कहानी // दीवार // अर्जुन प्रसाद

SHARE:

  गोण्‍डा जिले के ठाकुर गजराज सिंह बहुत ही धतुरा और एक खुर्राट किस्‍म के इंसान थे। उनकी अर्धांगिनी सुमन भी उन्‍हीं के नक्‍शे कदम पर चलने वाल...

 राजेन्द्र मधुकर की कलाकृति

गोण्‍डा जिले के ठाकुर गजराज सिंह बहुत ही धतुरा और एक खुर्राट किस्‍म के इंसान थे। उनकी अर्धांगिनी सुमन भी उन्‍हीं के नक्‍शे कदम पर चलने वाली थी। पति-पत्‍नी दोनों ही जातिपाँति की कुरीतियों को बहुत मानते थे। क्‍या मजाल कि कोई गैर ब्राह्‌मण व्‍यक्‍ति उनकी ड्‌योढ़ी पार कर जाए। जातिपाँति का इतना भेदभाव कोई कथित ब्राह्‌मण भी न करता होगा।

दरअसल कथित ब्राह्‌मण वर्ग इतना तो समझदार है ही कि वह अच्‍छी तरह जानता है कि आज के जमाने में जातिपाँति केु फेर में पड़े रहने से अपना कोई कामकाज नहीं हो पाएगा इसलिए इस वर्ग ने जातिगत भेदभाव को भुलाकर अपना कामधंधा करा लेने में ही अपनी भलाई मान लिया है लेकिन जातिपाँति के गहरे दलदल में फँसे लोग अभी तक इसी में पड़े हुए हैं। वे इससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। उनके दिलो दिमाग से जातिपाँति का भूत निकलने का नाम ही नहीं ले पा रहा है। बल्‍कि यह कहिए कि वे इससे छुटकारा मिलने का प्रयास ही नहीं करते हैं।

जो व्‍यक्‍ति इस कुरीति से बाहर निकलकर समतावादी रुख अपना लेता है उसका कोई कामकाज नहीं रुकता है और वह समाज में आगे निकल जाता है और वह प्रगति-पथ पर सदैव अग्रसर रहता है मगर जो इंसान जातिपाँति के चक्‍कर में ही पड़ा रहता है उसका कामधंधा तो रुकता ही है उसकी खेतीबाड़ी भी चौपट हो जाती है। कथित तौर पर शूद्र कहे जाने वाले लोग ऐसे आदमी की बुराई करते हैं और उसका कामकाज करने से कतराते हैं। हमारे संविधान में हर मनुष्‍य को एक समान मानने की हिदायत दी गई है। जो मनुष्‍य इसे सच्‍चाई को भलीभाँति समझ चुका है वह किसी से किसी तरह का जातिगत भेदभाव नहीं करता है लेकिन इसके विपरीत जो इस सच को झुठलाने की कोशिश करता है उसे यदाकदा बहुत अपमानित भी होना पड़ता है।

समय हमेशा बदलता रहता है और कभी एक जैसा नहीं रहता है। कभी-कभी ऐसा वक्‍त भी आ जाता है कि उसे सरेआम जलील होना पड़ता है। वह इतना अधिक शर्मिंदा होता है कि समाज में किसी को मुँह दिखाने के काबिल भी नहीं रह जाता है। आज के जमाने में जब जातिपाँति का कोई महत्‍व नहीं रह गया है तब ऐसे में इस कुप्रथा को ढोते रहना अक्‍लमंदी नहीं है। जितना जल्‍दी हो सके इस कीचड़ से बाहर निकलजाने में ही सबकी भलाई है। आज वही व्‍यक्‍ति सुखी रह सकता है जो इससे मुक्‍त हो जाए और सबको अपने समान समझे।

ठाकुर गजराज सिंह जातिपाँति के दलदल में फँसे होने पर भी शिक्षा का महत्‍व बखूबी समझते थे इसलिए अपने इकलौते पुत्र सर्वराज सिंह को भलीभाँति पढ़ालिखाकर काबिल बना दिए। अपनी दीक्षा-दीक्षा पूरी करने के बाद सर्वराज सिंह सूबे में ही पुलिस कप्‍तान बन गए। ऊँचे ओहदे की नौकरी मिलते ही एक धनाढ्‌य परिवार में उनका विवाह भी हो गया। अपनी पत्‍नी मीनाक्षी को पाकर वह अत्‍यंत प्रसन्‍न थे। सर्वराज सिंह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे ही और उनके कोई भाई और बहन न थी।

