यह सुविदित है कि आधुनिक हिंदी कविता को नया सौंदर्यबोध और नई अर्थवत्ता प्रदान करने में प्रयोगवाद की भूमिका अवश्य रही है।प्रयोगवाद व नई कविता ...
यह सुविदित है कि आधुनिक हिंदी कविता को नया सौंदर्यबोध और नई अर्थवत्ता प्रदान करने में प्रयोगवाद की भूमिका अवश्य रही है।प्रयोगवाद व नई कविता में भेद रेखा स्पष्ट नहीं है। एक प्रकार से प्रयोगवाद का विकसित रूप ही नई कविता है। नयी कविता भारतीय स्वतंत्रता के बाद लिखी गईं उन कविताओं को कहा गया, जिनमें परंपरागत कविता से आगे नये भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नये मूल्यों और नये शिल्प-विधान का अन्वेषण किया गया। प्रयोगवाद को इसके प्रणेता अज्ञेय कोई वाद नहीं मानते।1943 में ’तारसप्तक‘ का प्रकाशन हिन्दी काव्य संवेदना को पूर्णतः बदलने वाली साहित्यिक घटना के रूप में हमारे सामने है। लेकिन इसके पहले ही हिंदी कविता में प्रयोग के नए अंकुर फूटने लगे थे। अज्ञेय द्वारा संपादित ’तारसप्तक‘ के प्रकाशन के चार-पाँच वर्ष पूर्व ’तारसप्तक‘ के कवियों के अतिरिक्त केदारनाथ अग्रवाल, शमशेर बहादुर सिंह, त्रिलोचन, भवानीप्रसाद मिश्र जैसे अनेक समर्थ कवि नए ढंग से काव्य रचना में तल्लीन रहे थे। कविता केवल व्यक्ति की मानसिकता या चेतना की इकाई मात्र नहीं होती । वह वस्तुसत्ता से निरूपित हुई एक नितांत नयी संश्लिष्ट इकाई होती है । यह संश्लिष्ट इकाई मानवीय बोध की इकाई होकर दूसरों के मानवीय बोध की इकाई बन जाती है । ऐसा ही क्रम बराबर चलता रहा है और आदमी ऐसे क्रम के द्वारा ही अपने को, अपने समाज को, अपने परिवेश को और देशकाल के घटनाक्रम को और उसके विभिन्न आयामों को और तदनुरूप कविता को रचता रहा है ।’
प्रयोगवादी कविता का कथ्य कवि की आत्मा से जुडा हुआ है, लेकिन समाज में कवि अपने वर्तमान से बिल्कुल असंतुष्ट है। सब कहीं पराजय ही पराजय नजर आती है। आशा की किरणें कहीं भी दिखाई नहीं देतीं। ऐसे संदर्भ में प्रयोगवादी कवि जीवन के कृष्ण पक्ष को ही सत्य मानकर उसकी विस्तृत अभिव्यक्ति के लिए तैयार हो उठता है। साहित्य सार्थक शब्दों की ललित कला है। नई कविता परंपरा को नहीं मानती। मनुष्यों में वैयक्तिक भिन्नता होती है, उसमें अच्छाईयाँ भी हैं और बुराईयाँ भी। नई कविता के कवि को मनुष्य इन सभी रूपों में प्यारा है। उसका उद्देश्य मनुष्य की समग्रता का चित्रण है। नई कविता जीवन के प्रति आस्था की रखती है। आज की क्षणवादी और लघुमानववादी दृष्टि जीवन-मूल्यों के प्रति स्वीकारात्मक दृष्टि है।
