देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–8 : 1 पत्थरों से रोटी // सुषमा गुप्ता

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देश विदेश की लोक कथाएं — यूरोप–इटली–8 : इटली की लोक कथाएं–8 संकलनकर्ता सुषमा गुप्ता Cover Page picture: Colosseum, Rome, Italy Published Und...

देश विदेश की लोक कथाएं — यूरोप–इटली–8 :

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इटली की लोक कथाएं–8

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संकलनकर्ता

सुषमा गुप्ता

Cover Page picture: Colosseum, Rome, Italy

Published Under the Auspices of Akhil Bhartiya Sahityalok

E-Mail: sushmajee@yahoo.com

Website: http://sushmajee.com/folktales/index-folktales.htm

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Copyrighted by Sushma Gupta 2014

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Map of Italy

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विंडसर, कैनेडा

मार्च 2017

Contents

सीरीज़ की भूमिका 4

इटली की लोक कथार्ऐं8 5

1 जीसस और सेन्ट पीटर सिसिली में 7

2 नाई की घड़ी 22

3 एक रानी और एक डाकू की शादी 27

4 सात मेमनों के सिर 38

5 दो समुद्री सौदागर 44

6 एक नाव जिसमें ़ ़ ़ 60

7 मुर्गीखाने में राजा का बेटा 76

8 एक शानदार राजकुमारी 89

9 जानवरों की बातें और उत्सुक पत्नी 104

10 सुनहरों सींगों वाला बछड़ा 114

11 कप्तान और जनरल 123

12 मोर का पंख 132

13 बागीचे की जादूगरनी 139

14 लम्बी पॅूछ वाला चूहा............................................................................................ 149

सीरीज़ की भूमिका

लोक कथाएं किसी भी समाज की संस्कृति का एक अटूट हिस्सा होती हैं। ये संसार को उस समाज के बारे में बताती हैं जिसकी वे लोक कथाएं हैं। आज से बहुत साल पहले, करीब 100 साल पहले, ये लोक कथाएं केवल ज़बानी ही कही जातीं थीं और कह सुन कर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी जाती थीं इसलिये किसी भी लोक कथा का मूल रूप क्या रहा होगा यह कहना मुश्किल है।

आज हम ऐसी ही कुछ अंग्रेजी और कुछ दूसरी भाषा बोलने वाले देशों की लोक कथाएं अपने हिन्दी भाषा बोलने वाले समाज तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। इनमें से बहुत सारी लोक कथाएं हमने अंग्रेजी की किताबों से, कुछ विश्वविद्यालयों में दी गयी थीसेज़ से, और कुछ पत्रिकाओं से ली हैं और कुछ लोगों से सुन कर भी लिखी हैं। अब तक 1200 से अधिक लोक कथाएं हिन्दी में लिखी जा चुकी हैं। इनमें से 400 से भी अधिक लोक कथाएं तो केवल अफ्रीका के देशों की ही हैं।

इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि ये सब लोक कथाएं हर वह आदमी पढ़ सके जो थोड़ी सी भी हिन्दी पढ़ना जानता हो और उसे समझता हो। ये कथाएं यहाँ तो सरल भाषा में लिखी गयी है पर इनको हिन्दी में लिखने में कई समस्याएं आयी है जिनमें से दो समस्याएं मुख्य हैं।

एक तो यह कि करीब करीब 95 प्रतिशत विदेशी नामों को हिन्दी में लिखना बहुत मुश्किल है. चाहे वे आदमियों के हों या फिर जगहों के। दूसरे उनका उच्चारण भी बहुत ही अलग तरीके का होता है। कोई कुछ बोलता है तो कोई कुछ। इसको साफ करने के लिये इस सीरीज़ की सब किताबों में फुटनोट्स में उनको अंग्रेजी में लिख दिया गया हैं ताकि कोई भी उनको अंग्रेजी के शब्दों की सहायता से कहीं भी खोज सके। इसके अलावा और भी बहुत सारे शब्द जो हमारे भारत के लोगों के लिये नये हैं उनको भी फुटनोट्स और चित्रों द्वारा समझाया गया है।