विवाह होने के बाद सर्वराज सिंह को भी कोई औलाद पैदा न हुई। विवाह के कई साल गुजर जाने के बाद उनकी पत्‍नी मीनाक्षी गर्भवती हुई और समय आने पर एक पुत्री पैदा हुई। उसका नाम उन्‍होंने चंचला रखा। चंचला के जन्‍म के बाद फिर कोई बेटा और बेटी पैदा न हुई। इस प्रकार सर्वराज सिंह भी एक ही संतान के पिता बनकर रह गए। ठाकुर गजराज सिंह के पास सैकड़ों बीघे पुश्‍तैनी खेतीबाड़ी और बाग-बगीचे थे। गोण्‍डा, लखनऊ और कानपुर जैसे शहरों में उनके पास महलनुमा कई हवेलियाँ भी थीं। कहने का मतलब यह कि उनके पास धनधान्‍य की कोई कमी न थी और इलाके के जानेमाने रईस जमींदार थे।

जब ठाकुर सर्वराज सिंह की बेटी मीनाक्षी का जन्‍म हुआ तो पूरे इलाके में लोगों को लड्‌डू बाँटे गए और मित्र, रिश्‍तेदारों को बुलाकर स्‍वादिष्‍ट व्‍यंजन की खूब दावतें दी गईं। घर में धन-दौलत की कोई कमी तो थी नहीं इसलिए स्‍कूल जाने लायक होने पर सर्वराज सिंह ने मीनाक्षी को लखनऊ के एक नामीगिरामी बोर्डिंग स्‍कूल में दाखिल करा दिया। वह वहीं पढ़नेलिखने लगी। गोण्‍डा और बस्‍ती नेपाल की सीमा पर होने के कारण बहुत से गरीब नेपाली लोग इन स्‍थानों पर होटल, रेस्‍तरां और ढाबों पर काम करके अपना गुजर बसर करते हैं।

उनमें से बहुत से लोग वहीं बस भी गए हैं। सर्वराज सिंह के पुश्‍तैनी मकान के आसपास भी बहुत से नेपाली रहते हैं। मनुष्‍य के जीवन पर उसके रहन-सहन और खानपान का बहुत असर पड़ता है इसलिए कहा गया है कि जैसा देश, वैसा वेश और जैसा खाए अन्‍न वैसा बने मन। पिछले कई सालों से लोगों का रहन-सहन और खानपान बिल्‍कुल बदल चुका है। ऐसी हालत में यह जाहिर ही है कि मनुष्‍य का जैसा रहन-सहन और खानपान होगा वह वैसा ही बनेगा भी। इससे बच्‍चों का जीवन भी तेजी से बदलता जा रहा है।

1990 के बाद से मनुष्‍य के रहन-सहन और खानपान में जो बदलाव आया है उससे बच्‍चों का जीवन बहुत अधिक प्रभावित हो रहा है। अब वे अपेक्षाकृत जल्‍दी जवान होने लगे हैं। उन्‍हें ऐसा बनाने में फिल्‍म, सीरियल और नाटक भी अपना प्रभाव डाल रहे हैं। उनके जीवन पर संस्‍कारहीन पाठ्‌य पुस्‍तकों का प्रभाव भी स्‍पष्‍ट रुप से देखा जा सकता है। आज के लेखकगण ज्‍यादातर व्‍यावसायिक हो गए हैं।

आधुनिकता के नाम पर आजकल बिल्‍कुल उलूल-जुलूल साहित्‍य ही लिखा जा रहा है। आज समाज से किसी का कोई सरोकार नहीं रह गया है। जिसके जी में जो आ रहा है वह उसे ही लिखने को उतारु हो गया है। लेखक को हमेशा समाज को एक अच्‍छी दिशा देने का काम करना चाहिए। इन सबके अलावा रही-सही कसर हमारे इंटरनेट और मोबाइल ने पूरा कर दिया है। अब बच्‍चे दिनरात इन्‍हीं से चिपके रहते हैं। ऊपर से मां-बाप अपने बच्‍चों को समय न देकर उनसे दूरी बनाए रहते हैं। इसका भी बच्‍चों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इस बदले परिवेश का असर मीनाक्षी पर भी पड़ा। वह इनसे अछूती न रही और यह स्‍वाभाविक भी है।

