जीवन चलने का नाम // अनामिका शाक्य

SHARE:

हम सभी अपने जीवन में इस उत्तर को कई बार ढूँढते हैं कि जीवन क्या है और हर बार अपने मन को अपने आप ही उसी पुराने उत्तर से समझा लेते हैं कि जीव...

clip_image002

हम सभी अपने जीवन में इस उत्तर को कई बार ढूँढते हैं कि जीवन क्या है और हर बार अपने मन को अपने आप ही उसी पुराने उत्तर से समझा लेते हैं कि जीवन एक खूबसूरत सफर है जिसका पूरा होना तय है। दुनिया में सारी चीजें गतिशील और प्रगतिशील हैं। वास्तव में हम अपने चारों ओर बहुत चीजें देखते हैं, कुछ सजीव और कुछ निर्जीव। उन सबमें एक चीज नजर आती है कि जो गति में है या जिसमें गति है वही तो वास्तव में जीवन है। पृथ्वी की उत्पत्ति को हजारों वर्ष हो गये। पृथ्वी का निर्माण विभिन्न प्रकार की रासायनिक और भौतिक क्रियाओं का परिणाम है।

हमारे जीवन में अनेकों भौतिक और रासायनिक परिवर्तन किस आशा में होते हैं हम यह कभी नहीं सोचते। क्यों हमारे जीवन की धड़कन हर खूबसूरत पल को जी लेना चाहती है। क्यों हमारी आँखें दुनिया के सारे रंगों को देख लेना चाहती हैं। क्यों हमारी साँसें अनवरत चलती रहती हैं मृत्यु की प्रतीक्षा में या जीने की जिजीविषा में।

हम सभी यह जानते हैं कि मृत्यु निश्चित हैं फिर भी हम मरने के इन्तजार में कभी नहीं जीते बल्कि जीने की चाहत में जीते हैं और आखिर तक जीते चले जाते हैं। यह जीवन के प्रति हमारी आशा नहीं तो और क्या है जो बार-बार हमारे अन्दर जीने का उत्साह और जीवन के प्रति विश्वास बनाये रखती है। हम सभी जानते हैं कि जीवन के प्रति हमारा नजरिया जितना आशावादी होगा हम उतनी ही ऊँचाई पर पहुँचेगे।

मानव जीवन की गति अर्थात उसकी धड़कन जब तक उसमें समाई रहती है तभी तक हम मनुष्य को जीवित कहते हैं क्योंकि उस मनुष्य रूपी जीवित प्राणी से जिस पल धड़कन समाप्त हो जाती है उसी पल वह निष्प्राण होकर मुर्दा बन जाता है और वहीं जीवन का अन्त हो जाता है और फिर हम उस मुर्दे को चाहकर भी अपने पास ज्यादा देर रख नहीं पाते हैं क्योंकि मुर्दा या मृत्यु की अनवरत चलते जीवन में कोई जगह नहीं होती है।

इतिहास गवाह है कि जीवन ने आशा किसी भी पल नहीं छोड़ी है, यह सदियों से चली आ रही है वो चाहे सिन्धु घाटी सभ्यता हो या वैदिक सभ्यता या मेसोपोटामियाँ की सभ्यता या दजला फरात की सभ्यता, हर सभ्यता में मानव का यह विश्वास हमेशा कायम रहा था, कि मरे मराये लोग एक दिन फिर से जीवित होंगे और वे किसी दिन फिर जागेंगे। उनका यह विश्वास जीवन के प्रति एक आशा ही तो थी जो उन्हें जीने की प्रेरणा दे रही थी। इसीलिए आदि मानव मुर्दे के साथ उसकी सारी जरूरतों की चीजों को दफनाते थे या रखते थे क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें उन सब चीजों की जरूरत होगी।

अगर हम दूसरे अर्थों में देखें तो हम देखते हैं कि जीवन की प्रगतिशीलता या उसकी गतिशीलता उसमें समाई वह धड़कन है जो आखिरी साँस तक जीवन को जीवन्त बनाये रखती है। और वो साँसें हैं जो पूरे जीवन भर बिना रुके चलती ही रहती हैं। इस आशा में कि हम और ज्यादा जी लें और ज्यादा से ज्यादा जी लें। तभी तक हम मनुष्य को जीवित कहते हैं जब तक उसके हृदय में धड़कन बनी रहती है लेकिन अगले ही पल जब उस जीवित प्राणी से धड़कन समाप्त हो जाती है तो वह निष्प्राण होकर मुर्दा बन जाता है। तो क्या वहीं जीवन का अन्त हो जाता है? या यही जीवन का अन्त होता है। आज तक हम यह नहीं जान पाये कि आखिर वे धड़कनें दिल से गायब कैसे हो गईं वे साँसें जीवन का साथ छोड़कर क्यों गईं, कैसे गईं और कहाँ गईं।

