देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–3 : 5 जादू की अंगूठी // सुषमा गुप्ता

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2 जादू की अंगूठी [1] एक बार एक बहुत ही गरीब लड़का था। उसने अपनी माँ से कहा — “माँ, मैं घर छोड़ कर जा रहा हूँ और बाहर एक नयी दुनिया में जा रहा ...

2 जादू की अंगूठी[1]

एक बार एक बहुत ही गरीब लड़का था। उसने अपनी माँ से कहा — “माँ, मैं घर छोड़ कर जा रहा हूँ और बाहर एक नयी दुनिया में जा रहा हूँ। इस शहर में मुझे कोई प्यार नहीं करता और अगर मैं यहाँ रहा तो मैं बिल्कुल बेकार हो जाऊंगा।

इसलिये मैं बाहर जा रहा हूँ और वहीं जा कर अपनी किस्मत आजमाऊंगा। हो सकता है कि इस बीच तुम्हारे दिन भी कुछ सुधर जायें।” यह कह कर वह वहाँ से चल दिया।

चलते-चलते वह एक शहर में आया। वहाँ वह उसकी सड़कों पर घूम रहा था कि उसने एक छोटी बुढ़िया एक पहाड़ी सड़क पर ऊपर जाते देखी।

वह दो बड़ी भारी भारी पानी की बाल्टियाँ ले कर जा रही थी। उससे वे बाल्टियाँ उठ नहीं रहीं थीं सो वह बार बार सांस लेने के लिये रुक जाती थी।

वह उसके पास गया और बोला — “आपसे यह पानी कभी पहाड़ी के ऊपर नहीं ले जाया जायेगा माँ जी। लाइये आपकी ये बाल्टियाँ मैं ले चलता हूँ।”

उसने वे पानी की बाल्टियाँ उस बुढ़िया से ले लीं और वे बाल्टियाँ ले कर उसके पीछे पीछे उसके घर तक चला गया। वहाँ वह उसके घर की सीढ़ियाँ चढ़ा और वे पानी की बाल्टियाँ उसकी रसोई में रख दीं।

उस बुढ़िया के कमरे में बहुत सारी बिल्लियाँ और कुत्ते थे। उस लड़के के अन्दर आते ही वे उसके चारों तरफ घिर गये। कोई अपनी पूँछ हिला रहा था तो कोई अपना सिर उसके पैरों पर रगड़ रहा था।

बुढ़िया बोली — “मैं कैसे तुम्हारा धन्यवाद करूँ बेटा?”

वह लड़का बोला — “नहीं नहीं, धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं माँ जी। यह तो मेरे लिये बड़ी खुशी की बात है कि मैं आपकी कुछ सहायता कर पाया।”

clip_image002बुढ़िया फिर बोली — “अच्छा ज़रा रुको।”

और वह कमरे के बाहर चली गयी। कुछ पल बाद ही वह लौट आयी तो उसके हाथ में एक छोटी सी अंगूठी थी जो बहुत ही सस्ती सी लग रही थी।

वह अंगूठी उस बुढ़िया ने उस लड़के को पहना दी और बोली — “यह बहुत ही कीमती अंगूठी है बेटा। इसका ख्याल रखना। जब भी कभी तुम इसको अपनी उॅगली में घुमाओगे और किसी भी चीज़ की इच्छा करोगे तो वह तुमको मिल जायेगी।

लेकिन बस इस बात का ध्यान रखना कि यह अंगूठी खोने न पाये। क्योंकि अगर यह खो गयी तो यह तुम्हारी की गयी सब चीज़ों को बेकार कर देगी।

इस खतरे से बचने के लिये मैं तुमको अपना एक कुत्ता और एक बिल्ला दे रही हूँ जो तुम जहाँ भी जाओगे तुम्हारे पीछे पीछे जायेंगे। ये दोनों बहुत ही होशियार जानवर हैं और देर सबेर तुम्हारे लिये ये बहुत ही फायदेमन्द साबित होंगे।”

नौजवान लड़के ने उस बुढ़िया को बार बार धन्यवाद दिया और उससे अंगूठी, कुत्ता और बिल्ली ले कर वहाँ से चल दिया।

उसने अपने मन में कहा — “हुँह, यह तो “पुरानी पत्नियों की कहानियाँ” जैसी है।” उसने यह भी नहीं सोचा कि कम से कम वह उस अंगूठी को घुमा कर वहीं यह देख ले कि उसके घुमाने से होता क्या है।

खैर, उसने उस कुत्ते और बिल्ले के साथ जो अब उसके साथ ही चल रहे थे वह शहर छोड़ दिया। उसको जानवरों से प्यार था सो इनको अपने साथ रख कर वह बहुत खुश था।

