दिसंबर में देश / व्यंग्य की जुगलबंदी-14 / अनूप शुक्ल

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अनूप शुक्ल · 29 दिसंबर 2016 व्यंग्य की जुगलबंदी 14 का विषय था ’दिसम्बर में देश’। इस बार व्यंग्य के खलीफ़ा Alok Puranik ,जो कि अभी अपने ...

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अनूप शुक्ल·29 दिसंबर 2016

व्यंग्य की जुगलबंदी 14 का विषय था ’दिसम्बर में देश’। इस बार व्यंग्य के खलीफ़ा Alok Puranik ,जो कि अभी अपने को अभी व्यंग्य का विद्यार्थी ही मानते हैं क्योंकि छात्रों को कई तरह की छूट मिलती है, ने भी इसमें शिरकत की।

लखनऊ से व्यंग्यकार Alankar Rastogi ने भी व्यंग्य की जुगलबंदी में लिखना शुरु किया। अलंकार का दूसरा व्यंग्यसंग्रह ’सभी विकल्प खुले हुये हैं’ इसी सितम्बर में प्रकाशित हुआ है। इस व्यंग्य संग्रह के बारे में आप इस लिंक पर पहुंचकर पढ सकते हैं। ( https://www.facebook.com/anup.shukl... ). अलंकार के इस व्यंग्य संग्रह के कुछ पंच आप इस लिंक पर पढ सकते हैं https://www.facebook.com/anup.shukl...

अभी इसके अलावा हमारे फ़ेसबुक के सक्रिय साथी विनय कुमार तिवारी जो कि रोजमर्रा की घटनाओं पर रोचक, संवेदनशील पोस्टलिखते रहते हैं भी सोचते-सोचते व्यंग्य के अखाड़े में कूद पड़े और जुगलबंदी की शुरुआत की।

शुरुआत तो हमारे बनारसी साथी Devendra Kumar Pandey उर्फ़ बेचैन आत्मा ने भी की। देेवेन्द्र प्रतिदिन अपनी रेल यात्रा के किस्से ’लोहे का घर’ सीरीज में करते रहते हैं। हालांकि देवेन्द्र बस शुरुआत करके ही निकल लिये। शायद उनको गाड़ी पकड़नी रही होगी।

अन्य साथी जिन्होंने व्यंग्य की जुगलबंदी-14 में शिरकत की उनके नाम इस प्रकार हैं।

Arvind Tiwari, Nirmal Gupta, DrAtul Chaturvedi Udan Tashtari Ravishankar Shrivastava Anshu Mali Rastogi Indrajeet Kaur Anshu Mali Rastogi Yamini Chaturvedi अनूप शुक्ल

Sanjay Jha Mastan इस बार व्यस्तता के कारण लिख नहीं पाये। वे नये साल के दूसरे हफ़्ते से फ़िर से लिखना शुरुआत करेंगे।

तो जिन साथियों ने इस बार पहली बार शिरकत की उनके लेख से शुरुआत करते हुये संक्षेप बताते हैं कि जुगलबंदी में क्या-क्या लिखा गया। शुरुआत आलोक पुराणिक से।

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1. Alok Puranik ने दिसंबर में देश के हाल बयान करते हुये नोटबंदी की समस्या से निपटने के लिये रजाई के महत्व पर गहन विमर्श किया। उनके हिसाब से तमाम समस्याओं के हल रजाई में छिपे हुये हैं। पूरा लेख आप इधर पहुंचकर बांच सकते हैं https://www.facebook.com/puranika/p... लेकिन जब तक आप उधर पहुंचे तब तक उनके लेख के कुछ अंश हम आपको पढ़वाये देते हैं:

(i) मेरा अंदाज है कि रजाई का आविष्कार किसी महिला ने नहीं, पुरुष ने किया होगा। आलसियों की मेरिट लिस्ट में महिलाओं के आने की संभावनाएं कम ही होती हैं। विशुद्ध कामचोरी, काहिली और परम आराम के चाहक किसी पुरुष ने कपड़े और रुई को जोड़ा-गांठा होगा और फिर उसमें घुस गया होगा।

(ii) रजाई आलसियों का न्यूक्लियर बम है। इसके अंदर हो जाओ, तो बाहर की ताकत कुछ नहीं बिगाड़ सकती। रजाई में घुस जाओ, तो बीबी कितनी ही जोर से दहाड़ ले, कुछ असर नहीं पड़ता। बच्चे चाहे कितनी हो जोर से चाऊं-जाऊं कर ले, कोई फर्क नहीं पड़ता।

(iii) मुझे लगता है कि विश्वामित्र जैसे तपस्वियों की साधना तोड़ने में जहां-जहां बड़ी-बड़ी अप्सराएं फेल हो गयी हैं, वहां इंद्र यह कर सकते थे कि भारी सर्दी मचा देते और फिर एक रजाई का आफर विश्वामित्र को दिया जाता। भयंकर ठंड में कुड़कुड़ाते हुए ऋषिवर कहते- ला रजाई दे ही दे। मेनका मुझे ना जीत पायी, पर रजाई ने जीत लिया। रजाई संयम की अंतिम परीक्षा है।