इंटरमीडिएट करते-करते मीनाक्षी अठारह वर्ष की और बालिग हो गई। इसी बीच एक गरीब नेपाली युवक विजय बहादुर से उसकी मुलाकात हो गई। विजय बहादुर एक नेपाली तरुण था ही वह एकदम गोरा-चिट्‌टा और हृष्‍ट-पुष्‍ट भी था। मीनाक्षी भी गजब की खूबसूरत और एक अत्‍यंत हसीन युवती थी। एक-दूसरे को देखते ही वे परस्‍पर आकर्षित हो गए। दो-चार मुलाकातों में ही वे एक-दूसरे को अपना दिल दे बैठे।

विजय बहादुर ने मीनाक्षी के साथ तालमेल बढ़ाने से पहले खुद को एक नेपाली होने की दुहाई भी दी लेकिन मीनाक्षी पर इसका कोई असर न पड़ा। उसने विजय बहादुर से एकदम स्‍पष्‍ट कह दिया कि मुझे ऐसी बातों सकुछ भी लेनादेना नहीं है। मुझे अपना अच्‍छा-बुरा सब अच्‍छी तरह मालूम है। तब विजय बहादुर ने उससे कहा कि देखो तुम्‍हारे पिताजी कोई मामूली इंसान नहीं बल्‍कि एक पुलिस कप्‍तान हैं और वह इस बात को किसी भी सूरत में बर्दाश्‍त न कर सकेंगे। वह हम दोनों के साथ कुछ भी कर सकते हैं। वह हमारा जीवन नरक बनाकर रख देंगे।

जवानी दीवानी होती ही है इसलिए विजय बहादुर की बातों पर मीनाक्षी ने कोई ध्‍यान नहीं दिया और उसे दरकिनार करते हुए वह उससे बोली-तुम मेरे पिताजी की चिंता मत करो। अगर वह पुलिस कप्‍तान हैं तो दूसरों के लिए हैं हमारे लिए नहीं। मैं सब कुछ सँभाल लूँगी और कुछ भी न होगा।

तब विजय बहादुर ने उसे समझाने का बहुत प्रयास किया मगर वह हरगिज न मानी। मानो उसके सिर पर सचमुच भूत सवार था। धीरे-धीरे एक-डेढ़ साल गुजर गए। उनका मिलना जुलना चालू था। विजय उससे जितना दूर भागता उतना ही मीनाक्षी उसके पास पहुँच जाती। वह उसे उतना ही अधिक अपने करीब पाता। पहले तो वह उससे जितना बच सकता था उतना बचने का यत्‍न किया लेकिन जब मीनाक्षी हाथ धोकर उसके पीछे ही पड़ गई तो हार मानकर वह भी चुप बैठ गया। आखिरकार दोनों के बीच प्रेम की पेंगे बढ़ने लगी।

इश्‍क और मश्‍क कभी छिपाने से नहीं छिपता है। देर-सबेर लोगों को इसका पता चल ही जाता है। जब तक बात छिपी रही और किसी को कानोकान भनक न लगी तब तक वे आराम से आपस में चोरी-चुपके मिलते जुलते रहे परंतु जब भेद खुलता नजर आने लगा तो मीनाक्षी ने विजय बहादुर से घर से भाग चलने को कह दिया। उसने उसे घर छोड़ने के लिए विवश कर दिया।

अंततः एक दिन घर से पच्‍चीस लाख नकद रुपए और कुछ गहने वगैरह लेकर मीनाक्षी विजय बहादुर के पास जा पहुँची। वह अपने घर से इतना ज्‍यादा धन ले गई कि उतने में उसका अच्‍छा से अच्‍छा विवाह हो जाता। वहाँ जाकर वह उससे बोली-अब जहाँ ले चलना है मुझे वहाँ लेकर चलो। मैं तैयार होकर आ गई हूँ। विजय बहादुर भी उसे दिल दे ही चुका था इसलिए वह भी अपना घर-परिवार छोड़ने को मजबूर हो गया। अब घर त्‍यागने के अलावा उसके पास कोई दूसरा चारा न बचा था। आखिर वह उसे लेकर घर से निकल पड़ा और रेलगाड़ी का टिक कटाकर हरिद्वार चला गया। वहाँ से दोनों नैनीताल चले गए। फिर मुंबई और गोवा घूमने चले गए।