नई कविता में अनेक विधाओं में मूल रूप में कहानी-कविता को समाज ने आसानी से स्वीकारा है। दोनों विधाओं में समाज की स्थिति को भली-भांति दर्शाने की क्षमता है। नई कविता में दो तत्व प्रमुख हैं- अनुभूति की सच्चाई और बुद्धिमूलक यथार्थवादी दृष्टि। वह अनुभूति क्षण की हो या एक समूचे काल की, किसी सामान्य व्यक्ति की हो या विशिष्ट पुरूष की, आशा की हो या निराशा की, अपनी सच्चाई में कविता के लिए और जीवन के लिए भी अमूल्य है। नई कविता में बुद्धिवाद नवीन यथार्थवादी दृष्टि के रूप में भी है और नवीन जीवन-चेतना की पहचान के रूप में भी।आधुनिक कविता जो कि ‘जन जीवन के लिए समर्पित थी ने पूर्वकालीन और पारम्परिक साहित्यिकता से कविता को बाहर निकाला ताकि आम आदमी भी कविता को कविता की तरह प्यार करने लगे और समाजवादी यथार्थवाद की मानसिकता से वह सम्बद्ध होने लगे ।’ नारी कथाकारों ने नारी पर हो रही लांछनाओं, नागफनियों, तपती रेत, सूखी धारा को अपनी रचनाओं का आधार बनाया है। उसके स्वाभिमान, उसकी अस्मिता एवं उसके साहस की बिंबात्मक अभिव्यक्ति है। मैत्रेयी पुष्पा के 'इदन्नमम', 'अलमा कबूतरी' जैसे उपन्यास इसके उदाहरण हैं - स्वयं मैत्रेयी जी के शब्दों में -
'मेरे लिए स्त्री-विमर्श का अर्थ स्त्री की स्वतंत्रता, इच्छा और अस्मिता है।' मैत्रेयी जी की नारी काम-काज वाले संसार की है, वह चाहे 'इदन्नमम' की मंदा हो या 'चाक' की सारंग, 'अलमा कबूतरी' की अलमा हो या 'गोमा हँसती है' की गोमा, सभी स्त्रियाँ जीवन के प्रत्यक्ष कुरुक्षेत्र में हैं।
'इदन्नमम' से एक उद्धरण से कथाकार की नारी-चेतना को स्पष्ट करने का प्रयास है
समकालीन कविता अपने को पूर्ववर्तियों की वैचारिक मान्यताओं की कड़ी के रूप में प्रस्तुत करती है। वह केवल वास्तविकता की ओर उन्मुख नहीं है। वास्तविकता को वह आत्मचेतना के स्तर पर रचने का प्रयास करती है, जिसमें भविष्य और उसके रास्ते संकेतित होते हैं। कविता की यही प्रकृति है। कवि के आत्मसंघर्ष की यह प्रकृति है। कवि वास्तविकता का हिस्सा मात्र नहीं होता। वह वास्तविकता के विरुद्ध एकांत की रचना करता है,और एकांत जिस चुप्पी की रचना करता है उसमें अनन्त का स्फोट होता है। दूसरे शब्दों में, भविष्य का स्फोट होता है।
नई कविता समाज सापेक्ष बनी है,जबकि प्रयोगवादी कही जाने वाली कविता पूर्णत: समाज-निरपेक्ष थी। डॉ. धर्मवीर भारती ने लिखा है कि "प्रयोगवादी कविता में भावना है,किंतु हर भावना के आगे प्रश्न चिह्न लगा है। इसी प्रश्न चिह्न को आप बौद्धिकता कह सकते हैं।" परंतु नई कविता प्रयोगवाद की अगली कड़ी इस अर्थ में है कि अब कवियों ने प्रश्न-चिह्नों के उस आवरण को उतार फैंका है। अब यह कविता प्रश्न चिह्न मात्र न रहकर समाज और जीवन के व्यापक सत्यों को खंड-खंड चित्रों के रूप में ही सही साधारणीकृत होकर समग्र प्रकार की सम्प्रेषणीयता से अन्वित हो गई है। इसमें साधारणीकरण की समस्या अब नहीं रह गई है।आधुनिक कविता, अपने सफल-असफल दावों में, मानवता के लिए संश्लिष्ट विश्वदृष्टि अर्जित करने का प्रयास करती है।
