तैसे के लिये चाल // अफ्रीका की लोक कथाएँ // सुषमा गुप्ता

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देश विदेश की लोक कथाएँ — अफ्रीका की लोक कथाएँ–1 अफ्रीका, अंगोला, कैमेरून, मध्य अफ्रीका, कौंगो, मोरक्को संकलनकर्ता सुषमा गुप्ता मध्य अफ्रीका ...

देश विदेश की लोक कथाएँ —


अफ्रीका की लोक कथाएँ–1

अफ्रीका, अंगोला, कैमेरून, मध्य अफ्रीका, कौंगो, मोरक्को

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संकलनकर्ता

सुषमा गुप्ता

मध्य अफ्रीका की लोक कथाएँ

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6 Countries of Central Africa

(1) Cameroon (2) Central African Republic (3) Congo (4) Equatorial Guinea (5) Gabon (6) Zaire

6 तैसे के लिये चाल[1]

यह लोक कथा मध्य अफ्रीका के कैमेरून देश की है और कछुए की अक्लमन्दी की एक कहानी है।

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यह बहुत साल पहले की बात है कि एक भैंस और एक नर गिलहरी आपस में बहुत अच्छे दोस्त थे। वे एक साथ अपना खाना इकठ्ठा करते थे और एक साथ ही अपनी खेती भी किया करते थे।

पर यह नर गिलहरी बहुत चालाक था और अक्सर भैंस के साथ उस काम में कोई न कोई चाल खेलता था जो वह कर नहीं सकता था।

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एक बार की बात है कि उन दोनों के खेत में खेती बहुत कम हुई और नर गिलहरी के पास खाने के लिये बहुत कम गिरी[2] थी।

दूसरी तरफ भैंस को थोड़ी बहुत घास कहीं न कहीं से मिल ही जाती थी पर फिर भी वह उसको उतनी नहीं मिलती थी जितनी उसको चाहिये थी।

सो एक दिन दोनों दोस्त खाना ढूँढने निकले। उस दिन दिन बहुत ही गरम था और उनको खाना नहीं मिल रहा था। नर गिलहरी को रात के लिये खाना चाहिये था और उसको प्यास भी लगी थी।

नर गिलहरी हमेशा से ही भैंस का दूध पीना चाहता था पर उसको पता था कि वह उसे अपना दूध नहीं पीने देगी। वे सारा दिन बाहर थे और गर्मी बहुत थी। नर गिलहरी जितना ज़्यादा भैंस के थनों की तरफ देखता उसको उतनी हीे ज़्यादा प्यास लग आती।

नर गिलहरी ने देखा कि भैस के थनों में अब तक काफी दूध भर गया था। वह उसके थनों में अपना मुँह लगाने के लिये बहुत देर तक इन्तजार नहीं कर सका सो उसने भैंस का दूध पीने की एक तरकीब सोची।

वह भैंस से बोला — “मैं तुमसे शर्त लगाता हूँ कि मैं तुमसे ज़्यादा तेज़ भाग सकता हूँ। ”

भैंस ने उसका मजाक बनाते हुए कहा — “इन छोटे छोटे पाँवों से? मैं तो अपनी आँखें बन्द करके भी तुमसे ज़्यादा तेज़ भाग सकती हूँ। ”

नर गिलहरी बोला — “ठीक है तो मेरी शर्त मानो और साबित कर दो कि तुम मुझसे ज़्यादा तेज़ भाग सकती हो। तुम वे दो बड़े पेड़ देख रही हो न? चलो देखते हैं कि उनमें से उस दूसरे पेड़ के पास जल्दी कौन पहुँचता है।

हम लोग जितनी तेज़ भाग सकते हैं उतनी तेज़ भागेंगे और पहिले पहले पेड़ के चारों तरफ चक्कर काटेंगे फिर दूसरे पेड़ की तरफ जायेंगे। जो भी दूसरे पेड़ तक पहले पहुँच जायेगा वही जीतेगा। ”

भैंस बोली — “यह काम तो आसान है। मैं तुम्हारा स्वागत करने के लिये वहाँ मौजूद रहूँगी। ”

