बाढ़ पर मौसमी-चिंतन से कुछ अधिक - राजकुमार कुम्भज

SHARE:

इस बरस फिर वही हुआ जिसकी आशंका जताई जा रही थी। पहाड़ों से लेकर मैदानों तक में बारिश और बाढ़ ने कोहराम मचा दिया। आधे से अधिक देश बाढ़ की चपेट मे...

image

इस बरस फिर वही हुआ जिसकी आशंका जताई जा रही थी। पहाड़ों से लेकर मैदानों तक में बारिश और बाढ़ ने कोहराम मचा दिया। आधे से अधिक देश बाढ़ की चपेट में आ गया। बाढ़ से मरने वालों की गणना अभी जारी है, हालाँकि लाखों की संख्या में लोगों को बचा लिया गया है, जबकि प्रभावितों की संख्या भी लाखों में ही आँकी गई है। एक ताज़ा सर्वेक्षण के मुताबिक इस बरस बाढ़ से हुई हानि का आँकड़ा हज़ारों करोड़ तक पहुँच चुका है, जिसके कि अभी और अधिक बढ़ने की संभावना व्यक्त की गई है। जन-हानि और धन-हानि की आँकड़ेबाज़ी का अंकगणित तो आता रहेगा, किन्तु सरकारी-मशीनरी की लापरवाही और आपदा-प्रबंधन की गैर-ज़िम्मेदारी से कैसे बचा जा सकता है ? क्या बाढ़ पर सिर्फ मौसमी-चिंतन से कुछ अधिक गंभीर सोच-विचार की ज़रूरत नहीं है ?

[ads-post]

हमारे देश में वैसे तो बाढ़ एक सालाना उत्सवप्रिय-समस्या बनती जा रही है, लेकिन इस बार बाढ़ की तबाही ने समूची सदी का रिकॉर्ड ही तोड़ दिया है। एक तरफ हिमालय से निकलने वाली नदियों ने भीषण उत्पात मचाया, तो दूसरी तरफ इतर नदियों ने भी अपना गुस्सैल उफान बराबर बनाए रखा। बाढ़ नियंत्रण के तरीकों को विपदा-प्रबंधन में बदलने की बड़ी ज़रूरत के मद्देनज़र नदियों को बाँधने के लिए जिस बाँध-व्यवस्था को एक हद तक सामयिक-रक्षात्मक उपाय स्वीकार किया गया था, किन्तु देखिए कि अब की बार वही बाँध-व्यवस्था किस हद तक चकनाचूर हो गई है ?

बाढ़-निर्मित-आपदाओं के राहत कार्यों में व्याप्त, व्यापक भ्रष्टाचार भी अपनी विनाश-लीलाएँ दिखाने के लिए प्रतिष्ठित-प्रतिस्पर्धाओं में सक्रिय है। पीड़ितों की जान बचाना उनका ध्येय नहीं, बल्कि माल कमाना ही ध्येय हुआ जाता है। हद हुई जाती है कि बाढ़ का पानी बढ़ता जाता है और आदमी का पानी घटता जाता है। पता नहीं क्यों, सूखा और बाढ़ जैसे प्रकोप भी कुछ लोगों के लिए वसंतोत्सव बन जाते हैं।

सन् सत्तर के दशक में बाढ़ की समस्या का एक विस्तृत-अध्ययन राष्ट्रीय स्तर पर हुआ था, किन्तु वर्ष 1980 में आई उस अध्ययन-रिपोर्ट का उचित उपयोग ही नहीं किया गया। तमाम तटबंधों को धता बताते हुए बाढ़ का पानी आगे बढ़ने के लिए जहाँ-तहाँ से अपना रास्ता बनाने लगता है और रास्ता नहीं मिल पाने की सूरत में वह पानी बस्ती की ओर मुड़ने लगता है। इस वजह से हम पाते हैं कि सड़कें अवरूद्ध हो गईं, रेल-मार्ग टुट गए, राजमार्ग तहस-नहस हो गए, हवाई-अड्डे पानी में डूब गए। समूचे देश का यातायात बुरी तरह से प्रभावित हुआ। सवाल उठता है कि बांधों की ऊँचाई और मज़बूती, और अधिक बढ़ा देने से क्या बाढ़ के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है ? क्या इससे नदियों में गाद आने की समस्या से मुक्ति मिल जाएगी ? नदियों में पहले से जमा गाद का ऊपर उठना कैसे बंद हो सकता है ? इस बात की गारंटी कौन दे सकता है कि ऊँचे से ऊँचा और मज़बूत से मज़बूत बांध कभी भी नहीं टूटेगा ? फिर एक सवाल यह भी उठता है कि मॉनसून की अनिश्चिंतता से अभी तक हमने सीखा क्या है ?

