संस्मरण : एक महानायक जो पर्दे पर नहीं आया // डॉ. हरिश्चंद्र शाक्य

SHARE:

(प्रस्तुत संस्मरण - डॉ. हरिश्चंद्र शाक्य की साक्षात्कार पुस्तिका - एक महानायक जो पर्दे पर नहीं आया - लेखक डॉ. राजवीर सिंह से साभार संकलित है...

image

(प्रस्तुत संस्मरण - डॉ. हरिश्चंद्र शाक्य की साक्षात्कार पुस्तिका - एक महानायक जो पर्दे पर नहीं आया - लेखक डॉ. राजवीर सिंह से साभार संकलित है)

बचपन में मैंने कुछ बनने का सपना नहीं देखा था ।

मेरे पिताजी मुझे डॉक्टर या इंजीनियर बनाना चाहते थे। उन्होंने मुझे विज्ञान वर्ग से पढ़ाना शुरू कर दिया था। मेरे पिताजी यह जानते थे कि मेरा बेटा यदि विज्ञान वर्ग से शिक्षा पूरी कर लेगा तो या तो डॉक्टर बन जायेगा या इंजीनियर। हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद मैंने जीव विज्ञान वर्ग से इंटरमीडिएट करने का निर्णय लिया और डॉक्टर बनने का रास्ता तलाशने लगा। बचपन से ही मैं कविताएँ कहानियाँ, लेख आदि लिखने लगा था इसलिए कवि या लेखक बनने के बीज तो बचपन से ही थे। बचपन में ढोला, नौटंकी आदि देखकर मेरे मन में अभिनेता बनने के अंकुर फूटने लगे थे। फिल्मों में मैं जब अभिनेताओं को अभिनय करते देखता तो मुझे लगता कि जो काम फिल्म अभिनेता करते हैं वह तो मैं भी कर सकता हूँ। अबतक मुझे यह भी पता चल गया था कि डॉक्टर बनने के लिए शिक्षा पूरी करने में जो लम्बी रकम खर्च होगी वह मेरे गरीब पिताजी जुटा नहीं पायेंगे। अब मुझे लगने लगा था कि मुख्य चीज पैसा है। मैंने सोचा कि फिल्मों में अभिनेता बनकर अपार धन कमाया जा सकता है तथा नामी गिरामी आदमी बना जा सकता है।

तब मुझे बेहद सुखानुभूति हो रही थी। मथुरा नगर की तमाम भीड़ हम लोगों का अभिनय देखने आती थी। कुछ काल के लिए मैंने भी अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, शशि कपूर, संजीव कुमार, मनोज कुमार, विनोद खन्ना, देवानन्द, जितेन्द्र आदि जैसी जिंदगी जी ली थी। लोग मेरा ऑटोग्राफ लेने आते थे तब मैं भी अपने को किसी सुपर स्टार से कम नहीं समझता था।

