डॉ हरिश्चन्द्र शाक्य की 10 लघु कथाएँ

SHARE:

- 1. माफ़ी एक बुजुर्ग आदमी को एक नौजवान ने साइकिल से टक्कर मार दी और बजाय अपनी गलती मानने के उल्टे बरस पड़ा, ''ऐ बुडढे! दिखाई नहीं देत...

- clip_image002


1. माफ़ी

एक बुजुर्ग आदमी को एक नौजवान ने साइकिल से टक्कर मार दी और बजाय अपनी गलती मानने के उल्टे बरस पड़ा, ''ऐ बुडढे! दिखाई नहीं देता क्या?''

बुजुर्ग ने नौजवान की तरफ देखा और अत्यन्त विनम्रता से कहा, ''गलती हो गयी बेटा, माफ कर दो।''

बुजुर्ग का अप्रत्याशित व्यवहार देखकर नौजवान सोच में पड़ गया कि वह अपनी गलती की माफी कैसे माँगे।

2. दहेज

गाँव में चर्चा फैल गयी थी कि राम स्वरूप की जवान बेटी किसी युवक के साथ भाग गयी।

''मैंने कहा था न कि लड़की के हाथ जल्दी पीले कर दो... पर कौन सुनता है बुड्ढों की बात... अब सारी इज़्ज़त धूल में मिल गयी कि नहीं।'' रामस्वरूप के बाप रामस्वरूप पर क्रोधाग्नि बरसा रहे थे।

''क्यों चीख रहे हो पिताजी .... गीता एक समझदार लड़की है.... उसने जो कुछ किया है अच्छा ही किया है.... कैसे कर पाता उसके पीले हाथ.... यह सतयुग, त्रेता अथवा द्वापर नहीं है पिताजी!.... यह कलयुग है घोर कलयुग.... गीता के हाथ तो तब ही पीले हो सकते थे जब अपने पास लड़के वाले को दहेज देने को होता... वह भाग गयी तो क्या हुआ.... उससे रिश्तेदारी नहीं चलेगी.... उससे जीवन भर का नाता टूट गया.... चलो कम से कम दहेज से तो पीछा छूट गया।'' यह कहते-कहते रामस्वरूप की आँखों से अश्रुओं की प्रबल धारा प्रवाहित होने लगी थी।

3. दहेज दानव

भोले-भाले गरीब किसान राम लखन को अपनी बेटी गीता के लिए वर तालशते-तलाशते पूरे दस वर्ष हो चुके थे किन्तु आज तक वह उसके हाथ पीले नहीं कर पाया था। सैकड़ों वर उसने देखे, पसन्द किये तथा सैकड़ों बार उसने गीता को नुमायशाना अन्दाज में लड़के वालों के समक्ष प्रस्तुत किया। अनेक लड़कों को चाँद से चमकते चेहरे वाली गीता पसन्द आई किन्तु वह आज तक कुँवारी रही यह उसके भाग्य का ही खेल था जिसे टालना रामलखन या गीता के वश में नहीं था क्योंकि रामलखन के पास लड़के वालों को देने को दहेज नहीं था।

आज जब गीता ने फाँसी लगाकर आत्म हत्या कर ली और अपने गरीब पिता की बरसों से उलझी हुई समस्या सुलझा दी तो समाज के कुछ लोगों ने गीता के लिए शोक संवेदना व्यक्त करते हुए रामलखन की रोती बिलखती आत्मा को धीरज बँधाया किन्तु अधिकतर लोग फुसफुसाकर कह रहे थे-

''किसी फुक्के का गर्भ ठहर गया होगा स्साली के.... बिना शादी हुए ही रामलखन को नाना बनाकर कैसे मुँह दिखा सकती थी इसलिए मर गयी।''

कहा जाता है कि दीवालों के भी कान होते हैं। किसी व्यक्ति ने रामलखन के कानों तक जब वह बात पहुँचा दी तो उसको गीता की मृत्यु से भी ज्यादा गहरा सदमा पहुँचा और उसको तुरंत दिल का दौरा पड़ गया। चन्द मिनटों में ही उसके प्राण पँखेरू उड़ गये। वातावरण की खामोशी सिर्फ यह प्रश्न करती रह गयी कि कैसा है दहेज दानव! कब तक डसेगा बेकसूर गरीबों को?

