ऑपरेशन अमितेन्द्र // विज्ञान-कथा // विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी // विज्ञान-कथा : जुलाई-सितम्बर 2018

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ऑपरेशन अमितेन्द्र विज्ञान-कथा विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी भा रतीय धावक अमितेन्द्र ने ओलम्पिक की 100 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीत कर जोरदार धमाका ...

ऑपरेशन अमितेन्द्र

विज्ञान-कथा

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विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी

भा रतीय धावक अमितेन्द्र ने ओलम्पिक की 100 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीत कर जोरदार धमाका किया था। विश्व के लगभग सभी समाचार पत्रों ने इस समाचार को अपने प्रथम पृष्ठ पर स्थान दिया था। समाचार पाकर सम्पूर्ण भारत जश्न के माहौल में डूब गया था। कल तक जिस अमितेन्द्र को कोई जानता भी नहीं था, आज उसके आदम कद पोस्टर देश के बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक दिखाई दे रहे थे। अमितेन्द्र से ओलम्पिक में स्वर्ण तो क्या कोई भी पदक जीतने की उम्मीद किसी को नहीं थी। हीट्स में निरन्तर आगे बढ़ते रहने के कारण लोगों के मन में यह जिज्ञासा जरूर बन गई थी कि अमितेन्द्र आगे कहाँ तक पहुँचता है? अमितेन्द्र ने 100 मीटर की दौड़ का नया रिकार्ड बनाया था। आँकड़ों के अध्ययन से स्पष्ट था कि अमितेन्द्र ने भाग्य भरोसे पदक नहीं जीता था। अमितेन्द सुनियोजित योजना के अनुरूप सफलता के शिखर पर पहुँचा था। प्रारम्भ से लेकर फाईनल तक उसका समय निरन्तर सुधरता गया था, मगर समय में सुधार की दर ऐसा कोई संकेत नहीं दे रही थी कि अमितेन्द्र फाइनल में इतना बड़ा धमाका कर देगा। स्वयं अमितेन्द्र को भी अपनी जीत का कोई पूर्वाभास नहीं था। पदक जीतने के बाद पत्रकारों ने जब अमितेन्द्र से प्रश्न किया कि क्या उसे अपनी जीत पर पूर्ण विश्वास था तो अमितेन्द्र बस इतना ही कह पाया कि वह कर्म पर विश्वास करता है। उसका काम पूरे जोश से दौड़ना था। वह दौड़ा और फल ईश्वर ने दिया।

अमितेन्द्र ने अमेरिका के श्रेष्ठ धावक गिब्बसन को पछाड़ा था। अन्तिम प्रतियोगिता मे अमितेन्द्र ने प्रारम्भ से ही गिब्बसन पर बढ़त बना ली थी। दोनों के बीच का अन्तर दौड़ समाप्ति तक निरन्तर बढ़ता रहा था। जानकारों का कहना था कि जितने बड़े अन्तर से अमितेन्द्र ने वह दौड़ जीती उतने अन्तर से ओलम्पिक के इतिहास में अन्य किसी ने 100 मीटर दौड़ नहीं जीती थी। गिब्बसन के विषय में यह प्रचलित था कि धरती का कोई व्यक्ति उसे नहीं हरा सकता था। इसके पीछे तर्क यह था कि गिब्बसन को अमेरिका के वैज्ञानिको ने आनुवंशिक अभियांत्रिकी सहित सभी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर तैयार किया था। तेज दौड़ने की दृष्टि से गिब्बसन मानव उपलब्धि का श्रेष्ठतम रूप था। भारतीय युवाओं को लग रहा था कि गिब्बसन को हरा कर भारत ने अमेरिका पर शारीरिक के साथ बौद्धिक विजय भी प्राप्त की थी। इतनी बड़ी उपलब्धि का जश्न भी बड़ा होना ही चाहिए।

अमितेन्द्र की जीत को लेकर प्रारम्भ से ही एक व्यक्ति पूर्ण आश्वस्त था। वह था अमितेन्द्र का प्रायोजक सेठ सत्यनारायण। सेठ सत्यनारायण को खेल में डब्बल एस के नाम से जाना जाता था। डब्बल एस खिलाड़ियों की तैयारी पर जी खोल कर पैसा खर्च करता था। खिलाड़ियों की उपलब्धि से कई गुणा पैसा कमाना ही उसका काम था। सीधे-सीधे बात करें तो अमितेन्द्र डब्बल एस का एक आविष्कार था। डब्बल एस ने अमितेन्द्र के जन्म के पूर्व ही ऑपरेशन अमितेन्द्र की पूरी स्क्रिप्ट लिख दी थी। समय के साथ स्क्रिप्ट का सही क्रियान्वयन किया जाता रहा था। ऑपरेशन का क्लाइमेक्स अमितेन्द्र की जीत के रूप में सामने आया था। अमितेन्द्र की जीत में डब्बल एस को दोहरी खुशी प्राप्त हुई थी। उसकी परिकल्पना सत्य में बदलने के साथ ही अमितेन्द्र पर किया गया खर्च कई गुणा मुनाफा के साथ प्राप्त हुआ था।