फिल्मी ग्लैमर की चकाचौंध से मैं प्रभावित हो चुका था। उज्जवल भविष्य न देखकर मेरा मन पढ़ाई में लगना बंद हो गया और मैं फिल्म अभिनेता बनने का सपना देखने लगा। पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ने का भी मैं शौकीन था। उस समय की चर्चित पत्रिका दिनमान में एक फिल्मी विज्ञापन पड़ा। लखनऊ के फिल्म निर्माता-निर्देशक राजकुमार त्रिवेदी युग चेतना फिल्मस् लखनऊ के बैनर तले नये चेहरों को लेकर एक फिल्म ' छोरी गाँव की' ' बना रहे थे। उन्हें नये चेहरों की आवश्यकता थी। इस फिल्म में शमा कक्कड़, रिखी ओबरॉय, रमेश देव, जानकी दास व कैरन्टो मुखर्जी आदि कलाकार थे। विज्ञापन में मैंने देखा कि साक्षात्कार की तिथि निकल चुकी थी। मेरे मन में आया कि यदि यह विज्ञापन मुझे समय से पहले पढ़ने को मिल जाता तो मैं फिल्म स्टार हो जाता। इसके बाद मैंने नये चेहरों की आवश्यकता वाले विज्ञापनों पर समाचार पत्रों में नजर रखना प्रारम्भ कर दिया। नोवीना सिने कार्पोरेशन बुम्बई की एक फिल्म ' 'भागो भूत आया' ' हेतु नये चेहरों की आवश्यकता थी। मैंने वहाँ अपना बायोडाटा भेजा तो वहाँ से बुलावा पत्र आया। मैं वहाँ पहुँच नहीं पाया। नोवीना सिने कार्पोरेशन के निर्माता जे०एन० फरिश्ता ने अपनी कृष्णा नायडू द्वारा निर्देशित फिल्म ' 'भागो भूत आया' ' 1985 में रिलीज कराई। यह हॉरर फिल्म थी और इसमें अशोक कुमार, देवेन वर्मा, अरुणा ईरानी, काजल किरण, शक्ति कपूर, प्रेमा नारायण, राजेश भेल, मुराद, बीरबल आदि कलाकार थे। गौहर कानपुरी व वर्मा मलिक के गीत तथा हेमन्त भोसले का संगीत था। मुझे इस फिल्म में मौका मिला होता तो नामी गिरामी लोगों से मुलाकात होती और मैं भी स्टार बन सकता था किन्तु भाग्य को तो कुछ और ही मंजूर था। फिर एक बार कल्वरल फिल्मस् डिवीजन आगरा के निर्माता-निर्देशक ० आर० श्याम का उनकी फिल्म जलतरंग' ' हेतु नये चेहरों की आवश्यकता वाला विज्ञापन पड़ा। मैंने निर्माता-निर्देशक से संपर्क किया। उनसे साक्षात्कार कर मुझे फिल्म स्टार बनने की आशा पूर्ण होती नजर आने लगी। उन्होंने फिल्म में काम देने के नाम पर मुझसे एक लम्बी रकम माँगी थी।

मैंने अपनी समस्या पिताजी को बताई तो उन्होंने मुझे फिल्मस्टार बनाने हेतु निर्माता-निर्देशक द्वारा माँगी गयी रकम की व्यवस्था करने के लिये अपना आजीविका का साधन पूरा खेत ही गिरवी रख दिया और निर्माता-निर्देशक को रकम थमा दी। मुझे फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई। फिल्म की शूटिंग हुई मथुरा वृंदावन में। फिल्म में मेरे अलावा पंकज अग्रवाल, उर्मिला उपाध्याय, डॉ० इजहार अहमद खान 'ऊमरी' ऊषा भाटिया, डॉ० राजेन्द्र वार्ष्णेय, अनिल वार्ष्णेय, सुभाष वार्ष्णेय, राजेश कमार शर्मा, ओम प्रकाश जायसवाल, मोहन चन्द्र मिश्र, कृष्ण कुमार गुप्ता, इन्द्रा भार्गव, दिलीपमान सिंह आदि कलाकार थे। मैंने बड़े मनोयोग से उसमें कार्य किया किंतु मेरा दुर्भाग्य यह रहा कि मेरी फिल्म ' 'जलतरंग' ' कभी पूरी नहीं हो पायी। निर्माता-निर्देशक ने मेरी रकम भी नहीं लौटाई। परिणामस्वरूप मेरे घर की आर्थिक व्यवस्था गड़बड़ा गई और पूरा परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया। मेहनत मजदूरी करके हम लोग अपना पेट पालने लगे। परिवार की सारी प्रतिष्ठा धूल में मिल गई। मैं हीरो बनने गया था जीरो बनकर लौट आया। मेरे गाँव और आसपास के लोग मुझे ' हीरो' कहकर चिढ़ाने लगे थे। इसके बाद अन्य निर्माता-निर्देशकों से संपर्क किया तो सभी ठगराज ही मिले। राजकुमार त्रिवेदी से संपर्क किया तो उन्होंने भी मुझे बुलाया था। उन्होंने अपनी फिल्म ' छोरी गाँव की' ' 198१ में रिलीज कराई जो तुरंत फ्लाप हो गई। इसके बाद वे कहीं नजर नहीं आये। मेरे निर्माता-निर्देशक डॉ० आर० श्याम ने भी अपनी पहली फिल्म ' 'महामिलन' ' 1981 में रिलीज कराई जो फ्लाप हो गयी। इस फिल्म में पुनीत कुमार, लता अरोरा, सुशील कुमार, राजीव शर्मा, मोण्टो आदि कलाकार थे। फिल्म के गीत महेन्द्र कपूर व सुधा मल्होत्रा ने भी गाये थे। डॉ० आर० श्याम कहते थे कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में फिल्म उद्योग की शुरुआत की है और राजकुमार त्रिवेदी कहते थे कि उन्होंने की है किंतु दोनों की फिल्में एक ही तारीख को रिलीज हुई इसलिए उत्तर प्रदेश में फिल्म उद्योग की शुरुआत करने वाले ये दोनों लोग ही माने जायेंगे। वैसे डॉ० आर० श्याम 1960 से फिल्म बनाने में सक्रिय थे इसलिए सही मायने में उत्तर प्रदेश में फिल्म उद्योग की शुरुआत करने वाले वही पहले व्यक्ति हैं।