2. Alankar Rastogi ग्लोबल वार्मिंग से शुरु करके वाया हॉट सनी लियोने होते हुये गर्ल फ़्रेंड के पास पहुंचे। इसके बाद ’गृहस्थ की दौड़ घर तक’ फ़ार्मूले के हिसाब से ’श्रीमती शरण’ पहुंचे तो उन्होंने नहाने के लिये धमका दिया तो अलंकार को कम्बल याद आये। अलंकार का पूरा लेख आप यहां https://www.facebook.com/rastogi.al... पहुंचकर बांच सकते हैं । हम आपको उसके मुख्य अंश पढ़वाते हैं:

(i) मौसम की ठण्ड अब ख़तम होकर नेताओं के मिजाज़ में शिफ्ट हो गयी है . उनकी जन सेवा की सारी गर्मी चुनाव जीतते ही दिसंबर की नर्मी में बदल जाती है . उनके लिए ठण्ड ही आदर्श की पराकाष्ठा होती है.

(ii) किसी नेता को गर्मी तभी महसूस होती है जब उसे महज कागजों में दर्ज़ जनसेवा के बदले धनमेवा ग्रहण करने को मिलती है . चुनाव प्रचार के दौरान उसके भाषण में जो आग दिखाई पड़ती है वही बाद में किसी ठन्डे पेय के झाग की तरह फुस्स हो जाती है . पांच साल गुज़रते ही यही ठण्ड किसी स्विस बैंक खाते की गर्मी बन जाती है .

(iii) हमारी ठण्ड तो खैर रजाई के आनंद में निकल जाएगी . लेकिन जब हमारी नज़रे फुटपाथ पर सोते हुए किसी गरीब पर पड़ती है तो दिल से यही ख़याल आता है .काश ऊपर वाला इन पर भी नज़रे इनायत करता . या फिर एक अदद चुनाव ही करवा देता ताकि नेता लोग अपने लोकहितकारी होने का ढोंग पीटने के लिए ही उन्हें कम्बल बाँट देते . ठण्ड से मरते गरीबों का बढ़ता हुआ आंकड़ा सुनो तो लगता है पहले कमीशन बंटेगा और तब कम्बल .

प्रसंगवश बताते चलें कि Alankar Rastogi ने अपने मित्रों के साथ निराश्रितों को कपड़े और चाय रस बांटने का पुण्य काम किया। उसके लिये वे बधाई के पात्र हैं। कुछ फ़ोटो इधर देख सकते हैं https://www.facebook.com/rastogi.al...

3. विनय कुमार तिवारी व्यंग्य की जुगलबंदी में शामिल होने की सोचते-सोचते लिख बैठे दिसम्बर में देश। शुरुआत कांसेप्ट क्लियर न होने की बात से की। फ़िर ऐसा क्लियर हुआ कि लेख पूरा होकर ही माना। इस बीच वे टोल-बूथ वालों का खाना बनाने वाले से बतियाय, लाइनबाजों पर निगाह मारे। देखिये लेख इधर पहुंचकर https://www.facebook.com/vinaykumar... विनय जी के लेख के कुछ अंश यहां बांचिये:

(i) पूरे दिसंबर यह देश बिना किसी क्लियर कांसेप्ट के चलता रहा..दिसंबर में रोज-रोज देश का कांसेप्ट बदल रहा था..इस मामले में यह दिसंबर देश में अद्भुत तरीके से गुजरा...

(ii) दिसंबर में देश की बातें मुँह-सोहासी टाइप की ही रही। जहाँ जो जैसा दिखाई दिया उसी को ताड़ते हुए बोल दो। मतलब, जिसको जैसा देखो उसके मन की वैसा ही बोल दो टाइप का..! पूरे दिसंबर भर, कोई अन्दर की बात बताता दिखाई नहीं दिया..जैसे, सभी अपनों के चेहरे ताक-ताक बोलते दिखाई देते रहे...

(iii) इस दिसंबर में देश के लाइनबाजों का जलवा रहा है, क्योंकि लाइन के पीछे की महीन बात यही समझते हैं.. कुछ को ईडी, इनकमटैक्स वाले ढूँढ़ रहे तो कुछ को अपन ढूँढ़-ढूँढ़ कर पढ़ते रहे..ये दोनों टाइप के लाइनबाज आम आदमी के कांसेप्ट को लाइन में धकियाते देख खूब मजे ले रहें हैं, तथा अपन वाले लाइनबाज इनपर अपने-अपने तरीके का व्यंग्य कर रहे हैं, ताली बटोर रहे हैं।

4. Devendra Kumar Pandey ने जुगलबंदी की घोषणा की अपनी वाल पर। चार लाइन लिखीं भी। लेकिन अभी दिख नहीं रही। लगता है उतर लिये गाड़ी से कोई एक्सप्रेेस पकड़ने के लिये।

