तीन प्रश्नों के उत्तर // लियो टालस्टाय // प्राची - जून 2018

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विश्व साहित्य तीन प्रश्नों के उत्तर लियो टालस्टाय ए क बार एक राजा के मन में आया कि यदि वह इन तीन प्रश्नों के उत्तर खोज लेगा तो उसे कुछ और जा...

विश्व साहित्य

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तीन प्रश्नों के उत्तर

लियो टालस्टाय

क बार एक राजा के मन में आया कि यदि वह इन तीन प्रश्नों के उत्तर खोज लेगा तो उसे कुछ और जानने की आवश्यकता नहीं रह जायेगी।

पहला प्रश्नः किसी भी कार्य को करने का सबसे उपयुक्त समय कौन सा है?

दूसरा प्रश्नः किन व्यक्तियों के साथ कार्य करना सर्वोचित है?

तीसरा प्रश्नः वह कौन सा कार्य है जो हर समय किया जाना चाहिए?

राजा ने यह घोषणा करवाई कि जो भी व्यक्ति उपरोक्त प्रश्नों के सही उत्तर देगा, उसे बड़ा पुरस्कार दिया जाएगा। यह सुनकर बहुत से लोग राजमहल गए और सभी ने अलग-अलग उत्तर दिए। पहले प्रश्न के उत्तर में एक व्यक्ति ने कहा कि राजा को एक समय तालिका बनाना चाहिए और उसमें हर कार्य के लिए एक निश्चित समय नियत कर देना_ चाहिए तभी हर काम अपने सही समय पर हो पायेगा। दूसरे व्यक्ति ने राजा से कहा कि सभी कार्यों को करने का अग्रिम निर्णय कर लेना उचित नहीं होगा और राजा को चाहिए कि वह मनविलास के सभी कार्यों को तिलांजलि देकर हर कार्य को व्यवस्थित रूप से करने की ओर अपना पूरा धयान लगाये।

किसी और ने कहा कि राजा के लिए यह असंभव है कि वह हर कार्य को दूरदर्शिता पूर्वक कर सके। इसलिए राजा को विज्ञजनों की एक समिति का निर्माण करना चाहिए जो हर विषय को परखने के बाद राजा को यह बताये कि उसे कब क्या करना है। फिर किसी और ने यह कहा कि कुछ मामलों में त्वरित निर्णय लेने पड़ते हैं और परामर्श के लिए समय नहीं होता लेकिन ज्योतिषियों और भविष्यवक्ताओं की सहायता से राजा यदि चाहे तो किसी भी घटना का पूर्वानुमान लगा सकता है।

दूसरे प्रश्न के उत्तर के लिए भी कोई सहमति नहीं बनी। एक व्यक्ति ने कहा कि राजा को प्रशासकों में अपना पूरा विश्वास रखना चाहिए। दूसरे ने राजा से पुरोहितों और संन्यासियों में आस्था रखने के लिए कहा। किसी और ने कहा कि चिकित्सकों पर सदैव ही भरोसा रखना चाहिए तो किसी ने योद्धाओं पर विश्वास करने के लिए कहा।

तीसरे प्रश्न के जवाब में भी विविध उत्तर मिले। किसी ने कहा कि विज्ञान का अध्ययन सबसे महत्वपूर्ण है तो किसी ने
धर्मग्रंथों के पारायण को सर्वश्रेष्ठ कहा। किसी और ने कहा कि सैनिक कौशल में निपुणता होना ही सबसे जरूरी है।

राजा को इन उत्तरों में से कोई भी ठीक नहीं लगा इसलिए किसी को भी पुरस्कार नहीं दिया गया। कुछ दिन तक चिंतन-मनन करने के बाद राजा ने एक महात्मा के दर्शन का निश्चय किया। वह महात्मा एक पर्वत के ऊपर बनी कुटिया में रहते थे और सभी उन्हें परमज्ञानी मानते थे।

राजा को यह पता चला कि महात्मा पर्वत से नीचे कभी नहीं आते और राजसी व्यक्तियों से नहीं मिलते थे। इसलिए राजा ने साधारण किसान का वेश धारण किया और अपने सेवक से कहा कि वह पर्वत की तलहटी पर लौटने का इंतजार करे। फिर राजा महात्मा की कुटिया की ओर चल दिया।