विज्ञान की भाषा में हम अगर समझें तो हम देखते हैं कि भौतिक विज्ञान के अनुसार, ‘‘ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है और न ही समाप्त की जा सकती है केवल उसका रूप एक रूप से दूसरे रूप में बदलता रहता है।’’ तो इसका मतलब तो यही हुआ कि मृत्यु अन्त नहीं है बल्कि प्रारम्भ है एक नये जीवन का। विज्ञान ने हमारी साँसों, हमारी धड़कनों और हमारे प्राणों को एक ही नाम से परिभाषित कर दिया है जिसे हम ऊर्जा के नाम से जानते हैं। अगर इस ऊर्जा की ही बात करते हैं तो ये energy क्या है जिसे हम सीधे शब्दों में ऐसे ही समझ सकते हैं कि कार्य करने की क्षमता ऊर्जा कहलाती है। ऊर्जा एक रूप से दूसरे रूप में आखिर बदलती ही क्यों है इसका जवाब तो खुद Science के पास भी नहीं है।

अगर हम धर्मग्रन्थों या पुराणों की बात करें तो हम सभी जानते है कि हमारे धर्मगुरू और कई विद्वान यह लिख गये है कि उनके अनुसार जीव$आत्मा दो चीजें हैं। दुनिया में यही दोनों जब आपस में मिल जाते हैं तो जीवात्मा नामक नया शब्द बनता है जिसमें जीवन होता है और सम्पूर्ण विज्ञान की गति होती है। आत्मा के बारे में हम ऐसा मानते हैं कि आत्मा एक जीव से दूसरे जीव में प्रवेश कर जाती है, वह अमर होती है, उसे शस्त्र काट नहीं सकता, पानी गीला नहीं कर सकता है, हवा सुखा नहीं सकती है। जब जीव की मृत्यु हो जाती है तब आत्मा बाहर निकल जाती है क्योंकि वह तो मर नहीं सकती है कभी। और हम अपने जीवन में यह मान लेते हैं कि कहीं न कहीं इसे दूसरा जन्म मिल गया होगा।

क्या आत्मा को किसी ने देखा है? आत्मा शरीर से कैसे निकल जाती है कोई नहीं जानता। कुछ लोग मानते हैं कि ये प्रकाश पुंज के रूप में बाहर निकलती है पर आज तक दुनिया का कोई प्राणी हमें ऐसा नहीं मिला जिसने उस उजाले को देखा हो जो शरीर से बाहर निकलता है। पर हम यह जान लेते हैं कि अमुक व्यक्ति की आँखें खुली रह गईं हैं तो आँखों से प्राण रूपी आत्मा निकली होगी या मुँह खुला रह गया है तो मुँह से प्राण निकल गये होंगे। सही मायने में देखा जाये तो प्रकाश क्या है? प्रकाश एक जीवन ही तो है। इस प्रकाश पर सम्पूर्ण जीवन टिका हुआ है तो यह प्रकाश क्या है और आत्मा क्या है? क्या आत्मा प्रकाशमय है या प्रकाश रूपी आत्मा है? दोनों एक ही हैं या दोनों अलग-अलग? अब फिर से हम वहीं आ गये कि प्रकाश ऊर्जा है और ऊर्जा आत्मा है। इस प्रकार प्रकाश या आत्मा एक प्रकार की ऊर्जा है। यह ऊर्जा रूपी प्रकाश दुनिया को आलोकित करता है जिसके प्रकाश में हम अपना जीवन जीते चले जाते हैं क्योंकि प्रकाश या उजाला हमें विश्वास दिलाता रहता है जीने की चाहत ही हमारा मकसद होना चाहिए भले ही विपरीत परिस्थितियाँ ही क्यों न आजायें जीवन में अँधेरा बनकर। ये अँधेरा क्या है जिसे हम आज Science की भाषा में Blackhole के रूप में जानते हैं। क्या एक दिन सब black hole में परिवर्तित हो जायेगा? तो क्या हम आज इस डर से जीना छोड़ दें? दुनिया के हजारों वैज्ञानिक इस black hole को समझने में लगे हैं। पर हम उस डर में आज बिल्कुल भी नहीं जी रहे हैं कि जब पूरी दुनिया black hole में convert हो जायेगी और न ही हम black hole में covert हो जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। क्योंकि हमारे सामने नयी-नयी और बड़ी-बड़ी कल्पनाओं को साकार करने के लिए पूरी दुनिया को आलोकित करने वाला सूरज जो है जिसके उजाले में इतनी ताकत है कि हमें इतनी दूर से धरती पर सपने दिखाता है और फिर सपनों को साकार करने के लिए हमारे अन्दर विश्वास जगाता है कि हम ऐसा कर सकते हैं। हमें हर पल वो प्रेरणा देकर प्रेरित करता रहता है कि हम ऐसा जरूर करें। अगर सही अर्थों में देखा जाये तो सच तो ये है कि हम black hole नहीं कोई light hole ढूंढ़ रहे हैं नये प्रकार का। जिससे हम इस black hole को cover up कर सकें। हमारी तलाश इसकी नहीं है कि black hole कैसे बने हमारी तलाश इसकी है कि black hole क्यों बने।