5. Arvind Tiwari जी ने अपने लेख में गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को सिद्ध करने के लिये छत गिराने का करते हुये सोनम गुप्ता के उधर भी झांक आये और दिसम्बर में ’कैजुअल महिमा’ भी बयान कर दी:

देह भर में धूपमेंहदी सी रची है आज हम घर पर रहेंगे है दिसम्बर कैजुअल बाक़ी बची है आज हम घर पर रहेंगे

अरविन्द जी के अनुभवी लेख का पूरा मजा लेने के लिये इस लिंक पर पहुंचिये https://www.facebook.com/permalink.... लेख के कुछ अंश हम आपको यहीं पढ़वाये देते हैं:

(i) इस बार धूप और कोहरे के मायने बदले हुए हैं।जिस दिन बैंक और एटीम से पैसे निकल रहे हों वह धूप भरा दिन माना गया और जिस दिन नो कैश का बोर्ड लगा मिला वह बेहद ठंडा कोहरा भरा दिन।मतलब मनुष्य ने प्रकृति को भी बदल दिया।

(ii) नवंबर की गुलाबी ठण्ड में शुरू हुई सोनम गुप्ता बेवफ़ा की लवस्टोरी दिसम्बर तक खूब खिंची।आमिर खान की दंगल नहीं आती तो टीवी पर अब भी संसद का दंगल दिखाया जा रहा होता।

(iii) हर दिसम्बर की तरह देश में कोहरा है गरीबों के लिए अव्यवस्थाओं के पर्याय रेन बसेरे हैं मगर नोटबन्दी की ठण्ड से किसी को राहत नहीं मिल रही।नोटबन्दी को विकलांग व्यवस्था को धावक बताने की मुहिम जोर शोर से जारी है।गुरुत्वाकर्षण बल को सिद्ध करने के लिए बनी बनाई छत को फ़र्श पर गिराया गया ताकि आम आदमी न्यूटन के इस नियम को बेहतर ढंग से समझ ले।दुकान और कारखाने वाले मजदूरों के साथ उनके मालिक भी अलाव पर दिसम्बर को ताप रहे हैं।दुकानदार के मुंह से बरबस निकलता है काश कोई नौकरी मिल जाये।

6. Nirmal Gupta ने दिसम्बर में देश का दिगम्बर सच दिखाया। 365 दिन देखने के लिये गरदन 360 डिग्री घुमाते हुये नये साल का सपना वाया ग्रीनविच, राजनीति, नोटबंदी, गरम कपड़ों, डिजिटल स्कीम होते हुये रियाया के दुखदर्द की चिंता तक पहुंचा। पूरा लेख बांचिये इधर पहुंचकर https://www.facebook.com/gupt.nirma... हम आपको इसके कुछ अंश पढ़वाते हैं:

(i) राज दरबारों में अर्थशास्त्र के अष्टावक्रों का दर्शन अभी और उजागर होना है।दिसम्बर के देश को वाकई नहीं मालूम कि जनवरी को इस बार कैसे खुशामदीद कहना है।

(ii) सरकारें जनता को देने के लिए मुफ्त गिफ्ट के तमाम सामान ढूंढ रही हैं।धड़ाधड़ शिलान्यास कर रही है।अम्मा की किचिन की तर्ज पर बाबूजी के ढाबे की डिजिटल स्कीम बना रही है।वे नहीं जानती कि अम्मा और बाबूजी के ममत्व में कितना बेसिक फर्क होता है।

(iii) दिसम्बर के महीने में यदि नोटबंदी का हड़कम्प न मचा होता तो देश अब तक कितनी है योजनायें अपने बलबूते पर बना चुका होता।नये साल को टेरने के लिए मदिरादि के क्रय के लिए तैयारी कर रहा होता।किसी के सलोने गाल को ठंडे हाथों से स्पर्श कर नेह प्रदर्शन का मौका तलाश रहा होता।अगले बरस कुछ कर गुजरने के बजाये अकर्मण्यता का पुनर्पाठ कर रहा होता।प्यार के इज़हार के लिए गले में अटके शब्दों के वमन की तकनीक तलाश रहा होता।सरकार (या सरकारों ) को पानी पी पी कर कोसने और वोट देने के लिए अपने जातिगत बिरादर को तलाश रहा होता।

7. DrAtul Chaturvedi ने दिसम्बर में देश को विसंगतियों के कोलॉज की तरह देखा। गोवा के मस्ती करते सैलानियों से लेकर गांव के पस्त नौजवानों तक नजर फ़िराई। जबानी जंग के धूसर रंग से लेकर किसानों के कृशकाय स्केच देखे। तेजी से होते डिजिटल समय में क्रिटिकल होते हाल देखे। नित नए नियमों की लक्ष्मण रेखाएं और असहाय जानकी सी किंकर्तव्यविमूढ़ जनता की सुधि ली। पूरा लेख आप इधर पहुंचकर बांचिये https://www.facebook.com/atul.chatu... लेख के कुछ अंश इधर ही देखिये:

