देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–4 : 8 सुनहरी गेंद // सुषमा गुप्ता

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8 सुनहरी गेंद [1] एक बार एक राजा था जिसके तीन बेटियाँ थीं। उसकी सबसे बड़ी बेटी एक बेकर [2] से प्यार करती थी जो महल में डबल रोटी देने आता था।...

8 सुनहरी गेंद[1]

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एक बार एक राजा था जिसके तीन बेटियाँ थीं। उसकी सबसे बड़ी बेटी एक बेकर[2] से प्यार करती थी जो महल में डबल रोटी देने आता था।

वह बेकर भी उसको बहुत प्यार करता था। पर वह उसका हाथ राजा से कैसे माँगे? सो वह राजा के जादूगर[3] के पास गया और उसको अपनी हालत बतायी।

जादूगर बोला — “क्या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? एक बेकर एक राजा की बेटी से प्यार करे? अगर राजा को पता चल गया तो बस तुम्हारा भगवान ही मालिक है।”

बेकर बोला — “इसी लिये तो मैं तुम्हारे पास आया हूँ ताकि तुम उसको इस खबर के लिये तैयार कर दो।”

जादूगर अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोला — “तब तो भगवान हम दोनों की सहायता करे। मैं तो राजा से यह बात कहने की हिम्मत भी नहीं कर सकता।”

जब बेकर जिद करता रहा तो उससे बचने के लिये जादूगर बोला — “ठीक है। मैं राजा साहब से बात करूँगा पर मेरी बात याद रखना कि इस सबसे कुछ अच्छा नहीं होने वाला।”

उसके बाद जादूगर किसी अच्छे दिन की तलाश करता रहा और एक दिन अच्छा दिन देख कर जिस दिन राजा अपने अच्छे मूड में था राजा से बेला — “सरकार, अगर आप इजाज़त दें तो मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ। आप वायदा करें कि आप मुझसे नाराज नहीं होंगे।”

राजा बोला — “बोलो बोलो। मैं तुमसे बिल्कुल नाराज नहीं होऊँगा।” और जादूगर ने बेकर की बात राजा से कह दी।

यह सुन कर राजा तो पीला पड़ गया। वह बोला — “क्या? तुम यह सब मुझसे कहने की हिम्मत भी कैसे कर सके? चौकीदार, ले जाओ इस जादूगर को।”

वे जब उस बेचारे जादूगर को ले कर बाहर जा रहे थे तो राजा को याद आया कि उसने तो उस जादूगर से नाराज न होने का वायदा किया था सो उसने जादूगर को तो छोड़ दिया और बजाय जादूगर के अपनी तीनों बेटियों को पकड़ने का हुकुम दे दिया और उनको केवल डबल रोटी और पानी पर रखने का हुकुम सुना दिया।

इस तरह से उसने अपनी बेटियों को 6 महीने तक के लिये बन्द रखा। उसके बाद उसने सोचा कि अब तक तो कम से कम उनको अक्ल आ गयी होगी अब उनको थोड़ी सी हवा तो लगने दी जाये।

सो उसने उनको एक बन्द गाड़ी में नौकरों के साथ एक बड़ी सी सड़क पर घूमने के लिये भेज दिया। जब गाड़ी आधे रास्ते पहुँची तो सड़क पर अचानक ही घना कोहरा छा गया।

उस कोहरे में से एक जादूगर निकला। उसने गाड़ी का दरवाजा खोला, तीनों लड़कियों को बाहर निकाला और अपने साथ ले कर भाग गया।

जब कोहरा छॅटा तो नौकरों ने देखा कि तीनों राजकुमारियाँ तो वहाँ से गायब थीं और गाड़ी खाली पड़ी थी। उन्होंने इधर उधर बहुत पुकारा, बहुत ढूँढा पर उन राजकुमारियों का कहीं पता नहीं चला। वे बेचारे खाली गाड़ी ले कर वापस महल चले आये।

अब राजा बस एक ही काम कर सकता था कि उसने अपना एक आदेश जारी कर दिया कि जो कोई भी उन तीनों लड़कियों को ढूँढ कर लायेगा वह उन तीनों लड़कियों में से किसी एक से शादी कर सकेगा।

उस बेकर को भी महल से उसी समय निकाल दिया गया था। महल से निकाले जाने के बाद वह अपने दो दोस्तों के साथ दुनिया की यात्रा पर निकल पड़ा था।