तब भैंस ने अपना बाँया पाँव जमीन पर मारा और अपना दाँया पाँव उठा कर हिला कर दौड़ शुरू होने की घोषणा की। पर जब तक भैंस अपना दाँया पाँव जमीन पर वापस ले कर आयी नर गिलहरी तो उससे पहले ही दौड़ चुका था।

वह भैंस से ज़्यादा तेज़ था। वह सीधा पहले पेड़ के पास गया और फिर बिजली की तेज़ी से उसने उसके चारों तरफ चक्कर काटा, और वहाँ से दूसरे पेड़ की तरफ दौड़ गया।

भैंस को तो अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। उसको लगा कि नर गिलहरी पेड़ के बीच से हो कर भाग गया था।

आखिर जब वह पहले पेड़ के पास पहुँची तो वह अपने सींगों के साथ उस पेड़ में फँस गयी। उसके सींगों का ज़ोर इतना ज़्यादा था कि उसके सींग पेड़ में घुस गये और इस वजह से वह पेड़ हिल गया और उसके बहुत सारे फल नीचे गिर गये।

वह चिल्लायी और जितनी ज़ोर से वह अपना सींग खींच सकती थी उसने खींचने की कोशिश तो की पर वह उन्हें उस पेड़ से बाहर खींच ही नहीं सकी।

नर गिलहरी भैंस के पास आया और उससे बोला — “मैं न कहता था कि मैं तुमसे ज़्यादा तेज़ हूँ। ”

भैंस बोली — “मैं मान गयी कि तुम मुझसे ज़्यादा तेज़ भागते हो। तुम जीत गये लेकिन अब ज़रा तुम इस पेड़ से मेरा सींग निकालने में तो मेरी सहायता करो। ”

नर गिलहरी ने बहुत कोशिश की पर वह भैंस का सींग उस पेड़ से निकाल ही नहीं सका। असल में तो उसने भैंस का सींग इसलिये भी नहीं निकाला क्योंकि अगर वह उसे निकाल देता तो उसका तो सारा प्लान ही गड़बड़ हो जाता।

सो उसने वहीं पास में जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा साफ किया और लेट गया। वह भैंस के भूखे होने का इन्तजार कर रहा था।

गिरे हुए फलों की खुशबू चारों तरफ महक रही थी और भैंस उस खुशबू को सहन नहीं कर पा रही थी। उसने चारों तरफ सूँघा पर वह किसी भी फल तक नहीं पहुँच सकी।

जब नर गिलहरी अपनी भूख को और नहीं रोक सका तो वह भैंस का दूध दुहने गया। पर जैसे ही उसने भैंस के थनों को छुआ भैंस ने अपना पैर मार कर उसको पेड़ की तरफ फेंक दिया।

जब नर गिलहरी को उस पेड़ की चोट से थोड़ा होश आया तो वह भैंस से कुछ समझौता करने आया।

उसने कुछ फल उठाये और उनको भैंस की नाक के आगे घुमाते हुए बोला — “इस बात का कोई मतलब नहीं है कि हम दोनों यहाँ भूखे मरें। तुमको भी भूख लग रही है और तुम हरी घास और ये रसीले फल खाने के लिये बेचैन हो रही हो।

उधर मुझे भी भूख लग रही है पर मैं न तो घास खा सकता हूँ और न ही फल। काश ये गिरी होते तो मेरा पेट भर सकता था। पर तुम्हारे पास दूध है जो मैं पी सकता हूँ और मैं तुमको ये फल खाने को दे सकता हूँ।

जैसा कि मुझे लग रहा है कि मुझे तुम्हारी जितनी जरूरत है उससे कहीं ज़्यादा तुम्हें मेरी जरूरत है। मैं तुमको यहीं छोड़े जा रहा हूँ और मैं घर जा रहा हूँ। ”

जैसे ही वह घर जाने के लिये मुड़ा उसने कुछ फल जो भैंस के पास पड़े थे उनको अपने पैर से इतनी ज़ोर से ठोकर मारी कि वे भैंस से इतनी दूर जा कर पड़े जहाँ तक वह कभी पहुँच ही नहीं सकती थी।

भैंस बोली — “क्या तुम मुझे सचमुच ही यहाँ अकेला छोड ,कर जा रहे हो?”

