ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ // खरगोश और शेर // सुषमा गुप्ता

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देश विदेश की लोक कथाएँ — पूर्वी अफ्रीका–ज़ंज़ीबार : ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ संकलनकर्ता सुषमा गुप्ता 2 खरगोश और शेर [1] एक दिन सूँगूरा [2] बड़ा खर...

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देश विदेश की लोक कथाएँ — पूर्वी अफ्रीका–ज़ंज़ीबार :

ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ

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संकलनकर्ता

सुषमा गुप्ता


2 खरगोश और शेर[1]

एक दिन सूँगूरा[2] बड़ा खरगोश खाने की खोज में जंगल में इधर उधर घूम रहा था कि उसने कैलेबाश[3] के एक पेड़ की बड़ी बड़ी डालियों के बीच में से पेड़ के तने के ऊपरी हिस्से में एक बहुत बड़ा छेद देखा। उस छेद में मधुमक्खियाँ रह रही थीं।

यह देख कर वह तुरन्त ही शहर भागा गया ताकि वह किसी को वहाँ से ला सके जो उसको उन मधुमक्खियों के शहद के छत्ते से शहद निकालने में सहायता कर सके।

जब वह बूकू[4] चूहे के पास से गुजरा तो बूकू चूहे ने उसे अपने घर बुलाया। सूँगूरा बड़ा खरगोश उसके घर चला गया और बैठ गया।

बातों बातों में उसने बूकू चूहे को बताया कि मेरे पिता चल बसे हैं और मेरे लिये एक छत्ते में शहद छोड़ गये हैं। मैं यह चाहता हूँ कि तुम उसको खाने में मेरी सहायता करो। ”

बूकू चूहा तो यह सुन कर बहुत ही खुश हो गया और तुरन्त ही वह बड़े खरगोश के साथ शहद खाने के लिये चलने के लिये तैयार हो गया सो दोनों शहद खाने चल दिये।

वे लोग जब उस बड़े कैलेबाश के पेड़ के पास पहुँचे तो सूँगूरा बड़े खरगोश ने बूकू चूहे को मधुमक्खी के छत्ते को दिखा कर उसकी तरफ इशारा किया और उससे कहा “देखो वह रहा शहद। चलो पेड़ पर चढ़ते हैं। ”

दोनों ने कुछ भूसा लिया और उस छत्ते की तरफ चढ़ने लगे। छत्ते के पास पहुँच कर उन्होंने वह भूसा जलाया। उसके धुँए से वे मधुमक्खियाँ भाग गयीं। उन्होंने फिर आग बुझा दी और शहद खाने बैठे।

जब वे शहद खा रहे थे तो जरा सोचो कौन आ गया? सिम्बा शेर[5]। और भला कौन आ सकता था? क्योंकि वह पेड़ और उसमें लगा शहद तो सिम्बा शेर का ही था न। सिम्बा शेर ने ऊपर देखा और उनको कुछ खाते देखा तो पूछा — “तुम लोग कौन हो?”

सूँगूरा बड़ा खरगोश बूकू चूहे के कान में फुसफुसाया — “चुप रहना। यह बूढ़ा बहुत ही खब्ती है। ”

सिम्बा शेर को जब कुछ देर तक कोई जवाब नहीं मिला तो वह फिर चिल्लाया — “तुम कौन हो भाई बोलते क्यों नहीं? मैं कहता हूँ बोलते क्यों नहीं कि तुम कौन हो?”

यह सब सुन कर बूकू चूहा तो बहुत डर गया सो वह बोल पड़ा — “यहाँ केवल हम हैं। ”

सूँगूरा बड़ा खरगोश बूकू चूहे से बोला — “अब जब तुम बोल ही पड़े हो तो पहले तुम मुझे यहाँ इस भूसे में छिपा दो और फिर शेर को बोलो कि मैं भूसा नीचे फेंक रहा हूँ वह यहाँ से हट जाये। फिर तुम मुझे नीचे फेंक देना तब देखना कि क्या होता है। ”

सो बूकू चूहे ने सूँगूरा बड़े खरगोश को तो भूसे में छिपा दिया और फिर सिम्बा शेर से बोला — “यहाँ से हट जाओ मैं यह भूसा नीचे फेंक रहा हूँ। और फिर मैं खुद भी नीचे आता हूँ। ”

सो सिम्बा शेर एक तरफ को हट गया और बूकू चूहे ने वह भूसा नीचे फेंक दिया। इस बीच सिम्बा शेर ऊपर ही देखता रहा और खरगोश भूसे के ढेर में से निकल कर भाग गया।

एक दो मिनट तक तो सिम्बा ने इन्तजार किया पर जब बूकू चूहा पेड़ पर से नहीं उतरा तो वह फिर चिल्लाया — “अच्छा अब तुम नीचे आओ। ”

चूहे के पास अब कोई ऐसा आदमी नहीं था जिससे वह कुछ सहायता ले सकता सो वह नीचे उतर आया।

जैसे ही चूहा शेर की पहुँच में आया तो शेर ने उसको पकड़ लिया और पूछा — “तुम्हारे साथ ऊपर कौन था?”