ये सब कथाएं “देश विदेश की लोक कथाएं” नाम की सीरीज के अन्तर्गत छापी जा रही हैं। ये लोक कथाएं आप सबका मनोरंजन तो करेंगी ही साथ में दूसरे देशों की संस्कृति के बारे में भी जानकारी देंगी। आशा है कि हिन्दी साहित्य जगत में इनका भव्य स्वागत होगा।

सुषमा गुप्ता

मई 2016

इटली की लोक कथाएं–8

इटली देश यूरोप महाद्वीप के दक्षिण पश्चिम की तरफ स्थित है। पुराने समय में यह एक बहुत ही शक्तिशाली राज्य था। रोमन साम्राज्य अपने समय का एक बहुत ही मशहूर राज्य रहा है। उसकी सभ्यता भी बहुत पुरानी है – करीब 3000 साल पुरानी। इसका रोम शहर 753 बीसी में बसाया हुआ बताया जाता है पर यह इटली की राजधानी 1871 में बना था। इटली में कुछ शहर बहुत मशहूर हैं – रोम, पिसा, फ्लोरैन्स, वेनिस आदि। यहाँ की टाइबर नदी बहुत मशहूर है। यूरोप में लोग केवल लन्दन, पेरिस और रोम शहर ही घूमने जाते हैं।

रोम में कोलोज़ियम और वैटिकन अजायबघर सबसे ज़्यादा देखे जाते हैं। पिसा में पिसा की झुकती हुई मीनार संसार का आदमी द्वारा बनाये गये आठ आश्चर्यों में से एक है। इटली का वेनिस शहर नहरों में बसा हुआ एक शहर[1] है। इस शहर में अधिकतर लोग इधर से उधर केवल नावों से ही आते जाते हैं। यहाँ कोई कार नहीं है कोई सड़क पर चलने वाला यातायात का साधन नहीं है, केवल नावें हैं और नहरें हैं। शायद तुम्हें मालूम नहीं होगा कि असल में वेनिस शहर कोई शहर नहीं है बल्कि 118 द्वीपों को पुलों से जोड़ कर बनाया गया है इसलिये ये नहरें भी नहरें नहीं हैं बल्कि समुद्र का पानी है और वह समुद्र का पानी नहर में बहता जैसा लगता है।

इटली का रोम कैसे बसा? कहते हैं कि रोम को बसाने वाला वहाँ का पहला राजा रोमुलस था। रोमुलस और रेमस दो जुड़वाँ भाई थे जो एक मादा भेड़िया का दूध पी कर बड़े हुए थे। दोनों ने मिल कर एक शहर बसाने का विचार किया पर बाद में एक बहस में रोमुलस ने रेमस को मार दिया और उसने खुद राजा बन कर 7 अप्रैल 753 बीसी को रोम की स्थापना की। इटली के रोम शहर में संसार का मशहूर सबसे बड़ा कोलोज़ियम[2] है जहाँ 5000 लोग बैठ सकते हैं। पुराने समय में यहाँ लोगों को सजाएं दी जाती थीं।

इटली में ही वैटीकन सिटी है जो ईसाई धर्म के कैथोलिक लोगों का घर है पर यह एक अपना अलग ही देश है। वहाँ इसके अपने सिक्के और नोट हैं। इसकी अपनी सेना है। पोप इस देश का राजा है। इसका अजायबघर बहुत मशहूर है। यह संसार का सबसे छोटा देश है क्षेत्र में भी और जनसंख्या में भी – 842 आदमी .4 वर्ग मील के क्षेत्र में बसे हुए।

इटली की बहुत सारी लोक कथाएं हैं। इटली की सबसे पहली लोक कथाएं 1550 में लिखी गयी थीं। इतालो कैलवीनो[3] का लोक कथाओं का यह संग्रह इटैलियन भाषा में 1956 में संकलित करके प्रकाशित किया गया था। इनका सबसे पहला अंग्रेजी अनुवाद 1962 में छापा गया। उसके बाद सिलविया मल्कही[4] ने इनका अंग्रेजी अनुवाद 1975 में प्रकाशित किया। फिर मार्टिन ने इनका अंग्रेजी अनुवाद 1980 में किया। ये लोक कथाएं हम मार्टिन की पुस्तक से ले कर अपने हिन्दी भाषा भाषियों के लिये यहाँ हन्दी भाषा में प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है कि ये लोक कथाएं तुम लोगों को पसन्द आयेंगी।