उन जानवरों के साथ दौड़ते कूदते वह एक जंगल में घुसा। वहाँ आते आते उसे रात हो गयी थी सो उसको एक पेड़ के नीचे सोना पड़ा। पर भूख के मारे उसको नींद ही नहीं आ रही थी।

तब उसको उस अंगूठी की याद आयी जो उसको उस बुढ़िया ने दी थी और जिसको वह अभी भी पहने हुए था। उसने सोचा कि इस समय उस अंगूठी को आजमाने में कोई हर्जा नहीं था।

सो उसने अंगूठी घुमायी और कहा — “मुझे कुछ खाना और कुछ पीने के लिये चाहिये।”

उसके मुँह से अभी ये शब्द पूरी तरह से निकले भी नहीं थे कि उसके सामने तीन कुरसियाँ और एक मेज प्रगट हो गयी। उस मेज पर कई किस्म के खाने पीने की चीजे.ं लगी हुई थीं।

उनमें से एक कुरसी पर वह खुद बैठ गया और एक नैपकिन अपने गले में बाँध लिया। दूसरी दो कुरसियों पर उसने अपने कुत्ते और बिल्ले को बिठा लिया और उनके गले में भी नैपकिन बाँध दिये।

फिर तीनों ने मिल कर खाना खाया। खाना बहुत स्वदिष्ट था। इसके बाद उसको अंगूठी में विश्वास हो गया कि वह वाकई में उसकी इच्छाओं को पूरा कर देगी।

जब खाना खत्म हो गया तो वह जमीन पर लेट गया और उन सब आश्चर्यजनक कामों के बारे में सोचने लगा जो अब वह कर सकता था। बस मुश्किल यह थी कि वह क्या करे और उसे कहाँ से शुरू करे।

कुछ समय के लिये वह यह सोचता रहा कि वह उस अंगूठी से सोने चॉदी के ढेर माँगेगा। फिर वह घोड़ा गाड़ी के सपने देखने लगा। फिर वह किले और जमीन के बारे में सोचने लगा।

जितना ज़्यादा वह इन सब चीज़ों के बारे में सोचता उतना ही उसको पता नहीं चलता कि उसको क्या चाहिये।

जब वह अपने हवाई किले बनाते बनाते थक गया तो वह बोला — “ओह इस तरह से तो मेरा दिमाग ही खराब हो जायेगा।

मैंने कितनी बार सुना है कि जब लोग अमीर हो जाते हैं तो बिल्कुल ही बेवकूफ बन जाते हैं पर मैं अपनी अक्ल हमेशा अपने पास ही रखना चाहता हूँ। आज के लिये इतना काफी है अब मैं इस सबके बारे में कल सोचूँगा।”

कह कर उसने करवट बदली और सो गया। कुत्ता उसके पैरों में गठरी बन कर लेट गया और बिल्ला उसके सिर के पास बैठ कर उसका पहरा देने लगा।

जब वह सो कर उठा तो सूरज काफी ऊपर चढ़ चुका था और पेड़ों की शाखाओं में से झॉक रहा था। हवा धीरे धीरे बह रही थी और चिड़ियाँ चहचहा रही थीं। रात के आराम के बाद अब वह काफी ताजा महसूस कर रहा था।

उसने सोचा कि उस जादुई अंगूठी से एक घोड़ा माँगा जाये पर वह जंगल इतना सुन्दर था कि उसको उसने पैदल ही पार करने का निश्चय किया।

clip_image004उसने एक बार नाश्ता माँगने की सोची पर वहाँ पर जंगली स्ट्राबैरी इतनी अच्छी उग रही थीं कि उसने तो उनका भर पेट नाश्ते की बजाय पेट भर खाना ही खा लिया।

उसने एक बार कुछ पीने के लिये माँगने के लिये सोचा पर फिर देखा कि वहीं पास में बहुत साफ पानी का एक नाला बह रहा था सो उसने उसी पानी को अपने दोनों हाथों का प्याला बना कर उसमें भर कर भर पेट पी लिया।

जंगल में, खेतों में और मैदानों में घूमते हुए अब वह एक बहुत बड़े महल के पास आ पहुँचा। उस समय एक बहुत सुन्दर लड़की उस महल की खिड़की में बैठी बाहर की तरफ देख रही थी।

जैसे ही वह अपने कुत्ते बिल्ले के साथ आगे बढ़ा तो वह उस नौजवान को देख कर प्यार से मुस्कुरायी। हालॉकि उसकी अंगूठी उसके हाथ में सुरक्षित थी पर उसका दिल खो गया था।