विश्वदृष्टि का अर्थ विचारधारा अथवा माक्र्सवादी दृष्टि नहीं। विश्वदृष्टि का सम्बन्ध साहित्य से है, वह साहित्य से उद्भूत होने वाली चीज़ है। नई कविता भी विश्वदृष्टि अर्जित करने का प्रयास करती है। नई कविता ने लोक-जीवन की अनुभूति, सौंदर्य-बोध, प्रकृत्ति और उसके प्रश्नों को एक सहज और उदार मानवीय भूमि पर ग्रहण किया। साथ ही साथ लोक-जीवन के बिंबों, प्रतीकों, शब्दों और उपमानों को लोक-जीवन के बीच से चुनकर उसने अपने को अत्यधिक संवेदनापूर्ण और सजीव बनाया। कविता के ऊपरी आयोजन नई कविता वहन नहीं कर सकती। वह अपनी अन्तर्लय, बिंबात्मकता, नवीन प्रतीक-योजना, नये विशेषणों के प्रयोग, नवीन उपमान में कविता के शिल्प की मान्य धारणाओं से बाकी अलग है।पूर्व में कविता जब भावों, छन्दों, पदों की सीमा में निबद्ध थी तब प्रत्येक व्यक्ति के लिए काव्य रूप में अपने मनोभावों को व्यक्त करना सम्भव नहीं हो पाता था। नयी कविता के पूर्व प्रगतिशील, प्रयोगवादी, समकालीन कविता आदि के नाम से रची-बसी कविता ने मनोभावों को स्वच्छन्दता की उड़ान दी। नायक-नायिकाओं की चेष्टाओं, कमनीय काया का कामुक चित्रण, राजा-बादशाहों का महिमामण्डन करती कविता से इतर नयी कविता ने समाज के कमजोर, दबे-कुचले वर्ग की मानसिकता, स्थिति को उभारा है।
समकालीन हिंदी कविता में आज के भारत का बिंब विभिन्न प्रश्नों के माध्यम से उपस्थापित है। भूमंडलीकरण, उपभोगवादी संस्कृति में बाजारवाद का वर्चस्व, विकसित पूँजीवाद की छद्म लीलाएँ, सांप्रदायिक एवं आतंकवाद की वीभत्सता, स्त्री-चेतना के विविध पहलू, जातीय समीकरण की चीख, मानवीय मूल्यों एवं संबंधों की भयानक क्षरणशीलता के शब्द चित्र अंकित हैं। प्रयोगवादियों के काव्य सत्य की तलाश दरअसल नए मानव की वास्तविकता की तलाश है या यों कहिए कि वह उसकी अस्मिता की तलाश है।विद्रोह की अनिवार्यता यहाँ काव्य-सत्य को व्यापक बनाने हेतु नूतन प्रयोगों पर बल दिया। अतः प्रत्येक संवेदनशील एवं सृजनात्मक प्रतिभा के लिए प्रयोग की प्रक्रिया से गुजरना अनिवार्य बन गया। निराला में जिस विद्रोह का स्वरूप मिलता है और वह प्रयोगवादी कवियों में प्रयोग बन गया है।नई कविता अगर इस काल की प्रतिनिधि और उत्तरदायी रचना-प्रवृत्ति है, और समकालीन वास्तविकता को ठीक-ठीक प्रतिबिम्बित करना चाहती है, तो उसे स्वयं आगे बढक़र यह त्रिगुण दायित्व ओढ़ लेना होगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ
1 नई कविता नई आलोचना और कला -कुमार विमल
2.हिंदी साहित्य का इतिहास -डा. रामचन्द्र शुक्ल
3. कवि परंपरा - तुलसी से त्रिलोचन-श्रोत्रिय प्रभाकर
4. हिंदी साहित्य और संवेदना का विकास- चतुर्वेदी रामस्वरूप
5. आधुनिक हिंदी कविता में शिल्प -कैलाश बाजपेई
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