लोक की सेल्फ संस्कृति और आज की बाजार निर्मित सेल्फी संस्कृति // कुबेर

SHARE:

संस्कृति की अवधारणा विराट है। लोक संस्कृति में लोक साहित्य, लोक कलाएँ और लोक परंपराएँ, सब कुछ समाहित हैं। यह केवल लोक मनोरंजन का साधन न होकर...

प्रणाली की कलाकृति

संस्कृति की अवधारणा विराट है। लोक संस्कृति में लोक साहित्य, लोक कलाएँ और लोक परंपराएँ, सब कुछ समाहित हैं। यह केवल लोक मनोरंजन का साधन न होकर लोकशिक्षण, लोक प्रतिरोध और लोक अभिव्यक्ति का माध्यम भी है। परंतु आज यह अपने इस मूल उद्देश्य से भटकी हुई दिखाई देती है। इस भटकाव के लिए काफी हद तक बाजार की संस्कृति और बाजार की ताकतें जिम्मेदार हैं।

बाजार की संस्कृति शोषकों की संस्कृति है। शोषकों के मन में जिस दिन यह विचार आया कि मरे हुए चूहे को भी बेचकर धन कमाया जा सकता, उसी दिन से बाजार की संवेदनाओं का अवसान शुरू हो गया था। आज बाजार की संस्कृति में संवेदनाओं के लिए कोई जगह नहीं है। बाजार की नजरों में आज मनुष्य की स्थिति उस मरे हुए चूहे के सामान है, जिसे बेचकर अकूत धन पैदा किया जा सकता है। बाजार आज दुनिया की सर्व शक्तिमान ताकत है। दुनिया के किसी भी देश में, वहाँ चाहे जैसी भी शासन प्रणाली हो, सबका नियंत्रण आज बाजार के हाथों में आ चुकी है।

यह कैसे हुआ? इसने अपनी जादुई ताकत से सामूहिक सम्मोहन पैदा करके सबसे पहले मनुष्य की चेतना पर कब्जा किया। और इसीलिए बाजार को अब वर्तमान मनुष्य की चेतना के स्तर को जानने के लिए, कि आज का मनुष्य क्या सोचता है, और कहाँ तक सोचता है, सर्वेक्षण कराने की जरूरत नहीं है। क्योंकि बाजार की संस्कृति आज हमें या तो सोचने का अवसर और अवकाश ही नहीं देती है या फिर हम जो भी सोचते हैं उसकी दिशा, विषय और तौर-तरीके बाजार के द्वारा पहले से ही तय किया हुआ होता है। अर्थात हम वही सोचते हैं, वही देखते हैं और वही करते हैं जो बाजार चाहता है। बाजार हमारी हर कमजोरी और हर कमी, को अपने लाभ के लिए हमारे विरुद्ध प्रयोग करता है।

समाज को सामूहिक सम्मोहन में जकड़ने-वाली पहली शक्ति थी सांप्रदायिकता। सांप्रदायिकता हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। यह न तो हमें आदमी बनने देती है और न ही हमें आदमी की तरह रहने देती है। बाजार की ताकत ने इसे और भी शक्तिशाली और अपने अनुकूल बना लिया है।

सांप्रदायिकता रूपी हमारी इस कमजोरी को और बाजार की बढ़ती हुई शक्ति को प्रेमचंद ने 1934 में ही समझ लिया था; तभी तो हमें सावधान करते हुए उन्होंने अपने निबंध ’सांप्रदायिकता और संस्कृति’ में लिखा है -

’’सांप्रदायिकता सदैव संस्कृति की दुहाई दिया करती है। उसे अपने असली रूप में निकलते शायद लज्जा आती है, इसीलिए वह गधे की भांति जो सिंह की खाल ओढ़कर जंगल के जानवरों पर रौब जमाता फिरता था, संस्कृति का खोल ओढ़कर आती है। अब संसार में केवल एक संस्कृति है और वह है आर्थिक संस्कृति; मगर हम आज भी हिंदू और मुस्लिम संस्कृति का रोना रोये चले जाते हैं।’’ कहना न होगा कि संवेदना-शून्य बाजार, संस्कृति और सांप्रदायिकता का आवरण ओढ़कर और भी क्रूर और हिंसक हो जाता है।