बूकू चूहा काँपते हुए बोला — “क्या बात है? मेरे साथ सूँगूरा बड़ा खरगोश था। जब मैंने उसको नीचे फेंका था तब तुमने उसको नहीं देखा था क्या?”

सिम्बा शेर बोला — “नहीं तो। ” और फिर वह तुरन्त ही उस चूहे को खा गया।

चूहे को खा कर सिम्बा शेर ने सूँगूरा बड़े खरगोश को इधर उधर ढूँढने की बहुत कोशिश की पर वह तो उसको कहीं दिखायी ही नहीं दिया सो वह वहाँ से चला गया।

तीन दिन बाद सूँगूरा बड़ा खरगोश कोबे[6] कछुए के पास गया और उससे बोला — “चलो थोड़ा शहद खा कर आते हैं। ”

कोबे कछुए ने पूछा किसका शहद है?

सूँगूरा बड़ा खरगोश बोला मेरे पिता का है।

कोबे कछुआ बोला तब तो ठीक है मैं जरूर खाऊँगा और दोनों शहद खाने चल दिये।

जब वे उस कैलेबाश के पेड़ के पास पहुँचे तो अपना अपना भूसा ले कर वे ऊपर चढ़े। भूसे में आग लगायी और उसके धुँए से जब मक्खियाँ भाग गयीं तो वे दोनों शहद खाने बैठे।

तभी सिम्बा शेर वहाँ आ गया और नीचे से चिल्लाया — “ऊपर कौन है?”

सूँगूरा बड़े खरगोश ने कोबे कछुए से कहा — “चुपचाप बैठे रहना बोलना नहीं। ”

पर जब सिम्बा शेर दोबारा चिल्लाया तो कोबे कछुए को कुछ शक हुआ वह बोला — “मैं तो बोलूँगा। तुमने कहा था कि शहद तुम्हारा है पर मेरा शक सही निकला कि यह शहद तुम्हारा नहीं है यह शहद तो सिम्बा शेर का लगता है। ”

सो जब सिम्बा शेर ने दोबारा पूछा कि तुम कौन हो तो कोबे कछुए ने जवाब दिया — “यहाँ तो केवल हम हैं। ”

शेर बोला — “तो नीचे आओ। ”

कोबे कछुआ बोला — “आते हैं। ”

जिस दिन से सिम्बा शेर ने बूकू चूहे को पकड़ा था और उसके हाथ से सूँगूरा बड़ा खरगोश निकल कर भाग गया था उस दिन से वह उसी की तलाश में था। उसको आज भी यही शक था कि कोबे कछुए के साथ वह खरगोश भी होगा सो उसने अपने आपसे कहा “आहा, आज मैंने उसे पकड़ लिया। ”

अपने आपको पकड़ा जाता देख कर सूँगूरा बड़े खरगोश ने कोबे कछुए से कहा — “तुम मुझे भूसे में लपेट दो और शेर को रास्ते में से हट जाने को बोलो। जब वह रास्ते में से हट जाये तो तुम मुझे नीचे फेंक देना। मैं नीचे तुम्हारा इन्तजार करूँगा। वह तुमको कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता यह तुम जानते हो। ”

कोबे कछुआ बोला ठीक है। पर जब वह खरगोश को भूसे में लपेट रहा था तो उसने सोचा कि लगता है इस तरीके से यह भाग जाना चाहता है और मुझे शेर का गुस्सा सहन करने के लिये यहाँ छोड़ जाना चाहता है। मैं कुछ ऐसा करता हूँ कि पहले यह पकड़ा जाये। ”

कोबे कछुए ने सूँगूरा बड़े खरगोश की एक गठरी बनायी और वह उसे नीचे फेंकते फेंकते बोला — “ओ सिम्बा शेर, लो यह सूँगूरा बड़ा खरगोश आ रहा है। ” और यह कहते हुए वह गठरी उसने नीचे फेंक दी।

सिम्बा शेर तो पहले से ही सूँगूरा बड़े खरगोश की तलाश में था सो जैसे ही सूँगूरा बड़ा खरगोश नीचे गिरा सिम्बा शेर ने उसको अपने पंजे में पकड़ लिया और बोला — “अब बताओ मैं तुम्हारा क्या करूँ?”