महात्मा की कुटिया तक पहुँचने पर राजा ने देखा कि वे अपनी कुटिया के सामने बने छोटे से बगीचे में फावड़े से खुदाई कर रहे थे। महात्मा ने राजा को देखकर सर हिलाया और खुदाई करते रहे। बगीचे में काम करना उनके लिए वाकई कुछ कठिन था, वे वृद्ध हो चले थे। हांफते हुए वे जमीन पर फावड़ा चला रहे थे।

राजा महात्मा तक पहुंचा और बोला, ‘‘मैं आपसे तीन प्रश्नों का उत्तर जानना चाहता हूँ। पहलाः किसी भी कार्य को करने का सबसे अच्छा समय क्या है? दूसराः किन व्यक्तियों के साथ कार्य करना सर्वोचित है? तीसराः वह कौन सा कार्य है जो हर समय किया जाना चाहिए?’’

महात्मा ने राजा की बात ध्यान से सुनी और उसके कंधों को थपथपाया और खुदाई करते रहे। राजा ने कहा, ‘‘आप थक गए होंगे। लाइए, मैं आपका हाथ बंटा देता हूँ।’’ महात्मा ने
धन्यवाद देकर राजा को फावड़ा दे दिया और एक पेड़ के नीचे सुस्ताने के लिए बैठ गए।

दो क्यारियाँ खोदने के बाद राजा महात्मा की ओर मुड़ा और उसने फिर से वे तीनों प्रश्न दोहराए। महात्मा ने राजा के प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया और उठते हुए कहा, ‘‘अब तुम थोड़ी देर आराम करो और मैं बगीचे में काम करूंगा।’’ लेकिन राजा ने खुदाई करना जारी रखा। एक घंटा बीत गया, फिर दो घंटे। शाम हो गयी। राजा ने फावड़ा रख दिया और महात्मा से कहा, ‘‘मैं यहाँ आपसे तीन प्रश्नों के उत्तर पूछने आया था पर आपने मुझे कुछ नहीं बताया। कृपया मेरी सहायता करें ताकि मैं समय से अपने घर जा सकूं।’’

महात्मा ने राजा से कहा, ‘‘क्या तुम्हें किसी के दौड़ने की आवाज सुनाई दे रही है?”’’ राजा ने आवाज की दिशा में सर घुमाया। दोनों ने पेड़ों के झुरमुट से एक आदमी को उनकी ओर भागते आते देखा। वह अपने पेट में लगे घाव को अपने हाथ से दबाये हुए था। घाव से बहुत खून बह रहा था। वह दोनों के पास आकर धरती पर गिर गया और अचेत हो गया। राजा और महात्मा ने देखा कि उसके पेट में किसी शस्त्र से गहरा वार किया गया था। राजा ने फौरन उसके घाव को साफ किया और अपने वस्त्र को फाड़कर उसके घाव पर बाँधा_ ताकि खून बहना बंद हो जाए। कपड़े का वह टुकड़ा जल्द ही खून से पूरी तरह तर हो गया तो राजा ने उसके ऊपर दूसरा कपडा बाँधा और ऐसा तब तक किया जब तक खून बहना रुक नहीं गया।

कुछ समय बाद घायल व्यक्ति को होश आया और उसने पानी माँगा। राजा कुटिया तक दौड़कर गया और उसके लिए पानी लाया। सूरज अस्त हो चुका था और वातावरण में ठंडक आने लगी। राजा और महात्मा ने घायल व्यक्ति को उठाया और कुटिया के अन्दर बिस्तर पर लिटा दिया। वह आँखें बंद करके चुपचाप लेटा रहा। राजा भी पहाड़ चढ़ने और बगीचे में काम करने के बाद थक चला था। वह कुटिया के द्वार पर बैठ गया और उसे नींद आ गयी। सुबह जब उसकी आँख खुली तब सूर्योदय हो चला था और पर्वत पर दिव्य आलोक फैला हुआ था।

एक पल को वह भूल ही गया कि वह कहाँ है और वहां क्यों आया था। उसने कुटिया के भीतर बिस्तर पर दृष्टि डाली। घायल व्यक्ति अपने चारों ओर विस्मय से देख रहा था। जब उसने राजा को देखा तो बहुत महीन स्वर में बुदबुदाते हुए कहा, ‘‘मुझे क्षमा कर दीजिये.’’