(i) पहचानना भी मुश्किल है कि कौन रहबर है और कौन रहजन ? सब गड्ड मड्ड हो गया है । धुंध में पहचान स्थगित हो जाती है और संदेह विस्तार पा लेते हैं । सही गलत का निर्णय कठिन हो जाता है । जिंदगी अनुमानों की बैसाखियों पर यात्रा करती दिखायी पड़ती है । गंतव्य ओझल हो जाते हैं और हौंसले हिचकोले खाने लगते हैं । दिसंबर एक तरह से लिटमस टेस्ट का महीना है ।

(ii) रजाई का आकर्षण किसी नवयौवना सा रह रहकर बांधता है । देह की सिहरन का संगीत उसमें अजब सी मादकता भरता है । आलस्य दुबकना चाहता है लेकिन कर्तव्य पथ ललकारता है । निर्णय की दहलीज पर आप खड़े हुए सोचते हैं कि किधर जाएं । ठंड़ी तीखी हवा के शर आपको विरोधियों की छींटाकशीं की तरह निरंतर बेंधने में लगे हुए हैं ।

(iii) शहर में इन दिनों भारी आपाधापी चल रही है । गहरे षडयंत्र आकार ले रहे हैं , दीर्घ सूत्रीय कामनाएं बलवती हो रही हैं । और इन सबके बीच स्वयं को ईमानदार बनाए रखने की जद्दोजेहद भी बादस्तूर कायम है । दिसंबर के कैनवास पर इन तमाम दृश्यों के बीच एक उम्मीद का टटका सूरज भी दिखायी दे तो बात बने । कयासों और कुहासों के बीच इस सूरज को बचाए रखना ही हमारी कोशिश होनी चाहिए । दिसंबर की इस कश्मकश की अकथ कहानी इन प्रयासों की एक मुनादी भर है ।

8.Udan Tashtari उर्फ़ समीरलाल ने रजाई में घुसकर देश को देखा और बलभर देखा। कोई अच्छे दिन के इंतजार में दिखा उनको कोई एटीएम में कैश के इंतजार में। उनकी नजर से देखा गया देश दैनिक हिन्दुस्तान को भी भाया और उसने उसके अंश अपने अखबार में छापे। समीरलाल का लेख बांचने के लिये इधर आइये https://www.facebook.com/udantashta... लेख के मुख्यअंश :

(i) अक्सर अपनी परेशानी में उलझा व्यक्ति दूसरे की समस्याओं पर ध्यान हीं नहीं दे पाता और उसे लगता है कि शायद सामने वाला भी उसी समस्या का जबाब चाह रहा है जिससे वह जूझ रहा है.

(ii) कोई समझता रहा कि उसे अच्छे दिनों का इन्तजार है तो किसी ने समझा कि अपने मोबाईल में नेटवर्क आने के इन्तजार में है. कोई समझ रहा था कि शायद कोहरे के चलते अब तक न आई किसी बस का इन्तजार कर रहा है तो कोई समझ रहा था कि कल शाम से गुल बिजली के आने का इन्तजार है. एक की नजर नल पर थी कि शायद वह पानी आने का इन्तजार कर रहा है.

(iii) उसने देर रात ही एटीएम की कतार में खड़े खड़े सीने में दर्द का अहसास किया था और जमीन पर लेट गया था. कतार छोड़ता तो शायद कल फिर रुपये न निकाल पाता. पड़ोस से न जाने कौन उसे रजाई उठा कर डाक्टर लाने का वादा करके चला गया था. वो उसी के आने का इन्तजार कर रहा था. घंटो बाद अभी वह व्यक्ति लौटा किसी डॉक्टर को लिवा कर जिसने आते ही उसकी नब्ज टटोल कर उसके मृत होने की घोषणा कर दी.

9. Ravishankar Shrivastava उर्फ़ रविरतलामी ने “दिसम्बर में देश गर्म है “ कहते हुये बेचारे दुकालू को देश के हाल देखने के लिये निकाल दिया। खुद रजाई में बैठे कमेंटरी करते रहे। आप भी सुनिये उनकी कमेंटरी इस लिंक पर पहुंचकर http://raviratlami.blogspot.in/2016... हम आपको कुछ अंश पढ़वाते हैं

(i) सामने स्मार्ट सिटी की नींव खुद रही थी। काम जोर शोर से चल रहा था। होरी नींव खोदने के दिहाड़ी काम में लगा था। होरी ने जब से होश संभाला है तब से उसने दैत्याकार भवनों की नींव ही खोदी है। अनगिनत भवनों को उनकी नींव की मजबूती होरी के पसीने की बूंदों से ही मिली है। लगता है जैसे सर्वशक्तिमान परमपिता परमेश्वर ने उसे खास इसी काम के लिए बनाया है।