उसने सोचा कि अब इस अंगूठी के इस्तेमाल करने का समय आ गया है। सो उसने वह अंगूठी अपनी उॅगली में घुमायी और बोला — “इस महल के सामने ही एक महल बन जाये जो इससे भी ज़्यादा सुन्दर हो और इससे भी ज़्यादा आरामदेह हो।”

पलक झपकते ही उस महल के सामने एक महल खड़ा हो गया। वह महल उस लड़की के महल से बहुत बड़ा था और बहुत सुन्दर था। और वह खुद उस महल के अन्दर था जैसे कि वह वहीं रहता हो।

उसका कुत्ता एक टोकरी में सो रहा था और बिल्ला आग के पास बैठा अपने पंजे चाट रहा था। उसने अपने सामने वाली खिड़की खोली तो उसने अपने आपको उस सुन्दर लड़की की खिड़की के ठीक सामने पाया।

वे दोनों एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराये, एक लम्बी सॉस ली और उस नौजवान को लगा कि अब समय आ गया है जब उसको उस लड़की के पिता के पास जा कर शादी के लिये उसका हाथ माँग लेना चाहिये।

वह लड़की भी अपने माता पिता की तरह से उस नौजवान से बहुत खुश थी सो कुछ ही दिनों में उन दोनों की शादी हो गयी।

पहली बार मिलने के बाद ही उस लड़की ने उससे पूछा — “पर तुम मुझे यह तो बताओ कि तुम्हारा यह महल अचानक ही मशरूम की तरह से यहाँ कहाँ से उग आया?”

अब उस नौजवान को यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसको यह बात बताये या नहीं पर फिर उसने सोचा — “यह तो मेरी पत्नी है और मुझे इससे कोई भेद छिपाना नहीं चाहिये।” सो उसने उसको अंगूठी के बारे में सब कुछ बता दिया और फिर वे दोनों सो गये।

पर जब वे सो रहे थे तो उसकी पत्नी ने उसकी उॅगली से वह अंगूठी उतार ली और उठ कर सारे नौकरों को बुला कर उनसे कहा — “तुरन्त ही यह महल छोड़ दो। हम सब मेरे माता पिता के घर जा रहे हैं।”

जब वह अपने घर पहुँच गयी तो उसने वह अंगूठी घुमायी और बोली — “मेरे पति का महल दूर किसी पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर पहुँचा दो।”

और वह महल वहाँ से ऐसे गायब हो गया जैसे वह वहाँ कभी था ही नहीं। उसने पहाड़ की तरफ देखा तो वह महल उसकी चोटी पर रखा हुआ था।

सुबह जब नौजवान की आँख खुली तो उसने देखा कि उसकी पत्नी तो वहाँ थी ही नहीं। वह तो वहाँ से जा चुकी है। तुरन्त ही उसने खिड़की खोली तो देखा कि वहाँ केवल उसकी पत्नी ही नहीं बल्कि वहाँ तो चारों तरफ भी कुछ भी नहीं था।

जब उसने और ध्यान से देखा तो नीचे चारों तरफ उसको गहरी खाई दिखायी दी और चारों तरफ बरफ से ढके काले पहाड़ दिखायी दिये। उसने अपनी अंगूठी देखी तो वह भी उसके हाथ में नहीं थी।

उसने नौकरों को आवाज दी पर किसी ने भी उसकी आवाज का जवाब नहीं दिया क्योंकि वे भी वहाँ से जा चुके थे। बस केवल उसका कुत्ता और बिल्ला ही उसके पास भागे हुए आ गये।

केवल वे ही वहाँ रुके हुए थे क्योंकि उसने अपनी पत्नी को केवल अंगूठी के बारे बताया था उन दोनों जानवरों के बारे में नहीं।

पहले तो यह सब देख कर वह बहुत परेशान हुआ पर इस सच से भी उसे कोई खास तसल्ली नहीं मिली।

उसने यह देखने के लिये दरवाजा खोल कर नीचे झॉका कि वह वहाँ से बाहर निकल सकता था या नहीं पर वहाँ तो सारे दरवाजे और खिड़कियाँ खुली जगह में खुल रहे थे और नीचे गहरी खाई थी। उसके लिये तो पैर रखने की भी कहीं जगह नहीं थी।

महल में खाना केवल कुछ दिन का ही था सो उसके दिमाग में एक भयानक विचार आया कि वह तो अब मरने वाला था।

मालिक को इस तरह चिन्ता में डूबे देख कर दोनों जानवर उसके पास आये और कुत्ता बोला — “मालिक आप उम्मीद मत छोड़िये। यह बिल्ला और मैं इन पहाड़ों में से अपना रास्ता ढूँढ लेंगे और फिर आपकी अंगूठी आपको ला कर दे देंगे।”