उधर दोनों के भागने की खबर मिलते ही कप्‍तान साहब आग बबूला हो गए। उन्‍हें उनकी यह जुर्रत हरगिज पसंद न आई। आखिर जातिपाँति के पुजारी ठाकुर जो ठहरे। उनका पारा सातवें आसमान पर इस तरह पहुँच चुका था कि अगर वे उस वक्‍त उन्‍हें मिल जाते तो वह उनकी जान भी ले लेते। उन्‍होंने सोचा कि जब मैं बड़े-बड़े लोगों की हैकड़ी बंद कर सकता हूँ और उनकी हालत खस्‍ता कर सकता हूँ तो इस नेपाली छोकरे की औकात ही क्‍या है। उन्‍होंने पास के पुलिस थाने में मीनाक्षी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी और थानेदार से बोले-यह मेरी अपनी बेटी का मामला है इसलिए चाहे जैसे भी हो वह एक सप्‍ताह के अंदर ही मेरे सामने होनी चाहिए। इस काम में तनिक भी लापरवाही न होने पाए वैरना अपनी खैरियत मत समझना।

पुलिस तो आखिर पुलिस ही है। वह किसी को अपना-पराया नहीं समझती है और सबके साथ लगभग एक जैसा ही व्‍यवहार करती है। दरअसल हमारी पुलिस का काम करने का तरीका बड़ा ही अनोखा है। वह हर मामले को अपने ही तरीके से निपटाती है। मामला एक कप्‍तान का था इसलिए दो-चार पुलिस वाले बिना मतलब इधर-उधर यूँ ही टापते रहे और हार-थककर बैठ गए। इतने बड़े देश में मीनाक्षी और विजय बहादुर को ढूँढ़ना इतना आसान नहीं था जितना कि कप्‍तान साहब समझ रहे थे।

इधर लगभग आधे देश का भ्रमण करके एक महीने बाद विजय और मीनाक्षी दिल्‍ली वापस आ गए और एक अदालत में जाकर अदालती शादी कर लिए। उनके पास पैसों की तो कोई कमी थी नहीं इसलिए इस काम के लिए उन्‍होंने एक वकील को उसका और दो फर्जी गवाहों का खर्चा वगैरह पचास हजार रुपए देकर उनकी तलाश में डंडा फटकारने वाले पुलिस वालों को भी एक लाख रुपए नजराना दे दिया। वे आगे-आगे चल रहे थे तो पुलिस चुपचाप मुट्‌ठी बाँधे उनके पीछे-पीछे चल रही थी। अदालती विवाह संपन्‍न होते ही दोनों एकदम निश्‍चिंत हो गए। उनका सारा का सारा खटका मिट गया। अब अदालत भी उनकी और पुलिस भी। अब उन्‍हें रोकने-टोकने वाला कोई भी न था।

अपने पीछे पुलिस के पड़ने की भनक लगते ही मीनाक्षी अपने कप्‍तान पिता सर्वराज सिंह को फोन करके कहा-पापाजी! मैंने विजय बहादुर नाम के एक लड़के से दिल्‍ली की एक अदालत में विवाह कर लिया है और अब मैं घर आ रही हूँ। हमारे वहाँ पहुँचने पर आप कृपया कोई तमाशा मत कीजिएगा। यही आपसे गुजारिश है बस। अब हमें खोजने के लिए आपको परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। अब आप बिल्‍कुल शांत होकर बैठिए। हम दोनों कल सुबह आपके पास आ जाएँगे। अगर आप किसी तरह का बवाल करेंगे तो इसमें आपकी ही बदनामी होगी। मैं यह फैसला बहुत सोच-समझकर किया है। अगर वहाँ हमारा आना आपको किसी भी तरह नागवार गुजरे तो तो अभी साफ-साफ बता दीजिए और फिर हम नहीं आएँगे। यदि आप हमें सहर्ष स्‍वीकार करने को राजी हों तभी हमें अपने पास बुलाइए वरना एकदम स्‍पष्‍ट मना कर दीजिए। हम दोनों आप सबकी खुशियों के लिए ही आना चाहते हैं, आपको चिढ़ाने के लिए नहीं इसलिए हमारे प्रति अपने मन में किसी प्रकार का कोई खोट न रखिएगा।