सूँगूरा बड़ा खरगोश बोला — “देखो सिम्बा शेर, तुम मुझे ऐसे ही खाने की कोशिश मत करना क्योंकि मैं बहुत सख्त हूँ। ”

सिम्बा शेर बोला — “तब बताओ मैं तुम्हारा क्या करूँ?”

सूँगूरा बड़ा खरगोश बोला — “मेरे ख्याल में तुमको पहले मुझे मेरी पूँछ से पकड़ कर पहले घुमाना चाहिये और फिर जमीन पर पटकना चाहिये तभी तुम मुझे खा सकोगे। ”

शेर उसकी बातों में आ गया। उसने सूँगूरा बड़े खरगोश को उसकी पूँछ से पकड़ा, हवा में घुमाया और उसको जमीन पर मारने ही वाला था कि खरगोश उसके हाथ से फिसल गया और भाग गया। और इस तरह बेचारे सिम्बा शेर ने उसे फिर से खो दिया।

गुस्से और नाउम्मीदी से वह फिर पेड़ की तरफ आया और कोबे कछुए से बोला — “अब तुम नीचे आ जाओ। ”

कोबे कछुआ बेचारा नीचे उतर आया। शेर ने जब कोबे कछुए को देखा तो बोला — “तुम तो बहुत ही सख्त हो। मैं तुमको खाने के लायक बनाने के लिये क्या करूँ। ”

कोबे कछुआ हँसा और बोला — “यह तो बहुत आसान है। तुम मुझे कीचड़ में रख दो और अपने पंजे से मेरी पीठ रगड़ते रहो जब तक कि मेरा यह सख्त खोल निकल न जाये। बस फिर मेरा मुलायम हिस्सा रह जायेगा तब तुम उसको आसानी से खा सकते हो। ”

यह सुनते ही सिम्बा शेर कोबे कछुए को पानी के पास ले गया और उसको कीचड़ में रख दिया। जैसा कि उसको कहा गया था उसने अपने पंजे से कोबे की पीठ सहलानी शुरू की।

पर कुछ ही देर में कोबे कछुआ तो पानी में खिसक गया और सिम्बा शेर अपने पंजों से एक पत्थर के टुकड़े को ही सहलाता रह गया जब तक कि उसके पंजे सपाट नहीं हो गये।

कुछ ही देर में उसने देखा कि उसके पंजों से तो खून निकल रहा था। सो इस बार सिम्बा शेर कछुए से भी मात खा गया।

उसने सोचा कि जो कुछ भी सूँगूरा बड़े खरगोश ने आज उसके साथ किया है वह उसका उसको मजा चखा कर ही रहेगा चाहे कुछ हो जाये। फिर वह अपने शिकार के लिये निकल पड़ा।

सिम्बा शेर तुरन्त ही सूँगूरा बड़े खरगोश की तलाश में निकल पड़ा। जैसे जैसे वह आगे बढ़ता जाता वह हर एक से सूँगूरा बड़े खरगोश के बारे में पूछता जाता था — “सूँगूरा बड़े खरगोश का घर कहाँ है? सूँगूरा बड़े खरगोश का घर कहाँ है?”

पर जिससे भी उसने पूछा उसी ने उसको यह जवाब दिया कि उसको नहीं पता कि सूँगूरा बड़े खरगोश का घर कहाँ है।

ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि सूँगूरा बड़े खरगोश ने अपनी पत्नी समेत वह घर छोड़ दिया था जिसमें वह पहले रहता था और अब वह कहीं और चला गया था और उसका नया घर किसी को पता नहीं था। सो कोई नहीं जानता था कि सूँगूरा खरगोश वहाँ से कहाँ चला गया।

पर आज सिम्बा शेर भी उसको छोड़ने वाला नहीं था सो उसने भी हार नहीं मानी। वह तब तक लोगों से पूछता गया पूछता गया जब तक एक आदमी ने यह नहीं कहा — “वह रहा सूँगूरा बड़े खरगोश का घर, उस पहाड़ी के ऊपर। ”

बस फिर क्या था सिम्बा शेर चढ़ गया पहाड़ी के ऊपर। तो वहाँ एक मकान तो था पर उस मकान के अन्दर कोई नहीं था। पर इससे भी उसको कोई परेशानी नहीं हुई।

उसने सोचा “मैं यहीं इस मकान के अन्दर छिपता हूँ और सूँगूरा बड़े खरगोश और उसकी पत्नी का इन्तजार करता हूँ। वे जब यहाँ आयेंगे तब मैं उन दोनों को खा लूँगा। ” और यह सोच कर वह वहीं उसके घर में छिप कर बैठ गया और उनका इन्तजार करने लगा।