नौजवान बोला — “मेरे प्यारे जानवरों, बस तुम ही मेरी उम्मीद हो। अगर तुम न होते तो भूखे मरने के बजाय मैं तो इस पहाड़ी से नीचे कूद जाना ही ज़्यादा पसन्द करता।”

सो कुत्ता और वह बिल्ला उस महल के ऊपर चढ़ गये और उस पहाड़ी पर से नीचे कूद गये और पहाड़ की तलहटी में आ गये। फिर वे मैदान पार करके एक नदी के पास आये।

वहाँ आ कर कुत्ते ने बिल्ले को अपनी पीठ पर चढ़ाया और वह नदी पार करके नदी के दूसरे किनारे पर आ गया। वहाँ से वे अपने मालिक की बेवफा पत्नी के घर आये।

जब वे वहाँ आये तो रात हो चुकी थी। सारा घर गहरी नींद में डूबा हुआ था। वे दोनों बिल्ले के घुसने के दरवाजे से धीरे से अन्दर घुस गये।

बिल्ले ने कुत्ते से कहा — “तुम यहीं ठहरो और इधर उधर का ज़रा ख्याल रखना तब तक मैं ऊपर जाता हूँ और देखता हूँ कि मैं क्या कर सकता हूँ।”

बिना कोई आवाज किये वह उस कमरे में गया जहाँ वह दुष्ट दिल वाली लड़की सो रही थी। पर क्योंकि उसके कमरे का दरवाजा बन्द था इसलिये वह अन्दर नहीं जा सका।

clip_image006वह परेशान सा सोचने लगा कि अब वह क्या करे कि तभी एक चूहा वहाँ दौड़ता हुआ आ गया। बिल्ले ने उसको तुरन्त दबोच लिया। वह एक बहुत ही बड़ा और मोटा चूहा था। उसने बिल्ले से प्रार्थना की कि वह उसको छोड़ दे।

बिल्ला बोला — “मैं तुमको छोड़ तो दूँगा पर तुम मेरे लिये इस दरवाजे में एक इतना बड़ा छेद बना दो जिसमें से हो कर मैं इस कमरे में चला जाऊं।”

चूहा अपने इस काम पर तुरन्त ही लग गया। लकड़ी काटते काटते उसका चेहरा नीला पड़ गया पर वह छेद तो अभी भी इतना छोटा था कि उसमें से बिल्ला तो क्या अभी वह चूहा खुद भी नहीं निकल सकता था।

सो बिल्ले ने उससे पूछा — “क्या तुम्हारे बच्चे भी हैं?”

“हाँ मेरे 7–8 बच्चे हैं और सब बहुत ताकतवर हैं।”

“तो जाओ और जा कर उनमें से एक को ले आओ और देखना जल्दी ही वापस आना। अगर तुम जल्दी ही वापस नहीं आये तो तुम जहाँ भी होगे मैं तुमको वहीं खा जाऊंगा।

चूहा वहाँ से तुरन्त भाग गया और एक छोटे से चूहे के साथ जल्दी ही वापस आ गया।

बिल्ला बोला — “ओ छोटे चूहे सुनो। अगर तुम होशियार होगे तो तुम अपने पिता की ज़िन्दगी बचा लोगे। तुम ऐसा करो कि इस छेद में से हो कर इस औरत के कमरे में जाओ, उसके बिस्तर में चढ़ो और उसके हाथ में जो अंगूठी हो उसको निकाल कर ले लाओ।”

वह छोटा चूहा तुरन्त अन्दर गया और जल्दी ही परेशान सा वापस आ गया। उसने आ कर बिल्ले को बताया कि उसके हाथ में तो कोई अंगूठी नहीं थी।

बिल्ले ने हिम्मत नहीं हारी। उसने सोचा तो इसका मतलब यह है कि वह उसके मुँह में होगी।

वह फिर बोला — “तुम वापस जाओ और अब की बार जा कर उसकी नाक पर अपनी पूँछ मारना। इससे वह मुँह खोल कर छींकेगी और अंगूठी उसके मुँह से बाहर आ जायेगी। तुम उसको उठा लेना और बस जल्दी से भाग आना।”

सब कुछ वैसे ही हुआ जैसा कि बिल्ले ने कहा था। बिल्ले की तरकीब काम कर गयी थी। थोड़ी ही देर में वह चूहा अंगूठी ले कर वापस आ गया। बिल्ले ने उससे वह अंगूठी ले ली और नीचे भागा।

