अनूप शुक्ल बीते कल 07:59 पूर्वाह्न बजे · व्यंग्य की जुगलबंदी -11 ---------------------------- इस बार की जुगलबंदी का विषय था -देशभक्ति ...
अनूप शुक्ल
व्यंग्य की जुगलबंदी -11
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इस बार की जुगलबंदी का विषय था -देशभक्ति का मौसम। खास बात रही Anshu Mali Rastogi का जुगलबंदी से जुड़ना। उनका लेख सबसे पहले आकर खड़ा हो गया फ़ेसबुक पर- ले भाई पढ मुझे। देशभक्ति में कोई चूक हुई हो तो बतायें। ’झुमका गिरा रे’ वाले शहर बरेली के रहवासी अंशुमाली हास्य-व्यंग्य में बिंदास लेखन के लिये जाने जाते हैं। कुल सात लोगों ने जुगलबंदी में इस बार लेख लिखे:
1. Arvind Tiwari
2. Nirmal Gupta
3. Ravishankar Shrivastava
4. Udan Tashtari
5. Yamini Chaturvedi
6. Anshu Mali Rastogi
7. अनूप शुक्ल
Arvind Tiwari
जी ने ’मौसमी देशभक्ति’ में छद्म देशभक्ति की सिलन उघाड़ते हुये लेख लिखा। उनके लेख के कुछ अंश:
1. इन दिनों देश भक्ति के पेड़ पर बेमौसम फल आ गए हैं।हर कोई इन्हें तोड़कर अपनी देशभक्ति साबित कर रहा है
2. देशभक्ति का यह सैलाब उन चीज़ों को बहाकर लाया है जो देश की मिटटी की मिटटी पलीद कर रहीं हैं।देश भक्ति अब साम्प्रदायिक हो चली है।इससे तो बेहतर है हम देशभक्ति दिखाना छोड़ दें।
3.इन दिनों की देशभक्ति उसी तरह है जैसे गम्भीर रोगी को अस्पताल न लेजाकर उसे झड़ फूंक के हवाले कर दिया जय।हमें उत्तर दिशा में जाना था मगर देशभक्ति के नशे में पूरब की ओर चले जा रहे हैं।मौसमी देशभक्ति अक्सर भ्रिमित करती हैं।उन्माद भी पैदा करती है।सड़क पर टायर जलाकर देशभक्त हो जाना शहीदों का अपमान नहीं तो क्या है।
अरविन्द जी का पूरा ले यहां बांच सकते हैं https://www.facebook.com/photo.php…
Nirmal Gupta
ने अपने लेख का विषय रखा - ’देशभक्ति के मौसम का रिपीट टेलीकास्ट’ भक्तिकाल के दुबारा टेलीकास्ट होने से अपनी बात शुरु की। उनके लेख के कुछ अंश:
1. देश बदल रहा हैl बदलते मौसम के साथ भक्ति के पैरामीटर बदल रहे हैंl समझदारी के नये मानक निर्धारित हो रहे हैंlमूर्खताओं का नया राग गढ़ा जा रहा हैl देशभक्ति एक ऑब्सलीट अभिव्यंजना है और राष्ट्रगान राष्ट्रव्यापी प्रहसनl
2.देशभक्ति के इस मौसम में देश किसी गरीब की जोरू की तरह है और तमाम प्रखर चिंतक प्रजाति के छिछोरे देवर उसे भौजी पुकार कर उसके साथ अश्लील मजाक करने की जुगत में हैंl
3. सही मायनों में अब समय आ गया है कि राष्ट्र गान के लिए किसी इका मीका का कोई हाई पिच रैप चुन लेंl रैप की धमक होगी तो राष्ट्रभक्ति का मौसम खुद-ब-खुद शानदार इवेंट बन जाएगाl
निर्मल गुप्त का पूरा लेख बांचने के लिये उनकी वाल पर पहुंचिये। जल्दी ही उनका व्यंग्य संग्रह आने वाला है-’हैंगर में टंगा एंगर।’
Ravishankar Shrivastava
जी ने भी पूरी देशभक्ति दिखाई और लेख लिखा-
’डीओटी : देशभक्ति ऑफ़ थिंग्स’। देशभक्ति से जुड़े तीन सीन दिखाये उन्होंने। उनका पूरा लेख यहां बांच सकते हैं http://raviratlami.blogspot.in/2016/12/blog-post.html. रविरतलामी के लेख के कुछ अंश (जो कि उनके देशभक्ति के प्लान हैं) आप यहां बांचिये:
1. “सर, एक जबरदस्त राष्ट्रवाद स्कीम का आइडिया लाया हूँ. सीधे पचास परसेंट का खेल हो सकता है. पूरे देश में मकानों-दुकानों-सरकारी-गैर-सरकारी बिल्डिंगों के बाहरी रंग को अनिवार्य रूप से तिरंगे रंग में करने का प्लान लाया जाए. टेंडर और वर्क-ऑर्डर तो सदा की तरह अपन मैनेज कर ही लेंगे. इस राष्ट्रवादी प्लान को हर ओर से समर्थन मिलेगा, विभाग को जबरदस्त फंड मिलेगा. विरोधियों की तो हवा गोल हो जाएगी क्योंकि कोई बोलेगा ही नहीं, क्योंकि जो बोला समझो वो राष्ट्रद्रोही मरा. सर, आपके एक और टर्म एक्सटेंशन के पूरे चांस हो जाएंगे.”