मॉनसून की अनिश्चिंतता के कारण तकरीबन पचपन फीसदी असिंचित भूमिधारक किसान पहले से ही मुसीबतें झेल रहे थे, लेकिन बाढ़ की वज़ह से अब शेष बच रहे पैंतालिस फीसदी कृषक भी संकट में आ गए हैं। ज़ाहिर है कि परंपरागत-तौर से की जा रही खेती-किसानी में कुछ ज़रूरी परिवर्तन किए जाने चाहिए। ज़ाहिर है कि बहु-फसली-व्यवस्था अपनाते हुए ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी इज़राइली तकनीक एडॉप्ट करना चाहिए, जिसमें कम पानी का बेहतर इस्तेमाल होता है। ज़ाहिर है कि बाढ़ एक कलंक है।

शहरीकरण की अंधी दौड़ से पहले बाढ़ को एक ग्रामीण समस्या ही माना जाता था; क्योंकि ग्रामीण जानते थे कि बाढ़ कब व कैसे आएगी और कैसे उससे निजात पाना है ? तब यह तय था कि अधिक पानी आएगा, तो दो-चार दिनों में बह निकलेगा और खेतों के लिए ताज़ा मिट्टी सहज ही उपलब्ध हो जाएगी। ताल-तलैया भर जाएँगे, कुएँ में पानी की आवक बढ़ जाएगी और खेतों की सिंचाई हो जाने के बाद बाढ़ का अतिरिक्त पानी बेहद ही साधारण तरीकों से आगे बढ़ जाएगा। बाढ़ तब जीवन-पद्धति में गहरे तक शामिल थी; क्योंकि ग्रामीण जन-जीवन में बाढ़ की जल-निकासी का बेहतर प्रबंधन सदैव उपलब्ध था, किन्तु अब दो दिन की बाढ़, दो माह तक अपने खेल दिखाती रहती है। यही नहीं बाढ़ का क्षेत्रफल भी निरंतर बढ़ता जा रहा है, जो कि ग्रामीण -क्षेत्र तक सीमित न रहकर शहरी-क्षेत्र के लिए भी गंभीर समस्या बनता जा रहा है।

बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए बांध बांधने से ज़्यादा ज़रूरी है कि बाढ़ के पानी की निकासी पर ध्यान दिया जाए। पानी को अकारण ही रोकने से विकास नहीं, विनाश की ही संभावना अधिक बनती है। इस संदर्भ में राष्ट्रीय स्तर पर एक जल-निकास आयोग का गठन किया जा सकता है, जो सभी राज्यों के जल-निकासी-प्रबंधन की ज़िम्मेदारी निभाए। जल-निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं होने की वज़ह से भी देश को हर बरस बाढ़ का सामना करना पड़ता है। जल-निकासी का पर्याप्त-प्रबंधन हो जाने पर बहुत संभव है कि किसी हद तक बाढ़-नियंत्रण की सफलता हाथ लग जाए।

अन्यथा नहीं है कि देश के विस्तृत होते जाते ढांचागत विकास में सर्वाधिक अनदेखी जल-निकासी की ही हुई है। देशभर में बनाए गए नेशनल हाई-वे और फ्लाई-ओवर इस दुर्घटना के उत्तम उदाहरण कहे जा सकते हैं। ये तमाम हाई-वे और फ्लाई-ओवर गाँवों के ज़मीनी स्तर से ऊपर उठाकर ही बनाए गए हैं, जिनसे स्वाभाविक-तौर पर पानी का प्राकृतिक बहाव बाधित होता है। इसी वज़ह से कई-कई राज्यों के कई-कई गाँव जल-मग्न हो जाने को अभिशप्त हो गए हैं। दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता जैसे महानगर मात्र घंटे-दो घंटे की बारिश होते ही ठप्प हो जाते हैं। वर्ष 2005 के बाद से मुम्बई लगातार किसी न किसी तरह से डूबने की स्थिति में आ जाता है। तब नौ सौ मिलीमीटर बारिश में तकरीबन साढ़े चार सौ लोगों की मौत हो गई थी। उत्तराखंड में वर्ष 2013 की त्रासदी और श्रीनगर में वर्ष 2014 के भयंकर विनाशक-दृश्य आज भी डरा देने के लिए पर्याप्त उदाहरण कहे जा सकते हैं।

