हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी : साम्प्रदायिक सद्भाव की कहानियाँ - 5 : लोकतंत्र में धर्म और जाति // असग़र वजाहत

SHARE:

हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी साम्प्रदायिक सद्भाव की कहानियाँ असग़र वजाहत लेखक डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल सम्पादक भाग 1   ||  भाग 2   || भाग 3 |...

हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी

हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी : साम्प्रदायिक सद्भाव की कहानियाँ - लेखक : असग़र वजाहत, संपादक : डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल

साम्प्रदायिक सद्भाव की कहानियाँ

हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी : साम्प्रदायिक सद्भाव की कहानियाँ - लेखक : असग़र वजाहत, संपादक : डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल

असग़र वजाहत

लेखक

हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी : साम्प्रदायिक सद्भाव की कहानियाँ - लेखक : असग़र वजाहत, संपादक : डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल

डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल

सम्पादक

भाग 1  ||  भाग 2  || भाग 3 || भाग 4 ||

-- पिछले अंक से जारी

भाग 5

लोकतंत्र में धर्म और जाति

विसंगतियों, विरोधाभासों और असमानताओं से भरे हमारे देश में आज देश की दिशा और दशा ने जो रुख इख़्तियार कर लिया है वह घोर चिंता का कारण बन गया है। आजादी के बाद शायद देशवासी इतने स्तरों पर इतने अधिक बटे हुए नहीं थे, जितने आज हैं।

हिन्दू-मुस्लिम सांप्रदायिकता ने जो उग्र रूप धारण कर लिया है वह एक विस्फोटक भविष्य का सूचक है। लगातार होने वाले बम धमाकों के सामने आम देशवासी अपने आपको चाहे जितना असहाय महसूस करता हो लेकिन यह तय
है देश के अंदर अविश्वास की आग तेजी से भड़क रही है। बम धमाकों के
अपराधी दिखाई नहीं देते लेकिन उनकी पहचान ऐसे समूहों के रूप में तो हो ही जाती है जो एक धर्म विशेष से संबंध रखते हैं।

धर्म विशेष के लोग लाख कहते रहे हैं कि हम धमाकों की निन्दा करते हैं और यह अधार्मिक काम है लेकिन देश में एक माहौल-एक घृणा और प्रतिहिंसा का माहौल तो बनता ही है। धर्म के नाम पर धमाके करने वालों का उद्देश्य भी यही है और वह पूरा हो रहा है। सरकारी तंत्र की निष्क्रियता और अकर्मंयता आग में घी का काम करती है। जनता हर तरफ से निराश होने के बाद उत्तेजना और उकसावे के चरम क्षणों में ऐसे निर्णय लेती है जो लोकतंत्र की बुनियादें हिला देते हैं और प्रतिहिंसा को और मज़बूत बनाते हैं। यही पिछले पंद्रह-बीस साल से हो रहा है और हम केवल दर्शक बने देख रहे हैं।

सांप्रदायिकता के बाद हमारे समाज में जातीय तनाव और संघर्ष का माहौल भी उग्र रूप धारण कर चुका है। राजनीतिक, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश की राजनीति तो जातीय समीकरणों में बुरी तरह फंसी दिखाई देती है।

अब सवाल नीतियों पर नहीं पूछे जाते, राजनैतिक दल अपना ‘मेनोफेस्टो’ नहीं बनाते, अपनी प्राथमिकताएँ और योजनाएँ नहीं घोषित करते; अब बात होती है केवल जातीय समीकरणों पर। समीकरण बनते हैं परंतु जातियों के बीच घृणा और द्वेष की दीवारें ऊँची होती रहती हैं।

आज देश में जातीय हिंसा का जो स्वरूप नज़र आता है। वह पहले नहीं था। अभी हाल में ही गुजर समाज के आंदोलन ने यह सिद्ध कर दिया है कि जातियाँ अपनी माँगें मनवाने और प्रमुख स्थान स्थापित करने के लिए किस तरह कानून तथा प्रशासन से खिलवाड़ करेंगी और उन पर किसी तरह का कोई शिकंजा नहीं कसा जा सकेगा। बल्कि वोटों की राजनीति उनकी पीठ थपथपाएगी और अपने हित में इस्तेमाल करने की चालें सोचेगी।