इतालो ने इस पुस्तक में 200 लोक कथाएं संकलित की हैं। हमने उन 200 लोक कथाओं में से 125 लोक कथाएं चुनी हैं। फिर भी क्योंकि वे बहुत सारी लोक कथाएं हैं इसलिये वे सब पढ़ने की आसानी के लिये एक ही पुस्तक में नहीं दी जा रही हैं। इससे पहले हम इटली की लोक कथाओं के सात संकलन[5] प्रकाशित कर चुके हैं जिनमें हमने वहाँ की क्रमशः 15, 17, 10, 11, 18, 13 और 12, यानी अब तक 96 लोक कथाएं, प्रकाशित कर चुके हैं। तुम सब लोगों को यह जान कर प्रसन्नता होगी कि वे सभी पुस्तकें बहुत पसन्द की गयीं।

तो अब यह प्रस्तुत है तुम्हारे हाथों में इटली की लोक कथाओं का आठवाँ संकलन – “इटली की लोक कथाएं–8”। इसमें हम वहाँ की 14 लोक कथाएं, नम्बर 165 से 182 तक की, प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा ही नहीं बल्कि पूरा विश्वास है कि यह आठवाँ संकलन भी तुम लोगों को पहले सात संकलनों की तरह ही बहुत पसन्द आयेगा और मजेदार लगेगा।

1 जीसस और सेन्ट पीटर सिसिली में[6]

जीसस और सेन्ट पीटर की यहाँ छोटी छोटी पाँच लोक कथाएं दी जा रही हैं जो इटली के सिसिली टापू पर बहुत मशहूर हैं।

1 पत्थरों से रोटी

जब जीसस अपने 13 अपोसिल्स[7] के साथ दुनिया में इधर उधर घूम रहे थे तो एक बार उनके पास खाने के लिये रोटी नहीं थी। सबको बहुत भूख लगी थी।

जीसस ने सबसे कहा — “तुम सब लोग नीचे से एक एक पत्थर उठा लो।” सब अपोसिल्स ने नीचे से एक एक पत्थर उठा लिया। सब अपोसिल्स ने बड़े बड़े पत्थर उठाये जबकि पीटर ने एक सबसे छोटा पत्थर उठाया।

सब फिर अपने सफर पर आगे बढ़ गये।

बड़े बड़े पत्थर उठाने की वजह से सबके पास बोझा था सो सब झुक कर चल रहे थे। पर क्योंकि पीटर के पास बहुत ही छोटा सा पत्थर था इसलिये न तो उसके पास बोझा था और न ही वह झुक कर चल रहा था। वह बड़े आराम से चल रहा था।

चलते चलते वे सब एक शहर में आये। वहाँ उन्होंने डबल रोटी खरीदने की कोशिश की पर वहाँ किसी के पास भी डबल रोटी नहीं थी।

तब जीसस बोले — “मैं तुम लोगों को आशीर्वाद दूँगा और तुम्हारे ये पत्थर के टुकड़े डबल रोटी बन जायेंगे।”

कह कर उन्होंने आशीर्वाद दिया और सब अपोसिल्स के पास खाने के लिये खूब सारी डबल रोटी हो गयी। पर क्योंकि पीटर ने पत्थर का एक बहुत ही छोटा टुकड़ा उठाया था तो उसके पास डबल रोटी का एक बहुत ही छोटा सा टुकड़ा था।

पीटर ने जीसस से पूछा — “और मेरा खाना मालिक?”