‘‘लेकिन तुमने क्या किया है और मुझसे क्षमा क्यों मांग रहे हो?’’ राजा ने उससे पूछा।

‘‘आप मुझे नहीं जानते पर मैं आपको जानता हूँ। मैंने आपका वध करने की प्रतिज्ञा ली थी क्योंकि पिछले युद्ध में आपने मेरे राज्य पर हमला करके मेरे बां-बांधवों को मार डाला और मेरी संपत्ति हथिया ली। जब मुझे पता चला कि आप इस पर्वत पर महात्मा से मिलने के लिए अकेले आ रहे हैं तो मैंने आपकी हत्या करने की योजना बनाई। मैं छुपकर आपके लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था पर आपके सेवक ने मुझे देख लिया। वह मुझे पहचान गया और उसने मुझ पर प्रहार किया। मैं अपने बचाव के लिए भागता हुआ यहाँ आ गया और आपके सामने गिर पड़ा। मैं आपकी हत्या को उद्यत था पर आपने मेरे जीवन की रक्षा की। मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। मुझे समझ नहीं आ रहा कि आपके उपकार का मोल कैसे चुकाऊँगा। मैं जीवनपर्यंत आपकी सेवा करूंगा और मेरी संतानें भी सदैव आपके कुल की सेवा करेंगीं। कृपया मुझे क्षमा कर दें।’’

राजा यह जानकर बहुत हर्षित हुआ कि प्रकार उसके शत्रु का रूपांतरण हो गया। उसने न केवल उसे क्षमा कर दिया बल्कि उसकी संपत्ति लौटाने का वचन भी दिया और उसकी चिकित्सा के लिए अपने सेवक के मार्फत अपने निजी चिकित्सक को बुलावा भेजा। सेवक को निर्देश देने के बाद राजा महात्मा के पास अपने प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पुनः आया। उसने देखा, महात्मा पिछले दिन खोदी गयी क्यारियों में बीज बो रहे थे।

महात्मा ने उठकर राजा से कहा, ’’आपके प्रश्नों के उत्तर तो पहले ही दिए जा चुके हैं।’’

‘‘वह कैसे?’’ राजा ने चकित होकर कहा।

‘‘कल यदि आप मेरी वृद्धावस्था का ध्यान करके बगीचे में कार्य करने में मेरी सहायता नहीं करते तो आप वापसी में घात लगाकर बैठे हुए शत्रु का शिकार बन जाते। तब आपको यह खेद होता कि आपको मेरे समीप अधिक समय व्यतीत करना चाहिए था। अतः आपका कल बगीचे में कार्य करने का समय ही सबसे उपयुक्त था। आप जिस सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति से मिले वह मैं ही था। और आपका सबसे आवश्यक कार्य था मेरी सहायता करना। बाद में जब घायल व्यक्ति यहाँ चला आया तब सबसे महत्वपूर्ण समय वह था जब आपने उसके घाव को भली प्रकार बांधा। यदि आप ऐसा नहीं करते तो रक्त स्राव के कारण उसकी मृत्यु हो जाती। तब आपके और उसके मध्य मेल-मिलाप नहीं हो पाता। अतः उस क्षण वह व्यक्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण था और उसकी सेवा-सुश्रूषा करना सबसे आवश्यक कार्य था।’’

‘‘स्मरण रहे, केवल एक ही समय सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और वह समय यही है, इस क्षण में है। इसी क्षण की सत्ता है, इसी का प्रभुत्व है। सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वही है जो आपके समीप है, आपके समक्ष है, क्योंकि हम नहीं जानते कि अगले क्षण हम किसी अन्य व्यक्ति से व्यवहार करने के लिए जीवित रहेंगे भी या नहीं। और सबसे आवश्यक कार्य यह है कि आपके समीप आपके समक्ष उपस्थित व्यक्ति के जीवन को सुख-शांतिपूर्ण करने के प्रयास किये जाएँ क्योंकि यही मानवजीवन का उद्देश्य है।’’

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रचनाकार: तीन प्रश्नों के उत्तर // लियो टालस्टाय // प्राची - जून 2018
तीन प्रश्नों के उत्तर // लियो टालस्टाय // प्राची - जून 2018
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