4. तमाचा

इसे भाग्य का खेल कहूँ या अपनी अक्षमता कि डबल एम.ए. कर लेने के बाद भी मुझे कोई ऐसा रोजगार नहीं मिल पाया था जिसे रोजगार की संज्ञा दे पाता। रोजी-रोटी चलाने के लिए अनचाहे ही मुझे न जाने क्या-क्या करना पड़ रहा था। जो कुछ मुझे करना पड़ रहा था वह सब करने की तो मैंने कभी भी कल्पना नहीं की थी। मेरी क्षमताओं और योग्यताओं के साथ कितना खिलवाड़ हुआ था यह तो मैं ही समझ सकता था या फिर कोई मेरा समानधर्मा।

आजकल मैं घर-घर जाकर ट्यूशन पढ़ाकर अपनी उल्टी-सीधी जीविका चला रहा था। संतुष्टि तो कहाँ मिलती, हाँ किसी तरह अनिश्चितताओं के दौर में जीवन की गाड़ी ढकिल रही थी। मेरे पास मेरी एक पुरानी साइकिल थी वह भी एक शादी समारोह में कोई दुष्ट चुरा ले गया था। जीवन की विषमताओं से हार न मानते हुए मैंने पैदल जाकर ही ट्यूशन पढ़ाने जाना शुरू कर दिया था। आज जब मैं किसी एक जगह से ट्यूशन पढ़ाकर गुजर रहा था और किसी दूसरी जगह पढ़ाने जा रहा था। रास्ते में एक मकान के पास गुजरा तो एक औरत अपने बच्चों को डाँटते हुए पढ़ने को बैठाल रही थी और कह रही थी, ''चलो होम वर्क करो मास्टर आ रहा होगा।''

उस औरत की बात सुनकर मुझे ऐसा लगा कि आम आदमी की नजर में ट्यूटर की क्या इतनी ही इज्जत होती है। न तो मैं उस औरत को जानता था और न ही उसके यहाँ पढ़ाने वाले ट्यूटर को। यद्यपि औरत ने वह बात मुझसे न कहकर किसी अज्ञात ट्यूटर के बारे में कही थी किन्तु फिर भी न जाने क्यों लगा था कि उस औरत ने एक जोरदार तमाचा मेरे गाल पर मार दिया है।

5. अभागिन

विमला की आँसुओं से भीगी आँखों की कोरें यह बताने का प्रयास कर रही थीं कि फूल सी कोमल उस लड़की को कोई गहरी वेदना अथवा टीस अवश्य थी। क्या वह अपने आपको किसी कारणवश अभागिन महसूस कर रही थी?

जी हाँ! वह अपने आप को अभागिन ही महसूस कर रही थी। उसका अभागापन था तो यह था कि वह अत्यन्त ही निर्धन परिवार में पैदा हुई थी। पैसे के बिना उसके रूप और सौन्दर्य का कोई मूल्य नहीं था इस क्रूर, हत्यारे और स्वार्थी समाज में। उसके दरिद्र नारायण पिता अनेक जगह उसका रिश्ता तय करने गये किन्तु हत्यारी दहेज की माँग ने उन्हें कहीं उँगली तक नहीं टेकने दी।