सदियों से इतिहास गवाह रहा है इस बात का कि जीवन ने कभी हार नहीं मानी हैं न खुद से न दुनिया से और न ही प्रकृति से। सदियों से चली आ रही सभ्यताएँ चाहे वह सिन्धु नदी घाटी की सभ्यता रही हो या मिश्र की, या मेसोपोटामियाँ की या दजला फरात की हम जानते हैं कि यहाँ के निवासियों को न तो बहुत ज्यादा विज्ञान का ज्ञान था न ही उन्हें धर्मग्रन्थों, वेद या पुराणों का ज्ञान था। वे न तो आत्मा को जानते थे और न ही ऊर्जा को फिर भी जब वे मृत जीवन अर्थात मुर्दे को गाढ़ते थे तो उस पर कई तरह से लेप लगाते थे ताकि वे सुरक्षित रहें और उसकी जरूरत की सभी चीजें उनके साथ रख देते थे। उन्होंने एक बार ऐसा सुरक्षित किया कि कई तो आज तक सुरक्षित हैं जिन्हें हम ममी कहते हैं आखिर क्यों? क्योंकि आदि मानव के जीवन में कहीं न कहीं यह विश्वास जरूर जागा होगा कि ये एक दिन जरूर जीवित होंगे। सभ्यतायें बदलती रहीं समय दर समय उनकी ये आशा हमेशा कायम रही कि ये मरे मराये लोग एक दिन फिर से जीवित होंगे। ये क्या था उनका यह विश्वास जीवन के प्रति एक आशा ही तो थी जो उन्हें जीने की प्रेरणा दे रही थी इसलिए आदि मानव मुर्दे के साथ उसकी सारी चीजें भी रखते थे क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें उनकी एक दिन जरूरत जरूर पड़ेगी। वे मरे लोग कभी जिन्दा नहीं हुये पर उनकी इसी आशा में जीवन अपने अनवरत पथ पर चलता रहा बिना रुके, बिना झुके।

पृथ्वी पर हजारों भौतिक परिवर्तन और हजारों रासायनिक परिवर्तन हुये पर जीवन इसमें परिवर्तित होकर भी अपने मूल स्वरूप को नहीं परिवर्तित कर सका चाहकर भी। कभी ज्वालामुखी फट गये तो कभी समुद्र उफन पड़ा कभी भूकम्प आ गया तो कभी बादल फट गये, कभी बिजली गिर गई लेकिन उसने जीवन का अस्तित्व नहीं मिटा पाया। हम जानते हैं कि ये सारे परिवर्तन जीवन में केवल कुछ समय के लिए परिवर्तन जरूर लाये जो हमारे सामने भौतिक परिवर्तन बनकर कुछ समय के लिए उभरा। कई तो ऐसे रासायनिक परिवर्तन हो गये जो हमेशा-हमेशा के लिए चीजें बदल गये। पर इन सबके बीच जीवन तो एक ऐसा परिवर्तन है जो परिवर्तित होने के बाद भी परिवर्तित नहीं हो पाया। जीवन को जीने की जिजीविषा को हरा नहीं पाया। जीवन के प्रति बढ़ती चाहत को कोई भी परिवर्तन बदल नहीं पाया एक सोचने वाली बात यहाँ आती है कि जब हमारी पृथ्वी का निर्माण ही भौतिक और रासायनिक क्रियाओं का परिणाम है फिर पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति भी इन क्रियाओं की देन है जो परिवर्तनों के दौर से जीवन की शुरूआत से गुजर रहा है। फिर डर किसका? और कैसे परिवर्तित होते-होते एक कोशिकी जीव से आज multicellular जीवों का विकास हो गया। जो आज सभ्यता का आधुनिक मानव बन गया तो दूसरी तरफ ये भी एक इतिहास है जो जीव अपने को बदल नहीं पाये और विशालकाय से आज अनन्त सूक्ष्म में कहाँ लुप्त हो गये पता ही नहीं चला जिनका आज हम नाम भर जानते हैं जैसे डायनासोर। आखिर डायनासोर ही क्यों नहीं टिक पाये क्योंकि परिवर्तनों के दौर में अपने आप को परिवर्तित नहीं कर पाये यही हम जानते हैं और खो गये हमेशा के लिए पर उनके खोने से क्या जीवन रुका? नहीं ना। क्या उसने प्रतीक्षा की कि डायनासोर आ जायें तब आगे बढ़ेंगे। अगर जीवन को हम रोकना भी चाहें तो जीवन रुकता नहीं बल्कि कुछ समय बाद हमें महसूस होता है कि जीवन नहीं हम खुद ही रुक गये हैं और यह रुकी चीज वक्त की रफ्तार में जल्दी ही बेकार सिद्ध हो जाती है या रुके हुये पानी की तरह सड़ जाती है और उसमें कीड़े पड़ जाते हैं क्योंकि पानी तभी तक धारा कहलाता है जब तक चलता रहता है।