(ii) सचिवालय के भीतर का बाबू जगत पसीने से तरबतर था। बजट वर्ष के खत्म होने में महज दो माह बचे थे और फंड का एडजस्टमेंट करना जरूरी था नहीं तो फंड के लैप्स हो जाने का खतरा था। फंड लैप्स हुआ तो साथ ही अपना हिस्सा भी तो होगा। आसन्न खतरे से निपटने के जोड़ जुगाड़ मैं जूझते बाबू लोग पसीना पसीना हो रहे थे। एसी की हवा भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रही थी।

(iii) गली के मुहाने पर ओवरफ्लो हो रहे कचरे के डिब्बे के पास एक आवारा कुतिया अपने पिल्लों के साथ कचरे में मुंह मार रही थी। पास ही दीवार पर स्वच्छ भारत अभियान का पोस्टर चिपका था जिसे किसी मनचले ने किनारे से फाड़ दिया था। दुकालू को बड़ी जोर की ठंड लगी। वह जल्दी से अपनी झोपड़ी में घुसा और कथरी ओढ़ कर सो गया।

1o. Anshu Mali Rastogi ने दिसंबर, रजाई और देश में तैमूर, दंगल, गुलाबी नोट होते हुये मस्ती मूड में आया और सन्नी लियोनी और पूनम पांडे के हाट वीडियो तक पहुंचा। उनका पूरा लेख यहां बांच सकते हैं https://www.facebook.com/anshurstg/...

(i) दिसंबर में देश को करीना-सैफ से एक नया नन्हा मेहमान मिला। मगर नन्हें मेहमान के दुनिया में आते ही उसके ‘नाम’ पर ऐसी जूतम-पैजार मची, ऐसी जूतम-पैजार मची कि सारा का सारा सोशल मीडिया ही इस बहस में कूद लिया। कुछ उसके नाम के समर्थन में खड़े दिखे तो कुछ विरोध में।

(ii) अपना तो हमेशा से मानना रहा है कि हर अच्छी चीज की तारीफ होनी चाहिए। फिर भी, जिन्हें ‘दंगल’ की कामयाबी या तारीफ पर एतराज है, वे लंबी तानकर सोएं। बाहर ठंड बहुत है।

(iii) दिसंबर में देश में यहां-वहां से पकड़े गए गुलाबी नोटों की रंगत भी खूब तारी रही। नजरें जहां-जहां दौड़ीं गुलाबी नोटों की रंगत देखकर आंखे चौंधियां गईं। बताइए, हमारे देश के कथित अमीरों कने कित्ता नोट है। इत्ता कमाने के बाद भी नोट के प्रति उनकी भूख कम नहीं होती। किसी ने गुलाबी नोटों को अपने गुसलखाने में छिपाकर रखा तो किसी ने तहखाने में दबाकर। क्या चाय वाला, क्या भिखारी, क्या रद्दी वाला तक करोड़ों-करोड़ों के मालिक निकले।

11. Kamlesh Pandey ने प्रगति पर उतारू देश को जनवरी से दिसंबर तक दौड़ाया। देश के धुंधलेपन को देखा। डिजिटल होते देश में स्त्रियों के साथ होते व्यवहार पर नजर दौड़ाई और असंगठित मजदूरों के दर्द महसूस कराया। उनका लेख इधर देखिये https://www.facebook.com/kamleshpan... लेख के मुख्य अंश:

(i) दिसंबर तो दिसम्बर जैसा ही है- धुंधला-धुंधला, सिकुड़ा हुआ-सा और खासा प्रदूषित, पर मानों न मानों देश कुछ बदल गया है. वो ए टी एम की कतार में कैश की आस में खड़ा है और लगे हाथों डिज़िटल होने की फ़िराक में भी है, यानि परस्पर विरोधी गतिविधियों में उलझा ज़रा कन्फ्यूज़ है. सत्तर सालों से जमी धूल को झाड़ने की कोशिश में सब ओर धुंध फैलाए बैठा है.

(ii) पल-पल नियम- क़ानून बदल रहा है. बेईमानों को धमका रहा है और ईमानदारों को कष्ट झेलने को हौसला आफजाई कर रहा है. छुट्टियों के मज़े भी ले रहा है, पर कुछ सहमे हुए. थोड़ी-बहुत किफ़ायत के साथ या मांग-जांच कर बच्चों की शादियाँ भी निबटा रहा है. नए छपे नोटों का ग़बन भी कर रहा है और छापे मार कर बरामद भी

(iii) क्या देश में स्त्रियों की ओर देखने की नज़रें शालीन हो गई हैं? क्या सीमा पर सेनायें दुश्मनों से गलबहियां किये बैठी हैं? क्या समृद्धि के किले रातों-रात भहरा कर ढह गए हैं? क्या सीमा-पार सरक चुकी और बेनामी ज़मीनों-मकानों व् तिजोरियों में पनाह लिए बैठी संपत्ति बुर्का हटा कर खुले में आ गई है? क्या आर्थिक विकास दर एक दम उछल कर अपने ग्राफ के सर पर चढ़ बैठा है? या फिर देश ये सोच कर बैठ गया है कि एक बार बस डिज़िटल हो लें तो इन सब को देख लेंगे.