मेरा छोटा भाई अजय शाक्य मेरे दस वर्ष बाद फिल्मों में कथा-पटकथा लेखक व निर्देशक बनने का सपना लेकर मुम्बई चला गया। वहाँ उसने काफी संघर्ष करने के बाद कुछ फिल्मों ' 'फल बनी फूलन' ' ' 'चामुण्डा' ' ' स्कूलगर्ल '' ' 'महान योगीराज' ' ' 'काली पहाडी' ' आदि में पटकथा लेखक, मुख्य सह निर्देशक, सह निर्देशक आदि के रूप में कार्य किया। इसके बाद वह भी फिल्मों में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं कर पाया। वह आजकल रह तो मुम्बई में ही रहा है किंतु आज भी संघर्षरत है।

भाई के फिल्मों में आ जाने से एक उम्मीद तो जागी थी। मैं यह समझता रहा कि मेरे भाई को जब विशेष सफलता मिलेगी तो वह मुझे मौका अवश्य देगा। मेरा भाई संघर्ष ही करता रहा और वह मौका कभी नहीं आ पाया जिससे मैं फिल्मों में आ पाता।

फिल्मों में आने के अपने संघर्ष को मैंने जारी रखा था। नये चेहरों की आवश्यकता वाले विज्ञापन पढ़कर मैं उन निर्माता-निर्देशकों से मिलता था। उन लोगों में सब फिल्मों के नाम पर ठगी करने वाले ही मिले। 2० साल की उम्र में मुझे गृहस्थी के जाल में भी उलझा दिया गया था जिसके कारण घर छोड़ के नहीं जा पाया। मेरे कारण घर की अर्थव्यवस्था बिगड़ गयी थी इसलिए मेहनत मजदूरी करके परिवार को पालने में लग गया था।

फिल्मों में असफल हो जाने के बाद बहुत बड़ी निराशा हुई। मुझे आज लगता है कि मैं सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं बन पाया परन्तु कुछ लोग कुछ नहीं होते हुए भी बहुत कुछ बन गए। ऐसे में भाग्य को कोसने के अलावा और चारा ही क्या था।

कलाकार न तो कभी बूढ़ा होता है न ही कभी मरता है। मैंने भी अपने अंदर बैठे कलाकार को कभी मरने नहीं दिया। आज भी मुझे मौका मिल जाये तो मैं अपनी पहचान बनाने में सफल हो जाऊँगा। आज भी मेरे अंदर एक कलाकार के सारे लक्षण मौजूद हैं लेकिन वह जुनून नहीं रहा जो 8 वर्ष की उम्र में था।