जीसस बोले — “मेरे भाई, तुमने इतना छोटा सा पत्थर क्यों उठाया? और लोगों ने कितने बड़े बड़े पत्थर उठाये तो देखो कि उनके पास कितना सारा खाना है।”

सेन्ट पीटर बेचारा चुप रह गया। वे फिर आगे चल दिये। आगे चल कर जीसस ने फिर उन सबको पत्थर उठाने को कहा।

इस बार चालाक पीटर ने एक चट्टान उठा ली जिसको वह बहुत मुश्किल से उठा सकता था। उसको ले कर चलने में उसको बहुत परेशानी हो रही थी। पर दूसरे लोगों ने हल्के पत्थर उठाये थे सो वे लोग अपने हल्के पत्थर ले कर आसानी से चल रहे थे।

जीसस ने अपने अपोसिल्स से धीरे से कहा — “देखना अब हम पीटर के ऊपर हँसेंगे।”

चलते चलते वे सब फिर एक शहर में आये। वहाँ तो बहुत सारी डबल रोटियों की दूकानें थीं और उनमें बहुत सारी गरम गरम डबल रोटी ओवन से निकल कर तभी तभी आ रही थीं।

यह देख कर सारे अपोसिल्स ने अपने अपने पत्थर नीचे फेंक दिये और डबल रोटी लेने चल दिये।

सेन्ट पीटर ने जो अपनी चट्टान के बोझ से दोहरा हुआ चला आ रहा था जब डबल रोटी की इतनी सारी दूकानें देखीं तो वह गुस्से में भर कर वहाँ से चला गया और उसने डबल रोटी की तरफ मुड़ कर भी नहीं देखा।

2 एक बुढ़िया को भट्टी में रखना

वहाँ से वे सब फिर आगे चले तो उनको एक आदमी मिला। पीटर उसके पास गया और उससे कहा — “देखो अपने जीसस मालिक आ रहे हैं तुम उनसे कुछ माँग लो।”

वह आदमी जीसस के पास गया और बोला — “मालिक मेरे पिता बूढ़े हैं और बीमार हैं। उनको ठीक कर दीजिये।”

जीसस ने जवाब दिया — “बुढ़ापे के बोझ का तो कोई भी डाक्टर कुछ भी नहीं कर सकता पर फिर भी तुम ध्यान से सुनो। अगर तुम अपने पिता को किसी भट्टी में डाल दो तो वह एक बच्चा बन कर बाहर आ जायेंगे।”

जैसे ही जीसस ने उससे यह कहा उसने यह कर दिया। वह तुरन्त ही घर दौड़ा गया और अपने बूढ़े पिता को भट्टी में डाल दिया। आश्चर्य, उसमें से एक लड़का निकल आया।

पीटर को यह घटना देख कर बहुत आनन्द आया। उसने सोचा मैं भी ऐसा ही करके देखता हूँ कि क्या मैं भी किसी बूढ़े को एक बच्चे में बदल सकता हूँ या नहीं।

तभी उसे रास्ते में एक और आदमी मिला जो जीसस से अपनी मरती हुई माँ का इलाज कराने के लिये आ रहा था। पीटर ने सोचा यह अच्छा मौका है सो उसने उसको रास्ते में ही रोक लिया और उससे पूछा — “तुम किसको ढूँढ रहे हो?”

वह आदमी बोला — “ंमैं मालिक को ढूँढ रहा हूँ। मेरी माँ की उम्र बढ़ती जा रही है और वह बहुत बीमार है। केवल मालिक ही उसको ठीक कर सकते हैं।”

पीटर बोला — “मालिक तो अभी आये नहीं हैं पर पीटर यहाँ है और वह तुम्हारी सहायता कर सकता है। सुनो तुम्हें क्या करना है। एक भट्टी में आग जलाओ और अपनी माँ को उसमें डाल दो तो वह ठीक हो जायेगी।”

वह गरीब आदमी यह जानता था कि पीटर मालिक का बहुत ही प्रिय और खास आदमी है इसलिये उसने उसका विश्वास कर लिया। वह तुरन्त ही अपने घर भागा भागा गया और अपनी माँ को जलती भट्टी में डाल दिया।

पर उसमें से उसकी माँ तो ठीक हो कर बाहर नहीं आयी।

अब जरा सोचो कि उस बेचारी बुढ़िया का क्या हुआ होगा? वह बेचारी तो ज़िन्दा ही जल कर मर गयी।

उधर बेटा चिल्लाया — “ओह मैं तो मुश्किल में पड़ गया। इस दुनिया का और दूसरी दुनिया का भी यह कैसा सेन्ट है? इसने तो मेरे ही हाथों मेरी ही माँ को जलवा दिया। अब मैं क्या करूँ?”