नोटबंदी के सदमे से उबरने में क्या देश को एक और दिसंबर लगेगा?

कमलेश पांडेय के व्यंग्य लेखन का मिजाज जानने के लिये उनके व्यंग्य संग्रह आत्मालाप की समीक्षा इधर पहुंचकर बांचिये https://www.facebook.com/anup.shukl...

12. Indrajeet Kaur व्यस्तता में भी समय निकालकर जुगलबंदी के लिये समय निकालती हैं। उनके इसी जज्बे को देखते हुये आपको उनका पूरा लेख यहीं पढवाते हैं वैसे लिंक यह रहा उनके लेख का https://www.facebook.com/indrajeet....

“विद्वजनों ने यह तो बता दिया कि वीरों का कैसा हो बसन्त पर यह बताने से चूक गये कि देश का कैसा हो दिसम्बर। जी हाँ वही दिसम्बर जिसके पीछे 'नव -अम्बर' हो और बाद में एक- दो की नहीं 'जन -वरी' आने वाली हो। नव अम्बर नाम जरुर है पर दिखा नहीं। हाँ इसके सपने दिखाकर पुराने अम्बर जरुर उतरवा लिये गये परिणाम यह कि दिसम्बर में देश दिगम्बर हो गया। हालाँकि दिगम्बरी की मियाद खत्म होने वाली है पर 'जन' की 'वरी 'यह है कि जनवरी में क्या होगा और क्या नहीं। सारा भार दिसम्बर पर है। वह गया समय जब दिल में सावन का महीना ही आग लगाता था अब तो इसके लिये दिसम्बर जी ही काफी हैं। आप सोच रहें होंगे कि सर्द माह और आग? जरूर लेखन का तात्विक पक्ष कमजोर है। जब दिल का रास्ता ही आँखों से न होकर जेब की साइज से हो गया हो तो दिसम्बर में दिवालापन क्या खाक सर्दी पैदा करेगा । जेब की आग दिल तक तो पहुँचेगी ही। ऐसा लगता है सारा देश दिसम्बर में कुूछ -कुछ ऐसे ही गर्म अम्बर के नीचे रहकर प्लास्टिक मुस्कानें बिखेर रहा है। “

13. Yamini Chaturvedi के लिखने में घर-परिवार अपने आप टहलता हुआ आ जाता है।’पारिवारिक व्यंग्य’ लिखती हैं यामिनी। कैलेंडरों में भी सास-बहू-ननद-भौजाई-देवर के रिश्ते देखने की अनूठी नजर है उनकी। जल्दी ही उनकी गिनती नियमित व्यंग्यकारों में होनी चाहिये। उनके इस बार के व्यंग्य को बांचने के लिये आप इधर पहुंचिये। https://www.facebook.com/yamini.cha... हम आपको उनके लेख के अंश पढ़वाते हैं।

(i) शुरू वाला कैलेंडर पड़ोस की किसी नवब्याहता भौजाई जैसा सा होता है जिसके ढेरों मुंहबोले देवर दिन रात उसे घेरे रहते हैं और दिसम्बर वाले कैलेंडर की हालत चंद सालों में उस से सुंदर किसी अन्य भौजाई के आने पर अकेली पड़ी भाभी सी होती है | नए कैलेंडर का पहला पन्ना भी शायद इसीलिए रंगीन बनाया जाता है | बाकी सभी महीनों के पन्ने ब्लैक एंड वाइट सादा से, बस जनवरी ही कुछ ऐसी लगती जैसे लड़के वालों के सामने कोई कन्या लीप पोत कर खड़ी कर दी गयी हो |

(ii) दिसम्बर के आखिरी हफ्ते के कहीं पहले से ही जनवरी एडवांस में नए साल के मेसेज के जरिये अपनी धमक दिखाने लगता है | बेचारा दिसम्बर इस प्रकार सकपकाया सा एक कोने में दुबका रहता है जैसे अपटूडेट बहू के सामने देहाती सास सर झुकाए खड़ी रहे |

(iii) इस साल “सौ सुनार की एक लोहार की” तर्ज पर दिसम्बर ने जनवरी से ले कर अक्टूबर तक सबको एक ही बार में धो डाला | उसने बाकी महीनों में फूट डाल कर नवम्बर को फुसला कर अपने साथ मिला लिया और षड्यंत्र कर नोटबंदी घोषित करवा दी | अबकी बार दिसम्बर ने न्यू इयर मनाने को उतारू भीड़ को कैशलेस न्यू इयर मनाने का चैलेंज दे दिया है | कुछ कुछ “आइस बकेट चैलेंज” सरीखा | अब जनता की घिग्घी बंधी हुई है |