साहित्यकार बनने के बीज भी मुझमें बचपन से ही थे। जब मैं 9 साल का था तब पाठ्‌य पुस्तकों में छपी कविताओं के नीचे कवियों के नाम छपे देखे। मैंने अपने पिताजी से पूछा कि कविता के नीचे यह किसका नाम लिखा रहता है। पिताजी ने बताया कि जो कविता बनाता है वह कवि कहलाता है। कविता के नीचे कविता बनाने वाले कवि का नाम ही लिखा रहता हैं। मैंने पिताजी को पूछा कि क्या मैं कवि नहीं बन सकता हूँ। पिताजी ने कहा यदि कविताएँ बनाने लगोगे तो तुम भी कवि बन सकते हो। 9 वर्ष की आयु में ही मेरे हृदय से एक तुकबंदी फूटी। वह तुकबंदी ही मेरे कवि बनने का बीज थी। इसी काल में मैंने अपनी ननिहाल में सरमन बाबू का ढोला देखा था। इस ढोला में मैंने राजा नल की औखा (विपत्ति) नामक शीर्षक से राजा नल की लीला मंचित होते हुए देखी थी। इस लीला का मुझ

पर इतना प्रभाव पड़ा था कि मैं स्वयं राजा नल बनने या राजा नल के किरदार को अभिनीत करने का सपना देखने लगा था। मैं जब अपने गाँव आया तो अपने हम उम्र बच्चों को वह कथा सुनाई। मेरे सभी साथी इस कथा से प्रभावित हुए। सभी बच्चे खेल-खेल में उस लीला को खेलने को तैयार हो गये। सरमन बाबू की लीला में संवाद एक विशेष गेय शैली में थे। मैंने पूरी कथा के संवादों को गद्य में लिखा। यह मेरे लेखक बनने की शुरुआत थी। बच्चों ने खेल-खेल में ही यह लीला खेली। मैं इसमें राजा नल बना और मेरे ही बाल सुलभ निर्देशन में लीला खेली गई। यही मेरे अभिनेता और निर्देशक बनने की शुरुआत भी थी। मैं धीरे-धीरे बड़ा होता गया और कविता, लेख, कहानियाँ आदि लिखता रहा। इण्टरमीडिएट की कक्षाओं में आते-आते मेरी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी थीं। जब मैं फिल्मी दुनिया से बरबाद हो गया तो पीड़ा और अभाव की जिंदगी ने मुझे साहित्यकार बना दिया। इण्टरमीडिएट की कक्षाओं में पढ़ते हुए मैंने वीर रस में दिल' भी लिखा जीवन क्षेत्र का एक उपन्यास ' 'दहकता ' था। उस समय अति अल्प ज्ञान होने के कारण मेरा उपन्यास बहुत छोटा ही रह गया। वह उपन्यास कहीं रद्दी में खो गया। वह उपन्यास छप नहीं पाया किंतु मेरे उपन्यासकार बनने का बीज था। फिल्मी दुनिया में बरबाद हो जाने के बाद मैंने आक्रोश में फिल्मी दुनिया की सारी पोल खोल देने हेतु 23 वर्ष की उम्र में ' मायानगरी' उपन्यास लिखा। वह उपन्यास 4० वर्ष की उम्र में छप पाया। कक्षा 1० में पढ़ते हुए मैंने एक कहानी ' भाई बहिन' लिखी थी जिसमें गीत भी डाले थे। यह मेरे द्वारा लिखी पहली कथा-पटकथा कही जा सकती है। इसे भी मैंने कभी प्रकाशित नहीं करा पाया। मेरे अंदर कलाकार बनने की जो ऊर्जा थी वह साहित्यकार बनने में लगने लगी। पत्रकारिता में आ जाने पर मेरी लेखन क्षमता में और निखार आ गया। लेखन से मैं नामी गिरामी तो होता गया किंतु अर्थोपार्जन नहीं हो पाया। साहित्यकार बनने हेतु मुझे किस-किस से प्रेरणा मिली यह बताना बहुत मुश्किल है। मुझे समय-समय पर तमाम लोगों से प्रेरणा मिलती रही है। पुस्तकों व पत्र-पत्रिकाओं से भी मुझे प्रेरणा मिली है।