सेठ सत्यनारायण व्यापारी होने के साथ राष्ट्रीय भावना का पोषक भी था। आबादी की दृष्टि से विश्व में दूसरा स्थान रखने वाले अपने देश भारत को पदकों की सूची में जब सबसे पीछे पाता था तो सेठ सत्यनारायण को बहुत पीड़ा होती थी। विश्व खेल जगत की आन्तरिक बारीकियों से अवगत होने के कारण वह अच्छी तरह जानता था कि केवल बाहुबल से विश्वविजेता नहीं बना जा सकता। सेठ सत्यनारायण ने अपने मित्र डॉक्टर जिग्मे को साथ लेकर जो स्क्रिप्ट तैयार की उसमें विज्ञान की नवीनतम उपलब्धियों का पूरा पूरा लाभ उठाने का प्रावधान था। लगभग 20 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुए इस गोपनीय मिशन ऑपरेशन अमितेन्द्र को स्वर्ण पदक के रूप में मिली सफलता सेठ सत्यनारायण व भारत देश की बहुत बड़ी जीत थी। इस जीत ने विश्व को यह सन्देश दिया कि भारतीय जो चाहे वह कर सकते हैं।

अमितेन्द्र के दौड़ में प्रथम आने का अकादमिक महत्व उसकी जीतने से भी अधिक था। सरल शब्दों में कहे तो अमितेन्द्र ने असम्भव को सम्भव कर दिखाया था। अमितेन्द्र ने 100 मीटर की दौड़ 7.15 सैकण्ड में पूर्ण की थी। इस तरह उसने गिब्बसन के 8.15 सैकण्ड के रिकॉर्ड में पूरे एक सैकण्ड का सुधार किया था। सामान्य लोगों के लिए यह महज एक रिकार्ड था मगर मानव शरीर की उच्चतम क्षमताओं का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों के लिए यह खुली आँखों का सपना था। वैज्ञानिक 100 मीटर फर्राटा दौड़ का समय 8 सैकण्ड से कुछ ऊपर स्थिर हो जाने की घोषणा कर चुके थे।

कई वर्षों तक 100 मीटर दौड़ का समय 8.15 सैकण्ड पर स्थिर रहने से यह माना जाने लगा था कि मानव फर्राटा लगाने की अपनी उच्चतम क्षमताओं को प्राप्त कर चुका है। ऐसे में भारतीय युवक अमितेन्द्र ने रिकार्ड में पूरे एक सैकण्ड का सुधार कर सभी को अचम्भित कर दिया था।

अमितेन्द्र की जीत के साथ ही विश्व भर के वैज्ञानिक अमितेन्द्र के शारीरिक संगठन व उपापचय क्रियाओं के विषय में जानने को उत्सुक हो गए थे। डाक्टर जिग्मे इस बात के लिए सजग थे कि नियमानुसार परीक्षणों के अतिरिक्त अमितेन्द्र की कोई शारीरिक सूचना किसी के हाथ नहीं लगे। इस सावधानी के कारण अमितेन्द्र के विषय में कोई असामान्य बात प्रेस में नहीं आई थी।

अमितेन्द्र की जीत पर सेठ सत्यनारायण ने एक शानदार रात्रि भोज का आयोजन किया था। भोज में खेल जगत की प्रमुख हस्तियों के साथ प्रमुख खिलाड़ी, खेल प्रशिक्षक, खेल वैज्ञानिक, खेल पत्रकार आदि उपस्थित थे। सेठ सत्यनारायण ने भोज में दिल खोल कर व्यवस्थाएं की थी।

‘‘आपने ने तो कमाल ही कर दिया सेठ सत्यनारायण।

अमितेन्द्र की तैयारी पर बहुत अधिक खर्च करने के बाद अब इसकी जीत पर आपने एक करोड़ खर्च कर दिए हैं। मैंने आप जैसा उदार खेल प्रेमी कोई दूसरा नहीं देखा’’, विश्व खेल संगठन के पूर्व अध्यक्ष ने सभी के सामने टिप्पणी की।

”ऐसी कोई बात नहीं है सर। व्यापार के साथ साथ देश प्रेम की भावना ही मुझ से यह कुछ करवाती है। मैं खेलों पर खर्च करता हूँ तो खेलों से कमाता भी हूँ। अमितेन्द्र का ही उदाहरण लो इस पर मैंने अब तक 20 करोड़ डालर खर्च किए हैं। इसकी जीत ने एक ही दिन में मुझे 200 करोड़ डालर दिलवा दिए है“ सेठ सत्यनारयण ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा।

”मुझे यह तो पता है डब्बल एस कि आपने अमितेन्द्र की जीत के पक्ष में बहुत अधिक धन सट्टे में लगाया था। कोई भी अमितेन्द्र को जीत का दावेदार नहीं मान रहा था, इस कारण आपको बहुत लाभ हुआ है। क्या मेरा अनुमान ठीक है मिस्टर सेठ“ फ्रान्स आए एक पत्रकार ने कहा।