नर गिलहरी बोला — “देख लो। ” और फिर जाने के लिये मुड़ गया।

भैंस बोली — “अच्छा अच्छा। अगर तुम मुझे खाने केे लिये थोड़ी घास और फल दो तो तुम मेरा थोड़ा सा दूध पी सकते हो। ”

नर गिलहरी ने भैंस के लिये थोड़ी सी ताजा घास काटी और थोड़े से पके हुए रसीले फल उठाये और उनको भैंस को खाने को दे दिये।

जब भैंस घास और फल खा रही थी तो नर गिलहरी ने उसका थोड़ा सा दूध पिया और एक बालटी भर कर घर ले जाने के लिये भी जमा कर लिया। उसके बाद वह यह कह कर घर चला गया कि अब वह उसके लिये सहायता माँगने जा रहा था।

जब वह घर पहुँचा तो उसकी पत्नी ने उस दूध से बहुत ही स्वादिष्ट दलिया बनाया। नर गिलहरी और उसका परिवार और उनके मेहमान मिसेज़ हयीना[3] ने उस दिन बहुत अच्छे से खाना खाया।

मिसेज़ हयीना बोली — “यह तो बहुत ही अच्छा खाना था। तुमको इतना अच्छा दूध कहाँ से मिला मिसेज़ गिलहरी?”

गिलहरी बोली — “मेरे पति ले कर आये हैं। वह बहुत ही अच्छे शिकारी हैं। वह रोज नया नया खाना ले कर आते हैं। आज वह बड़ी मुश्किल से मिलने वाला भैंस का दूध ले कर आये हैं। क्या तुम सोच सकती हो कि उन्होंने उसका यह दूध कैसे दुहा?”

खाना खाने के बाद गिलहरी ने थोड़ा सा दलिया मिसेज़ हयीना को उसके परिवार के खानेे के लिये भी दे दिया।

जब मिसेज़ हयीना घर पहुँची तो उसने वह दलिया अपने पति को खाने के लिये दिया। हयीना को भी वह दलिया इतना अच्छा लगा कि उसने यह जानना चाहा कि उसकी पत्नी को यह दलिया कहाँ से मिला।

उसकी पत्नी ने उसको चिढ़ाया — “दूसरे लोग सारा दिन या तो शिकार करते हैं या फिर खेती करते हैं। शाम को वे अपनी पत्नियों के लिये रोज रोज नया शिकार ले कर आते हैं।

कभी वे अपने घर दलिया बनाने के लिये बहुत बढ़िया दूध ले कर आते हैं, भैंस का भी। पर तुम तो केवल घर में ही पड़े रहते हो और कुछ करते भी नहीं।

देखो यह दलिया मुझे गिलहरी ने दिया है। उसका पति अपने खेत से भैंस का दूध ले कर आया है। तुम भी खा कर देखो कितना स्वादिष्ट है यह दलिया। ”

यह सुन कर हयीना चुप नहीं बैठ सका। अगले दिन मुर्गे के बाँग देने से पहले ही वह उठा और नर गिलहरी के घर पहुँच गया। उसने जा कर नर गिलहरी के घर का दरवाजा खटखटाया तो नर गिलहरी ने घर का दरवाजा खोला।

सोते हुए नर गिलहरी ने उससे पूछा — “कहो कैसे आना हुआ हयीना भाई?”

हयीना बोला — “क्या तुमको इस बात से कभी परेशानी नहीं होती कि हम लोग पड़ोसी हैं और हम लोग कोई भी काम एक साथ नहीं करते?”

दरवाजा बन्द करने के लिये उत्सुक नर गिलहरी बोला — “नहीं मुझे तो ऐसा कभी नहीं लगा। ”

हयीना बोला — “रुको ज़रा। आज हम लोग अच्छे पड़ोसियों की तरह शिकार करने साथ साथ चलें?”