अन्त में उन्हें अपने से भी निर्धन एक परिवार मिला जिसके सदस्यों को दो वक्त का भोजन तक उपलब्ध हो पाना सिर पर पहाड़ उठा लेने के समान कठिन था। मरता क्या न करता, इसी परिवार के दिनेश नामक लड़के से विमला के पिता ने विमला का रिश्ता तय कर दिया। दिनेश लम्बा, छरहरा, गौरवर्ण, सुन्दर जवान था किन्तु उसकी गरीबी के कारण कोई भी व्यक्ति उसकी शादी का रिश्ता लेकर नहीं आया था जबकि उसकी उम्र पैंतीस वर्ष हो चुकी थी। दिनेश के पिता ने विमला के रिश्ते को बिना दहेज तय किये ही आँधी के आम की तरह गपक लिया।

आज विमला के घर पर दिनेश के पिता आये हुए थे। उन्होंने रोते बिलखते हुए विमला के पिता से कहा था, ''भाई साहब! आपकी अभागिन लड़की से रिश्ता तय कर लेने के कारण मेरा इकलौता बेटा दिनेश इस संसार से सदा के लिए चला गया।''

दूसरे कमरे में बैठी विमला के यह सुनते ही होश उड़ गये थे और वह पत्थर के बुत की भाँति बैठी सोच रही थी कि मैं भी कैसे अभागिन हूँ। यह सोचने के सिवा उसके पास बचा ही क्या था।

6. ईमानदारी का मूल्य

राजेश गाँव में दूध का धन्धा करता था। वह आस पास के गाँवों से दूध खरीद कर बीस किलोमीटर दूर शहर में ले जाकर हलबाइयों को बेचता था। पड़ोस के एक गाँव से वह साठ लीटर दूध लाता था। शहर के हलवाई हफ्ते में एक दिन उसके दूध का एक लीटर का नमूना भर लेते और उसके सामने उस दूध का खोया बनाते। यदि एक लीटर दूध का दो सौ पचास ग्राम खोया बनता तो दूध शुद्ध माना जाता और यदि खोया दो सौ पचास ग्राम से कम बनता तो दूध में पानी की मिलावट मानी जाती। भैंसों के पालक दूध में पानी मिलाये बगैर नहीं मानते थे और हलवाई पानी के पैसे काटे बगैर नहीं मानते थे।

एक दिन राजेश के दूध के नमूने के एक लीटर दूध का मात्र एक सौ पच्चीस ग्राम खोया ही बना इसलिए हलवाई ने उसके आधे पैसे काटकर पूरे हफ्ते का भुगतान कर दिया। राजेश म नही मन तिलमिलाकर रह गया। उसने आज तय कर लिया था कि सारा दूध अपनी आँखों के सामने ही दुहायेगा। किसी का विश्वास करने की अब कोई आवश्यकता नहीं। जब चार पैसे बचेंगे ही नही ंतो ऐसा धन्धा करने से क्या फायदा।

अगले दिन वह एक व्यक्ति के यहाँ दूध दुहाने पहुँचा। भैंस वाले व्यक्ति ने प्रतिदिन की भाँति भैंस उटका दी और फिर थोड़ी देर बाद आने को कहा। राजेश उस व्यक्ति की नजर में तो चला गया किन्तु वह उसके दरबाजे के पास ही छिपकर खड़ा हो गया। उस व्यक्ति ने तुरन्त भैंस दुही और दूध में पानी मिलाने लगा। राजेश सब कुछ छिपकर देख रहा था। उसने उस व्यक्ति को रँगे हाथों पकड़ लिया। उस व्यक्ति पर घड़ों पानी पड़ गया और उसने उसी समय से राजेश को दूध बेचना बन्द कर दिया। इस घटना की गाँव में चर्चा हो गयी तो अन्य लोगों ने भी कोई न कोई बहाना बनाकर राजेश को दूध नहीं दिया। राजेश खाली टंकियाँ लेकर घर लौट आया। अन्ततः ईमानदारी से धन्धा करने की कसम खा लेने के कारण उसका दूध का धन्धा ही बन्द हो गया। वह सोच रहा था कि क्या समाज में ईमानदारी का यही मूल्य है।