2. “सर, सिनेमाघर की तर्ज पर हर टीवी शो के पहले, हर रेडियोकार्यक्रम के पहले, हर वाट्सएप्प पोस्ट के पहले, हर फ़ेसबुक स्टेटस के पहले, हर इसके पहले, हर उसके पहले राष्ट्रगीत अनिवार्य किया जाना चाहिए और इसका पालन सुनिश्चित करने के लिए एक नौ-नॉनसैंन-फुलप्रूफ़, राष्ट्रवाद-रक्षक विभाग गठित किया जाना चाहिए. इस विभाग को जाहिर है 24X7 मॉनीटरिंग और इंसपैक्टिंग करनी होगी तो हर लेवल पर तगड़ा स्टाफ़ भी चाहिए होगा. तो देखिए कि कितनी संभावनाएँ बनती हैं. अपन अधिकांशतः तो अपनी ही विचारधारा के लोगों को भर्ती करेंगे और बाकी तो फिर आप समझ ही रहे होंगे...”
3. कण कण में भगवान वाले देश में कण कण में देशभक्ति और राष्ट्रवाद आ गया. देशभक्ति ऑफ़ थिंग्स की क्रांतिकारी अवधारणा ने देश में क्रांति ला दी, और बाढ़-सूखा-गरीबी-भुखमरी-अशिक्षा-गंदगी-भ्रष्टाचार-कालाधन आदि आदि समस्याएँ गौण होकर नेपथ्य में चली गई. पूरा देश फुल राष्ट्रवाद की आगोश आ गया.
समीरलाल
उर्फ़ Udan Tashtari देशभक्ति के बेईमान मौसम पर माउस चलाया। सेल्फ़ स्केच भी लगाया है। देखिये उनके लेखन के कुछ अंश:
1. कुछ मौसम ऐसे भी हैं जो मनुष्य ने बाजारवाद के चलते गढ लिये हैं. इनका आनन्द भी सक्षमतायें ही उठाने देती है. इसका सबसे कड़क उदाहरण मुहब्बत का मौसम है जिसे सक्षमएवं अमीर वर्ग वैलेन्टाईन डे के रुप में मनाता है फिर इस डे का मौसम पूरे फरवरी महीने को गुलाबी बनाये रखता है.
2. बेईमानी का मौसम? फिर अन्य मौसमों से तुलना करके देखा तो पाया कि इसे भी अमीर एवं सक्षम एन्जॉय कर रहे हैं. इससे बचने बचाने के उनके पास मुफीद उपाय भी है और कनेक्शन भी. कभी कभार बड़ा बेईमान पकड़ा भी जाये तो क्या? कुछ दिनों में सब रफा दफा और फिर उसी रफ्तार से बेईमानी चालू
3. इस मौसम का हाल ये है कि जो हमारे साथ में है वो देशभक्त और जो हमारा विरोध करेगा वो देशद्रोही? देश भक्ति की परिभाषा ही इस मौसम में बदलती जा रही है. देशभक्ति भावना न होकर सर्टीफिकेट होती जा रही है. सर्टिफाईड देशभक्त बंदरटोपी पहने, हर विरोध में उठते स्वर को देशद्रोह घोषित करने में मशगुल हैं. सोशल मीडिया एकाएक देशभक्तों और देशद्रोहियों की जमात में बंट गया है.
भय यह है कि कल को यह देशभक्ति का मौसम भी अमीरों और सक्षम लोगों के आनन्द का शगल बन कर न रह जाये और गरीबों और असक्षमों को फिर इस मौसम की भी मार सहना पड़े.