वह पीटर को ढूँढने निकला तो उसको जीसस मिल गये। उसने उनको सब कुछ बताया तो वह यह सब सुन कर बहुत हँसे।

“पीटर, पीटर, पीटर, यह तुमने क्या किया?” पीटर ने उनसे माफी माँगने की बहुत कोशिश की पर उस आदमी के रोने चिल्लाने की आवाज में उसकी अवाज जीसस को बिल्कुल भी सुनायी नहीं दी।

और वह आदमी तो बस चिल्लाये ही जा रहा था — “मेरी माँ वापस करो, मुझे अपनी माँ चाहिये।”

उसका रोना सुन कर जीसस उस आदमी के घर गये। उसकी माँ के लिये आशीर्वाद बोला और उस बुढ़िया को ज़िन्दा किया और ठीक किया।

पीटर को उन्होंने जो सजा उनको देनी चाहिये थी वह उन्होंने उसको नहीं दी।

3 डाकुओं की कहानी

ऐसे ही मालिक जीसस अपने अपोसिल्स के साथ एक बार फिर कभी दुनिया में घूम रहे थे कि एक कच्ची सड़क पर उनको रात हो गयी।

जीसस ने पूछा — “पीटर, यहाँ हम लोग अपनी रात कैसे गुजारेंगे?”

पीटर बोला — “उधर कुछ चरवाहे अपनी भेड़ें चरा रहे हैं वहाँ चल कर देखते हैं। आइये, मेरे साथ आइये।” सो वे सब उन चरवाहों की तरफ पहाड़ी के नीचे की तरफ चल दिये।

वहाँ जा कर पीटर ने पूछा — “क्या हमको यहाँ रात भर के लिये सोने की जगह मिल सकती है? हम लोग गरीब यात्री हैं और बहुत थक गये हैं और बहुत भूखे भी हैं।”

चरवाहों के सरदार ने उनको नमस्ते तो की पर उनको खाना खिलाने या उनको रात भर के सोने के लिये जगह देने के लिये उनमें से कोई हिला तक नहीं।

वे अपने गूँधे हुए आटे को एक तख्ते पर बेलने की कोशिश कर रहे थे पर उनको यह नहीं लग रहा था कि वे 13 आदमियों को खाना खिला पायेंगे। जबकि वे सभी भूखे थे।

फिर बाद में उन्होंने कहा — “उधर वह भूसे का ढेर है आप लोग वहाँ सो सकते हैं।”

मालिक और उनके अपोसिल्स ने अपनी अपनी पेटी बाँधी और बिना एक शब्द बोले भूसे के ढेर पर सोने चले गये।

वे लोग अभी मुश्किल से लेटे ही थे कि शोर से उनकी ऑख खुल गयी। वहाँ कुछ डाकू चिल्लाते हुए आ पहुँचे थे “हाथ ऊपर करो, हाथ ऊपर करो।”

चरवाहे उन डाकुओं कोे बुरा भला कह रहे थे। लोग एक दूसरे को मार रहे थे। चरवाहे इधर उधर भाग रहे थे। डाकुओं ने उनके खेतों पर कब्जा कर लिया तो उन्होंने वहाँ कुछ जानवरों को देखा।

फिर उस भूसे के ढेर को देखा तो वहाँ कुछ लोगों को सोते पाया तो उनसे कहा — “हर एक अपने अपने हाथ ऊपर करो। और बताओ कि आप लोग हैं कौन?”

पीटर बोला — “13 थके और भूखे गरीब यात्री।”

डाकू बोले — “अगर ऐसा है तो बाहर निकलो। खाना तो तख्ते पर बिल्कुल अनछुआ रखा है। चरवाहों के खरचे पर पेट भर कर खाना खाओ क्योंकि हमको तो अपनी जान बचा कर भागना भी है।”

सभी बहुत भूखे थे। अब उनको किसी से खाना माँगने की भी जरूरत नहीं पड़ी। वे उस तख्ते की तरफ भागे चले गये। पीटर बोला — “डाकुओं की जय हो। वे अपने अमीर होने के मुकाबले में गरीब और भूखे लोगों के बारे में ज़्यादा सोचते हैं।”