7. सालिगराम

सालिगराम मोमबत्तियों की एक फैक्टरी में काम करता था। दीपावली के मात्र छह दिन शेष रह गये थे इसलिए रात दिन जोरों का काम चल रहा था। मोमबत्तियों की इतनी माँग थी कि आज का बनाया माल कल के लिए नहीं बचता था।

ऐसे ही समय में सालिगराम की बाँह मोमबत्तियों की मशीन के शिकंजे में फँस गयी और उसे काफी चोट लग गयी। दूसरे दिन जब वह आया तो उसकी बाँह सूजी हुई थी। उसने फैक्टरी के मालिक से गिड़गिड़ाते हुए कहा, ''बाबूजी अब मुझसे काम नहीं होगा, मेरा हिसाब कर दीजिये।''

''क्या बाबूजी बाबूजी लगा रखी है.... काम करो.... तमाम आर्डर आ रहे है.... हिसाब दीपावली के दिन कर दूँगा।'' फैक्टरी मालिक ने झुँझलाते हुए कहा। फैक्टरी मालिक को उस समय अपने मुनाफे के अलावा और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। सालिगराम ने काम न कर पाने के लिए बहुत अनुनय विनय की पर फैक्टरी मालिक को तनिक दया न आयी। विवशता के आँसू पीता हुआ व फैक्टरी मालिक को कोसता हुआ सालिगराम काम पर लग गया। उसकी वेदना को समझने वाला वहाँ कोई न था।

8. जेबकतरा

मैं अपने ही नगर मैनपुरी के करहल चौराहे पर खड़ा था। वहाँ काफी चहल--पहल थी। वहाँ दो चार लोग अचानक ही एक युवक को मारने-पीटने लगे। तभी देखते ही देखते वहाँ भीड़ लग गयी और सारी भीड़ उस युवक को पीटने लगी। भीड़ में से अनेक स्वर उभर रहे थे। कोई कहता, ''मारो-मारो और मारो साले को'' तो कोई कहता कि जेब कतरा है साला। कोलाहल सुनकर मैं भी भीड़ के पास मामले की जानकारी प्राप्त करने पहुँचा। तब तक लोग उस युवक की जामा तलाशी लेने लगे थे। वह युवक रोने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहा था। भीड़ के लोगों ने उसकी जेब में पड़े हुए रुपये भी निकाल लिये। जिसके हाथ में जितने रुपये पड़े छीन ले गया।

भीड़ में मेरे जैसे करुणाशील हृदय रखने वाले लोग भी खड़े थे। उन लोगों ने युवक को पूछा, ''तू कहाँ का रहने वाला है और असली बात क्या थी?''

युवक ने फूट-फूट कर रोते हुए बताया, ''बाबूजी मैं बिहार का रहने वाला हूँ.... रोजी रोटी के लिए एक ट्रक पर क्लीनर हूँ.... मेरा ट्रक यहाँ खराब हो गया.. जब ट्रक ठीक हो गया तो मेरे साथी मुझे छोड़कर ट्रक हाँक ले गये.... मेरी जेब में बहुत कम पैसे थे... मैं यहाँ खड़ा-खड़ा सोच रहा था कि अब क्या करूँ तभी मेरा हाथ हड़बड़ाहट में एक व्यक्ति की जेब से छू गया। उस व्यक्ति ने चिल्ला दिया- जेब क़तरा- जेब कतरा... फिर क्या था मुझ पर घूसों और थप्पड़ों की बरसात होने लगी। मेरे पास जो बहुत कम पैसे थे वे भी आप लोगों ने छीन लिये।''

उस युवक की करुण कहानी सुनकर करुणाशील हृदय रखने वालों का हृदय द्रवित हुए बिना न रह सका।

''किसने लिये हैं इसके रुपये?'' भीड़ में से एक स्वर उभरा। तभी कई मानव स्वर उस आवाज के सुर में सुर मिलाने लगे। कुछ भले लोगों को यह भी पता था कि उस युवक की जामा तलाशी लेते समय किस-किसने उसके रुपये छीने थे। वे भीड़ में से उन लोगों को पकड़ लाये।