”हाँ आपका अनुमान ठीक है मिस्टर क्रिक। मेरी योजना ही यह थी कि फाइनल होने के पहले अमितेन्द्र की जीत का अनुमान कोई नहीं लगा सके। डॉ. जिग्मे की भूमिका इसमें सराहनीय रही है। हमारे धैर्य ने ही हमें यह लाभ दिलवाया है“

सेठ सत्यनारायण ने लोगों की जिज्ञासा शान्त करने की दृष्टि से बतलाया।

सेठ सत्यनारायण की बात सुन कर कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया। मैच फिक्सिंग द्वारा सट्टे में बेइमानी करने के तो कई उदाहरण सामने आते रहते है। किसी धावक की क्षमता को छुपा कर धन कमाने की सम्भवतया वह पहली घटना थी।

”इसका अर्थ है कि आपको पहले से ही मालूम था कि अमितेन्द्र स्वर्ण पदक जीतने के साथ 100 मीटर दौड़ का रिकॉर्ड भी सुधारेगा?“ एक संवाददाता ने प्रश्न किया।

”जी हाँ हमें पूरा विश्वास था। हम अमितेन्द्र का समय प्रतिदिन जाँचते रहे हैं। हमने इस बात पर पूरा ध्यान रखा कि अमितेन्द्र की पूर्ण क्षमता का प्रदर्शन ओलम्पिक के फाइनल से पूर्व कहीं नहीं हो“ डॉक्टर जिग्मे ने कहा। अधिकांश मेहमानों की इन बातों में कोई रुचि नहीं थी। वे भोजन समाप्त कर जाने लगे थे।

”मिस्टर जिग्मे अमितेन्द्र ने मानवीय क्षमताओं से आगे की उपलब्धि प्रदर्शित की है। आप इसका श्रेय विज्ञान को देते है या किसी ईश्वरीय शक्ति को“ एक खेल चिकित्सक ने व्यंग्य करते हुए कहा।

”अमितेन्द्र का अतिमानवीय प्रदर्शन गोपनीय विषय है। औपचारिक रूप से भारत सरकार ही इसे प्रकट कर सकती है। अनौपचारिक रूप मैं इतना बता दूँ कि अमितेन्द्र कोई साधारण मानव नहीं है। इसका अर्थ यह भी नहीं कि इसमे कोई अलौकिक क्षमता है। अमितेन्द्र अनुवांशिक अभियान्त्रिकी, इलेक्ट्रानिकी व योग का सही मिश्रिण है। आप इसे थ्री इन वन कह सकते हैं। अमितेन्द्र की गति पर केवल उसका नियन्त्रयण नहीं होता है। हम दूर बैठे रिमोट द्वारा उसकी पेशियों की गति को नियंत्रित करते हैं। अमितेन्द्र के शरीर पर ट्रान्सपोन्डर्स लगे हैं“ डॉक्टर जिग्मे ने कहा।

”बात इतनी सरल नहीं हो सकती डॉक्टर जिग्मे मात्र ट्रान्सपोन्डर्स लगाने से इतनी गति मिलजाती तो हम गिब्बसन को कभी हारने नहीं देते“ एक अमेरिकी चिकित्सक ने कहा।

”आपका कहना ठीक है। अमितेन्द्र एक टेस्ट ट्यूब बेबी है। हमने कुछ गैर मानवीय जीन का प्रयोग भी इसे बनाने में किया है“ डॉक्टर जिग्मे ने स्पष्ट किया।

”फिर तो आपने अमितेन्द्र की टाँगों में चीते की पेशियां विकसित की होगी?“ अमेरिकी चिकित्सक ने जानना चाहा।

”यहीं अमेरिका मात खा गया मिस्टर सेमुअल।

टाइगर की मांसपेशियां सर्वाधिक गति से स्पन्दन करने वाली पेशियां नहीं हैं। प्रकृति ने सर्वाधिक तेज मांसपेशी का विकास स्तनधारियों की उत्पत्ति से बहुत पहले ही कर लिया था। आपने उस ओर ध्यान नहीं दिया और हमने उसका पूरा सम्मान किया है“ डॉक्टर जिग्मे ने गिब्बसन के विकास से जुड़े अमेरिकी चिकित्सक की पहचान को उजागर करते हुए कहा। किसी नये प्रश्न के उठने से पूर्व डॉक्टर जिग्मे वहाँ ये उठ कर चल दिए।

ई मेल : vishnuprasadchaturvedi20@gmail.com

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रचनाकार: ऑपरेशन अमितेन्द्र // विज्ञान-कथा // विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी // विज्ञान-कथा : जुलाई-सितम्बर 2018
ऑपरेशन अमितेन्द्र // विज्ञान-कथा // विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी // विज्ञान-कथा : जुलाई-सितम्बर 2018
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