अपोसिल्स भी चिल्लाये — “डाकुओं की जय हो।” और सबने मिल कर पेट भर खाना खाया।

4 बोतल में बन्द मौत

एक बार एक बहुत ही अमीर और दयालु सराय वाला था जिसने अपनी सराय के आगे एक साइन बोर्ड लगा रखा था। उस साइन बोर्ड के ऊपर लिखा था “मेरी सराय में आने वाले को खाना मुफ्त”।

सो सारा दिन लोग उसकी सराय में आते रहते थे और वह सब को मुफ्त खाना खिलाता रहता था।

एक बार जीसस और उनके 12 अपोसिल्स भी उस शहर में आये। उन्होंने भी वह साइन बोर्ड पढ़ा तो सेन्ट थोमस[8] बोला — “मालिक, जब तक मंै अपनी ऑखों से देख न लूँ और अपने हाथों से छू कर महसूस न कर लूँ तब तक मैं किसी चीज़ पर विश्वास नहीं करता। सो चलिये अन्दर चलते हैं।”

सो जीसस और सब अपोसिल्स उस सराय के अन्दर गये। उन्होंने सबने वहाँ खूब खाया और खूब पिया। सराय के मालिक ने भी उनका शाही स्वागत किया।

वहाँ से चलने से पहले सेन्ट थोमस बोला — “ओ भले आदमी, तुम मालिक से कोई चीज़ क्यों नहीं माँग लेते?”

clip_image008उस सराय वाले ने जीसस से कहा — “मालिक, मेरे घर में एक अंजीर का पेड़ है पर मैं उस पेड़ की एक भी अंजीर नहीं खा पाता।

जैसे ही वे पकती है बच्चे आ जाते हैं और वे सारी अंजीरें खा जाते हैं। अब मैं यह चाहता हूँ कि आप ऐसा कुछ कर दें कि जो भी उस पेड़ पर चढ़े वह मेरी इजाज़त के बिना नीचे न आ सके।”

जीसस ने कहा — “ऐसा ही होगा।” और उस पेड़ को उन्होंने वैसा ही आशीर्वाद दे दिया।

अगली सुबह पहले चोर का उस पेड़ से हाथ चिपक गया, दूसरे का पैर चिपक गया और तीसरे का तो सिर ही दो डालियों के बीच फँस गया और वह उसे उनमें से निकाल ही नहीं सका।

जब सराय वाले ने उनको इस तरह पेड़ से चिपके देखा तो उनको सबको नीचे उतारा और उनकी अच्छी पिटायी करके उनको छोड़ दिया।

कुछ ही दिनों में सबको पेड़ के इस गुण के बारे में पता चल गया कि जो कोई पेड़ को छुएगा वह उससे चिपक जायेगा। तो छोटे बच्चे तो उस पेड़ के पास आते ही नहीं थे बड़े भी उस पेड़ से दूर रहने लगे।

अब सराय वाला आराम से रह सकता था और अपने पेड़ की अंजीरें खा सकता था।

इस तरह सालों गुजर गये। वह पेड़ बूढ़ा हो गया। अब उस पर फल नहीं आते थे। सराय वाले ने एक लकड़ी काटने वाले को उस पेड़ को गिराने के लिये बुलाया।

उसने पेड़ गिरा दिया तो सराय वाले ने उससे पूछा — “क्या तुम मेरे लिये इस पेड़ की लकड़ी की एक बोतल बना सकते हो जो इतनी बड़ी हो कि उसमें एक आदमी घुस जाये?”

“हाँ हाँ क्यों नहीं।” और लकड़ी काटने वाले ने उसके लिये उस पेड़ की लकड़ी की उतनी बड़ी एक बोतल बना दी।

उस बोतल में उस पेड़ की लकड़ी के जादुई गुण आ गये थे – वह यह कि जो कोई भी उस बोतल में घुसता तो वह बिना सराय वाले की इजाज़त के बाहर ही नहीं आ सकता था।

अब वह सराय वाला भी बूढ़ा हो चला था। एक दिन मौत उसको लेने के लिये आया तो वह आदमी बोला — “हाँ हाँ क्यों नहीं। चलो चलते हैं। पर तुम्हारे साथ जाने से पहले क्या तुम मेरा एक काम करोगे?