नर गिलहरी ने हयीना को टालने की बहुत कोशिश की। उसने कहा कि यह विचार कुछ ठीक नहीं है क्योंकि हयीना अपने ही तरीके का शिकार करना पसन्द करते हैं और गिलहरी तो शिकार करते ही नहीं।

पर जब हयीना ने बहुत ज़ोर दिया तो नर गिलहरी के पास और कोई चारा नहीं रहा और वह हयीना के साथ शिकार पर चलने को राजी हो गया।

नर गिलहरी का हयीना के साथ शिकार करना इतना ही बेकार था जितना कि भैंस के साथ शिकार करना। पर नर गिलहरी हयीना को अच्छी तरह से जानता था इसलिये वह अपने दूध लाने की जगह को उससे दूर ही रखना चाहता था।

पर वह इस बात से भी डरता था कि अगर वह भैंस से बहुत दिन तक दूर रहा तो भैंस भूख और प्यास से मर भी सकती थी। सो वह हयीना को भैंस के पास ले गया।

नर गिलहरी ने भैंस से पूछा — “कैसी हो? मैं तुम्हारे लिये सहायता ले कर आया हूँ। ”

भैंस बोली — “तो तुम अपना काम जल्दी करो और मुझे यहाँ से आजाद करवाओ। ”

एक दिन से ज़्यादा हो गया था और भैंस का दूध दुहा नहीं गया था। सो जैसे ही हयीना ने उसके दूध से भरे थन देखे उसके मुँह में भी पानी आने लगा।

जैसे ही नर गिलहरी भैंस को उस पेड़ से आजाद करने लगा कि हयीना ने नर गिलहरी को पकड़ लिया और उसे बाँध दिया।

भैंस ने यह सोचते हुए कि आगे क्या होने वाला है अपने खुर जमीन पर मारने शुरू कर दिये और चिल्लाना शुरू कर दिया। जब वह चिल्ला रही थी तो हयीना ने उसको दुहना शुरू कर दिया और भैंस ने उसको अपने पैर से ठोकर मारनी शुरू कर दी।

नर गिलहरी बोला — “हयीना भाई, इस तरह से काम नहीं चलेगा। इसको कुछ ताजा हरी घास और फल खाने को दो ताकि यह शान्त हो जाये। तब तुम इसका जितना चाहे दूध निकाल सकते हो। ”

तुरन्त ही हयीना ने भैंस के लिये कुछ ताजा घास काटी और फल इकठ्ठे किये और उसको खाने को दिये। जब भैंस उन्हें खा रही थी तो हयीना ने भी पहिले पेट भर कर उसका दूध पिया और फिर उसके दूध से अपनी बालटी भी भर ली।

नर गिलहरी बोला — “क्या यह ठीक रहेगा कि मैं तो तुमको यहाँ तक खाने के लिये ले कर आऊँ और तुम मुझको एक मुजरिम की तरह सेे बाँध कर यहाँ छोड़ जाओ?”

हयीना बोला — “नहीं, ऐसा तो नहीं है पर ज़िन्दगी भी हर समय बहुत अच्छी नहीं होती गिलहरी भाई। ”

नर गिलहरी बोला — “तुम ठीक कहते हो। पर अगर तुम मुझे खोल दोगे तो मैं तुम्हारी दूध की बालटी तुम्हारे घर तक ले जा सकता हूँ। तुम्हारे जैसे अच्छे शिकारी के लिये यह ठीक नहीं है कि तुम अपना खाना अपने घर खुद ले कर जाओ। ”

हयीना ने नर गिलहरी की सलाह के ऊपर कुछ विचार किया। हयीना जितना ज़्यादा उसकी सलाह पर सोच रहा था नर गिलहरी उसको अपने खोलने के लिये उतना ही उकसा रहा था।

नर गिलहरी बोला — “ज़रा सोचो, तुम्हारी इज़्ज़त कितनी बढ़ेगी जब लोग यह सुनेंगे कि तुमने अकेले ही भैंस को उसका दूध दुहने के लिये पछाड़ दिया। ”

हयीना बोला — “हाँ यह तो है। ”

नर गिलहरी बोला — “पर इस बात के लिये तुमको एक गवाह भी तो चाहिये न?”

