प्राची // जून 2017 // लघुकथाएँ

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प्यार : किशनलाल शर्मा रमेश और नीरा काम से लौट रहे थे. उनका घर लाइन के उस पार था. जब वे लाइन के पास पहुंचे तो वहां लोगों की भीड़ देखी. पुलिस...


प्यार : किशनलाल शर्मा

रमेश और नीरा काम से लौट रहे थे. उनका घर लाइन के उस पार था. जब वे लाइन के पास पहुंचे तो वहां लोगों की भीड़ देखी. पुलिस भी नजर आई. रमेश ने एक आदमी से पूछा, ‘‘इधर क्या हो गया?’’

‘‘लड़का लड़की ने ट्रेन से कटकर आत्महत्या कर ली.’’

‘‘क्यों...?’’

‘‘दोनों प्रेम करते थे और शादी करना चाहते थे. लेकिन दोनों की जाति अलग थी. घरवाले तैयार नहीं हुए, इसलिए साथ मर गये.’’

‘‘प्यार मरकर नहीं, जिन्दा रहकर किया जाता है.’’ रमेश ने पत्नी तरफ देखते हुए कहा, ‘‘घरवाले तो हमें भी एक नहीं होने देना चाहते थे...!’’

सम्पर्कः 103, रामस्वरूप कॉलोनी, आगरा-232010


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व्यंग्य कथा

लघुकथा


संतान

किशन लाल शर्मा

उमेश और किशोर एक ही दिन रेलवे में नौकरी पर लगे थे और रिटायर भी एक ही दिन हुए. रिटायरमेंट से पहले दोनों की पत्नियों का स्वर्गवास हो चुका था.

उमेश निःसंतान था, इसलिए पत्नी के देहान्त के बाद अकेला रह गया था. किशोर के दो बेटे थे, जो अमेरिका गये तो वहीं के होकर रह गये. बाप को भूल ही गये.

बुढ़ापे में उमेश संतान न होने की वज़ह से दुखी था और किशोर संतान होने पर भी दुःखी था.

सम्पर्कः 103, रामस्वरूप कॉलोनी,

शाहगंज, आगरा-282010


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लघुकथा

डर

रामयतन यादव

नकी दृष्टि अखबार की सुर्खियों पर थी कि तभी टेलीफोन की घंटी घनघना उठी. उनके लड़के ने टेलीफोन रिसीव किया.

उन्होंने अखबार से अपनी निगाह हटाते हुए धीमी किंतु उत्सुक आवाज में पूछा- ‘किसका फोन है बेटा?’

‘आपके दोस्त माधव अंकल के लड़के का फोन है.’ टेलीफोन के मुंह को हथेली से दबाकर वह आहिस्ता से बोला- ‘माधव अंकल मरणासन्न स्थिति में हैं, वो आपसे किसी खास काम से मिलना चाहते हैं.’

उन्होंने किंचित् नफरत से टेलीफोन सेट की तरफ देखा.

‘...किस खास काम से मिलना चाहता है...? जरूर ही वह फिर चार-पाँच हजार रुपयों की मांग करेगा...’ बुदबुदाते हुए उन्होंने शंका जाहिर की और पुनः अखबार में नजर गड़ाते हुए धीरे से कहा- ‘बेटा, कह दो पिता जी घर पर नहीं हैं...दस दिनों के लिए बाहर...’

कुछ ही दिनों के पश्चात् एक दिन अचानक उनके दोस्त माधव का बेटा उनके आवास पर आया तो वे सिटपिटा गए, किंतु स्वयं को संयमित करते हुए बोले, ‘बहुत दुःख की बात है बेटा कि ऐन वक्त पर एक जरूरी काम से बाहर चले जाने की वजह से मैं अपने दोस्त से आखिरी वक्त में मिल नहीं पाया. उसके श्राद्ध-कर्म में भी अनुपस्थित रहा...’

वे अभी अपनी बात कह ही रहे थे कि उसने पाँच हजार रुपयों की गड्डी उनकी तरफ बढ़ाते हुए कहा- ‘चाचाजी, आप इसे रख लें...’ फिर कुछ पल की खामोशी के बाद एक गहरी उदासी के साथ उसने कहा- ‘पिताजी की बड़ी इच्छा थी कि वे मरने से पहले अपने हाथों से आपका कर्ज चुका दें. इसलिए मैंने आपको फोन किया था, लेकिन आप यहां थे नहीं.’

‘तु...तुम ठीक कहते हो बेटा मैं यहां नहीं था...’ आगे के शब्द उनके हलक में ही अटक कर रह गए और धमनियों में बहता रक्त जम-सा गया. उनके भीतर का डर कितना नपुंसक था.

सम्पर्क : मकसूदपुर, पो. फतुहा,

पटना-803201 (बिहार)

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तलाक

राकेश भ्रमर

वह उच्च शिक्षित थी, परन्तु बेहद जिद्दी और महत्त्वाकांक्षी. उसके सपने बहुत ऊंचे थे, और वह किसी उच्च अधिकारी से शादी करने के सपने देख रही थी; परन्तु जब उसकी शादी एक सरकारी शिक्षक से हुई तो उसके सपने टूट गये. गुस्से और खींझ में आकर वह न तो पति को मन से अपना सकी, न ससुराल पक्ष के लोगों से सामंजस्य बिठा पाई. नतीजा, घर में कलह होने लगा.