14. अनूप शुक्ल दिसम्बर में देश को कम्बल में बैठे कन्याकुमारी को देखने से शुरु किया । इसके बाद कोहरे, सांता, नोटबंदी होते हुये सड़क पर लेटे हुये नशे में डूबे हुये आदमी को देखते हुये रंग-बिरंगी कनात देखते हुये ’दिसम्बर में देश’ की बहुरंगी धज देखी। पूरा लेख यहां पढ सकते हैं https://www.facebook.com/anup.shukl... लेख के कुछ अंश यहां देखिये:

i) कोहरे के कारण ही शायद रिजर्व बैंक से निकले नोट भटककर एटीएम की जगह लोगों की तिजोरियों , तहखानों में पहुंच गये। दोष बेचारे बैंकरों और बिचौलियों को दिया जा रहा है।

(ii) कोहरे की आड़ में नकली नोट असली नोटों के गले में हाथ डालकर रिजर्व बैंक में जमा हो गये हैं। काला धन और काला होकर नोटों के बीच मुंड़ी घुसाकर छिप गया है। नकली नोट असली नोटों के साथ इस कदर गड्ड-मड्ड हो गये हैं जैसे ईमानदारी के साथ काहिली और गैरजिम्मेदारी। दोनों को अलग करना मुश्किल हो गया है।

(iii) हर समस्या की एक सेल्फ़ लाइफ़ होती है। उसके बाद समस्या अपने-आप खत्म हो जाती है। नयी समस्या को जगह देने के लिये दुकान बढाकर चल देती। देश की हर बड़ी समस्या का इलाज इसी अचूक मंत्र से संभव है !

इसके और भी कुछ साथियों ने लेख लिखे हों शायद उनका जिक्र देखते ही करेंगे। तब तक के लिये आप मजे कीजिये।

अपडेट

15. प्रदीप शुक्ल जी ने सबसे पहले लिखा था लेख ! और उनका ही रह गया चर्चा होने से ! भीषण गोलमाल। लेकिन गलती सुधारते हुये अपडेट में प्रदीप जी की रचना का जिक्र करते हैं। पहली बार शामिल हुये हैं प्रदीप जी जुगलबंदी में। अवधी के कवि। हाल ही में उप्र सरकार द्वारा सम्मानित भी हुये। नोटबंदी के मौके पर मधुशाला की उनकी लिखी पैरोडी व्हाट्सएप और अन्य जगहों पर टहलती रहीं। पहला बंद देखिये:

सब्जी ले आने को घर से चलता है जब घरवाला ' किस दुकान जाऊँ ' असमंजस में है वह भोला भाला दो हजार का नोट देख कर उसको सब गाली देंगे और इसी असमंजस में वह पहुँच गया फ़िर मधुशाला

व्यंग्य की जुगलबंदी में उनके लेख को पूरा बांचने के लिये इधर आइये। https://www.facebook.com/drpradeepk... जनवरी से शुरु करके भयंकर गर्मी से गुजारते हुये काका के पास पहुंचे और देश के हाल बयान किये। उनके लेख के कुछ अंश देखिये:

(i) दिसंबर में देश ऐसे ही प्रकट नहीं हो गया. जनवरी से धीरे धीरे ढनगता हुआ भयानक गर्मी, झमाझम बारिश झेलता हुआ, करोड़ों के काले धन से थोड़ा हल्का होता हुआ देश किसी तरह अब दिसंबर में पहुँच पाया है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि ये व्यंग्य बिरादरी वाले लोग देश को दिसंबर में ही क्यों घेर रहे हैं?

(ii) भईय्ये भूखा - नंगा, कैशलेस देश पूरे दिसंबर काका के साथ ही रहेगा यह तो तय है. विरोधी यह बात हजम नहीं कर पा रहे कि आखिर देश काका के साथ क्यों खड़ा है. उनका मानना है कि देश डरा हुआ है या फिर वह अफ़ीम के नशे में है. दरअसल देश किसी न किसी के साथ खड़ा होना चाहता है और फिलहाल उसे काका के अलावा कोई दूसरा दूर दूर तक दिखाई नहीं पड़ रहा.

(iii) आजकल काका के साथ देश चौबीस घंटे काम पर है. चार घंटे जब काका सोते हैं तब भी वह जागता है. मजबूती के साथ उनके सपनों में रंगोली भरता है. तभी रोज चमचमाते हुए सपने नियम बन कर देश की झोली में आ गिरते हैं. देश दिन भर इन्ही नियमों से खेलता है, शाम को काका को वापस कर देता है. अगले दिन फिर नए सपने. देश अभी काका के साथ ऊपी में परिवर्तन यात्रा पर निकला हुआ है. भाईयों और बहनों ....... मित्रों !!!!!! के साथ चुटकुले सुन रहा है.