नर गिलहरी की यह चाल काम कर गयी और हयीना ने उसको खोल दिया।

हयीना बोला — “यह लो यह दूध की बालटी। यह भी हो सकता है कि घर पहुँच कर मैं इसमें से थोड़ा सा दूध तुमको भी दे दूँ। ”

जब दोनों हयीना के घर चले तो नर गिलहरी ने अपना चाकू लिया और हयीना की बालटी में एक छोटा सा छेद कर दिया। फिर उसने हयीना की बालटी अपनी बालटी के ऊपर रख ली। इससे हयीना की बालटी में से दूध धीरे धीरे उसकी अपनी बालटी में गिरने लगा।

वे लोग चलते रहे और जब तक वे अपने घर पहुँचे तो हयीना की बालटी का सारा दूध नर गिलहरी की बालटी में आ गया था।

जब नर गिलहरी अपने घर जाने लगा तो उसने हयीना की बालटी जिसमें अब केवल दूध के झाग ही झाग रह गये थे सँभाल कर हयीना को दे दी।

उसने हयीना से कहा — “ताजा दूध एक लड़की की तरह होता है उसकी ठीक से देखभाल करनी चाहिये नहीं तो वह मुँह बनायेगा, उफान लायेगा। इसलिये ख्याल रखना कि जब तुम घर जाओ तो तुमको कोई नमस्ते न करे वरना यह दूध झाग में बदल जायेगा। ”

हयीना तो दूध पा कर बहुत ही खुश था। उसने नर गिलहरी से बालटी ले ली और उसे ले कर अपने घर चला।

जब वह अपने घर पहुँचा तो उसकी पत्नी दौड़ी दौड़ी आयी और उसको नमस्ते की और बोली — “आइये आइये । लगता है कि आज आप मेरे लिये दूध ले आये हैं। ”

हयीना को उसके नमस्ते करने पर गुस्सा आ गया। वह बोला — “अरे तमने मुझको नमस्ते क्यों की? तुमको मुझे नमस्ते नहीं करनी चाहिये थी। इससे तो तुमने मेरा सारा दूध झाग में बदल दिया है। अब मैं तुमको दूध कहाँ से दूँगा तुमने तो उसको पहले ही झाग में बदल दिया। ”

हयीना ने अपनी पत्नी को दूध को झाग में बदलने के लिये जिम्मेदार ठहराते हुए अपनी बालटी उलटी कर दी और उसको दिखा दिया कि उसके उसको नमस्ते करने की वजह से अब उस बालटी में केवल झाग ही थे दूध नहीं।

वह अपनी पत्नी पर बहुत गुस्सा हुआ और उनकी सारी रात एक दूसरे से बहस करते निकल गयी। जब वे लड़ते लड़ते थक गये तो हयीना लेट गया और कुछ सोचने लगा।

उसके दिमाग में एक विचार आया कि उसको भैंस के पास वापस जाना चाहिये और उस भैंस को मार देना चाहिये। सो सुबह होते ही वह वहाँ वापस गया और जा कर भैंस को मार दिया।

फिर उसने उसे काटा और उसका माँस घर ले आया। उसने उसके माँस को अपनी अँगीठी पर भूनने के लिये रख दिया।

उस दिन बाद में जब नर गिलहरी भैंस के पास उसका और दूध लेने गया तो देखा कि भैंस तो गायब थी। केवल उसका खून ही वहाँ पड़ा था। उसको तभी पता चल गया कि हयीना ने उसको मार दिया था।

गुस्सा हो कर नर गिलहरी घर वापस आ गया। घर बैठ कर वह कोई ऐसी तरकीब सोचने लगा जिससे कि वह हयीना से अपनी लूट वापस ले सके। रात को वह हयीना के घर गया और उसके घर के दरवाजे पर जा कर मरे जैसा लेट गया।

जब हयीना का बेटा रात को घर के दरवाजे का ताला लगाने गया तो उसने अपने घर के दरवाजे के पास किसी को लेटे देखा। वह डर गया और डर कर अपने पिता के पास भागा और बोला — “पिता जी, दरवाजे पर तो कोई लेटा है और वह कुछ बोलता भी नहीं है। ”

वह अपने बेटे पर बहुत गुस्सा हुआ और उसको बहुत बुरा भला कहा। फिर उसने अपनी पत्नी को भेजा। वह भी दरवाजे पर आयी और उसको भी जब उस शक्ल से कोई जवाब नहीं मिला तो वह भी डर गयी और जल्दी से घर के अन्दर वापस चली गयी।

उसने अपने पति से कहा — “तुम्हारा बेटा ठीक कहता है जी। दरवाजे पर कोई है जो न तो हिलता है और न ही बोलता है। ”