जाति आधारित संगठन बड़ी तेजी से सामने आ रहे हैं। प्रदेशों तथा जिलों में जाति विशेष के सम्मेलन और सभाएं यह सिद्ध करते हैं कि आज हमारे समाज की आस्था देश के कानून, व्यवस्था और शासन पर नहीं बल्कि अपनी जाति पर केन्द्रित है। जातिवादी राजनीति के मज़बूत होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि आजादी की आधी शताब्दी बीत जाने के बाद भी लोगों को देश के प्रशासन, कानून व्यवस्था, न्याय व्यवस्था के प्रति आस्था नहीं है।

आज एक आम आदमी यह समझता है कि केवल उसकी जाति ही उसे संरक्षण दे सकती है। जिस समाज में धर्म या जाति सत्ता प्राप्त करने का आधार बनता हो उस समाज में योग्यता, कार्य-कुशलता, कार्यक्षमता आदि का क्या अर्थ बचेगा? यही नहीं अब हमारे समाज में तो यह मान लिया गया है कि योग्यता आदि की बातें किताबी हैं और उनका कोई महत्त्व नहीं है या वे प्रसांगिक नहीं रह गयी हैं।

देश का सबसे ऊँचा न्यायाधीश भी भ्रष्टाचार में लिप्त बताये जाते हैं। निचले-न्यायालयों का क्या हाल होगा इसकी कल्पना की जा सकती है। सरकारी मशीनरी पूरी तरह भ्रष्ट हो चुकी है। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों का भ्रष्टाचार रोज़मर्रा की बात बन गया है। विकास योजनाएं भ्रष्टाचार की सूली पर चढ़ा दी गयी हैं। छोटे जिलों में तबादले की राजनीति ने प्रशासन को ठप्प करके रख दिया है। केवल वही काम होते हैं जिनसे किसी को व्यक्तिगत लाभ होता है। प्रशासन और राजनीति के गठजोड़ ने विकास को विनाश के कगार तक पहुँचा दिया है। मजे़ की बात यह है कि देश की इस स्थिति की जानकारी सबको है और कोई कुछ नहीं कर सकता।

राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्रा तक जानते हैं कि देशवासियों को न्याय नहीं मिल रहा, भ्रष्टाचार के कारण विकास योजनाएं रुकी पड़ी हैं, सार्वजनिक क्षेत्र के बेस्तर उपक्रम खरबों का घाटा दे रहे हैं लेकिन कोई कुछ नहीं कर सकता। भ्रष्टाचार से निपटने के लिए हमने जो संस्थाएं बनायीं थीं वे स्वयं भ्रष्ट हो गयी हैं। अब सोचने की बात यह है कि एक भ्रष्ट समाज आतंकवाद से कैसे लड़ सकता है? भ्रष्टाचारी पैसा लेकर सब दरवाजे़ खोल देता है, उसे इससे क्या मतलब कि कौन आ रहा है, कौन जा रहा है?

कानून और व्यवस्था से लोगों का विश्वास उठ गया है। यही कारण है कि अपराध बेहद तेजी से बढ़ रहे हैं। दूसरी ओर अपराधियों को राजनेताओं से
सीधा संरक्षण मिलता है या अपराधी ही राजनेता बन गये हैं। वे पुलिस और प्रशासन के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं। जिसके कारण कानून व्यवस्था पर से लोगों का विश्वास समाप्त हो गया है। इसलिए लोग विवाद का निपटारा सड़कों पर करने लगे हैं, ‘रोड रेज’ और सड़क पर होने वाले अपराधों में वृद्धि होती जा रही है।

कानून व्यवस्था के दीवालिएपन के साथ-साथ सामाजिक मूल्यों और पारिवारिक संबंधों में जो बदलाव आया है वह समाज और राजनीति में आये पतन की प्रतिछाया है। सिद्धांतविहीन और दंड विधान से ‘मुक्त’ समाज में मानवीय
संबंध कैसे होंगे। इसकी कल्पना करना कठिन नहीं है। दहेज के लिए हत्याएँ, बच्चों के साथ बलात्कार और हत्याएँ, वृद्धों की हत्याएँ आदि के पीछे यही मानसिकता काम करती है कि ‘सज़ा नहीं होगी’ तथा ‘सबसे बड़ी चीज़ धन है’ जिसे प्राप्त करने के लिए कुछ भी किया जा सकता है।

