बन्दर और खरगोश // अफ्रीका की लोक कथाएँ // सुषमा गुप्ता

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देश विदेश की लोक कथाएँ — अफ्रीका की लोक कथाएँ–1 अफ्रीका, अंगोला, कैमेरून, मध्य अफ्रीका, कौंगो, मोरक्को संकलनकर्ता सुषमा गुप्ता 9 बन्दर और खर...

देश विदेश की लोक कथाएँ —


अफ्रीका की लोक कथाएँ–1

अफ्रीका, अंगोला, कैमेरून, मध्य अफ्रीका, कौंगो, मोरक्को

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संकलनकर्ता

सुषमा गुप्ता


9 बन्दर और खरगोश[1]

यह लोक कथा मध्य अफ्रीका के कौंगो देश में बड़े लोग अपने बच्चों को यह सिखाने के लिये सुनाते हैं कि उनको भी बन्दर और खरगोश की तरह से आपस में अलग अलग स्वभाव का होते हुए भी एक दूसरे को सहते हुए प्यार से रहना चाहिये।


एक बन्दर और एक खरगोश बहुत अच्छे दोस्त थे। वे अक्सर साथ रहते थे और बहुत बात करते थे। वे एक दूसरे से बात करना बहुत पसन्द करते थे और उनकी दोस्ती भी बहुत अच्छी थी सिवाय दो बातों के।

बन्दर का साथ बहुत अच्छा था। वह बहुत अच्छी कहानी सुनाता था। पेड़ पर जहाँ वह बैठता था वहाँ से वह सारे जंगल को देख सकता था। उसको यह भी पता था कि किस जानवर के साथ क्या हो रहा था और वह उसे खरगोश को बताना चाहता था।

पर उसकी एक बुरी आदत थी वह यह कि बात करते समय वह खुजलाता रहता था। कभी वह अपना सिर खुजलाता, तो कभी वह अपना पेट खुजलाता, कभी वह अपनी बाँह खुजलाता और कभी अपना पिछवाड़ा।

इस तरह वह बात करते समय कुछ न कुछ खुजलाता रहता, और खुजलाता ही रहता। यह उसकी एक बहुत ही बुरी आदत थी और खरगोश को इस बात से बहुत परेशानी होती थी।

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उधर खरगोश सारे मैदान में घूमता रहता। तो उसको हर घर में, हर घास के हर छेद में क्या होता रहता, यह सब मालूम रहता। और वह भी अपने दोस्त बन्दर से यह सब कहने के लिये बेताब रहता।

बन्दर की तरह खरगोश भी बहुत अच्छी कहानी सुनाता था पर बन्दर की तरह खरगोश की भी एक बुरी आदत थी और वह थी कि वह जब भी बात करता तो वह हमेशा हिलता रहता और इधर उधर घूमता रहता।

वह एक जगह बिना हिले बैठ ही नहीं सकता था। वह अपने कान भी हिलाता रहता। वह अपना सिर भी हमेशा हिलाता रहता क्योंकि उसको कभी आगे देखना होता था तो कभी पीछे।

पहले वह एक तरफ देखता, फिर दूसरी तरफ देखता। वह बात करते समय अपनी नाक भी सिकोड़ता रहता जैसे कुछ सूँघने की कोशिश कर रहा हो।

उसका यह बार बार हिलना बन्दर को बहुत परेशान करता। वह जब खरगोश से बात करता तो उसको खरगोश के इस हिलने से बहुत परेशानी होती।

एक दिन आखिर बन्दर से रहा नहीं गया। एक दिन जब वे बात कर रहे थे तो बन्दर बोला — “बन्द करो यह सब। ”

खरगोश बोला — “क्या यह सब?”

बन्दर बोला — “यही चारों तरफ देखना और हवा में चारों तरफ सूँघना। तुम हमेशा अपने कान फड़फड़ाते रहते हो और आगे पीछे देखते रहते हो। तुम अपनी इस बुरी आदत से मुझे बहुत परेशान करते हो। ”

“तुमने क्या कहा? मैं तुमको परेशान करता हूँ? और तुम तो बिना खुजलाये बात ही नहीं कर सकते हो। ज़रा अपनी तरफ तो देखो। तुम्हारी भी तो खुजलाने की बुरी आदत है।

तुम तो हमेशा ही खुजलाते रहते हो। देखो तुम तो अभी भी खुजला रहे हो। तुम अपना सिर खुजलाते हो, तुम अपना पेट खुजलाते हो, तुम अपनी बाँहें खुजलाते हो, यहाँ तक कि तुम तो अपना पिछवाड़ा भी खुजलाते हो। तुम एक जगह बिना खुजलाये बैठ ही नहीं सकते। ”

बन्दर बोला — “मैं जब चाहूँ तब बिना हिले बैठ सकता हूँ। समझे। ”

खरगोश बोला — “वह तो मैं भी बैठ सकता हूँ। मुझे हमेशा सूँघने और हिलने की जरूरत नहीं होती। मैं यह सब जब भी चाहूँ छोड़ सकता हूँ। ”

तब बन्दर ने उसको एक मुकाबले के लिये कहा। वह बोला — “मैं सारा दिन बिना खुजलाये रह सकता हूँ अगर तुम बिना सूँघे और बिना हिले रहो तो। हम अभी इसी समय से अपनी बुरी आदतें छोड़ देते हैं। ”

और दोनों एक दूसरे की तरफ देखते हुए दुखी से बैठ गये। बन्दर बिना खुजलाये चुपचाप बैठा रहा और खरगोश भी बिना हिले और बिना सूँघे बैठा रहा। दोनों में से कोई भी नहीं हिला।