जब रचना संपादक सखेद वापस भेज देते थे तब सचमुच बहुत बुरा लगता था। तब मुझे ऐसा लगता था कि शायद मेरी रचना में कोई दम नहीं है इसलिए सम्पादक ने सखेद वापस भेज दी है। कुछ पत्र-पत्रिकाएँ तो अभी भी मेरी रचनाएँ सखेद वापस भेज देते हैं। पहले तो रचना कहीं छप जाने भर की ही ललक होती थी किंतु अब यह भी देखना पड़ता है कि पत्रिका का स्तर क्या है।

यूं तो मेरी पूरी जिंदगी ही चुनौती भरी रही है जिसका जन्म से ही मुकाबला करता आ रहा हूँ। गरीब घर में जन्म लेना ही एक चुनौती भरा क्षण है जब मेरा जन्म हुआ मेरे माता पिता कर्ज के बोझ से लदे हुए थे। मैंने डॉक्टर या इंजीनियर बनने के लिए विज्ञान वर्ग से पढ़ाई करना प्रारंभ कर दिया था जो एक चुनौती भरा फैसला था इसके लिए मैंने जी जान से पढ़ाई करनी शुरू कर दी थी। पिताजी की गरीबी के कारण यह सपना चकनाचूर हो गया। घर की गरीबी दूर करने और एक नामी गिरामी आदमी बनने के लिए मैंने फिल्म कलाकार बनने का जो सपना देख लिया वह तो बेहद चुनौती भरा फैसला था। फिल्म कलाकार बनने हेतु मैंने डटकर संघर्ष किया किंतु विधि के विधान को जो मंजूर था सो हुआ। जब मैं अपनी फिल्म से बर्बाद होकर घर लौटा तो समाज का सामना करना भी बहुत ही चुनौतीपूर्ण था। लोग जानबूझकर लगभग 5-6 साल तक मुझे चिढ़ाने के लिए एक ही सवाल करते रहे कि तुम्हारी फिल्म का क्या हुआ? मैं इस सवाल का डटकर मुकाबला करता रहा। खेती गिरवी रख जाने के कारण घर परिवार की नैया डूबती देख मजदूरी का धंधा अपनाना मेरे लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण था। दिन रात मेहनत करके इस स्थिति का मैंने मुकाबला किया। उन्हीं दिनों मेरे गाँव में एक व्यक्ति ने साइकिल की मरम्मत करने की दुकान खोली थी। वह व्यक्ति पहले पंपिंग सेट आटा चक्की आदि का मिस्त्री रहा था। वह व्यक्ति पूरी साइकिल खोलकर दोबारा फिट कर सकता था पर न जाने क्यों उसे साइकिल के पहियों की रिमों में तानों का जाल भरना नहीं आया। उसने सारी युक्तियाँ लगा कर देख लीं किंतु वह असफल ही रहा। एक दिन मेरे साथ कई लोग उसकी दुकान पर बैठे हुए थे। उसने कहा कि कोई साइकिल की रिम में तानों का जाल भर दे तो मैं जाएं। वहाँ बैठे सभी लोगों ने जोर-आजमाइश की किंतु असफल रहे। मुझसे फिर रहा न गया और मैंने दुकानदार की वह चुनौती स्वीकार ली। मैंने पहले से जाल भरी रिम पर निगाह डाली और उसका फार्मूला समझ कर दी गई रिम में तानों का जाल भर दिया। मैं कोई मिस्त्री तो था नहीं और न ही कभी कोई जाल भरा था। इसलिए सभी मुझे देखकर हतप्रभ रह गए। दुकानदार तथा अन्य लोगों ने मुझे बताया कि साइकिल की कारीगरी में यही कार्य सबसे कठिन होता है।