उसने हालात से समझौता करने के बजाय कोर्ट में तलाक का मुकदमा दायर कर दिया. तलाक के लिए उसके पास कोई ठोस आधार नहीं था. पति पर अनर्गल आरोप लगाए थे, इसलिए कोर्ट ने पहले उसे छः महीने का समय दिया कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करे. इस बीच पति और सास-ससुर ने उसे हर तरह से समझाने का प्रयास किया. पति ने पूछा, ‘‘आखिर तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘तलाक!’’ उसने अकड़कर कहा.

‘‘आखिर क्यों? अगर तुम्हें मेरे घरवालों से कोई परेशानी है तो मैं तुम्हारे साथ अलग रहने को तैयार हूं. मेरे माता-पिता अलग मकान में रहेंगे.’’

‘‘मुझे तुम्हारे जैसा घटिया शिक्षक पति के रूप में मंजूर नहीं है.’’ उसने पति का दिल तोड़ते हुए कहा.

कोर्ट में मुकदमा चला, परन्तु पति ने सहमति नहीं दी थी, अतः तलाक तत्काल मंजूर नहीं हुआ. कोर्ट ने उन दोनों को आदेश दिया कि वह साथ-साथ रहकर दांपत्य-जीवन में सामंजस्य बिठाने का प्रयास करें, तब भी अगर उनके बीच पटरी न बैठे तो कोर्ट उनके तलाक पर विचार करेगी. कोर्ट के आदेश के बावजूद वह पति के साथ रहने को तैयार नहीं हुई और अपने मायके में रहकर तलाक का इंतजार करती रही.

मुकदमा कई साल तक चला. तब तक उसके सपने धूल चाटने लगे थे. अब उसे पछतावा होने लगा था.

उसकी उम्र निकलती जा रही थी. अब उसके साथ कौन शादी करेगा. जब भी आईने में अपनी सूरत देखती, वह उसे डरावनी लगती.

अब वह तलाक नहीं चाहती थी, परन्तु जब उसने पति के साथ समझौते पर विचार कर रही थी, तब तक इतने साल बीत चुके थे कि कोर्ट ने उसका तलाक मंजूर कर लिया.

तलाक के चक्कर में उसने अपना जीवन बरबाद कर लिया था.

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लघुकथा

आत्मविश्वास

राजेश माहेश्वरी

कुछ वर्षों पूर्व नर्मदा के तट पर एक नाविक रहता था. वह नर्मदा के जल में दूर-दूर तक सैलानियों को अपनी किश्ती में घुमाता था. यही उसके जीवन यापन का आधार था. वह नाविक बहुत ही अनुभवी, मेहनती, होशियार एवं समयानुकूल निर्णय लेने की क्षमता रखता था. एक दिन वह किश्ती को नदी की मझधार में ले गया. वहाँ पर ठंडी हवा के झोंकों एवं थकान के कारण वह सो गया.

उसकी जब नींद खुली तो वह, यह देखकर भौंचक्का रह गया कि चारों दिशाओं में पानी के गहरे बादल छाए हुए थे. हवा के तेज झोंकों से किश्ती डगमगा रही थी. आँधी-तूफान के आने की पूरी संभावना थी. ऐसी विषम परिस्थिति को देखकर उसने अपनी जान बचाने के लिए किसी तरह किश्ती को एक टापू तक पहुँचाया और स्वयं उतरकर उसे एक रस्सी के सहारे बांध दिया. उसी समय अचानक तेज आँधी-तूफान और बारिश आ गई. उसकी किश्ती रस्सी को तोड़कर नदी के तेज बहाव में बहती हुई टूटकर टुकड़े-टुकड़े हो गयी.

नाविक यह देखकर दुखी हो गया और उसे लगा कि अब उसका जीवन यापन कैसे होगा? वह चिंतित होकर वहीं बैठ गया. उसकी किश्ती टूट चुकी थी और उसका जीवन खतरे में था. चारों तरफ पानी ही पानी था. आंधी, तूफान और पानी के कारण उसे अपनी मौत सामने नजर आ रही थी.

उसने ऐसी विषम परिस्थिति में भी साहस नहीं छोड़ा और किसी तरह संघर्ष करते हुये किनारे तक पहुँचा. उसकी अंतरात्मा में यह विचार आया कि नकारात्मक सोच में क्यों डूबे हुए हो? जब आंधी, तूफान और पानी से बचकर किनारे आ सकते हो तो फिर इस निर्जीव किश्ती के टूट जाने से दुखी क्यों हो? इस सृष्टि में प्रभु की सर्वश्रेष्ठ कृति मानव ही है. तुम पुनः कठोर परिश्रम से अपने आप को पुनर्स्थापित कर

सकते हो.

यह विचार आते ही वह नई ऊर्जा के साथ पुनः किश्ती के निर्माण में लग गया. उसने दिन रात कड़ी मेहनत करके पहले से भी सुंदर और सुरक्षित नई किश्ती को बनाकर पुनः अपना काम शुरू कर दिया. वह मन ही मन सोचता था कि आँधी-तूफान मेरी किश्ती को खत्म कर सकते हैं, परंतु मेरे श्रम एवं सकारात्मक सोच को खत्म करने की क्षमता उनमें नही हैं. मैंने आत्मविश्वास एवं कठिन परिश्रम द्वारा किश्ती का नवनिर्माण करके विध्वंस को सृजन का स्वरूप प्रदान किया है.

सम्पर्कः 106, नया गांव को-आपरेटिव हाउसिंग सोसायटी, रामपुर, जबलपुर-482008 (म.प्र.)

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: प्राची // जून 2017 // लघुकथाएँ
प्राची // जून 2017 // लघुकथाएँ
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रचनाकार
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