एक शाम को एक जंगल में उन्होंने देखा कि एक घर में रोशनी हो रही था। उन्होंने उस महल का दरवाजा खटखटाया तो वह तो पहले से ही खुला था सो वह दरवाजा पूरा का पूरा बिना किसी कोशिश के ही खुल गया।

वे लोग महल के अन्दर चले गये और सीढ़ियों पर चढ़ गये पर उनको कहीं कोई दिखायी नहीं दिया। वहाँ तीन आदमियों के खाने के लिये एक मेज सजी रखी थी। उस पर खाना लगा रखा था।

वे उस मेज पर बैठ गये और वहाँ उन्होंने पेट भर कर खाना खाया। उनको वहाँ तीन सोने के कमरे भी दिखायी दे गये जिनमें तीन बिस्तर लगे हुए थे सो वे जा कर उन पर सो भी गये।

सुबह जब वे लोग सो कर उठे तो उन्होंने देखा कि उनके बिस्तरों के पास तीन बन्दूकें रखीं हैं। रसोईघर में खाने का सामान रखा है पर वह अभी तक पकाया नहीं गया है।

सो उन लोगों ने सोचा कि दो लोग तो शिकार पर जायें और एक आदमी घर में रह कर खाना बनाये। बेकर उन दोनों में से एक था जिनको शिकार पर जाना था। सो दो दोस्त शिकार पर चले गये और एक दोस्त घर में खाना बनाने के लिये रह गया।

जो आदमी घर में खाना बनाने के लिये रह गया था वह रसोईघर में आग जलाने के लिये गया। जब वह आग जलाने की जगह कोयला रख रहा था तो उसकी चिमनी के ऊपर से एक सुनहरी गेंद उछलती हुई उसके पैरों के पास गिर पड़ी और आ कर वहाँ रुक गयी।

उसने बहुत कोशिश की कि वह उसके रास्ते से हट जाये पर वह उसके रास्ते से नहीं हटी। उसने उसे ठोकर भी मारी पर फिर भी वह बार बार उसके पैरों के पास आ कर ही रुक जाती थी। जितनी बार वह उसको ठोकर मारता उस गेंद को वहाँ से हटाना चाहता उसको वहाँ से हटाना उतना ही मुश्किल होता।

आखिर उसने उसमें एक बहुत ज़ोर की ठोकर मारी तो वह गेंद फट गयी और उसमें से एक टेढ़ी मेढ़ी छड़ी लिये एक छोटा सा कुबड़ा निकल पड़ा। वह कुबड़ा बहुत ही छोटा था। वह उस आदमी के केवल घुटनों तक ही पहुँच रहा था।

पर उस छोटे से कुबड़े ने उस आदमी को अपनी छोटी सी छड़ी से इतनी ज़ोर से मारा कि वह आदमी जमीन पर गिर पड़ा। यहाँ तक कि उसकी एक टॉग में घाव भी हो गया।

उसके बाद वह कुबड़ा उस गेंद में घुस गया, गेंद बन्द हो गयी और चिमनी में से बाहर निकल कर गायब भी हो गयी।

अधमरा सा वह आदमी अपने हाथों और पैरों पर घिसटता हुआ अपने कमरे में आया और आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया। खाना पकाने के बारे में तो इस समय वह सोच भी नहीं सकता था।

इसके अलावा क्योंकि वह एक नीच आदमी था इसलिये अपने बारे में सोचने के अलावा वह कुछ और भी नहीं सोच सकता था। उसने सोचा क्योंकि मेरी पिटाई हुई है इसलिये मेरे दोस्तों की पिटाई भी होनी चाहिये।

सो जब उसके दोनों दोस्त शिकार से लौटे तो उन्होंने देखा कि शाम का खाना तैयार नहीं था और उनका दोस्त बिस्तर में पड़ा था।

उन्हों उससे पूछा कि क्या हुआ तो वह बोला कि कोई खास बात नहीं बस यहाँ के बुरे कोयले की वजह से उसको कुछ चक्कर सा आ गया था तो वह गिर गया। अगली सुबह वह ठीक हो गया और बेकर के साथ शिकार पर चला गया।