वर्ष 2014 की कश्मीर में आई बाढ़ पर पंद्रह अरब डॉलर ख़र्च हो गए थे। यहाँ तक कि उसी बरस आए हुदहुद चक्रवात की भरपाई पर भी हमारे ग्यारह अरब डॉलर स्वाहा हो गए थे। इस तरह से हम देखते हैं और पाते हैं कि तमाम दुनिया के साथ-साथ भारत भी जलवायु-परिवर्तन की परेशानी में फंसा है, और जलवायु-परिवर्तन की यह परेशानी हमें प्रतिवर्ष दस से पंद्रह अरब डॉलर की चोट पहुँचा रही है।

प्रकृति-विज्ञान के प्रति मानवीय-नासमझी ने अभी तक तो मनुष्य को असफल और असभ्य ही साबित किया है। विकासवाद के परिप्रेक्ष्य में बहुविध भुला ही दिया गया है कि हमारी यह पृथ्वी करोड़ों वर्षों के प्राकृतिक-मंथन का अमूल्य उपहार है, जिसे हमने पिछले मात्र सौ बरस के विकास में मटियामेट कर दिया है। जल, जंगल, ज़मीन और वायु के समन्वय से ही प्रकृति का नियंत्रण संभव हो सका है। इनके रिश्ते बेहद महीन अैर बेहतर होने पर ही पृथ्वी की प्रकृति का बेहतर प्रमाण-पत्र बनता है। अगर इनमें से किसी एक को थोड़ा-सा भी धक्का लगता है, तो दूसरा भी स्वतः ही प्रभावित हो जाता है। हालाँकि करोड़ों वर्षों के इस प्राकृतिक-संतुलन को यूँ ही मिटा देना सहज-संभव नहीं है, किन्तु इससे की गई छेड़छाड़ के बाद उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभावों को समझने का सही-सही वक्त आ चुका है; क्योंकि इस प्राकृतिक-पृथ्वी की समाप्ति से पहले मनुष्य जीवन की पारिस्थितिक-संभावनाएँ ही समाप्त हो जाएँगी।

मनुष्य जीवन की पारिस्थितिक-संभावनाएँ अब जलवायु-परिवर्तन से ही संभवतः अधिक सुनिश्चित होने लगी हैं। जलवायु-परिवर्तन के कारण वर्ष 2020 से इस सदी के अंत तक कृषि-उत्पादकता के प्रभावित होने की गंभीर संभावना व्यक्त की गई है, किन्तु यदि जलवायु-परिवर्तन के मद्देनज़र कृषि-कार्य का प्रारूप परिवर्तित कर दिया जाए, तो वर्ष 2021 के बाद से कृषि-पैदावर में दस से चालीस फीसदी तक की वृद्धि जरा भी असंभव नहीं है।

सदी के महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग भी एकाधिक बार चुनौतीपूर्ण लहजे में दुनिया को ललकार चुके हैं कि इसी सदी के अंत तक यह पृथ्वी हमारे रहने लायक नहीं रह जाएगी और हमें अपने लिए किसी दूसरी पृथ्वी की तलाश करना होगी। ज़ाहिर है कि बाढ़ का प्रकोप दुनिया के अंत का एक प्रमुख कारण साबित होगा, जबकि दूसरी तरफ तीसरा विश्व-युद्ध, अगर हुआ तो, पीने के पानी के लिए ही होगा। अतः निवेदन यही बनता है कि प्रकृति से छेड़छाड़ न करते हुए ही विकास को संभव किया जाना चाहिए और दोहन के साथ-साथ पुनर्जीवन पर भी अत्यधिक ज़ोर दिया जाना चाहिए, ताकि मौसम-परिवर्तन की भयानकता से मनुष्य-सभ्यता का बचाव किया जा सके।

हमारे मौसम-वैज्ञानिक हर बरस अनुमान-आधारित जो भविष्यवाणियाँ करते हैं, वे अक्सर ही गलत साबित होती हैं। यहाँ तक कि अच्छे मॉनसून की भविष्यवाणी से तो हम डरने भी लगे हैं। ग्लोबल-वॉर्मिंग के कारण पैदा होते जा रहे मौसम-परिवर्तनों ने पूरी दुनिया में एक अनिश्चितता का भयाक्रांत वातावरण रच दिया है। अब यह अनुमान लगाना बेहद कठिन होता जा रहा है कि कहाँ बारिश मारेगी और कहाँ सूखा मारेगा ? हम दुतरफा जल-संकट से घिरते जा रहे हैं। गर्मियाँ आते ही पीने तक के लिए पानी नहीं मिलता है और बारिश में घरों के चारों तरफ इतना पानी भर जाता है कि सब कुछ पानी-पानी हो जाता है। सूखा और बाढ़ दोनों ही त्रासदियाँ कहने को तो प्राकृतिक ही कही गई हैं, किन्तु इन विपदाओं के लिए मानव-निर्मित विकास की भूमिका भी कुछ कम संदिग्ध नहीं है। कुछ राज्यों में सूखे से संकट और बैंगलुरू में लगभग सवा सौ बरस की बारिश का रिकॉर्ड टूटना क्या हमें डराता नहीं है ?