हमने अपने दैनिक जीवन में कई बार देखा है कि कहीं-कहीं कबाड़े में बहुत सी गाड़ियाँ रखी होती है लाइन से। ऐसे दृश्य ज्यादातर पुलिस लाइन के आस-पास दिखाई देते हैं। वे सभी वाहन शान्त भाव से भोलेपन को धारण करे ऐसे खड़े रहते हैं जैसे कि वे हिलना भी नहीं जानते हैं या कभी सड़कों पर गतिज ऊर्जा के आवेश में दौड़े ही न हों। बड़ा तरस आता है उन्हें देखकर। उनकी हालत देखकर समझ ही नहीं आता है कि कैसे इनकी मासूमियत को जबाब दें कि कभी ये सही थे। पर अब उन्हें कोई गाड़ी, कार, बाइक, हीरो होण्डा स्पिलैण्डर नहीं कहता है बल्कि एक सबका सामूहिक नाम ढूंढ़ लिया है हमने कबाड़ा। हम उन्हें एक शब्द में ही निपटा देते हैं कबाड़ा कहकर। अब सवाल यह आता है कि ये आखिर कबाड़ा क्यों हैं? इसका जबाब बड़ा आसान है कि गतिशीलता के अभाव में उन्हें गाड़ी तो कह नहीं सकते हैं अब कबाड़ा न कहें तो और क्या कहें? गाड़ी तो चलती का ही नाम होता है। खड़ी बिना चलने वाली गाड़ी अपने आप कब धीरे-धीरे कबाड़ा में तब्दील हो जाती है पता ही नहीं चलता है। ठीक ऐसा ही जीवन में होता है। जब तक जीवन में गति है तब तक वह जीवन है या जीवन गतिशील है। समझ ही नहीं आता है इस गति पर समय-समय पर हजारों किताबें लिखीं जा चुकी हैं। लोगों ने इसे समय-समय पर अपनी-अपनी तरह से परिभाषित किया है। कभी इसे नियमों में बाँधा गया तो कभी समीकरणों में पिरोया गया तो कभी इसे अनेक रूपों में बाँट दिया गया, पर गति अपनी गति को निर्बाध धारण करे बढ़ती रहे कभी इस रूप में कभी उस रूप में।

हम सभी जानते हैं कि अगर हमसे पूछा जाये कि दुनिया में सबसे तेज किसकी गति है तो इसके बहुत से उत्तर होंगे। साइक्लॉजी के स्टूडेंट बतायेंगे कि मन की गति सबसे तेज होती है तो वहीं physics की class बतायेगी कि प्रकाश की गति सबसे तेज होगी। यही बात अगर दुनिया के धावकों से पूछी जाये तो वे उसैन बोल्ट की गति को सबसे तेज बतायेंगे। ये सारी ही बातें बिल्कुल सही है।

गति में हमेशा एक आशा छिपी होती है अपने आप में आगे बढ़ जाने की। एक चाहत होती है दूर तलक जाने की। और ये चाहत की जीव को आखिर तक जीवन्त बनाये रखती हैं। चलने का नाम ही जीवन है।


- अनामिका शाक्य

एम.एस-सी. (रसायन शास्त्र)

ग्राम कैरावली पोस्ट तालिबपुर जिला मैनपुरी-205261


ईमेल- harishchandrashakya11@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: जीवन चलने का नाम // अनामिका शाक्य
जीवन चलने का नाम // अनामिका शाक्य
https://lh3.googleusercontent.com/-4qlYhJ7yb88/WpPJAJVflQI/AAAAAAAA_K0/ElO7oNNkRWoTHJvzioMz6KLpEGzFWNARACHMYCw/clip_image002_thumb?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-4qlYhJ7yb88/WpPJAJVflQI/AAAAAAAA_K0/ElO7oNNkRWoTHJvzioMz6KLpEGzFWNARACHMYCw/s72-c/clip_image002_thumb?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/02/blog-post_26.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/02/blog-post_26.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content