कप्‍तान साहब के पास और कोई संतान तो थी नहीं और जो इकलौती बेटी थी वह भी नदारद हो चुकी थी अतएव मीनाक्षी की बातें सुनते ही उनका सारा गुस्‍सा देखते ही देखते बर्फ की तरह पिघल गया। उनका दिल पसीज गया। वह तुरंत नरम रुख अपनाकर बोले-बेटी! कोई तुम दोनों को अब कुछ नहीं कहेगा। जो काम हमें करना था वह काम जब तुमने खुद कर लिया है तब इसमें हमारे टाँग अड़ाने को कोई सवाल ही नहीं है। तुम दोनों को अपनी जिंदगी खुद बितानी है। वह लड़का जब तुम्‍हें पसंद है तो हमें भला क्‍या ऐतराज हो सकता है। अरे पगली! हम सब तो तुम दोनों का सामाजिक रुप से विवाह करेंगे। हमें तो एक काबिल दामाद की जरूरत थी। तुम दोनों इस घर-परिवार को सँभाल लो बस। इससे बढ़कर हमारे लिए भला और क्‍या हो सकता है। तुम लोगों को घबराने और डरने की कोई जरूरत नहीं है। तुम दोनों बेखटके आराम से आओ। तुम्‍हारे घर छोड़ने के बाद हम लोग जरा भावुक हो गए थे। भावुकता में आकर पुलिस कार्रवाई कर दी थी।

अपने जन्‍मदाता कप्‍तान पिता का आश्‍वासन पाकर मीनाक्षी उनसे बोली-ठीक है पापाजी! जैसी आपकी इच्‍छा। हम दोनों अब आ रहे हैं।

इसके पश्‍चात दोनों रेलगाड़ी की टिकट लेकर हँसी-खुशी गोण्‍डा के लिए रवाना हो गए। उनकी सारी रात सफर में ही बीत गई और सुबह होते ही वे गोण्‍डा पहुँच गए। वहाँ पहले से ही उनके सामाजिक विवाह की सारी तैयारी पूरी हो चुकी थी। रेलवे स्‍टेशन पर उनके उतरते ही बड़े उत्‍साह के साथ लोगों ने उनका स्‍वागत किया और एक बड़ी गाड़ी में बिठाकर उन्‍हें बाजेगाजे के साथ एक बड़े होटल में ले गए। वहाँ उनका विवाह संस्‍कार पूरा हुआ। जातिवादी ठाकुर परिवार ने उन्‍हें बड़े हर्ष से स्‍वीकार कर लिया।

विवाह के बाद विजय बहादुर सामाजिक रुप से कप्‍तान साहब के घराने का दामाद बन गया। साथ ही वह उनकी सारी संपत्‍ति का इकलौता वारिस भी बन गया। कप्‍तान साहब ने अंततोगत्‍वा अपना सब कुछ उनके नाम कर दिया। हालांकि कप्‍तान साहब जोश और आक्रोश में आकर उन्‍हें अपने रास्‍ते से हटवा सकते थे लेकिन कोई ओर वारिस न रहने से वह जातिपाँति के बंधन से मुक्‍त होकर उन्‍हें अपनाने को विवश हो गए। उनके दिल से जातिपाँति की दीवार हमेशा के लिए ढह गई। अगर वह कुछ और करते तो इसमें हर तरह से नुकसान उन्‍हीं का था।

---

अर्जुन प्रसाद

वरिष्‍ठ अनुवादक

उत्‍तर मध्‍य रेलवे परियोजना इकाई

शिवाजी ब्रिज, नई दिल्‍ली-110001

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी // दीवार // अर्जुन प्रसाद
कहानी // दीवार // अर्जुन प्रसाद
https://lh3.googleusercontent.com/-nBy394B5AB0/WXWMix-vkCI/AAAAAAAA5o0/q1pg45kMN5MleGdZSk1hxONEPHuDGNHEQCHMYCw/image_thumb%255B3%255D?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-nBy394B5AB0/WXWMix-vkCI/AAAAAAAA5o0/q1pg45kMN5MleGdZSk1hxONEPHuDGNHEQCHMYCw/s72-c/image_thumb%255B3%255D?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/07/blog-post_0.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/07/blog-post_0.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content