एक दिन दुकानदार के पास रेले साइकिल के पहिए का जाल भरने को आ गया। रेले साइकिल के पहिए अन्य ब्रांड की साइकिल के पहियों से भिन्न होते थे उसके पिछले पहिए में 64 तानें होती थीं दुकानदार ने मुझे बुलाया और कहा कि इसका जाल नहीं भर पाओगे। मैंने चुनौती स्वीकार कर वह जाल भी भर दिया। मजे की बात यह रही कि वह दुकानदार पूरी साइकिल ठीक कर लेता था किंतु उसे जाल भरना कभी नहीं आया और मैं जाल भर लेता था किंतु साइकिल की मरम्मत में मैं और कोई काम कभी नहीं सीख पाया। उस दुकानदार ने मुझसे अंधे और लँगड़े जैसी दोस्ती कर ली। उसके पास जब भी जाल भरने का कार्य आता तो वह मुझसे करा लेता और मुझे भी कुछ पैसे दे देता था। मैं जीव विज्ञान का विद्यार्थी रहा था इसलिए कठिन से कठिन चित्र भी बना लेता था। चित्र बनाना मुझे बचपन से आता भी था। मेरे पड़ोसी गाँव का एक लड़का पेंटर हो गया था। वह विद्यालयों में संपर्क कर जीव विज्ञान के छात्रों की प्रैक्टिकल फाइलें पैसे लेकर तैयार कर देता था। एक बार मैनपुरी में एक सर्कस आया उसके मालिक से संपर्क कर उसने पेंटिंग का कार्य प्राप्त कर लिया और फिर वह सर्कस के साथ ही चला गया। मैं एक दिन उस विद्यालय में गया जहाँ वह जाया करता था। वहाँ के जीव विज्ञान शिक्षक से संपर्क किया और कहा कि छात्रों की प्रैक्टिकल फाइलों के चित्र बनाने के लिए मुझे दिलवा दीजिए। अध्यापक ने पूछा कि क्या आप पेंटर हैं। मैंने काम प्राप्त करने के लिए ही कह दिया। अध्यापक ने छात्रों का कार्य तो दिलाया नहीं अपने घर पर चल रहे एक मांटेसरी विद्यालय का साइन बोर्ड बनाने को दे दिया। मैंने वह कार्य ले तो लिया किंतु मेरे लिए वह बहुत ही चुनौतीपूर्ण इसलिए था कि मैं कोई पेंटर तो था नहीं। मैंने वह चुनौती स्वीकार ली और वह साइन बोर्ड बना दिया।

मैं जब साइन बोर्ड बनाने में सफल हो गया तो अपने आप को पेंटर समझने लगा। मैं फिल्मों में हीरो बनने गया था तो वह हीरोपन मेरे दिमाग से निकलता ही नहीं था। मैंने अपने प्रचार हेतु गाँव में एक छोटा सा साइन बोर्ड लगा दिया जिसपर 'हीरो पे टर' लिख दिया। राजवीर सिंह जी! सन 1992 में काम की तलाश में मैं चंडीगढ़ पहुँच गया। पढ़े-लिखे के हिसाब से मुझे वहाँ कोई मन का काम नहीं मिला। एक दिन वहाँ फे२न-2 में एक मोमबत्ती फैक्ट्री में हेल्पर का कार्य करने पहुँचा। फैक्ट्री मालिक ने बताया कि मेरे पास एक मशीन है जिस पर तो एक आदमी कार्यरत है। मुझे साँचे से मोमबत्ती बनाने के लिए हेल्पर चाहिए उसने मुझे पूछा क्या तुम साँचे से मोमबत्तियाँ बना सकोगे। मैंने मोमबत्तियाँ सिर्फ जलाईं थीं बनाईं कभी नहीं थीं। मैंने फैक्ट्री मालिक से फिर ही कह दिया। मेरे साथ मेरा एक मित्र भी था। फैक्ट्री मालिक ने कहा कि मैं एक दिन तुम ट्रायल पर रखूँगा तुम लोगों को ' और देखूँगा कि मोमबत्तियाँ बना भी सकोने या नहीं। दूसरे दिन हम लोग फैक्ट्री पहुँचे तो मालिक ने साँचे में धागा डालना सिखाया। मालिक ने सिर्फ एक बार धागा डाला दूसरी बार तो हम लोगों ने खुद ही डाल लिया। फैक्ट्री मालिक बड़ा आश्चर्यचकित हुआ और उसने हम लोगों को काम पर रख लिया। मैंने वहाँ लगभग 4० प्रकार के साँचों से मोमबत्तियाँ बनायीं। एक दिन फैक्ट्री मालिक ऐसा साँचा निकाल कर लाया जिससे देवदारु के वृक्ष की शक्ल की मोमबत्ती बनती थी। फैक्ट्री मालिक ने बताया कि इस साँचे से मेरी फैक्ट्री में कोई भी वर्कर मेरे अलावा मोमबत्ती नहीं बना पाया है। तुम इस साँचे से मोमबत्ती बनाकर दिखाओ तो जा!। मैंने चुनौती स्वीकार कर ली और उस देवदारु के वृक्ष की शक्ल वाली मोमबत्ती भी बना कर दिखा दी।