अब यह लगने लगा है कि दरअसल देश को यथास्थितिवाद की ताकष्ते चला रही हैं। कुछ शक्तिशाली गुट अपने एजेंडे और कार्यक्रम के अनुसार देश को जिस दिशा में ले जा रहे हैं उस दिशा में देश जा रहा है नहीं तो इसका कोई कारण नहीं है कि आधी शताब्दी के लोकतंत्र में देश सामाजिक, नैतिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ने के बजाय पीछे जा रहा है।

विसंगतियाँ बढ़ रही हैं जो किसी भी समाज और देश के लिए घातक हैं। एक ओर करोड़पतियों की संख्या बढ़ रही हैं तो दूसरी ओर बेरोज़गारी और भूखमरी बढ़ रही है। किसान आत्म-हत्याएँ कर रहे हैं और विदेशों से होने वाला निवेश खरबों का आंकड़ा पार गया है। एक ओर ‘साइबर सिटी’ बनाये जा रहे हैं दूसरी ओर आदिवासी उजड़ रहे हैं। देश में बड़े पैमाने पर मजदूरों का पलायन और तस्करी हो रही है। जन-संगठन ठप्प पड़ गये हैं।

इन परिस्थितियों में सबसे ज्यादा खतरनाक यह है कि लोग लोकतंत्र पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। संसद में जिस तरह सांसदों की खरीद होती दिखाई देती है वह लोकतंत्र पर बड़ा आघात है। लोकतंत्र से विश्वास डिगने के कारण देश में हिंसा बढ़ेगी, धर्मों, जातियों, क्षेत्रों और प्रदेशों के आधार पर लोग बंटेंगे और लोकतंत्र का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। ऐसे हालात में हम अपने नेताओं की ओर देखते हैं।

आशा करते हैं कि वे हमें इस गंभीर संकट से उबार लेंगे। लेकिन हमारे नेता हैं कौन? क्या वे हमारे नेता हैं जो धर्म और जाति के नाम पर पहले से ही देश को दरका चुके हैं? या देश के नेता वे हैं जो यथा स्थितिवाद के पोषक हैं? कौन है देश का नेता? क्या वे हैं जो छोटी-छोटी क्षेत्राय पार्टियाँ बना कर अपनी गद्दियाँ बचाने में लगे हैं?

दरअसल एक बड़ा संकट यह भी है कि आज हमारे पास ‘विज़नरी’ नेतृत्व का नितांत अभाव है। यही नहीं हमारा आज का नेतृत्व देश को वर्तमान संकट से निकाल पाने का रास्ता नहीं खोज पाया है और न उसके पास भविष्य का कोई ‘रोड मैप’ है। शायद देशों के इतिहास में यह समय भी आता है, पर सदा नहीं रहता।

l

क्रमशः अगले अंकों में जारी....

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी : साम्प्रदायिक सद्भाव की कहानियाँ - 5 : लोकतंत्र में धर्म और जाति // असग़र वजाहत
हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी : साम्प्रदायिक सद्भाव की कहानियाँ - 5 : लोकतंत्र में धर्म और जाति // असग़र वजाहत
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhK9muVgXcrHLkGzPvxJ69iAb1nEZdXdnB-Koj4T_D3nxc5Xj3Vc9mh6D-OdDb3ZXCj0n8KsfPtBkebBSSj3RcRIzsSkaqI7ZPjnxQ10NvE2d16Q4K8b2luIu9IZO9r1YrJhzG5/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhK9muVgXcrHLkGzPvxJ69iAb1nEZdXdnB-Koj4T_D3nxc5Xj3Vc9mh6D-OdDb3ZXCj0n8KsfPtBkebBSSj3RcRIzsSkaqI7ZPjnxQ10NvE2d16Q4K8b2luIu9IZO9r1YrJhzG5/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/07/5_19.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/07/5_19.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content