बेकर का दूसरा दोस्त जो घर में खाना बनाने के लिये रह गया था वह रसोईघर में आग जलाने के लिये गया तो पिछले दिन की तरह से उस दिन भी बाहर की तरफ से एक सुनहरी गेंद उछलती हुई आयी और उसके पैरों के पास आ कर रुक गयी।

उसने भी उस गेंद को अपनी ठोकर से मार कर बहुत दूर फेंकना चाहा पर वह गेंद भी बार बार उसके पैरों के पास आ कर रुक जाती थी।

आखिर उसने भी बहुत ज़ोर लगा कर उसको ठोकर मारी तो वह गेंद फट गयी और उसमें से फिर वही छोटा कुबड़ा अपनी टेढ़ी मेढ़ी डंडी के साथ निकल आया और उस डंडी से उस दोस्त को इतना मारा कि वह भी अधमरा सा ही हो गया। वह भी वहाँ से उठ कर अपने बिस्तर पर जा लेटा।

जब उसके दोनों दोस्त शाम को शिकार से लौटे तो उन्होंने देखा कि शाम का खाना तैयार नहीं था और उनका यह दोस्त भी बिस्तर में पड़ा था।

उन्होंने उससे पूछा कि क्या हुआ तो वह भी यही बोला कि कोई खास बात नहीं बस यहाँ के बुरे कोयले की वजह से उसको कुछ चक्कर सा आ गया था जिसकी वजह से वह गिर पड़ा और उसको चोट आ गयी।

बेकर बोला — “यह बात मेरी तो कुछ समझ में नहीं आयी। मैं खुद कल घर पर रहूँगा और देखता हूँ कि क्या बात है।”

पहले दोनों दोस्त बोले — “हाँ हाँ तुम भी रह कर देख लेना। तुमको भी ऐसे ही चक्कर आ जायेंगे।”

अगले दिन बेकर खाना बनाने के लिये घर पर रह गया और बाकी दोनों दोस्त शिकार पर चले गये। वह भी आग जलाने के लिये रसोईघर में गया तो उसके पैरों के बीच में भी एक सुनहरी गेंद आ पड़ी और बराबर उछलती रही।

बेकर एक कुरसी के ऊपर खड़ा हो गया तो वह गेंद भी उसकी कुरसी पर चढ़ कर उछलने लगी। फिर वह एक मेज पर चढ़ गया तो वह गेंद वहाँ भी कूद कर चढ़ गयी और उछलने लगी।

फिर उसने वह कुरसी मेज पर रख ली और उस कुरसी पर खड़े हो कर शान्ति से एक मुर्गी के पंख नोचने लगा ताकि वह गेंद कुरसी की टॉगों के बीच में आराम से उछलती रहे।

बहुत जल्दी ही वह गेंद उछलते उछलते थक गयी और उसमें से वह छोटा सा कुबड़ा निकला — “नौजवान, तुम मुझे अच्छे लगे। तुम्हारो दोस्तों ने तो मुझे ठोकर मारी जबकि तुमने नहीं। उनकी तो मैंने पिटाई की पर तुम्हारी मैं सहायता करूँगा।”

बेकर खुशी से बोला — “बहुत अच्छा। तब अभी तो तुम खाना बनाने में मेरी सहायता करो। तुमने पहले ही मेरा काफी समय बरबाद कर दिया है।

जाओ पहले मेरे लिये लकड़ी ले कर आओ और फिर उसको पकड़ कर रखना जब तक मैं उसे काटता हूँ।”

वह कुबड़ा लकड़ी का एक लठ्ठा ले आया और उस लठ्ठे को सीधा रखने के लिये उस लठ्ठे के ऊपर झुका और बेकर ने लकड़ी काटने के लिये अपनी कुल्हाड़ी उठायी।

पर यह क्या? बेकर ने उस लठ्ठे को काटने की बजाय वह कुल्हाड़ी उस कुबड़े की गरदन पर चला दी। कुबड़े का सिर कट कर अलग गिर गया और वह मर गया। उसका शरीर उसने कुँए में डाल दिया।

बेकर के दोस्त जब शिकार से वापस लौटे तो वह बोला — “तुम बेचारे लोग। यह कोई खराब कोयले की बात नहीं थी। किसी की मार ने तुम लोगों को तकलीफ पहुँचायी थी।”

“क्या? उसने तुमको नहीं मारा?”