जल्दी ही सूँगूरा खरगोश और उसकी पत्नी अपने घर वापस लौटे। उन्होंने सोचा ही नहीं था कि वहाँ कोई खतरा हो सकता है मगर खरगोश तो बहुत चालाक होता है। उसने अपने घर के आस पास शेर के पंजों के निशान देख लिये।

उसने अपनी पत्नी से कहा — “प्रिये, तुम यहाँ से वापस चली जाओ। मैंने अपने घर के आस पास शेर के पंजों के निशान देखे हैं। ऐसा लगता है कि वह मुझे ढूँढ रहा है। ”

पर खरगोश की पत्नी बोली — ‘प्रिय, मैं तुमको इस कठिनाई के समय में अकेला छोड़ कर नहीं जा सकती। मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगी। ”

हालाँकि अपनी पत्नी के ये प्यार भरे शब्द सुन कर सूँगूरा बड़ा खरगोश बहुत ही खुश हुआ लेकिन फिर भी वह उससे बोला — “नहीं प्रिये, तुम जाओ। तुम्हारे दोस्त हैं तुम उनके पास चली जाओ। मैं उस शेर के बच्चे को धोखा दे कर अभी आता हूँ। ” सो उसने पीछे पड़ कर अपनी पत्नी को वहाँ से वापस भेज दिया।

उसके जाने के बाद सूँगूरा बड़ा खरगोश सिम्बा शेर के पंजों के निशानों को देखता आगे चला तो उसको पता चला कि वे निशान तो उसके मकान तक जा रहे हैं। उसने सोचा तो शेर जी मेरे मकान में छिपे बैठे हैं।

उसने एक तरकीब लगायी। वह कुछ दूर पीछे हटा और ज़ोर से चिल्लाया — “ओ मेरे घर, तुम कैसे हो?”

सिम्बा शेर ने सोचा कि अरे घर भी कहीं बोलता है क्या, लगता है कि यह बड़ा खरगोश तो पागल हो गया है। सो वह चुपचाप बैठा रहा।

जब सूगूँरा बड़ा खरगोश का घर कुछ देर तक नहीं बोला तो वह फिर ज़ोर से चिल्लाया — “यह बड़ी अजीब बात हे कि रोज मैं तुमसे अन्दर आने से पहले पूछता हूँ कि ओ मेरे घर तुम कैसे हो और तुम जवाब देते हो कि तुम कैसे हो पर आज तुम नहीं बोले। ऐसा क्यों? ऐसा लगता है कि अन्दर कोई है। ”

जब सिम्बा शेर ने यह सब सुना तो सोचा कि शायद इसका घर बोलता होगा सो अब की बार वह बोला — “तुम कैसे हो?”

यह सुन कर तो सूँगूरा खरगोश बहुत ज़ोर से हँस पड़ा और बोला — “ओह तो सिम्बा शेर तुम हो मेरे घर में? और मैं यह यकीन के साथ कह सकता हूँ कि यहाँ तुम मुझे खाने आये हो पर पहले तुम मुझे यह तो बताओ कि तुमने कहीं किसी घर को बोलते सुना है?”

सिम्बा शेर ने देखा कि वह तो सूगूँरा बड़े खरगोश के हाथों एक बार फिर बेवकूफ बन चुका है। पर फिर भी वह गुस्से में भर कर बोला — “तुम बस तब तक अपनी खैर मनाओ जब तक मैं तुमको पकड़ नहीं लेता। ”

सूगूँरा खरगोश बोला — “मुझे लगता है कि यह इन्तजार तो तुमको बहुत दिनों तक करना ही पड़ेगा। ” और यह कह कर वह वहाँ से भाग लिया। शेर उसके पीछे पीछे भागा।

पर इससे कोई फायदा नहीं था क्योंकि सिम्बा शेर सूँगूरा खरगोश से थक चुका था। वह उसके पीछे बहुत देर तक नहीं भाग सका। सो वह अपने घर अपने कैलेबाश के पेड़ के नीचे आ गया और आ कर लेट गया। वह बहुत थक गया था सो लेटते ही सो गया।


[1] The Hare and the Lion – a folktale from Zanzibar, Eastern Africa

[2] Soongoora Hare – in Eastern and Southern African countries Hare’s name is Soongooraa. Hare is a rabbit like animal but is bigger than it.

[3] Calabash is a dried outer cover of a pumpkin like fruit which can be used to keep dry or wet thongs. See the picture of such a tree above.

[4] Bookoo Rat

[5] Simba Lion – in Eastern and Southern African countries lion’s name is Simba

[6] Kobay Tortoise

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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(कहानियाँ क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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रचनाकार: ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ // खरगोश और शेर // सुषमा गुप्ता
ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ // खरगोश और शेर // सुषमा गुप्ता
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