बन्दर कुछ परेशान सा हो उठा उसकी उँगलियाँ जहाँ रखी थीं वहीं हिलने लगीं क्योंकि वह अपना सिर खुजलाना चाहता था। उसके पेट पर भी खुजली आ रही थी, उसकी बाँहों पर भी खुजली आ रही थी पर फिर भी वह चुपचाप बैठा रहा।

खरगोश भी बिना हिले बैठा था। वह अपनी नाक हिलाना चाह रहा था, हवा में सूँघना चाह रहा था कि कोई खतरा है या नहीं। वह इधर उधर यह भी देखना चाह रहा था कि कोई जंगली जानवर शिकार तो नहीं कर रहा था।

पर उसके बाद खरगोश ने बिल्कुल भी नहीं सूँघा और वह हिला भी नहीं।

आखिर खरगोश बोला — “बन्दर भाई मुझे एक विचार आया है। जब तक हम यहाँ अपनी बुरी आदतों को छोड़ कर बैठे हुए हैं तब तक हम एक दूसरे से कहानी ही क्यों न कहें ताकि हमारा दिन जल्दी कट जाये। ”

बन्दर बोला — “यह तो बड़ा अच्छा विचार है। तो चलो तो पहली कहानी तुम सुनाओ। ”

खरगोश बोला — “मैं एक बार तुमसे मिलने के लिये आने के लिये घास में से गुजर रहा था तो मैंने घास को सूँघा। मुझे पता चला कि घास में एक शेर था। मैं वहीं का वहीं रुक गया। पहले मैंने अपने बाँयी तरफ देखा फिर मैंने अपनी दाँयी तरफ देखा।

फिर मैंने हवा में सूँघा कि देखूँ कि शेर की खुशबू हवा में भी है या नहीं। फिर मैंने अपने कान हिलाये और सुनने की कोशिश की कि वहाँ शेर था कि नहीं।

पर वहाँ तो कोई शेर नहीं था सो फिर मैं नदी की तरफ चला जहाँ मुझे तुम मिल गये और फिर हम लोगों ने खूब बातें कीं। ”

इसके बाद वह फिर से चुपचाप बैठ गया। पर इस बीच बन्दर ने देख लिया कि कहानी सुनाते समय खरगोश हिला भी, उसने सूँघा भी और इधर उधर देखा भी। सो बन्दर ने भी कुछ ऐसी ही कहानी सुनाने का विचार किया।

अब बन्दर ने अपनी कहानी शुरू की — “कल जब मैं नदी के किनारे की तरफ जा रहा था तो रास्ते में मुझे गाँव के कुछ लोग मिल गये। उन्होंने सोचा कि मैंने उनके खेतों से उनका खाना चुराया है सो उन्होंने मेरे ऊपर पत्थर फेंकने शुरू कर दिये। एक पत्थर मेरे यहाँ लगा। ”

जैसे ही उसने यह कहा तो खरगोश ने देखा कि उसने अपना सिर छुआ और वहाँ खुजलाया।

“दूसरा मुझे यहाँ लगा, फिर एक यहाँ लगा, एक यहाँ लगा। ” यह सब कहते हुए उसने उन उन जगहों को छुआ जहाँ जहाँ उसको पत्थर लगे थे क्योंकि वहाँ वहाँ उसको खुजली आ रही थी और वहाँ वहाँ खुजलाया।

जब वह खुजला चुका तो वह बोला — “जब मुझे लगा कि अब सब खत्म हो गया तो फिर मैंने अपने सारे शरीर पर हाथ फेर कर देखा कि मुझे कहीं कोई चोट तो नहीं आयी थी। यह पक्का करने के बाद कि मैं बिल्कुल ठीक था मैं तुम्हारे पास चला आया। ”

यह सुन कर खरगोश मुस्कुराया और साथ में बन्दर भी। फिर उसके बाद दोनों ज़ोर से हँस पड़े। खरगोश जान गया था कि बन्दर क्या कर रहा था और बन्दर को भी पता चल गया था कि खरगोश क्या कर रहा था।

खरगोश बोला — “तुम यह मुकाबला हार गये। तुम अपनी सारी कहानी में खुजलाते रहे। ”

बन्दर बोला — “और तुम भी यह मुकाबला हार गये क्योंकि तुम भी अपनी कहानी में सारा समय सूँघते रहे, हिलते रहे और कूदते रहे। ”

खरगोश बोला — “मेरा ख्याल है कि हम दोनों में से कोई भी सारा दिन चुपचाप नहीं बैठ सकता। सूँघना, हिलना और कूदना यह खरगोश की आदत में है। ”

बन्दर बोला — “और खुजलाना एक ऐसी चीज़ है जो बन्दर लोग करते ही हैं। सो अगर हम एक दूसरे के दोस्त बने रहना चाहते हैं तो हम लोगों को एक दूसरे की बुरी आदतों की आदत डालनी ही पड़ेगी। ”

और फिर ऐसा ही हुआ। दोनों साथ साथ खुजलाते रहे, हिलते रहे, सूँघते रहे, कूदते रहे और एक दूसरे के दोस्त बने रहे।

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[1] Monkey and Rabbit Together – a folktale from Congo, Central Africa. Adapted from the Web Site :

http://www.mikelockett.com/stories.php?action=view&id=88

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के  लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: बन्दर और खरगोश // अफ्रीका की लोक कथाएँ // सुषमा गुप्ता
बन्दर और खरगोश // अफ्रीका की लोक कथाएँ // सुषमा गुप्ता
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