बाजार की सर्वशक्तिमान, निरंकुश और संवेदनहीन ताकत ने साहित्य को भी प्रभावित किया है। लोक साहित्य हो या शिष्ट साहित्य, दोनों ही आज बाजार की ताकत की गिरफ्त में दिखाई देते हैं। इसका असर पठन और चिंतन पर भी हुआ है। आज की पीढ़ी छपी हुई सामग्री, चाहे वह साहित्य की किताबें हो या पत्रिकाएँ, के पठन के दायरे से बाहर हुई हैं। आज की पीढ़ी अपने स्मार्ट फोन के स्क्रीन पर या कंप्यूटर के स्क्रीन पर, घंटों समय व्यतीत करती है।

जाहिर है, वहाँ वह कुछ न कुछ पढ़ती जरूर होगी। इस संस्कृति को प्रसिद्ध आलोचक अवधेश कुमार सिंह ने पट पाठ (screen text) की संस्कृति कहा है।

साहित्यिक संस्कृति और बाजार नामक निबंध में वे लिखते हैं - ’’नई साहित्यिक संस्कृति को पट पाठ (screen text) ने काफी हद तक प्रभावित किया है। इसमें समस्या यह है कि पाठ साधना के लिए पाठ पर चिंतन-मनन की आवश्यकता होती है जिसके लिए अवकाश (space) जरूरी होता है।’’ पट पाठ (screen text) की गति और वातावरण (विज्ञापन और अन्य दृश्यावलियाँ) पाठक को कभी कोई अवकाश नहीं देता। पट पाठ (screen text) करते हुए पाठक का ध्यान भटकता है और वह एक साथ कई दिशाओं में क्रियाशील हो जाता है। अर्थात पाठक तब एक साथ एक से अधिक कार्य करने की स्थिति में आ जाता है। यह मल्टी टास्किंग (multi-tasking) की अवस्था होती है। ऐसी दशा में चिंतन और मनन की बात ही बेमानी लगती है। अवधेश कुमार सिंह आगे लिखते हैं - ’’पट पाठ (screen text) के पठन की प्रकृति ऐसी है कि इसमें मल्टी टास्किंग (multi-tasking) करनी पड़ती है। .... मल्टी टास्किंग (multi-tasking) चिंतन विरोधी होता है। मल्टी टास्किंग (multi-tasking) पशु गुण है, क्योंकि पशु को खाने के साथ-साथ अन्य पशुओं और शिकारियों का ध्यान रखना होता है। पशु समाज से मनुष्य समाज की उत्क्रांति में मल्टी टास्किंग (multi-tasking) से सिंगल टास्किंग (single-tasking) की ओर बढ़ती प्रवृत्ति ने बड़ा योगदान किया, क्योंकि इसने चिंता से चिंतन, अतियोग से योग, और अति विचार से सुविचार की क्षमता विकसित करके अपनी भूमिका निभाई। मल्टी टास्किंग करती बया अभी भी अपना घोसला वैसे ही बनती है जैसे हजारों साल पहले।’’

समाज की अवधारण ही सामूहिकता की अवधारण है। समाज का निर्माण सामूहिकता की संस्कृति द्वारा होता है। एक ऐसी संस्कृति के द्वारा जो चेतना-पूरित होती है। मनुष्य समाज उत्सवधर्मी समाज है। उत्सव हो अथवा दुख और विपत्ति के क्षण, मनुष्य समाज में हर जगह सामूहिक चेतना के दर्शन होते हैं। इसके विपरीत आज की पट पाठ की संस्कृति ने आज की पीढ़ी को एकांतिकता की गहरी अंध कूप में ढकेला है जहाँ न तो समाज है, न ही जीवन और न ही चेतना। आपके मन में सवाल उठ सकते हैं - तो क्या आज की पट पाठ की संस्कृति और उसकी मल्टी टास्किंग की प्रक्रिया वर्तमान मनुष्य समाज को आदिम युग की ओर ढकेल रही है? मैं कह सकता हूँ कि यदि ऐसा हुआ है तो यह आदिम मानव समाज की स्थिति से भी बदतर स्थिति है।