''वापस करो इसके रुपये.... शर्म नहीं आती एक गरीब को लूटते हुए।'' एक कड़क आवाज आयी।

भले लोगों ने सख़्ती से पेश आते हुए तीन चार लोगों से उस युवक के पैसे वापस करवा दिये। मुझे वहाँ खड़े-खड़े इस बात से बेहद सुखानुभूति हो रही थी कि भलमंसाहत अभी जिन्दा है। मैं यह समझ ही नहीं पा रहा था कि असली जेबकतरा वह युवक था या भीड़ में खड़े वे लोग थे जिन्होंने उस संकटग्रस्त युवक के पैसे छीने थे।

9. किसकी गलती

नगर के तहसील चौराहे पर एक ई रिक्शा खड़ा था जिसके पास दो व्यक्ति तेज आवाज में वाद-विवाद कर रहे थे। विवाद की जड़ दरअसल वह ई रिक्शा ही था। दोनों लोग सफेद कुर्त्ते-पाजामें पहने हुए थे। आखिर क्या हुआ, यह जिज्ञासा लेकर मैं भी वहाँ पहुँचा। एक व्यक्ति कह रहा था कि इस ई रिक्शा चालक ने मेरी स्कूटी में टक्कर मार दी जिससे उसका शीशा टूट गया है।

दूसरा व्यक्ति कह रहा था, ''बेचारे रिक्शा चालक की कोई गलती नहीं है.... आप बेवजह उसे रिक्शावाला कमजोर आदमी समझ कर सता रहे हैं।''

विवाद और तेज होता जा रहा था और वहाँ भीड़ जमा होती जा रही थी। भीड़ सिर्फ यह देखती है कि गलती किसकी है। जिसकी गलती होती है उसी पर पिल पड़ती है।

पहला व्यक्ति उस ई रिक्शा वाले पर रौब जमाते हुए शीशे का हर्जाना माँग रहा था। न देने पर उसे कोतवाली ले जाने को कह रहा था। दूसरा व्यक्ति जो उस ई रिक्शा की सवारी था वह भी कहाँ था अन्याय होता देख कर चुप रहने वाला।

पहला व्यक्ति भड़क कर बोला, ''आप कौन होते हैं इसकी हिमायत करने वाले।'' मुझसे भी फिर रहा नहीं गया और फिर मैं भी बीच में बोल पड़ा, ''ये प्रत्यक्षदर्शी गवाह हैं।'' मैंने फिर दूसरे भले सज्जन से कहा, ''भाई साहब! आप इनके साथ कोतवाली चले जाइए।''

भीड़ ने जान लिया था कि गलती पहले वाले व्यक्ति की है। भीड़ ने यह भी जाँच कर ली कि यदि शीशा यहाँ टूटा होता तो उसकी किरचें तो सड़क पर पड़ी होनी चाहिए थी। भीड़ का न्याय त्वरित न्याय होता है। पहले वाले व्यक्ति ने समझ लिया कि उस पर भीड़ की मार पड़ने ही वाली है तभी वह अपनी स्कूटी पर सवार होकर भाग गया। ई रिक्शा चालक ने राहत की साँस ली और उन भले सज्जन को भगवान समझ कर अपना ई रिक्शा आगे बढ़ा ले गया। उस असली हीरो जिसका ई रिक्शा चालक कुछ नहीं लगता था की सभी तारीफ करते खड़े रह गये।

10. दोष

नाले के पुल पर प्रतिदिन चाट पकौड़ी का खोमचा लगाने वाला मोहन आज अपने खोमचे का सारा सामान पानी से भरे हुए गन्दे नाले में फेंक रहा था। मेरी नजर जैसे ही मोहन पर पड़ी तो मैंने कौतूहल से दूर से ही मोहन को देखा और सोचने लगा कि आज इस मोहन को न जाने क्या हो गया है। कहीं उस पर पागलपन का दौरा तो नहीं पड़ा है।