“नहीं, एक बार भी नहीं। बल्कि उलटे मैंने उस कुबड़े का सिर काट डाला और उसका शरीर कुँए में फेंक दिया।”

“क्या तुम ठीक कह रहे हो?”

“अगर तुम्हें मेरे ऊपर विश्वास नहीं हो रहा तो तुम मुझे कुँए में नीचे उतार दो। मैं तुम लोगों को वहाँ से उसको अभी निकाल कर ले आता हूँ।”

उन लोगों ने बेकर की कमर में एक रस्सी बॉध दी और उसको कुँए में नीचे उतार दिया।

कुँए में आधे रास्ते जा कर एक बहुत बड़ी खिड़की थी जिसमें से रोशनी बाहर आ रही थी। बेकर ने उस खिड़की में से झॉका तो उसने देखा कि राजा की तीनों लड़कियाँ एक बन्द कमरे में सिलाई और कढ़ाई कर रहीं थीं।

राजा की लड़कियों को देख कर तो बेकर बहुत खुश हुआ।

राजा की सबसे बड़ी बेटी ने उससे कहा — “तुम अपनी ज़िन्दगी चाहते हो तो यहाँ से भाग जाओ। अब जादूगर के आने का समय हो गया है। तुम रात को आना जब वह सो रहा हो। तब तुम आ कर हम सबको आजाद करा देना।”

खुशी खुशी बेकर कुँए में और नीचे उतरने लगा और उसकी तली तक पहुँच गया। उसने उस कुबड़े का शरीर उठाया और उसको अपने दोस्तों को दिखाने के लिये उसको ऊपर ले आया।

X X X X X X X

उसी रात उसके दोस्तों ने उसको एक तलवार के साथ कुँए में फिर से नीचे उतार दिया ताकि वह राजा की बेटियों को आजाद करा सके।

वह उसी बड़ी खिड़की से अन्दर घुस गया। वहीं सोफे पर वह जादूगर सो रहा था और राजा की तीनों बेटियाँ उसको पंखा झल रही थीं। अगर वह एक पल के लिये भी अपना पंखा झलना बन्द कर देतीं तो वह जादूगर उठ जाता।

बेकर बोला — “तुम लोग रुको मैं इस जादूगर की इस तलवार से हवा करता हूँ।”

कह कर उसने तलवार के एक ही वार से उस जादूगर का सिर काट डाला। वह मर गया और उसका कटा हुआ सिर कुँए की तली में जा पड़ा।

राजा की बेटियों ने आलमारी की ड्रौअर खोलीं तो उनमें उनकोे बहुत सारे हीरे, नीलम और लाल भरे हुए मिल गये। बेकर ने उनको एक टोकरी में भर लिया और फिर उसे रस्सी से बॉध कर अपने दोस्तों से कह कर उसे ऊपर खिंचवा दिया।

इसी तरह से उसने उन लड़कियों को भी ऊपर भेज दिया।

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जब वह लड़कियों को रस्सी से बॉध कर ऊपर भेज रहा था तो जब उसने पहली लड़की की कमर में रस्सी बॉधी तो वह बोली — “यह अखरोट लो।”

जब उसने दूसरी लड़की की कमर में रस्सी बॉधी तो वह बोली — “लो यह बादाम लो।”

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तीसरी लड़की तो उसकी प्रेमिका थी। आखीर में जाने की वजह से उसने उसको चूम लिया और एक हेज़ल नट[4] दिया।

राजकुमारियों को ऊपर भेजने के बाद अब बेकर के ऊपर जाने की बारी थी। वह अपने इन दोनों दोस्तों पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं करता था।

उन्होंने उस कुबड़े के बारे में उससे छिपा कर पहले ही यह साबित कर दिया था कि वे भरोसा करने लायक नहीं थे। इसलिये उसने अपनी कमर में रस्सी बॉधने की बजाय उसे उस सिर कटे जादूगर की कमर में बॉध दिया।

जब उसके दोस्तों ने उसको खींचा तो वह शरीर ऊपर और ऊपर चलता चला गया लेकिन फिर अचानक धम्म से वह कुँए की तली में गिर पड़ा। इसका मतलब यह था कि बेकर का अन्दाजा सही था। उन पर सचमुच ही विश्वास नहीं किया जा सकता था।

यह सब उन लोगों ने इसलिये किया ताकि वे राजा की बेटियों को राजा के पास सही सलामत पहुँचा सकें और यह कह सकें कि उनको उन्हीं ने आजाद कराया था।

उसके बाद राजा अपनी घोषणा के अनुसार अपनी दो बेटियों की शादी उन दोनों से कर देता।

यह देख कर कि बेकर के दोस्तों ने अब रस्सी खींचना बन्द कर दिया है राजा की बेटियों ने चिल्लाना शुरू कर दिया — “यह क्या? तुमने उसको तो नीचे ही छोड़ दिया जिसने हमको आजाद कराया?”