बाढ़ के कारण, जीवन की तलाश में, पलायन की खबरों से अखबार अटे पड़े हैं। विस्तार से छप रही खबरें हृदय-विदारक और विस्मयकारी होते हुए आँखें खोलने वाली हैं। बाढ़ की तबाही का रिकॉर्ड, सदी का रिकॉर्ड तोड़ रहा है। स्थितियों को जस का तस ही पेश किया जा रहा है, न कि विस्तार में बढ़ा-चढ़ाकर, लेकिन अगर नदियों के जलस्तर में इसी तरह निरंतर बढ़ोतरी होती रही, तो बाढ़ की विकरालता में और अधिक प्रलयकारी भयंकरता आ सकती है। सरकारों की ओर से इस संदर्भ में जो भी कदम उठाए गए हैं वे फौरीतौर पर सही होते हुए ही अपर्याप्त ही हैं। सरकारों की ज़्यादातर नीतियाँ अल्पकालिक ही साबित होती रही हैं। आखिर नदियाँ क्यों अपना रास्ता बदल रही हैं ?

हमें यह समझने की भूल नहीं करना चाहिए कि बाढ़ सिर्फ भारी बारिश का प्रतिफल है। इसके लिए पीछे से आता जल-प्रवाह, कहीं अधिक ज़िम्मेदार है; क्योंकि जल-निकास की पर्याप्त व्यवस्था है ही नहीं। यह एक प्राथमिक, किन्तु अतिजटिल समस्या होती जा रही है। इस समस्या से ज़मीन का इस्तेमाल, जल-प्रबंधन, जल-प्रवाह, जल-निकासी और बाढ़ सुरक्षा तंत्र जैसे कई मुद्दे गहराई से जुड़े हैं। बाढ़ आने और जाने के बीच बीमारियों से बचाव भी एक बड़ा प्रश्न है।

मनुष्यता के संदर्भ में याद रखा जा सकता है कि दाना-पानी और चारा-पानी का इंतज़ाम ही सब कुछ नहीं है। बाढ़ से बचाव के लिए किए जाने वाले कार्य-उपायों में एक बेहतर तालमेल के साथ दीर्घकालिक-नीतियाँ अपनाने की बड़ी जरूरत है। बाढ़-प्रभावित राज्यों को होने वाला नुकसान उनके पुनर्निमाण और पुनर्वास के लिए अर्थव्यवस्था पर भारी पड़नेवाला है। इसके लिए नीति-निर्धारकों में बेहतर समन्वय ज़रूरी है।

मानाकि प्राकृतिक-चक्र को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है, किन्तु तबाही की तीव्रता को ज़रूर सीमित व नियंत्रित किया जा सकता है। बाढ़ से होने वाली बर्बादी को रोकने के लिए तटबंध अंतिम समाधान नहीं है। बाढ़ रोकने की मंशा से बांध थोपने की शर्त अर्थहीन साबित हो चुकी है; क्योंकि प्रायः यही देखा गया है कि जल-प्रवाह के बाधित होने से नदियों ने अपने रास्ते बदले हैं और तमाम तटबंध तोड़े हैं। बाढ़ पर सिर्फ मौसमी-चिंतन की मुद्रा खतरनाक साबित हो सकती है।

सम्पर्क - 331, जवाहरमार्ग, इंदौर-452002 फोन - 0731-2543380 ईमेलः Rajkumar kumbhaj <rajkumarkumbhaj47@gmail.com>

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: बाढ़ पर मौसमी-चिंतन से कुछ अधिक - राजकुमार कुम्भज
बाढ़ पर मौसमी-चिंतन से कुछ अधिक - राजकुमार कुम्भज
https://lh3.googleusercontent.com/-u5whYd48oBQ/Waq-pv1VIxI/AAAAAAAA6sk/FVME7s2qsXA2BFhSf4J2o6xQ-0hoq65QQCHMYCw/image_thumb?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-u5whYd48oBQ/Waq-pv1VIxI/AAAAAAAA6sk/FVME7s2qsXA2BFhSf4J2o6xQ-0hoq65QQCHMYCw/s72-c/image_thumb?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/09/blog-post_27.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/09/blog-post_27.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content