वह चिल्लाया — “तो मेरा भाला ले कर आओ। वहाँ पर जो कोई भी है तो उसको तो मुझे जवाब देना ही पड़ेगा। ”

सो वह अपना भाला ले कर दरवाजे की तरफ उससे लड़ने के लिये चला। जब उसने अपने भाले से उसे धक्का दिया तो उसको पता चला कि वह तो नर गिलहरी था और वह तो मरे हुए का बहाना बनाये पड़ा था।

वह फिर बोला — “आज मेरा दिन अच्छा है। इसको मारने के लिये तो मुझे एक उँगली भी नहीं उठानी पड़ी। ”

कह कर उसने उस नर गिलहरी को उठाया और उसको अपने घर के अन्दर ले गया। उसने उसको भी अपनी अँगीठी पर रख दिया जहाँ भैंस का माँस भुन रहा था और सोने चला गया।

जब हयीना और उसका परिवार सो गया तो नर गिलहरी उठा और भैंस का सारा माँस उठा कर अपने घर ले गया।

रात भर हयीना और उसका परिवार आग के अंगारों पर भैंस के माँस की चर्बी के गिरने की आवाज सुनता रहा। असल में उनको उस रात ठीक से नींद आयी ही नहीं।

पर वे जितनी भी देर सोये, नर गिलहरी के लिये उतनी ही देर उस भैंस का माँस वहाँ से अपने घर ले जाने के लिये काफी थी।

रात भर ठीक से न सोने की वजह से और फिर सुबह तक ज़्यादा देर तक सोने की वजह से हयीना को भैंस के माँस के सपने बहुत आये।

सो जैसे ही हयीना जागा वह माँस देखने के लिये अपनी अँगीठी के पास गया तो वहाँ तो उसकी अँगीठी खाली पड़ी थी।

यह देख कर हयीना को बहुत गुस्सा आया। पर क्योंकि वह नर गिलहरी भी वहाँ से जा चुका था तो उसको यकीन हो गया कि वह नर गिलहरी ही भैंस का सारा माँस चुरा कर ले गया था।

सो वह भी रात को नर गिलहरी के घर के दरवाजे के सामने जा कर मरे हुए की तरह लेट गया।

जब नर गिलहरी का बेटा रात को अपने घर का दरवाजा बन्द करने गया तो वहाँ हयीना को लेटा देख कर बहुत डर गया और अपने पिता के पास भागा भागा गया।

वह डर से काँपते हुए हकला कर बोला — “पिता जी पिता जी, दरवाजे पर तो एक बहुत बड़ा शैतान पड़ा हुआ है। वह कुछ बोलता नहीं। वह तो ऐसा लगता है , , ,। ”

“अपने आपको सँभालो बेटे। बताओ तो वह है क्या?”

नर गिलहरी बाहर आया तो उसको देख कर समझ गया कि वह हयीना था सो उसने अपनी पत्नी की तरफ देखा और उससे इतनी ज़ोर से बोला कि हयीना भी सुन ले — “देखो मेरा जादुई चाकू[4] लो जो अपने आप काटता है और दरवाजा खोल कर उसे बाहर फेंक दो तो वहाँ जो कुछ भी है वह उसको काट कर फेंक देगा। ”

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हयीना तो यह सुनते ही बहुत डर गया और वहाँ से उठ कर अपने घर भाग गया।

किसी चालाक आदमी के लिये यही अच्छा है कि वह अपने जैसे आदमियों के साथ ही रहे ताकि जब वह मरे तो उन लोगों को पता रहे कि उसे किस तरह से गाड़ना है।



[1] Tricks for Tat – a Bantu folktale from Cameroon, West Africa. Adapted from the book :

“The Orphan Girl and the Other Stories”, by Offodile Buchi. 2001.

[2] Translated for the word “Nuts” – see their picture above.

[3] Hyena is a tiger like animal. See its picture above.

[4] Translated for the word “Matchet” – matchet is a long sword type knife used to cut grass in African countries. See its picture above.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के  लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: तैसे के लिये चाल // अफ्रीका की लोक कथाएँ // सुषमा गुप्ता
तैसे के लिये चाल // अफ्रीका की लोक कथाएँ // सुषमा गुप्ता
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