कुत्ते ने उसको आते देखा तो पूछा — “क्या तुमको अंगूठी मिल गयी।”

“हाँ हाँ बिल्कुल मिल गयी। चलो चलते हैं।”

वे तुरन्त बाहर के दरवाजे से बाहर आ गये और जहाँ से आये थे वहीं दौड़ गये। पर कुत्ते के दिल में बिल्ले के लिये जलन थी क्योंकि अंगूठी बिल्ले के पास थी और कुत्ता सोच रहा था कि अंगूठी उसके पास होनी चाहिये थी।

सो जब वे नदी पर आये तो कुत्ता बोला — “वह अंगूठी तुम मुझे दे दो और मैं तुमको यह नदी पार करा दूँगा।” पर बिल्ले ने उसे अंगूठी देने से मना कर दिया।

इस पर दोनों में कहा सुनी होने लगी तो बिल्ले ने वह अंगूठी कुत्ते को दे दी। पर जब बिल्ला उस अंगूठी को कुत्ते को दे रहा था तो वह अंगूठी पानी में गिर गयी और एक मछली उसको निगल गयी।

कुत्ते ने बिजली की सी तेज़ी के साथ उस मछली को अपने मुँह में पकड़ लिया और इस तरह अंगूठी कुत्ते के पास आ गयी।

कुत्ते ने बिल्ले को नदी तो पार करा दी पर उनमें आपस में सुलह नहीं हुई। वे जब तक मालिक के महल नहीं पहुँचे तब तक वे आपस में झगड़ते ही रहे।

नौजवान ने उत्सुकता से पूछा — “क्या तुम दोनों मेरी अंगूठी ले आये?”

कुत्ते ने अंगूठी अपने मुँह में से निकाल कर मालिक को दे दी पर बिल्ला बोला — “इसका विश्वास मत करना। यह अंगूठी मैंने अपने आप ली है और इस कुत्ते ने इसे मुझसे चुरायी है।”

“पर अगर मैंने वह मछली नहीं पकड़ ली होती तो यह अंगूठी हमेशा के लिये खो गयी होती।” कुत्ता बोला।

इस पर उस नौजवान ने दोनों को थपथपाया और कहा — “ठीक है ठीक है, अब तुम लोग ज़्यादा बहस मत करो। तुम दोनों ही मेरे लिये बहुत कीमती हो।”

फिर वह करीब करीब आधा घंटे तक एक हाथ से कुत्ते को और दूसरे हाथ से बिल्ले को सहलाता रहा। तब कहीं जा कर वे दोनों आपस में दोस्त बने। फिर वह उनको महल में ले गया।

उस अंगूठी को अपनी उॅगली में पहन कर उसने उसको घुमाया और बोला — “अब मेरे महल को उस जगह रख दो जहाँ मेरी उस बेरहम पत्नी का महल है और उसका महल यहाँ रख दो जहाँ मेरा महल है।”

उसके यह कहते ही दोनों महल हवा में उड़े और एक दूसरे की जगह पहुँच गये। उसका अपना महल अब मैदान के बीचोबीच खड़ा था और उसकी पत्नी का महल पहाड़ की एक नुकीली चोटी पर खड़ा था और वह उसमें से चील की तरह चीख रही थी।

नौजवान ने अपनी माँ को बुला भेजा और उसने वहाँ अपनी ज़िन्दगी के आखिरी दिन खुशी खुशी गुजारे जैसा कि उसके बेटे ने उससे वायदा किया था।

कुत्ता और बिल्ला हमेशा उसके साथ रहे पर किसी न किसी बात पर लड़ते झगड़ते रहे पर फिर भी सब लोग आपस में प्रेम से मिल जुल कर रहे।

और अंगूठी? उसको तो अब वह कभी कभी ही इस्तेमाल करता था, ज़्यादा नहीं। उसका इस बारे में यह सोचना था कि लोगों को कोई भी चीज़ अपनी मेहनत से लेनी चाहिये किसी से दया से नहीं।

जब वे पहाड़ के ऊपर गये तो वहाँ उसने अपनी पत्नी को ठंडा और मरा हुआ पाया। वह ठंड और भूख से मर गयी थी।

हालॉकि यह उसका बहुत ही खराब अन्त हुआ पर वह इससे ज़्यादा अच्छे अन्त की हकदार भी तो नहीं थी।


[1] The Magic Ring (Story No 42) – a folktale from Italy from its Trentino area. Adapted from the book: “Italian Folktales”, by Italo Calvino. Translated by George Martin in 1980.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–3 : 5 जादू की अंगूठी // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–3 : 5 जादू की अंगूठी // सुषमा गुप्ता
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