही भीख मंगवाएंगे..राजे-महाराजे का युग होता तो झेल भी लेते..वे कम से कम इज्जत तो देते..अच्छा ठाट-बाट और खाना-वस्त्र तो देते..आप ये गज वाला प्लान केंसिल कर कुछ और बनिए जी..’ पत्नी मशविरा देते बोली.

‘ठीक है..तुम्ही बताओ..किस योनि में जाना चाहोगी ?’

‘ पक्षी योनि में.. मैं कबूतरी बनना चाहूंगी ..और आप होंगे मेरे प्यारे कबूतर...आप दिन भर प्यार से गुटुर गूं करते रहना और मैं शर्म से लाल होती गाती रहूँगी --कबूतर..जा..जा..जा..’

‘ महारानी जी..अब ये कबूतर-कबूतरी फिल्मों में ही रह गए हैं..बड़ी ही छोटी जिंदगी होती है इनकी..जंगल में किसी बहेलिये की नजर पड़ी तो गए काम से..और शहर में तो लोग देखते ही बंदूक उठा निशानेबाजी सीखते हैं..किसी दिन कोई तुम्हें मार गिराया तो मैं तो यूं ही मर जाऊँगा..ये योनि भी ठीक नहीं..कोई और सोचो..’

मोर-मोरनी..घोडा-घोड़ी..सिंह-सिंहनी..हिरन-हिरनी..जैसे कई खूबसूरत पशु-पक्षियों की योनियों में जाने की चर्चा हुई पर नतीजे पर दोनों नहीं पहुंचे कि किस योनि में जनम लें..हर योनि में कुछ न कुछ लोचा था..अंत में पति ने झल्लाते हुए कहा-‘ छोडो यार..दूसरी योनि में जनम लेने में कोई मजा नहीं..बस सजा ही सजा है..और सबसे बड़ी सजा ये कि बरसों से मोबाईल..टी.वी...कंप्यूटर..वीडियो..सिनेमा..की जो लत लगी है वो सब दूसरी योनि में कहाँ मयस्सर होगा ? अब बताओ..इसके बिना कोई कैसे जी पायेगा ? अन्य योनियों में जाने से तो अच्छा है कि एक जनम और गरीबी-मंहगाई ही झेल लें.. इसी मनहूस मनुष्य योनि ही ‘चूस” कर लें यही ठीक रहेगा ....वैसे ऊपरवाले पर मुझे पूरा भरोसा है..वे सबका कल्याण करते हैं..हो सकता है अगली खेप में (अगले जनम में) वे मुझे किसी अमीर के घर कुरियर कर दे..तब फिर ये गरीबी-गरीबी का सारा खेल ही ख़तम..’

‘ अरे..तो मेरे बारे में भी दुआ कीजिये..मैं कहीं गरीबी में ही धंसी रह गई तो मेरा क्या होगा ?’ पत्नी उलाहना देते बोली.

‘ कुछ नहीं होगा भई ..हिंदी फिल्म देखती हो न..अधिकाँश फ़िल्में तो ऐसी ही कहानियों वाली होती है..हीरो अमीर तो हिरोइन गरीब..या फिर हिरोइन अमीर तो हीरो गरीब..और फिर बाई द वे ..तुम किसी अमीर के घर नहीं भी टपकी तब भी मैं तुम्हें गरीबों के बीच से ढूँढ़कर निकाल लूंगा..ये वादा रहा..चलो अब सो भी जाओ..तुम्हारे इस दौलतमंद अमीर हीरो को बहुत नींद आ रही है...’

इतना कहते पति चादर खींच सो गया और पत्नी अवाक हो उसे विस्फारित नजरों से निहारती कुछ चिंतित सी हो गई.

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प्रमोद यादव

गयानगर , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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रचनाकार: परसाई व्यंग्य पखवाड़ा : अगले जनम में..../ व्यंग्य / प्रमोद यादव
परसाई व्यंग्य पखवाड़ा : अगले जनम में..../ व्यंग्य / प्रमोद यादव
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