वे दोनों बोले — “चुप रहो। अगर तुम यह जान लो कि तुम्हारे लिये क्या अच्छा है और क्या बुरा तो तुम चुपचाप हमारे साथ महल चली चलो और हमारी हाँ में हाँ मिलाती रहो।”

वे दोनों दोस्त तीनों राजकुमरियों को ले कर राजा के पास गये और यह सोचते हुए कि इन्हीं आदमियों ने मेरी बेटियों का छुड़ाया है राजा ने उन दोनों को गले लगाया और बहुत खुश हुआ।

हालाकि वे दोनों ही आदमी उसकी पसन्द के नहीं थे पर फिर भी उसने उन दोनों को अपनी एक एक बेटी देने का वायदा किया। पर उसकी बेटियों ने शादी को टालने का कोई न कोई बहाना बना दिया। वे बेकर के लौटने का इन्तजार कर रही थीं।

उधर कुँए में छोड़े हुए बेकर को उन तीनों लड़कियों की दी हुई भेंटें याद आयीं तो सबसे पहले उसने अखरोट तोड़ा। उसमें से एक राजकुमार के पहनने लायक चमकती हुई पोशाक निकली।

फिर उसने बादाम तोड़ा तो उसमें से छह घोड़ों से खींची जाने वाली एक गाड़ी निकली। फिर उसने हेज़ल नट तोड़ा तो उसमें से बहुत सारे सिपाही निकल पड़े।

उसने राजकुमार वाले वे कपड़े पहने और फिर उन छह घोड़ों में से एक घोड़े पर बैठ कर सिपाहियों के साथ वहाँ से निकल कर राजा के पास जा पहुँचा।

जब राजा को एक भले आदमी के आने का पता चला तो उसने अपना एक खास दूत उसको अन्दर लाने के लिये भेजा।

दूत ने उससे पूछा — “तुम लड़ाई चाहते हो या शान्ति?”

बेकर बोला — “जो मुझे प्यार करते हैं उनसे शान्ति और जिन्होंने मुझे धोखा दिया है उनसे लड़ाई।”

राजा की बेटियाँ उसको देखने के लिये एक मीनार पर चढ़ गयीं थीं। उसको देखते ही वे चिल्लायीं — “यही है तो वह आदमी जिसने हमें आजाद कराया है।”

सबसे बड़ी लड़की बोली — “यह मेरा दुलहा है। यह मेरा दुलहा है।”

दोनों दोस्त जिन्होंने अपने अपने हथियार उठा लिये थे और मैदान में पहुँच चुके थे, बोले — “यह किसान वेष बदल कर यहाँ क्या करने आया है?”

बेकर की पूरी सेना ने फायर कर दिया और उसके वे दोनों दोस्त वहीं मर गये।

राजा ने उस नये आने वाले का अपनी बेटियों को आजाद कराने वाले की तरह से स्वागत किया।

तब वह राजा के सामने सिर झुका कर बोला — “सरकार मैं वही बेकर हूँ जिसको आपने अपनी बेटी की शादी करने से मना कर दिया था।”

राजा तो यह सुन कर आश्चर्य में पड़ गया पर फिर उसने अपनी घोषणा के अनुसार अपनी सबसे बड़ी बेटी की शादी उस बेकर के साथ कर दी।

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बेकर ने उस राज्य पर फिर बहुत सालों तक खुशी खुशी राज किया।


[1] The Golden Ball – a folktale from Italy from its Pisa area.

Adapted from the book: “Italian Folktales”, by Italo Calvino”. Translated by George Martin in 1980.

[2] Baker is the man who bakes bread, bun, cakes, pies etc.

[3] Translated for the word “Sorcerer”

[4] Hazelnut – a kind of nut. See its picture above.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–4 : 8 सुनहरी गेंद // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–4 : 8 सुनहरी गेंद // सुषमा गुप्ता
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