अपनी जिज्ञासा शान्त करने हेतु मैं मोहन के पास पहुँचा तो देखा कि उसी क्षेत्र का एक दबंग किस्म का पैंतीस वर्षीय युवक आँखें नीली-पीली करते हुए उसे आज्ञा देने में लगा हुआ था। दबंग युवक मोहन से जो-जो कहता जाता मोहन वही-वही करता जाता। समोसों से भरा थाल मोहन ने नाले में ऐसे झोंक दिया जैसे कूड़े-करकट का ढेर हो। गोल गप्पों से भरी काँच की पेटी, लोहे का स्टोब, भगौने आदि सभी बर्तन मोहन ने पल भर में ही नाले में फेंक दिये।

मोहन ने जब सारा सामान नाले में फेंक दिया तब दबंग युवक ने उसका ठेला लात मारकर दूर भगा दिया और मोहन से शेर की भाँति गरजते हुए बोला, ''भाग यहाँ से.... कल से यहाँ आया तो मैं तेरी जुबान खींच लूँगा।'' यह कहते-कहते उसने मोहन के गाल पर दो चार तमाचे भी जड़ दिये।

मोहन सब कुछ ऐसे सह गया जैसे उसके अन्दर पुरुषत्व ही नहीं हैं। वहाँ खड़ी सारी भीड़ मूक दर्शक बनी तमाशा ही देखती रही। किसी की भी यह हिम्मत नहीं पड़ी कि कोई उस दबंग युवक से पूछ ले कि एक गरीब को क्यों सता रहे हो। मैंने भी वहाँ चुपचाप खड़े रहना ही उचित समझा क्योंकि मधुमक्खियों के छत्ते में हाथ डालने का मतलब मैं भली-भाँति समझता था।

मोहन के साथ जो बदसलूक हो चुका था वह ही कम नहीं था किन्तु दबंग युवक का कलेजा अभी भी नहीं ठंडाया था। मोहन जैसे ही उस युवक के पैर छूकर अपना ठेला लेकर जाने लगा दबंग युवक ने उसे फिर रोक लिया और थोड़ा आगे चलकर बीच चौराहे पर उसे मुर्गा बना दिया।

मोहन के साथ ऐसा बदसलूक क्यों किया गया यह सब जानने को मेरा मन मस्तिष्क बेचैन था। मैं जिसको भी पूछता वही कह देता, ''पता नहीं।'' जब दबंग युवक दूर चला गया तब बड़ी मुश्किल से एक व्यक्ति ने अपना मुँह खोला। उसने बताया कि मोहन का दोष यह था कि अभी कुछ देर पहले दबंग युवक का अंगरक्षक यहाँ चाट पकौड़ी खाने आया था। जब वह खा चुका तो मोहन ने उससे पैसे माँग दिये थे।

--------

- डॉ0 हरिश्चन्द्र शाक्य, डी0लिट्0

शाक्य प्रकाशन, घण्टाघर चौक,

क्लब घर, मैनपुरी-205001 (उ0प्र0) भारत

स्थाई पता- ग्राम कैरावली पोस्ट तालिबपुर, मैनपुरी (उ0प्र0) भारत


ईमेल- harishchandrashakya11@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: डॉ हरिश्चन्द्र शाक्य की 10 लघु कथाएँ
डॉ हरिश्चन्द्र शाक्य की 10 लघु कथाएँ
https://lh3.googleusercontent.com/-kEq9vj0xASk/WjvKh3747oI/AAAAAAAA9l0/UAkJ1gox3Xw7pl3m6leq8xk18GHGeucvACHMYCw/clip_image002_thumb?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-kEq9vj0xASk/WjvKh3747oI/AAAAAAAA9l0/UAkJ1gox3Xw7pl3m6leq8xk18GHGeucvACHMYCw/s72-c/clip_image002_thumb?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/12/10.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/12/10.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content