पूरा लेख यहां बांच सकते हैं http://udantashtari.blogspot.in/2016/12/blog-post_4.html
Yamini Chaturvedi
ने देशभक्ति के मौसम के बहाने बचपन की याद भी कर ली। उनके लेख से प्रसन्न हुये मथुरा के वकील Surendra Mohan Sharma ने टिपियाया - "व्यंग के दिग्गजों में हड़कम्प !!
व्यंग की दुनिया में यामिनी जी की धांसू एंट्री से घबड़ाकर कई दिग्गजों ने अपना पाला बदलने का मन बनाया ।
कानपुर के व्यंगकार छायावादी कविताओं की किताबें पलटते और दिल्ली / गाजियाबाद वाले साहब कॉमर्स की किताबों की धूल झाड़ते पाये गए ।
एक महानुभाव ने तो अपनी पूरी प्रतिभा ही सन्नी लियोनी जी को समर्पित कर दी ।
जय मथुरा जय मथुरा वाले ।"
यामिनी के लेख के कुछ अंश-
1. देशभक्ति पर हमने जो बचपन में निबंध रटा था, उसके अनुसार अपने देश और देशवासियों से प्रेम करना ही देशभक्ति है | बचपन कब का गया | हम तब भी इतने भोले नहीं थे कि निबन्ध को सच मान लेते | आप सुविधानुसार “भोले” के स्थान पर कोई भी शब्द पढने को स्वतंत्र हैं | मतलब हमें तब भी पता था कि ये सब सिर्फ निबंध तक ही है | कोई सच्ची में प्रेम थोड़े ना करना था |
2.हमारे सुप्रीम कोर्ट ने हम देशवासियों को देशभक्ति का क्रेश कोर्स कराने के लिए सिनेमा हॉल में देशभक्ति का सबक शुरू किया | पढ़ाई को मनोरंजक होना चाहिए, ऐसा हर शिक्षाविद कहता है, सुप्रीम कोर्ट ने इस से एक कदम आगे जाते हुए मनोरंजन को ही शिक्षा बना डाला |
3. जो व्यक्ति धुन बजने पर उठने की कोशिश करना शुरू करे और अंत तक जैसे-तैसे उठ के खडा हो पाए उसको पॉपकॉर्न में कोल्ड ड्रिंक मिला के दिया जाना चाहिए | जो धुन बजने के साथ ही खुद खड़ा हो और साथ वालों को उठने के लिए सचेत करे उसे पॉपकॉर्न फ्री में मिले | जो खुद खड़ा होने के साथ जो न खड़े हों उनके साथ मौखिक रूप से पारिवारिक सम्बन्ध स्थापित करे उसे पॉपकॉर्न कोल्ड ड्रिंक दोनों फ्री | जो साथ में राष्ट्रगीत पूरा गाये और अंत में भारतमाता की जय और इन्कलाब जिंदाबाद के नारे भी लगाए उसकी सीट के पास चीयरलीडर्स आ के डांस करें |
पूरा लेख बांचने के लिये आप इधर पहुंचिये -https://www.facebook.com/photo.php…
अंशुमाली
की उपस्थिति हासिल-ए-जुगलबंदी रही। वे सबसे पहले आये इस बार। रजाई में बैठकर लिखे उनके लेख के कुछ अंश:
1.सेंसेक्स के बाद एक सर्दी ही है, जिसका कोई भरोसा नहीं रहता- वो कब, कहां, कैसे अपनी ‘गिरफ्त’ में ले ले। इसीलिए दुर्घटना से भली सावधानी।
2. आजकल पहुंचे हुए देशभक्तों की देशभक्तियों को देख-सुनकर मैं भीतर तलक डर जाता हूं। न.. न.. ऐसा कतई नहीं है कि मुझे उनकी देशभक्ति पर शक है किंतु इत्ती मात्रा में उनकी भक्ति मुझे ‘बौना’ बना देती है। मैं बहुत कोशिश करता हूं खुद के भीतर उनकी जैसी देशभक्ति पैदा करने की मगर हर बार ‘फेल’ हो जाता हूं। हालांकि मुझे मेरी देशभक्ति पर पूरा यकीन है फिर भी कमी रह ही जाती है।
3.भक्ति, अ-भक्ति के इस तगड़े मौसम में खुद को दूर रखने में ही भलाई है प्यारे।