मेरे पास एक बोतल है जिसमें शराब भरी हुई है। पर उसमें एक मक्खी पड़ गयी है। अब उस शराब को मैं पी ही नहीं सकता। क्या तुम उसमें कूद कर उस मक्खी को निकाल दोगे ताकि मैं मरने से पहले उस बोतल में से कम से कम एक घूँट शराब तो पी चलूँ।”

“अरे तुम मुझसे बस इतना सा काम करवाना चाह रहे हो? यह तो कुछ भी नहीं मैं अभी करता हूँ।”

कह कर मौत उस बोतल में कूद पड़ा। उसके बोतल में कूदते ही सराय वाले ने उस बोतल के मुँह पर डाट[9] लगा दी।

फिर वह मौत से बोला — “बस अब तुम मेरे पास रहोगे और तुम कभी भी इसमें से निकल नहीं पाओगे।”

मौत तो अब सराय वाले के पंजे में फँस चुका था सो दुनिया में अब किसी को मौत ही नहीं आ रही थी। सब ज़िन्दा थे। अब सब जगह पैरों तक लम्बी सफेद दाढ़ी वाले लोग दिखायी पड़ते थे।

यह बात अपोसिल्स ने भी देखी और जीसस को इसका इशारा किया। जीसस ने आखिर उस सराय वाले के पास जा कर बात करने का इरादा किया।

वह उस सराय वाले के पास गये और उससे कहा — “भाई, क्या तुम सोचते हो कि यह ठीक है कि तुमने मौत को इस तरह से सालों से बन्द कर रखा है?

ज़रा उन लोगों के बारे में सोचो जो बूढ़े होने की वजह से कमजोर हो गये हैं या जो अपनी ज़िन्दगी को घसीट रहे हैं और बिना मौत के ठीक नहीं हो सकते कि उन बेचारे लोगों का क्या होगा?”

सराय वाले ने जवाब दिया — “मालिक, क्या आप यह चाहते हैं कि मैं मौत को बाहर निकाल दूँ? तब आप मुझसे वायदा कीजिये कि मरने के बाद आप मुझे स्वर्ग भेज देंगे तभी मैं मौत को इस बोतल में से बाहर निकालूँगा।”

जीसस ने सोचा अब मैं क्या करूँ? अगर मैं उसको इस बात के लिये मना कर दूँ तब तो मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फँस जाऊँगा क्योंकि मौत इस बोतल में ही बन्द रह कर किसी को भी नहीं आ पायेगी और यह ठीक नहीं है इसलिये जीसस ने कहा — “जैसा तुम चाहते हो ऐसा ही होगा।”

जीसस से यह वायदा ले कर सराय वाले ने वह बोतल खोल दी और मौत को आजाद कर दिया।

इसके बाद सराय वाले को कुछ और साल ज़िन्दा रहने दिया गया। बाद में मौत फिर वापस आया और उसको स्वर्ग ले गया। इस तरह सराय वाला मौत को बोतल में बन्द करके स्वर्ग चला गया।

5 सेन्ट पीटर की माँ

ऐसा कहा जाता है कि सेन्ट पीटर की माँ बहुत ही कंजूस थी। उसने कभी तो दान नहीं दिया और न ही कभी कोई पैसा अपने साथियों पर खर्च किया।

clip_image010एक दिन जब वह लीक[10] छील रही थी तो एक गरीब औरत उससे भीख माँगने आयी। उसने उससे कहा — “क्या मुझे कुछ खाने के लिये दोगी?”

सेन्ट पीटर की माँ बोली — “जो यहाँ आता है वह माँगता ही चला आता है। ठीक है यह लो और अब इसके बाद कुछ और नहीं माँगना।” कह कर उसने लीक की एक पत्ती उसके गुच्छे में से तोड़ी और उसको दे दी।

अगली ज़िन्दगी में जब मालिक ने सेन्ट पीटर की माँ को बुलाया तो उन्होंने उसको नरक भेज दिया। स्वर्ग का मालिक सेन्ट पीटर था। जब वह स्वर्ग के दरवाजे पर बैठा हुआ था तो उसने एक आवाज सुनी।

“पीटर, ज़रा देखो तो मैं कितनी भुन रही हूँ.। बेटा, ज़रा तुम मालिक के पास जाओ और मुझे यहाँ इस आफत से निकालो।”