व्यंग्य की जुगलबंदी-14 आपको कैसी लगी ? अपनी राय बताइयेगा। अच्छा लगेगा।

व्यंग्य की जुगलबंदी-14 में फ़िलहाल इतना ही।शेष अगली जुगलबंदी में।

Arvind Tiwari Alok Puranik Nirmal Gupta DrAtul Chaturvedi Anshu Mali Rastogi Indrajeet Kaur Udan Tashtari Ravishankar Shrivastava Kamlesh Pandey Yamini Chaturvedi विनय कुमार तिवारी Sanjay Jha Mastan Devendra Kumar Pandey अनूप शुक्ल Harish Naval, Yamini Chaturvedi प्रदीप शुक्ल

 

15 टिप्पणियाँ

टिप्पणियाँ

प्रदीप शुक्ल

प्रदीप शुक्ल आदरणीय अनूप शुक्ल जी जैसा कि आप पहले ही कह चुके हैं, " खराब व्यंग्य लिखना एक मेहनत का काम है" तो यह मेहनत का काम मैंने भी किया था. कम से कम नाम लेकर यह तो बता ही देते आदरणीय कि व्यंग्य की जुगलबंदी में दुबारा न आईयो. कुछ कमियाँ लिख देते तो और अच्छा लगता मुझे. आपने मुझे अछूत समझ कर जिक्र तक नहीं किया.

 

अनूप शुक्ल

अनूप शुक्ल अब देखिये अपडेट ! :)

 

Alankar Rastogi

Alankar Rastogi अदभुत है आप सर। इतनी विस्तृत समीक्षा को सोचना भी कल्पना से परे लगता है। जितना आप लिख लेते है उतना तो पढ़ने में ही झुरझुरी आ जाती है । अगर आप इजाज़त दें तो इस समीक्षा को मैं एक ई मैगज़ीन "अड्डेबाजी" में प्रकाशित करवा दूं।

 

अनूप शुक्ल

अनूप शुक्ल अरे क्या बात है। इत्ती तारीफ़ से तो हम शर्मा जायेंगे भई बोले तो 'लाज- लाल'। :)
साझा करने के लिए इजाजत की क्या जरूरत :) मजे से करिये। बिंदास। :)

 

Manish Sahu

Manish Sahu Tsunami koun bhool sakta hai sir, but hope it will result good...अनुवाद देखें

 

अनूप शुक्ल

अनूप शुक्ल धन्यवाद ! :)

 

Kamlesh Pandey

Kamlesh Pandey भाई आपकी सक्रियता को सलाम है..हम तो बस लिख भर देते हैं, पर आप क्या ग़ज़ब समेटते हैं

 

अनूप शुक्ल

अनूप शुक्ल आप लिखते रहिये। हम समेटते रहेगे ! :)

 

ALok Khare

ALok Khare aapki sameeksha padhkar thand aur badh gai dadda!

 

अनूप शुक्ल

अनूप शुक्ल रजाई में बैठकर बांचिये। समीक्षा गुनगुनी लगेगी ! :)

 

ALok Khare

ALok Khare dadaa ab balnket ka zamana hai , rajaiyya ka nahi

 

Arvind Tiwari

Arvind Tiwari बेहतरीन समीक्षा।इस आयोजन के लिए साधुवाद।

 

अनूप शुक्ल

अनूप शुक्ल बहुत बहुत धन्यवाद ! लिखने, पढने और सरहाने के लिये ! :)

 

Anoop Mani Tripathi

Anoop Mani Tripathi Chkachk... Jamaye rahiye...

 

अनूप शुक्ल

अनूप शुक्ल आभार ! जमा रहे हैं ! आप भी आइये जुगलबंदी में। जो होगा देखा जायेगा ! :)

 

DrAtul Chaturvedi

DrAtul Chaturvedi बहुत शानदार समीक्षा की है । तात्विक और संतुलित । बधाई

 

अनूप शुक्ल

अनूप शुक्ल बहुत बहुत आभार। लिखने, पढने और सराहने के लिये ! :)

 

Alok Puranik

Alok Puranik जमाये रहिये जी।

 

अनूप शुक्ल

अनूप शुक्ल जमाने की कोशिश जारी है ! :)

 

Asim Anmol

Asim Anmol Saarthak sameeksha sir.........

 

अनूप शुक्ल

अनूप शुक्ल धन्यवाद।

 

एम.एम. चन्द्रा

एम.एम. चन्द्रा badhai

 

अनूप शुक्ल

अनूप शुक्ल धन्यवाद ! :)

 

Anshu Mali Rastogi

Anshu Mali Rastogi मस्तम-मस्त। (y)

 

अनूप शुक्ल

अनूप शुक्ल धन्यवाद ! :)

 

विनय कुमार तिवारी

विनय कुमार तिवारी हार्दिक धन्यवाद।

 

अनूप शुक्ल

अनूप शुक्ल स्वागत है। लिखते रहिये अब जुगलवंदी में ! :)

 

Naveen Tripathi

Naveen Tripathi हार्दिक बधाई सर । मेरी मोबाइल नियर बाई का सिग्नल दे रही है । सम्भवतः आप मेरे घर के आस पास हैं । सादर नमन ।

 

Udan Tashtari

Udan Tashtari बढ़िया ठस समेटा सबको एक ही रजाई में..वाह!!

 

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दिसंबर में देश / व्यंग्य की जुगलबंदी-14 / अनूप शुक्ल
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