हमारी संस्कृति आत्मचिंतन की संस्कृति रही है। सर्वमंगल कामना इसकी आत्मा रही है। यह संस्कृति एक ऐसे परिवेश की मांग करती है जहाँ सघन ध्यान संभव हो सके। इसके लिए अवकाश अर्थात space की आवश्यकता होती है। परंतु आज हमारी यह आत्म self संस्कृति सेल्फी selfie संस्कृति में बदल रही है जहाँ सघन ध्यान के लिए कहीं कोई जगह नहीं है। सेल्फी संस्कृति बाजार की मंगलकामना करनेवाली संस्कृति है। यहाँ सर्व मंगलकामना की बात करना ही बेमानी है। आत्मचिंतन करनेवाला समाज समय की थाह लेनेवाला, समय के साथ संघर्ष करनेवाला, और समय को अपने अनुकूल बनानेवाला समर्थ और पुरुषार्थ करनेवालों का समाज रहा है और उसके इसी सामर्थ्य और पुरुषार्थ ने अब तक की सारी संभ्यताओं को जन्म दिया है। आज की सेल्फी संस्कृति विचारशून्य, संवेदनाशून्य और चेतनाशून्य लोगों की संस्कृति है। समय की धारा में बह जाना इसकी नियति है।

बाजार की ताकत ने लोकसाहित्य को भी प्रभावित किया है। लोक की चेतना सामूहिक होती है। यह वाचाल और मुखर चाहे न होती हो पर यह प्रखर जरूर होती है। लोक की चेतना हर यथास्थिति को समझती और पहचानती है। यह अपने शासकों और शोषकों की नीयत को भी अच्छी तरह समझती और पहचानती है। उसने बाजार को भी समझा और पहचाना है। लोक आत्मनिर्भर और स्वतंत्र प्रकृति का होने के बाद भी शासन की अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश होता है। परंतु उसकी आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता की प्रकृति उसे शासकों और शोषकों की चाटुकारिता से बचाती है। लोक साहित्य में शासकों और शोषकों के विरुद्ध प्रतिरोघ के स्वर भी होते है और उनके प्रति शुभकामनाएँ भी परंतु चाटुकारिता कदापि नहीं होती। लोक संस्कृति की परंपरा इसे अब से कुछ समय पहले तक निभाते आई है, चाहे लोकगीतों में हो, चाहे लोकगाथाओं में हो, लोकनाट्य नाचा में हो या फिर चाहे आज की आधुनिक लोककला मंचों में हो। परंतु वर्तमान में इस परंपरा में ह्रास और विकृति दिखाई देने लगी है। इस ह्रास और विकृति की चर्चाएँ और आलोचनाएँ भी हो रही हैं। पर निदान हमारे हाथों में नहीं है। यह दुखद स्थिति है। इस ह्रास और विकृति की पड़ताल करने पर पता चलता है कि ऐसा करनेवाली लोककलाकारों की वर्तमान पीढ़ी है, लोककलाकारों की वह पीढ़ी है जो बाजार की शक्तियों की गिरफ्त में आ चुकी है। यह वह पीढ़ी है जो पट पाठन और मल्टी टास्किंग की परंपरा से आ रही है और जिसने सेल्फ संस्कृति को त्यागकर सेल्फी संस्कृति को अपना लिया है।

कुछ दशक पहले तक लोकसंस्कृति धन अर्जित करने का साधन अथवा आजीविका का साधन कभी नहीं रही है। और तब तक यह लोक की अभिलाषाओं और आकाक्षाओं को सशक्त तरीके से प्रस्तुत करके लोक अस्मिता को सुदृढ़ करती रही है। लोक को जीवनी शक्ति देती रही है। परंतु अब, जबकि इसमें ह्रास और विकृति पैदा करनेवाली, आज के लोककलाकारो की पीढ़ी, यश और धन की चाह में परंपरा से अर्जित लोक संस्कृति को, लोक साहित्य को बाजार के हाथों बेचने पर उतारू हुई है, या तो इसे परिवर्तनशील समाज की इच्छा मानकर मौन साध लें अथवा बाजार निर्मित सेल्फी संस्कृति से बचने का कुछ तो प्रयास करें।

000

kuber singh sahu

Rajnandgaon

9407685557

storybykuber.blogspot.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: लोक की सेल्फ संस्कृति और आज की बाजार निर्मित सेल्फी संस्कृति // कुबेर
लोक की सेल्फ संस्कृति और आज की बाजार निर्मित सेल्फी संस्कृति // कुबेर
https://lh3.googleusercontent.com/-JoQZIrKDs8k/WW9FSKXspII/AAAAAAAA5h0/vNKxJsbdiSME9r5xoA6sqc6TDowcxE7GACHMYCw/image_thumb%255B4%255D?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-JoQZIrKDs8k/WW9FSKXspII/AAAAAAAA5h0/vNKxJsbdiSME9r5xoA6sqc6TDowcxE7GACHMYCw/s72-c/image_thumb%255B4%255D?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/07/blog-post_78.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/07/blog-post_78.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content