सेन्ट पीटर मालिक के पास गया और उनसे कहा — “मालिक, मेरी माँ नरक में है और वह वहाँ से निकलना चाहती है।”

“क्या? तुम्हारी माँ ने ज़िन्दगी भर कभी तो कोई अच्छा काम किया नहीं। उसने सारी ज़िन्दगी में लीक की केवल एक पत्ती दान की है और वह चाहती है कि मैं उसको नरक से बाहर निकाल दूँ।

ठीक है ऐसा हो तो नहीं सकता पर फिर भी तुम यह करके देखो। उसको लीक की यह पत्ती देना और कहना कि वह इसको पकड़ ले और फिर इस पत्ती के सहारे अपने आपको स्वर्ग तक खींच लाये।”

एक देवदूत[11] उस पत्ती को ले कर नीचे गया और सेन्ट पीटर की माँ से बोला “लो इसको पकड़ लो और ऊपर चढ़ आओ। मैं तुमको ऊपर खींचता हूँ।”

सेन्ट पीटर की माँ ने उस पत्ती को पकड़ लिया। जैसे ही वह देवदूत उसको स्वर्ग में खींचने वाला था कि दूसरी गरीब आत्माओं ने जो पीटर की माँ के साथ नरक में थीं उसको ऊपर जाते हुए देख कर उसकी स्कर्ट पकड़ ली।

इस तरह से वह देवदूत केवल सेन्ट पीटर की माँ को ही नहीं खींच रहा था बल्कि उसके साथ और बहुत लोगों को भी खींच रहा था।

तभी वह मतलबी स्त्री चिल्लायी — “नहीं नहीं, तुम सब नहीं। तुम लोग दूर हटो। केवल मैं ही जाऊँगी स्वर्ग में। तुमको स्वर्ग जाने के लिये एक सेन्ट पैदा करना पड़ेगा जैसे कि मैंने किया है।”

यह कह कर उसने उन सबको लात मार कर और अपने आपको हिला कर अपने से दूर झटक दिया।

यह करते समय वह खुद भी इतने ज़ोर से हिली कि वह नाजुक सी लीक की पत्ती दो हिस्सों में टूट गयी और सेन्ट पीटर की माँ फिर से नरक में गिर गयी।


[1] City of Canals

[2] Colosseum

[3] “Italian Folktales: collected and retold by Italo Calvino”. Translated by George Martin. San Diego, Harcourt Brace Jovanovich, Publishers. 1980. 300 p.

[4] Sylvia Mulcahy

[5] “Italy Ki Lok Kathayen-1” – 15 folktales (No 1-18), by Sushma Gupta in Hindi languge

“Italy Ki Lok Kathayen-2” – 17 folktales (No 19-40), by Sushma Gupta in Hindi language

“Italy Ki Lok Kathayen-3” – 10 folktales (No 41-61), by Sushma Gupta in Hindi language

“Italy Ki Lok Kathayen-4” – 11 folktales (No 62-84), by Sushma Gupta in Hindi language

“Italy Ki Lok Kathayen-5” – 18 folktales (No 85-126), by Sushma Gupta in Hindi language

“Italy Ki Lok Kathayen-6” – 13 folktales (No 129-150), by Sushma Gupta in Hindi language

“Italy Ki Lok Kathayen-7” – 12 folktales (No 151-164), by Sushma Gupta in Hindi language

[6] Jesus and St Peter in Sicily (Story No 165) – a folktale from Italy from its Palermo area.

Adapted from the book : “Italian Folktales”, by Italo Calvino. Translated by George Martin in 1980.

[7] Apostles – Jesus Christ had 12 Apostles – see their names at the end of this book.

[8] St Thomas was one of the four disciples of Jesus who has written one of the four Books of the New Testament Bible. See the list of Jesus’ disciples at the end of this book.

[9] Translated for the word “Cork”

[10] Leek is a vegetable like green/spring onions, except that it is much largr and thicker than that. See the picture above.

[11] Translated for the word “Angel”

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–8 : 1 पत्थरों से रोटी // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–8 : 1 पत्थरों से रोटी // सुषमा गुप्ता
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