फिलहाल, नोटबंदी के मुद्दे ने लोगों को दो-तीन धड़ों में बांट दिया है। समस्या यह है, जिसके साथ खड़े हो तो अगला मुंह बिगाड़ने लगता है। समर्थन को ‘दिल’ पर न लेकर सीधा ‘देशभक्ति’ पर ले जाता है। फिर एक लंबा-चौड़ा लेक्चर पिलाता है। लाइन में खड़े लोगों को रही परेशानियों का वास्ता देता है। और खुद फेसबुक या टि्वटर पर बैठे-बैठे शब्दिक जुगालियां-जुगलबंदियां करता रहता है। देशभक्ति की बहती गंगा में खुद भी हाथ धोता रहता है।
अंशुमाली का पूरा लेख इधर बांचिये आकर -https://www.facebook.com/photo.php?fbid=148075012339528&set=a.127739881039708.1073741828.100014110890413&type=3&theater
अनूप शुक्ल
आखिरी लेख अपन ने लिखा। लेख के मुख्य अंश ये रहे:
1. आजकल मिलावट का जमाना है। हर तरफ़ मिलावट हो रही है। ईमानदारी में बेईमानी, राजनीति में धूर्तता , देशभक्ति में गद्दारी, सफ़ेदधन में कालेधन की इतनी महीन मिलावट होने लगी है कि पहचानना मुश्किल होता है। इसी तरह मौसम में भी मिलावट होने लगी है। कब जाड़े में पानी बरसने लगे कहना मुश्किल। जाड़े में कब पंखे चलने लगें यह भविष्यफ़ल बताने वाले भी नहीं बता पाते।
2. टाप क्लास की देशभक्ति ऊपर के 1% तबके की होती है। इनके कब्जे में देश के 90% संसाधन होते हैं। वे लोग जो कुछ भी करते हैं वही देशभक्ति होती है। उनकी हर लीला देशभक्ति है। उनके द्वारा की गई हर लूटपाट, गड़बड़ी, गद्दारी को देशभक्ति के खाते में जोड़ा जाता है। इनकी देशभक्ति के हाथ कानून के हाथ से भी लम्बे होते हैं। देशभक्ति के काम में सहयोग के लिये वे सरकारों को काम पर रख लेते हैं।
3. इन दोनों तबको के अलावा तीसरा तबका है। आबादी में सबसे बड़ा। औकात के लिहाज से सबसे गरीब। ऊपर के दोनों के तबके इस तबके की भलाई के नाम पर इसकी ऐसी-तैसी करते रहते हैं। सरकारें इसकी भलाई के लिये काम इस तरह काम करती रहती हैं, इसको पता ही नहीं चलता। देश इसके भले के लिये बहस करता रहता है, इसको सुनाई ही नहीं देता। देश इसको मुख्यधारा में लाने का हल्ला मचाता रहता है। हर हल्ले के साथ यह तबका देश की मुख्यधारा से और दूर धकिया दिया जाता है।
पूरा लेख आप यहां बांच सकते हैं https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10209839964289251
यह रही जुगलबंदी की संक्षिप्त प्रस्तुति। आपको कैसी लगी बताइये।
अगली जुगलबंदी का शीर्षक भी सुझाइये।
फ़िलहाल इतना ही। शेष अगली जुगलबंदी में।
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Surendra Mohan Sharma आप तो जयप्रकाश नारायण जी की तरह व्यंग की "सम्पूर्ण किरांती " करने पर आमदा हैं ।
अच्छा लिखा है सभी लेखकों ने । मन गदगद हुआ ।
अनूप शुक्ल आप लगता है हमको जसलोक भेजने की व्यवस्था में जुट गए। जयप्रकाश जी महान थे। व्यंग्य में क्रांति की आग तो हमेशा से जल रही है। सब जगह धुंआ उड़ रहा है। ;)
Arvind Tiwari बढ़िया समीक्षा।निर्मल गुप्ता सहित सभी ने अच्छा लिखा और बहुत स्तरीय लिखा।आपको बधाई इस आयोजन हेतु।
अनूप शुक्ल आभार आपकी प्रतिक्रिया के लिए।
Anshu Mali Rastogi शुक्रिया रहेगा सर।
अनूप शुक्ल स्वागत है। अब नियमित लिखिए।
Udan Tashtari धांसू रिपोर्ट!! जिओ
पसंद · जवाब दें · 1 · बीते कल 08:14 पूर्वाह्न बजे
अनूप शुक्ल धन्यवाद। जी गए।
एम.एम. चन्द्रा बहुत खूब
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