सन 201० में एक चुनौती भरा क्षण मेरे जीवन में और भी आया। मुझे देहरादून में यूनिवर्सल नाट्‌य विद्यालय द्वारा अनुज राजपूत के संयोजन में आयोजित यूनिवर्सल रंग महोत्सव में आयोजित अखिल भारतीय बहुभाषी नाटक प्रतियोगिता का निर्णायक बनने का अवसर प्राप्त हुआ। यह क्षण भी मेरे लिए चुनौतीपूर्ण था मैंने इतने बड़े कार्यक्रम में निर्णायक की भूमिका कभी नहीं निभाई थी। मैं असमंजस में था कि कैसे करूँगा यह कार्य। विभिन्न भाषाएँ भी मैं नहीं जानता हूँ। मैंने अनुज राजपूत से कहा कि कैसे कर पाऊँगा यह कार्य तो अनुज राजपूत ने कहा कि भैया मैं आपकी योग्यता को जानता हूँ। आपको कुछ बताना नहीं पड़ेगा। आप अपने आप ही सब कुछ कर लेंगे। दरअसल अनुज राजपूत मेरे जनपद मैनपुरी के ही रहने वाले हैं। उन्हें किसी तरह पता चल गया था कि मैं फिल्म कलाकार बनने हेतु संघर्षरत रहा हूँ। उन्होंने मेरा उपन्यास माया नगरी भी पढ़ रखा था और फिर जैसा कि मैं आपको पहले ही बोल चुका हूँ कि मैंने वह चुनौती स्वीकार की और सर्वश्रेष्ठ निर्णायक बनकर दिखाया और वहाँ का सर्वोच्च सम्मान मार्ग श्री 2०1० -20 11 प्राप्त किया।


डॉ० हरिश्चंद्र शाक्य - एक महानायक जो पर्दे पर नहीं आया (साक्षात्कार)

लेखक-डॉ० राजवीर सिंह डी० लिट्०


प्रथम संस्करण- 2017

मूल्य - रुपये मूल्य- 5०

शब्द संयोजक- डॉ० राजवीर सिंह

ग्राफिक्स- राही प्रिंटर्स, गाजियाबाद ।

मुद्रक- सुभाषिनी ऑफसेट प्रिंटर्स एफ- 1०, पटेल मार्ग तृतीय,

जगदीश नगर, गाजियाबाद ।

ISBN – 978-81-932163-2-3


प्रकाशक-

दीया प्रकाशन

354 ,जय प्रकाश नगर गाजियाबाद 2०1001

(उत्तर प्रदेश)

ईमेल – prakashandiya@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: संस्मरण : एक महानायक जो पर्दे पर नहीं आया // डॉ. हरिश्चंद्र शाक्य
संस्मरण : एक महानायक जो पर्दे पर नहीं आया // डॉ. हरिश्चंद्र शाक्य
https://lh3.googleusercontent.com/-JkkelxLMVMI/WncA0Juca-I/AAAAAAAA-wI/rTM8VQLf6L88dnsp3sdhnUO-EwbTGRHqgCHMYCw/image_thumb?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-JkkelxLMVMI/WncA0Juca-I/AAAAAAAA-wI/rTM8VQLf6L88dnsp3sdhnUO-EwbTGRHqgCHMYCw/s72-c/image_thumb?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/02/blog-post_70.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/02/blog-post_70.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content